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कुलदेवता,कुलदेवी की पूजा करना क्यों जरूरी है ?

06 FACTS;-

1-भारत में हिन्दू पारिवारिक आराध्य व्यवस्था में कुलदेवता / कुलदेवी का स्थान सदैव से रहा है। प्रत्येक हिन्दू परिवार किसी न किसी ऋषि के वंशज हैं। जिनसे उनके गोत्र का पता चलता है, बाद में कर्मानुसार इनका विभाजन वर्णों में हो गया।विभिन्न कर्म करने के लिए, जो बाद में उनकी विशिष्टता बन गया और जाति कहा जाने लगा। हर जाति वर्ग, किसी न किसी ऋषि की संतान है और उन मूल ऋषि से उत्पन्न संतान के लिए वे ऋषि या ऋषि पत्नी कुलदेव / कुलदेवी के रूप में पूज्य भी हैं। जीवन में कुलदेवता का स्थान सर्वश्रेष्ठ है। आर्थिक सुबत्ता, कौटुंबिक सौख्य और शांती तथा आरोग्य के विषय में कुलदेवी की कृपा का निकटतम संबंध पाया गया है।पूर्व के हमारे कुलों अर्थात पूर्वजों के खानदान के वरिष्ठों ने अपने लिए उपयुक्त कुल देवता अथवा कुलदेवी का चुनाव कर उन्हें पूजित करना शुरू किया था, ताकि एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति कुलों की रक्षा करती रहे जिससे उनकी नकारात्मक शक्तियों - ऊर्जाओं और वायव्य बाधाओं से रक्षा होती रहे तथा वे निर्विघ्न अपने कर्म पथ पर अग्रसर रह उन्नति करते रहें।

2-कुलदेवी - देवता दरअसल कुल या वंश की रक्षक देवी देवता होते है। ये घर परिवार या वंश परम्परा की प्रथम पूज्य तथा मूल अधिकारी देव होते है। सर्वाधिक आत्मीयता के अधिकारी इन देवो की स्थिति घर के बुजुर्ग सदस्यों जैसी महत्वपूर्ण होती है। अत: इनकी उपासना या महत्त्व दिए बगैर सारी पूजा एवं अन्य कार्य व्यर्थ हो सकते है।इनका प्रभाव इतना महत्वपूर्ण होता है की यदि ये रुष्ट हो जाए तो अन्य कोई देवी देवता दुष्प्रभाव या हानि कम नही कर सकता या रोक नही लगा सकता। इसे यूं समझे – यदि घर का मुखिया पिताजी - माताजी आपसे नाराज हो तो पड़ोस के या बाहर का कोई भी आपके भले के लिये, आपके घर में प्रवेश नही कर सकता क्योकि वे “बाहरी” होते है। खासकर सांसारिक लोगो को कुलदेवी देवता की उपासना इष्ट देवी देवता की तरह रोजाना करना ही चाहिये।ऐसे अनेक परिवार देखने मे आते है जिन्हें अपने कुल देवी देवता के बारे में कुछ भी नही मालूम नही होता है। किन्तु कुलदेवी - देवता को भुला देने मात्र से वे हट नही जाते, वे अभी भी वही रहेंगे। यदि मालूम न हो तो अपने परिवार या गोत्र के बुजुर्गो से कुलदेवता - देवी के बारे में जानकारी लेवें, यह जानने की कोशिश करे की झडूला - मुण्डन संस्कार आपके गोत्र परम्परानुसार कहा होता है, या “जात” कहा दी जाती है, या विवाह के बाद एक अंतिम फेरा कहा होता है। हर गोत्र - धर्म के अनुसार भिन्नता होती है. सामान्यत: ये कर्म कुलदेवी / कुलदेवता के सामने होते है और यही इनकी पहचान है।

3-समय क्रम में परिवारों के एक दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने, धर्म परिवर्तन करने, आक्रान्ताओं के भय से विस्थापित होने, जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने, संस्कारों के क्षय होने, विजातीयता पनपने, इनके पीछे के कारण को न समझ पाने आदि के कारण बहुत से परिवार अपने कुल देवता / देवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही नहीं रहा की उनके कुल देवता / देवी कौन हैं या किस प्रकार उनकी पूजा की जाती है। इनमें पीढ़ियों से शहरों में रहने वाले परिवार अधिक हैं, कुछ स्वयंभू आधुनिक मानने वाले और हर बात में वैज्ञानिकता खोजने वालों ने भी अपने ज्ञान के गर्व में अथवा अपनी वर्त्तमान अच्छी स्थिति के गर्व में इन्हें छोड़ दिया या इन पर ध्यान नहीं दिया।कुल देवता / देवी की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो कोई ख़ास अंतर नहीं समझ में आता, किन्तु उसके बाद जब सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में दुर्घटनाओं, नकारात्मक ऊर्जा, वायव्य बाधाओं का बेरोक - टोक प्रवेश शुरू हो जाता है, उन्नति रुकने लगती है, पीढ़िया अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाती, संस्कारों का क्षय, नैतिक पतन, कलह, उपद्रव, अशांति शुरू हो जाती हैं, व्यक्ति कारण खोजने का प्रयास करता है, कारण जल्दी नहीं पता चलता क्योकि व्यक्ति की ग्रह स्थितियों से इनका बहुत मतलब नहीं होता है, अतः ज्योतिष आदि से इन्हें पकड़ना मुश्किल होता है, भाग्य कुछ कहता है और व्यक्ति के साथ कुछ और घटता है।

4-कुल देवता या देवी हमारे वह सुरक्षा आवरण हैं जो किसी भी बाहरी बाधा, नकारात्मक ऊर्जा के परिवार में अथवा व्यक्ति पर प्रवेश से पहले सर्वप्रथम उससे संघर्ष करते हैं और उसे रोकते हैं। यह पारिवारिक संस्कारों और नैतिक आचरण के प्रति भी समय समय पर सचेत करते रहते हैं, यही किसी भी ईष्ट को दी जाने वाली पूजा को इष्ट तक पहुचाते हैं। यदि इन्हें पूजा नहीं मिल रही होती है तो यह नाराज भी हो सकते हैं और निर्लिप्त भी हो सकते हैं।ऐसे में आप किसी भी इष्ट की आराधना करे वह उस इष्ट तक नहीं पहुँचता, क्योकि सेतु कार्य करना बंद कर देता है, बाहरी बाधाये, अभिचार आदि, नकारात्मक ऊर्जा बिना बाधा व्यक्ति तक पहुचने लगती है, कभी कभी व्यक्ति या परिवारों द्वारा दी जा रही इष्ट की पूजा कोई अन्य बाहरी वायव्य शक्ति लेने लगती है, अर्थात पूजा न इष्ट तक जाती है न उसका लाभ मिलता है।ऐसा कुलदेवता की निर्लिप्तता अथवा उनके कम सशक्त होने से होता है। कुलदेव परम्परा भी लुप्तप्राय हो गयी है, जिन घरो में प्राय: कलह रहती है, वंशावली आगे नही बढ रही है, आर्थिक उन्नति नही हो रही है, विकृत संताने हो रही हो अथवा अकाल मौते हो रही हो, उन परिवारों में विशेष ध्यान देना चाहिए।

5-कुलदेवता या देवी सम्बंधित व्यक्ति के पारिवारिक संस्कारों के प्रति संवेदनशील होते हैं और पूजा पद्धति, उलटफेर, विधर्मीय क्रियाओं अथवा पूजाओं से रुष्ट हो सकते हैं, सामान्यतया इनकी पूजा वर्ष में एक बार अथवा दो बार निश्चित समय पर होती है, यह परिवार के अनुसार भिन्न समय होता है और भिन्न विशिष्ट पद्धति होती है, शादी - विवाह, संतानोत्पत्ति आदि होने पर इन्हें विशिष्ट पूजाएँ भी दी जाती हैं, यदि यह सब बंद हो जाए तो या तो यह नाराज होते हैं या कोई मतलब न रख मूकदर्शक हो जाते हैं और परिवार बिना किसी सुरक्षा आवरण के पारलौकिक शक्तियों के लिए खुल जाता है। परिवार में विभिन्न तरह की परेशानियां शुरू हो जाती हैं। अतः प्रत्येक व्यक्ति और परिवार को अपने कुल देवता या देवी को जानना चाहिए तथा यथायोग्य उन्हें पूजा प्रदान करनी चाहिए, जिससे परिवार की सुरक्षा - उन्नति होती रहे।अक्सर कुलदेवी, देवता और इष्ट देवी देवता एक ही हो सकते है, इनकी उपासना भी सहज और तामझाम से परे होती है। जैसे नियमित दीप व् अगरबत्ती जलाकर देवो का नाम पुकारना या याद करना, विशिष्ट दिनों में विशेष पूजा करना, घर में कोई पकवान आदि बनाए तो पहले उन्हें अर्पित करना फिर घर के लोग खाए, हर मांगलिक कार्य या शुभ कार्य में उन्हें निमन्त्रण देना या आज्ञा मांगकर कार्य करना आदि।

6-इस कुल परम्परा की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की यदि आपने अपना धर्म बदल लिया हो या इष्ट बदल लिया हो तब भी कुलदेवी देवता नही बदलेंगे, क्योकि इनका सम्बन्ध आपके वंश परिवार से है।किन्तु धर्म या पंथ बदलने सके साथ साथ यदि कुलदेवी - देवता का भी त्याग कर दिया तो जीवन में अनेक कष्टों का सामना करना पद सकता है जैसे धन नाश, दरिद्रता, बीमारिया, दुर्घटना, गृह कलह, अकाल मौते आदि। वही इन उपास्य देवो की वजह से दुर्घटना बीमारी आदि से सुरक्षा होते हुवे भी देखा गया है।ऐसे अनेक परिवार भी है जिन्हें अपने कुल देवी देवता के बारे में कुछ भी नही मालूम। एक और बात ध्यान देने योग्य है - किसी महिला का विवाह होने के बाद ससुराल की कुलदेवी / देवता ही उसके उपास्य हो जायेंगे न की मायके के। इसी प्रकार कोई बालक किसी अन्य परिवार में गोद में चला जाए तो गोद गये परिवार के कुल देव उपास्य होंगे।

कुलदेवी / कुलदेवता के पूजन की सरल विधि :-

02 FACTS;-

1-कुलदेवी की पूजा प्रतिदिन नियमित रूप से करनी चाहिए जिस तरह आप अपने अन्य देवी देवताओं की पूजा अर्चना करते हैं उसी प्रकार कुलदेवी की पूजा भी करना बहुत जरूरी होता है। प्रतिदिन कुलदेवी की पूजा अर्चना करने से उनको याद करने और उनकी स्तुति करने से हमारी कुल देवी प्रसन्न होती और हमें आशीर्वाद, सुख, शांति और समृद्धि देती है।कुलदेवी की पूजा आपको कुलदेवी की प्रतिमा के सामने दीप जलाकर करना चाहिए।इसके बाद अगर हो सके तो भोग जरूर लगाये। इतना हो जाने के बाद कुलदेवी को भी आरती करें और सारी पूजा होने के बाद माफी मांग कर उनसे अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए प्रार्थना करें।अपने कुलदेवता/कुलदेवी से निवेदन करें कि मेरे घर में सब कुछ आपका है। मैं भी आपका हूं और घर परिवार सब कुछ आपका है। आप इसकी रक्षा करो तभी मैं इस घर के लिए कुछ कर सकता /सकती हूं। इस तरह से प्रार्थना करने से मां भगवती आपके परिवार का सब भार अपने ऊपर ले लेती हैं और फिर आपके परिवार की रक्षा करना मां कुलदेवी के ऊपर ही निर्भर करता है। माँ इस प्रकार की रक्षा करती है आपको उसके बारे में सोचने की आवश्यकता नहीं होती

2-ऐसा माना जाता है कि रोजाना कुलदेवी की पूजा करने से हमारे घर में सकारात्मक ऊर्जा का वातावरण बना रहता है और घर के सभी सदस्यों में प्यार प्रेम बना रहता है।अत: कुल देवी और देवता के लिए प्रतिदिन सुबह और शाम को भोग निकालें और उनके नाम का उच्चारण करें। नाम नहीं याद हो तो स्थान का उच्चारण करें। जैसे, डुंगलाई वाली कुलदेवी की जय। स्थान का नाम भी नहीं मालूम हो तो हे... माता कुलदेवी और कुलदेवता आप सदा विजयी हो।दुर्गा माता की जय, भैरव महाराज की जय।कुल देवी या देवता के स्थान पर जाकर एक साबूत नींबू लें और उसको अपने उपर से 21 बार उतारकर उसे दो भागों में काटकर; एक भाग को दूसरे भाग की दिशा में और दूसरे भाग को पहले भाग की दिशा में फेंक दें। इसके बाद कुलदेवी या देवता से क्षमा मांगकर वहां अच्छे से पूजा पाठ करें या करवाएं और सभी को दान-दक्षिणा दें।

....SHIVOHAM.....


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