क्या भूतशुद्धि... एक बुनियादी साधना है?PART-03
क्या है भूत शुद्धि?-
10 FACTS;-
1-योग में पांच तत्वों से मुक्त होने की एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसे भूत-शुद्धि कहते हैं। अगर आप इन तत्वों का बखूबी शुद्धीकरण करते हैं, तो आप ऐसी स्थिति को प्राप्त कर लेते हैं जिसे भूत-सिद्धि कहते हैं।शरीर की बनावट में, 72% पानी, 12% पृथ्वी, 6% वायु, 4% अग्नि है और
बाकी का 6% आकाश है।योग की बुनियादी प्रक्रिया का मकसद भूत-सिद्धि की स्थिति हासिल करना है, ताकि जीवन की प्रक्रिया कोई आकस्मिक प्रक्रिया न रहे। हमारी जीवन-प्रक्रिया परिस्थितियों के आगे एक विवशता भर न रहे, बल्कि एक सचेतन प्रक्रिया बन जाए। एक बार ऐसा हो जाने के बाद, खुश और आनंदित रहना स्वाभाविक है और फिर मोक्ष की ओर बढऩा तय है। आप जिस वायु में सांस लेते हैं, जो पानी पीते हैं, जो खाना खाते हैं, जिस भूमि पर चलते हैं और अग्नि जो जीवन-ऊर्जा के रूप में काम कर रही है- अगर इन सभी को आप नियंत्रित और केंद्रित रखें, तो आपके लिए स्वास्थ्य, सुख और सफलता सुनिश्चित है।
2-योग-प्रणाली की भूत-शुद्धि की इस परंपरा के कारण दक्षिणी भारत में, लोगों ने इन पांच तत्वों के लिए पांच बड़े मंदिर भी बनाए। ये मंदिर अलग-अलग तरह की साधना के लिए बनाए गए थे।पृथ्वी तत्व से मुक्त होने के लिए, एकाम्बरेश्वर मंदिर; जल तत्व से मुक्त होने के लिए जंबूकेश्वर मंदिर;अग्नि तत्व से मुक्त होने के लिए अरुणाचलेश्वर मंदिर ; वायु तत्व से मुक्त होने के लिए श्रीकलाहस्ति मंदिर ;और आकाश तत्व से मुक्त होने के लिए नटराज मंदिर में जाते हैं और दूसरी तरह की साधना करते हैं। इसी तरह, सभी पांच तत्वों के लिए बनाए गए पांच अद्भुत मंदिरों में खास तरह की ऊर्जा स्थापित की गई जो उस किस्म की साधना में मदद करती है। योगी एक मंदिर से दूसरे मंदिर जाया करते थे और साधना करते थे।
3-इस प्रकार स्थिर तत्त्व (पृथ्वी), अस्थिर तत्त्व (वायु), शीत तत्त्व (जल), ऊष्ण तत्त्व (अग्नि) तथा व्यापकता एवं एकतारूप आकाश तत्त्व का भूत शुद्धि में चिंतन किया जाता है। पाँचों भूतों (तत्त्वों) का शुद्ध होकर ब्रह्म में मिल जाना ही भूत शुद्धि है। सबसे पहले गुरु शिष्य के मूलाधार चक्र में स्थित कुण्डलिनी को जगाते हैं और क्रमशः स्वाधिष्ठान व मणिपुर चक्र का भेदन कर सुषुम्णा नाड़ी के रास्ते से हृदय में स्थित अनाहत चक्र में लाते हैं। वहां दीये की लौ के सामान आकार वाले शिष्य के जीव को कुण्डलिनी के मुख में लेकर विशुद्धि चक्र (कंठ में) एवं आज्ञा चक्र (भ्रूमध्य) का भेदन करते हैं और ब्रह्मरंध्र में स्थित सहस्रार चक्र में ले जाते हैं;जहां ईश्वर का निवास है।
4-और तब शिष्य की जीवात्मा सहित कुण्डलिनी को परमात्मा में विलीन कर देते हैं /जोड़ देते हैं। इस दौरान पृथ्वी तत्त्व (चौकोर आकृति, पीला रंग, ब्रह्मा देवता पद, बीजमंत्र लं, निवृत्ति कला, पैर के तलुवों से जंघा तक) का विलय जल तत्त्व (अर्धचंद्र आकृति, सफ़ेद रंग, विष्णु देवता पद, बीजमंत्र वं, प्रतिष्ठा कला, जंघा से नाभि तक) में करते हैं। जल तत्त्व का विलय अग्नि तत्त्व (त्रिकोण आकृति, लाल रंग, शिव देवता पद, बीजमंत्र रं, विद्याकला, नाभि से हृदय तक) में करते हैं। अग्नि तत्त्व का विलय वायु तत्त्व (गोलाकार, धूम्र वर्ण, ईशान देवता पद, बीजमंत्र यं, शांति कला, हृदय से भ्रूमध्य तक) में करते हैं। वायु तत्त्व का विलय आकाश तत्त्व (वृत्ताकार, स्वच्छ वर्ण, सदाशिव देवता पद, बीजमंत्र हं, शान्त्यातीत कला, भ्रूमध्य से ब्रह्मरंध्र पर्यंत) में करते हैं। इसके बाद आकाश को अहंकार में, अहंकार को महत्तत्त्व (बुद्धि) में, महत्तत्त्व को प्रकृति में और प्रकृति को परमात्मा में विलीन करते हैं।
5-इस प्रकार शिष्य के सूक्ष्म शरीर का शोधन करके, शिष्य की बांयी कोख /उदर में पाप पुरुष का ध्यान करते हैं।उसके सारे अंग पाप से बने हैं...वह क्रोध व दाम में भरा हुआ है, हाथों में तलवारादि अस्त्र लिए हुए है। फिर गुरु उस पाप पुरुष को सुखाने के लिए 'यं' बीज की 16 आवृत्ति के साथ पूरक (सांस भीतर खींचना) द्वारा उस वायुबीज से उत्पन्न वायु से सशरीर पाप पुरुष को सुखाने की भावना करते हैं। इसके बाद गुरु अग्निबीज 'रं' की कुम्भक (सांस भीतर रोकना) द्वारा 64 आवृत्ति करके रं बीज से उत्पन्न अग्नि से उस पाप पुरुष को शिष्य के सूक्ष्म शारीर के साथ जला कर भस्म कर देते हैं।
6-फिर पाप पुरुष की भस्म निकालने के लिए वायु बीज 'यं' की रेचक (सांस बाहर छोड़ना) द्वारा 32 आवृत्ति करते हैं। फिर उस राख को जल बीज वं द्वारा अमृत कणों से आप्लावित करते हैं।फिर पृथ्वी बीज 'लं' से उस आप्लावित भस्म को घनीभूत करते हैं और उसमें आत्मा की स्थापना करके आकाशबीज 'हं' द्वारा सिर से लेकर पैर तक सारे अंगों की रचना करते हैं। फिर प्रकृति से लेकर पंचमहाभूतों तक शिष्य के शुद्ध ,सूक्ष्म शरीर का निर्माण कर उसके हृदय कमल पर ईष्ट देव का आह्वान कर पूजन करते हैं, और कुण्डलिनी को पुनः मूलाधार में
ले जाते हैं। इस प्रकार भूत शुद्धि की क्रिया द्वारा शिष्य परमात्मा की सत्ता, प्रेम, शक्ति, कृपा, सान्निध्य एवं सायुज्य प्राप्त कर परम पवित्र एवं दिव्य हो जाता है एवं ईष्ट की आराधना के योग्य हो जाता है।भूत शुद्धि की क्रिया से साधना के विघ्न नष्ट होते हैं और साधना की गति बढती है।
भूत-शुद्धि...सद्गुरु के अनुसार..
1-जल;-
जल पांच तत्वों में सबसे बड़ा है क्योंकि वह शरीर में 72% है।जल जिस
भी चीज़ के संपर्क में आता है उसके गुणों को अपने भीतर याद रखता है। जल को शुद्ध करने के लिए आप उसमें नीम या तुलसी की कुछ
पत्तियां डाल दें। इससे रासायनिक अशुद्धियां तो नहीं हटेंगी,लेकिन इससे जल बहुत जीवंत और ऊर्जावान हो जाएगा। अगर आप सीधे नल से पानी पीते हैं, तो आप एक खास मात्रा में जहर पी रहे हैं।अगर आप इस जल को तांबे के एक बरतन में दस से बारह घंटे तक रखें, तो उस नुकसान की भरपाई हो सकती है।
2-धरती;-
03 POINTS;-
1-धरती हमारे शरीर में 12% होती है।जिस भोजन को आप खाते हैं, वह जीवन का अंश होता है।भोजन आपके शरीर में किस तरह जाता है, किसके हाथों से आपके पास आता है, आप उसे कैसे खाते हैं, उसके प्रति आपका रवैया कैसा है, ये सब चीजें महत्वपूर्ण हैं।हमारा भरण पोषण करने के लिए जीवन के दूसरे रूप अपने आप को खत्म कर रहे हैं।
2-अगर हम जीवन के उन सभी अंशों के प्रति बहुत आभारी होते हुए भोजन करें, जो हमारे जीवन को बनाए रखने के लिए अपना जीवन त्याग रहे हैं, तो भोजन आपके भीतर बहुत अलग तरीके से काम करेगा।बस नंगे पांव अपने बगीचे में रोजाना एक घंटे तक चलें,जहां कीड़े-मकोड़े और कांटें न हों,एक सप्ताह के भीतर आपका स्वास्थ्य काफी बेहतर हो जाएगा। इसे आजमा कर देखें। इतना ही नहीं,अपने ऊंचे बिस्तर के बदले फर्श पर सो कर देखें,आपको बेहतर स्वास्थ्य का एहसास होगा।
3-वायु;-
03 POINTS;-
1-वायु हमारे शरीर में 6% है। उसमें 1% से भी कम आप अपनी सांस के रूप में लेते हैं। बाकी आपके अंदर बहुत से रूपों में घटित हो रही है। आप जिस हवा में सांस लेते हैं, सिर्फ वही आपको प्रभावित नहीं करती, आप उसे अपने भीतर कैसे रखते हैं, यह भी महत्वपूर्ण है। आपको उस 1% का ध्यान रखना चाहिए। लेकिन अगर आप किसी शहर में रह रहे हैं, तो सांस के रूप में शुद्ध हवा लेना आपके बस में नहीं है।
2-पार्क में या झील किनारे टहलने जाएं। खास तौर पर अगर आपके बच्चे हैं, तो यह बहुत जरूरी है कि आप कम से कम महीने में एक बार उन्हें बाहर घुमाने ले जाएं – सिनेमा या ऐसी किसी जगह नहीं। क्योंकि उस हॉल के बंद दायरे में सीमित वायु उन सभी ध्वनियों और भावनाओं से प्रभावित होती हैं जो परदे के ऊपर या लोगों के दिमागों में उभरते हैं। उन्हें सिनेमा ले जाने की बजाय, नदी के पास ले जाएं, उन्हें तैरना या पहाड़ पर चढ़ना सिखाएं।
3-इसके लिए आपको हिमालय तक जाने की जरूरत नहीं है। छोटा सा टिला भी किसी बच्चे के लिए एक पहाड़ है। यहां तक कि एक चट्टान से भी काम चल सकता है। किसी चट्टान पर चढ़कर बैठें। बच्चों को खूब मजा आएगा और उनका स्वास्थ्य अच्छा होगा। आप भी स्वस्थ हो जाएंगे, आपका
शरीर और मन अलग तरीके से काम करेगा।खुली हवा में खड़े होकर वायु स्नान करें आपकी सेहत भी अच्छी हो जाएगी, साथ ही आपका शरीर और दिमाग अलग तरह से काम करने लगेगा। और सबसे बड़ी बात यह होगी कि इस तरह आप सृष्टि के संपर्क में होंगे, जो सबसे महत्वपूर्ण चीज है।
4-अग्नि;-
अगर आप इस बात का ख्याल रखें कि आपके अंदर किस तरह की आग जलती है- लालच की आग, नफरत की आग, क्रोध की आग, प्रेम की आग या करुणा की आग, तो आपको अपने शारीरिक और मानसिक कल्याण के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है। वह अपने आप हो जाएगा।हर दिन अपने शरीर पर थोड़ी धूप लगने दें, क्योंकि धूप अब भी शुद्ध है;उसे कोई दूषित नहीं कर सकता।
5-आकाश;-
आकाश सृष्टि और सृष्टि के स्रोत के बीच एक मध्य स्थिति है।अगर हम
बाकी चार तत्वों को ठीक ढंग से रखें, तो आकाश खुद अपना ध्यान रख लेगा।अगर आप अपने जीवन में आकाश का सहयोग लेना चाहते है, तो हर रोज आकाश की ओर देखें और शीश नवाएं। आपका जीवन आनंदमय हो जाएगा।
...SHIVOHAM...