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DHYAN SET 02... ध्यान के ध्यान चरण


ध्यान का पहला चरण ...सुरक्षा कवच धारण विधि;-

1- किसी भी देव मंत्र को सिद्ध करते समय जब मंत्र सिद्ध होने लगते है तो प्रारम्भ में अधिकतर साधक अपने आस -पास उस दैवीय शक्ति को डर या भय के रूप में देखने लगते है | किन्तु वास्तव में ये शक्तियां साधक को किसी प्रकार का अहित पहुचाने नहीं बल्कि यह अहसास कराना चाहती है कि साधक अपनी साधना में सफलता की ओर बढ़

रहा है |कुछ मंत्र साधनाएँ (सिद्धियाँ ) ऐसी भी होती है तो जो पूर्ण रूप से साधक को साधना करने से रोकती है | ये नकारात्मक प्रकति की हो सकती है | इस प्रकार की साधना में प्रथम दिन से ही भय की अनुभूति होने लगती है | ऐसे में साधक का बिना किसी सुरक्षा चक्र के साधना करना उसके लिए अहितकर हो सकता है |

2-पहले चरण से आपके शरीर की पूरी Electric/Energy विकसित होकर आपके शरीर के चारों तरफ वर्तुल/Energy Circle बना लेती है। अगर यह वर्तुल न बने, तो आप बीमारियों के लिए नॉन-रेसिस्टेंस की हालत में हो जाते हैं।

वास्तव में, ध्यान में एक तरह की वल्नरेबल ओपनिंग, एक तरह का द्वार खुलता है, उसमें से कुछ भी प्रवेश हो सकता है। ध्यान की हालत में आपके हृदय का द्वार खुला हो जाता है। उस वक्त कोई भी प्रवेश कर सकता है और हमारे चारों तरफ बहुत तरह की आत्माएं निरंतर उपस्थित हैं।

3- इसलिए पहले चरण को हर हालत में पूरा करना जरूरी है।अगर पहला चरण पूरा है तो आपका शरीर एक तरह का रेसिस्टेंस /प्रतिरोध की दीवाल खड़ी कर लेता है, उसमें से कोई भी Energy आपके भीतर प्रवेश नहीं पा सकती और आपके भीतर से कोई भी Energy बाहर नहीं जा सकती, वह दीवाल का काम करने लगती है। न तो भीतर से बाहर कुछ जा सके और न बाहर से भीतर कुछ आ सके।

STEPS;-

1-पद्मासन /या सिद्धासन में बैठे।आंखें अधखुली, यानि आधी खुली आधी बंद।

2-ॐ/इष्टमंत्र/ गुरुमंत्र ..का जप करते हुए आप इस सुरक्षा कवच को निर्मित कर सकते है ताकि बह्म प्रभावों से ‘’स्‍वयं को बचा सकें।भाव कीजिए कि आपके शरीर के चारों और केवल छह इंच की दूरी पर आपके शरीर के आकार का एक प्रभा मंडल है। यह भावना करे की मेरे इष्ट की कृपा का शक्तिशाली प्रवाह मेरे अंदर प्रवेश कर रहा है और मेरे चारो ओर सुदर्शन चक्र जैसा एक इन्द्रधनुषी घेरा बनाकर घूम रहा है।

3-अब इन्द्रधनुषी प्रकाश घना होता जा रहा है।वह अपने दिव्य तेज़ से मेरी रक्षा कर रहा है।दुर्भावनारूपी अंधकार विलीन हो गया है और सात्विक प्रकाश ही प्रकाश छाया है। सूक्ष्म आसुरी शक्तियों से मेरी रक्षा करने के लिए वह चक्र सक्रिय है और मै पूर्णतः निश्चित हूँ ,आश्वस्त हूँ।'' जितनी देर श्वास भीतर रोक सके.. उक्त भावना को दोहराये और मानसिक चित्र बना ले...

4- आकाश के अंदर पृथ्वी है।पृथ्वी के अंदर अनेक देश, अनेक समुद्र, अनेक लोग है।उनमे से एक आपका शरीर आसन पर बैठा हुआ है।आप एक शरीर नहीं हो बल्कि अनेक शरीर ,देश,सागर ,पृथ्वी ,सूर्य ,चंद्र , ग्रह एवं पूरे ब्रह्मांड के दृष्टा हो,साक्षी हो।

5- अब धीरे -धीरे ॐ का दीर्घ उच्चारण करते हुए श्वास बाहर निकाले।मन ही मन भावना करे कि मेरे सारे दोष विकार बाहर निकल गए है।मन, बुद्धि शुद्ध हो गया है।

ध्यान का दूसरा चरण ;-

क्या हैं ध्यान का दूसरा चरण ?-

04 FACTS;-

1- जब भी आपको शक्ति की जरूरत पड़ती है, आपकी श्वास की चोट से ही शक्ति सदा जगाई जाती है। आपने कभी खयाल न किया होगा, अगर आपको एक बड़ा पत्थर उठाना हो, तो अचानक आप गहरी श्वास लेकर भीतर रोक लेते हैं और फिर पत्थर को उठाते हैं। गहरी श्वास के बिना उसी पत्थर को आप अगर साधारण श्वास लेते रहें तो न उठा सकेंगे।

2-जिन लोगों ने पिरामिड के पत्थर चढ़ाए, आज वैज्ञानिक बहुत परेशान हैं कि उस वक्त क्रेन नहीं थी, इतने बड़े पत्थर पिरामिड पर चढ़ाए कैसे गए हैं? तो उनको चमत्कार मालूम पड़ता है, दुनिया के मिरेकल्स में एक मालूम पड़ता है कि इतने-इतने बड़े पत्थर, इनको सौ-सौ आदमी मिल कर भी नहीं चढ़ा सकते! ये चढ़ाए कैसे गए हैं?उन्हें पता नहीं है,

कि जिस इजिप्त में पिरामिड बने, उस इजिप्त को एक साइंस का पता था, जो धीरे-धीरे भूल गई। और वह थी--श्वास की चोट से भीतर सोई हुई शक्ति को उठा लेने का रहस्य।

3-हमारे भीतर जो भी शक्ति पड़ी है उसे चोट देकर जगाना है। तो दस मिनट का जो दूसरा ध्यान का चरण है , उसमें इतने जोर से श्वास लेनी है कि भीतर कोई गुंजाइश ही न रह जाए कि हम इससे ज्यादा भी ले सकते थे। श्वास की पूरी ताकत लगा देनी है। और जब आप श्वास की पूरी ताकत लगाएंगे, तो शरीर Vbrate लगेगा। जितने जोर से चोट पड़ेगी, उतना ही शरीर डोलेगा।उसको रोकना नहीं है।न हीं सख्त होकर खड़े हो जाना है।

4-दस मिनट में पूरी की पूरी हमारे फेफड़े में जितनी भी वायु है उस सबको रूपांतरित कर लेना है, बदल देना है।हमारे फेफड़े

में कोई छह हजार छिद्र हैं।जिसमें मुश्किल से डेढ़ या दो हजार तक हमारी श्वास पहुंचती है, बाकी चार हजार सदा ही बंद पड़े रह जाते हैं, उनमें कार्बन डाय-आक्साइड ही इकट्ठी होती रहती है। पूरे के पूरे फेफड़े के सारे छिद्रों में नई आक्सीजन, नई प्राणवायु पहुंचा देनी है। जैसे ही प्राणवायु की मात्रा भीतर बढ़ती है; वैसे ही शरीर की Electric Energy जगनी शुरू हो जाती

है। आप अनुभव करेंगे कि शरीर इलेक्ट्रिफाइड हो गया, उसमें Current दौड़ने लगेगा। अगर यह दूसरा चरण पूरा नहीं किया गया, तो तीसरे चरण में प्रवेश नहीं हो सकेगा। ऐसे ही जैसे कोई पहली सीढ़ी पर न चढ़ा हो तो दूसरी सीढ़ी पर न जा सके। पहली सीढ़ी पर पैर रखना जरूरी है, तभी दूसरी सीढ़ी पर चढ़ा जा सकता है।

NOTE;-

1-दूसरे चरण के संबंध में यह समझ लेनी जरूरी है कि जब आपकी शक्ति भीतर चोट खाकर जगेगी, तो आपको बहुत तरह के अनुभव शरीर में होने शुरू हो जाएंगे।उदाहरण के लिए, शरीर में अलग-अलग लोगों को अलग-अलग तरह के अनुभव होंगे। किसी को लगेगा शरीर बहुत बड़ा हो गया, किसी को लगेगा शरीर पत्थर की तरह भारी हो गया, किसी को लगेगा शरीर बहुत छोटा हो गया,और सबको घबड़ाहट होगी कि आंख खोल कर देखने का मन होगा कि मामला क्या है, मैं कहीं खो तो नहीं गया! लेकिन आंख खोल कर देखना नहीं है।

2-आप अपनी जगह हैं, कहीं कुछ खो नहीं गया है।ये सारी प्रतीतियां उस शरीर में नई शक्ति के जगने से होनी शुरू हो जाएंगी। किसी के शरीर में सांप-बिच्छू रेंगते हुए मालूम पड़ने लगेंगे। किसी को चींटियां चलती मालूम पड़ने लगेंगी। किसी के भीतर विद्युत की धारा बहती मालूम पड़ने लगेगी। किसी को लगेगा कि कोई चीज झरने की तरह ऊपर से नीचे गिर रही है। किसी को मालूम पड़ेगा नीचे से ऊपर की तरफ कोई चीज चढ़ रही है। इस तरह के बहुत तरह के अनुभव शरीर में होने शुरू हो जाएंगे।इसके साथ ही शरीर कुछ हरकतें, कुछ मूवमेंट करना चाहेगा, उनको रोकना नहीं है।

3- इस दस मिनट का सबसे बड़ा उपयोग है कि शरीर का रेचन / Catharsis हो जाए।दस मिनट में जब शरीर पूरी तरह चार्ज्ड, शक्ति से भर जाता है, तो दूसरे चरण में जो शक्ति आपके भीतर जगेगी तो उसको सहयोग करना है। साधारणतः

जिंदगी में हम सब रोके रहते हैं। लेकिन जो शक्ति जग गई है ;अगर आपने उसे रोका तो उस शक्ति की शरीर में ग्रंथियां और गांठें बन जाएंगी। रोकने के नुकसान हैं, सहयोग देने के अभूतपूर्व फायदे हैं। अगर आपने पूरा सहयोग दे दिया तो आपके शरीर की न मालूम कितनी बीमारियां अचानक विलीन हो सकती हैं। अचानक आप पा सकते हैं कि मन हलका हो गया और दुख, उदासी, पीड़ा, वैमनस्य, ईष्या आदि बह गए ।आपका शरीर ही नहीं,आपके मन की भी कैथार्सिस हो जाती है, रेचन हो जाता है।ध्यान की बड़ी ऊंचाइयां हैं, गहराइयां हैं, उनमें जाने के लिए सब बोझ छोड़ जाना जरूरी है। शरीर और मन की सब

रुग्णता/ Sicknessहटाकर और वेटलेस ही होकर हम ध्यान में प्रवेश कर सकते हैं।

..SHIVOHAM...


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