आत्म कारक ग्रह और दारा कारक ग्रह...जैमिनी की क्या विधि है?
ज्योतिष में आत्मकारक ग्रह का क्या महत्व है? -(Soul Significator planet in Astrology) ;-
1-आत्मका रक ग्रह जैमिनी ज्योतिष में सबसे अधिक उपयोग किया जाता है| बृहत् पराशर ऋषि ने भी इसके बारे में अपने ग्रन्थ बृहत् पराशर होरा शास्त्र में इसके विषय में लिखा है| ” जन्म पत्रिका में जो भी ग्रह सबसे अधि क डिग्री वाला हो उसे आत्मा कारक ग्रह माना जाता है|” जन्म पत्रि का में कुल नौ ग्रह है उसमे से राहू और केतु के अला वा के जो सात ग्रह है उसमे से जिस भी ग्रह की डिग्री सबसे अधिक होती है वह उस पत्रिका के लिए आत्माकारक ग्रह मा ना जाता है| आत्माकारक = आत्मा + कारका एक ऐसा ग्रह जो जन्म पत्रिका में जातक की आत्मा को दर्शा ता है(Soul Representer) ऐसे ग्रह को आत्माकारक ग्रह कहा जा ता है|जिस भाव मे आत्मकारक है वो कुंडली मे सबसे महत्वपूर्ण है ।राजयोग,ज्ञानयोग,भक्तियोग ,कर्मयोग
सब आत्मकारक से संबंधित होते है ।कारकांश लग्न से पास्ट लाइफ से क्या आया(जन्म लेने के कारण, पिछले जन्म से क्या ज्ञान आया) ये देखने के अलावा इष्ट देवता और धर्मदेवता देखते है।एक सामान्य नियम है कि आत्मकारक ग्रह की दशा अंतर दशा में निश्चित परेशानी होगी ताकि व्यक्ति सांसारिक से आध्यात्मिक पथ पर जा सके।
2-जो ग्रह सूर्य से राहु तक अंश, कला और विकला में सबसे अधिक होता वो आत्मकारक कहलाता उससे कम वाला अमात्यकारक सबसे कम वाला दाराकारक। यहाँ ध्यान देने योग्य बात ये है कि राहु के अंश 30डिग्री से घटा कर फिर उस मॉन को ले कारकत्व निकालते है।आत्मकारक कुंडली मे राजा की भूमिका में होता है। नवांश व अन्य वर्गों में इसकी उपस्थिति जिस भाव मे होती है उसको कारकांश कहते है।ये आत्मकारक दर्शाता है कि आत्मा की गति कहाँ से है और कब हम उस स्तर पर पहुचते है। जब हम अपनी लाइफ का उपयुक्त लक्ष्य हासिल कर सकते है ।क्या गुण हमारी आत्मा दर्शाती है जो हममे होने चाहिए।जैसे सूर्य आत्मकारक होगा तो ईगो से बचना , मंगल हो तो गुस्से से बचना चाहिए।किसी भी योग, सुयोग,दुर्योग से आत्मकारक का सम्बंध उसको निश्चित फलित करेगा।
3-ज्योतिष में सात मुख्य ग्रह में से कोई भी ग्रह आत्माकारक ग्रह बन सकता है| जो कि अपने साथ कुछ पूर्व जन्म के कर्म को साथ लेकर चलता है और इस जन्म में आत्मा को कौन सी इच्छा है... उसे भी यह दर्शा ता है| अलग अलग ग्रह के आत्माकारक ग्रह के बनने पर उसका विवरण अलग होता है| आत्मा कारक ग्रह के माध्यम से हम अपने जीवन का वास्तविक मूल्य क्या है और जीवन का असली ध्येय क्या होना चाहिए ;किस क्षेत्र के साथ हमारे पूर्व जन्म के कर्म जुड़े हुए है.. ये सभी बाते जानी जा सकती है| इसके माध्यम से हम जीवन में मटेरियल और आध्यात्मिक वि षय की क्या भूमिका हैं उसे जान सकते है| आपकी आत्मा किस और जाना चाहती है और आपके जन्म पत्रि का के अन्य ग्रह आपको किस और ले जाना चाहते है उसे आसानी से समझा जा सकता है| ज्योति ष में अलग अलग ग्रह के आत्मा कारक बनने पर विश्लेषण किया जा सकता है |
4-उदाहरण के लिए जब सूर्य जन्म पत्रि का में आत्माकारक ग्रह बनता है तब जातक सफलता , आत्ममहत्व, प्रसिद्धि , शक्ति की चाहना रखता है क्योंकि उसकी आत्मा इस ओर इशारा करती है| अच्छे आध्यात्मिक मार्ग के लिए आपको अहंकार का त्याग करना चाहिए और, विनम्रता , सहनशीलता से व्यवहार करना चाहिए| जब चन्द्र ग्रह आत्मकारक बनता है तब व्यक्ति को भावनाओं, खुशी , प्यार और करुणा सबसे अधिक असर करती है| ऐसे व्यक्ति को अनजान व्यक्ति को अच्छे से समझना चाहिए और किसी पर आसानी से भरोषा नहीं करना चाहिए| सच और गलत भावना के बीच अंतर करना सिखाना होगा|मंगल ग्रह आत्मकारक बनता है तब आक्रामकता , जुनून, विजय, और साहसिक कार्य करने की ओर झुकाव रहता है| स्वभाव हमेशा ही आक्रामक रहता है| इन्हें हार-जीत के चक्रव्यूह से बचाना चाहिए, धैर्य के साथ काम करना चाहिए, हिंसा से भी परहेज करना चाहिए| जब बुध ग्रह आत्मकारक बनता है और शुभ हो तब वह जातक को बौद्धि कता और, श्रेष्ठता प्रदान करता है| इन्हें जीवन में सच्चाई का सामना करना सीखना होगा | गुरु ग्रह आत्मकारक बनता है तब आत्मा का झुकाव बच्चो और आध्यात्मिकता जैसे गुरु सम्बन्धी तत्व की और रह सकता है| शुक्र ग्रह आत्मकारक बनता है तब जातक सेक्स, रिश्ते, विलासिता ,कामुकता की और झुक सकता है| ऐसे जातक को कामुकता को नियंत्रित करना सिखाना होगा | शनि ग्रह आत्मकारक बनता है तब कर्तव्य, लोकतंत्र ,हार्ड वर्क और शूद्र की और जीवन का झुकाव रहता है| ऐसे जातक को दूसरो के दुखो को दूर करने का कार्य करना चाहिए|
जैमिनी ज्योतिष के प्रमुख कारक;-
1-जैमिनी ज्योतिष में कारकों का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान होता है. कारक के द्वार ग्रहों की स्थिति और उनके द्वारा मिलने वाले फलों की पुष्टि भी बहुत अधिक संभव हो पाती है. यहां यह कारक एक दूसरे के साथ मिलकर शुभाशुभ योगों का निर्माण करते हैं. किसी भी जातक की कुण्डली में जब किसी अच्छे शुभ कारक की दशा आती है तो उस स्थिति में जातक को अपने जीवन में सकारात्मक फलों की प्राप्ति भी होती है. वहीं दूसरी ओर जब व्यक्ति के जीवन में किसी अशुभ एवं खराब कारक की दशा का आरंभ होता है तो जीवन में उत्तार-चढा़व अधिक होता है.जैमिनी ज्योतिष में राहु और केतु को कारकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है. जैमिनी ज्योतिष में सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र ओर शनि को कारक की श्रेणी में रखा गया है. यह सभी सात ग्रह कुण्डली में किसी न किसी कारक का प्रतिनिधित्व करते हैं. कारकों का निर्धारण ग्रहों के अंशों के आधार पर ही होता है.कोई भी ग्रह किसी भी भाव का कारक बन सकता है और कारक का स्वरुप एवं उसकी स्थिति ही जातक के जीवन में कई प्रकार के परिवर्तन एवं फलों के देने वाली होती है.
2-सबसे अधिक डिग्री(अंश) वाला ग्रह आत्मकारक बनता है, इसी तरह बाकि दूसरे ग्रह क्रम से अमात्यकारक, भ्रातृकारक, मातृकारक, पुत्रकारक, ज्ञातिकारक और सबसे कम डिग्री(अंश) वाला ग्रह दाराकारक बनता है.अगर इस स्थान पर किसी ग्रह की डिग्री(अंश) समान निकल जाते हैं तो उस स्थिति में मिनिटों के आधार पर हम देखेंगे की किसी पहले रखा जाए और किसे बाद में. इस प्रकार जैमिनी ज्योतिष कारकों का पता लग जाने के बाद फलित किया जाना संभव हो पाता है.जैमिनी ज्योतिष के सिद्धांत कई मायने में पाराशरी ज्योतिष से अलग है .उदाहरण के तौर पर देखें तो जैमिनी ज्योतिष में घर और राशियों का परिणाम एक ही होता है, परन्तु पाराशरी ज्योतिष में घरों और राशियों के परिणाम में विभिन्नताएं पायी जाती हैं.
3-दोनों ही पद्धतियों में कारकों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है लेकिन, जैमिनी ज्योतिष के कारक अस्थिर होते हैं जबकि पाराशरीय ज्योतिष में कारक स्थिर होते हैं. इन दोनों में एक अंतर यह भी है कि जहां पाराशरीय ज्योतिष में ग्रहों के बल को कठिन गणित से ज्ञात किया जाता वहीं जैमिनी के सिद्धांत में ग्रहों के बल को सामान्य नियम से ज्ञात कर लिया जाता है. जैमिनी ज्योतिष कुण्डली का विश्लेषण करने के लिए कारकों को प्रमुखता दी गई है. इसके अनुसार प्रत्येक ग्रह ज़िन्दगी के विभिन्न कार्यक्रमों में से किसी न किसी कार्यक्रम के होने का संकेत देता है. कारकांश ग्रह कुण्डली में जिस भाव में विराजमान होता है उसी के अनुरूप यह परिणाम देता है.जैमिनी सूत्र राशि चक्र को स्थिर (स्थिर) और चर (चल) राशियों में विभाजित करते हैं। स्थिर राशियाँ वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुंभ हैं। दूसरी ओर, चर राशियाँ मेष, कर्क, तुला और मकर हैं। इसलिए, स्थिर और चर राशियों में ग्रहों की स्थिति का व्यक्ति के जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
1-आत्मकारक ग्रह;- सभी ग्रहों में आत्मकारक सबसे प्रमुख होता है. यह ग्रह समस्त ग्रहों में सबसे अधिक डिग्री पर होता है. आत्मकारक ग्रह को विशेषतौर पर अच्छा होना चाहिए क्योंकि, कुण्डली में इसकी स्थिति काफी मायने रखती है. इसका कमज़ोर अथवा बल होना व्यक्ति विशेष के जीवन के विषय में काफी कुछ बयान करता है. सूर्य को इसका प्राकृतिक ग्रह माना गया है. 2-अमात्यकारक ग्रह;- सभी ग्रहों में आत्मकारक ग्रह के बाद जो सबसे अधिक डिग्री घेरता है वह अमात्यकारक ग्रह माना जाता है. यूं तो अमात्यकारक का कोई प्राकृतिक ग्रह नहीं माना जाता है फिर भी वैधानिक तौर पर बुध को प्राकृतिक अमात्यकारक ग्रह का दर्जा प्राप्त है. अमात्यकारक ग्रह का संबंध व्यवसाय के रुप में देखा जाता है, इसके साथ ही इससे आर्थिक स्थिति, धार्मिक स्थिति, कार्य क्षेत्र की स्थिति को समझने में मदद मिलती है. आत्मकारक के पाप प्रभाव में होने पर जातक को जीवन में अमात्यकारक के शुभ फल मिलने में कमी आती है. दूसरी ओर अगर आत्मकारक बली ओर शुभ है तो व्यक्ति को जीवन में धन, मान सम्मान अच्छी नौकरी इत्यादि की प्राप्ति होती है. 3-भ्रातृ कारक ग्रह; जैमिनी ज्योतिष कुण्डली में आमात्यकारक ग्रह के बाद जिस ग्रह की डिग्री अधिक होती है उसे भ्रातृ कारक ग्रह माना जाता है. इसे व्यक्ति के भाई बहनों के कारक ग्रह के रूप में देखा जाता है. सभी ग्रहों में मंगल को भाई-बहनों का स्वामी ग्रह माना जाता है यही कारण है कि प्राकृतिक भ्रातृ कारक ग्रह के रूप में मंगल को स्वीकार किया जाता है. 4-मातृ कारक ग्रह;- भ्रातृ कारक से कम डिग्री वाले ग्रह को मातृ कारक ग्रह के रूप में मान्यता प्राप्त है. यह माता का स्वामी ग्रह माना जाता है. इसका प्राकृतिक ग्रह चन्द्रमा है. इस कारक के द्वारा जातक की माता के विषय में समझा जा सकता है. माता का सुख और माता की स्थिति के विषय में जाना जा सकता है. जन्म कुण्डली में मातृकारक ग्रह को चौथे भाव का स्थान प्राप्त है. इस भाव से जातक का आत्मिक सुख उसकी अपनी फैमली में स्थिति, शुरुआती शिक्षा जैसी चीजों का भी पता लगाया जा सकता है. यह भाव जातक के घर, वाहन, वस्त्र जैसी चीजों के सुख के बारे में भी बतात है. यह आपके भौतिक सुखों को दर्शाने वाला होता है और आप किस प्रकार स्वयं इसका कितना लाभ उठा पाते हैं इसकी जानकारी हमे मातृकारक से होती है. 5-पुत्र कारक ग्रह;- मातृ कारक से कम डिग्री वाले ग्रह को पुत्रकारक ग्रह कहा जाता है. इसे संतान का स्वामी ग्रह माना जाता है. इसका प्राकृतिक ग्रह गुरू है. यह पाँचवें स्थान पर आता है. यह जन्म कुण्डली में पाँचवें भाव का प्रतिनिधित्व करता है. कुण्डली का पांचवां भाव हमारी शिक्षा, संतान प्रेम संबंधों इत्यादि को भी दर्शाती है. अत: ऎसे में पुत्रकारक ग्रह की शुभता होने पर हमे इसके शुभ परिणाम मिल पाते हैं वहीं अगर यह अशुभ प्रभाव में होगा तो इस से संबंधित परेशानियां हमें झेलनी होंगी. 6-ज्ञातिकारक ग्रह;- पुत्र कारक ग्रह के पश्चात जिस ग्रह की डिग्री कम होती है उसे ज्ञातिकारकके नाम से जाना जाता है. इसे सम्बन्धों के स्वामी के रूप में स्थान प्राप्त है. भ्रातृकारक की तरह इसका भी प्राकृतिक ग्रह मंगल है. जन्म कुण्डली का छठा भाव ज्ञातिकारक ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है. यह जीवन में आने वाले कष्ट, बीमारियों, लड़ाई झगड़ों, कानूनी कार्यवाही इत्यादि को बताता है. ज्ञातिकारक की दशा आने पर व्यक्ति के जीवन में अचानक से होने वाले घटना क्रम अधिक हो जाते हैं. इस दशा में व्यक्ति को मानसिक, आर्थिक व शारीरिक रुप से कष्ट इत्यादि झेलने पड़ जाते हैं. 7-दारा कारक ग्रह;- जिस ग्रह की डिग्री सबसे कम होती है उसे दारा कारक कहते हैं. इसे जीवनसाथी का स्वामी ग्रह कहा जाता है. इसका प्राकृतिक ग्रह शुक्र है. यह सातवें भाव के कारकत्वों को दर्शाता है. जन्म कुण्डली का सातवां भाव विवाह एवं संबंधों, सहभागिता में किए जाने वाले काम, विदेश यात्रा, व्यक्ति की लोगों के मध्य स्थिति इत्यादि को समझने में इस भाव का महत्वपूर्ण योगदान होता है. साथ ही जिस ग्रह को इस भाव का प्रतिनिधित्व मिलता है वह भी इस भाव से मिलने वाले फलों पर अपना प्रभाव भी डालता है. कारकों का शुभ और अशुभ फल इन सभी सातों कारकों का जातक के जीवन में किसी न किसी रुप में प्रभाव बना ही रहता है. अगर ये कारक शुभ हों शुभ प्रभाव में हों तो व्यक्ति को सफलता दिलाने वाले होते हैं. लेकिन अगर ये कारक अशुभ प्रभाव में हों राहु/केतु से प्रभावित हों तो ऎसी स्थिति में जातक को जीवन में शुभ फलों की प्राप्ति के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है. कारकों की शुभाशुभ स्थिति को समझने के लिए कुण्डली और कारकों का बारीकी से अध्ययन करना अत्यंत आवश्यक होता है.
आत्मा कारक ग्रह को श्रेष्ठता प्रदान करने/एक्टिवेट करने के लिए ;-
1-सूर्य के लिए;-
सूर्य के लिए राम जी की पूजा करनी चाहिए।
मंत्र;- श्री राम श्री राम कृष्ण राम।
कोई एक मंदिर जाए..
कोणार्क टेंपल इन उड़ीसा;मार्तंड टेंपल इन जम्मू एंड कश्मीर; मोधेरा सन टेंपल इन गुजरात।
2-चंद्रमा के लिए;-
चंद्रमा के लिए शिव जी की पूजा करनी चाहिए।
मंत्र;-ओम नमः शिवाय ।
कोई एक मंदिर जाए..
सोमनाथ टेंपल इन गुजरात चंद्रमौलेश्वर टेंपल कर्नाटक चंद्रभागा टेंपल इन उड़ीसा।
3-मंगल के लिए ;-
मंगल के लिए हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए।
मंत्र;- ओम श्री हनुमते नमः।
कोई एक मंदिर जाए..
कोई एक ज्योतिर्लिंग मंदिर तथा नागेश्वर ज्योतिर्लिंग।
4-बुध के लिए ;-
बुध के लिए लॉर्ड विष्णु की साधना करनी चाहिए।लॉर्ड बुद्धा की प्रेयर भी करनी चाहिए।उनकी सैक्रेड साइट्स में जाएं।
मंत्र;-ओम नमो भगवते वासुदेवाय।
तिरुवन बुधन टेंपल इन तमिलनाडु ,मुथू स्वामी देवालय कर्नाटक , बुद्धेश्वर टेंपल इन उड़ीसा।
5-बृहस्पति के लिए ;-
बृहस्पति के लिए जी वामन जी की पूजा करनी चाहिए। बृहस्पति श्री वामन के साथ जुड़े हुए हैं।इस रूप में उन्हें श्री त्रिविक्रम के नाम से जाना जाता है:
मंत्र;- ॐ नमो भगवते दधिवामनाय।
कोई एक मंदिर जाए..
बैजनाथ धाम इन झारखंड,गुरुवयूर टेंपल इन केरला, बृहदीश्वर टेंपल इन तमिलनाडु।
6-शुक्र के लिए;-
शुक्र के लिए लक्ष्मी जी की पूजा करनी चाहिए।
मंत्र;- ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्ॐ ।
कोई एक मंदिर जाए..
माता कामाख्या टेंपल,मीनाक्षी देवी टेंपल, बांके बिहारी टेंपल !
7-शनि के लिए;-
शनि के लिए ब्रह्मा जी की पूजा करनी चाहिए।
मंत्र;- ॥ ॐ ब्रह्मणे नम:॥
कोई एक मंदिर जाए..
शिंगणापुर मंदिर, तिरुनल्लर शनि टेंपल इन तमिलनाडु, शनि धाम टेंपल इन दिल्ली।
...SHIVOHAM....
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