कैंची धाम मंदिर और काकड़ी घाट
05 FACTS;-
1-कैंची धाम नैनीताल अल्मोडा मार्ग पर नैनीताल से लगभग 17 किलोमीटर एवं भवाली से 9 किलोमीटर पर अवस्थित है । इस आधुनिक तीर्थ स्थल पर बाबा नीब करौली महाराज का आश्रम है।नीम करोली या नीब करौरी बाबा की गिनती 20वीं सदी के महान संतों में की जाती है।धाम परिसर मे ही मंदिर के निकट एक गुफा भी है जहाँ बाबा नीब करोरी अपना समय ध्यान और तप में व्यतीत करते थे इस कारण इस गुफा को एक पवित्र क्षेत्र माना जाता है।मंदिर का यह नाम (कैंची) धाम यहाँ के दो तीक्ष्ण मोड़ो शार्प यू-टर्न की वजह से रखा गया है, जो प्रायः कैंची के आकार के दिखाई देते हैं। तथा स्थानीय भाषा मे इस प्रकार की मोड़ो को कैंची भी कहा जाता है। अतः इस धाम के नाम का काटने वाली कैंची से कोई संबंध नहीं है।बाबा नीब करौरी महाराज जी को हनुमान जी का अवतार माना जाता है। कई पुस्तकों में बाबा नींब करौरी महाराज जी के अनेको चमत्कारों का वर्णन भी है। भक्त बताते हैं कि बाबा नीब करौरी महाराज जी को कैंची धाम से विशेष लगाव था।हर साल 15 जून को कैंची धाम के स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है।
2-नीम करौली बाबा का जन्म उत्तरप्रदेश के फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर में रहने वाले एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। 11 वर्ष की उम्र में ही उनका विवाह एक ब्राह्मण कन्या के साथ कर दिया गया था। परन्तु शादी के कुछ समय बाद ही उन्होंने घर छोड़ दिया और साधु बन गए। माना जाता है कि लगभग 17 वर्ष की उम्र में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी।घर छोड़ने के लगभग 10 वर्ष बाद उनके पिता को किसी ने उनके बारे में बताया। जिसके बाद उनके पिता ने उन्हें घर लौटने और वैवाहिक जीवन जीने का आदेश दिया। वह तुरंत ही घर लौट आए। कालांतर में उनके दो पुत्र तथा एक पुत्री उत्पन्न हुए। गृहस्थ जीवन के दौरान उन्होंने अपने आपको सामाजिक कार्यों में व्यस्त रखा।1962 के दौरान नीम करौली बाबा ने कैंची गांव में एक चबूतरा बनवाया। जहां पर उन्के साथ पहुंचे संतों ने प्रेमी बाबा और सोमबारी महाराज ने हवन किया।नीम करौली बाबा हनुमानजी के बहुत बड़े भक्त थे। उन्हें अपने जीवन में लगभग 108 हनुमान मंदिर बनवाए थे। वह आडंबरों से दूर रहते थे... एकदम आम आदमी की तरह जीने वाले बाबा अपना पैर भी छूने नहीं देते थे। वे हनुमान जी के पैर छूने को कहते थे। बाबा कहते थे कि गृहस्थ में रहकर भी भगवान को जाना जा सकता है। काया और माया की आसक्ति से दूर रहना चाहिए। वर्तमान में उनके हिंदुस्तान समेत अमरीका के टैक्सास में भी मंदिर है।बाबा ने अपनी समाधि के लिए वृन्दावन की पावन भूमि को चुना। उनकी मृत्यु 11 सितम्बर 1973 को हुई। उनकी याद में आश्रम में उनका मंदिर बनवाया गया और एक प्रतिमा भी स्थापित की गई।
3-बाबा को वर्ष 1960 के दशक में अन्तरराष्ट्रीय पहचान मिली। उस समय उनके एक अमरीकी भक्त बाबा राम दास ने एक किताब लिखी जिसमें उनका उल्लेख किया गया था। इसके बाद से पश्चिमी देशों से लोग उनके दर्शन और आर्शीवाद लेने के लिए आने लगे।नीम करौली बाबा सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपने चमत्कार के कारण जाने जाते हैं।फेसबुक और एप्पल के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग व स्टीव जॉब्स को राह दिखाने वाले नीम करौली बाबा पश्चिमी देशों में भारत की विरासत का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके आश्रम में जहां न केवल देशवासियों को ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को प्रसन्न और खुशहाल बनने का रास्ता मिलता है। वहीं दूसरी ओर प्राचीन सनातन धर्म की संस्कृति का भी प्रचार प्रसार होता है।बताया जाता है कि हनुमान जी की कड़ी उपासना करने के बाद ही उन्हें चमत्कारिक सिद्धियां प्राप्त हुई थीं।लोकप्रिय लेखक रिचर्ड अल्बर्ट ने 'मिरेकल ऑफ लव' नाम से बाबा पर लिखी पुस्तक में उनके चमत्कारों का वर्णन किया है। सिर्फ यही नहीं हॉलीवुड अभिनेत्री जूलिया राबर्ट्स, एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स और फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग सहित कई अन्य विदेशी हस्तियां बाबा के भक्त हैं।
4-बाबा नीब करौरी महाराज जी ने 15 जून 1964 को कैंची धाम में हनुमान जी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा की थी। इस दिन देश-विदेश से यहां लोग बाबा के दर्शन करने और पावन प्रसाद को ग्रहण करने आते हैं।भक्तों के दर्शन के लिए सुबह 9 बजे से 5 बजे तक मंदिर के कपाट खुले रहते है।ऊँचे पहाड़ों पर बड़े, हरे-भरे पेड़ों के बीच श्री हनुमान जी के ही रंग में सराबोर मंदिर, और बगल में कल-कल ध्वनि की मधुर धुन में बहती हुई नदी का जल इस धाम को और भी शांत, दिव्य और मनोरम बनाता है।कैंची धाम कोसी नदी के किनारे बना हुआ है। मंदिर परिसर के अंदर फोटोग्राफी करना मना ही है।गोस्वामी तुलसी दास जी के बाद कलयुग मे श्री महावीर हनुमान ने नीब करौरी बाबा को ही प्रत्यक्ष दर्शन दिए थे।बाबा नीम करोली की सोमवारी महाराज पर असीम संस्था की आस्था थी। बाबा को जो शक्तियां प्राप्त थी, उन्हें सोम बारी बाबा से प्राप्त हुई थीं। सोम बारी बाबा 19वीं सदी के विरक्त सिद्ध संतों में थे। नीब करौरी बाबा के चमत्कार और उनकी शक्तियां उनका प्रारब्ध था। लेकिन सोम बारी बाबा ने उन्हें जाग्रत किया और उन्हें बताया कि पूर्व में बाबा महायोगी रहे होंगे। शेष भोग पूर्ण करने के लिए उन्होंने जन्म लिया हैऔर चमत्कारी शक्तियां उनके साथ आ गईं है।नीम करोली महाराज द्वारा स्थापित वर्तमान कैंची धाम पहले सोमवारी महाराज की धूनी का स्थान रहा है।यहां एक कंदरा में सोमवारी बाबा ने प्रवास भी किया था।
5-कैंची धाम में स्थित काकड़ी घाट ;-
02 POINTS;-
1-अल्मोड़ा के मार्ग में खैरना से आगे काकड़ी घाट नामक स्थान पड़ता है।काकड़ी घाट का प्राचीन महत्व है।यहाँ पर एक पुराना शिव मन्दिर है।जब पर्वतीय अंचल में मोटर मार्ग नहीं थे तो बद्रीनाथ जाने के लिए यहीं से पैदल मार्ग कर्णप्रयाग के लिए जाता था।आज भी कई धार्मिक यात्री इसी मार्ग से पैदल चलकर बद्रीनाथ-केदारनाथ की यात्रा करने जाते हैं।काकड़ी घाट के नजदीक ही एक पुल कोसी पर बना है।उस पुल को पार करते ही मोटर-मार्ग पहाड़ी की चोटी की ओर बढ़ने लगता है।यह पर्वतीय मार्ग-ऐतिहासिक नगरी अल्मोड़ा में आता है।अल्मोड़ा की ओर जाने वाले मार्ग पर खैरना कस्बे से आगे कोसी नदी के तट पर काकड़ीघाट महान सिद्ध संत सोमवारी बाबा की साधना स्थली रहा है।यह स्थान जंगम बाबा तथा गुदड़ी महाराज आदि प्रसिद्ध संतो की तपस्थली रहा है।संत हरदेव पुरी / गुदड़ी महाराज ने इस स्थान पर जीवित समाधि ली थी। सन 1890 में स्वामी विवेकानंद भी अल्मोड़ा जाते समय काकड़ी घाट के इस स्थल के पास ही रुके थे। सोमवारी आश्रम के नजदीक ही शिवालय में पीपल वृक्ष के नीचे स्वामी विवेकानंद को भाव समाधि में ज्ञान प्राप्त हुआ था।
2-स्वामी विवेकानंद के कारण चर्चित हुआ यह प्रसिद्ध स्थल सोमवारी बाबा आश्रम से थोड़ा ही पहले कोसी और सिरौता नदियों के संगम पर श्मशान पर स्थित है।स्वामी विवेकानंद स्नान करने के बाद पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान करने बैठे।वहां की सकारात्मक तरंगों व अद्भुत ऊर्जा की अनुभूति से उनके कदम पीपल के विशाल पेड़ की ओर बढ़े थे। ध्यान में एक घंटा बीत जाने के बाद स्वामी जी ने अखंडानंद से कहा देखो गंगाधर इस वृक्ष के नीचे एक अत्यंत शुभ मुहूर्त बीत गया है। आज एक बड़ी समस्या का समाधान हो गया है। मैंने जान लिया कि समष्टि और व्यष्टि (विश्व ब्रह्माण्ड तथा अणु ब्रह्माण्ड) दोनों एक ही नियम से परिचित होते हैं।अणु ब्रह्माण्ड और विश्व ब्रह्माण्ड की एक ही नियम से संरचना हुई है। जिस ‘बोधि वृक्ष’ सरीखे पीपल वृक्ष के नीचे स्वामी विवेकानन्द को " पिण्ड में ब्रह्माण्ड का ज्ञान" ~ प्राप्त हुआ था, उस स्थान का नाम 'काकड़ीघाट ' है। उन्होंने अपनी अनुभूति की कुछ अन्य बातें भी अखंडानंद को बताई .....
''सृष्टि के आदि में शब्द- ब्रह्म ही था। सृष्टि की उत्पत्ति की प्रक्रिया नाद के साथ हुई। जब प्रथम महास्फोट (बिग बैंग) हुआ, तब आदि-नाद (नादब्रह्म) उत्पन्न हुआ। उस मूल ध्वनि को जिसका प्रतीक ‘ॐ‘ है, नादब्रह्म कहा जाता है। ॐ महज एक शब्द नहीं है, और ना ही ॐ का किसी ख़ास धर्म से कोई लेना-देना है। हम भले ही 'ऊँ' की ध्वनि मुख से निकाल लें, लेकिन ॐ को अनाहत नाद कहा गया है। अनाहत का अर्थ होता है जो किसी के टकराने से पैदा ना हुआ हो। जहां टकराहट हो वहां भला ऊँ कहां। भीतर जब बिल्कुल शांति हो, अंदर के हमारे सारे द्वंद मिट जाते हैं, तब एक अनाहत नाद (शाश्वत चैतन्य स्पंदन है ) से हमारा संपर्क /योग होता है-ॐ से हम जुड़ पाते हैं। ऊँ का हम मुख से रट लगा सकते हैं, लेकिन असल ॐ तो ध्यान की गहराई में अवतरित होता है। ऊँ को सत्य के अलावा कुछ कहा भी नहीं जा सकता। हम जो भी कहें उसकी एक सीमा है और ऊँकार असीम है, इसलिए प्राचीन योगियों ने ऊँ को अजपा कहा-यानी जिसका जाप नहीं किया जा सकता।ॐ शब्दातीत है-यानी शब्द से परे है । और जो शब्दातीत, असीम और अनन्त है, उसकी अभिव्यक्ति ॐ के रूप में होती है। क्योंकि 'शब्द' के बिना विचार करना असम्भव है, अर्थात 'नाम' के बिना 'रूप' का ध्यान करना असम्भव है। अतएव, सम्पूर्ण विश्व- ब्रह्माण्ड इसी 'ॐ',सत्य य अनाहत नाद है- में समाया हुआ है।साकार, निराकार के विषय में श्रीरामकृष्ण कहा करते थे - " घण्टी बजाते समय हर एक टहोका लगने के साथ 'टन्' 'टन् ' की आवाज अलग अलग और स्पष्ट सुनाई पड़ती है- यह मानो साकार है। पर बजाना बन्द करते ही आखरी टहोके की आवाज थोड़ी देर तक गूँजती हुई शान्त हो जाती है (शाश्वत चैतन्य या स्पंदन) ~ यह मानो निराकार है। घण्टी की ध्वनि की तरह ईश्वर की भी साकार और निराकार दोनों अवस्थायें हैं।एक व्यक्ति ने श्रीरामकृष्ण से पूछा , 'महाराज , साकार बड़ा है या निराकार ?' श्रीरामकृष्ण ने कहा, " निराकार दो प्रकार का है ~ पक्का और कच्चा। पक्का निराकार अवश्य ही एक उच्च भाव है। साकार के सहारे उस निराकार में पहुँचना पड़ता है। ब्राह्मसमाज वालों का कच्चा निराकार है ~ जैसे आँख मूंदने पर अँधेरा ही दिखाई देता है।जिस प्रकार पानी जमकर बर्फ बन जाता है। उसी प्रकार अखण्ड सच्चिदानन्द ब्रह्म ही साकार रूप धारण करता है। जैसे बर्फ पानी से ही पैदा होती है, पानी में ही रहती है , और पानी में ही मिल जाती है। वैसे ही ईश्वर (आत्मा) का साकार रूप (देह-मन या नाम-रूप) भी निराकार ब्रह्म (आत्मा) से ही उत्पन्न होता है, उसी में अवस्थित रहता है, तथा उसीमें विलीन हो जाता है। "
...SHIVOHAM....
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