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क्या मंत्र -योग का दुरुपयोग हो सकता है?क्या अभ्यास और वैराग्य, एक ही चीज के दो छोर नहीं हैं?

क्या मंत्र -योग का दुरुपयोग हो सकता है?

04 FACTS;-

1-ध्यान की एक पद्धति है मंत्र -योग। उसका परिणाम होता है, लेकिन खतरनाक है और लोग जल्दी उत्सुक होते हैं, क्योंकि न कोई नियम है, न कोई साधना है। बस, एक बीस मिनट बैठकर एक मंत्र जाप कर लेना पर्याप्त है। तुम चोर हो, तो अंतर नहीं पड़ता; तुम बेईमान हो, तो अंतर नहीं पड़ता। तुम हत्यारे हो, तो अंतर नहीं पड़ता।केवल बीस मिनट मंत्र जाप कर लेना है।

उस मंत्र जाप से शांति मिलती है, क्योंकि मंत्र मन को संगीत से भर देता है। लेकिन ध्यान रहे, हत्यारे को शांति मिलनी उचित नहीं है। क्योंकि हत्यारे की पीड़ा है कि उसने हत्या की है ; यह अपराध उसके ऊपर है। इसको अगर शांति मिल जाए,तो यह दूसरी हत्या करेगा।इसीलिए इसको अशांत होना उचित है, यह इसके कर्म का सहज परिणाम है। और यह अशांत रहे, पीड़ा भोगे, तो शायद हत्या से बचेगा। चोर को शांति मिलनी उचित नहीं है। उसके हृदय की धड़कन बढ़ी ही रहनी चाहिए। क्योंकि जैसे ही उसको शांति मिलती है, वह दुबारा चोरी करेगा।

2-बुरे व्यक्ति को शांति मिलनी उचित नहीं है। यह ऐसे ही है, जैसे बुरे व्यक्ति को स्वास्थ्य मिलेगा, तो वह कुछ अशुभ ही करेगा। तो अगर मंत्र जाप से बेईमान को शांति मिले, तो वह बेईमानी में और कुशल हो जाएगा। यह बात खतरनाक है । और मंत्र जाप से अगर धन की दौड़ में कोई व्यक्ति लगा है, उसको शांति मिले, तो उसकी धन की दौड़ और कुशल हो जाएगी; और क्या यह ठीक है।उदाहरण के लिए जीसस एक गांव से गुजरे। उन्होंने एक व्यक्ति को एक स्त्री के पीछे भागते हुए देखा। तो उन्होंने उसे रोका, क्योंकि चेहरा उसका पहचाना हुआ मालूम पड़ा। और जीसस ने कहा कि अगर मैं भूलता नहीं हूं तो जब मैं पहली दफा आया, तुम अंधे थे। और मेरे ही स्पर्श से तुम्हारी आंखें वापस लौटीं। और अब तुम आंखों का क्या कर रहे हो!तो उस व्यक्ति ने कहा, हे प्रभु, मैं तो अंधा था। तुमने ही मुझे आंखें दीं। अगर मैं तुम्हारे पास आंखें मांगने आया था, तो इसीलिए मांगने आया था कि आंखों से रूप देख सकूं।अब मैं इन आंखों का और क्या करूं?

3-जीसस ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि जिसको आंखें दी हैं, वह आंखों का क्या करेगा। आंखें तो उपकरण हैं और उपयोग तो व्यक्तियों पर निर्भर होगा।मंत्र -योग में तुम जहाँ भी जा रहे हो, तुम जो भी कर रहे हो, उसमें ध्यान से सफलता मिलेगी।निश्चित सफलता मिलेगी। लेकिन तुम कहां जा रहे हो, क्या कर रहे हो,यह पूछ लेना जरूरी है।सभी सफलताएं सफलताएं नहीं हैं। बुरे काम में विफल हो जाना बेहतर है ;सफल होना बेहतर नहीं है। तो सफलता अपने आप में कोई मूल्य नहीं है।लेकिन आज लोग कोई भी यम और नियम के लिए राजी नहीं है।वे चाहते हैं कि, जैसे वे इंस्टैंट काफी बना लेते हैं, वैसा इंस्टैंट मेडिटेशन हो! एक पांच मिनट में काम किया, और उस काम के लिए भी कुछ करना नहीं है। आप हवाई जहाज में उड़ रहे हों, तो भी मंत्र जाप कर सकते हैं। कार में चल रहे हों, तो भी मंत्र जाप कर सकते हैं। ट्रेन में बैठे हों, तो भी मंत्र जाप कर सकते हैं। उसमें कोई कुछ आपको बदलना नहीं है। सिर्फ एक तरकीब है, जिसका उपयोग करना है। वह तरकीब आपको भीतर शांत करेगी।

4-लेकिन वह शांति आत्मज्ञान नहीं बन सकती। वह शांति अक्सर तो आत्मघात बनेगी। क्योंकि आपके पास जो व्यक्तित्व है, वह खतरनाक है। वह उस शांति का दुरुपयोग करेगा।इसलिए अगर महृषि पतंजलि , गौतम बुद्ध और महावीर ने ध्यान के पूर्व कुछ अनिवार्य सीढ़ियां रखी हैं, तो अकारण नहीं रखी हैं। गलत व्यक्ति के पास शक्ति न पहुंचे.. इसलिए। और गलत व्यक्ति अगर चाहे, तो पहले ठीक होने की प्रक्रिया से गुजरे। और उसके हाथ में चाबी तभी आए, जब कोई दुरुपयोग, अपने या दूसरों के लिए, वह न कर सके।यही सवाल नहीं है कि दूसरों के लिए आप हानि पहुंचा सकते हैं, बल्कि खुद को भी पहुंचा सकते हैं। गलत व्यक्ति खुद को भी पहुंचाएगा।सच तो यह है कि बिना खुद को हानि पहुंचाए, कोई दूसरे को हानि पहुंचा ही नहीं सकता। इसका कोई उपाय ही नहीं है। इसके पहले कि कोई किसी को आग लगाये ;उसे खुद जलना पड़ेगा। इसके पहले कि कोई किसी को जहर पिलाये ;उसे खुद पीना पड़ेगा। जो हम दूसरों के साथ करते हैं; वह हमें अपने साथ पहले ही कर लेना पड़ता है।

क्या अभ्यास और वैराग्य, एक ही चीज के दो छोर नहीं हैं? और वैराग्य क्या स्वयं एक साधन पद्धति नहीं है?

07 FACTS;-

1-अभ्यास और वैराग्‍य बड़ी भिन्न बातें हैं। वैराग्‍य तो एक भाव है; और अभ्यास एक प्रयत्न है। वैराग्य तो आपको कई बार अनुभव होता है। लेकिन उसकी हल्की झलक आती है। उसको अगर आप अभ्यास न बना सकें, तो वह खो जाएगा। अभ्यास का अर्थ है कि जिस वैराग्य की झलक मिली है, वह झलक न रह जाए, उसकी आपके भीतर गहरी लकीर हो जाए ।जैसे कि आप धन के लिए दौड़ते थे और धन आपको मिल गया। धन के मिलने के बाद आपके मन में विषाद आएगा। क्योंकि आप पाएंगे कि कितनी आशा की थी, आशा तो कुछ पूरी न हुई! कितने सपने संजोए थे, वे सब सपने तो धूल में मिल गए! धन हाथ में आ गया। कितना सोचा था कि आनंद मिलेगा; लेकिन वह आनंद तो कुछ मिला नहीं!तो जो भी धन को पा लेगा, उसके पीछे एक छाया आएगी, जहाँ वैराग्य का अनुभव होगा। उसे लगेगा, धन बेकार है। लेकिन अगर इसे अभ्यास न बनाया, तो यह झलक खो जाएगी। और मन फिर कहेगा कि आनंद इसलिए नहीं मिल रहा है, क्योंकि धन आनंद के लिए पर्याप्त नहीं है, और चाहिए। दस हजार ही हैं, दस लाख ही हैं, करोड़ चाहिए।

2-एक दिन करोड़ भी मिल जाएंगे , कुछ अड़चन नहीं है। तब फिर वैराग्य का उदय होगा। फिर लगेगा कि वे सब इंद्रधनुष खो गए। फिर खाली के खाली हैं। और इतना जीवन बेकार गया क्योंकि धन कोई ऐसे ही नहीं मिलता, जीवन से खरीदना पड़ता है। जितना खुद को मिटाओ, उतना धन इकट्ठा होता है।तो आत्मा नष्ट होती जाती है, सोने का ढेर लगता जाता है। फिर विषाद पकड़ेगा; फिर वैराग्य लगेगा; लेकिन उसकी झलक ही आएगी। मन फिर जोर मारेगा कि छोड़ो भी, एक करोड़ से कहीं दुनिया में सुख मिला है! यह वही मन है, जो दस लाख पर कहता था, करोड़ से मिलेगा। यह वही मन है, जो दस हजार पर कहता था, दस लाख पर मिलेगा। यह वही मन है, जो दस पैसे पर कहता था, दस हजार पर मिलेगा।तो पहले अपने जीवन की घटनाओं का पूरा अध्ययन करे ; और वैराग्य की जो झलकें आती हैं, उनको पकड़ ले, और फिर उन वैराग्य की झलकों का अभ्यास करे..। अभ्यास का अर्थ है, उनका बार -बार स्मरण, उनकी चोट निरंतर भीतर डालते रहना। और जब भी मन पहले वाला पुराना धोखा दे, तो वैराग्य का स्मरण खड़ा करना।

3-तो एक घटना बनेगी। जब वैराग्‍य पानी पर खींची लकीर न होगा, पत्थर पर खींची लकीर हो जाएगा। और उसी वैराग्य के सहारे मन का अंत होगा, नहीं तो मन का अंत नहीं होगा। एक -एक बूंद वैराग्य इकट्ठा करना होगा। उसका नाम अभ्यास है।

वास्तव में, वैराग्य तो सभी को आता है; ऐसा व्यक्ति ही खोजना मुश्किल है, जिसको वैराग्य न आता हो। हर बार ज्यादा खा लेने के बाद उपवास की सार्थकता दिखाई पड़ती है। हर बार क्रोध करके पश्चात्ताप उठता है। हर बार बुरा करके न करने की प्रतिज्ञा मन में आती है। पर यह बात क्षणभर को रहती है क्योंकि मन प्रबल है।मन का अभ्यास तो जन्मों का है।तो जगत में दो तरह के अभ्यास हैं । एक मन का अभ्यास और एक वैराग्य का अभ्यास। तो आप मन का अभ्यास तो पूरी तरह करते हैं। वैराग्य मन का विपरीत हैअथार्त मन का एंटीडोट। वह मन जब भी नया धोखा खड़ा करे, तब आपको वैराग्य की स्मृति खड़ी करनी है कि ....यह तो मैं पहले भी सुन चुका, पहले भी कर चुका; यह तो मेरा अनुभव है और परिणाम क्या हुआ?

4-निरंतर परिणाम का चिंतन पुराने अनुभव की स्मृति है, और पुरानी झलकों का संग्रह है। इसको जब कोई साधता ही चला जाता है, तो धीरे -धीरे मन के विपरीत एक नई शक्ति का निर्माण होता है। जो मन के लिए नियंत्रण बन जाता है, और मन के लिए साक्षी बन जाता है; और मन की जो पताल दौड़ है, उसे तोड्ने में सहयोगी हो जाता है। कई बार मन आपको पकड लेगा लेकिन अगर वैराग्य का थोड़ा सा संग्रह है, तो पुन: स्मरण आ जाएगा और आप रुक सकेंगे।अभ्यास का केवल इतना ही अर्थ है, जीवन में जो सहज वैराग्‍य की झलक आती है, उसको संजोना है, इकट्ठा कर लेना है; उसकी शक्ति निर्मित कर लेनी है। और अभ्यास के उपाय हैं।मृत्यु तो आपको कई दफा अनुभव होती है, लेकिन हमने ऐसी व्यवस्था कर ली है कि उसके अनुभव की हमें चोट नहीं लगती।कोई कहता है, कोई मर गया। अगर वह कोई बहुत निकट का नहीं है, तो हम कहते हैं, बुरा हुआ। बात समाप्त हो गई। उसके बाद हमारे मन में कुछ भी नहीं होता। कोई बहुत निकट का मर गया, तो दिन दो दिन खयाल में रहता है ..कुछ दिन थोड़ी चोट लगती है । यह हमने इंतजाम किया है।

5-यह इंतजाम ऐसा ही है, जैसे दो रेल के डब्बों के बीच में बफर लगे रहते हैं, ताकि धक्का बफर पी जाएं और यात्रियों को धक्का न लगे। कार में स्टिंग लगे रहते हैं कि गड्डा आए, तो स्टिंग गड्डे के धक्के को पी जाएं, भीतर बैठे यात्री को धक्का न लगे।तो हमने अपने चारों तरफ बफर लगा रखे हैं। चोट आए, तो बफर पी जाए। तो नीग्रो मर जाए, तो अमेरिकी को फिक्र नहीं। अमेरिकी मरे, तो नीग्रो को प्रसन्नता है। ये हमने बफर पैदा किए हैं। शत्रु मर जाए, तो ठीक। इन सब बफर के बाद दो चार लोग ही बचते हैं हमारे आसपास, जिनकी मौत से हमको थोड़ी बहुत चोट पहुंचेगी। नहीं तो हर एक की मौत से चोट पहुंचती है। क्योंकि कौन मरता है, इससे क्या फर्क पड़ता है। मौत घटती है और मौत की चोट पहुंचती है, और वैराग्य का उदय होता है। लेकिन हमने तरकीबें बना रखी हैं।फिर जो हमारे बिलकुल निकट हैं, उनसे भी बचने के लिए हमने बफर बना रखे हैं। अगर पत्नी भी मर जाए, तो भी हम कहते हैं, जल्दी ही मिलना होगा, स्वर्ग में मिलेंगे। थोड़े ही दिन की बात है। और आत्मा अमर है, इसलिए पत्नी कुछ मरी नहीं है। यह तो सिर्फ शरीर छूट गया है। कोई रास्ता हम खोज लेते हैं।

6-बेटा मर जाए, तो हम कहते हैं,जो प्यारे लोग हैं, परमात्मा, उनको जल्दी उठा लेता है। यह बफर है। इससे हम अपने को राहत देते हैं, कसोलेशन देते हैं। इससे सांत्वना बना लेते हैं कि ठीक है, परमात्मा के लिए प्यारा होगा, इसलिए बेटे को उठा लिया। आपका बेटा परमात्मा को प्यारा होना ही चाहिए! सिर्फ गलत लोग ज्यादा जीते हैं। अच्छे लोग तो जल्दी मर जाते हैं कि अपना कोई कर्म होगा, जिसकी वजह से दुख भोगना पड़ रहा है।मौत को बचाते हैं; कुछ और चीजें बीच में ले आते हैं। कर्म का फल है, इसलिए भोगना पड़ रहा है। अब फल है, तो भोगना पड़ेगा। तो मौत को हटा दिया, डायवर्शन पैदा हो गया। अब हम कर्म की बात सोचने लगे। लड़का, मौत, अलग हट गई। थोड़े दिन में सब भूल जाएगा, हम अपने काम धंधे में लग जाएंगे।

इस तरह हमने बफर हर चीज में खड़े कर रखे हैं और वैराग्य उदय नहीं हो पाता।अभ्यास का अर्थ है, बफर का तोड़ना। और हर जगह से, जहाँ से भी सूरज की किरण मिल सके, वैराग्य की किरण मिल सके, वहाँ से उसे भीतर आने देना। सब तरफ खुले होना।गौतम बुद्ध अपने भिक्षुओं को कहते थे, मरघट पर जाओ। पहला ध्यान मरघट पर करो और तीन महीने मरघट पर रहो। भिक्षु कहते, लेकिन मरघट पर जाने की क्या जरूरत है? ध्यान यहीं कर सकते हैं!गौतम बुद्ध कहते, यहां न होगा। तुम मरघट पर ही बैठो दिन -रात। चिताएं जलेंगी, लोग आएंगे -जाएंगे; तुम वहीं ध्यान करना।

7-तीन महीने जो मरघट पर बैठकर ध्यान कर लेता, उसके मौत के संबंध में जितने बफर होते, सब टूट जाते। तब वह यह नहीं देखता कि कौन मरा। मौत दिखाई पड़ती ..कौन का कोई संबंध नहीं रह जाता।और चौबीस घंटे मरघट पर बैठे -बैठे यह असंभव है तीन महीने में कि आपको यह समझ में न आ जाए कि यह देह आज नहीं कल जलेगी। यह असंभव है कि आपको सपने न आने लगें कि आप चिता पर जलाए जा रहे हैं।यह असंभव है कि मौत इतनी प्रगाढ़ न दिखाई पड़ने लगे कि जीवन का रस खो जाए।तो मौत का अभ्यास हो जाएगा मरघट पर। अभ्यास से वैराग्य उदय होगा, घना होगा। जीवन के साथ जो हमारे राग के, लगाव के संबंध हैं, वे क्षीण और शिथिल हो जाएंगे।लोग फोटो रखते हैं। अगर कहा जाये कि अपने पति /पत्नी का एक्सरे अपने साथ रखो। और जब भी याद आए एक्सरे देखो, तो समझ में आएगा कि देह कितनी सुंदर है। फोटो रखना ठीक नहीं है। एक्सरे की कॉपी रख लेना एकदम अच्छा है। और जब भी मन में आ जाए तो फिर-फिर उसको देख लेना उचित है।तो एक्सरे की फोटो अभ्यास बन जाएगी। उससे वैराग्य का जन्म होगा; सघन होगा। फिर धीरे-धीरे पति /पत्नी को भी देखेंगे, तो आपके पास एक्सरे वाली आंखें हो जाएंगी। तो उसकी सुंदर चमड़ी के पीछे हड्डियां दिखाई पड़ने लगेंगी। ये बफर तोड्ने हैं और वैराग्य को जन्माना है। और उसका निरंतर अभ्यास चाहिए। क्योंकि मन का पुराना अभ्यास है।मन बहुत सबल है क्योकि आपने ही उसको सबल किया है। और मन से संघर्ष करना है।


....SHIVOHAM....


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