कामाक्षी अम्मन मंदिर-PART-01
कांची तु कामाक्षी, मदुरै तु मिनाक्षी।
दक्षिणे कन्याकुमारी ममः शक्ति रूपेण भगवती।
नमो नमः नमो नमः॥
कामाक्षी अम्मन मंदिर ;-
08 FACTS;-
1-यह मंदिर देवी शक्ति के तीन सबसे पवित्र स्थानों में एक है। मदुरै और वाराणसी अन्य दो पवित्र स्थल हैं। 1.6 एकड में फैला यह मंदिर नगर के बीचोंबीच स्थित है। मंदिर को पल्लवों ने बनवाया था। बाद में इसका पुनरोद्धार 14 वीं और 17वीं शताब्दी में करवाया गया।आज भी कांचीपुरम और उसके आसपास 126 शानदार मंदिर देखे जा सकते हैं। यह शहर चैन्नई से 45 मील दक्षिण पश्चिम में वेगवती नदी के किनारे बसा है। कांचीपुरम प्राचीन चोल और पल्लव राजाओं की राजधानी थी।यह मंदिर कांचीपुरम के शिवकांची में स्थित है। कामाक्षी देवी मंदिर देश की 51 शक्ति पीठों में संमिलित है।क्रोध से तपते शिव ने जब देवी सती की देह को उठाये तांडव किया था तब सती की नाभि यहाँ गिरी थी। इस स्थान को धरती के पूर्वार्ध का नाभिस्थान भी माना जाता है। मंदिर में कामाक्षी देवी की आकर्षक प्रतिमा है। यह भी कहा जाता है कि कांची में कामाक्षी, मदुरै में मीनाक्षी और काशी में विशालाक्षी विराजमान हैं। मीनाक्षी और विशालाक्षी विवाहिता हैं। इष्टदेवी देवी कामाक्षी खड़ी मुद्रा में होने की बजाय बैठी हुई मुद्रा में हैं। देवी पद्मासन (योग मुद्रा) में बैठी हैं और दक्षिण-पूर्व की ओर देख रही हैं।
2-कांची कामाक्षी मंदिर के एक ओर शिव कांची अर्थात् बड़ा कांची स्थित है। यहाँ कुछ विष्णु मंदिरों के साथ अनेक शिव मंदिर स्थापित हैं। कांची कामाक्षी मंदिर के दूसरी ओर विष्णु कांची अर्थात् छोटा कांची स्थित है जहां कई विशाल विष्णु मंदिर तथा कुछ शिव मंदिर भी स्थित हैं।कामाक्षी ही कांची की अधिष्ठात्री देवी है ।मंदिर परिसर में गायत्री मंडपम भी है। कभी यहां चंपक का वृक्ष हुआ करता था। मां कामाक्षी के भव्य मंदिर में भगवती पार्वती का श्रीविग्रह है, जिसे कामाक्षीदेवी या कामकोटि भी कहते हैं। भारत के द्वादश प्रधान देवी-विग्रहों में से यह एक मंदिर है। इस मंदिर परिसर के अंदर चारदीवारी के चारों कोनों पर निर्माण कार्य किया गया है। एक कोने पर कमरे बने हैं तो दूसरे पर भोजनशाला, तीसरे पर हाथी स्टैंड और चौथे पर शिक्षण संस्थान बना है। कहा जाता है कि कामाक्षी देवी मंदिर में आदिशंकराचार्य की काफी आस्था थी। उन्होंने ही सबसे पहले मंदिर के महत्व से लोगों को परिचित कराया। परिसर में ही अन्नपूर्णा और शारदा देवी के मंदिर भी हैं। यह भी माना जाता है कि यह शहर महाभारत के द्रविड़ साम्राज्य का एक हिस्सा था। प्रसिद्ध कवि कालीदास जी द्वारा इस प्राचीन शहर को ‘दक्षिण का बनारस’ कहा जाता है।
3-मान्यताओं के अनुसार यहाँ कामाक्षी मंदिर का अस्तित्व अनंत काल से है। प्राप्त अभिलेखों के अनुसार, इस मंदिर के श्री चक्र की स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। ऐसा माना जाता है कि देवी ने असुर भंडासुर का वध करने के लिए कन्या स्वरुप अवतार लिया था एवं वे इसी मंदिर में बैठी थीं। इस मंदिर की मूर्ति को स्वयंभू माना जाता है। अर्थात् यह मूर्ति किसी के द्वारा बनायी गयी नहीं है, अपितु यह स्वयं अवतरित हुई थी। यह भी मान्यता है कि देवी इस मंदिर में तीन स्वरूपों में विराजती हैं, स्थूल, सूक्ष्म एवं शून्य।यह भी कहा जाता है कि देवी कामाक्षी के नेत्र इतने सुंदर हैं कि उन्हें कामाक्षी संज्ञा दी गई। वास्तव में कामाक्षी में मात्र कमनीयता ही नहीं, वरन कुछ बीजाक्षरों का यांत्रिक महत्व भी है। यहां पर 'क' कार ब्रह्मा का, 'अ' कार विष्णु का और 'म' कार महेश्वर का प्रतीक है। इसीलिए कामाक्षी के तीन नेत्र त्रिदेवों के प्रतिरूप हैं। सूर्य-चंद्र उनके प्रधान नेत्र हैं। अग्नि उनके भाल पर चिन्मय ज्योति से प्रज्ज्वलित तृतीय नेत्र है। कामाक्षी में एक और सामंजस्य है 'का' सरस्वती का, 'मां' महालक्ष्मी का प्रतीक है। इस प्रकार कामाक्षी के नाम में सरस्वती तथा लक्ष्मी का युगल-भाव समाहित है।मंदिर सुबह 5.30 बजे खुलता है और दोपहर 12 बजे बंद हो जाता है। फिर शाम को 4 बजे खुलता है और रात्रि 9 बजे बंद हो जाता है।ब्रह्मोत्सव और नवरात्रि मंदिर के खास त्योहार हैं।
4-कांची कामाक्षी मंदिर के मुख्य गर्भगृह को गायत्री मंडप कहा जाता है। यहाँ कामाक्षी अम्मा पद्मासन की योग मुद्रा में बैठी हैं। उनका आसन पंच ब्रम्हासन है। कामाक्षी अम्मा की चार भुजाएं हैं। उनके निचले करों में गन्ना एवं पांच पुष्पों का गुच्छा है। वहीं ऊपरी दोनों हाथों में वे शस्त्र, पाश एवं अंकुश धारण किया हुए हैं। समीप ही एक तोता भी है जिस पर सहसा लोगों की दृष्टि नहीं पड़ती। देवी की प्रतिमा को सदैव चटक रंगीन साड़ी एवं सम्पूर्ण श्रृंगार द्वारा अलंकृत रखा जाता है।गर्भगृह के भीतर चांदी से लिपटा एक स्तंभ है। इस पर एक छिद्र है जो देवी की नाभि का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसी मान्यता है कि यही भक्तों को संतान प्राप्ति का वर प्रदान करता है।कथा के अनुसार, भगवान् शिव से विवाह की अभिलाषा लिए कामाक्षी अम्मा ने सुई की नोक के ऊपर एक पाँव पर खड़ी होकर तपस्या की थी। उनकी अभिलाषा पूर्ण हुई एवं फाल्गुन मास के उत्तर नक्षत्र में भगवान् शिव से उनका विवाह हुआ। यहाँ देवी कामाक्षी का सोने का एक चित्र भी था जिसमें उन्हें तपस्या की मुद्रा में एक पाँव पर खड़े चित्रित किया गया था। इस चित्र को बंगारू कामाक्षी भी कहा जाता है। मंदिर पर आक्रमण की आशंका में इस चित्र को तंजावुर स्थानांतरित कर दिया था। यह चित्र अब भी तंजावुर में है।
5-श्री चक्र ..देवी की प्रतिमा के सम्मुख योनी के आकार की एक संरचना है जिसके भीतर श्री चक्र बना हुआ है। इसी श्री चक्र की यहाँ पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार देवी इस श्री चक्र के शीर्ष बिंदु पर विराजती हैं। श्री चक्र के चारों ओर 8 वाग्देवियां उपस्थित हैं। इस मंदिर के श्री चक्र को सम्पूर्ण रूप से देख पाना संभव नहीं हो पाता क्योंकि यह सदैव गुलाबी रंग के ताजे पुष्पों की परतों से अलंकृत, अतः ढंका रहता है।यह वही स्थान है जहां आदि शंकराचार्य ने देवी पर सौंदर्य लहरी की रचना की थी|गर्भगृह की 4 भित्तियों को 4 वेद एवं गायत्री मंडप के 24 स्तंभों को गायत्री छंद के 24 अक्षर माना जाता है।मुख्य प्रतिमा के बाईं ओर वराह एवं अरूप लक्ष्मी हैं। गर्भगृह के भीतर विशेष पूजा अर्चना के समय ही जाने दिया जाता हैं। मुख्य मंदिर के चारों ओर अनेक छोटे मंदिर थे। इनमें से एक अय्यप्पा स्वामी को समर्पित है। अय्यप्पा स्वामी के दोनों ओर उनकी दो पत्नियां, पूर्णा एवं पुष्कला विराजमान हैं। बिल्वाद्वार के ठीक बाहर अन्नपूर्णा देवी का एक छोटा मंदिर है जिसके भीतर अन्नपूर्णा देवी एक हाथ में भरा घड़ा एवं दूसरे हाथ में कलछी लिये विराजमान हैं।भक्तगण देवी के समक्ष “भिक्षान्न देहि” कहकर प्रार्थना करते हैं तथा अपेक्षा करते हैं कि देवी सदैव उनकी थाली भरी रखे।अन्नपूर्णा काशी की अधिष्ठात्री देवी हैं।
6-अष्टभुजा सरस्वती देवी यहाँ कामाक्षी अम्मा की मंत्रिणी के रूप में उपस्थित हैं। उन्हें मातंगी अथवा राजश्यामाला भी कहा जाता है। विद्या एवं ज्ञान प्राप्ति की इच्छा रखते भक्त इनकी आराधना करते हैं। एक मंदिर आदि शंकराचार्य को भी समर्पित है।इसके भीतर आठ ऋषियों के नाम गुदे हुए हैं- नारायण, ब्रम्हो, वसिष्ठ, शक्ति, पराशर, व्यास, शुक, गौडपा एवं गोविन्द भागवत। एक मंदिर यहाँ दुर्वासा मुनि का भी है।मुख्य गर्भगृह के ऊपर सोने का एक भव्य गोपुरम था। यद्यपि चक चक चमकते इस गोपुरम का कुछ भाग आप बाहर स्थित मंदिर के कुण्ड के समीप से देख सकते हैं। तथापि इस गोपुरम का सर्वोत्तम दृश्य मंदिर के भीतर से प्राप्त होता है। मुख्य गर्भगृह के पृष्ठभाग में एक कांच की छत है।आदि शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म में 6पंथों की रचना की थी। ये शिव, शक्ति, विष्णु, गणेश, कार्तिकेय एवं सूर्य के अनुयायियों के लिए थे। कांची कामाक्षी मंदिर में मिली एक पुस्तक के अनुसार कांची कामाक्षी मंदिर के ठीक बाहर इन 6 देव-देवियों को समर्पित 6 मंदिर कौशिकेश्वर मंदिर,आदि कामाक्षी मंदिर,कुमार कोट्टम मंदिर,संकुपाणी विनायक मंदिर,उलगनंदा पेरूमल मंदिर,हैं।यदि आप कामाक्षी मंदिर के आसपास स्थित इन मंदिरों के दर्शन करते हुए पदयात्रा करें तो आप वास्तव में कांची कामाक्षी मंदिर की परिक्रमा करते हैं। कामाक्षी मंदिर के आसपास हुए अत्यधिक निर्माण-कार्य के कारण यह परिक्रमा आसान नहीं है। यदि आप तमिल भाषा से अनभिज्ञ हैं तो इन मंदिरों को ढूँढने में कष्ट हो सकता है क्योकि यहाँ मंदिरों के नामों के उच्चारण भिन्न होने के कारण उन्हें समझने में कठिनाई होती है।
7-कांची कामाक्षी मंदिर में 7 गोत्रों के पुजारी पूजा अर्चना कर सकते हैं। तथापि केवल 2 गोत्रों के पुजारी ही यहाँ पूजा करते हैं। अन्य गोत्रों के पुजारी तंजावुर के कामाक्षी मंदिर में आराधना करते हैं। पुजारीजी को यहाँ शास्त्री कहा जाता है।कहा जाता है कि अयोध्या के सूर्यवंशी इक्ष्वाकु वंश के सम्राट एवं भगवान् राम के पिता दशरथ ने यहीं पुत्र कामेच्छा यज्ञ किया था। इसके पश्चात शीघ्र ही उन्हें 4 पुत्ररत्नों की प्राप्ति हुई थी। तभी से लोगों में यह मान्यता उत्पन्न हो गयी है कि इस मंदिर में प्रार्थना करने पर निःसंतान दम्पति को संतान प्राप्ति होती है। देवी कामाक्षी इक्ष्वाकु वंश की कुलदेवी है। इस कथा का उल्लेख मार्कंडेय पुराण में किया गया है।एक किवदंती के अनुसार एक समय एक गूंगे भक्त को इसी मंदिर में स्वर का वरदान प्राप्त हुआ था। भावविभोर होकर उस गूंगे ने 500 स्त्रोतों की रचना की जिसे मूक पंचशती के नाम से जाना जाता है।श्रापित होने के पश्चात ऋषि दुर्वासा ने यहाँ तपस्या की थी। कामाक्षी को प्रसन्न कर उन्होंने श्राप से मुक्ति पायी, तत्पश्चात यहाँ श्री चक्र की स्थापना की। उन्होंने यहाँ सौभाग्य चिंतामणि कल्प की रचना की जिसे दुर्वासा संहिता भी कहा जाता है। अपने इस ग्रन्थ में उन्होंने कामाक्षी की उपासना की विस्तृत विधि निर्धारित की। आज भी यहाँ कामाक्षी की उपासना ठीक वैसे ही की जाती है जैसे उनके ग्रन्थ सौभाग्य चिंतामणि में दर्शाया गया है।एक अन्य कथा के अनुसार देवी पहले यहाँ अपने रौद्र रूप में वास करती थी। उनके क्रोध की अग्नि ने गर्भगृह को अत्यंत ऊष्ण कर दिया था। तब आदि शंकराचार्य ने उनका क्रोध शांत किया था। उसके पश्चात देवी यहाँ करुणा रूप में बसती हैं। आदि शंकराचार्य ने इसी मंदिर में बैठकर सौंदर्य लहरी की रचना की थी।
8-कामाक्षी मंदिर के उत्सव;-
प्रत्येक फाल्गुन मास में यहाँ भगवान् शिव एवं कामाक्षी का विवाहोत्सव मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह उत्सव लगभग फरवरी/मार्च के महीने में पड़ता है। भक्तों की मान्यता है कि विवाह की अभिलाषा रखते नवयुवकों एवं नवयुवतियों को इस उत्सव में अवश्य भाग लेना चाहिए। इस दिन देवी को नौका में बिठाकर घुमाया भी जाता है
NOTE;-
जहां एक ओर कांची कामाक्षी मंदिर कांचीपुरम नगरी का केंद्र बिंदु है, वहीं कांचीपुरम के दो और पहलू हैं, शिव कांची तथा विष्णु कांची। अतः हिन्दू धर्म के इन तीनों प्रमुख पंथों के अनुयायियों के लिए कांचीपुरम नगरी का अपना पृथक महत्व है। कांचीपुरम के कामाक्षी मंदिर, एकाम्बरेश्वर मंदिर और वरदराज पेरुमाल मंदिर को सामूहिक रूप से "मूमुर्तिवासम" कहा जाता है, यानि "त्रिमूर्तिवास" (तमिल भाषा में "मू" से तात्पर्य "तीन" है)।यहाँ कई बडे़ मन्दिर हैं, जैसे वरदराज पेरुमल मन्दिर भगवान विष्णु के लिये, भगवान शिव के पांच रूपों में से एक को समर्पित एकाम्बरनाथ मन्दिर, कामाक्षी अम्मन मन्दिर, कुमारकोट्टम, कच्छपेश्वर मन्दिर, कैलाशनाथ मन्दिर, इत्यादि।
अन्य मन्दिर;-
09 FACTS;-
1-वरदराज मंदिर;-
03 POINTS;-
1-भगवान विष्णु को समर्पित इस मंदिर में उन्हें देवराजस्वामी के रूप में पूजा जाता है। मंदिर में 100 स्तम्भों वाला एक हाल है जिसे विजयनगर के राजाओं ने बनवाया था। यह मंदिर उस काल के कारीगरों की कला का जीता जागता उदाहरण है।
उत्तरी तमिलनाडु में स्थित कांचीपुरम भारत के सात सबसे पवित्र शहरों में एक माना जाता है। यह मंदिर हाथी के आकार की एक पहाड़ी पर निर्मित है जिसे हस्तगिरी कहते हैं। गर्भगृह की असामान्य ऊंचाई आश्चर्य में डाल देती है।मंदिर के पीछे एक ऊंचा गोपुरम है। वास्तव में यह दो प्रमुख गोपुरम में से एक है तथा अपेक्षाकृत अधिक ऊंचा है।विष्णु कांची में कई शिव मंदिर भी हैं, जैसे पुन्यकोटी मंदिर एवं व्यास मंदिर।
2-अनंतसरस कुण्ड ....कांचीपुरम के वरदराज पेरूमल मंदिर के 100 स्तंभों के अग्रशाला के पृष्ठभाग में एक विशाल जलकुण्ड है। कुण्ड के मध्य में एक छोटा मंदिर है जिस तक पहुँचने के लिए इसके चारों ओर सीड़ियाँ बनी हुई हैं। कुण्ड के चारों ओर विष्णु के अनेक रूपों को समर्पित कई मंदिर हैं जिनमें इसके एक कोने में स्थित मंदिर प्रमुख है।इस कुण्ड को अनंतसरस कहा जाता है। इस कुण्ड की विशेषता है इसके जल के भीतर लुप्त एक मंदिर। ऐसा कहा जाता है कि मंदिर की मूल विष्णु प्रतिमा अंजीर की लकड़ी से बनी हुई थी। कालान्तर में इस प्रतिमा को हटाकर धातुई प्रतिमा की स्थापना की गयी तथा लकड़ी की प्रतिमा को चांदी के बक्से में बंद कर कुण्ड के जल में विसर्जित किया गया था। प्रत्येक 40 वर्षों के उपरांत इस लकड़ी की प्रतिमा को निकाला जाता है तथा उसका रखरखाव कर उसे पूजा जाता है। जुलाई 2019 में इसे एक बार निकाला गया था।
3-मुख्य मंदिर के दर्शन के पश्चात कुण्ड के चारों ओर पदयात्रा आरम्भ करे एवं चारों ओर स्थित छोटे मंदिरों में दर्शन करे । ये मंदिर वेणुगोपाल, वराह, रंगनाथ, नरसिम्हा जैसे विष्णु अवतारों को समर्पित हैं। इसके एक ओर 100 स्तंभों की अग्रशाला है। एक वृक्ष के नीचे हल्दी छिड़की हुई कई नागा शिलाएं रखी हुई थीं।नरसिंह मंदिर के दाहिनी ओर एक बड़ा मंदिर है जिस के भीतर पहुँचने के लिए कुछ सीड़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। सीड़ियाँ चढ़कर एक मंदिर पेरुन्देवी को समर्पित है। पेरुन्देवी विष्णु की पत्नी लक्ष्मी का अवतार है। इसके भीतर गर्भगृह छोटा है किन्तु सामने अनेक स्तंभों से युक्त बहुत बड़ी अग्रशाला है।
2-कैलाशनाथ मंदिर;-
शहर के पश्चिम दिशा में स्थित यह मंदिर कांचीपुरम का सबसे प्राचीन और दक्षिण भारत के सबसे शानदार मंदिरों में एक है। इस मंदिर को आठवीं शताब्दी में पल्लव वंश के राजा नरसिंहवर्मन द्वितीय ने अपनी पत्नी की प्रार्थना पर बनवाया था। मंदिर के अग्रभाग का निर्माण राजा के पुत्र महेन्द्र वर्मन तृतीय के करवाया था। मंदिर में देवी पार्वती और शिव की नृत्य प्रतियोगिता को दर्शाया गया है।
3-बैकुंठ पेरूमल मंदिर;-
विष्णु कांची का केंद्र बिंदु है बैकुंठ पेरूमल मंदिर, जिसे देवराज्यस्वामी मंदिर भी कहा जाता है। 23 एकड़ धरती पर फैला हुआ यह केवल एक मंदिर नहीं है, अपितु कई मंदिरों के भरा हुआ पूर्ण मंदिर परिसर है। मंदिरों के साथ साथ यहाँ कई स्तंभों युक्त मंडप, कक्ष एवं कुण्ड हैं। कांचीपुरम के इस मंदिर में कई महत्वपूर्ण तत्व हैं|भगवान विष्णु को समर्पित इस मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में पल्लव राजा नंदीवर्मन पल्लवमल्ला ने करवाया था। मंदिर में भगवान विष्णु को बैठे, खड़े और आराम करती मुद्रा में देखा जा सकता है। मंदिर की दीवारों में पल्लव और चालुक्यों के युद्धों के दृश्य बने हुए हैं। मंदिर में 1000 स्तम्भों वाला एक विशाल हॉल भी है जो पर्यटकों को बहुत आकषित करता है। प्रत्येक स्तम्भ में नक्काशी से तस्वीर उकेरी गई हैं जो उत्तम कारीगर की प्रतीक हैं।अधिकतर मंदिरों में स्थित एकल गर्भगृह के विपरीत इस मंदिर में एक के ऊपर एक तीन गर्भगृह हैं। तीनों गर्भगृहों में विष्णु की प्रतिमाओं की मुद्राएँ एवं भाव-भंगिमाएं भिन्न हैं।
4-एकंबरेश्वर मंदिर ( पृथ्वी तत्व/धरती को समर्पित);-
यह अति प्राचीन ओर भव्य मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर को पल्लवों ने बनवाया था। बाद में इसका पुर्ननिर्माण चोल और विजयनगर के राजाओं ने करवाया। 11 खंड़ों का यह मंदिर दक्षिण भारत के सबसे ऊंचे मंदिरों में एक है। मंदिर में बहुत आकर्षक मूर्तियां देखी जा सकती हैं।इस मंदिर की एक उल्लेखनीय विशेषता यह है, कि मंदिर में स्थापित सभी 1000 लिंग एक एकान्त पत्थर से बने हैं। साथ ही, मंदिर के भीतर एक हजार खंभे पाए गए हैं। एकमब्रानाथ मंदिर के बाहर एक आम का पेड़ भी है, जो लगभग 3500 साल पुराना है। इस पेड़ में चार अलग अलग शाखाये है जो चारों वेदों का प्रतिनिधित्व करती हैं। यह भी माना जाता है कि इस पेड़ के प्रत्येक शाखा का फल अलग-अलग होता है, भले ही वे सभी एक ही पेड़ पर हों। इस पेड़ के नीचे माँ पार्वती ने भगवान महादेव शिव की पूजा की थी और माता पार्वती शिव जी को प्राप्त करने के लिए, उसी आम के पेड़ के नीचे मिटटी या बालू से ही एक शिवलिंग बना कर घोर तपस्या करनी शरू कर दी| जब शिवजी ने ध्यान मग्न पार्वती जी को तपस्या करते हए देखा तो महादेव ने माता पार्वती की परीक्षा लेने के उद्देश्य से अपनी जटा से गंगा जल को बहाना शुरू दिया। जल के तेज गति से पूजा मे बाधा पड़ने लगी तो माता पार्वती ने उस शिवलिंग जिसकी वह पूजा कर रही थी उसे गले लगा लिया जिसे से शिव लिंग को कोई नुकसान न हो। भगवान शंकर जी यह सब देख कर बहुत प्रस्सन हए और माता पार्वती को दर्शन दिये। शिव जी ने माता पार्वती से वरदान मांगने को कहा तो माता पार्वती ने विवाह की इच्छा व्यक्त की। महादेव ने माता पार्वती से विवाह कर लिया। आज भी मंदिर के अंदर वह आम का पेड़ हरा भरा देखा जा सकता है। माता पार्वती और शिव जी को समर्पित यह मंदिर एकबारनाथ मंदिर है।
5-पांडव थूथर पेरुमल मंदिर;-
यह भगवान विष्णु को समर्पित यह पांडव थूथर पेरुमल मंदिर की महाभारत की कहानियों से इसकी किंवदंती है और मंदिर की दीवारों पर चोल साम्राज्य के ऐतिहासिक शिलालेख हैं। मंदिर के चारों ओर दो छोटे जल निकाय हैं जिन्हें पवित्र स्थान माना जाता है और इसे तमिलनाडु में भगवान विष्णु को समर्पित सबसे पुराने मंदिरों में से एक माना जाता है। पांडव थूथर पेरुमल मंदिर 8वीं शताब्दी में पल्लवों के शासनकाल के दौरान बनाया गया था। यह शहर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है और भगवान विष्णु के 108 दिव्यदेशों में से एक है।
6-कुमारकोट्टम मुरुगन मंदिर ;-
श्री कुमारा कोट्टम मंदिर कांचीपुरम में स्थित है, जो भारत के सात "मोक्ष-पुरी" या पवित्र शहरों में से एक है जहां मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। इस मंदिर में, भगवान मुरुगा की स्तुति में पवित्र कांड पुराणम की रचना संत विद्वान कचियप्पा शिवचार्य ने की थी। इस मंदिर में हर मंगलवार और हर कृतिकाई की पूजा करना बहुत शुभ होता है।यहाँ भगवान मुरुगन के अनोखे रूप के दर्शन करेगें जिन्हें हाथ में कमंडल लिए हुए और गले में रुद्राक्ष की माला धारण करते हुए दर्शाया गया है।
7-कच्छपेश्वर मंदिर ;-
कच्छपेश्वर मंदिर, कांचीपुरम पूरे भारत का एक अद्भुत मंदिर है। वास्तव यह मंदिर भगवान् विष्णु जी को समर्पित है जिन्हें मंदिर में कछुए के रूप में भगवान शिव की पूजा करते देखा जा सकता है।
8-विष्णु कांची का व्यासेश्वर मंदिर;-
व्यासेश्वर मंदिर जलकुण्ड के समीप, एक विस्तृत किन्तु त्यक्त, यह एक छोटा एवं अत्यंत प्राचीन पाषाणी मंदिर है । इसके गोलाकार शिखर पर व्यास मुनि की एक प्रतिमा है । यह सहसा पहचान में नहीं आती। एक दंतकथा है जिसमें एक श्राप के कारण व्यास के हाथों को बांधने का उल्लेख है। श्राप से मुक्ती पाने के पश्चात ही उनके हस्त मुक्त हुए थे। यहाँ इस मंदिर के शिखर में उनके मुक्त हस्त के साथ प्रतिमा है। यह कथाएं हमें ऐसे स्थानों एवं वहां की विशेषताओं को स्मरण रखने में सहायता करती हैं। व्यासेश्वर मंदिर एक शिव मंदिर है।व्यासेश्वर मंदिर के समीप ही, मंदिर के जलकुण्ड के उस पार, वसिष्ठेश्वर मंदिर है।
9-अष्टभुज पेरूमल मंदिर;-
अष्टभुज का अर्थ है, जिसकी आठ भुजाएं हैं। पेरूमल अर्थात् विष्णु की इस मूर्ति में आठ भुजाएं हैं। गले में शालिग्राम की माला के लिए भी यह प्रतिमा प्रसिद्ध है।अष्टभुज पेरूमल मंदिर का गोपुरम 3 तल का है । दाहिनी ओर स्थित कुण्ड है। इसके प्रवेश द्वार पर रंगीन नक्काशी हैं ।
कांचीपुरम कैसे पहुंचे ?–
कांचीपुरम से निकटतम हवाई अड्डा चेन्नई हवाई अड्डा (एमएए) है जो 60-70 किमी की दूरी पर स्थित है।हवाई अड्डे से, आपको यहाँ तक पहुँचने के लिए कैब या सार्वजनिक परिवहन के किसी अन्य साधन की आवश्यकता होगी। यदि आप ट्रेन से कांचीपुरम जाने की योजना बना रहे हैं, तो कांचीपुरम स्टेशन (CJ) पर उतरें। यह दक्षिणी रेलवे क्षेत्र के चेन्नई रेलवे डिवीजन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। देवी कामाक्षी मंदिर कांचीपुरम बस स्टैंड से 1 किलोमीटर और कांचीपुरम रेलवे स्टेशन से लगभग 3 किलोमीटर दूर है। यहाँ से वरदराज पेरूमल मंदिर 4 किलोमीटर , एकम्बरनाथर मंदिर 1 किलोमीटर और कैलाशनाथार मंदिर लगभग 2 किलोमीटर की दुरी पर है।
...SHIVOHAM....
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