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क्या है सपनों के पांच प्रकार?क्या सातों शरीर के स्वप्नों के आयाम अलग-2 होते है? PART-02








सपनों के पाँच प्रकार ;-

05 FACTS;-

1-पहले प्रकार के स्‍वप्‍न;-

स्वप्नों के अनेक प्रकार होते हैं।हमारे सात शरीर हैं और प्रत्येक शरीर के अपने स्वप्न होते हैं।

पहले प्रकार का स्वप्न तो मात्र कूड़ा करकट होता है जिस पर मनोविश्लेषक कार्य करते हैं। यह बिलकुल व्यर्थ है क्योंकि सारे दिन में, दिन भर काम करते हुए तुम बहुत कूड़ा कचरा इकट्ठा कर लेते हो और शरीर पर धूल आ जमती है।तब तुम्हें जरूरत होती है स्नान की, सफाई की।इसी ढंग से मन भी धूल को इकट्ठा कर लेता है।लेकिन मन को स्नान कराने का कोई उपाय नहीं। इसलिए मन के पास’ सारी धूल और कूड़े को बाहर फेंक देने की एक स्वचालित प्रक्रिया होती है। पहली प्रकार का स्वप्न सपनों का सर्वाधिक बड़ा भाग , लगभग नब्बे प्रतिशत होता है जो मन की उस धूल को बाहर फेंकता है। धीरे धीरे जैसे जैसे तुम्हारी जागरूकता विकसित होती जाती है तुम मन की उस धूल को देख पाते हो । 2-दूसरे प्रकार के स्‍वप्‍न;-

दूसरे प्रकार का स्वप्न एक प्रकार की इच्छा की पूर्ति है। बहुत सी स्वाभाविक आवश्यकताएं होती हैं, लेकिन तथाकथित धार्मिक शिक्षकों ने तुम्हारे मन को विषैला बना दिया है। उन्होंने उनकी पूरी तरह निंदा की है और वह निंदा तुममें प्रवेश कर गयी है, इसलिए तुम्हारी बहुतसी आवश्यकताओं की भूख तुम्हें बनी रहती है। वे भूखी आवश्यकताएं परिपूर्ति की मांग करती हैं। दूसरी प्रकार का स्वप्न सिवाय आकांक्षापूर्ति केऔर कुछ नहीं है तुम्हारे मन को विषाक्त करने वालों के कारण जो कुछ भी तुमने अपने अस्तित्व के प्रति अस्वीकृत किया है, मन किसी न किसी ढंग से उसे सपनों द्वारा पूरा करने की कोशिश करता है। 3- तीसरेप्रकार के स्‍वप्‍न;-

फिर होता है तीसरे प्रकार का स्वप्न जो अचेतन से आया संकेत है।तीसरे प्रकार का स्वप्न बहुत विरल /Rare होता है, क्योंकि हमने अचेतन के साथ सारा संपर्क खो दिया है। लेकिन फिर भी यह उतरता है क्योंकि तुम्हारा है।जब तुम बहुत जागरूक हो जाते हो केवल तभी तुम इसे अनुभव कर सकते हो । अन्यथा यह उस धूल में खो जाएगा जिसे मन सपनों में फेंकता है, अथार्त अधूरी दबी हुई आकांक्षाओं में खो जाएगा। लेकिन जब तुम जागरूक होते हो तो यह बात हीरे के चमकने जैसी होती है। जब तुम अनुभव कर सकते हो और वह स्वप्न पा सकते हो जो कि अतिचेतन से उतर रहा होता है ।वह सपना तुम्हारा मार्गदर्शन बन जाएगा, सद्गुरु तक ले जाएगा ,सम्यक् अनुशासन की ओर ले जाएगा और भीतर एक गहन मार्गदर्शक बन जाएगा। चेतन के साथ भी तुम गुरु को ढूंढ़ सकते हो , लेकिन वह गुरु सिवाय शिक्षक के और कुछ नहीं होगा। अचेतन के साथ तुम गुरु को खोज सकते हो ।अतिचेतन तुम्हें सम्यक् गुरु तक ले जा सकता है जो शिक्षक नहीं होता; जो तुम्हारे लिए आधार भूमि बन सकता है।उसके साथ तुम अंधे सम्मोहन में नहीं पड़ते हो बल्कि इसके विपरीत तुम निर्देशित होते हो । 4-चौथे प्रकार के स्‍वप्‍न;-

03 POINTS;-

1-फिर होते हैं. चौथे प्रकार के स्वप्न जो कि आते हैं पिछले जन्मों से। वे बहुत विरल /Rareनहीं होते। वे घटते हैं और बहुत बार आते हैं । लेकिन हर चीज तुम्हारे भीतर इतनी गड़बड़ी में है कि तुम कोई भेद नहीं कर पाते। तुम वहां भेद समझने को नहीं होते । इस चौथे प्रकार के स्वप्न के कारण ही हमें पुनर्जन्म की धारणा प्राप्त हो गयी।तुम इस स्वप्न के द्वारा धीरे - धीरे पिछले जन्मों के प्रति जागरूक होते हो । तुम पीछे और पीछे की ओर.. अतीतकाल में जाते हो। तब बहुत सारी चीजें तुममें परिवर्तित होने लगती हैं, क्योंकि यदि तुम्हें सपने में भी स्मरण आ सकता है कि तुम तुम्हारे पिछले जन्म में क्या थे;तो बहुत सी नयी चीजें अर्थहीन हो जाएंगी। सारा ढांचा /Insight theory बदल जाएंगी। 2-यदि तुम बहुत सारे जन्म याद रख सको कि कितनी बार तुम वही बात फिर से कर रहे हो , एक दुश्चक्र; की भांति। फिर तुम उसी तरह आरंभ करते हो और उसी तरह अंत करते हो। यदि तुम तुम्हारे थोड़े से भी जन्म याद कर सको तो तुम एकदम आश्चर्यचकित हो जाओगे कि तुमने एक भी नयी बात नहीं की है। फिर फिर तुमने धन एकत्रित किया; बार बार तुम ज्ञानी बने; फिर फिर तुम प्रेम में पड़े, और फिर फिर चला आया वही दुख जिसे प्रेम ले आता है। जब तुम यह दोहराव देख लेते हो तो कैसे तुम वही बने रह सकते हो? तब यह जीवन अकस्मात रूपांतरित हो जाता है। तुम अब और उसी पुरानी लीक में/उसी चक्र में नहीं रह सकते।इसीलिये शताब्दियों से लोग पूछते आये हैं कि ‘जीवन और मृत्यु के इस चक्र से कैसे बाहर आएं। यह बार बार की वही कथा...एक दोहराव जान पड़ती है।

3-कुछ नया नहीं है जीवन में; यह एक चक्र है। यह उसी मार्ग पर बढ़ता चला जाता है। क्‍योंकि तुम अतीत के विषय में भूलते चले जाते हो। इसी लिए तुम इतनी अधिक उत्‍तेजना अनुभव करते हो। एक बार तुम्‍हें स्मृति आ जाती है तो सारी उत्तेजना गिर जाती है। उसी स्मरण में संन्‍यास घटता है।सन्‍यास एक प्रयास है संसार के चक्र में से बाहर आने का ,चक्र के बाहर छलांग लगा देने का। यह है स्‍वयं से कह देना कि बहुत हो गया अब मैं उस पुरानी नासमझी में भाग नहीं लेना चाहता .. मैं उससे बाहर हो रहा हूं। इस चक्र से सम्पूर्णता से बाहर हो जाने का रास्‍ता है...संन्‍यास । 5-पांचवें प्रकार के स्‍वप्‍न;-

03 POINTS;- 1-पांचवें और अन्‍तिम प्रकार के स्‍वप्‍न आते है.. तुम्‍हारे अतीत से,भविष्‍य से, संभावना से। ये स्‍वप्‍न बहुत ही विरल होता है ..केवल कभी-कभी ही घटता है। जब तुम बहुत संवेदनशील होते हो, नमनीय होते हो ;तो अतीत और भविष्‍य दोनों ही एक छाया देते है। यह तुममें प्रतिबिंबित होती है। यदि तुम अपने सपनों के प्रति जागरूक बन सकते हो तो किसी दिन तुम इस संभावना के प्रति भी जागरूक हो जाओगे कि भविष्‍य तुमसे झाँकता है ,अकस्‍मात ही द्वार खुल जाता है और भविष्‍य का तुमसे संप्रेषण हो जाता है।ये होते हैं पांच प्रकार के स्वप्न। आधुनिक मनोविज्ञान समझता है केवल दूसरे प्रकार को ;लेकिन योग समझता है उन सभी पाँच प्रकारों को। 2-यदि तुम ध्‍यान करो और अपने सपनों वाले आंतरिक अस्‍तित्‍व के प्रति जागरूक हो जाओ तो बहुत बातें घटेगी। पहली बात कि धीरे-धीरे जितना अधिक तुम अपने सपनों के प्रति जागरूक होते जाओगे ;उतने ही तुम अपने जागने के समय की वास्‍तविकता के प्रति भी जागरूक होते जाओगे ।संसार भी तो एक सपने की भांति है। जब अचेतन सपने निर्मित करता है और जबरदस्‍त हलचल चल रही होती है, तो चेतन मन सोया हुआ होता है। केवल कोई खबर सुन लेता है और सुबह यह कह देता है, वह सब धोखा था .. मात्र सपना था। अभी तो जब कभी तुम सपना देखते हो; तब तुम अनुभव करते हो कि वह बिलकुल वास्‍तविक है। बेतुकी चीजें ,अतर्क पूर्ण चीजें भी वास्‍तविक दिखाई पड़ती है। क्‍योंकि अचेतन किसी तर्क को, किसी संदेह को नहीं जानता। 3-जब तुम सपनों के प्रति जागरूक हो जाते हो तो बिलकुल विपरीत घटता है ।तुम अनुभव करते हो कि वे वस्‍तुत: सपने ही है ;कोई वास्तविक चीज नहीं है ..मात्र मन का खेल .. एक मनोनाटक है।तुम्‍हीं हो अभिनेता ,तुम्‍हीं हो कथा लेखक, तुम्‍हीं हो निर्देशक ,तुम्हीं हो निर्माता , तुम्हीं हो रंगमंच और तुम्‍हीं हो दर्शक। वहां दूसरा कोई नहीं है , बस मन का सृजन है। जब तुम इस बात के प्रति जागरूक हो जाते हो तो जागते समय भी ये सारा संसार अपनी गुणवता बदल देगा। तब तुम देखोगें कि यहां भी वहीं अवस्‍था है, लेकिन लंबे-चौड़े रंगमंच पर वहीं सपना है। इस संसार को माया, भ्रम, स्‍वप्‍न-सदृश, मन की चीजों का धोखा कहते है ।लेकिन जब तुम्‍हारा मन उसमें घुल -मिल जाता है तो तुम अपना एक अवास्‍तविक संसार बना लेते हो। हम एक तरह के संसार में नहीं जीते; हर कोई अपने ही संसार मे जीता है। उतने ही संसार है जितने कि मन है। जब इस संसार को माया कहते है तो उसका अर्थ होता है कि वास्‍तविकता और मन का जोड़ । वास्‍तविकता जो है, लेकिन हम जानते नहीं है। जब कोई समग्र रूप से जाग जाता है, तब वह मन से मुक्‍त वास्‍तविकता को जानता है । तब यह होता है सत्‍य, ब्रह्म, परम।

क्या सातों शरीर के स्वप्नों के आयाम अलग होते है?-

06 FACTS;-

1-अमरीका में कई स्वप्न-प्रयोगशालाएं हैं जहां प्रयोगशाला की विधियों के माध्यम से स्वप्नों के बारे में सीखने की कोशिश की जा रही हैं। किंतु वहां पर जो विधियां उपयोग की जा रही हैं वे केवल भौतिक शरीर से संबंधित हैं। अगर स्वप्नों का पूरा संसार जानना हो–तो योग तंत्र और अन्य गुहा विधाओं का उपयोग करना पड़ेगा। हर प्रकार के स्वप्न के साथ एक समानांतर वास्तविकता है, और अगर यह भ्रम का सारा संसार नहीं जाना गया, तो वास्तविकता को जान पाना असंभव है। सिर्फ माया के माध्यम से ही वास्तविक को जाना जा सकता है।सचेतन मन के साथ स्वप्न देखना शुरू करो। जब तुम अपने स्वप्नों में चेतन होते हो, केवल तभी वास्तविक को जाना जा सकता है।

2-हम अपने भौतिक शरीर के प्रति भी बेहोश बने रहते हैं। केवल तब जब इसका कोई भाग रुग्ण होता है, हम होशपूर्ण होते हैं। व्यक्ति को स्वस्थ दशा में शरीर के प्रति होशपूर्ण होना चाहिए। रुग्णावस्था में शरीर के प्रति होशपूर्ण होना तो एक आपातकालीन ,प्राकृतिक व्यवस्था प्रक्रिया है। जब शरीर का कोई हिस्सा रुग्ण हो, तो तुम्हारे मन को उस पर ध्यान देना ही पड़ता है, ताकि उसकी देखभाल की जा सके। लेकिन जिस पल वह अंग ठीक हो जाता है तुम फिर से उसके प्रति सो जाते हो।

तुम्हें अपने शरीर उसकी गतिविधियों उसकी सूक्ष्म संवेदनाओं, उसके संगीत ,उसके मौन के प्रति बोधपूर्ण होना पड़ेगा। जब तुम सोने के लिए जा रहे होते हो तो तुम्हारे शरीर में सूक्ष्म परिवर्तन होते हैं। जब तुम सुबह नींद से बाहर आ रहे होते हो तो पुन: परिवर्तन होते हैं। उनके प्रति व्यक्ति को सजग होना पड़ेगा।तुमने सुबह का उगता हुआ सूरज देखा है किंतु अपने शरीर को कभी जागते हुए नहीं देखा है। इसका अपना निजी सौंदर्य है। वहां तुम्हारे शरीर में भी सुबह और शाम होती है। इसे संध्या, संधिकाल कहा जाता है परिवर्तन और रूपांतरण का क्षण।

3-सुबह के समय जब तुम अपनी आंखें खोलने जा रहे हो तो उन्हें एकदम से मत खोल दो। जब तुम सजग हुए कि अब नींद जा चुकी है तो अपने शरीर के प्रति बोधपूर्ण हो जाओ। अभी अपनी आखें मत खोलो। भीतर एक महत परिवर्तन हो रहा है। नींद जा रही है और जागरण आ रहा है।जब तुम सोने जा रहे हो, चुपचाप देखो–क्या घटित हो रहा है। नींद आ रही होगी–तो

बोधपूर्ण हो जाओ। तभी तुम अपने भौतिक शरीर के प्रति वास्तविक रूप से सजग हो सकते हो। और जिस क्षण तुम इसके प्रति सजग हो जाते हो, तुम जान लोगे कि भौतिक शरीर के स्वप्न क्या हैं। तब सुबह तुम याद रखने में समर्थ हो जाओगे कि क्या भौतिक स्वप्न था और क्या नहीं। अगर तुम अपने शरीर की भीतरी अनुभूतियों, भीतरी जरूरतों और भीतरी लयबद्धताओं को जानते हो, तो जब वे तुम्हारे स्वप्नों में प्रतिबिंबित होती हैं, तब तुम उस भाषा को समझने में समर्थ हो जाओगे।हमने अपने खुद के शरीर की भाषा को नहीं समझा। शरीर के पास अपनी बुद्धिमत्ता है ,हजारों-हजारों साल का अनुभव है,अपनी भाषा है।

जब तुम इसे समझ लोगे तभी तुम जानोगे कि भौतिक शरीर का स्वप्न क्या है। और तब तुम भौतिक शरीर के स्वप्नों और अ-भौतिक शरीर के स्वप्नों में भेद कर सकते हो।

4-और तब अपने भाव शरीर के प्रति बोधपूर्ण हो जाने की एक नई संभावना खुलती है। सिर्फ तब ..उससे पहले नहीं। तुम और अधिक संवेदनशील हो जाते हो और ध्वनियों, सुगंधों प्रकाश के अधिक सूक्ष्म तलों का अनुभव कर सकते हो। जब तुम चलते हो, तो तुम जानते हो कि तुम्हारा भौतिक शरीर चल रहा है.. भाव शरीर नहीं चल रहा है। भेद बिलकुल सुस्पष्ट होता है। तुम भोजन कर रहे हो, भौतिक शरीर भोजन कर रहा है ..भाव शरीर नहीं कर रहा है। भाव शरीर की प्यास है, भूख है ,अभीप्साए हैं ;परंतु ये सभी केवल तब देखी जा सकती हैं जब भौतिक शरीर को पूरी तरह से जान लिया गया हो। तब धीरे- धीरे अन्य

शरीर जाने जाएंगे।स्वप्न-विज्ञान एक गुहा विषय है। यह अभी तक गुहा ज्ञान का हिस्सा है। पर अब समय आ चुका है कि वह प्रत्येक बात जो अब तक छिपी हुई थी अब और ज्यादा नहीं छिपी रहनी चाहिए अन्यथा यह घातक सिद्ध हो सकता है।

6-अतीत में कुछ बातों के लिए यह आवश्यक था कि वे गुप्त बनी रहें। क्योंकि अज्ञानी के हाथों में जानकारी खतरनाक

हो सकती है।लेकिन अब वैज्ञानिक प्रगति के कारण समय आ गया है कि इस ज्ञान को प्रकट कर दिया जाए। अगर आध्यात्मिक गुहा सत्य अब भी अज्ञात रहे तो विज्ञान खतरनाक सिद्ध होगा। उन्हें प्रकट कर देना होगा जिससे कि आध्यात्मिक ज्ञान वैज्ञानिक जानकारी के साथ कदम से कदम मिला कर चल सके।हमें उस समय की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी जब मनुष्य इतना सक्षम हो जाए कि जानकारी खोली जा सके और वह घातक भी न बने।स्वप्न-विज्ञान गुह्यत्तम आयामों में से एक है। हमारे सात शरीर हैं और प्रत्येक शरीर के अपने स्वप्न होते हैं। भौतिक शरीर अपने स्वप्न निर्मित करता है।हमारे सात शरीर हैं–1-भौतिक2- भाव 3-सूक्ष्म 4-मनस 5-आत्मिक 6-ब्रह्म 7- निर्वाण.. इसलिए सात प्रकार के स्वप्नों की संभावना है। इन स्वप्नों को शरीर के तल पर नहीं समझा जा सकता है ।

सातों शरीर के स्वप्नों के आयाम;-

07 FACTS;- 1-भौतिक शरीर ;-

CONTD, ...SHIVOHAM...



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