top of page

Recent Posts

Archive

Tags

कोणार्क सूर्य मंदिर उड़ीसा की विशेषताएं...PART-02

पृथ्वी के मनुष्यप्राणी को प्रत्यक्ष आंखों से दिखाई देनेवाले देवता भगवान सूर्यनारायण हैं । सूर्यनारायण पृथ्वी के सर्व जीवों का एकमात्र आधार हैं, उनके निवास स्थान को सूर्यलोक कहते हैं । हम सभी को सूर्यदेव का आदर्श लेना चाहिए; क्योंकि सूर्यदेव अपना नित्यक्रम (धर्माचरण) कभी परिवर्तित नहीं करते । धर्मलोक में भी सूर्यनारायण का विशेषण देकर उनका सम्मान किया जाता है, वे धर्मपरायण भी हैं । इसलिए आदर्श होना चाहिए, तो केवल सूर्यदेव का ! सूर्यदेव हिन्दू संस्कृति के प्राण हैं । अन्य किसी भी संस्कृति और सनातन संस्कृति में यह एक बडा अंतर है । सूर्यदेव पंचांग के आधारात्मा हैं ।सूर्यदेव पृथ्वी पर स्थित हवा, जल, अग्नि, तेज, उष्णता, शुद्धता, स्वच्छता और पवित्रता का स्रोत हैं । प्रतिदिन इन सभी घटकों की संयुक्त प्रक्रिया एवं सूर्यकिरणों के माध्यम से वातावरण शुद्ध बनता है तथा जीवसृष्टि की रक्षा होने में सहायता होती है । सूर्यदेव यह कार्यपालन अखंड कर रहे हैं । इसलिए कार्यपालन का मर्म सूर्योपासना से सीखकर पृथ्वी पर हम सभी का उद्धार करने की शिक्षा देनेवाले आदर्श शिक्षक सूर्यनारायण सिद्ध होते हैं ।सूर्यदेव के 12अवतार हैं । इंद्र, धाता, त्वष्टा, पूषा, अर्यमा, भग, विवस्वान, विष्णु, अंशुमान, वरुण, मित्र और पर्जन्य ऐसे बारह रूप हमें दिखाई देते हैं ।

सूर्यदेव की आध्यात्मिक विशेषताएं;-

16 P0INTS;-

1-कर्तव्यपरायणता

सूर्यदेव मानवी शरीर को अंतर्यामी प्रेरणा देते हैं तथा सभी को जागृत होने का संदेश देकर अपनी कर्तव्यपरायणता सिद्ध करते हैं । इसलिए सूर्यदेव के रूप में उनकी अत्यधिक आदर सहित पूजा की जाती है ।

2-आत्मशक्ति के आध्यात्मिक प्रेरक

यद्यपि विज्ञानवादी सूर्य को एक तप्त गोला मानते हैं, तथापि वास्तव में सूर्य आत्मशक्ति का प्रेरक है ।

3- नम्रता

सूर्य की किरणें सभी को नमस्कार करने की प्रेरणा देती हैं । इसलिए आपस में राम, राम, नमस्कार आदि शब्दों के भावपुष्पों से सुबह भरी हुई दिखाई देती है ।सूर्यदेव महान हैं, तब भी उनकी किरणें पृथ्वी पर स्थित क्षुद्र जीवजंतु और मनुष्य के चरणों को स्पर्श कर हम सभी को नम्रता की सीख देते हुए प्रेरित करती हैं ।

4-आज्ञापालन, शरणागति और तत्परता

सूर्यनारायण प्रारंभ किया हुआ तथा अपूर्ण कर्म वैसा ही छोडकर अस्त हो जाते हैं । उनकी इस क्रिया से आज्ञापालन, शरणागति, निरंतर वर्तमान काल में रहना सीखने को मिलता है । इस प्रकार वे सुझाते हैं कि मानव को तत्परता यह गुण आत्मसात करना चाहिए ।

5-निरपेक्षता और अनासक्ति

सूर्यदेव कर्मपूर्ति की अपेक्षा अथवा प्रतीक्षा कभी नहीं करते । उनमें कर्मासक्ति और फलासक्ति शेष नहीं रहती । सूर्यदेव अपनी किरणें एक क्षण में समेट लेते हैं । बडों-बडों के लिए भी यह करना कभी संभव नहीं है । यही सूर्यनारायण की असामान्यता है ।

सूर्योपनिषद् के अनुसार ईश्‍वर कहते हैं कि सूर्य से ही प्राणिमात्र की निर्मिति होती है, उनकी कृपा से उनका पालनपोषण होता है तथा उन्हीं में सभी का लय होता है ।

6-सर्वदेवमय

सूर्यदेव संपूर्ण भुवन के प्रकाशमान, तेजस्वी देवता के रूप में जाने जाते हैं, तथापि सूर्यदेव सर्वदेवमय ही हैं । ब्रह्मा, विष्णु, महेश, स्कंद, प्रजापति, महेंद्र, वरुण, काल, यम, सोम आदि वे ही हैं ।मित्र नामक देवता सूर्य के दिनभर के तथा वरुण नामक देवता रात्रि के हैं: इसलिए सूर्यास्त के उपरांत रात्रि प्रारंभ होते ही तमोगुणी रूपी निद्रा निरंकुश हो जाती है । अहंकार के देवता भी रात्रि ही है । इसलिए रात्रि में भयंकर उत्पात घटते हैं । देवतास्वरूप सूर्यनारायण भगवान शंकरजी की आज्ञा से प्रतिदिन भ्रमण करते हैं ।

7-सूर्य का स्थूल, सूक्ष्म और आध्यात्मिक स्वरूप

सूर्य का स्थूल रूप सूर्यमंडल, सूक्ष्म रूप तदन्तर्यामीपुरुष तथा आध्यात्मिक स्वरूप हमारे नेत्रों की ज्योती (नेत्रज्योती) है ।

8-आयुर्दान करना

संपूर्ण संसार को सूर्यदेव आयुर्दान करते हैं; इसलिए भी सूर्य को आदित्य सूर्यनारायण कहते हैं ।

9-ब्रह्मांड का सर्व ज्ञान सूर्य के पास होना

ब्रह्मांड का संपूर्ण ज्ञान अकेले सूर्य के पास उपलब्ध है । हनुमानजी ने भी यह संपूर्ण ज्ञान सूर्यदेव से प्राप्त किया था; इसलिए बाल्यावस्था में हनुमानजी ने सूर्य की ओर उडान भरने का प्रसंग है ।

10-कर्मठ और कर्मकुशल

सूर्यदेव अखंड कार्यरत रहते हैं तथा वे अत्यंत कर्मठ और कर्मकुशल होने के कारण उनसे योगः कर्मसु कौशलम । अर्थात समत्वरूपी योग साध्य करना ही कर्म की कुशलता है, इस तत्त्व का उदय हुआ है । सूर्यदेव की यही सीख मानव के लिए है ।

11- तेजोमय

सूर्यदेव धर्म और कर्तव्य के मार्ग पर निरंतर चलते हैं, इसलिए उनका तेज कभी लुप्त नहीं होता । उनकी कांति (शरीर) तप्त स्वर्ण के समान है; इसलिए उनकी किरणों को सुनहरी किरणें कहा जाता है ।

12-विश्‍व के साक्षीदेव

सूर्यदेव 14 भुवनों के पालक हैं तथा वे विश्‍व के साक्षीदेव के रूप में कार्यरत हैं ।

13-सर्व देवताओं के नियामक

सूर्यदेव का सबसे बडा गुण यह है कि उन्हें आलस्य कभी स्पर्श नहीं कर पाता । सूर्यदेव अन्य सर्व देवताओं के नियामक हैं ।

14-चराचर सृष्टि की आत्मा

सृष्टि के सर्व आकार और रंग सूर्य से ही उत्पन्न हुए हैं । सूर्य जैसी जीवनशक्ति अन्य कोई नहीं है । सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्‍च । अर्थात सूर्य चराचर सृष्टि की आत्मा हैं, ऐसा उनका वर्णन है ।

15-विराट पुरुष का नेत्र

संसार के सर्व कर्म, व्यवहार सूर्य की दृष्टि से छूट नहीं सकते । सूर्यदेव विराट पुरुष का नेत्र हैं तथा आकाश का अलंकार हैं । सूर्य का प्रकाश जैसे अमूर्त अग्निदेवता का मुख है ।सूर्यदेव के चरण सदैव ढंके हुए होते हैं । विश्‍वकर्मा ने सूर्यदेव के तेज से ही सुदर्शन चक्र का निर्माण किया है ।सूर्यदेव के कान होते हैं, अतः वे अपनी प्रार्थना सुन सकते हैं ।

16-दोपहर 12 बजे अहंकार का स्मरण होना

सूर्यदेव को दोपहर12 बजे अपने अहंकार का स्मरण होता है; परंतु उनका अहंकार कुछ क्षणों में नष्ट हो जाता है तथा उनका नीचे की ओर मार्गक्रमण प्रारंभ होता है ।


7-सूर्योपासना से होनेवाले लाभ;-

सूर्य को लाल कन्हेर का पुष्प चढाएं । सूर्यपूजन में जाही का फूल श्रेष्ठ है । सूर्य को मोदक का भोग लगाएं ।

14 P0INTS;-

1- स्वास्थ्य उत्तम रहना

आरोग्यं भास्करात् इच्छेत् । अर्थात सूर्य से स्वास्थ्य की मांग करनी चाहिए, अर्थात सूर्योपासना कर स्वास्थ प्राप्त करना चाहिए, ऐसा वचन है । अन्य देवताआें की उपासना का आधार केवल सूर्योपासना ही है; इसलिए जो उत्तम स्वास्थ्य प्राप्ति का इच्छुक है, वह सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करे तथा ऊगते सूर्य को अर्घ्य देकर प्रतिदिन नमस्कार करे ।

2- विजय प्राप्त होना

सूर्योपासना करने से सर्व विषयों में, व्यापार में, धंधे में विजय मिलती है । अन्य उपासना की अपेक्षा सूर्योपासना शीघ्र फलप्राप्ति करवाती है । सूर्योपासना करने से सर्वज्ञता प्राप्त हो सकती है । प्रत्यक्ष प्रभु रामचंद्रजी ने भी रावण के साथ युद्ध में विजयी होने के लिए अगस्ति ऋषि के कहने पर आदित्यहृदय स्तोत्र का पाठ किया था । तत्पश्‍चात ही विजय प्राप्त की ।

3-सूर्योपासना करने से मनुष्य संकट से मुक्त होता है, यह अगस्ति ऋषि ने बताना

सूर्योपासना के संबंध में अगस्ति ऋषि कहते हैं कि भीषण संकट में, भयंकर परिस्थिति में, निर्जन वन में, घोर प्रसंग में, महासागर में कीर्तन, प्रार्थना, पूजा, अर्चना कर मानव संकट से सहज मुक्त हो सकता है । सूर्यदर्शन से अपवित्र मानव भी पवित्र हो जाता है । प्रत्यक्ष आंखों से दिखाई देनेवाले इस देवता की शक्ति जानिए ।

4-विकारों की दासता नष्ट होकर मनुष्य का संतपद तक मार्गक्रमण करना

सूर्यदेव वेदों के भी परमात्मा हैं । सूर्योपासना वैदिक संस्कृति का मूलाधार है; इसलिए ही हिन्दू धर्मीय विकारों की दासता नष्ट कर पा रहे हैं तथा पृथ्वीपर संतपद तक मार्गक्रमण कर रहे हैं ।

5- रोगों का निवारण होना;-

सूर्योपासना करने से प्रतिदिन वायुमंडल, वातावरण शुद्ध होता है तथा रोगों का निवारण होता है । यह सूर्य पृथ्वी से ९ करोड मील की दूरी पर है, तब भी सूर्य का प्रभाव इस पृथ्वी पर निरंतर बना हुआ है । सूर्योपासना से कर्करोग (कैंसर) जैसा भयंकर रोग भी ठीक हो जाता है ।

8- बल प्राप्त होना और अनिष्ट शक्तियों की पीडा दूर होना

सूर्य की उपासना करने से बल, शक्ति, स्मरण, तेज, ज्ञान, वीरता और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है । इस उपासना से बुरे स्वप्न दिखाई नहीं देते तथा अनिष्ट ग्रहों की पीडा दूर होती है । इस उपासना से किसी भी व्रत को हानि पहुंचानेवाली अनिष्ट शक्तियों का नाश हो सकता है ।

9- भविष्यकाल जानने की सिद्धि प्राप्त होना

सूर्य की सविता नामक शक्ति का लाभ साधक को मिलता है । सूर्य की उपासना करने से संसार के सभी का भविष्य जानने की सिद्धी प्राप्त होती है ।

10-यज्ञ करने का फल मिलना

जिस घर में, परिवार में प्रतिदिन सूर्य की आराधना की जाती है, वहां प्रतिदिन एक यज्ञ होता है । प्रतिदिन दुर्वा चढाकर सूर्य की पूजा करने से यज्ञ करने का फल मिलता है ।सूर्य का दुग्धाभिषेक करने से विलक्षण सुख प्राप्त होता है । सूर्योपासना करने से ही ऋषि तेजस्वी बन पाए ।

11-सूर्यदेव सुबह ब्रह्मदेव, दोपहर में विष्णु तथा दो प्रहर के उपरांत रुद्र (शंकर) होते हैं ।

सूर्यदेव सुबह ब्रह्मदेव, दोपहर विष्णु तथा दो प्रहर के उपरांत रुद्र (शंकर) होते हैं ।

12-कुल के सात पुरुष सूर्यलोक जाना

सूर्य मंदिर बनानेवाले व्यक्ति अपने कुल के सात पुरुषों को सूर्यलोक ले जाते हैं ।

13-अंध मनुष्य को उत्तम नेत्र प्राप्त होना

भाव-भक्ति पूर्ण किया हुआ एक ही नमस्कार सूर्य की कृपा संपादन करने हेतु पर्याप्त है । सूर्य को त्रिकाल धूप-दीप दिखाने से अंध मनुष्य को भी उत्तम नेत्र प्राप्त होते हैं ।

14-उपासना करने से होनेवाले लाभ के उदाहरण

सूर्य से ही कुंती को स्वर्णकवच कुंडलधारी कर्ण प्राप्त हुआ तथा द्रौपदी को अन्नथाली मिली एवं सांबा का कुष्ठ रोग ठीक हो गया ।

कोणार्क सूर्य मंदिर की अद्धभुत वास्तुकला ;-–

कोणार्क का सूर्य मंदिर उड़ीसा के मध्ययुगीन वास्तुकला का एक सर्वश्रेष्ठ नमूना है। इस मंदिर को कलिंग वास्तुकला की उपलब्धि का सर्वोच्च बिंदु माना जाता है क्योंकि इस प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर की वास्तुकला काफी हद तक कलिंगा मंदिर की वास्तुकला से मिलती-जुलती है।उड़ीसा के पूर्वी समुद्र तट पुरी के पास स्थित इस कोणार्क सूर्य मंदिर की संरचना और इसके पत्थरों से बनी मूर्तियां कामोत्तेजक मुद्रा में हैं, जो इस मंदिर की अन्य विशेषताओं को बेहद शानदार ढंग से दर्शाती हैं।एक विशाल रथ के आकार में बने कोणार्क सूर्य मंदिर में करीब 12 जोड़े विशाल पहिए लगे हुए हैं, जिसे करीब 7 ताकतवर घोड़े खीचतें प्रतीत होते हैं। वहीं यह पहिए धूप-घड़ी का काम करते हैं और इनकी छाया से समय का अनुमान लगाया जाता है।इस मंदिर के 7 घोड़े हफ्ते के सभी सातों दिनों के प्रतीक माने जाते हैं, जबकि 12 जोड़ी पहिए दिन के 24 घंटों को प्रदर्शित करते हैं। इसके साथ ही इनमें लगीं 8 ताड़ियां दिन के आठों प्रहर को दर्शाती हैं।काले ग्रेनाइट और लाल बलुआ पत्थर से बना यह एकमात्र ऐसा सूर्यमंदिर है, जो कि इसकी खास बनावट और भव्यता के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। इस अद्भुत मंदिर के निर्माण में कई कीमती धातुओं का इस्तेमाल किया गया है।इस सूर्य मंदिर में सूर्य भगवान की बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था में बनी तीन-अलग-अलग मूर्तियां भी बनी हुईं हैं, जिन्हें उदित सूर्य, मध्यांह सूर्य और अस्त सूर्य भी कहा जाता है।इस मंदिर को इसकी खूबसूरत कलाकृति और अनूठी वास्तुशिल्प के लिए यूनेस्को (UNESCO) की वर्ल्ड हेरिटेज की लिस्ट में शुमार किया गया है। कोणार्क सूर्य मंदिर के मुख्य प्रवेशद्वार पर शेरों द्वारा हाथियों के विनाश का दृश्य अंकित है, जिसमें शेर घमंड, अहंकार और हाथी धन का प्रतीक माना जाता है।ओड़िशा में स्थित इस सूर्य मंदिर से लाखों लोगों की धार्मिक आस्था भी जुड़ी है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर के दर्शन महज से शरीर से जुड़े सभी दुख-दर्द दूर होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।वहीं इस भव्य सूर्य मंदिर की अद्भुत कलाकृति और वास्तुशिल्प को देखने देश-विदेश से पर्यटक आते हैं। वहीं इस मंदिर को ब्लैक पैगोडा के नाम से भी जाना जाता है, दरअसल इस भव्य मंदिर का ऊंचा टॉवर काला दिखाई देता है।

कोणार्क सूर्य मंदिर तक कैसे पहुंचे –

कोणार्क सूर्य मंदिर के धार्मिक महत्व और खूबसूरत बनावट की वजह से इसे देखने यहां न सिर्फ देश से बल्कि विदेशों से भी लाखों की संख्या में पर्यटक आते हैं और इस भव्य मंदिर की खूबसूरत कलाकृति का आनंद लेते हैं और तमाम तरह के कष्टों से मुक्ति पाते हैं।ओड़िसा राज्य में बने इस भव्य कोणार्क सूर्य मंदिर में जाने का सबसे बेहतर समय फरवरी से अक्टूबर तक माना जाता है, क्योंकि इस समय मौसम अच्छा रहता है। इस मंदिर के दर्शन के लिए ट्रेन, बस और हवाई जहाज तीनों साधनों द्धारा पहुंचा जा सकता है।कोणार्क के सबसे पास भुवनेश्वर एयरपोर्ट है, जहां के लिए दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता समेत देश के कई बड़े शहरों से नियमित फ्लाइट उड़ती हैं। एयरपोर्ट से कोणार्क तक टैक्सी या बस के द्धारा पहुंचा जा सकता है।वहीं अगर पर्यटक रेल माध्यम से जा रहे हैं तो कोणार्क के सबसे पास भुवनेश्वर और पुरी रेलवे स्टेशन हैं। भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन से कोणार्क की दूरी 65 किलोमीटर और पुरी की दूरी 35 किलोमीटर है। जहां पर टैक्सी या फिर बस के माध्यम से आसानी से पहुंचा जा सकता है।वहीं कोणार्क के लिए पुरी और भुवनेश्वर से नियमित रुप से कई डीलक्स और अच्छी बसें चलती हैं। इसके अलावा कुछ निजी पर्यटक बसें और टैक्सी भी चलती हैं।

कोणार्क मंदिर के महत्वपूर्ण तत्व ;-

1-रथ के आकार का निर्माणकार्य-

कोणार्क मंदिर का निर्माण रथ के आकार में किया गया है जिसके कुल 24 पहिये है। रथ के एक पहिये का डायमीटर 10 फ़ीट का है और रथ पर 7 घोड़े भी है।

2- यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट

आश्चर्यचकित प्राचीन निर्माण कला का अद्भुत कोणार्क मंदिर यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट में शामिल है। ये सम्मान पाने वाला ओडिशा राज्य का वह अकेला मंदिर है।

3-नश्वरता की शिक्षा –

कोणार्क मंदिर के प्रवेश भाग पर ही दो बड़े शेर बनाये गए है। जिसमे हर एक शेर को हाथी का विनाश करते हुए बताया गया है। और इंसानी शरीर के अंदर भी एक हाथी ही होता है। उस दृश्य में शेर गर्व का और हाथी पैसो का प्रतिनिधित्व कर रहे है। इंसानो की बहोत सी समस्याओ को उस एक दृअह्य में ही बताया गया है।

4-सूर्य भगवान को समर्पित –

मंदिर में सूर्य भगवान की पूजा की जाती है। मंदिर का आकार एक विशाल रथ की तरह है और यह मंदिर अपनी विशेष कलाकृति और मंदिर निर्माण में हुए कीमती धातुओ के उपयोग के लिये जाना जाता है।

5-मंदिर के रथ के पहिये धुपघडी का काम करते है और सही समय बताते है

इस मंदिर का मुख्य आकर्षन रथ में बने 12 पहियो की जोड़ी है। ये पहिये को साधारण पहिये नही है क्योकि ये पहिये हमें सही समय बताते है, उन पहियो को धूपघड़ी भी कहा गया है। कोई भी इंसान पहियो की परछाई से ही सही समय का अंदाज़ा लगा सकता है।

6-निर्माण के पीछे का विज्ञान

मंदिर में ऊपरी भाग में एक भारी चुंबक लगाया गया है और मंदिर के हर दो पत्थरो पर लोहे की प्लेट भी लगी है। चुंबक को इस कदर मंदिर में लगाया गया है की वे हवा में ही फिरते रहते है। इस तरह का निर्माणकार्य भी लोगो के आकर्षण का मुख्य कारण है, लोग बड़ी दूर से यह देखने आते है।

7-काला पगोडा –

कोणार्क मंदिर को पहले समुद्र के किनारे बनाया जाना था लेकिन समंदर धीरे-धीरे कम होता गया और मंदिर भी समंदर के किनारे से थोडा दूर हो गया। और मंदिर के गहरे रंग के लिये इसे काला पगोडा कहा जाता है और नकारात्मक ऊर्जा को कम करने के लिये ओडिशा में इसका प्रयोग किया जाता है।

8-वसृशिल्पीय आश्चर्य-

कोणार्क मंदिर का हर एक टुकड़ा अपनेआप में ही विशेष है और लोगो को आकर्षित करता है। इसीलिये कोणार्क सूर्य मंदिर भारत के सात आश्चर्यो में से एक है।

9-किनारो पर किया गया निर्देशन-

हर दिन सुबह सूरज की पहली किरण नाट्य मंदिर से होकर मंदिर के मध्य भाग पर आती है। उपनिवेश के समय ब्रिटिशो ने चुम्बकीय धातु हासिल करने क्व लिये चुंबक निकाल दिया था।

10-रुपये के भारतीय मुद्रा नोट पर अंकित प्रसिद्ध चक्र

मंदिर की दक्षिणावर्त परिक्रमा करते समय जो छटवाँ चक्र आप देखेंगे उस चक्र ने एक समय 20 रुपये के भारतीय मुद्रा नोट पर विराजमान होकर उसे सम्मानित किया था। अब उसी चक्र की छवि 10 रुपये के भारतीय मुद्रा नोट पर अंकित है। यह चक्र पर्यटकों में अत्यंत प्रसिद्ध है। वे इस चक्र का, 10 रुपये की मुद्रा नोट के साथ अथवा स्वयं के साथ, छायाचित्र लेने में अत्यंत आनंदित होते हैं।इन चक्रों की विशेषता यह है कि ये मात्र सजावटी चक्र नहीं हैं। अपितु ये धूप घड़ियाँ हैं। प्रत्येक चक्र के मध्य एक उभरी हुई मूठ है। जब सूर्य की किरणें इन चक्रों पर पड़ती हैं तब इन मूठों की परछाईयों द्वारा स्थानीय समय की गणना की जा सकती है। प्रत्येक चक्र के ऊपर गहन सूक्ष्म शिल्पकारी की गई है जो किसी ना किसी कला शैली का अभिलेखन करती है।

11-माया देवी मंदिर

सूर्य मंदिर के पृष्ठभाग में एक मंदिर है जो माया देवी को समर्पित माना जाता है। कुछ जानकार इसे सूर्य की पत्नी छाया देवी को समर्पित मानते हैं। यह मंदिर सूर्य मंदिर से भी अधिक प्राचीन है।

12-भोग मंडप

मंदिर के एक ओर स्थित बाग में अनेक नालियाँ हैं जो एक पीठिका तक पहुँचती हैं। यह रसोईघर तथा भोजन क्षेत्र था जिसे भोग मंडप कहा जाता है। इसके आसपास दो कुएं भी हैं।

13-कोणार्क नवग्रह मंदिर

सूर्य मंदिर के निकास द्वार से कुछ आगे जाकर आप एक नवगृह मंदिर देखेंगे जहां अब भी पूजा अर्चना की जाती है। काले पत्थर के एक बड़े फलक पर 9ग्रहों की छवियाँ उकेरी गई हैं। यह फलक कोणार्क के प्रवेशद्वार का एक भाग था। कोणार्क मंदिर का यह इकलौता भाग है जिसकी अब भी आराधना की जाती है।

14-कोणार्क सूर्य मंदिर क्षेत्र संग्रहालय

कोणार्क मंदिर परिसर में स्थित क्षेत्र संग्रहालय इस प्रकार के सर्वोत्तम संग्रहालयों में से एक है। यहाँ अपने जीवंत काल के मूल स्वरूप को पुनः सजीव करने का प्रयास किया गया है। इसके निर्माण के प्रत्येक चरण को क्रमशः पुनर्जीवित करते हुए भारत में सूर्य की आराधना की संकल्पना तथा योग में इसकी केन्द्रीय भूमिका का उल्लेख किया है। ओडिशा हस्तकला तथा अन्य कलाक्षेत्रों की विशेषताओं का वर्णन किया गया है।

...SHIVOHAM....



Comments


Single post: Blog_Single_Post_Widget
bottom of page