कैसे मनाई जाती है लट्ठमार बरसाने की होली.....
विश्व में खास है ब्रज की होली
यूं तो ब्रज में में होली का महोत्सव डेढ़ महीने पहले से ही शुरू हो जाता है लेकिन ब्रज के हर तीर्थस्थल की अपनी अलग परंपरा है और होली मनाने का तरीका भी। इसलिए विश्व भर में ब्रज की होली का खास महत्व है। देख-देख या ब्रज की होरी ब्रह्मा मन ललचाए। फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को बरसाने में लट्ठमार होली खेली जाती है और दशमी तिथि को नंदगांव में यह होली खेली जाती है। लट्ठमार होली में कान्हा की ढाल के साथ हुरियारें व राधा की लाठियों के साथ हुरियारिन रंगीली होली खेलते हैं ।ब्रज में होली केवल रंगों की नहीं होती है बल्कि यहां यह पर्व भिन्न-भिन्न प्रकार से मनाया जाता है। ब्रज में होली का पर्व 40 दिनों तक चलता है, जो बसंत पंचमी से शुरू हो जाता है।यहां रंगों की होली, गुलाल की होली, लठ्ठमार होली , लड्डू होली, फूलों की होली, हुरंगा , होलिका दहन , कीचड़ की होली, धुलेंडी पर दही और हल्दी की होली, मंदिरों में फाग और समाज गायन, फालैन में होली से पंडा का गुजरना सहित दर्जनभर तरीकों से होली मनाई जाती है। ब्रज में खासतौर से वृंदावन , बरसाना , नंदगांव, दाऊजी की होली देखने लोग आते हैं।होली का रंग-बिरंगा त्यौहार जितने प्रकार से 84 कोस में बसे पूरे ब्रज क्षेत्र में मनाया जाता है उतने प्रकार से विश्व में कहीं नहीं मनाया जाता।ब्रज के मंदिरों में प्रिया-प्रियतम यानि राधा-कृष्ण तो होली खेलते ही हैं, इस रंग और गुलाल में भक्त भी सराबोर होकर आते हैं। खासतौर पर बरसाना, वृंदावन, मथुरा, नंदगांव और दाऊजी के मंदिरों में अलग-अलग दिनों में होली धूमधाम से मनाई जाती है।यहां टेसू और गुलाब के फूलों से बने रंगों की फुहारें भक्तों को भिगोती रहती हैं।
ये हैं ब्रज के रंगोत्सव के खास कार्यक्रम;-
08 FACTS;-
1-फुलेरा दूज/फूलों की होली;-
फाल्गुन माह की द्वितीया को मनायी जाने वाली फुलेरा दूज, होली आगमन का प्रतीक मानी जाती है।रमणरेती में कृष्ण और राधा रानी के भक्त फूलों की होली खेलते हैं। माना जाता है कि भगवान कृष्ण होली खेलने की शुरुआत इसी स्थान से करते थे। इसलिए ब्रज में होली का शुभारंभ रमणरेती में फूलों की होली के साथ किया जाता है। यहां कृष्ण और राधा को फूलों से पूरी तरह ढक दिया जाता है।फुलैरा दूजसे फूलों की होली का आयोजन ब्रज के सभी प्रमुख मंदिरों में हो जाता है. बरसाना और वृंदावन में खासतौर पर मंदिरों में फूलों की होली खेली जाती है. बरसाना के राधारानी में मंदिर में फुलैरा दूज के दिन पूरे दिन फूलों की होली होती है. राधा-कृष्ण को फूलों से होली खिलाने के साथ ही मंदिरों के सेवायत आने वाले भक्तों पर फूल बरसाते हैं.इस दिन मथुरा और वृंदावन में सभी मंदिरों को फूलों से सजाया जाता है और फूलों की होली खेली जाती है।
2-लड्डू मार होली;-
बरसाना की लड्डू होली जग प्रसिद्ध है। लठ्ठमार होली से एक दिन पहले मनाई जाती है। इस दिन टनों लड्डू राधारानी मंदिर के परिसर में लुटाए जाते हैं। फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को बरसाने के श्रीजी मंदिर में लड्डुओं की होली खेली जाती है। श्रीजी लाड़ली मंदिर में लड्डुओं के साथ होली खेलने की परंपरा द्वापर युग से शुरू हुई थी। दरअसल राधा रानी के पिता वृषभानुजी ने होली खेलने का न्योता दिया था, जिसे कान्हा के पिता नंद बाबा ने स्वीकार कर लिया। नंद बाबा ने बरसाने में एक पुरोहित को पत्र लिखकर भेजा। पुरोहित का बरसाने में काफी स्वागत किया गया और थाली में लड्डू दिए गए। इसके बाद बरसाने की गोपियों ने पुरोहित को रंग लगाना शुरू कर दिया और पुरोहित ने लड्डू मारने शुरू कर दिए, इस दिन के बाद से लड्डू की होली खेलने की परंपरा शुरू हुई।
3-लट्ठमार होली ;-
04 POINTS
1-बरसाने की लट्ठमार होली विश्वरप्रसिद्ध है। देश-विदेश से लोग यह होली देखने के लिए बरसाना पहुंचते हैं। हर साल फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को लट्ठमार होली खेली जाती है। इसका निमंत्रण एक दिन पहले यानि फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को बरसाना से नंदगांव भेजा जाता है।राधारानी की नगरी बरसाने में लड्डुओं की होली के बाद लट्ठमार होली खेली जाती है और फिर इसके अगले दिन नंदगांव में यही परंपरा निभाई जाती है। देश विदेश से लाखों लोग इस होली को देखने के लिए बरसाना और नंदगांव में आते हैं। ब्रज में वैसे भी होली खास मस्ती भरी होती है क्योंकि इसे कृष्ण और राधा के प्रेम से जोड़कर देखा जाता है। लट्ठमार होली में मुख्यतः नंदगांव के पुरुष और बरसाने की महिलाएं भाग लेती हैं, क्योंकि कृष्ण नंदगांव के थे और राधा बरसाने की थीं। साथ ही रंगों को लेकर भी यहां खास ध्यान रखा जाता है। रंगों में कोई मिलावट ना हो इसके लिए टेसू के फूलों से रंगों को तैयार किया जाता है। होली के दौरान यहां रसिया गायन का भी आयोजन किया जाता है।
2-लट्ठमार होली खेलने की परंपरा भगवान कृष्ण और राधा रानी के समय से चली आ रही है। दरअसल भगवान कृष्ण को होली का उत्सव बहुत अच्छा लगता था और वह इस त्योहार में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। होले के मौके पर भगवान कृष्ण नंदगांव से राधा रानी से मिलने के लिए बरसाने जाते हैं और उनके साथ सखा ग्वाले भी होते हैं।बरसाने पहुंचकर कृष्ण राधा रानी और सखियों के साथ होली खेलते हैं। तब कृष्ण और ग्वाले राधा रानी और सखियों से होली की ठिठोली करने लगते हैं। लेकिन राधा रानी और उनकी सखियां भी किसी से कम नही थीं तब उन्होंने छड़ी लेकर कान्हा और उनके ग्वालों के पीछे भागती हैं और छड़ी मारती हैं। तभी से लट्ठमार होली खेलने की परंपरा चली आ रही है। आज भी बरसाने और नंदगांव में इसी परंपरा को निभाया जाता है।
3-ब्रज में मान्यता है कि लट्ठमार होली खेलने के लिए भगवान कृष्ण और राधा रानी इस रंग में रंग जाते हैं।
बरसाने में नंदगांव की टोलियां पिचकारियों को लेकर पहुंचते हैं तो उन पर बरसाने की महिलाएं खूब लाठियां बरसाती हैं। पुरुषों को इन लाठियों से बचना होता है और साथ ही महिलाओं को रंगों से भिगोना होता है। इसके लिए वह लाठी और ढ़ालों का सहारा लेते हैं। अगले दिन नंदगांव में भी यही आयोजन किया जाता है। नंदगांव और बरसाने के लोगों का विश्वास है कि होली की लाठियों से किसी को चोट नहीं लगती है। अगर चोट लग भी जाए तो उन घाव पर मिट्टी मिलकर फिर शुरू हो जाते हैं। पुरुषों को हुरियारे और महिलाओं को हुरियारिन कहा जाता है और फिर साथ मिलकर इस उत्सव को मनाते हैं।
4-होली खेलने से पहले दिया जाता है फाग आमंत्रण
लट्ठमार होली खेलने के लिए होली से एक दिन पूर्व बरसाने की हुरियारने नंदगांव जाती हैं और वहां के गोस्वामी समाज को गुलाल भेंट करते हुए होली खेलने का निमंत्रण देती हैं। इसे ‘फाग आमंत्रण कहा जाता हैं। फिर इस गुलाल को गोस्वामी समाज में वितरित किया जाता है और आमंत्रण को स्वीकार किया जाता है। फिर हुरियारने वापस बरसाना आ जाती हैं और वहां के श्रीजी मंदिर में इसकी सूचना देती हैं। इसके बाद संध्या में नंदगांव के हुरियारे भी बरसना के लोगों को नंदगांव में होली खेलने का निमंत्रण देते हैं और इस भी स्वीकार किया जाता है। निमंत्रण स्वीकार करने के अगले दिन नंदगांव के हुरियारे अपने हाथों में रंग व ढाल लेकर बरसाना गांव होली खेलने के लिए पहुंचते हैं।
4-रंगभरी एकादशी;-
वैसे तो वसंत पंचमी से ही लेकिन वृंदावन में रंग भरनी एकादशी से होली का विशेष शुभारंभ हो जाता है। इस दिन वृंदावन की परिक्रमा देने के लिए भक्त आते हैं और पूरी परिक्रमा में रंग और गुलाल उड़ता है। शाम को हाथी की सवारी निकलती है और गुलाल से पूरा वृंदावन नहा उठता है।
5-छड़ी मार होली;-
गोकुल में लाठी की जगह छड़ी से होली खेली जाती है। यहां छड़ीमार होली के दिन गोपियों के हाथ में लट्ठ नहीं, बल्कि छड़ी होती है और ये होली खेलने आए कान्हाओं पर छड़ी बरसाती हैं। इस दिन कान्हा की पालकी और पीछे सजी-धजी गोपियां हाथों में छड़ी लेकर चलती हैं। गोकुल में छड़ीमार होली का उत्सव सदियों से चला आ रहा है।
6-होलिका दहन ;-
पूरे ब्रज में होलिका दहन को विधि-विधान से मनाया जाता है। पूरे ब्रज क्षेत्र में हर गांव, कस्बे और शहर के चौराहों पर लकड़ियों,घास, फूस, गाय के गोबर से बने उपलों, गूलरी आदि की होली रखी जाती है। सुबह घरों से महिलाएं नए-नए कपड़े पहनकर होली पूजन करने जाती हैं। उसके बाद शाम को शुभ मुहूर्त में होलिका दहन किया जाता है।
7-धुलेंडी /श्री द्वारकाधीश मंदिर होली;-
होलिका दहन के अगले दिन धुलेंडी होती है। इस दिन पूरे ब्रज में सभी ब्रजवासी एक दूसरे को रंग और गुलाल लगाते हैं व गले मिलते हैं। सभी मंदिरों में होली होती रहती है।इसे धुलेंडी कहते हैं । मथुरा के द्वारकाधीश मंदिर में भी इसी दिन होली का विशेष आयोजन होता है। इस दिन वृंदावन में परंपरा है कि दोपहर 2 बजे तक ही होली होती है, उसके बाद लोग नए-नए कपड़े पहनकर मंदिर जाते हैं और बाहर निकलते हैं और कोई भी उन पर रंग या गुलाल नहीं डालता है।
8-दाऊजी का हुरंगा;-
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1-ब्रज की होली भगवान श्रीकृष्ण में केंद्रित है, तो दाऊजी का हुरंगा उनके बड़े भ्राता श्रीबलदेव जी पर केंद्रित है।हुरंगा के नायक शेषावतार श्री दाऊजी महाराज होंते है।धुलेंडी के अगले दिन ब्रज के राजा श्री दाऊजी महाराज का प्रसिद्ध कपड़ा फाड़ बलदेव का हुरंगा मनाया जाता है। हुरंगा के लिए तैयारियां शुरू हो जाती हैं।इस दिन दाऊजी मंदिर प्रांगण में बल्देाव की महिलाएं लाठियां लेकर और लहंगे-चूनर पहनकर इकठ्ठा होती हैं। वहीं आसपास के हुरियारे होली खेलने आते हैं और फाग गाते हैं। इस तरह कई घंटे तक यह दिचलस्प हुरंगा खेल वहां चलता रहता है । दाऊजी का हुरंगा भी जग प्रसिद्ध है। बलदेव में गोपिकाओं के स्वरूप में परंपरागत परिधानों में सज धजकर यहां की महिलाएं होली के गीत गाते हुए बलदेव परिक्रमा करती हैं। हुरंगा में रंगों के साथ कोड़े बरसते हैं। कहा जाता है कि अगर ब्रज की होली के बाद हुरंगा नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा।दाऊजी के हुरंगा की अनूठी परंपरा है। इस दिन नंगे बदन पर प्रेम पगे कोड़े पड़ते हैं।हुरियारिनें यह नहीं देखतीं कि पिटने वाले जेठ हैं या ससुर। इस दृश्य को देखकर श्रद्धालु आनंदित हो जाते हैं।
2-विश्व प्रसिद्ध हुरंगा के संबंध में मंदिर रिसीवर ने बताया विशाल हुरंगा में 8 क्विंटल टेसू के फूल, ढाई क्विंटल केसरिया रंग, 11 क्विंटल विभिन्न प्रकार के अबीर-गुलाल, 11 क्विंटल व विभिन्न प्रकार के फूलों का प्रयोग होता है। टेसू का रंग प्राकृतिक रूप से तैयार किया जाता है। इसमें केसर, चूना, फिटकरी मिलाकर शुद्ध रूप से प्राकृतिक बनाया जाता है। गुलाल को मशीनों द्वारा उड़ाया जाता है। पानी व रंगों के फव्वारे लगाए जाते हैं।मंच पर श्री कृष्ण बलराम सखाओं के साथ अबीर-गुलाल उड़ाते हैं। हुरंगा में गोस्वामी श्री कल्याण देव के वंशज सेवायत पांडेय समाज ही खेलते हैं। महिलाएं पुरुषों के बदन से कपड़े फाड़-फाड़कर उन्हें प्रेम से टेसू के रंग में भिगोकर उनका कोड़ा बनाकर नंगे बदन पर तड़ातड़ प्रेम से प्रहार करती हैं। पुरुष आनंदित हो जाते हैं। छतों से गुलाल और फूलों की पंखुड़ियां उड़ने से आसमान इंद्रधनुषी हो जाता है।हुरंगा खेलने के लिए ब्रज की गोपिका स्वरूप महिलाएं आकर्षक पहनावे में परंपरागत लहंगा फरिया आभूषण पहनकर अपने झुंड के साथ द्वारों से मंदिर में होली गीत गाते हुए आती हैं। श्रद्धालु सुबह से ही छतों पर एकत्र हो जाते हैं।हुरंगा में पुरुष गोप समूह महिलाएं गोपिका स्वरूप द्वारा प्रेम से भीगे पोतने कोड़ों की मार नंगे बदन पर खाते हैं।
अद्भुत है काशी;-
रंग भरी एकादशी के दूसरे दिन काशी के महाशमशान मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच डमरू के गणगणाहट पर विस्मय कर देने वाली हर हर महादेव उद्घोष साथ चिता के राख से होली खेली जाती हैं ! ऐसी मान्यता है कि " बाबा श्री विश्वनाथ" स्वयं अपने भूत-प्रेत के साथ होली खेलने शमशान पहुंचते हैं.... तब से वह परम्परा आज भी अटल है ...काशी
खेले मसाने मे होरी दिगम्बर खेले मसाने मे होरी
भूत प्रेत बटोरी दिगम्बर , खेले मसाने मे होरी
लखि सुन्दर फगुनी छटा के , मन मे रंग गुलाल हटा के
चिता भसम भर झोरी , दिगम्बर खेले मसाने मे होरी
गोप न गोपी श्याम न राधा , ना कोई रोक ना कोई बाधा
ना साजन ना गोरी , दिगम्बर खेले मसाने मे होरी
नाचत गावत डमरू धारी , छोड़े गरल पिचकारी
बीतै प्रेत अघोरी , दिगम्बर खेले मसाने मे होरी
भूत नाथ की मंगल होरी , देखि सिहाय बिरज की गोरी
धन धन नाथ अघोरी , दिगम्बर खेले मसाने मे होरी
नमः पार्वती पतये हर हर महादेव !!
....SHIVOHAM....
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