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क्या है बेलपत्र के औषधीय गुण और विशेषताएँ ?


विभिन्न रोगों की कारगर दवा;-

महाशिवरात्रि और सावन के महीने में बेलपत्र का अपना ही महत्व होता है। मंदिरों में बेलपत्र शिवलिंग के ऊपर चढ़ाया जाता है। लेकिन क्या आप बेलपत्र के औषधीय गुणों से वाकिफ हैं? अगर इसे औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाए तो यह आपकी कई सेहत समस्याओं का बेहतरीन इलाज साबित हो सकता है।आयुर्वेद के मुताबिक इन पत्तियों में जो औषधीय गुण पाए जाते हैं।और विशेष बात यह है कि इसके पत्तों को पेड़ से तोड़कर 6 महीने रखा जा सकता है। यह ज्यों के त्यों बने रहते हैं और गुणहीन नहीं होते।बिल्व-पत्र-बिल्व का वृक्ष विभिन्न रोगों की कारगर दवा है। इसके पत्ते ही नहीं बल्कि विभिन्न अंग दवा के रूप में उपयोग किए जाते हैं। पीलिया, सूजन, कब्ज, अतिसार, शारीरिक दाह, हृदय की घबराहट, निद्रा, मानसिक तनाव, श्वेतप्रदर, रक्तप्रदर, आंखों के दर्द, रक्तविकार आदि रोगों में बिल्व के विभिन्न अंग उपयोगी होते हैं। इसके पत्तो को पानी से पकाकर उस पानी से किसी भी तरह के जख्म को धोकर उस पर ताजे पत्ते पीसकर बांध देने से वह शीघ्र ठीक हो जाता है।बेलपत्र के प्रयोग से दूर हो जाती खांसी, जुकाम और चोट-मोच.... 10 FACTS;- 1-बेल की तरह ही इसके पत्ते भी गर्मी से राहत दिलाते है। बेल की कोमल पत्तियों को सुबह−सुबह चबाकर खाने और फिर ठंडा पानी पीने से शूल तथा मानसिक रोगों में शांति मिलती है। शरीर में गर्मी बढ़ने पर या मुंह में गर्मी के कारण अगर छाले हो जाएं, तो बेल की पत्तियों को मुंह में रखकर चबाने से लाभ मिलता है और छाले समाप्त हो जाते हैं। लू लगने पर इसके पत्तों को पैरों पर मलने पर आराम मिलता है। 2-बेल के पत्तों का प्रयोग आंखों से संबंधित समस्यायों को भी दूर करता है। आंखों में दर्द होने पर बेल के पत्तों का रस, स्वच्छ पतले वस्त्र से छानकर एक-दो बूंद आंखों में टपकाएँ। इससे दुखती आंखों की दर्द चुभन ठीक होती है। साथ ही आंखों की रोशनी भी बढ़ती है। कंजक्टिवाइटिस की समस्या होने पर भी इसका प्रयोग फायदेमंद रहता है। 3-दिल के रोगियों के लिए बेल के पत्ते अमृत की तरह काम करते है। इसका काढ़ा बनाकर पीने से दिल के दौरा का खतरा कम हो जाता है। साथ ही इससे दिल मजबूत होता है और ठीक तरह से काम करता है। दिल के अलावा बेल आंतों के लिए अच्छा होता है। पेट व आंतों के कीड़े मारकर बाहर निकाल देता है। 4-बेल के पत्ते की तासीर गर्म और कफ वात को शांत करने वाली होती है। मौसम बदलने पर होने वाले सर्दी, जुकाम और बुखार आदि की समस्याएं के लिए बेलपत्र के रस में शहद मिलाकर पीना फायदेमंद है। ऐसे में बेलपत्र के रस में शहद मिलाकर पीना फायदेमंद है। बुखार होने पर बेल की पत्तियों के काढ़े का सेवन लाभप्रद है। वहीं विषम ज्वर हो जाने पर इसके पेस्ट की गोलियां बनाकर गुड़ के साथ खाई जाती हैं। 5-मोच व अंदरूनी चोट आदि लगने पर भी बेल पत्र का प्रयोग किया जा सकता है। इसके अंदर मौजूद एंटीबैक्टीरियल गुण चोट को भरने में सहायता करते है। बेल पत्रों को पीस कर थोड़े गुड़ में पकाइए। इसे थोड़ा गर्म पोटली बना र चोट की जगह पर लगा दे। दिन में तीन-चार बार पोटली बदलने पर आराम आ जाएगा। 6-पाइल्स आजकल एक आम बीमारी हो गई है। खूनी पाइल्स तो बहुत ही तकलीफ देने वाला रोग है। बेल की जड़ का गूदा पीसकर बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर उसका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को सुबह शाम ठंडे पानी के साथ लें। यदि पीड़ा अधिक है तो दिन में तीन से चार बार ले।इससे पाइल्स में फौरन लाभ मिलता है।यदि किसी कारण से बेल की जड़ उपलब्ध न हो सके तो कच्चे बेलफल का गूदा, सौंफ और सौंठ मिलाकर उसका काढ़ा बना कर सेवन करना भी लाभदायक होगा। यह प्रयोग एक सप्ताह तक करें। 7-अस्थमा व अन्य सांस संबंधी समस्या से पीड़ितों के लिए भी इसके पत्ते का रस अमृत का काम करता है। 8- यदि मधुमक्खी, बर्र अथवा ततैया के काटने पर जलन होती है। ऐसी स्थिति में काटे गए स्थान पर बेलपत्र का रस लगाने से राहत मिलती है। 9-पेट या आंतों में कीड़े होना या फिर बच्चें में दस्त लगने की समस्या हो, बेलपत्र का रस पिलाने से काफी फायदा होता है और यह समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। जोड़ों का दर्द होने पर बेल के पत्ते गर्म करके दर्द वाली जगह पाने से सूजन व दर्द में राहत मिलती है। 10-जिन बच्चों की लंबाई ना बढ़ रही हो उन्हें तीन बेलपत्र व एक काली मिर्च सुबह खाली पेट चबाकर खाने के लिए दें। साथ ही ताड़ासन करवाएं। बच्चों के लिए यह प्रयोग आशीर्वाद की तरह है।

बिल्व पत्र की विशेषता;-

भगवान शिव की पूजा में बिल्व पत्र यानी बेल पत्र का विशेष महत्व है। महादेव एक बेलपत्र अर्पण करने से भी प्रसन्न हो जाते है, इसलिए तो उन्हें आशुतोष भी कहा जाता है।बिल्व तथा श्रीफल नाम से प्रसिद्ध यह फल बहुत ही काम का है। यह जिस पेड़ पर लगता है वह शिवद्रुम भी कहलाता है। बिल्व का पेड़ संपन्नता का प्रतीक, बहुत पवित्र तथा समृद्धि देने वाला है।बेल के पत्ते शंकर जी का आहार माने गए हैं, इसलिए भक्त लोग बड़ी श्रद्धा से इन्हें महादेव के ऊपर चढ़ाते हैं। शिव की पूजा के लिए बिल्व-पत्र बहुत ज़रूरी माना जाता है। शिव-भक्तों का विश्वास है कि पत्तों के त्रिनेत्रस्वरूप् तीनों पर्णक शिव के तीनों नेत्रों को विशेष प्रिय हैं।

भगवान शंकर का प्रिय;-

भगवान शंकर को बिल्व पत्र बेहद प्रिय हैं। भांग धतूरा और बिल्व पत्र से प्रसन्न होने वाले केवल शिव ही हैं। शिवरात्रि के अवसर पर बिल्वपत्रों से विशेष रूप से शिव की पूजा की जाती है। तीन पत्तियों वाले बिल्व पत्र आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं, किंतु कुछ ऐसे बिल्व पत्र भी होते हैं जो दुर्लभ पर चमत्कारिक और अद्भुत होते हैं।

बिल्वाष्टक और शिव पुराण;-

बिल्व पत्र का भगवान शंकर के पूजन में विशेष महत्व है जिसका प्रमाण शास्त्रों में मिलता है। बिल्वाष्टक और शिव पुराण में इसका स्पेशल उल्लेख है। अन्य कई ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। भगवान शंकर एवं पार्वती को बिल्व पत्र चढ़ाने का विशेष महत्व है।

मां भगवती को बिल्व पत्र;-

श्रीमद् देवी भागवत में स्पष्ट वर्णन है कि जो व्यक्ति मां भगवती को बिल्व पत्र अर्पित करता है वह कभी भी किसी भी परिस्थिति में दुखी नहीं होता। उसे हर तरह की सिद्धि प्राप्त होती है और कई जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है और वह भगवान भोले नाथ का प्रिय भक्त हो जाता है। उसकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।

बिल्व पत्र के प्रकार;-

बिल्व पत्र चार प्रकार के होते हैं – अखंड बिल्व पत्र, तीन पत्तियों के बिल्व पत्र, छः से 21 पत्तियों तक के बिल्व पत्र और श्वेत बिल्व पत्र। इन सभी बिल्व पत्रों का अपना-अपना आध्यात्मिक महत्व है। आप हैरान हो जाएंगे ये जानकर की कैसे ये बेलपत्र आपको भाग्यवान बना सकते हैं और लक्ष्मी कृपा दिला सकते हैं।

अखंड बिल्व पत्र;-

इसका विवरण बिल्वाष्टक में इस प्रकार है – ‘‘अखंड बिल्व पत्रं नंदकेश्वरे सिद्धर्थ लक्ष्मी’’। यह अपने आप में लक्ष्मी सिद्ध है। एकमुखी रुद्राक्ष के समान ही इसका अपना विशेष महत्व है। यह वास्तुदोष का निवारण भी करता है। इसे गल्ले में रखकर नित्य पूजन करने से व्यापार में चौमुखी विकास होता है।

तीन पत्तियों वाला बिल्व पत्र;-

इस बिल्व पत्र के महत्व का वर्णन भी बिल्वाष्टक में आया है जो इस प्रकार है- ‘‘त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम् त्रिजन्म पाप सहारं एक बिल्वपत्रं शिवार्पणम’’ यह तीन गणों से युक्त होने के कारण भगवान शिव को प्रिय है। इसके साथ यदि एक फूल धतूरे का चढ़ा दिया जाए, तो फलों में बहुत वृद्धि होती है।इस तरह बिल्व पत्र अर्पित करने से भक्त को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। रीतिकालीन कवि ने इसका वर्णन इस प्रकार किया है- ‘‘देखि त्रिपुरारी की उदारता अपार कहां पायो तो फल चार एक फूल दीनो धतूरा को’’ भगवान आशुतोष त्रिपुरारी भंडारी सबका भंडार भर देते हैं।आप भी फूल चढ़ाकर इसका चमत्कार स्वयं देख सकते हैं और सिद्धि प्राप्त कर सकते हैं। तीन पत्तियों वाले बिल्व पत्र में अखंड बिल्व पत्र भी प्राप्त हो जाते हैं। कभी-कभी एक ही वृक्ष पर चार, पांच, छह पत्तियों वाले बिल्व पत्र भी पाए जाते हैं। परंतु ये बहुत दुर्लभ हैं।

10 छह से लेकर 21 पत्तियों वाले बिल्व पत्र;-

ये मुख्यतः नेपाल में पाए जाते हैं। पर भारत में भी दक्षिण में कहीं-कहीं मिलते हैं। जिस तरह रुद्राक्ष कई मुखों वाले होते हैं उसी तरह बिल्व पत्र भी कई पत्तियों वाले होते हैं।

श्वेत बिल्व पत्र;-

जिस तरह सफेद सांप, सफेद टांक, सफेद आंख, सफेद दूर्वा आदि होते हैं उसी तरह सफेद बिल्वपत्र भी होता है। यह प्रकृति की अनमोल देन है। इस बिल्व पत्र के पूरे पेड़ पर श्वेत पत्ते पाए जाते हैं। इसमें हरी पत्तियां नहीं होतीं। इन्हें भगवान शंकर को अर्पित करने का विशेष महत्व है।

कैसे आया बेल वृक्ष?-

बेल वृक्ष की उत्पत्ति के संबंध में ‘स्कंदपुराण’ में कहा गया है कि एक बार देवी पार्वती ने अपनी ललाट से पसीना पोछकर फेंका, जिसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं, जिससे बेल वृक्ष उत्पन्न हुआ। इस वृक्ष की जड़ों में गिरिजा, तना में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी का वास माना गया है।

बिल्व-पत्र तोड़ने का मंत्र;-

बिल्व-पत्र को सोच-विचार कर ही तोड़ना चाहिए। पत्ते तोड़ने से पहले यह मंत्र बोलना चाहिए-

अमृतोद्भव श्रीवृक्ष महादेवप्रिय: सदा।

गृह्यामि तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात्॥

अर्थ- अमृत से उत्पन्न सौंदर्य व ऐश्वर्यपूर्ण वृक्ष महादेव को हमेशा प्रिय है। भगवान शिव की पूजा के लिए हे वृक्ष में तुम्हारे पत्र तोड़ता हूं।

क्या चढ़ाया गया बिल्व-पत्र भी चढ़ा सकते हैं?-

विशेष दिन या पर्वो के अवसर पर बिल्व के पेड़ से पत्तियां तोड़ना मना है। शास्त्रों के अनुसार इसकी पत्तियां इन दिनों में नहीं तोड़ना चाहिए-

सोमवार के दिन चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या की तिथियों को। संक्रांति के पर्व पर।शास्त्रों में विशेष दिनों पर बिल्व-पत्र चढ़ाने से मना किया गया है तो यह भी कहा गया है कि इन दिनों में चढ़ाया गया बिल्व-पत्र धोकर पुन: चढ़ा सकते हैं।

पूजन में महत्व;-

वस्तुत: बिल्व पत्र हमारे लिए उपयोगी वनस्पति है। यह हमारे कष्टों को दूर करती है। भगवान शिव को चढ़ाने का भाव यह होता है कि जीवन में हम भी लोगों के संकट में काम आएं। दूसरों के दु:ख के समय काम आने वाला व्यक्ति या वस्तु भगवान शिव को प्रिय है। सारी वनस्पतियां भगवान की कृपा से ही हमें मिली हैं अत: हमारे अंदर पेड़ों के प्रति सद्भावना होती है। यह भावना पेड़-पौधों की रक्षा व सुरक्षा के लिए स्वत: प्रेरित करती है। पूजा में चढ़ाने का मंत्र-भगवान शिव की पूजा में बिल्व पत्र यह मंत्र बोलकर चढ़ाया जाता है ..

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम्।

त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥

अर्थ- तीन गुण, तीन नेत्र, त्रिशूल धारण करने वाले और तीन जन्मों के पाप को संहार करने वाले हे शिवजी आपको त्रिदल बिल्व पत्र अर्पित करता हूं।

रुद्राष्टाध्यायी के इस मन्त्र को बोलकर बिल्वपत्र चढ़ाने का विशेष महत्त्व एवं फल है...

नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने चनमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुब्भ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे॥

दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम्‌ पापनाशनम्‌। अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्‌॥त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्‌। त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्‌॥अखण्डै बिल्वपत्रैश्च पूजये शिव शंकरम्‌। कोटिकन्या महादानं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्‌॥गृहाण बिल्व पत्राणि सपुश्पाणि महेश्वर। सुगन्धीनि भवानीश शिवत्वंकुसुम प्रिय।



...SHIVOHAM....


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