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क्या पंचकोश भी आपकी अंतर्यात्रा में सहायक या बाधा बन सकते हैं?PART-04


चौथा शरीर ;''विज्ञानमय कोष” का क्या महत्व हैं?-

07 FACTS;-

1- चौथा शरीर मनोमय कोष से उच्चतर और विराट है।हमारा तीसरा शरीर विचारों से निर्मित होता है और चौथा शरीर निर्मित होता है चेतना और बोध से।इसीलिए ‘विज्ञानमय कोष’ है इनलाइटटेड बॉडी /बोध शरीर..।इसमें कोई कारण नहीं है, यह तर्कातीत है, अत्यधिक सूक्ष्म हो गया है। यह वस्तुओं को सीधे उनके स्वभाव में देख लेना है ;उनके बारे में सोचने का प्रयास नहीं है।जब हम विचार को जानने में समर्थ हो जाते हैं; और विचार को भी ऐसे ही देख सकते हैं जैसे आकाश में उड़ते हुए किसी पंछी को। तब ही अपने चैतन्य के आकाश में विचार को दूर खड़ा देख सकते है और तभी चौथे शरीर का पता चलता है।

2-लेकिन हम तो पहले शरीर से इस बुरी तरह बंधे हैं कि दूसरे तक का पता नहीं चलता। फिर हम तीसरे शरीर में भी इस बुरी तरह डूबे हैं कि मन के पार हम जा सकते हैं, इसका भी हमें पता नहीं चलता।उदाहरण के लिए तुम एक समुद्र के पास खड़े हुए हो और तुम्हारे सामने बहुत से नारियल के वृक्ष लगें लगे हुए हैं। तुम केवल उसे देखते हो ..उसके बारे में सोचते नहीं।तुम तो खोज भी नहीं रहे होते। तुम मात्र ग्रहणशील होकर प्रतीक्षारत होते हो, तुम किसी तर्क या ऐसी किसी बात की तलाश में भी नहीं होते।और सत्य प्रकट हो जाता है, यह एक उदघाटन है।बोध शरीर तुम्हें क्षितिज की सीमाओं के बहुत आगे ले जाता है, लेकिन अभी एक शरीर और है।

3- आज के युग में सभी कहते है ''मन बड़ा अशांत है,'' क्या तुमने कभी कोई शांत मन भी देखा है...तुम अशांत मन क्यों कहते हो?अशांत मन कहकर तुम दोहरे शब्द प्रयोग करते हो।यदि अशांति का नाम मन है,तो मन कभी शांत न होगा।लेकिन तुम मन के पार हो सकते हो; और जो मन के पार है.. वह शांत है।वास्तव में जैसे ही चौथा शरीर विकसित होता है,मन तिरोहित हो जाता है। तीसरा शरीर बिखरने लगता है ,केवल उसकी उपयोगिता ही रह जाती

है।जिसने भी चौथे शरीर को विकसित कर लिया है, वह व्यक्ति विचारों से घिरा नहीं रहता, जब उसे जरूरत होती है तब विचार का उपयोग कर लेता है।तो विचार भी केवल उपयोगी रह जाते हैं–जब जरूरत होती है ;तब आप विचार करते हैं, जब नहीं होती तो नहीं करते।

4-अगर आपके विचार चलते ही रहते है – कितना ही कहो, वे रुकते ही नहीं तो आप गैर-जरूरत विचार करते हैं, आपको चौथे शरीर का पता होना बहुत मुश्किल है।क्योंकि उसका कारण है ..आपको यह पता हीं नहीं है कि जो यह आप कह रहे हैं, ''रुको''! यह भी एक विचार मात्र है, नहीं तो फौरन रुक जाते। और एक विचार दूसरे विचार को नहीं रोक सकता; वे बराबर ताकत के हैं। बल्कि जब एक विचार कहेगा, रुको, तो दूसरा विचार और तेजी से चलेगा कि तू कौन है हमें रोकने वाला? एक गुलाम दूसरे गुलाम से कहेगा कि रुको! तो दूसरा गुलाम कहेगा, दौड़ेंगे। तुम कौन ..मालिक तो मैं हूं! आपकी जो सारी चेष्टा है कि विचार, शांत हो जाए.. यह भी एक विचार है। और एक विचार दूसरे विचार को नहीं रोक सकता।

5-वास्तव में जब भी कोई आज्ञा ऊपरी तल से मिलती है ;तो ही काम करती है, नहीं तो नहीं करती। जब विज्ञानमय शरीर से आज्ञा आती है–''रुको', तो विचार वहीं ठहर जाता है।

यह चौथा शरीर है ;इसको विकसित करें तो ही समझ में आएगा। और तब ऐसा परेशान नहीं होना पड़ता है कि विचार, 'रुको'। यह ठीक वैसा ही है कि ये सब अभी कह रहे थे कि 'मैं मालिक हूं'।और जब मालिक वापस आ गया; तो ये सब हाथ जोड़ कर खड़े हो गए है।

विज्ञानमय कोष विकसित होते ही विचार ऐसे ही गुलाम की तरह खड़े हो जाते–जरूरत हो तो उपयोग कर लें अन्यथा उनको टाल दें। वे अलग स्मृति संग्रह में पड़े रहते हैं, लेकिन चौबीस घंटे आपको पागल नहीं बनाते.. कि आप रात को सो जाना चाहते हैं , मगर वे आपकी सुनते ही नहीं।वास्तव में आप हैं ही नहीं जिसकी सुनी जा सके; आप उसी दिन होते हैं जिस दिन विज्ञानमय कोष की झलक आपको मिलनी शुरू होती है।

6- मन को रोक नहीं सकते, लेकिन मन को मन को पार कर सकते हैं ;लयबद्ध/हारमोनियस कर सकते हैं। मन खुद भी परेशान है क्योंकि वह आपके हाथ में है;इसीलिए मन को स्वस्थ कर सकते हैं। लेकिन जैसे ही मन स्वस्थ हो जाए, पीछे की पर्त दिखाई पड़नी शुरू हो जाती है ।इसलिए मन से यह मत कहें कि विचार बंद करो.. कुछ ऐसा करें, जिससे विचार बंद हो जाए ।चौथा शरीर है विज्ञानमय; जिसका भोजन है..''ध्यान''। विचार तीसरे शरीर का भोजन

है,तो ध्यान चौथे शरीर का भोजन है।ध्यान चौथे शरीर को जगाने का उपाय है–क्योंकि ध्यान.. चैतन्य को, विज्ञान को ,बोध को जगाता है।तो ध्यान चौथे शरीर को बढ़ाने की व्यवस्था है।

ध्यान भी एक ऊर्जा है,शक्ति है; और अति सूक्ष्म शक्ति है।

7-उदाहरण के लिए कभी कोई मनुष्य रास्ते पर जा रहा हो, उसके पीछे चलते-चलते, उसके पीछे की गले की हड्डी पर ध्यान भर करते रहें। एकाध-दो सेकेंड में आप पाएंगे, वह मनुष्य बेचैन होने लगा।90% वह मनुष्य दो मिनट के भीतर लौट कर देखेगा। आपने कुछ किया नहीं, लेकिन सिर्फ ध्यान… और एक बहुत सूक्ष्म ऊर्जा आपके शरीर से उस मनुष्य को छूने लगी।इसलिए बहुत सूक्ष्मतम ऊर्जा है ध्यान जिसकी ऊर्जा से संदेश भी पहुंचाए जा सकते हैं।और सौ प्रतिशत पहुंचाए जा सकते हैं, फिर भूल-चूक नहीं होगी।ध्यान इस चौथे शरीर को जगाने की चेष्टा है।

पांचवा शरीर ;''आनंदमय कोष” का क्या महत्व हैं?-

12 FACTS;-

1-इन चारों कोषों के पार पांचवीं देह है, जिसे ''आनंदमय कोष” /ब्लिस/ कॉस्मिक बॉडी कहते है। जब कोई विज्ञानमय कोष को ध्यान से पूर्ण करके ,शुद्ध कर लेता है, तो एक मोस्ट

ट्रांन्सपैरेंट/सबसे पारदर्शी शरीर उत्पन्न होता है।स्थूल शरीर जिस मैटर से बना है वह इतना पारदर्शी कभी नहीं हो सकता ।प्राण-ऊर्जा उससे ज्यादा पारदर्शी हो पाती है, लेकिन फिर भी पूरी पारदर्शी नहीं हो पाती।मन और ज्यादा पारदर्शी हो पाता है, लेकिन फिर भी पूरा पारदर्शी नहीं हो पाता। सर्वाधिक पारदर्शी होती है विज्ञान काया।वह इतनी पारदर्शी हो जाती है कि उसका कोई प्रतिरोध/रेसिस्टेंस नहीं होता।

2-ध्यान शुद्धतम ऊर्जा/द मोस्ट प्युरिफाइड एनर्जी है। उसमें से आप पार गुजर जाएं तो कहीं कोई धक्का ,कोई चोट नहीं होती।अगर आप शुद्धतम विज्ञान ऊर्जा में खड़े हैं, तो आपको पता ही नहीं चलेगा कि चौथा शरीर भी है।इसलिए जैसे ही कोई विज्ञान काया में खड़ा होता है, उसे विज्ञान काया का पता ही नहीं चलता,बल्कि आनंद काया की अनुभूति होती है।वास्तव में, चौथा

शरीर इतना शुद्धतम शरीर है कि वह दिखाई ही नहीं पड़ता कि चौथा भी है।जैसे कांच अगर बिलकुल शुद्ध हो तो दिखाई नहीं पड़ेगा। अगर कांच में दिखाई पड़ता है तो उसका मतलब ही है कि थोड़ा अशुद्ध है।लेकिन कांच फिर भी पदार्थ है.. भले ही दिखाई न पड़े, लेकिन अगर आप जाएंगे तो टकराएंगे अवश्य। लेकिन विज्ञान ऊर्जा सबसे ज्यादा सूक्ष्म शुद्धतम ऊर्जा है।

3-विज्ञान ऊर्जा के योग से जो शक्ति उपलब्ध हो सकी है, वह ध्यान है । इसलिए जैसे ही कोई पूर्ण जागरूक हो जाता है तो उसे यह पता चलता है कि वह आनंद से भर गया है।

उसे आनंद काया ही झलकती है।यह पांचवीं आनंद काया है, लेकिन इसे भी आत्मा नहीं

कहते, यह भी काया है। चौथी काया शुद्धतम है; लेकिन चौथी काया अशुद्ध भी हो सकती है । ध्यान से शुद्ध होती है, विक्षिप्तता से अशुद्ध होती है, होश से शुद्ध होती है, बेहोशी से अशुद्ध होती है।इसलिए जितनेअल्कोहल /इनटॉक्सिकेंट्स हैं, वे मूलत: विज्ञान काया को नुकसान पहुंचाते हैं, और यह भी हो सकता है, दूसरी काया को लाभ भी पहुंचा सकें, लेकिन विज्ञान काया को तो नुकसान ही पहुंचाते हैं।

4-एक मात्रा में अलकोहल लेने पर आपको अनुभव होता है कि कोई ताकत दौड़ गई;वह अनुभव आपकी प्राण-ऊर्जा में होता है।इस संसार के इंटेलेक्चुअल ग्रुप को;जो लोग विचार से ही जीते हैं आर्टिस्ट कवि , लेखक , चित्रकार , मूर्तिकार आदि को किसी अर्थ में अल्कोहल

हितकर मालूम पड़ती है। शायद एक मात्रा में उन्हें लाभ पहुंचता हो लेकिन चौथे शरीर को तो निश्चित रूप से हानि ही पहुंचती है क्योंकि चौथे शरीर के लिए मूर्च्छा ही अशुद्धि है, और होश ही शुद्धि है। किसी भी प्रकार की मूर्च्छा नुकसान पहुंचाती है। और चौथे शरीर की दोनों संभावनाए हैं ..शुद्धतम भी हो सकता है,और अशुद्ध भी।

5-पांचवें शरीर की एक खूबी है कि वह शुद्धतम ही है। वह अशुद्ध हो ही नहीं सकता। इसलिए ‘आनंद’ अकेला शब्द है जिसके विपरीत हमारे पास कोई भी शब्द नहीं है। सुख के विपरीत दुख है, शांति के विपरीत अशांति है, प्रेम के विपरीत घृणा है, चैतन्य के विपरीत मूर्च्छा है; लेकिन आनंद के विपरीत हमारे पास कोई भी शब्द नहीं है। निरानंद,शब्द भी केवल अभाव का सूचक है, विपरीत का नहीं।वास्तव में,आनंद के विपरीत कोई ऊर्जा नहीं है।

इसलिए पांचवां शरीर शुद्ध ही है ;उसके साथ कुछ भी करने की जरूरत नहीं, चौथे के साथ ही पांचवां उपलब्ध हो जाता है। पांचवां सदा मौजूद है।और इसलिए प्रत्येक व्यक्ति के लिए आनंद एक खोज है। ऐसा लगता है कि आनंद हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है ;जिसके लिए ‘ किसलिए’ पूछना बिलकुल व्यर्थ मालूम पड़ता है।

6- लोग कहते हैं कि ''ईश्वर को किसलिए खोजें? सत्य को किसलिए खोजें? जीवन का उद्देश्य क्या है? लेकिन कोई नहीं कहता कि आनंद को किसलिए खोजें ..इसका उद्देश्य क्या है? इसलिए आनंद स्वीकृत है। अगर ईश्वर को भी खोजना है तो आनंद के लिए ; सत्य को भी खोजना है तो केवल आनंद के लिए।अगर आपको यह समझा दिया जाए कि सत्य पाकर आनंद बिलकुल न मिलेगा, तो आप सत्य को खोजना बंद कर देंगे कि ऐसी खोज से क्या लेना- देना।असत्य में भी अगर तुम्हें कभी सुख मिलता है तो वह इसीलिए मिलता है कि असत्य सत्य होने का धोखा देता है।स्वप्न को भी जीना है तो स्वप्न को भी भ्रम देना पड़ता है कि मैं ही सत्य

हूं।आनंद सुख नहीं है, जीवन का लक्ष्य है ;क्योंकि सुख के साथ तो दुख अनिवार्य रूप से बंधा है।

7-आनंद स्वप्न भी नहीं है, क्योंकि स्वप्न के साथ स्वप्नभंग अनिवार्य है।और जो आनंद भंग हो जाए, वह आनंद नहीं है; क्योंकि आनंद के विपरीत कुछ भी नहीं है।आनंद अद्वैत है, अकेला है और आनंद की खोज इसलिए है कि वह हमारी परम देह है।यह भी देह है क्योंकि जब तक तुम्हें यह नहीं पता चलता है कि आनंद है; तब तक तक द्वैत मौजूद है।यह आनंद भी आपके आस-पास का एक घेरा है और इसके केंद्र में अभी भी कोई खड़ा है जिसे पता चलता है कि आनंद आ रहा है।यह अवेकनिंग/ जागरण बहुत सूक्ष्म और बहुत कठिन है।विज्ञानमय शरीर में ध्यान भोजन है; होश आ जाए तो मन से छुटकारा हो जाता है।अगर आनंदमय शरीर को भी होश आ जाए तो आनंद से भी पार हो जाता है, और तब व्यक्ति उसे पा लेता है जो वह है। वह फिर देह नहीं रहता, वह आत्मा हो जाता है।

8-लेकिन मन के प्रति जागना ;आनंद के प्रति जागने की तुलना में बहुत आसान है।वास्तव में आनंद से हम जागना ही नहीं चाहते..क्योकि जीवन भर, जन्मों-जन्मों से आनंद की ही तो तलाश थी। उसे कौन छोड़ना चाहेगा ..वाटर- एलिमेंट एक लोहे की जंजीर है, जो व्यक्ति छोड़ देना चाहता है; फायर - एलिमेंट एक सोने की जंजीर है, जो छोड़ने में मन नहीं होता। लेकिन एयर-एलिमेंट एक जंजीर ही नहीं मालूम पड़ती, वह तो आभूषण मालूम पड़ता है; .क्योकि हीरे-जवाहरात लगे हैं। लेकिन वह भी जंजीर है और ध्यान रहे, लोहे की जंजीर उतनी बड़ी जंजीर नहीं है, जितनी बड़ी जंजीर हीरे-जवाहरात लगी हुई जंजीर हो जाती है, क्योंकि अब कैदी खुद भी नहीं छोड़ना चाहता।

9-आनंद काया आखिरी बात है। इसलिए जब एक इनलाइटटेड व्यक्ति से लोग पूछते हैं कि आनंद तो बचेगा न? तो वह कहता है कि आनंद कैसे बचेगा ...न तुम बचोगे, न आनंद बचेगा।

सब अनुभव/ एक्सपीरिएंस बाहरी हैं लेकिन वह जो अनुभव करता है;वह भीतर है। लेकिन जब अनुभव ही न बचा तो ..दोनों खो जाएंगे।जब तक अनुभव है तब तक संसार है .. सूक्ष्मतम

अनुभव ,आनंद का अनुभव भी संसार है।अगर आनंद काया शेष रह जाए, तो व्यक्ति आनंद के लिए जन्म लेता है ;जीवन का अंत नहीं आता।आनंद काया टूटे तो ही कैवल्य है।अभी तो हमें आनंद का कोई पता ही नहीं है। जिसका पता ही नहीं है उसे छोड़ने की बात समझनी बहुत मुश्किल पड़ेगी।यह तो वही बात है कि किसी भिखारी को कहा जाये कि तुम महल का बिलकुल त्याग कर दो ; बड़ा अच्छा होगा। तो भिखारी कहेगा, लेकिन वह महल कहां है जिसे मैं छोड़ दूं? और छोड़ने की बात पीछे कर लेंगे, पहले उसका पता मुझे बता दें कि वह है कहां? पहले मैं उसे प्रयोग तो कर लू।

10-तो आनंद के प्रति जागने के लिए.. छोड़ने की बात एक अर्थ में उपयोगी है, कि महल पाने के पहले ही यह खयाल बना रहे,कि उसे भी छोड़ देना है ।तुम उस समय तक छोड़ते ही चले जाना ;जब तक कि छोड़ने को कुछ भी बचे; क्योंकि वहीं परमात्मा है .. ।उपनिषद के अनुसार ''इन चार कोषों के साथ आत्मा… बरगद के बीज में वृक्ष की तरह… अपने कारण स्वरूप अज्ञान में रहती है। ”और उस कारण स्वरूप अज्ञान/ द बेसिक इग्नोरेंस को आनंदमय कोष कहते हैं। जैसे कि बरगद का वृक्ष बीज में छिपा हो, और जब तक बीज न टूटे तब तक बरगद का वृक्ष पैदा न हो, ऐसे ही आत्मा के पास जो सबसे पहली, सबसे गहरी, और आत्मा के सबसे निकट पर्त है... वह आनंदमय कोष की पर्त है.। आनंदमय कोष आत्मा की आउटर कवरिंग /खोल है–जैसे बीज।और जब तक बीजरूपी आनंद न टूटे, तब तक वृक्ष नहीं उग सकता हैं।

11-उपनिषद के ऋषि उस स्थिति की तलाश कर रहे हैं, जहां आनंद भी गैर-जरूरी हो जाता है।जब तक आनंद भी जरूरी है तब तक आनंद भी आकांक्षा है,एक रस है, और तब तक दरिद्रता जारी है।''चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह । जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥''सम्राट तो वही है, जो आनंद को भी ऐसे छोड़ देता है जैसे बीज अपनी खोल

को छोड़ देता है।ये पांच कोष हैं;जैसे ही आप पांचवें में खड़े हो गए, वैसे ही आप परमात्मा के

इतने निकट हैं कि आप खींच लिए जाते हैं।पांचवें शरीर तक पहुंचने में मनुष्य का प्रयास जरूरी है, पांचवें के पार होने में प्रयास की कोई जरूरत नहीं है। और इसलिए जिसने पांच के प्रयास करते वक्त भी स्मरण रखा कि प्रभु की अनुकंपा, दया, कृपा और करुणा ही खींच लेगी ; तभी यह बात काम करेगी।

12-लेकिन अगर कोई व्यक्ति इन पांच तक पहुंचने की कोशिश में यह भूल गया कि मैं ही कर लूंगा, तो एक तो पांचवें तक पहुंचना ही मुश्किल है; और यह भी हो सकता है कि वह पांचवें पर खड़े होकर इस अहंकार में खड़ा रहे कि जब मैं इतने तक चला आया, तो क्या जरूरत है प्रभु की अनुकंपा की? तो हो सकता है कि वह बिलकुल किनारे पर ही खड़ा रहे और ग्रेविटेशन फ़ोर्स काम न कर पाए… आपको खींचे जाने के लिए तैयार होना चाहिए, तो

हीवह ग्रेविटेशन फ़ोर्स काम कर पाती है।वास्तव में चुंबक तैयार न भी हो तो बड़ा चुंबक उसे खींच लेगा और पत्थर भी नीचे न गिरना चाहता हो , तो भी जमीन खींच लेगी।लेकिन यह यांत्रिक घटना नहीं है।इस कृपा को लेने की तैयारी भी चाहिए… हाथ फैले हुए चाहिए… तो ही यह उपलब्ध हो सकता है।

....SHIVOHAM...

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