वह कब्रिस्तान जहां जीसस क्राइस्ट का कॉफिन रखा हुआ है....
04 FACTS;-
1-ईसा के जन्म के बारे में सबको मालूम है, लेकिन उनकी मृत्यु को लेकर कई बातें प्रचलित हैं।उसमें एक बात ये भी है कि ईसा का निधन येरूशलम में नहीं बल्कि कश्मीर में हुआ था।सूली पर लटकाए जाने के बाद भी वो जिंदा थे। वो दो दिन बाद वहां से गायब हो गए।उसके बाद सिल्क रूट से होते हुए वो कश्मीर पहुंचे।उन्होंने अपना आखिरी जीवन यहीं गुजारा।यीशु के जन्म के बाद उन्हें देखने बेथलेहेम पहुंचे तीन विद्वान भारतीय ही थे, जो बौद्ध थे। भारत से पहुंचे इन्हीं तीन विद्वानों ने यीशु का नाम 'ईसा' रखा था। जिसका संस्कृत में अर्थ 'भगवान' होता है। एक दूसरी मान्यता अनुसार बौद्ध मठ में उन्हें 'ईशा' नाम मिला जिसका अर्थ है, मालिक या स्वामी। हालांकि ईशा शब्द ईश्वर के लिए उपयोग में लाया जाता है। वेदों के एक उपनिषद का नाम 'ईश उपनिषद' है। 'ईश' या 'ईशान' शब्द का इस्तेमाल भगवान शंकर के लिए भी किया जाता है।कुछ विद्वान मानते हैं कि ईसा इब्रानी शब्द येशुआ का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ है होता है मुक्तिदाता। और मसीह शब्द को हिंदी शब्दकोश के अनुसार अभिषिक्त मानते हैं, अर्थात यूनानी भाषा में खीस्तोस। इसीलिए पश्चिम में उन्हें यीशु ख्रीस्त कहा जाता है। कुछ विद्वानों अनुसार संस्कृत शब्द 'ईशस्' ही जीसस हो गया। यहूदी इसी को इशाक कहते हैं। ऐसा लिखित रिकार्ड मिलता है कि जीसस लद्दाख से चलकर, ऊंची बर्फीला पर्वतीय चोटियों को पार करके काश्मीर के पहलगाम नामक स्थान पर पहुंचें। यही पर जीसस को इसराइल के खोए हुए कबीले के लोग मिले।13 से 29 वर्ष की उम्र तक ईसा भारत भ्रमण करते रहे। ऐसी मान्यता है कि उन्होंने नाथ सम्प्रदाय में भी दीक्षा ली थी।
2-हेमिस बौद्घ आश्रम लद्दाख के लेह मार्ग पर स्थित है। ईसा मसीह सिल्क रूट से भारत आए थे और यह आश्रम इसी तरह के सिल्क रूट पर था। उन्होंने 13 से 29 वर्ष की उम्र तक यहां रहकर बौद्घ धर्म की शिक्षा ली और निर्वाण के महत्व को समझा। यहां से शिक्षा लेकर वे जेरूसलम पहुंचे और वहां वे धर्मगुरु तथा इसराइल के मसीहा या रक्षक बन गए।30 वर्ष की उम्र में येरुशलम लौटकर उन्होंने यूहन्ना (जॉन) से दीक्षा ली। दीक्षा के बाद वे लोगों को शिक्षा देने लगे। ज्यादातर विद्वानों के अनुसार सन् 29 ई. को प्रभु ईसा गधे पर चढ़कर येरुशलम पहुंचे। सूली के समय ईशा नाथ ने अपने प्राण समाधि में लगा दिए थे। वे समाधि में चले गए थे जिससे लोगों ने समझा कि वे मर गए। उन्हें मुर्दा समझकर कब्र में दफना दिया गया।वहीं उनको दंडित करने का षड्यंत्र रचा गया। अंतत: उन्हें विरोधियों ने पकड़कर क्रूस पर लटका दिया। उस वक्त उनकी उम्र थी लगभग 33 वर्ष।
3-ईसाइयों के लिए यरुशलम शहर बहुत महत्व रखता है, क्योंकि यह शहर ईसा मसीह के जीवन के अंतिम भाग का गवाह है।यरुशलम एक अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र है। इज़्रायल और फिलिस्तीन जेरूसलम को अपने देश की राजधानी होने का दावा किया जाता है, जो कुछ देशों द्वारा विवादित है। ये यहूदी.पन्थ, ईसाई पन्थ और इस्लाम पन्थ, तीनों की पवित्र नगरी है। इतिहास गवाह है कि येरुशलम प्राचीन यहूदी राज्य का केन्द्र और राजधानी रहा है। यहीं यहूदियों का परमपवित्र सोलोमन मन्दिर हुआ करता था, जिसे रोमनों ने नष्ट कर दिया था। ये शहर ईसा मसीह की कर्मभूमि रहा है। यहीं से हज़रत मुहम्मद जन्नत गए थे।राजधानी होने के अलावा यह एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल भी है। इस शहर में 158 गिरिजाघर तथा 73 मस्जिदें स्थित हैं। इन गिरिजाघरों और मस्जिदों के अलावा भी यहाँ देखने लायक बहुत कुछ है। यरुशलम में चार घटनाएं घटी पहली यह कि ईसा मसीह ने यूहन्ना से दीक्षा ली, दूसरी यह कि वे गधे पर चढ़कर यहां पहुंचे, तीसरी यह कि यहां उन्हें सूली पर चढ़ाया, चौथी यह कि उन्हें मृत मानकर सूली पर से उतारकर उन्हें यहां कि एक गुफा में रखकर उसके उपर से एक बड़ा पत्थर लगा दिया था, पांचवीं यह कि वे इसी शहर के एक स्थान पर सूली पर से उतारे जाने के बाद जिंदा देखे गए और छठी यह कि उन्हें जहां जिंदा देखा गया था वहीं उन्हें दफना दिया गया।
4-यरुशलम के प्राचीन शहर की दीवारों से सटा एक प्राचीन पवित्र चर्च है जिसके बारे में मान्यता है कि यहीं पर प्रभु यीशु पुन: जी उठे थे। जिस जगह पर ईसा मसीह फिर से जिंदा होकर देखा गए थे उसी जगह पर यह चर्च बना है। इस चर्च का नाम है- चर्च ऑफ द होली स्कल्प्चर। कहा जाता है कि इस चर्च में वो चट्टान है जिस पर 33वीं में ईसा मसीह को दफनाने के लिए रखा गया था। माना यह भी जाता है कि यही वह स्थान है जहां ईसा ने अंतिम भोज किया था। यहां पर पत्थर के तीन स्लेब्स है। एक वह जहां पर पहले दफनाया गया दूसरा वह जहां पर जीवित पाए गए और तीसरा वह जहां उन्हें पुन: दफनाया गया था।दरअसल, ईसा मसीह को सुली पर से उतारने के बाद एक गुफा में रख दिया गया था। उस गुफा के आगे एक पत्थर लगा दिया गया था। वह गुफा और पत्थर आज भी मौजूद है। चर्च ऑफ द होली स्कल्प्चर उस गुफा से अलग है।
क्या श्रीनगर में है उनका मकबरा?....
04 FACTS;-
1-कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि 13 से 29 वर्ष की उम्र और उसके बाद 33 से 112 वर्ष की उम्र तक ईसा मसीह भारत में रहे थे। माना जाता है कि इस दौरान उन्होंने भारतीय राज्य कश्मीर में बौद्ध और नाथ संप्रदाय के मठों में रहकर ध्यान साधना की थी। मान्यता है कि यहीं कश्मीर के श्रीनगर शहर के एक पुराने इलाके खानयार की एक तंग गली में 'रौजाबल' नामक पत्थर की एक इमारत में एक कब्र बनी है जहां उनका शव रखा हुआ है।मान्यता है कि ईसा मसीह ने श्रीनगर के पुराने इलाके में प्राण त्यागे थे। ओशो की एक किताब 'गोल्डन चाइल्ड हुड' अनुसार मूसा यानी यहूदी धर्म के पैंगबर (मोज़ेज) ने भी यहीं पर प्राण त्यागे थे। दोनों की असली कब्र यहीं पर है। इसराइल से बाहर कश्मीर ही एक ऐसा स्थान था जहां पर वे शांति से रह सकते थे। क्योंकि वह एक छोटा इसराइल था। यहां पर केवल जीसस ही नहीं मोजेज भी दफनाए गए थे।यह बहुत अच्छा हुआ कि जीसस और मोजेज दोनों की मृत्यु भारत में ही हुई। भारत न तो ईसाई है और न ही यहूदी। परंतु जो आदमी या जो परिवार इन कब्रों की देखभाल करते हैं वह यहूदी हैं। दोनों कब्रें भी यहूदी ढंग से बनी है। हिंदू कब्र नहीं बनाते। मुसलमान बनाते हैं किन्तु दूसरे ढंग की। मुसलमान की कब्र का सिर मक्का की ओर होता है। केवल वे दोनों कब्रें ही कश्मीर में ऐसी है जो मुसलमान नियमों के अनुसार नहीं बनाई गई।'
2-आधिकारिक तौर पर यह मजार एक मध्यकालीन मुस्लिम उपदेशक यूजा आसफ का मकबरा है, लेकिन बड़ी संख्या में लोग यह मानते हैं कि यह नजारेथ के यीशु यानी ईसा मसीह का मकबरा या मजार है। लोगों का यह भी मानना है कि सन् 80 ई. में हुए प्रसिद्ध बौद्ध सम्मेलन में ईसा मसीह ने भाग लिया था। श्रीनगर के उत्तर में पहाड़ों पर एक बौद्ध विहार का खंडहर हैं जहां यह सम्मेलन हुआ था।अरबी भाषा में जीसस को 'ईसस' कहा गया है। काश्मीर में उनको 'यूसा-आसफ़' कहा जाता था। उनकी कब्र पर भी लिखा गया है कि 'यह यूसा-आसफ़ की कब्र है जो दूर देश से यहां आकर रहा' और यहां भी संकेत मिलता है कि वह 1900 साल पहले आया। उस कब्र की बनावट यहूदी है। और कब्र के ऊपर यहूदी भाषा, हिब्रू में लिखा गया है।
महाचेतना नाथ यहूदियों से बहुत नाराज थे क्योंकि ईशा उनके शिष्य थे। महाचेतना नाथ ने ध्यान द्वारा देखा कि ईशा नाथ को कब्र में बहुत तकलीफ हो रही है तो वे अपनी स्थूल काया को हिमालय में छोड़कर इसराइल पहुंचे और जीसस को कब्र से निकाला। उन्होंने ईशा को समाधि से उठाया और उनके जख्म ठीक किए और उन्हें वापस भारत ले आए। हिमालय के निचले हिस्से में उनका आश्रम था जहां ईशा नाथ ने अनेक वर्षों तक जीवित रहने के बाद पहलगाम में समाधि ले ली।
3-'पहलगाम एक छोटा-सा गांव है, जहां पर कुछ एक झोपड़ियां हैं। इसके सौंदर्य के कारण जीसस ने इसको चुना होगा।ईसा मसीह का पहला पड़ाव पहलगाम था। पहलगाम को खानाबदोशों के गांव के रूप में जाना जाता है। बाहर से आने वाले लोग अक्सर यहीं रुकते थे। उनका पहला पड़ाव यही होता था। अनंतनाग जिले में बसा पहलगाम, श्रीनगर से लगभग 96 कि.मी. दूर है।इसके बाद जब जीसस श्रीनगर जा रहे थे तो उन्होंने एक स्थान पर ठहर कर आराम किया था और उपदेश दिए थे। क्योंकि जीसस ने इस जगह पर आराम किया इसलिए उन्हीं के नाम पर इस स्थान का नाम हो गया 'ईश मुकाम'। यह स्थान आज भी इसी नाम से जाना जाता है। पहलगाम से ही बाबा अमरनाथ की गुफा का दर्शन के लिए जाते हैं।इतिहास में पहली बार इसकी चर्चा 1747 में हुई। जब श्रीनगर के सूफी लेखक ख्वाजा मोहम्मद आज़म ने अपनी किताब 'तारीख आज़मी' में लिखा कि ये मज़ार एक प्राचीन विदेशी पैगम्बर और राजकुमार युज़ असफ की है।
4-इसके बाद 1770 में इसके बारे में एक मुकदमे का फैसला सुनाते हुए मुल्ला फाजिल ने कहा, 'सबूतों को देखने के बाद, ये नतीजा निकलता है कि राजा गोपदत्त, जिसने सोलोमन का सिंघासन बनवाया, के समय युज़ असफ घाटी में आए थे। मर कर जिंदा होने वाले उस महान शहजादे ने दुनियावी चीज़ों को छोड़ दिया था. वो अपना पूरा ध्यान सिर्फ इबादत में लगाता था। कश्मीर के लोग, जो हजरत नूह के बाद बुतपरस्त बन गए थे। उन्हें उसने ऊपर वाले की इबादत करने के लिए कहा। वो एक ही ऊपर वाला होने की बात कहते रहते थे। बाद में इस मजार में सैय्यद नसीरुद्दीन को भी दफनाया गया।'बीबीसी में करीब दो दशक पहले सैम मिलर ने एक रिपोर्ट लिखी। उसमें उन्होंने श्रीनगर के बाहर बनी एक प्राचीन रोजाबल दरगाह को जीसस टॉम्ब के तौर पर संबोधित किया केवल वही नहीं यूरोप और अमेरिका से जितने टूरिस्ट कश्मीर जाते हैं, उन सभी की उत्सुकता श्रीनगर जाकर जीसस टॉम्ब देखने की होती है।माना जाता है कि निधन के बाद ईसा मसीह को यहीं दफनाया गया। ये कब्र आज भी मौजूद है।इसे दो हजार साल से कहीं ज्यादा पुराना बताया जाता है।इसी रिपोर्ट में मिलर लिखते हैं कि ये दरगाह एक पुरानी बिल्डिंग में है।पहले तो इसके बारे में बहुत कम लोग जानते थे लेकिन अब ज्यादातर लोग यहां जाना चाहते हैं लेकिन ये इतना आसान नहीं रह गया है।श्रीनगर के रोजाबल श्राइन को ईसा मसीह की करीब दो हजार साल पुरानी कब्र माना जाता है।
....SHIVOHAM...
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