क्या आत्मिक शक्तियां उच्च होते हुए भी सांसारिक रुचियों के सम्मुख परास्त हो सकती हैं?
04 FACTS;-
1-वास्तव में,आध्यात्मिक रुचियां आज तक सांसारिक रुचियों के सामने कभी परास्त नहीं हुई हैं।तो जो पराजय मालूम होती है, वह केवल काल्पनिक है। दूसरा पक्ष मौजूद ही नहीं है।कोई अगर यह कहे कि हीरे हार जाएंगे और कांच जीत जाएंगे। तो हीरे अगर वास्तविक हुए, तो कांच के सामने हार नहीं सकते।हम सोचते है कि घृणा जीत जाती है और प्रेम हार जाता है। लेकिन वो प्रेम नहीं है।धन को पाने की आकांक्षा जीत जाती है और परमात्मा को पाने की आकांक्षा हार जाती है; लेकिन वह है कहां? अगर वह हो, तो कोई आकांक्षा उसके सामने कोई आकांक्षा टिक भी नहीं सकती, जीतने का तो प्रश्न ही नहीं है।अगर कोई कहे कि प्रकाश तो है, लेकिन अंधेरा जीत जाता है। तो अगर प्रकाश हो, तो अंधेरा प्रवेश ही नहीं कर सकता। आज तक प्रकाश और अंधेरे में लड़ाई हुई ही नहीं है। क्योंकि प्रकाश के होते ही अंधेरा मौजूद ही नहीं रह जाता है।यानि अंधेरा जीतता तभी है, जब प्रकाश मौजूद ही नहीं होता। प्रकाश की मौजूदगी में तो अंधेरा विलीन हो जाता है, वह होता ही नहीं है।अगर आत्मिक वृत्तियां पैदा हो जाएं, तो सांसारिक वृत्तियां विलीन हो जाती हैं..पायी ही नहीं जाती हैं।जिसके भीतर प्रेम पैदा होता है, उसके भीतर घृणा विलीन हो जाती है। घृणा और प्रेम में टक्कर कभी नहीं हुई। जिसके भीतर सत्य पैदा होता है, उसके भीतर असत्य विलीन हो जाता है।
2-असत्य और सत्य में टक्कर आज तक नहीं हुई। जिसके भीतर अहिंसा पैदा होती है, उसकी हिंसा विलीन हो जाती है।पराजय का तो प्रश्न ही नहीं है, मुकाबला ही नहीं होता। हिंसा इतनी कमजोर है कि अहिंसा के आते ही क्षीण हो जाती है। अधर्म बहुत कमजोर है, संसार बहुत कमजोर है।इसलिए संसार को माया कहते है। माया का मतलब है कि जो इतना कमजोर है कि जरा-सा ही छुआ कि विलीन हो जाए।जैसे कहीं रात को एक रस्सी लटकी हुई देखी और आपने समझा सांप है।और आप पास गए और पाया, सांप नहीं है। तो वह जो रस्सी में सांप दिखायी पड़ा था, वह माया थी। वह सिर्फ दिख रहा था, था नहीं।इसलिए जो माया के करीब जाएगा, वह सत्य को देखते ही पाएगा कि संसार है ही नहीं। जिसको हम संसार कह रहे हैं, उसने आज तक सत्य का मुकाबला नहीं किया है।इसलिए जब हमें लगता है कि हमारी आध्यात्मिक वृत्तियां हार जाती हैं, तो स्मरण रखें, कि वे वृत्तियां काल्पनिक होंगी, किताबों में पढ़कर सीख ली होंगी। वे आपके भीतर हैं नहीं।लोग कहते हैं कि 'पहले हमारा ध्यान लग जाता था, अब नहीं लगता।लेकिन यह असंभव है कि वह लग गया हो और फिर न लगा हो।जीवन में श्रेष्ठ सीढ़ियां पायी जा सकती हैं, खोयी नहीं जा सकती हैं। इसको स्मरण रखें। खोने का कोई रास्ता नहीं है। ज्ञान लिया जा सकता है, उपलब्ध किया जा सकता है, खोया नहीं जा सकता। यह असंभव है।
3-लेकिन हमारे भीतर शिक्षा से, संस्कारों से कुछ धार्मिक बातें पैदा हो जाती हैं। उनको हम धर्म समझ लेते हैं। वे धर्म नहीं हैं, वे केवल संस्कार मात्र हैं। संस्कार और धर्म में भेद है। बचपन से हमें सिखाया जाता है कि आत्मा है।हम भी सीख जाते हैं ...रट लेते हैं।यह स्मृति का हिस्सा हो जाता है। बाद में हम भी कहने लगते हैं कि आत्मा है और हम जानते हैं कि भीतर आत्मा है। लेकिन यह एक सुना हुआ खयाल है, एक झूठी बात है, जो दूसरे लोगों ने आपको सिखा दी है।फिर अगर अपने अनुभव से जब आत्मिक शक्तियों की ऊर्जा जागती है, तो संसार की शक्तियां तिरोहित हो जाती हैं। वे फिर नहीं पकड़ती हैं।और जब तक पराजय होती हो, तब तक समझें कि जिसे आपने धर्म समझा है, वह सुना हुआ धर्म होगा, जाना हुआ धर्म नहीं है। किसी ने बताया होगा, आपने अनुभव नहीं किया है। माता-पिता से सुना होगा। परंपराओं ने आपसे कहा है, आपके भीतर घटित नहीं हुआ है। इसलिए जब प्रकाश नहीं होता तो अंधकार जीत जाता है। और जब प्रकाश होता है, उसका होना ही अंधकार की पराजय है। अंधकार से प्रकाश लड़ता नहीं है, उसका होना मात्र ही अंधकार की पराजय है।
4-तो जितने हम सांसारिक होते हैं, उतने ही धार्मिक होने के सपने भी देखते हैं।सुबह मंदिर हो आते हैं। कभी कुछ थोड़ा दान-दक्षिणा भी करते हैं। कभी व्रत-उपवास भी रख लेते हैं और कोई गीता, कुरान, बाइबिल भी पढ़ लेते हैं। तो यह भ्रम पैदा होता है कि हम धार्मिक हैं। ये सब धार्मिक होने का भ्रम पैदा करने के रास्ते हैं। और फिर जब ये धार्मिक प्रवृत्तियां जरा-सी सांसारिक प्रवृत्ति के सामने हार जाती हैं, तो बड़ा क्लेश होता है, बड़ा पश्चात्ताप होता है। और हम सोचते हैं, 'धार्मिक प्रवृत्तियां कितनी कमजोर हैं और सांसारिक प्रवृत्तियां कितनी प्रबल हैं!' वास्तव में,आपमें धार्मिक प्रवृत्तियां हैं ही नहीं। धार्मिक होने का आप धोखा अपने को दे रहे हैं। तो जो आध्यात्मिक प्रवृत्ति सांसारिक प्रवृत्ति के सामने हारती हो, इसे कसौटी समझना कि वह झूठी है। जिस दिन कोई ऐसी प्रवृत्ति भीतर पैदा हो जाए कि जिसके मौजूद होते ही सांसारिक प्रवृत्तियां विलीन हो जाएं, उस दिन समझना कि कुछ घटित हुआ है; किसी धर्म का अवतरण हुआ है।जब सूरज ऊगता है, तो अंधकार अपने आप विलीन हो जाता है। आज तक सूरज का अंधकार से मिलना नहीं हुआ है।जिस दिन आत्मा जागती है,वासना नहीं पायी जाती।
....SHIVOHAM...
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