क्या शिवलिंग पर दूध चढ़ाना इलाज है?क्या शिवलिंग में चढ़ाया गया प्रसाद नही खाना चाहिये ?
क्या शिवलिंग पर दूध चढ़ाना भक्ति नही बल्कि इलाज है?
08 FACTS;- 1-शिवलिंग, भगवान शिव द्वारा लोकहित के लिए रचा गया एक महायंत्र है. आभामंडल की सर्वोतम आकृति ही शिवलिंग की आकृति है. देवी देवताओ का आभामंडल उल्टे अंडे के आकार का होता है, जो की सर्वोतम आभामंडल आकार है. शिवलिंग आभामंडल और ऊर्जा चक्रो मतलब पंचतत्वो के उपचार का यंत्र है. शिवलिंग एक मात्र ऐसा यंत्र है जो एक ही समय में नकारात्मक ऊर्जाए हटाने और सकारात्मक ऊर्जाए स्थापित करने मे सक्षम है. जब शिवलिंग पर दूध, शहद, घी और जल चढाया जाता है तो चढाने वाले की नकारात्मक ऊर्जाए शिवलिंग द्वारा हटा दी जाती है और सकारात्मक ऊर्जाए प्रदान की जाती है.
2-अध्यात्म के वैज्ञानिक जिन्हें पहले ऋषि कहा जाता था... आज रिसर्चर कहा जाता है. उन्होंने लम्बे शोध के बाद नकारात्मक उर्जाओं को हटाने के लिये शिवलिंग का सहारा लिया. शिवलिंग पर दूध भगवान शिव को खुश करने के लिये नही बल्कि अपनी उर्जाओं और शरीर के पंचतत्व को उपचारित करने के लिये चढ़ाया जाता है.शिवलिंग की जलहरी में बह रहे तरल पदार्थ ही चढ़ाने वाले की नकारात्मक उर्जायें लेकर बहते हैं;इसीलिए उन्हें न छुवें.परन्तु शिवलिंग के शिखर पर चढ़ी ठोस वस्तुओं को प्रसाद स्वरूप ग्रहण करें. 3-शिवलिंग पर चढ़ाये गये तरल पदार्थ सीधे नाली में बहा दिये जाते हैं. क्योंकि उनमें नकारात्मक उर्जायें बह रही होती हैं. जैसे ही हम शिवलिंग के पास जाते हैं, आभामंडल के भीतर शोधन क्रिया अपने आप शुरू हो जाती है. प्राकृतिक रूप से आभामंडल से नकारात्मक उर्जायें खींचकर जलहरी के जरिये उनकी ग्राउंडिंग कर दी जाती है. ताकि वे रुकावटी उर्जायें दोबारा लौटकर हमारे पास न आ सकें. शिवलिंग से बह रही चीजों को छूने भर से रोग व रुकावटें पीछे लग सकती हैं. क्योकी शिवलिंग से बहकर नाली में जा रहे दूध, पानी आदि हमारी नकारात्मक ऊर्जाओ को साथ लेकर बह रहै होते है, इनमें भयानक रेडिएशन से भी जादा खतरनाक नकारात्मकता होती है. इसे ना छूवें. 4-क्या शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की बजाय उसे गरीब बच्चों में बांटने से नकारात्मक उर्जाओं की सफाई हो सकती है ? सफाई तो हो सकती है मगर दूषित उर्जाओं वाला व्यक्ति जिन बच्चों को दूध देगा उनकी उर्जायें बहुत तेजी से बिगड़ेंगी. वे बच्चे कई तरह की मानसिक और भावनात्मक बीमारियों के शिकार हो जाएंगे. उनमें अपराध और नफरत के भाव दूसरों की तुलना में कई गुना अधिक पनपेंगे. सही मायने में ये कृत्य पीढ़ियों को दूषित करने वाला साबित होगा. जो लोग गरीब बच्चों की मदद करना चाहते हैं वे दुकानदार को पैसे दे दें. और उससे कहें कि बच्चों को दूध बांटें. लेकिन इससे उस व्यक्ति की उर्जाओं की सफाई नही होगी. दूसरों की मदद करने की खुशी अवश्य मिलेगी. 5-क्या दूध वाले से दूध लेने में उसकी नकारात्मक उर्जायें भी लोगों पर आ जाती हैं ? दूध में प्राकृतिक रूप से वायुतत्व व जलतत्व का शोधन करने की क्षमता होती है. दूध वाले बड़ी कठोरता के साथ गाय या भैंस के बच्चों के हिस्से का दूध छीनकर लोगों तक बहुंचाते हैं. ज्यादातर दूध वाले तो भैंस के बच्चों को मार ही डालते हैं. ताकि उन्हें दूध न पिलाना पड़े. इन सब कारणों से दूध बेचने वालों में बहुत अधिक नकारात्मकता होती है. जिससे अक्सर वे लड़ाई झगड़े और आर्थिक संकट में फंसे रहते हैं. अगर उन्होंने दूध के पात्र में हाथ लगाकर उसे नापा है तो नकारात्मक उर्जायें दूध लेने वाले पर जरूर पहुंचेंगी. जिससे मन में उदासी और चिड़चिड़ान बढ़ता है. इससे बचने के लिये दूध लेने के तुरंत बाद उसे उबाल दें. उसे दूध लेते समय मन में संकल्प करें कि इस दूध की कीमत बहुत जल्दी ही चुका देंगे. 6-क्या शिवलिंग पर अधिक दूध नही चढ़ाना चाहिये? आज के जमाने में लोग सदगति पाने के लिये या अपने कर्म सुधारने के लिये शिवलिंग पर दूध नही चढ़ाते. उन्हें समस्यायें हल करने के उपाय के तौर पर दूध चढ़ाते हैं. किसी ज्योतिषी, तांत्रिक, पुजारी, गुरु आदि ने बताया होता है दूध उनके अनाहत चक्र और दूध में मिला पानी स्वाधिष्ठान चक्र की रुकावटी व बीमार उर्जाओं को अपने साथ लेकर शिवलिंग पर चला जाता है. शिवलिंग अपने प्राकृतिक गुण के तहत सभी नकारात्मक उर्जाओं को पाताल अग्नि में भेजकर भस्म कर देते हैं.जरूरत से ज्यादा दूध चढ़ाने से नकारात्मक उर्जायें खत्म होने के बाद भी दूध से बना उर्जाओं को लिंक अनाहत चक्र की उर्जायें निकालकर उन्हें शिवलिंग पर बहाता रहता है. ये बड़ा नुकसान है. इसलिये जितना बताया जाये, उतना ही दूध चढ़ायें, उसमें पानी जरूर मिला लें. इससे अतिरिक्त उर्जाओं के बह जाने का खतरा कम हो जाता है. 7-क्या रुद्राभिषेक के समय अधिक दूध चढ़ने से भी नुकसान होता है?
वास्तव में, रुद्राभिषेक विशुद्ध रूप से वैज्ञानिक क्रिया है. उसमें अभिषेक से पहले विभिन्न क्रियाओं के द्वारा उर्जाओं का शोधन करके सभी चक्रों को संतुलित कर लिया जाता है. तब वे उर्जायें ग्रहण करने के लिये तैयार हो जाते हैं. अभिषेक के दौरान मंत्रों के बीच श्रंगी से निकल रही धारा शिवलिंग के शिखर से टकराकर बहुत बड़ी तादाद में सकारात्मक उर्जायें पैदा करती हैं. जिसका लाभ कई किलोमीटर के दायरे में लिया जा सकता है. रुद्राभिषेक के दौरान रुद्री पाठ के अलावा कोई दूसरी आवाज नही सुनाई देनी चाहिये. संकल्प लेने के बाद मोबाइल पर या आपस में बात चीत बिल्कुल न करें. उस समय उस शिवलिंग पर कोई दूसरा कुछ भी न चढ़ा रहा हो. कोई मंत्र भी नही गूंजना चाहिये. शोर बिल्कुल न हो. मौसम अनुकूल होना चाहिये. ताकि अभिषेक से प्राप्त हो रही उर्जायें समान बनी रहें. मंत्र जाप त्रुटि रहित हो. उसे कराने वाला आचार्य एेसा हो जिसकी गतिविधियां देखकर मन में खुद ब खुद श्रद्धा उत्पन्न हो जाये. एेसे में किये गये रुद्राभिषेक का प्रभाव चमत्कार से कम नही होता. रुद्राभिषेक कराने वाले के अनाहत चक्र पर मौजूद शिव तत्व जाग जाता है. इसी को कहते हैं भगवान शिव का खुश हो जाना.
8-क्या मंदिरों में चढ़ाया गया प्रसाद नही खाना चाहिये?
02 POINTS;-
1-प्रसाद का अर्थ होता है अच्छी और उर्जावान चीजों को मिल बांटकर खाना. इसके लिये विधान है कि स्वादिस्ट और सकारात्मक वस्तुओं को इकट्ठा किया जाये. इष्ट को भोग लगाकर रखा जाये. फिर सामूहिक रूप से पूजा-अर्चना, भजन कीर्तन करके उन वस्तुओं को दैवीय उर्जाओं से चार्ज किया जाये. फिर उन्हें ग्रहण किया जाये. तो कल्पना से भी अधिक सकारात्मक उर्जायें मिलती हैं. जिन्हें देव आशीर्वाद कहा जाता है. उनसे तन-मन-धन की सक्षमता प्राप्त होती है. मगर आजकल प्रसाद के मायने बदल गये हैं. लोग इस उद्देश्य से प्रसाद नही चढ़ाते. उनका प्रसाद समस्यायें समाप्त करने के लिये चढ़ाया जाता है. ज्योतिषी, तांत्रिक, पुजारी, वास्तुविद, गुरु या ऐसे किसी के द्वारा उन्हें सलाह दी जाती है कि फला चीज का प्रसाद चढ़ाओ को मुसीबत खत्म हो जाएगी.
2-इस तरह का प्रसाद मुसीबतों की उर्जायें लिये होता है. जिसने चढ़ाया है उसके आभामंडल व उर्जा चक्रों में मौजूद नकारात्मक उर्जायें उसमें आ चुकी होती हैं. अपनी नकारात्मकता हटाने के लिये वो प्रसाद बांटते हैं. ऐसा प्रसाद मानसिक और भावनात्मक बीमारियों के साथ ही कई बार शारीरिक और आर्थिक समस्यायें भी बढ़ाता है. इसे भिखारियों में ही बाटा जाना चाहिये. या फिर मंदिर का पुजारी मंत्र विज्ञान की तकनीक अपनाकर उन वस्तुओं में आयी नकारात्मकता हटाये. तब ग्रहण करने योग्य बनेगा. इसमें 20 से 30 मिनट का समय लगता है. ऐसी प्रक्रिया अपनाने के लिये ज्यादातर पुजारियों के पास टाइम नही होता. कुछ तो इसे जानते ही नहीं हैं. वे प्रसाद का डिब्बा देव मूर्ति के समक्ष ले जाकर वापस कर देते हैं. कहते हैं भोग लग गया. भगवान की प्रेरणा से बना ये विज्ञान उपचार के लिये हैं. इसका भगवान की खुशी नाखुशी से कुछ लेना देना नही. क्या शिवलिंग में चढ़ाया गया प्रसाद नही खाना चाहिये.?
03 FACTS;- 1-हम सभी देवी-देवताओं का प्रसाद ग्रहण करते हैं लेकिन लेकिन कुछ लोगों के अनुसार महादेव जी के प्रतीक शिवलिंग पर चढ़ा प्रसाद निषेध माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि भूत-प्रेतों का प्रधान माना जाने वाला गण ‘चण्डेश्वर’ भगवान शिव के मुख से ही प्रकट हुआ था, वह हमेशा शिवजी की आराधना में लीन रहता है और शिवलिंग पर चढ़ाया गया प्रसाद उसी के हिस्से में जाता है।चण्डेश्वर का अंश यानी प्रसाद ग्रहण करना भूत-प्रेतों का अंश ग्रहण करना माना जाता है। इसलिए अगर कोई इस प्रसाद को खाता है, तो वह भूत-प्रेतों का अंश ग्रहण कर रहा होता है। यही वजह है कि शिवलिंग पर चढ़ाया गया प्रसाद-नैवेद्य खाने से मना किया जाता है, किंतु कुछ खास शिवलिंग पर चढ़ाया प्रसाद खाया जा सकता है. 2-यहां यह ध्यान रखना आवश्यक है कि केवल कुछ परिस्थितियों में ही इस प्रसाद को ग्रहण करना निषेध है.शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार आप शिवलिंग का प्रसाद ग्रहण करें या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि शिवलिंग किस धातु या पदार्थ से बना है। शिव पुराण के अनुसार जहां चण्ड का अधिकार हो, वहां शिवलिंग पर अर्पित प्रसाद मनुष्यों को ग्रहण नहीं करना चाहिए। किंतु जो चण्ड के अधिकार में नहीं है, शिव को अर्पित वह प्रसाद ग्रहण किया जा सकता है।साधारण मिट्टी, पत्थर अथवा चीनी मिट्टी से बने शिवलिंग पर चढ़ाया गया भोग प्रसाद रूप में ग्रहण नहीं करना चाहिए। किंतु अगर शिवलिंग धातु, बाणलिंग से बना है अथवा पारद शिवलिंग पर चढ़ाया गया प्रसाद सर्वथा ग्रहणीय होता है। यह चंडेश्वर का अंश ना होकर महादेव के हिस्से में होता है और इसे ग्रहण करने से व्यक्ति ना केवल दोषमुक्त रहता है बल्कि उसके जीवन की बाधाएं भी नष्ट होती हैं। 3-इसके अतिरिक्त अगर किसी शिवलिंग की शालिग्राम के साथ पूजा की जाती है, तो वह चाहे किसी भी पदार्थ से बना हो, उसपर अर्पित किया गया प्रसाद दोषमुक्त होता है और उसे ग्रहण किया जा सकता है। साथ ही शिवजी की साकार मूर्ति पर चढ़ाया गया प्रसाद भी पूर्ण रूप से ग्रहणीय होता है और व्यक्ति को शिव कृपा प्राप्त होती है।साधारण पत्थर, मिट्टी एवं चीनी मिट्टी से होता उन शिवलिंगों पर चढ़ा प्रसाद किसी नदी अथवा जलाशय में प्रवाहित कर देना चाहिए। .
कौन सा प्रसाद ग्रहण किया जा सकता है?-
03 FACTS;- 1-शिव पुराण कहता है कि शिव जी का प्रसाद सभी प्रकार के पापों को दूर करने वाला है। जो शिव जी के प्रसाद के दर्शन भी कर लेता है उसके असंख्य पाप नष्ट हो जाते हैं जाते हैं फिर प्रसाद ग्रहण करने के पुण्य का तो अनुमान ही नहीं लगाया जा सकता है।शिवलिंग के साथ शालग्राम होने पर भी दोष समाप्त हो जाता है। इसलिए शालग्राम के साथ शिवलिंग की पूजा करके शिवलिंग पर चढ़ा हुआ प्रसाद खाने से किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होता है।जो प्रसाद शिव की साकार मूर्ति को अर्पित किया गया हो वह प्रसाद ग्रहण करने से भी किसी तरह की हानि नहीं बल्कि शिव की कृपा प्राप्त होती है। 2-इसके अलावा "स्वयंभू लिंग" अर्थात भक्तों के कल्याण के लिए स्वयं प्रकट हुए सभी शिवलिंग तथा भगवान शिव को समर्पित सभी बारह ज्योर्तिलिंग (सौराष्ट्र का सोमनाथ, श्रीशैल का मल्लिकार्जुन, उज्जैन का महाकाल, ओंकार का परमेश्वर, हिमालय का केदारनाथ, डाकिनी का भीमशंकर, वाराणसी का विश्वनाथ, गोमतीतट का त्र्यम्बकेश्वर, चिताभूमि का वैद्यनाथ, दारुकावन का नागेश्वर, सेतुबन्ध का रामेश्वर और शिवालय का घुश्मेश्वर) चण्ड के अधिकार से मुक्त माने गए हैं, यहां चढ़ाया प्रसाद ग्रहण करने व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। 3-सिद्ध किए गए शिवलिंग: शास्त्रों के अनुसार जिन शिवलिंगों की उपासना करते हुए किसी ने सिद्धियां प्राप्त की हों या जो सिद्ध भक्तों द्वारा प्रतिष्ठित किये गए हों (उदाहरण के लिए काशी में शुक्रेश्वर, वृद्धकालेश्वर, सोमेश्वर आदि शिवलिंग जो देवता अथवा सिद्ध महात्माओं द्वारा प्रतिष्ठित माने जाते हैं), उसपर चढ़ाया प्रसाद भी भगवान शिव की कृपा का पात्र बनाता है। इसके अतिरिक्त शिव-तंत्र की दीक्षा लेने वाले शिव भक्त सभी शिवलिंगों पर चढ़ा प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं। उनके लिए भगवान शिव के हर स्वरूप पर चढ़ाया गया प्रसाद ‘महाप्रसाद’ समझा जाता है और ग्रहणीय है।
शालिग्राम और नर्मदेश्वर शिवलिंग;-
05 FACTS;- 1-घर में शालिग्राम जो नेपाल की गंडकी नदी से लाये जाते हैं...को रखना बहुत शुभकारी होते है. हजारों साल तक नदी के प्रवाह में पड़े काले पत्थर घिसते घिसते शालिग्राम बल जाते हैं. पानी का बहाव विशाल उर्जा पैदा करता है. इसी कारण नदी के बहाव से शालिग्राम अत्यधिक उर्जावान हो जाते हैं. हजारों साल तक हर मौसम की उर्जाओं का संकलन उनमें होता रहता है. जिससे शालिग्राम की उर्जायें भगवान विष्णु की उर्जाओं के समान पोषण कारी हो जाती हैं. पद्म पुराण में इन्हें भगवान विष्णु का ही रूप बताया गया है.शालिग्राम और नर्मदेश्वर शिवलिंग के समान आभामंडल की लगभग सभी 49 पर्तों को एक साथ उपचारित करने की क्षमता इनके अलावा किसी और अध्यात्मिक उपकरण में दुर्लभ ही मिलती है. 2-जल प्रवाह के कारण शालिग्राम में सकारात्मक ब्रह्मांडीय उर्जायें स्वयं स्थापित होती हैं, इसलिये इनमें प्राण प्रतिष्ठा का कोई अनुष्ठान करने की आवश्यकता नही होती.इनकी विशाल उर्जाओं का लाभ उठाने के लिये अध्यात्म विज्ञान ने बड़ी ही सरल और घरेलू तकनीक दी है. आप भी यही अपना सकते है.. एक साफ शंख में पानी लेकर उससे इन्हें स्नान करायें. फिर पंचामृत से स्नान करायें. पंचामृत या तुलसी के पत्ते के सम्पर्क में आते ही शालिग्राम हजारों साल से अपने भीतर समेटे साकारात्मक उर्जायें उनमें छोड़ देते हैं. विज्ञान की भाषा में इसे रासायनिक क्रिया और भक्तों की भाषा में इसे भगवान की कृपा कहते हैं. इसीलिये शालिग्राम पर सदैव तुलसी दल चढ़ाकर रखते हैं. ये तुलसी दल या शालिग्राम के स्नान से बना पंचामृत या चरणामृत प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है.ये प्रसाद मणिपुर चक्र, मूलाधार चक्र, विशुद्धि चक्र और आज्ञा चक्र को एक साथ उपचारित करता है. साथ ही आभामंडल की उर्जाओं को शक्ति प्रदान करता है. जिससे श्रद्धालुओं का आत्मबल बढ़ता है, भावनायें अनुशासित होती हैं, सफलतायें प्रबल होती है और रोग प्रतिरोधक शक्ति मजबूत होती है. 3- इसी तरह नर्मदेश्वर शिवलिंग भी घर में उपयोगी होते हैं. नर्मदा नदी में हजारों साल तक बहते रहने के बाद कई पत्थर शिवलिंग का आकार ले लेते हैं. इनकी उर्जाओं में गजब की क्षमता होती है. ये श्रद्धालुओं की उर्जाओं से सभी तरह की नकारात्मकता खींच लेते हैं. उसी क्षण सकारात्मक उर्जायें देकर लगभग सभी उर्जा चक्रों को उर्जावान बनाते हैं. नर्मदेश्वर शिवलिंग की विशाल उर्जाओं के कारण ही इन्हें साक्षात् शिव माना जाता है. भगवान शिव की तरह ही ये भक्तों की समस्याग्रस्त उर्जाओं का जहर पी जाने में सक्षम होते हैं. शिव की तरह ही ये श्रद्धालुओं के जीवन में सुख उत्न्न करने वाली उर्जायें बिना मांगे ही देने में सक्षम होते हैं. 4-शालिग्राम और नर्मदेश्वर शिवलिंग के समक्ष बैठने मात्र से श्रद्धालुओं की उर्जाओं में निखार आने लगता है. मगर इनके आस पास रहने के दौरान गुस्सा या निंदा के भाव मन में बिल्कुल भी न आने पायें. इससे सकारात्मक उर्जायें भी नकारात्मकता में बदल जाती हैं.प्रमाण के लिये किसी व्यक्ति का औरा चित्र लीजिये. फिर उसे 20 मिनट नर्मदेश्वर शिवलिंग या शालिग्राम के समक्ष बैठा दीजिये. उसके बाद दोबारा औरा फोटो लीजिये. फर्क उसी समय दिख जाएगा.चूंकि नर्मदेश्वर शिवलिंग या शालिग्राम सभी उर्जा चक्रों और आभामंडल की सभी पर्तों की सफाई और उर्जीकरण करते हैं इसलिये इनकी उर्जाओं में तन-मन-धन के सभी दुख हटाने और सुख स्थापित करने की क्षमता होती है. 5-अध्यात्म विज्ञान ने नर्मदेश्वर शिवलिंग के उपयोग की तकनीक भी बहुत सरल दी है. इन पर जल चढ़ाने मात्र से सभी लाभ देने वाली उर्जायें प्राप्त हो जाती हैं. मगर शिवलिंग से बहकर बाहर आने वाला निर्वाण जल दूषित होता है. इसका निस्तारण सावधानी से किया जाना चाहिये. वो जल इधर उधर न फैलने पाये और हाथ में न छूने पाये. उसे सीधे नाली में बहा दें. जैसा मंदिर में होता है. निर्वाण जल के निष्कासन की असुविधा के कारण ही कुछ विद्वान घरों में शिवलिंग न रखने की सलाह देते हैं. नर्मदेश्वर पारद शिवलिंग की शक्तियां प्राप्त करने के इच्छुक लोगों को तर्क नही करना चाहिये. इससे उर्जायें तेजी से नष्ट होती हैं.नर्मदेश्वर की तरह पारद शिवलिंग में भी श्रद्धालुओं की उर्जाओं की सफाई और उर्जन की बड़ी क्षमता होती है. इन पर रोज जल चढ़ाने की जरूरत नही होती. पारद शिवलिंग पर धूल बिल्कुल न जमने पाये इसका विशेष ध्यान रखें. पारद शिवलिंग में पारे की मात्र और शोधन निर्धारित से कम हो तो वो हितकारी नही होता.
....SHIVOHAM....
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