क्या हैं प्राणिक हीलिंग ? PART-02
ची एनर्जी फ्लो कैसे बढ़ाये?-
02 FACTS;-
1-Chi power/ Life force / प्राण उर्जा या प्राण शक्ति का प्रयोग Medicine, Martial arts and Meditation में किया जाता है....अपने हाथों के मूवमेंट के जरिए एनर्जी बॉल बनाना एक एक्सरसाइज है।जिसमें हम भावना शक्ति के द्वारा अपनी '' की'' एनर्जी पावर को एक आकार दे सकते हैं।किसी भी तरह की मानसिक शक्ति के निर्माण में ''ची ''एनर्जी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।To maintain pain-free, optimal health, chi or energy should circulate throughout your entire body, without disruption, in a smooth, powerful fashion. Chi energy must flow freely, when it flows too fast it is dispersed and the result is lack of chi, when it flows to slowly, the result is stagnation. Both, lack or stagnation of chi are the origin of illness.
2-सर्वप्रथम आरामदायक स्थिति में बैठ कर खुद को शिथिल कर ले। सांसो को अन्दर खींचे और मस्तिष्क को शून्य बना ले।
जितनी देर सांसे अन्दर रहती है उतनी देर खुद को भावना दे कि ''मेरे शरीर के इस हिस्से में Prana Energy Flow कर रही है''। अपनी दोनों हथेलियों को कुछ सेकंड के लिए तेजी से रगड़े। इससे आपके हाथों में एनर्जी फ्लो बढ़ जाएगा।
आपको अपने हाथों के अंदर बढ़ी हुई एनर्जी का आभास होगा।अब आप अपने दोनों हाथों को प्रार्थना की मुद्रा में जोड़ ले।और
तीन गिनने तक जोड़े रहे।इसके बाद धीरे से 3 इंच की दूरी बनाकर अपने दोनों हाथों को बार-बार आगे लाएं ;फिर पीछे लाएं। जब आप इस एक्सरसाइज को रिपीट करेंगे तो एनर्जी उत्पन्न /बिल्ड होगी।इस प्रैक्टिस से आपकी एनर्जी स्ट्रांग होगी।
जहां भी कहीं दर्द हो या समस्या हो उस बॉडी पार्ट में जब आप अपना हाथ 1 इंच की दूरी पर रखेंगे तो वहां पर तुरंत ही
हीलिंग हो जाएगी और आपको तुरंत ही रिलीफ मिलेगा।
3-On both the front and the back of your wrists there are many meridians, also known as acupuncture points, where you can see the skin lines. Place your wrists in a crisscross position with both anterior (front) wrists facing each other about one inch apart and hold that position for several seconds.
Then do the same with both posterior (back) wrists facing each other about one inch apart in a crisscross position or several seconds. With practice, you will begin to feel your energy. Practice doing
this several times a day.This exercise connects the full circuit of your chi energy and clears away blockage along the main meridians throughout your body. It also increases the chi flow by balancing the yin and yang energy within.
4-To complete your energetic circuit, place the tip of your tongue on the roof of your mouth in the dip behind the center of your teeth. Hold it there for several seconds – minutes if possible – as this fully completes the chi energy circuit flow from your brain to your toes and everything else in-between throughout your body.
ची एनर्जी फ्लो कैसे घटता है ?-
05 FACTS;-
1-The other element that creates stagnation of chi energy flow is our posture, since our childhood we have developed habits and ways to use our body, to stand, walk or sit, not all of these are right.
Some of our postures and ways to use our body need to be corrected in order to restore a healthy and balanced chi flow. To change our posture needs full attention, we need to observe and feel our posture when we stand, walk, sit, eat, watch TV or work.
If our lower back is arched when we stand our walk, it creates a stagnation of chi energy in our pelvis
and is the origin of back aches.If we hold our head with our chin away from the throat, we create a chi stagnation around the shoulders and upper back. These two are the main bad habits almost all of us have, but there are many other habits we have that we need to become aware of.
2-शरीर का अपना एक अलाइनमेंट होता है, जिसमें बैठते या खड़े होते व़क्त पीठ सीधी रखना, चलते व़क्त सीधे चलना, खड़े होते व़क्त दोनों पैरों पर समान वज़न डालकर सीधे खड़े रहना आदि है। ग़लत बॉडी पोश्चर के कारण
ची एनर्जी फ्लो ब्लॉक हो जाता है। सही बॉडी पोश्चर हमें सही ब्रीदिंग में नेचुरली मदद करता है।इससे ब्रेन में ऑक्सीजन की सप्लाई सही तरी़के से होती है, जिससे हमारा मस्तिष्क बेहतर ढंग से काम करता है और हमारी सोचने-समझने की शक्ति भी बेहतर होती है। जोड़ों पर बेवजह दबाव नहीं पड़ता, जिससे उनमें तनाव नहीं आता ।यह रीढ़ की हड्डी कोे एब्नॉर्मल पोज़ीशन में फिक्स होने से बचाता है।
3-ध्यान रखें कि खड़े होने पर आप आगे की तरफ़ झुके हुए नहीं रहें। गर्दन व पीठ सीधी रखें, पर ध्यान रहे कि आपका शरीर स्टिफ नज़र न आए.खड़े रहने पर हमेशा दोनों पैरों पर समान वज़न रखें। कुछ लोग एक पैर पर पूरा वज़न डालते हुए खड़े होते हैं, जिससे उस पैर की मसल्स पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जो सही नहीं है।वज़न उठाते व़़क्त स़िर्फ कमर से न झुकें, बल्कि घुटनों को भी मोड़ें, ताकि कमर पर पूरा दबाव न पड़े।अगर आपको कोई सामान भारी लग रहा है, तो उसे सीधे ज़मीन से उठाने की बजाय, पहले किसी कुर्सी या मेज़ पर रखें, फिर ऊपर उठाएं. इससे आपके जोड़ों पर बेवजह दबाव नहीं पड़ता।.
4-बॉडी पोश्चर में सबसे ज़्यादा ग़लती लोग बैठने में करते हैं. आज हमारा वर्क कल्चर बदल गया है। आज ज़्यादातर लोग घंटों कंप्यूटर के सामने बैठकर काम करते हैं, इसलिए आपको इस पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है। कंप्यूटर के सामने बैठते व़क्त अगर आप अपने बॉडी पोश्चर का ध्यान नहीं रखेंगे, तो आप सिरदर्द, गर्दन व कंधों में दर्द, कोहनी, हाथ की उंगलियों और कलाई में दर्द, पीठदर्द आदि से परेशान हो सकते हैं।कुछ लोग आधी कुर्सी का ही इस्तेमाल करते हैं और कुर्सी में अपनी बैक को सपोर्ट दिए बिना, आगे की तरफ़ झुके रहते हैं, जिससे उनकी रीढ़ की हड्डी पर अनावश्यक दबाव पड़ता है।
5-कुर्सी पर बैठे हैं, तो पैर जांघों के 90 डिग्री कोण पर ज़मीन पर हों. अगर पैर ज़मीन पर नहीं पहुंच रहे, तो प्लेटफॉर्म की मदद लें।कभी भी पैरों को क्रॉस करके न बैठें। न ही पैंट की बैक पॉकेट में पर्स, डायरी आदि रखकर बैठें।कुर्सी अगर एडजस्टेबल है, तो उसे अपनी ज़रूरत व सुविधा के अनुसार ऊपर व नीचे करके इस्तेमाल करें ।कुर्सी में बैक सपोर्ट के लिए आप कुशन का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।लगातार ज़्यादा देर तक कुर्सी पर न बैठे रहें। हर आधे घंटे में उठकर थोड़ा टहलें और बॉडी को स्ट्रेच करें । गर्दन व पीठ की मसल्स को रिलैक्स करने के लिए हफ़्ते में एक बार मसाज लें।
प्राण चिकित्सा की सात पद्धतियाँ;-
07 FACTS;-
मास्टर चोआ कोक्सुई ने प्रारंभिक प्राण चिकित्सा की सात मूल पद्धतियाँ बतायी हैं, जिनके आधार पर प्राणचिकित्सा दी जाती हैं। ये सात पद्धतियाँ हैं...
1-हाथों को संवेदनशील बनाना
2-जाँच प्रक्रिया
3-सफाई /Cleaning
4-रोगी की ग्रहणशीलता को बढ़ाना
5- हाथ चक्र पद्धति द्वारा प्राण शक्ति उर्जित करना ,एकत्रित करना और प्रक्षेपण करना।
6-प्रक्षेपित प्राणशक्ति को स्थिर करना।
7-प्रक्षेपित प्राणशक्ति को मुक्त करना।
सात पद्धतियों का वर्णन;-
07 FACTS;-
1-हाथों को संवेदनशील बनाना;-
06 POINTS;- प्राण चिकित्सा की पूरी प्रक्रिया में हाथों की संवेदनशीलता का अत्यधिक महत्व है, क्योंकि इसमें उपचारक हाथों के माध्यम से ही रोग का निदान, शरीर का मार्जन एवं उर्जा का प्रक्षेपण करता है। इसलिये उपचारक के हाथों का संवेदनशीलता होना अत्यावश्यक है।हाथों की संवेदनशीलता को बढ़ाने के लिये अनेक व्यायाम बताये गए हैं...
1-रीढ़ का व्यायाम- अपनी बांहों को सामने की ओर उठाते हुये रीढ़ की हड्डी को बाँये-दाँये मोड़ना। ऐसा लगभग 10 बार करना चाहिये।
2-कुल्हे का व्यायाम- कूल्हे को बाँये-दाँये 10 बार घुमाना।
3-गर्दन का व्यायाम- गर्दन का 10-10 बार बाँये और दाँये घुमाना। ध्यान दें यह अभ्यास उन व्यक्तियों को नहीं करना चाहिये, जिनकी कैरोटिड धमनियाँ अवरूद्ध हैं।
4-कंधों का व्यायाम- अपने कंधों को 10-10 बार सामने और पीछे की ओर घुमाना।
5-कोहनी एवं मुटठी का व्यायाम- मुट्ठी को बन्द करते हुये कोहनी को अपनी ओर मोड़ना और फिर मुट्ठी खोलते हुये कोहनी को आगे की ओर झटकना। इस अभ्यास को भी 10 बार करना चाहिये।
6-कलाई का व्यायाम- अपनी बाँहों को बगल की ओर से ऊँचा उठाते हुये कलाइयों को 10 बार घड़ी की सुई की दिशा में और 10 बार विपरीत दिशा में घुमाना चाहिये। इस प्रकार हाथों को संवेदनशील बनाने के लिये कुछ समय तक लगातार उपर्युक्त व्यायाम करने चाहिये। हाथों को संवेदनशील बनाने की विधि;-
04 POINTS;-
प्राण चिकित्सा में हाथों को संवेदनशील बनाने की विधि बतायी गयी है-
1-सर्वप्रथम उपचारक को जीभ को तालू पर लगाना चाहिये।
2-इसके उपरान्त अंगूठों द्वारा हथेलियों के मध्यभाग को दबाना चाहिये। ऐसा करने से हथेलियों के मध्यभाग के चक्र क्रियाशील होने लगते हैं और मध्यभाग में एकाग्रता बनाना आसान हो जाता है।
3-अब तनावमुक्त रहते हुये अपने दोनों हाथों को परस्पर सामने लगभग 3 इंच की दूरी पर रखना चाहिये।
4-इसके बाद लगभग 5-10 मिनट तक अपना ध्यान हथेलियों के मध्यभाग पर केंद्रित करना चाहिये। लयबद्ध दीर्घ श्वास-प्रश्वास करना चाहिये। ऐसा करने पर हथेलियों के बीच वाले भाग में गर्मी, एक प्रकार की झुनझुनी, कंपन या दबाव महसूस होने लगता है। यह हाथों के संवेदनशील होने का संकेत है।
NOTE;-
हाथों की संवेदनशीलता के लिये लगभग एक महीने की अवधि तक इस प्रकार का अभ्यास करना चाहिये।ऐसा भी संभव है कि पहले अभ्यास में किसी को अपने हाथ में कुछ भी महसूस न हों, किन्तु इससे निराश नहीं होना चाहिये और अपना अभ्यास लगातार जारी रखना चाहिये। लम्बे समय तक निरन्तर अभ्यास करने पर निश्चित रूप से हाथ संवेदनशील होने लगते हैं। हाथों के संवेदनशील होने के बाद ही जाँचने का कार्य प्रारंभ करना चाहिये। 2-जाँच प्रक्रिया;- हाथों को संवेदनशील बनाने के बाद जाँचने की प्रक्रिया प्रारंभ होती है। रोग के ठीक निदान के लिये आन्तरिक आभा के साथ-साथ बाहरी आभा एवं स्वास्थ्य आभा की जाँच करना अत्यन्त सहायक होता है, किन्तु ऐसा करना आनिवार्य नहीं होता है। रोग का पता लगाने के लिये मुख्य रूप से आन्तरिक आभा की ही जाँच की जाती है, क्योंकि बाहरी एवं स्वास्थ्य आभा, आन्तरिक आभा की तुलना में अधिक सूक्ष्म होती है। इसलिये जब हाथ बहुत ज्यादा संवेदनशील हो जाते हैं, तभी इनकी जाँच करना संभव हो पाता है।हाथ में आभा की जाँच करने पर हमेशा अपना ध्यान हथेलियों के बीच में ही केन्द्रित करना चाहिये। यहाँ तीनों प्रकार की आभा को जाँचने की विधि दी जा रही है.... 1-बाहरी आभा को जाँचने की विधि;- 02 POINTS;-
1-उपचारक को सर्वप्रथम अपने हाथों को अपने शरीर से कुछ दूरी पर रखकर अपनी हथेलियों को रोगी की तरफ करके रोगी
से लगभग चार मीटर की दूरी पर खड़े होना चाहिये।अब उपचारक को अपने हथेलियों के मध्यभाग में ध्यान केन्द्रित करते हुये धीरे-धीरे रोगी की ओर बढ़ना चाहिये और रोगी की बाहरी आभा को महसूस करना चाहिये।ऐसा करने पर जब हाथ में
गर्मी, दबाव या कंपन जैसा महसूस होने पर रूक जाना चाहिये, क्योंकि इस समय यह बाहरी आभा को अनुभव करने का संकेत है।
2-अब बाहरी आभा के आकार-प्रकार को जाँचने का प्रयास करना चाहिये। सिर से लेकर कमर तक और कमर से पैर तक। आगे से पीछे तक उसकी चौड़ाई कितनी है इत्यादि।अधिकांशतया बाहरी आभा का आकार एक उल्टे अंडे के सामन प्रतीत
होता है अर्थात ऊपरी भाग चौड़ा और निचला भाग अपेक्षाकृत कम चौड़ा। सामान्य तौर पर बाहरी आभा का व्यास लगभग एक मीटर तक का होता है किन्तु कुछ लोगों में यह 2 मीटर से भी अधिक चौड़ा पाया जाता है। कुछ बच्चे जो अत्यधिक सक्रिय होते हैं, उनकी बाहरी आभा 3 मीटर तक होती है।
2-स्वास्थ्य आभा को जाँचने की विधि-
03 POINTS;- 1-भौतिक शरीर की सतह से जीवद्रव्य किरणें सीधी और खड़े रूप में बाहर निकलती है, जिन्हें स्वास्थ्य किरणें कहा जाता है। ये स्वास्थ्य किरणें आन्तरिक आभा को पारकर बाहर निकलती हैं तथा सामान्य तौर पर दो मीटर चौड़ी होती हैं। स्वास्थ्य किरणें भी भौतिक शरीर के आकार में ही होती है। व्यक्ति के रोग्रस्त होने पर स्वास्थ्य किरणें भी कमजोर होकर नीचे की ओर लटक जाती हैं और उलझ जाती हैं। इसके साथ ही इसका आकार भी छोटा हो जाता है। कभी-कभी रोगावस्था में स्वास्थ्य आभा का आकार 12 इंच या उससे भी कम हो जाता है। अत्यधिक स्वस्थ एवं प्राणवान व्यक्ति की स्वास्थ्य आभा एक मीटर अथवा उससे भी अधिक बड़ी होती है। स्वास्थ्य आभा का आकार भी उल्टे अंडे के समान होता है अर्थात ऊपर की ओर चौड़ा और नीचे की ओर अपेक्षाकृत कम चौड़ा।
2-स्वास्थ्य आभा को जाँचने के लिये पहले वाली स्थिति में ही रहते हुये धीरे-धीरे थोड़ा आगे की ओर बढ़ना चाहिये।
हथेलियों में पुन: संवेदना महसूस होने पर रूक जाना चाहिये। ये संवेदन पहले की अपेक्षा थोड़े तीव्र हो सकते हैं। ये स्वास्थ्य आभा की निशानी हैं।
3-अब धीरे-धीरे एकाग्रतापूर्वक बाहरी आभा के समान ही स्वास्थ्य आभा के आकार-प्रकार को महसूस करना चाहिये।
आन्तरिक आभा को जाँचने की विधि- 03 POINTS;-
1-आन्तरिक आभा सामान्यत: 4-5 इंच तक फैली होती है। इसकी जाँच करने के लिये अपनी हथेलियों को धीरे-धीरे थोड़ा और आगे तक एवं पीछे लाना चाहिये तथा अपना ध्यान हथेली के मध्यभाग पर केन्द्रित रखना चाहिये।उपचारक को रोगी की
सिर से लेकर पैर तक अर्थात ऊपर से नीचे तक और आगे से पीछे तक जाँच करनी चाहिये। इस संबंध में यह ध्यान रखना चाहिये कि शरीर के दांयें और बांयें भाग की आन्तरिक आभा समान होनी चाहिये। यदि शरीर का एक हिस्सा अर्थात दाँयाँ या बाँया भाग दूसरे की अपेक्षा यदि छोटा है, तो उसमें जरूर कोई विकृति है। उदाहरण के तौर पर जब एक रोगी के कानों की आन्तरिक आभा की स्कैनिंग या जाँच की गई तो उसके बाँये कान की आभा 5 इंच से भी अधिक थी और दायें कान की आभा मात्र दो इंच थी। इसके बाद पता चला कि रोगी का दाँयी कान करीब 17 वर्षों से आंशिक रूप से बहरेपन से ग्रस्त था।
2-जाँच के दौरान बड़े चक्रों, प्रमुख अंगों एवं रीढ़ की हड्डी की आभा पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिये। कभी-कभी ऐसा होता है कि पीठ में दर्द की शिकायत नहीं होती किन्तु फिर भी रीढ़ की हड्डी में उर्जा या तो घनी हो जाती है या कम हो जाती
है। गले की आन्तरिक आभा की जाँच करते समय रोगी को ठुड्डी को थोड़ा उठाकर रखने के लिये कहना चाहिये, क्योंकि ठुड्डी की आन्तरिक आभा के कारण गले की वास्तविक स्थिति पता नहीं चलती है।चक्रों में सौर जालिका चक्र की जाँच विशेष रूप से करना चाहिये, क्योंकि भावनात्मक रूप से उत्पन्न होने वाली विकृतियों का प्रभाव इस चक्र पर विशेष रूप से पड़ता है।
3-फेफड़ों को जाँचने के लिये पूरी हथेली का प्रयोग न करके केवल दो अंगुलियों का प्रयोग करना चाहिये और ज्यादा अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिये फेफड़ों की जाँच सामने की तरफ से न करके पीछे और बगल से करना चाहिये।रोगी की आन्तरिक आभा की जाँच करने के बाद यह ज्ञात करना है कि शरीर के किस भाग में या अंग में उर्जा कम है और कहाँ उर्जा
का घनापन है ।वास्तव में, जाँच के दौरान जिन अंगों की आभा में खोखलापन प्रतीत हो तो वहाँ उर्जा कम होती है। यह
प्राणशक्ति के कम होने का संकेत है।इसी प्रकार जहाँ प्राणशक्ति का घनापन होता है, वहाँ उस अंग की आन्तरिक आभा में उभार पाया जाता है। ....SHIVOHAM......
Comments