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कानपुर के मुक्ता देवी तथा खेरेश्वर मंदिर

मुक्ता देवी मंदिर;-

03 FACTS;-

1-मूसानगर (Musanagar) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के कानपुर देहात ज़िले में स्थित एक गाँव है। यहाँ मुक्ता देवी का एक प्रसिद्ध प्राचीन मन्दिर है। यह यमुना नदी के तट पर स्थित है। यह घाटमपुर से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर पश्चिम दिशा में स्थित है।भोगनीपुर तहसील क्षेत्र के मूसानगर कस्बे के निकट त्रेता युग का इतिहास समेटे यमुना तट पर स्थित मां मुक्तेश्वरी देवी मंदिर भक्तों की आस्था व आराधना का केंद्र है। मान्यता है कि यहां नवरात्र में मत्था टेकने व पूजन से भक्तों की मुराद पूरी होती है। बीहड़ पट्टी के इस पौराणिक देवी मंदिर में यमुना के उत्तरगामिनी होने के कारण पूजन का विशेष महत्व है। मंदिर का इतिहास दैत्यराज बलि की राजधानी के रूप में चर्चित मूसानगर कस्बे के निकट कालिद्री यानी यमुना तट पर स्थित पौराणिक मुक्तेश्वरी मंदिर पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है।

2-सदियों पुराने इस मुक्तेश्वरी मंदिर की वजह से कस्बे का नाम मुक्तानगर पड़ा था। बाद में ये नाम अपभ्रंश रूप में अब मूसानगर के नाम से जाना जाता है। किवदंती के अनुसार दैत्यराज बलि ने यहां 99 यज्ञों के साथ ही एक अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया था। उस समय यहां देव यक्ष व किन्नरों का निवास होने से इसे देवलोक के समान स्थान प्राप्त था।लेकिन इसके गर्भ गृह और माता की प्रतिमा की स्थापना पौराणिक काल की है। कहा जाता है कि मां की प्रतिमा का रूप दिन के समय समय पर बदलता रहता है।मान्यता है कि मां ने ने नाम के अनुसार सभी तरह के कष्टों से भक्तों को मुक्ति प्रदान करती हैं। यहाँ लगातार मिलने वाले प्राचीन प्रतिमाएं, प्रस्तर खंड आदि कई कालों के हैं। 500 वर्ष से लेकर 2600 वर्ष पूर्व तक के जिनमें से कुछ अब भी मंदिर के परिसर के पश्चिमी हिस्से में रखे हैं। बाकी कालान्तर में नष्ट या चोरी हो गये। प्रांगण के पीछे ही थोड़ी दूरी पर यमुना नदी बहते देख सकते हैं।आसपास पठारी सा ऊबड़-खाबड़ इलाका चम्बल में होने सा एहसास दिलाता है। यहां दर्शन के लिए सदियों से पूरे भारत वर्ष से श्रद्धालु के रूप में माता के भक्त, राजा और रंक माँ के दर्शन कर कृतार्थ होते रहे हैं। घाटमपुर होकर जाने पर कानपूर से मंदिर की दूरी लगभग 63 किलोमीटर है। घाटमपुर तक (पूरा हमीरपुर रोड) हाईवे निर्माण हो चुकने के कारण यात्रा अब सुगम है।


3- यहां की मूर्तियों में उस बरात के दृश्य हैं जो उस समय आई थी। इस के विषय मे बताया जाता है एक पिता ने अपनी बेटी के शादी कर रहे थे और बारात दरवाजे आ चुकी थी।दुल्हन के भावी ससुराल के एक रिश्तेदार ने दुल्हन पर कुदृष्टि डाल दी थी।

जिस पर पूरी बारात माता रानी के श्राप के कारण पत्थर की हो गई थी। तो मुक्तेश्वरी नाम की उस लड़की ने अपनी तर्जनी उंगली काट कर खून बारात पर डाल दिया। जिससे बारात पत्थर की हो गयी और उसी दिन से उसे मुकेश्वरी देवी के नाम से जाना जाने लगा । यहाँ नवरात्रि में बड़ी धूम धाम से मेला लगता है। हजारो लोग दर्शन करने आते है।क्षेत्रीय लोग और भक्तों ने बताया कि देवी तीन रूप धारण करती है। सुबह लड़की और दोपहर महिला और शाम वृद्ध महिला के रूप इस अनोखी प्रतिमा को लोग देखने के लिए आते हैं। सैकड़ो वर्ष पुराना मंदिर किलेनुमा आकर में यमुना नदी के पहाड़ो की चोटी में बसा है। नवरात्रि के नौ दिन यहा हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते है और यह कानपुर देहात की शान है।



खेरेश्वर मंदिर;-

06 FACTS;-

1-कानपुर शहर से चालीस किमी की दूरी पर स्थित गंगा के किनारे बसे शिवराजपुर कस्बे में सैकड़ों साल पुराना

खेरेश्वर मंदिर है। यह सिद्ध मंदिर है। जो शिवलिंग है उसको किसी ने स्थापित नहीं किया है वो स्यंभूशिवलिंग है। यहां महाशिवरात्र पर्व के दिन एक दस फिट का इंसान बिना दिखे भगवान भोलेकी अराधना

करने के उपरान्त चला जाता है।यहां के लोगों का दावा है कि करीब वह 36 सौ साल से बदस्तूर आता है और

नजदीक पहुंचने से पहले कहीं गुम हो जाता है। गांववालों का मानना हैकि यह कोई और नहीं द्रोणाचार्य के पुत्र

अश्वथामा है।महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य खेरेश्वर मंदिर पर आकर पूजा अर्चना करतेथे।इतना ही नहीं पांडव, कौरव

और कर्ण ने भी यहीं पर शिक्षा दीक्षा ली थी।यहीं पर द्रोणाचार्य ने पांडवों-कौरवों को शस्त्र विद्या सिखायी।

2-शाप से मुक्ति के लिए करता है शिव की पूजा;-

खेरेश्वर अस्वस्थामा का जन्मस्थल कहा जाता है द्वापर युग मेंगुरुगु द्रोणाचार्यकी कुटीं यही पर हैइसका जिक्र महाभारत मेंमहाभारत मेंभी है।अश्वाथामा का जन्म यही पर हुआ था। पुजारी बताते हैं रात में मंदिर के पट बंद कर दिए जातेहै। मंदिर के पट खोले जाते है तो भगवान्शिव के शिवलिंग कि पूजा अर्चना की हुयी मिलती है। शिवलिंग पर जल वा अदभुत तरह के फूल चढ़े हुए मिलतेहै। ग्रामीणों का मानना हैकि यह मंदिर काफी प्राचीन हैऔर अश्वाथामा इस मंदिर में पूजा अर्चना करतेहै।द्वापर में यहां गुरु द्रोणाचार्यका आश्रम था और उनके पुत्र अश्वाथ मा का जन्म भी यही हुआ। जब महाभारत मेंअश्वाथामा की मणि निकाल ली गयी तो उन्होंनेकृष्ण भगवान सेकहा कि अब मणि की छतिपूर्ति कैसे होगी। तो भगवान्कृष्ण नेकहा कि जहां पर आपका जन्म स्थल है वहां जाए। कृष्ण ने उनसे कहा कि भगवान शिव की नित्य दर्शन करने से मणि की छतिपूर्ति हो जायेगी। इसी के बाद अश्वस्थाम मंदिर के पास स्थित खुद के मंदिर में रहतेहैं और बाबा शिव की अराधना करतेहैं।

3-औरंगजेब से भिड़कर बचाया था मंदिर को;-

पुजारी ने बताया कि मंदिर के पास पहले द्रोणाचार्यकी कुटिया बनी थी, जिसे मुगल शासक औरंगजेब ने

क्षतिग्रस्त कर दिया था। बावजूद कुटिया की निशानी आज भी मौजूद हैं। महंत आकाश पुरी गोस्वामी नेबताया

कि उनके परिजन बताया करते थे कि शाम के वक्त कुटिया के अंदर एक दीपक जला करता था। औरंगजेब को

जब इस बारे में बात पता चली तो उसने अपने सैनिकों को भिजवाकर कुटियी को मटियामेंट कर दिया।

सैनिकों की नजर जब खेरेश्वर मंदिर पर पड़ी तो उन्होंने उसे भी तोप से उड़ा दिया लेकिन शिवलिंग को जमीन

से निकाल नहीं पाए। मंहत के मुताबिक खुद औरंगजेब मंदिर पर पहुंचा और शिवलिंग को निकालने के लिए

दिन रात एक किए पर अश्वथामा के चलते वह कामयाब नहीं हुआ। खेरेश्वर महादेव के शिवलिंग को खंडित

करने के लिए उस पर अपनी तलवार से कई वार किये, तलवार की वार के प्रमाण आज भी शिवलिंग में देखेजा

सकते हैं।

4-मधुमक्खियों का रहस्य;-

वैसेतो खेरेश्वर धाम मेंसाल भर देश विदेश सेभगवान शिव के भक्त आते हैंलेकिन महाशिवरात्र पर्व के दिन

हजारों की संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। पुजारी नेबताया कि भोर पहर पहले भगवान शिव की पूजा-

अर्चना अश्वथामा करते हैंऔर फिर आम भक्त अपनी मन्नत मांगते हैं। मंदिर में सैकड़ों साल से मधुमक्खियों के

छत्ते हैंजो जहरीली भी हैं लेकिन वह किसी भी भक्त को आज तक छति नहीं पहुंचाई। बताया, औरंगजेब से

अश्वथामा खुलकर तो नहीं लड़े लेकिन उन्होंने उसके सैनिकों पर इन्हीं मधुमक्खियों से हमला करवाया था।

हमले में सैकड़ों मुगल सैनिकों की मौत हुई थी। जिनके शवों को गंगा के किनारे दफनाया गया था जिनकी कब्रे

आज भी मौजूद हैं।

5-यहीं युधिष्ठर से पूछे गए थे सवाल;-

मंदिर के पास मेंही एक तालाब बना हुआ है। गांव वालों की ढेर सारे कमलों से भरे इस तालाब पर अटूट

आस्था है। लोगों का मानना हैकि यह द्वापर युग का वही गंधर्वसरोवर है जहां यक्ष ने युधिष्ठिर से सवाल पूछे

थे। इस तालाब में केवल सफेद रंग के कमल के फूल ही खिलतेहैं। लोग दूर-दूर सेयहां आकर सफेद कमल

पुष्प भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना के लिए ले जातेहैं। मंदिर में रात के समय कोई नहीं रुकता है।मंदिर के पास ही गंधर्व ताल है। कहा जाता है महाभारत काल के दौरान गन्धर्व यहां आकर अपनी रात क्रीड़ा करते थे। नृत्य गायन के साथ यहां रुकते थे। भगवान शिव पर चढ़ने वाला जल गंधर्व ताल की ओर ही जाता था, जिसे देख कर गंधर्व ताल से मंदिर तक एक रास्ता बनाया गया। भोले पर चढ़ने वाला नीर सीधे गंधर्व ताल में जाता है। ताल में कमल के फूल होते हैं। समय-समय पर फूल अपने आप रंग बदलते हैं।

6-अश्वत्थामा का मंदिर दूधेश्वर मंदिर;-

खेरेश्वर धाम से करीब 100 मीटर की दूरी परअश्वत्थामा का मंदिर भी बना है। गांव के लोग अश्वत्थामा को देव के रूप में पूजते हैं इसलिए उन्हें विशेष स्थान देने के लिये मंदिर में उनकी छोटी सी मूर्ति भी स्थापित की है। अश्वत्थामा की मूर्ति के पास एक शिवलिंग भी स्थापित किया गया है। मंदिर के आसपास रहनेवाले ने बताया कि उन्होंनेकई बार सफेद लिबास में लंबेचौड़े इंसान को मंदिर आते-जाते देखा है। कुछ पूछने पर वह नहीं बोलता और तेज रोशनी के साथ गायब हो जाता है। पुजारी के मुताबिक गुरु द्रोणाचार्य के आदेश पर युद्विध्ठिर, अर्जुन भीम, नकुल, सहदेव के अलावा कौरव भी पहले गंगा में स्नान करते और फिर भगवान शिव की पूजा अराधना किया करतेथे | इसके साथ ही गंगा के किनारे एक कुटी और थी जहां कर्ण निवास करतेथे और वह भी दूधेश्वर महाराज के दर पर हाजिरी लगाते थे | महाशिवरात्रि पर्व के दिन गुरु द्रोणाचार्य भंडारे का आयोजन करते थे और सैकड़ों भक्तगण प्रसाद ग्रहण करतेथे | तब से चली आ रही परंपरा आज भी यहां पर कायम है | औरंगजेब अकबपुर में ठहरा था तभी उसे इस चमत्यारी मंदिर के बारे में जानकारी मिली | उसने अपने सिपाहियों को इस मंदिर को जमींदोज करनेका फरमान दिया | सैनिकों ने शिवराजपुर में स्थापित मंदिरों को ढहा दिया और वह दुधेश्वर में आ धमके | उन्होंने मंदिर की छत को गिरा दिया पर शिवलिंग को क्षतिग्रस्त नहीं कर पाए| तीन दिन तक वह शिव से लड़ता रहा | जमीन खुदवाकर शिवलिंग निकालनेकी कोशिश की पर उसके हाथ नाकामी ही लगी |

...SHIVOHAM...


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