top of page

Recent Posts

Archive

Tags

आसन सिद्धि विधान...



आसन सिद्धि;-

02 FACTS;-

1-आसन शब्द का प्रयोग विविध अर्थों में किया जाता है, जैसे...बैठने की पद्धति, भूमि, तथा वह स्थान या माध्यम जिसके ऊपर बैठकर आध्यात्मिक या भौतिक कार्य संपन्न किये जाते हैं ।हमें ये ज्ञात नहीं है कि आसन यदि पूर्ण प्रतिष्ठा से युक्त ना हो तो हम चाहे कितने भी गुदगुदे आसन पर या गद्दे पर बैठ जाएं, हम हिलते-डुलते रहेंगे और हमारे चित्त में बेचैनी की तीव्रता बनी रहेगी । और इसका कारण हमारे शरीर का मजबूत होना नहीं है अपितु भूमि के भीतर रहने वाली नकारात्मक शक्तियां सुरक्षा आवरण विहीन हमारी इस भौतिक देह से सरलता से संपर्क कर लेती हैं । और, तब उनके दुष्प्रभाव से हमारा चित्त भी बैचेन हो जाता है और शरीर भी टूटने लगता है और वे सतत हमें साधना से विमुख होने के भाव से प्रभावित करते रहते हैं । और जब ऐसी स्थिति होगी, आप व्याकुल मन और अस्थिर शरीर से कैसे साधना करोगे और कैसे आपको सफलता मिलेगी । और यदि आप आसन से अलग हो जाते हो तो पुनःना सिर्फ आपका शरीर स्वस्थ हो जाता है बल्कि आपका चित्त भी प्रसन्न हो जाता है ।दरअसल होता क्या है कि हम चाहे जिस भी आसन पर बैठकर साधना करें, उसमें हमारे मंत्र जप की ऊर्जा की शक्ति आयेगी ही आयेगी । लेकिन चूंकि सामान्य आसन मंत्रों से आबद्ध नहीं होते हैं तो उनकी ऊर्जा का क्षय समय के साथ होता रहता है । अगर आप लगातार साधना करते रहते हैं, तब तो कोई बात नहीं, आपका आसन चैतन्य ही रहेगा पर क्या हो, जब आप लगातार साधना नहीं कर पाते हैं तो आपका आसन भी समय के साथ डिस्चार्ज हो जाएगा । इसी वजह से आसन को सिद्ध करना आवश्यक हो जाता है कि, कम से कम एक ऊर्जा का स्तर उस आसन में हमेशा बना रहे । हम चाहे जब भी बैठकर उस पर साधना करें, हमारी कमर स्वतः ही सीधी रहे, शरीर टूटे न और साधना भी निर्विघ्न संपन्न हो ।

2-पूर्णम पूर्णै सपरिपूर्ण: आसन: दिव्यताम सिद्धि:” अर्थात आसन मात्र आसन न हो अपितु उसमें पूर्ण दिव्यता का संचार हो और वो दिव्यता से युक्त हो तभी उसके प्रयोग से साधक की देह दिव्य भाव युक्त होती है और तब यदि उसका भाव या साधना पक्ष उसे पूर्णत्व के मार्ग पर सहजता से गतिशील करा देता है और, साधक को पूर्णता प्राप्त होती ही है | यहां पूर्णम् का अर्थ भी यही है कि माध्यम पूर्णत्व गुण युक्त हो तभी तो पूर्णत्व प्राप्त होगा ।तंत्र शास्त्र कहता है कि दिव्यता ही दिव्यता को आकर्षित कर सकती है | यदि साधक दिव्य तत्वों के सामीप्य का लाभ लेता है या संपर्क में रहता है तो उसकी देह में स्वतः दिव्यता आने लगती है, तब ऐसे में वातावरण में उपस्थित वे सभी नकारात्मक अपदेव शक्ति, अदृश्य यक्ष, प्रेत आदि आपके मंत्र जप को आकर्षित नहीं कर पाते हैं और आपकी क्रिया का पूर्ण फल आपको प्राप्त होता ही है । हममें से बहुतेरे साधक ये नहीं जानते हैं कि जब भी वे किसी महत्वपूर्ण दिवस पर साधना का संकल्प लेते हैं और, जैसे-जैसे साधना का समय समीप आता है, उनके मन में साधना और इष्ट के प्रति नकारात्मक विचार उत्पन्न होते जाते हैं । या यदि कड़ा मन करके वे साधना संपन्न करने हेतु बैठ भी गए तो कुछ समय बाद उन्हें ये लगने लगता है कि बाहर मेरे मित्र अपने मनोरंजन में व्यस्त हैं और मैं मूर्ख यहां बैठा बैठा पता नहीं क्या कर रहा हूं ?

3-इस धरा पर बहुत कम गिने चुने स्थान बचे हैं ,जहां पर बैठकर उच्च स्तरीय साधना की जा सकती है, ऐसी साधनाएं या तो सिद्धाश्रम की दिव्य भूमि पर संपन्न की जा सकती है या फिर शून्य-आसन का प्रयोग कर, बाकी ऐसी कोई जगह नहीं है जो दूषित ना हो । यहां तक कि श्मशान साधना में भी तब तक सफलता की प्राप्ति संभव नहीं हो सकती जब तक कि उस साधक को आसन खिलने की पद्धति का भली भांति ज्ञान न हो । एक साधक के द्वारा प्रयुक्त सभी साधना सामग्री का विशिष्ट गुणों से युक्त होना अनिवार्य है अन्यथा सामान्य सामग्रियों में यदि वो विशिष्टता उत्पन्न ना कर दे तो उसके द्वारा संपन्न की गयी साधना क्रिया सामान्य ही रह जायेगी । यदि हम स्वगुरु या किन्हीं सिद्ध विशेष का आवाहन करते हैं तो प्रत्यक्षतः उन्हें प्रदान किये गए आसन भी पूर्ण शुद्धता के साथ और दिव्यता से युक्त होने ही चाहिए ।आसन सिद्धि का ये विधान न सिर्फ एक दुर्लभ प्रक्रिया है बल्कि यह साधना, किसी भी साधक के जीवन की सर्वप्रथम साधना होनी चाहिए । लेकिन होता ये है कि साधक की चेतना और मनोभाव उस स्तर तक नहीं पहुंचे होते हैं कि वह आसन सिद्धि के महत्व को पहचान कर, सर्वप्रथम वही कार्य करे ।

आसन को सिद्ध करने की विधि;-

इसके लिए आप एक नया रंगबिरंगा ऊनी कम्बल ले सकते हैं और इसे सिद्ध करने के पश्चात इसके ऊपर आप अपने वांछित रंग का रेशमी या ऊनी वस्त्र भी बिछा सकते हैं |

मैथुन चक्र;-

 



मंगलवार की प्रातः पूर्ण स्नान कर लाल वस्त्र धारण कर लाल आसन पर बैठकर भूमि पर तीन मैथुन चक्र का निर्माण क्रम से कुमकुम के द्वारा कर ले ।1 और 3 चक्र छोटे होंगे और मध्य वाला आकार में थोड़ा बड़ा होगा । मध्य वाले चक्र के मध्य में बिंदु का अंकन किया जायेगा, बाकी के दोनों चक्र में ये अंकन नहीं होगा । मध्य वाले चक्र में आप उस कम्बल को मोड़कर रख दे और अपने बाएं तरफ वाले चक्र के मध्य में तिल के तेल का दीपक प्रज्वलित कर ले और, दाहिने तरफ वाले चक्र में गौघृत का दीपक प्रज्वलित कर ले। और हां, दोनों दीपक चार चार बत्तियों वाले होने चाहिए । अब गुरु पूजन और गणपति पूजन के पश्चात पंचोपचार विधि से उन दोनों दीपकों का भी पूजन करे, नैवेद्य की जगह कोई भी मौसमी फल अर्पित करें ।

इसके बाद उस कम्बल का पंचोपचार पूजन करें | तत्पश्चात कुमकुम मिले 108-108 अक्षत को निम्न मंत्र क्रम से बोलते हुए उस कम्बल पर डालें -

ॐ ऐं (AING) ज्ञान शक्ति स्थापयामि नमः 

ॐ ह्रीं (HREENG) इच्छाशक्ति स्थापयामि नमः 

ॐ क्लीं (KLEENG) क्रियाशक्ति स्थापयामि नमः 

तत्पश्चात निम्न ध्यान मंत्र का 7 बार उच्चारण करे और ध्यान के बाद जल के छींटे उस वस्त्र पर छिड़कें –

ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी त्वं विष्णुना धृता त्वं च धारय माम देवी: पवित्रं कुरु च आसनं ।।

ॐ सिद्धासनाय नमः ॐ कमलासनाय नमः ॐ सिद्ध सिद्धासनाय नमः 

इसके बाद निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए पुष्प मिश्रित अक्षत को उस कम्बल या वस्त्र पर 324 बार अर्पित करें -

।। ॐ ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं सप्तलोकं धात्रि अमुकं आसने सिद्धिं भू: देव्यै नमः ।।

OM HREENG KLEENG AING SHREEM SAPTLOKAM DHAATRI AMUKAM AASANE SIDDHIM BHUH DEVAYAI NAMAH || 

ये क्रम गुरुवार तक नित्य संपन्न करें । मात्र 3 दिन में ही आप इस सामान्य (किंतु दुर्लभ) प्रक्रिया के माध्यम से अपने आसन को सिद्ध कर सकते हैं । और 3 दिन की ये मेहनत आपके जीवन भर काम आयेगी ।जहां पर अमुक लिखा हुआ है वहां अपना नाम उच्चारित करना है ।अंतिम दिवस क्रिया पूर्ण होने के बाद किसी भी देवी के मंदिर में कुछ दक्षिणा और भोजन सामग्री अर्पित कर दें तथा कुछ धन राशि जो आपके सामर्थ्यानुसार हो अपने गुरु के चरणों में अर्पित कर दें या गुरु धाम में भेज दें तथा सदगुरुदेव से इस क्रिया में पूर्ण सफलता का आशीर्वाद लें । अद्भुत बात ये है कि आप इस कम्बल को जब भी बिछाकर इस पर बैठेंगे तो ना सिर्फ सहजता का अनुभव करेंगे अपितु समय कैसे बीत जाएगा, आपको ज्ञात भी नहीं होगा।दीर्घ कालीन साधना कहीं ज्यादा सरलता से ऐसे सिद्ध आसन पर संपन्न की जा सकती है और आप इसके तेज की जांच करवा कर देख सकते हैं, कि कितना अंतर है सामान्य आसन में और इस पद्धति से सिद्ध आसन में । आप ऐसे दो आसन सिद्ध कर लीजिए; एक आसन आप अपने गुरु के बैठने के निमित्त प्रयोग कर सकते हैं ।आपको दो बातों का ध्यान रखना होगा -

1. इन आसनों को धोया नहीं जाता है ।

2. इन पर हमारे अतिरिक्त कोई और नहीं बैठ सकता है, अन्यथा उसकी मानसिक स्थिति व्यथित हो सकती है ।

अतः यदि किसी और के निमित्त आसन तैयार करना हो तो अमुक की जगह उसका नाम उच्चारित कर आसन सिद्ध करना होगा । स्वयं के अतिरिक्त जो हम गुरु सत्ता या सिद्धों के आवाहन हेतु जो आसन प्रयोग करेंगे, उसे सिद्ध करने के लिए अमुक की जगह ज्ञानशक्तिं का उच्चारण होगा।ये हमारा सौभाग्य है कि हमें ये विधान उपलब्ध है, आवश्यकता है तो इन सूत्रों का साधना में प्रयोग करने की और साधना की सफलता प्राप्ति के मार्ग में जो बाधाएं आ रही है, उन्हें समाप्त कर उन पर विजय प्राप्त करने की ।

...SHIVOHAM...

コメント


Single post: Blog_Single_Post_Widget
bottom of page