अघोरास्त्र मन्त्र साधना से असंभव काम भी संभव....
अघोरास्त्र मंत्र साधना से असंभव भी संभव ;- भगवन शिव का यह मंत्र बहुत ही शक्तिशाली है।अघोरास्त्र मंत्र का जप महामारी, राजकीय उपद्रव, प्रेत बाधा, शत्रु बाधा, ग्रह दोष, असामयिक गर्भपात शान्ति हेतु किया जाता है।अघोर मंत्र से क्षुद्र व्याधि जैसे कुष्ठरोग, तपेदिक, कैंसर,पक्षाघात आदि से मार्ग निवृत्ति होती है। जीवन में अकस्मात् उत्पन्न होने वाले अवरोध स्वतः ही विलुप्त हो जाते हैं तथा सर्वाभीष्ट सिद्धि से निवृत्ति होती है। ग्रहपीड़ा का शमन होता है। प्रेतपीड़ा बिल्कुल लुप्त हो जाती है तथा सर्वाभीष्ठ सिद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।ऐसा तन्त्र शास्त्रों में वर्णित है।यह शान्ति गृह रोग आदि को शान्त करने वाली तथा महामारी एवं शत्रु का मर्दन करने वाली है। विघ्न कारक गणों के द्वारा उत्पादित उत्पाद को भी शान्त करती है यदि मनुष्य अघोरास्त्र का जप करे।एक लाख जप करने से ग्रह बाधा आदि का निवारण होता है और तिल से दशांश होम कर दिया जाये तो उत्पातों का नाश होता है।असमय में गर्भपात हो या जहाँ बालक जन्म लेते ही मर जाता हो तथा जिस घर में विकृत अंग वाले शिशु उत्पन्न होते हों तथा जहाँ समय पूर्ण हाने से पूर्व ही बालक का जन्म होता हो, वहाँ इन सब दोषों के शमन के लिए दस हजार आहुतियां देनी चाहिये।एक लाख जप-होम से दिव्य उत्पात का तथा आधे लक्ष जप-होम से आकाश उत्पाद का नाश होता है। NOTE;- न्यासपूर्वक तेजस्वी पंचमुखी शिव का ध्यान करके 'अघोरास्त्र' का जप करना चाहिये।इस मन्त्र अनुष्ठान के पूजन में शिव यन्त्र प्रयोग होता है।यह विद्या बहुत ही उग्र है इसलिए योग्य गुरू के सान्निध्य में ही प्रारम्भ करें।
॥ अघोरास्त्र-यन्त्रार्चनम् ॥-
(1) त्रिकोण मध्य में ध्यान सहित अघोर शिव का आवाहन करे । (2) षट्कोणे – हृदयाय नमः, शिरसे स्वाहा, शिखायै वषट् , कवचाय हुँ नेत्रत्रयाय वौषट् अस्त्राय फट् से अङ्गन्यास करे । या षडङ्ग न्यासवत् मंत्रो से आवाहन करें । (3) अष्टदल मध्ये – (पूर्वादि क्रमण) – परशवे नमः, डमरुवे नमः, खङ्गाय नमः, खेटाय नमः, वाणाय नमः, कार्मुकाय नमः, शूलाय नमः, कपालाय नमः । (4) अष्टदले – (दलाग्रभागे) – ब्राह्म यैनमः, माहेश्वर्यै नमः, कौमार्यै नमः, वैष्णवै नमः, वाराह्यै नमः, इन्द्राण्यै नमः, चामुण्डायै नमः, महालक्ष्यै नमः । (5) भूपूरे- परिधि में इन्द्रादि लोकपालों व उनके वज्रादि आयुधों की पूजा करें । विधि ;-
06 FACTS;-
सर्वप्रथम अपने गुरुदेव से इस मंत्र की दीक्षा लें। जो व्यक्ति बिना गुरूमुख से मंत्र लिए केवल पुस्तकों से पढकर मंत्र जप करता है वह घोर नरक का अधिकारी होता है एवं करोड़ो जप करने पश्चात भी उसे सिद्धि नही मिलती। 1-मन्त्र:-
'ॐ ह्रीं स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर घोरघोरतर तनुरूप चट चट प्रचट प्रचट कह कह वम वम बन्धय बन्धय घातय घातय हुं फट्'- 52 2-पूजा:-
05 POINTS;-
प्रारम्भिक पूजा करने के पश्चात भगवान शिव के पंचमुखी का निम्नलिखित मंत्रों से पूजन एवं ध्यान करना चाहिये। 1-ईशान (ईशान मुख ) यह क्रीड़ा का मुख है। जितने भी मनोरंजन, खेल, विज्ञान आदि हैं, ये सभी शिव के इसी मुख द्वारा संचालित होते हैं। पूजन मंत्र : ॐ ईशानाय नमः । ॐ ईशानः सर्व विद्यानामीश्वरः सर्वभूतानां बृह्माधिपतिर्ब्रह्मणो अधिपतिर्ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदाशिवोम्। 2-तत्पुरुष (पूर्व दिशा);-
यह मुख पूर्व दिशा की ओर है यह तपस्या का मुख है। साधना, पढ़ाई-लिखाई, इच्छा व लक्ष्य प्राप्ति के लिए किया जाने वाला प्रत्येक कार्य इसी मुख से संचालित होता है। पूजन मंत्र : ॐ तत्पुरुषाय नमः । ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय महि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् । 3-अघोर (दक्षिण दिशा) यह शिव का रौद्रमुख है संसार में जो युद्ध, आपदाएं, मृत्यु आती हैं, वो सभी शिव के इसी मुख से संचालित होता है। यह न्याय भी करता है और पाप का दंड भी देता है। आपदाशांति के लिए अघोर-उपासना इसीलिए की जाती है। यह शिव का मध्यमुख है। पूजन मंत्र : ॐ अघोराय नमः। ॐ अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो घोर घोरतरेभ्यः सर्वतः सर्वसर्वेभ्यो नमस्तेऽस्तु रूद्ररूपेभ्यः । 4-वामदेव (पश्चिम मुख ) यह अंहकार का रूप है। हमारे अहंकार, गर्व, प्रेम, मोह, आसक्ति आदि इसी मुख के कारण इस संसार में दिखते हैं। पूजन मंत्र : ॐ वामदेवाय नमः। ॐ वामदेवाय नमो ज्येष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमः कालाय नमः कलविकरणाय नमो बलविकरणाय नमो बालाय नमो बलप्रमथनाय नमः सर्वभूतदमनाय नमो मनोन्मनाय नमः । 5-सद्योजात (उत्तर मुख ) यह ज्ञान का मुख है। यह शिव का अतिशालीन रूप है। शिव के इसी रूप की सबसे ज्यादा आराधना होती है। पूजन मंत्र : ॐ सद्योजाताय नमः। ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमो भवे भवे नातिभवे भवस्य मां भवोद्भवाय । 3-स्नान इत्यादि से निवर्त होकर आचमन करें फिर सीधे हाथ में जल लेकर विनयोग करें -
विनियोग : ॐ अस्य श्री अघोरास्त्र मंत्रस्य, अघोर ऋषिः, त्रिष्टुप छंदः अघोर रुद्रदेवता, ह ल बीज, स्वराः शक्तिं। सर्वोपद्रव शमनार्थे जपे विनियोगः।
4-करन्यासः-
ह्रीं स्फुर स्फुर अंगुष्ठाभ्याम् नमः।प्रस्फुर प्रस्फुर तर्जनीभ्याम् नमः।घोर घोर-तर तनुरूप मध्यमाभ्याम् नमः।चट चट प्रचट प्रचट अनामिकाभ्याम् नमः।कह कह वम वम कनिष्ठिकाभ्याम् नमः ।बंध बंध घातय घातय हुँ फट् करतलकरपृष्ठाभ्यां। 5-षडङ्गन्यासः-
ह्रीं स्फुर स्फुर हृदयहृदयाय नमः।प्रस्फुर प्रस्फुर शिरसे स्वाहा घोर घोर-तर तनुरूप शिखायै वषट्।चट चट प्रचट प्रचट कवचाय हुम्।कह कह वम वम नेत्रत्रयाय वौषट।बंध बंध घातय घातय हुँ फट् नमःअस्त्राय फट। 6-न्यास करने के पश्चात भगवान शिव का ध्यान करें - ध्यानम् सजल घनसमाभं भीम दंष्टं त्रिनेतं भुजगधरमघोरं हारक्त वस्त्रान रागाम्। परशु डमरू खडगान् खेटकं वाण चापौ त्रिशिखि नर कपाले विभ्रतं भावयामि ।। अभिचारे ग्रहध्वंसे कृष्णवर्णो भवेद्विभुः वश्ये कुसुम्भसङ्काशो मुक्तौ चन्द्रसमप्रभः।
अर्थ;- जल युक्त बादल के समान जिनके शरीर की कान्ति हैं, जिनकी दंष्ट्रा अत्यन्त भयानक है जो तीन नेत्रों से युक्त तथा साँपों को धारण करने वाले हैं - ऐसे रक्त वस्त्र एवं रक्त अङ्गराग से भूषित परशु, डमरू, खङ्ग, खेटक, बाण, चाप, त्रिशुल तथा नर कपाल को धारण करने वाले अघोर का मैं ध्यान करता हूँ ये अघोर प्रभु , मारण तथा ग्रहों के विनाश काल में कृष्ण वर्ण और वश्यकार्य में कुसुम्भ के सदृश तथा मुक्ति कार्य में चन्द्रमा के समान रूप धारण करते हैं। NOTE;- अग्नि पूराण के अनुसार अघोर मंत्र का एक लक्ष जप करके दशांश होम करें। साधक रात्रि में, अपामार्ग समिध तिल सरसों एवं पायस से अयुत होम या सहस्त्राहुति देवे तो कृत्या व भूतों का नाश होता हैं।अघोरास्त्र मंत्र के साथ में नियमित रूप से शिव गायत्री एवं शक्ति मंत्र का जप करना चाहिये । उत्तम फल प्राप्ति के लिए प्रतिदिन शिवलिंग पर जल चढाना चाहिये एवं नीलकंठ अघोरास्त्र स्तोत्र का पाठ करना चाहिये। श्रीनीलकण्ठ अघोरास्त्र स्तोत्रं ;- 1-विनियोग:-
ॐ अस्य श्री भगवान नीलकण्ठ सदा-शिव-स्तोत्र मंत्रस्य श्री ब्रह्माऋषिः, अनुष्ठप् छन्दः,श्रीनील-कण्ठ सदाशिवो देवता ब्रह्म बीजं, पार्वती शक्तिः , मम समस्त-पाप-क्षयार्थं क्षेम-स्थैर्यायुरारोग्याभि-वृद्धयर्थ मोक्षादि-चतुर्वर्ग-साधनाथं च श्रीनील-कण्ठ-सदा-शिव-प्रसाद-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः। 2-ऋष्यादिन्यासः-
श्री ब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि।अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे।श्रीनीलकण्ठ सदाशिव देवतायै नमः हृदि।ब्रह्म-बीजाय नमः लिङ्गे। पार्वती-शक्त्यै नमः नाभौ।मम समस्त पापक्षयार्थ क्षेमस्थायरारोग्याभि-वृद्धयर्थ मोक्षादि चतुर्वगं साधनार्थं च श्रीनीलकण्ठ सदाशिव प्रसाद सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे। स्तोत्रम्;-
स्तोत्रम् ॥
ॐ नमो नीलकण्ठाय, श्वेतशरीराय, सर्पालंकारभूषिताय, भुजङ्गपरिकराय, नागयज्ञोपवीताय, अनेकमृत्यु विनाशाय नमः ।
युग युगान्त कालप्रलयप्रचण्डाय, प्रज्वाल-मुखाय नमः । दंष्ट्राकराल घोररूपाय हूं हूं फट् स्वाहा । ज्वालामुखाय, मंत्र करालाय, प्रचण्डार्क सहस्रांशु-चण्डाय नमः । कर्पूरमोद-परिमलाङ्गाय नमः । ॐ ईं ईं नील महानील वज्र वैलक्ष्य मणि-माणिक्य मुकुट भूषणाय, हन-हन-हन-दहन-दहनाय श्रीअघोरास्त्र मूल मंत्र – ॐ ह्रां ॐ ह्रीं ॐ ह्रूं स्फुर अघोर-रूपाय रथ रथ तंत्र-तंत्र-चट्-चट्-कह-कह मद-मद-दहन-दाहनाय जरा-मरण-भय-हूं हूं फट् स्वाहा। अनन्ताघोर-ज्वर-मरण-भय-क्षय-कुष्ठ-व्याधि-विनाशाय, शाकिनीडाकिनी-ब्रह्मराक्षस-दैत्य-दानव-बन्धनाय, अपस्मार-भूत-बैताल-डाकिनी-शाकिनी-सर्व-ग्रह-विनाशाय, मंत्र-कोटि-प्रकटाय, पर-विद्योच्छेदनाय, हूं हूं फट् स्वाहा । आत्म-मंत्र संरक्षणाय नमः । ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं नमो भूत-डामरी-ज्वाल-वश-भूतानां द्वादश-भूतानां त्रयोदश-षोडश-प्रेतानां पञ्च-दश-डाकिनी-शाकिनीनां हन हन । दहन-दारनाथ ! एकाहिक-द्व्याहिक-त्र्याहिक-चातर्थिक-पञ्चाहिक-व्याघ्र- पादान्त-वातादि-वात-सरिक-कफ-पित्तक-काश-श्वास-श्लेष्मादिकं दह-दह, छिन्धि-छिन्धि, श्रीमहादेव-निर्मित-स्तंभन-मोहन-वश्याकर्षणोच्चाटन- कीलनोद्वेषणइति षट्-कर्माणि वृत्य हूं हूं फट् स्वाहा । वात ज्वर, मरण-भय, छिन्न-छिन्न नेह नेह भूतज्वर, प्रेतज्वर, पिशाचज्वर, रात्रिज्वर, शीतज्वर, तापज्वर, बालज्वर, कुमारज्वर, अमितज्वर, दहनज्वर, ब्रह्मज्वर, विष्णुज्वर, रुद्रज्वर, मारीज्वर, प्रवेशज्वर, कामादि-विषम ज्वर, मारी-ज्वर, प्रचण्ड-घराय, प्रमथेश्वर ! शीघ्रं हूं हूं फट् स्वाहा । ॐ नमो नीलकण्ठाय, दक्षज्वर-ध्वंसनाय, श्रीनीलकण्ठाय नमः ।
फलश्रुति- सप्तवारं पठेत् स्तोत्रं, मनसा चिन्तितं जपेत् । तत्सर्वं सफलं प्राप्तं, शिवलोकं स गच्छति ॥ ॥ श्रीरामेश्वर तंत्रे श्रीनीलकण्ठ-अघोरास्त्र स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
.....SHIVOHAM....
Kommentarer