DHYAN SET-18-''ओम मणि पद्मे हुम्'' का क्या अर्थ है?
- Chida nanda
- Sep 16, 2021
- 7 min read
Updated: Sep 28, 2021
'ओम मणि पद्मे हुम्' का क्या अर्थ है?
11 FACTS;- 1-ॐ मणिपद्मे हुम् तिब्बती बौद्ध धर्म का मूल मंत्र है।यह प्रायः पत्थरों पर लिखा जाता है या फिर कागज पर लिख कर पूजाचक्र में लगा दिया जाता है। मान्यता है कि इस पहिये को जितनी बार घुमाया जायेगा यह उतनी बार मंत्र बोलने के बराबर फल देगा। ओम दिव्य ध्वनि है । मणि का अर्थ गहना( माणिक या रौशनी -चमक) है।मणि नीला मोती या चेतना का 'बीज' है।पद्मे का अर्थ कमल का फूल है जो सिर के शीर्ष पर स्थित सहस्रार चक्र/ स्वर्ण कमल दर्शाता है । यह चेतना का सबसे उच्चतम निवास है।और हुम् का अर्थ है कि चेतना के स्तर तक दिव्य ध्वनि है। ओम मणि पद्मे हुम परम अनुभव की सुंदरतम अभिव्यक्तियों में से एक है। इसका अर्थ हैः मौन का नाद, कमल में मणि।
2-मौन का भी अपना नाद है, अपना संगीत है; यद्यपि बाहरी कान इसे सुन नहीं सकते। वैसे ही जैसे बाहरी आंखें इसे देख नहीं सकतीं।हमें छह बाह्य ज्ञानेंद्रियां हैं। अतीत में मनुष्य जानता था कि उसे मात्र पांच बाह्य ज्ञानेंद्रियां हैं। छठी नई खोज है। यह तुम्हारे कान के भीतर है; इसीलिए लोग इसे पहचानने में चूक गए। यह संतुलन की ज्ञानेंद्रिय है। तुम जब उनींदे होते हो, या जब तुम किसी शराबी को चलते हुए देखते हो तो यह संतुलन की ही इंद्रिय है जो प्रभावित हुई होती है।जैसे बाह्य की अनुभूति के लिए ये छह ज्ञानेंद्रियां हैं, ठीक वैसे ही आंतरिक को देखने के लिए, सुनने के लिए, स्पर्श करने के लिए और उसके परम संतुलन तथा सौंदर्यानुभूति के लिए भी छह आंतरिक ज्ञानेंद्रियां हैं। वह बाहरी आंखों के लिए अदृश्य है, किंतु आंतरिक आंखों के लिए नहीं। उसे तुम बाहरी ज्ञानेंद्रियों से स्पर्श नहीं कर सकते, परंतु भीतरी ज्ञानेंद्रियां उसमें पूरी तरह डूबी हुई हैं।
3-ओम वह नाद है जब उसके सिवा सब कुछ तुम्हारी चेतना से खो जाता है- कोई विचार नहीं, कोई स्वप्न नहीं, कोई प्रक्षेपण नहीं, कोई अपेक्षाएं नहीं, यहां तक कि कोई एक तरंग भी नहीं, तुम्हारी चेतना की झील बिल्कुल दर्पण की भांति हो गई है, उस विरल क्षण में तुम मौन का नाद सुनते हो। यह सर्वाधिक मूल्यवान अनुभूति है, क्योंकि यह न केवल आंतरिक संगीत की द्योतक है, इसकी भी द्योतक है कि भीतर का जगत समस्वरता, आल्हाद और परमानंद से परिपूर्ण है। यह सब कुछ ओम के संगीत में शामिल है।तुम्हें उसे कोई नाम नहीं देना है वर्ना तुम असली बात से चूक जाओगे। तुम्हें उसे सुनना होगा ,पूरी तरह शांत होना पड़ेगा, और अचानक यह तुम्हें चारों ओर से घेर लेगा ....नृत्य के रूप में। जिस क्षण तुम इसे सुनने में समर्थ हो जाओगे, उसी क्षण अस्तित्त्व के रहस्य में प्रवेश कर जाओगे। तुम इतने सूक्ष्म बन चुके होओगे कि अब पात्र हो कि सारे रहस्य तुम पर खोल दिए जाएं। जब तक तुम तैयार न हो जाओ, अस्तित्त्व प्रतीक्षा करता है।
4-भारत के सभी धर्म इस बात पर सहमत हैं कि मौन की अंतिम उच्चतम दशा में जो नाद सुनाई पड़ता है वह ओम के ही समान है।भारत की किसी भाषा में ओम को वर्णमाला में नहीं लिखा जाता है, क्योंकि यह भाषा का अंग नहीं है। यह एक प्रतीक के रूप में लिखा जाता है। इसलिए जो प्रतीक संस्कृत में प्रयोग किया जाता है, वही पालि में और तिब्बती में- सब जगह एक ही प्रतीक हैं ।क्योंकि सभी कालों के सभी रहस्यदर्शी एक ही अनुभव पर पहुंचे हैं कि यह लौकिक जगत का हिस्सा नहीं है; इसलिए इसका अपना ही प्रतीक होना चाहिए, जो भाषा के पार का हो।सभी संगीत- खासकर शास्त्रीय संगीत- मौन के नाद को पकड़ने का प्रयास करते रहे हैं, ताकि वे लोग भी कुछ वैसा ही अनुभव कर सकें जिन्होंने अपनी अंतरात्मा में प्रवेश किया है। किंतु वह संगीत वैसा नहीं होता। यह बहुत दूर की प्रतिध्वनि है। यहां तक कि महान संगीतज्ञों को भी ध्वनि का उपयोग करना पड़ता है। लेकिन वह उसे कितने ही सुंदर ढंग से क्यों न व्यवस्थित करे, वह संगीत पूर्णतः मौन नहीं हो सकता। संगीतज्ञ ध्वनियों के बीच मौन का अंतराल पैदा करता है, उसका सारा खेल ध्वनि और मौन का है। जो नहीं समझते हैं, वे ध्वनि को सुनते हैं। जो समझते हैं, वे मौन को सुनते हैं अथार्त दो ध्वनियों के बीच के अंतराल को सुनते हैं।
5-वास्तविक संगीत इन अंतरालों में है। इसे संगीतज्ञ पैदा नहीं करते। संगीतज्ञ तो ध्वनियां पैदा करता है, अंतरालों को छोड़ता जाता है, ताकि तुम उसका कुछ अनुभव कर सको जो रहस्य दर्शियों को उनके अंतःलोक में घटित होता है।ओम सत्य के खोजियों की सबसे बड़ी उपलब्धि है। ऐसी अनेक घटनाएं हैं जो पूरी तरह अविश्वसनीय हैं, किंतु वे ऐतिहासिक हैं।एक तिब्बती रहस्यदर्शी-मारपा- की मृत्यु के समय उसके निकटतम शिष्य उसके चारों ओर बैठे हुए थे... क्योंकि एक रहस्यदर्शी की मृत्यु उतनी ही महत्त्वपूर्ण होती है जितना उसका जीवन, या शायद कुछ अधिक ही। यदि तुम किसी रहस्यदर्शी की मृत्यु के समय उसके निकट हो सको तो उस समय तुम बहुत कुछ अनुभव कर सकते हो; क्योंकि उसकी संपूर्ण चेतना शरीर का त्याग कर रही है और यदि तुम सावधान और जागरूक हो तो तुम एक नई सुगंध का अनुभव कर सकते हो, एक नया प्रकाश देख सकते हो, एक नया संगीत सुन सकते हो।
6-जब मारपा की मृत्यु हुई , वह एक मंदिर में रहता था। और अचानक शिष्य आश्चर्यचकित हो गए, वे अपने चारों ओर देखने लगे कि ओम का यह नाद कहां से आ रहा है। अंततः उन्होंने पाया कि यह नाद कहीं दूसरी जगह से नहीं बल्कि मारपा की देह से आ रहा है। उन लोगों ने अपने कान उसके हाथों से, पैरों से लगाकर सुना, वे भरोसा न कर सके- उसके संपूर्ण शरीर के भीतर कुछ तरंगायित था जो ओम का नाद पैदा कर रहा था। संबोधि के बाद मारपा जीवन भर इस नाद को सुनता रहा था। इस नाद को निरंतर भीतर सुनते रहने के कारण यह उसके भौतिक शरीर की कोशिकाओं तक में प्रवेश कर गया था। उसके शरीर का रेशा-रेशा एक विशिष्ट समस्वरता सीख गया था।लेकिन ऐसा दूसरे रहस्यदर्शियों द्वारा भी अनुभव किया गया है। खासकर मृत्यु के क्षण में, जब सब कुछ अपने चरम बिंदु पर होता है, अंतर उस नाद की तरंगों को विकर्ण करने लगता है।
7-लेकिन मनुष्य इतना अंधा और इतना अविवेकी है कि यह जानकर कि रहस्यदर्शी अपने भीतर मौन के संगीत को अनुभव करते हैं और वे इसे ओम कहते हैं, लोग ओम को मंत्र की तरह जपने लगे; यह सोच कर कि ओम के जाप से वे भी उसे सुनने में सक्षम हो जाएंगे।इसको जपने से उस नाद को तुम कभी नहीं सुन सकोगे। जप करते समय तुम्हारा मन ही काम कर रहा है।
लेकिन सदियों से लोग ओम का जाप सिखा रहे हैं। वह एक मिथ्यानुभव पैदा करता है। और तुम मिथ्या में खो जा सकते हो और असली को कभी अनुभव नहीं कर पाते।तुम्हे इसे जपना नहीं हैं ;केवल शांत हो जाओ और इसे सुनो। जैसे तुम्हारा मन शांत और स्थिर होता है, अचानक तुम पाओगे कि एक फुसफुसाहट की तरह तुम्हारी अंतरात्मा में ओम उठ रहा है। जब यह स्वयं से पैदा होता है तो इसका गुणधर्म बिल्कुल अलग होता है। यह तुम्हें रूपांतरित कर देता है।आधुनिक भौतिक विज्ञान कहता है कि संसार में सब कुछ विद्युत-ऊर्जा से बना है; और ध्वनि भी अन्य कुछ नहीं, विद्युत-तरंगें हैं।
8-रहस्यदर्शी ठीक इसके विपरीत कहते हैं लेकिन उनमें कोई विरोध नहीं हैं।रहस्यदर्शियों के अनुसार यह संपूर्ण अस्तित्त्व ध्वनिरहित ध्वनि- ओम- से बना है। यह विद्युत और अग्नि भी अन्य कुछ नहीं, ध्वनि का ही सघन रूप हैं।
भारत में यह बात ज्ञात थी। ऐसे संगीतज्ञ हुए हैं जो अपने संगीत से दीपक को जला सकते थे। जैसे ही संगीत बुझे हुए दीपक के संपर्क में आता है, एकाएक लौ जल उठती है। अतीत में यह एक परीक्षण था कि कोई संगीतज्ञ जब तक अपने संगीत से प्रकाश, अग्नि, लौ नहीं उत्पन्न कर देता, वह अपरिपक्व समझा जाता था ..सिद्ध आचार्य नहीं समझा जाता था।भौतिकशास्त्र और रहस्यदर्शी की व्याख्याएं परस्पर विरोधी दिखाई पड़ती हैं, किंतु गहरे में संभवतः कोई स्रोत है जो विरोधाभासों और प्रतिरोधों को समाप्त कर सकता है। संभवतः ये मात्र भिन्न ढंग से व्याख्या करने का मामला है, क्योंकि रहस्यदर्शी भीतर से देख रहा है और भौतिकशास्त्री बाहर को।
9-भौतिकशास्त्री जिसे विद्युत की तरह महसूस करता है, रहस्यदर्शी उसे संपूर्ण अस्तित्त्व के संगीत की तरह अनुभव करता है। वे दोनों भिन्न-भिन्न भाषाओं में कह रहे हैं।रहस्यदर्शी उसे अपने केंद्र पर अनुभव कर रहा है। उसका अनुभव वस्तुओं पर किए गए प्रयोग का नहीं है। उसकी अनुभूति अपनी चेतना पर किए गए प्रयोग की है और चेतना अस्तित्त्व का नवनीत है।
इस मंत्र में अनेक रहस्य छिपे हुए हैं। प्रथम शब्दहीन शब्द ओम है और अंतिम है हुम्। पहला शब्द प्रतीक है और अंतिम शब्द बीज।अल्लाह परमात्मा के लिए मुसलमानों का नाम है।परन्तु सूफी लोग अल्लाह के पूरे नाम का उपयोग नहीं करते। वे अल्लाहू का उपयोग करते हैं और धीरे-धीरे वे अल्लाहू को भी हू-हू में बदल देते हैं। उन लोगों ने पाया है कि हू की ध्वनि नाभि के ठीक नीचे जीवनस्रोत पर सीधे चोट करती है। क्योंकि तुम अपने जीवन से, अपनी मां से नाभि द्वारा ही जुड़े थे। नाभि के ठीक नीचे तुम्हारा अपना जीवनस्रोत है।कभी प्रयोग करो- जब तुम हू कहते हो तो नाभि के नीचे चोट पड़ती है।यह एक सूफी खोज है, लेकिन इसका प्रयोग तिब्बती ढंग से भी किया जा सकता है।
10-हू कुछ कठोर मालूम पड़ता है , परन्तु हुम थोड़ा अधिक कोमल लगता है। किंतु कोमल से तुम्हारी ऊर्जाओं को जगाने में अधिक समय लेगा। तिब्बत की विशिष्ट जलवायु में संभवतः कोमलतर ही उपयुक्त था। जीवनस्रोत पर चोट करने के लिए उन्हें अधिक चोट की जरूरत नहीं थी। किंतु अरब के तपते रेगिस्तान में सूफी रहस्यदर्शियों ने हू का प्रयोग करना शुरू किया।
हमारे सामने दोनों विकल्प है ...हुम को चुनों या हू को।तिब्बत के ठंडे ऊंचे प्रदेश के जहां सब कुछ भिन्न होता है ..हुम उनके लिए बिल्कुल ठीक है।हुम तुम्हारे भीतर ओम पैदा करने के लिए आघात है। यदि तुम जीवन के बीज पर चोट करते हो तो यह मिट्टी में खोने लगता है, हरी पत्तियां, अंकुर निकलने लगते हैं।ओम और हुम्- इन दोनों के बीच में मणि पद्मे है।
11- भारत में कमल का फूल सबसे सुंदर और सबसे बड़ा फूल है। और अगर तुम कमल के फूल पर प्रातःकालीन सूरज की धूप में मणि रख दो, तो तुम एक अपरिसीम सुंदर अनुभव के समक्ष हो... कमल पुष्प में मणि ।इस परम अनुभव के बारे में कुछ भी कहना बहुत कठिन है, लेकिन तिब्बती रहस्यदर्शियों ने सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया है। लेकिन कमल पर मणि सर्वाधिक उत्कृष्ट अभिव्यक्ति लगती है- क्योंकि यह महानतम और सर्वाधिक सुंदर अनुभूति है और उन्होंने सामान्य जगत की दो सुंदरतम वस्तुओं- कमल और मणि- को चुना है। यह उस सौंदर्य की मात्र अभिव्यक्ति है जिसे तुम अपने भीतर देखते हो।वास्तव में,
इस 'ओम मणि पद्मे हुम' मंत्र में एक पूरा दर्शन समाया हुआ है। अंतिम शब्द हुम से आरंभ करो और प्रथम शब्द स्वतः उध्रूत होगा। और जब तुम्हारा आंतरिक अस्तित्त्व मौन के नाद से भर जाएगा तब तुम प्रातःकालीन सूर्य के प्रकाश में कमल पर मणि के सुंदर अनुभव को भी देखोगे। प्रकाशित मणि और कमल.. जो इतना कोमल है कि किसी दूसरे फूल से इसकी तुलना नहीं हो सकती।
...SHIVOHAM...

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