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आंवला नवमी का क्या महत्व हैं?

आंवला नवमी का महत्व;-

04 FACTS;-

1-पुराणों में कार्तिक मास को सबसे श्रेष्ठ और पवित्र माना जाता है। इसी महीने में 4 मास की योगनिद्रा के बाद भगवान विष्णु जाग्रत होते हैं। इसके बाद से 4 महीनों से बंद पड़ी पूजा-पाठ और शुभ कार्यों का आरंभ हो जाता है। इस माह में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा पूरे विधि-विधान से की जाती है।कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी या अक्षय नवमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने का विधान है। इस दिन लोग आंवले के पेड़ की पूजा करते हैं। पूजन के पश्चात वृक्ष के नीचे बैठकर ही भोजन करने का भी विधान है।पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार मां लक्ष्मी भ्रमण करने के लिए पृथ्वी लोक पर आईं। रास्ते में उन्हें भगवान विष्णु और शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई। माता लक्ष्मी ने विचार किया कि एक साथ विष्णु एवं शिव की पूजा कैसे हो सकती है। तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय होती है और बेलपत्र भगवान शिव को। मां लक्ष्मी को ख्याल आया कि तुलसी और बेल का गुण एक साथ आंवले के पेड़ में ही पाया जाता है।ऐसे में आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिन्ह मानकर मां लक्ष्मी ने आंवले की वृक्ष की पूजा की।

2-कहा जाता है कि पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को भोजन करवाया। इसके बाद स्वयं भोजन किया, जिस दिन मां लक्ष्मी ने शिव और विष्णु की पूजा की थी, उस दिन कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि थी। तभी से कार्तिक शुक्ल की नवमी तिथि को आंवला नवमी या अक्षय नवमी के रूप में मनाया जाने लगा।आज की तिथि पर भगवान विष्णु ने कूष्मांड राक्षस का वध किया था, इसलिए आंवला नवमी को कूष्मांड नवमी भी कहते हैं। इस दन कद्दू का दान किया जाता है।शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि अक्षय नवमी के दिन ही सतयुग की शुरुआत हुई थी। इस दिन को आंवला नवमी, कूष्मांडा नवमी और धात्री नवमी के नाम से जाना जाता है। सतयुगादि, इच्छा नवमी के नाम से भी जाना जाता है।

3-कहा जाता है कि आंवला वृक्ष के मूल में भगवान विष्णु, ऊपर ब्रह्मा, स्कंद में रुद्र, शाखाओं में मुनिगण, पत्तों में वसु, फूलों में मरुद्गण और फलों में प्रजापति का वास होता है। ऐसे में आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही इसकी पूजा करने वाले व्यक्ति के जीवन से धन, विवाह, संतान, दांपत्य जीवन से संबंधित समस्या खत्म हो जाती है। मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए अक्षय नवमी का दिन सबसे उत्तम माना जाता है।देवउठानी एकादशी के दो दिन पहले रखे जाने वाले इस पर्व में भगवान विष्णु के साथ-साथ आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है।नवमी तिथि से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक आंवले के पेड़ में भगवान विष्णु का वास होता है। इस वजह से आंवले के वृक्ष की पूजा करते हैं।अक्षय का अर्थ कभी समाप्त न होने वाला या कम न होने वाला होता है। इसलिए इस दिन भक्तिभाव से की गई पूजा-अर्चना से भक्तों के सभी कार्य सफल होते हैं और उनमें कभी कमी नहीं आती है।अक्षय नवमी के दिन दान जरूर करें। इसे बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

4-सामर्थ्य अनुसार दान करने से भक्तों से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर देते हैं।आप शुभ मुहूर्त में आंवले के पेड़ की पूजा करें। सबसे पहले आंवले के पेड़ की जड़ में जल और दूध अर्पित करें। फिर फूल, अक्षतृ, रोली, चंदन, फल, मिठाई आदि अर्पित करें।इसके पश्चात रक्षा सूत्र या कच्चा सूत लेकर पेड़ में लपेट दें।. उसके साथ 8 बार या 108 बार परिक्रमा करते हुए सूत पेड़ में लपेटना चाहिए।अब आप भगवान विष्णु का ध्यान करके उनकी भी पूजा अर्चना कर लें. जीवन में सुख, शांति और समृद्धि के लिए प्रार्थना करें। पूजा के समापन के बाद आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर परिजनों के साथ भोजन करें. विष्णु कृपा से आपके परिवार की उन्नति होगी।कहा जाता है कि आज के दिन आंवले के पेड़ से अमृत की बूंदें टपकती हैं, इसलिए उत्तम स्वास्थ्य के लिए पेड़ के नीचे बैठने और भोजन करने की परंपरा है।

....SHIVOHAM.....


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