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आनापानसति ध्यान

विज्ञानं भैरव तंत्र में भगवन शिव ने श्‍वास-क्रिया से संबंधित नौ विधियां बताई है।विज्ञानं भैरव तंत्र के मार्ग पर चलने के लिए ईश्वर को मानना न मानना, आत्मा को मानना न मानना आवश्यक नहीं है। विज्ञानं भैरव तंत्र का धर्म ,इस पृथ्वी पर अकेला वैज्ञानिक धर्म है जिसमें मान्यता, पूर्वाग्रह, विश्वास इत्यादि की कोई भी आवश्यकता नहीं है।गौतम बुद्ध ने विज्ञानं भैरव तंत्र को पूर्णरूपेण पालन किया है और हज़ारों वर्ष पूर्व ध्यान की यह विधि सिखाई थी।।इसीलिए आनापानसति ध्यान में कोई लिंग भेद, वर्ण, जात-पात, आयु-अवस्था, धनाढ्य-दरिद्र आदि का कहीं कोई बन्धन नहीं है।ध्यान का अभ्यास करना बहुत सरल है, कोई भी सीधे ही आनापानसति ध्यान का अभ्यास आरम्भ कर सकता है।उसे केवल अपने सामान्य श्वास - प्रश्वास के प्रति सजग रहना है।

पाली भाषा में,‘आन’ का अर्थ है श्वास लेना ,‘अपान’ का अर्थ है श्वास छोड़ना और सति’ का अर्थ है

‘के साथ मिल कर रहना’।

वास्तव में,साँस तो हम सभी लेते हैं परन्तु हम इस क्रिया के प्रति जागरूक नहीं होते। ‘आनापानसति’ में व्यक्ति को अपना पूरा ध्यान और जागरूकता अपनी सामान्य श्वसन - प्रक्रिया पर रखने की आवश्यकता होती है। यह आवश्यक है कि हम साँस पर सजगतापूर्वक अपनी निगाह टिकाकर रखें, साँस की क्रिया तो स्वाभाविक रूप से चलती रहनी चाहिए। साँस को किसी भी रूप में रोकना नहीं है, न ही उसे अटका पर रखना है। हमें अपनी ओर से इसकी गति में किसी भी प्रकार का परिवर्तन लाने का प्रयास नहीं करना है। जब मन इधर उधर भागने लगे तो तुरन्त विचारों पर रोक लगा कर पुनः अपने ध्यान को श्वास की सामान्य लय पर ले आना चाहिए। स्वयं को शिथिल छोड़ कर मात्र Observer बन जाना चाहिए।आनापानसति का अभ्यास करते हुए हम एक साथ दो चीज़ें कर सकते हैं: - अपनी चेतना का विस्तार होने देना.... जागरूकता को बढ़ा लेना।

साँस के प्रति जागरूक रहने का अर्थ है विचारों को मन पर नियन्त्रण न करने देना। ये विचार ही हमारी ऊर्जा को खींचकर बिखरा देते हैं। इसीलिए विचारों के चक्र को जन्म के साथ ही रोक देना चाहिए। साँस के Observation का अर्थ है कि हम किसी भी रूप में अपनी भौतिक इन्द्रियों अथवा विचारों द्वारा अपने साँस की लय को प्रभावित न करें, केवल उस पर निगाह ही रखें।जब आत्मा की ऊर्जा हमारे विक्षुब्ध व अनन्त विचारों द्वारा व्यय कर दी जाती है तो हमारा भौतिक शरीर निर्बल हो जाता है। ऐसी स्थिति में उस पर विविध प्रकार के बाहरी आक्रमण होने लगते हैं। इसके प्रभावस्वरूप व्यक्ति को कई प्रकार के रोग लग जाते हैं, बुढ़ापा आने लगता है और शीघ्र ही वह मृत्यु का ग्रास बन जाता है। जो लोग अपने मन का परिष्कार नहीं करते, उनका मन इसी प्रकार अशांत रहा करता है। जिस प्रकार एक खेत, जिसे कृषि हेतु तैयार न किया हो, खर - पतवार से भर जाता है, उसी प्रकार एक निरंकुश मन भी अनचाहे विचारों से भर जाता है।

अतः आरम्भ में तो ध्यान का अर्थ है मन को शांत व उद्वेलनरहित बनाना। शीघ्र ही एक गहन विश्रामयुक्त अवस्था प्राप्त कर ली जाती है। जब मन विचारों से रिक्त हो जाता है तब अतिशय मात्रा में वैश्विक ऊर्जा शरीर में भरने लगती है। जैसे - जैसे हम ध्यान करते चले जाते हैं, नए गहन अनुभव, नए दृश्य हमें और हम विश्व - चेतना के साथ फिर से जुड़ने लगते हैं। हम एक आश्चर्यों से भरे जगत में पहुँच जाते हैं जो हमारी प्रतीक्षा कर रहा हैं। आप जितना अधिक प्रयास करते हैं जागरूकता को पाना उतना ही अधिक आसान होता जाता है।आनापानसति ध्यानी होने के लिए व्यक्ति को किसी आश्रम में जाने की आवश्यकता नहीं होती। न तो उसे किसी पवित्र स्थान पर जाना होता है और न ही अपने उत्तरदायित्वों का त्याग करना होता है। हम अपना सामान्य जीवन जी सकते हैं और यह देख सकते हैं कि किस प्रकार ध्यान की शक्ति हमें बदल कर हर क्षेत्र में बेहतर बना देती है।आध्यात्मिक स्वास्थ्य’ हमारे सम्पूर्ण स्वास्थ्य का बहुत महत्वपूर्ण व अभिन्न भाग है। आनापानसति ध्यान इस आवश्यकता की पूर्ति करता है। भगवान शिव कहते हैं.... ''साँस के साथ सजग होकर रहो, आपके भीतर जागरूकता का केन्द्र बन जाएगा... तब आपका शरीर ही ब्रह्माण्ड बन जाएगा''।

श्वास हमारी स्वैच्छिक और हमारी अनैच्छिक प्रणालियों के बीच की एक कड़ी है। हम अपनी श्वास को कुछ सीमा तक नियंत्रित कर सकते हैं, कुछ समय के लिए रोक सकते हैं, लेकिन हम इसे स्थायी रूप से रोक नहीं सकते। आम तौर पर हमारी सांस लेने की प्रक्रिया अनजाने में होती है। यह एक अविश्वसनीय रूप से लाभप्रद माइंडफुलनेस मेडिटेशन अभ्यास है और जागरूकता का आंतरिक सूर्य बनाने के लिए सबसे शक्तिशाली तरीकों में से एक है। यह विधि शरीर और मन की बहुत कोशिकाओं में प्रवेश करने के लिए जागरूकता की अनुमति देती है।यह अभ्यास सांस लेने के हमारे बेहोश पैटर्न को सचेत श्वास में बदलने का एक शानदार तरीका है। इस जागरूकता के साथ, हम खुद को चेतना की एक उच्च अवस्था में स्थापित कर सकते हैं।

STEPS;-

एक आरामदायक मुद्रा में बैठें, धीरे से आगे की ओर देखें।

धीरे से अपनी पीठ, गर्दन और सिर को सीधा करें ;कंधों को आराम दें।

धीरे-धीरे अपनी आँखें बंद करें, अपनी आँखों और चेहरे की मांसपेशियों के आसपास किसी भी तनाव को छोड़ दें।

अपने पूरे शरीर को स्कैन करें, शरीर के किसी भी हिस्से में तनाव की जांच करें।

लंबी और गहरी साँस लें, जबकि साँस छोड़ते हुए अपने पूरे शरीर में गहरी शिथिलता महसूस करें।

दूसरी सांस लें और धीरे-धीरे और आराम से सांस छोड़ें।

अपने सांस लेने के पैटर्न से अवगत रहें।

जागरूकता और सतर्कता के साथ गहरी साँस लेना और साँस छोड़ना शुरू करें। 10 राउंड के लिए दोहराएं।

इसे सहज और आराम से करें।किसी भी जोरदार और झटकेदार साँस लेना और साँस छोड़ने से बचें।

पूरी प्रक्रिया के दौरान सजग और सतर्क रहें।

NOTE;-

यह आनापानसति ध्यान सामान्य रूप से 10-45 मिनट के लिए आरामदायक स्थिति में बैठकर किया जाता है। लेकिन कोई भी किसी भी समय और खाली समय की किसी भी उपलब्धता के दौरान अपनी दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों के दौरान इसे कर सकता है।उदाहरण के लिए चलते समय या कार, बस, ट्रेन या हवाई जहाज में बैठते समय।किसी की प्रतीक्षा करते हुए या लेटकर आराम करते हुए।

....SHIVOHAM...


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