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PREFACE -शिवसूत्र

  • Writer: Chida nanda
    Chida nanda
  • Jan 2, 2022
  • 3 min read

1-शिवसूत्र उन 77 सूत्रों के समूह को कहते हैं जो काश्मीरी शैव दर्शन के आधार हैं। इनके रचयिता आचार्य वसुगुप्त माने जाते हैं।लगभग 250 वर्ष पूर्व, वासुगुप्त नामक कश्मीरी ब्राह्मण को स्वप्न में स्वयं भगवान शिवशंकर द्वारा पर्वत की गुफा में विशाल चट्टान को खोजने का निर्देश मिला।भगवान श्रीकंठ ने वसुगुप्त को स्वप्न में आदेश दिया कि महादेवगिरि के एक शिलाखंड पर शिवसूत्र अंकित हैं, प्रचार करो। जिस शिला पर ये शिवसूत्र अंकित मिले थे ;कश्मीर में लोग उस शिला को शिवपल (शिवशिला) कहते हैं। उसे बताया गया कि उसे स्वयं शिव द्वारा प्रदत्त आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होगी। उसको आध्यात्मिक ज्ञान स्वयं ग्रहण करने और समाज में विस्तारित करने का निर्देश दिया गया। अगले ही दिन आचार्य वसुगुप्त ने चट्टान पर उत्कीर्ण 77 सूत्र खोज लिए गए। यह सूत्र संक्षिप्त किन्तु बहुआयामी तथा ज्ञान की सटीक विधियों के वृहद सूत्र थे। इस को रहस्य सम्प्रदाय तथा त्रिक दर्शन भी कहते है।इन तीनो आगमो - रुद्रागम , शिवागम और भैरवागम को शिव , शक्ति और अणु को भेद ,अभेद और भेदाभेद का वर्णन करने के कारण इसे त्रिक दर्शन कहा जाता है।और इसे भारतीय दर्शन शास्त्रज्ञों ने सर्वश्रेष्ठ कह कर घोषित किया है ।


2-यह एक अद्वैत दर्शन है।आइंस्टीन से पूर्व भगवान शिव ने ही कहा था कि 'कल्पना' ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है। हम जैसी कल्पना और विचार करते हैं, वैसे ही हो जाते हैं। सपना भी कल्पना है।भगवान शिव ने इस आधार पर ध्यान की 112 विधियों का विकास किया।भगवान शिव सूत्र हमारे मन को ऊपर उठाने के लिए सूत्र प्रदान करते हैं और इसे नई ऊंचाइयों तक ले जाते हैं।शिव सूत्र जीवन के लक्ष्य को आंतरिक आनंद के प्रकाश को विकीर्ण करने के रूप में वर्णित करते हैं। शिव सूत्रों का जादू यह है कि प्रत्येक सूत्र पूर्ण है, जो हमें अपनी प्रकृति में गहराई तक जाने का मार्ग प्रदान करता है, जो कि आनंद है। हमारी सारी तकलीफ हमारे विचार हैं, विचारों का ऊहापोह है । अगर विचार खो जायें तो सिर खो गया! तब तुम तो रहोगे, लेकिन मन न रहेगा। जिससे मन की मृत्यु घटित हो जाये, वह मंत्र है। और मन जब नहीं रह जाता तो हमारे और शरीर के बीच जो सेतु है वह टूट जाता है। मन ही हमें शरीर से जोड़े हुए है। अगर बीच का सेतु, टूट जाये तो शरीर अलग और हम अलग हो जाते है। और जिसने अपने को शरीर से अलग और मन से शून्य जान लिया , वह शिवत्व को उपलब्ध हो जाता है। वह परम केवली है।


3-शिव सूत्र ऐसे हैं जो आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले साधक को आत्म की ओर एक आंतरिक यात्रा शुरू करने में मदद करते हैं। इन सूत्रों के सार को समझने से व्यक्ति को अपने विचारों की निरंतर श्रृंखला को रोकने और अपने मन को शांत करने में मदद मिलती है। प्राचीन सूत्र किसी की आत्मा के लिए एक खिड़की के रूप में कार्य करता है- मन को अंदर की ओर मोड़ता है।शिव सूत्र आपको अपनी आत्मा में स्थापित होने में मदद करते हैं, लेकिन साथ ही साथ आपको ब्रह्मांड के साथ अपने संबंध का एहसास कराते हैं।‘‘शिव सूत्र’‘ ही क्रांति के सूत्र हैं।तुम्हारी यात्रा में, जीवन की खोज में, सत्य तक पहुंचने में ध्यान बीज है। जो खिल जायेगा तो तुम परमात्मा हो जाओगे; जो सड़ जायेगा तो तुम नारकीय जीवन व्यतीत करोगे । मन की मृत्यु ध्यान है। ध्यान है निर्विचार चैतन्य की अवस्था, जहां होश तो पूरा होता है लेकिन विचार बिलकुल नहीं होंते। तुम हो,लेकिन मन न हो।परंतु केवल ’शिव सूत्र’‘ के उपलब्ध हो जाने से पूरी बात नहीं बनती। संपूर्ण और प्रामाणिक प्रयास भी चाहिए। मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन तुम्हे अपने को दांव पर लगाना होगा..इससे कम में नहीं चलेगा।

.....SHIVOHAM....

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