क्या विष्णु के अवतार मानव की एवोल्यूशन थ्योरी का रहस्य बताते हैं?
क्या विष्णु के अवतार मानव की एवोल्यूशन थ्योरी का रहस्य बताते हैं?
02 FACTS;-
1-सनातन धर्म की मान्यताएं और विज्ञान के तर्क कहीं न कहीं किसी मोड़ पर आकर एक-दूसरे के पूरक ही साबित होते हैं। इसका एक योग्य उदाहरण है पुराणों में वर्णित भगवान विष्णु के 09 अवतार जो मानव जीवन के विकास और सभ्यता के विकास की असाधारण झलक है। श्रीहरि के इन अवतारों का संबंध विज्ञान से भी है।
2-हिंदू धर्म में इसकी व्याख्या आज से हजारों साल पहले हो चुकी है। भगवान विष्णु के अवतार की कहानी माइथोलॉजी से अधिक विकासवादी सिद्धांत से संबंधित है।जिस प्रकार विष्णु के अवतार और डार्विन के सिद्धांत के अनुसार मनुष्यों का विकास हुआ ...यह आश्चर्यजनक है और एक दुसरे से काफी मिलती जुलती है।भगवान के ये अवतार मानव सभ्यता के विकास के क्रम को दर्शाते हैं और एक-दूसरे से जुड़े हैं…
1-मत्स्य अवतार:-
03 POINTS;-
1-यह अवतार भगवान विष्णु के अवतारों में से सबसे पहला अवतार है। पुराणों के अनुसार भगवान नें एक मछली के रूप में राजा सत्यव्रत को तत्वज्ञान दिया था और उन्हें भविष्य में आने वाले प्रलय से बचने का उपाय बताया था।
2-डार्विन के सिद्धांत के मुताबिक, जीवन की शुरूआत सागर में रहने वाले जीवों से हुई है , जैसे की मछलियां।और पानी जीवन को बचाये रखने के लिए सबसे ज़रूरी तत्व है अर्थात पानी के बिना जीवन संभव नहीं है।
3-नव चक्र के सिद्धांत के मुताबिक वह साधक जो अभी इस माया जगत में सर्वाइव नहीं कर पा रहा है;जो संसार में हर समय केवल समस्याएं ढूंढा करता है और जो मानता है कि सभी लोगों को उसकी सहायता करनी चाहिए, परंतु लोग ऐसा नहीं कर रहे हैं।वह अभी पहले ही अवतार अर्थात मछली के रूप में है... मूलाधार चक्र में है।मछली तो केवल यही चाहती है कि सभी उसको दाना डालें और इसीलिए पूरे संसार में सबसे ज्यादा मछली का ही शोषण होता है क्योंकि दाने के साथ कांटा भी तो डाला जाता है ;जिसमें फँसकर उसका जीवन चला जाता है।और यही उस व्यक्ति के साथ भी होता है जो मछली की स्टेज में होता है। 2-कूर्म अवतार:-
03 POINTS;-
1-यह भगवान विष्णु का दूसरा अवतार था, जिसमें भगवान कूर्म (कछुए) का रूप धारण कर समुद्र मंथन में सहायता करते हैऔर यह मत्स्य अवतार के बाद वाला अवतार है।
2-विकासवाद के सिद्धांत के मुताबिक, इस चरण में जीवन जल से थल की ओर प्रस्थान करता है।दूसरे चरण में जलीय जीवों नें समुद्र से बाहर निकल ज़मीन पर चलना शुरू किया और इस तरह से उभयचर अस्तित्व में आये।कछुआ भी एक उभयचर ही है जो भूमि और जल दोनों में रहने के लिए अनुकूल होता है।
3-जीवन विकास के क्रम में पानी से बाहर निकल कर साधक उभयचर बनता है जो जीवन के विकास का दूसरा चरण है।नव चक्र के सिद्धांत के मुताबिक वह साधक जो इस माया जगत में सर्वाइव करना सीख लेता है ; जो फूलों के साथ कांटे भी होंगे ,ऐसा मानकर जीवन में आगे बढ़ता है।इसके अतिरिक्त मुलायम होते हुए भी वह कठोर कवच के अंदर प्रवेश करके संसार में कार्य करके अपनी सहायता करता है। यहीं से एक साधक का एवोल्यूशन प्रारंभ हो जाता है। और वह अपने दूसरे मूलाधार चक्र में प्रवेश कर लेता है। 3-वराह अवतार:-
03 POINTS;-
1-धर्म ग्रंथों के अनुसार जब दैत्य हिरण्याक्ष नें पृथ्वी को समुद्र में छिपा दिया था तब भगवान विष्णु नें वराह (सूअर) का रूप धारण कर पृथ्वी को पुनः वापस लाये थे।वराह अवतार विष्णु का तीसरा अवतार था और उन्हें धरती से महासागर की यात्रा करने के लिए पैरों की ज़रूरत पड़ी थी।जीवन के विकास में अगला पड़ाव था पैरों का क्योंकि बिना पैरों के धरती पर लंबी दूरी तय करना आसान नहीं था। इसलिए इस प्रजाति को पूर्ण करने के लिए पैरों का विकास शुरू हुआ।
2-डार्विन के सिद्धांत के अनुसार उभयचर से विकसित होकर जीवों नें पूर्ण रूप से भूमि पर रहना शुरू कर दिया। भगवान का यह रूप भी एक वराह का था जो भूमि पर ही निवास
करता है।जल-थल में रहते-रहते जीवन भूमि के लिए भी अनुकूल हो गया।विकास के क्रम में प्रजनन क्रिया के लिए धरती उनके लिए अनुकूल हो गई।
3-नव चक्र के सिद्धांत के मुताबिक वह साधक जो गंदगी से बैर ना करके, इस माया जगत में आगे बढ़ना सीख लेता है ; इवॉल्व होने को महत्व देता है। वह साधक अपने तीसरे मणिपुर चक्र में पहुंच जाता है। 4-नृसिंह अवतार:-
03 POINTS;-
1-नृसिंह अवतार में ईश्वर नें हिरण्यकशिपु का वध कर अपने परम भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी। यह भगवान का वह रूप था जिसमें उन्होंने आधा मनुष्य और आधा पशु का रूप धारण किया था ।
2-डार्विन के सिद्धांत के अनुसार भी जीव अगले चरण में पशु रूप से आगे बढ़ मनुष्य के रूप
में विकसित हो रहे थें।इस चरण में जीवन जानवर से मनुष्य की ओर परिवर्तित होता है।आंशिक रूप से मानव का विकास होता है, जिसमें वह पैरों पर चलना सीखता है।उसका शारीरिक विकास तो होता है किन्तु मानसिक विकास नहीं हो पाता है। अगर आदि मानव को देखा जाए तो नीचे के हिस्सों को मानव की तरह और ऊपर के हिस्से को जानवर की तरह देखा जा सकता है। जानवर मनुष्य के रूप में विकसित होने पर ऐसे ही दिखते हैं।विकास के क्रम में होमो सेपियंस की अवधारणा अगली कड़ी थी, जिसे विकासवाद के सिद्धांत में मील का पत्थर माना जाता है। इस चरण में जानवर मानव के रूप में दो पैरों पर चलना सीखता है।
3- नरसिम्हा अवतार को आधा मानव और आधा जानवर का अवतार माना जाता है और यह जानवर से मनुष्य में परिवर्तन के संकेत के तौर पर है।नव चक्र के सिद्धांत के मुताबिक इस चरण में मानव का आधा विकास हो जाता है।साधक का शरीर भले ही मानव का हो गया है लेकिन दिमाग अथवा मस्तिष्क अभी भी जानवरों वाला ही है। वह इवॉल्व होने को महत्व देता है लेकिन आगे बढ़ने के लिए क्रूरता और करुणा दोनों को धारण करता है। परंतु उसका मानसिक संतुलन ऐसा नहीं होता कि वह अपने पर नियंत्रण कर सके।अभी भी वह इंद्रियों के ही नियंत्रण में रहता है।इस प्रकार वह अपने चौथे अनाहत चक्र में प्रवेश कर देता है। 5-वामन अवतार:-
03 POINTS;-
1-भगवान विष्णु नें यह अवतार असुरों के राजा बलि का वध कर उसके अहंकार को तोड़ने के लिए लिया था। राजा बलि नें अपनी शक्तियों से स्वर्ग लोक पर कब्जा कर लिया था और इस कारण भगवान नें वामन (बौने) का अवतार लेकर उनसे दान के रूप में तीन पग धरती मांगी। जब बलि नें उनका यह दान स्वीकार किया तब भगवान नें एक विशाल रूप धारण किया और एक पग में धरती, दुसरे पग में स्वर्ग और तीसरे पग में राजा बलि को अपने पैर के नीचे लेकर उन्हें पाताल लोक पहुचा दिया।
2-डार्विन के सिद्धांत के मुताबिक,मनुष्यों नें विकसित होना प्रारंभ किया था परन्तु उनका पूर्ण रूप से विकास नहीं हुआ था। मानव का शुरूआती आकार बौना ही था।इस चरण में मानव, जानवर से अधिक मानव की तरह प्रतीत होता है, लेकिन आकार में काफ़ी बौना होता है।
3-हिंदू धर्म- भगवान विष्णु का यह पांचवा अवतार मनुष्य के बेहद करीब है।यह अवतार मनुष्य के रूप में बुद्धि के विकास का भी शुरूआती संकेत है।नव चक्र के सिद्धांत के मुताबिक इस चरण में मानव बुद्धि का विकास हो जाता है।वह अपने पांचवे विशुद्ध चक्र में
प्रवेश कर देता है।इस चक्र से पशुता समाप्त हो जाती है और ज्ञान का उदय होता है।परंतु ज्ञान बढ़ने के साथ शक्ति का अभाव होता है। 6-परशुराम अवतार:-
03 POINTS;-
1-अपने छठे अवतार में भगवान विष्णु नें परशुराम का अवतार लेकर धरती से समस्त अत्याचारी राजा का वध कर उनको समाप्त कर दिया था।
2-डार्विन के सिद्धांत के अनुसार अब तक मनुष्य पूर्ण रूप से विकसित हो चुका था परन्तु उनके रहने का तरीका भिन्न था, वह जंगलों में वास करते थें और गुफाओं में रहते थें और अपनी रक्षा के लिए पत्थर तथा लकड़ियों के हथियारों से युद्ध करते थें, ठीक वैसे ही जैसे
परशुराम किया करते थें।इस चरण में मानव पहले की अपेक्षा काफ़ी लंबा था और अब वह औजार का इस्तेमाल भी करना जान गया था। इस चरण में जैविक विकास पूर्ण हो जाता है और इंसानी दिमाग बिना किसी कारण के भी कार्य करने लगता है।
3- भगवान विष्णु के छठे अवतार को 'परशुरामावतार' अर्थात वनवासी के नाम से जाना जाता है।भगवान परशुराम गुफाओं में रहते थे और पत्थर व लकड़ियों से बने औजारों का इस्तेमाल किया करते थे।उस वक्त इनका हथियार कुल्हाड़ी थी।आमतौर पर परशुराम को शक्तिशाली ,ज्ञानी परंतु एक क्रोधी ऋषि के रूप में जाना जाता है।।नव चक्र के सिद्धांत के मुताबिक इस चरण में आकर साधक ज्ञान और शक्ति में संतुलन बना लेता है और आज्ञा चक्र में प्रवेश कर जाता है ;परंतु शांति प्राप्त नहीं कर पाता। 7-श्रीराम अवतार:-
03 POINTS;-
1- भगवान विष्णु के सातवें अवतार को राम अवतार के रूप में जाना जाता है और देवता के रूप में मंदिरों में उनकी पूजा की जाती है।इस अवतार में वह एक स्वाभिमानी व मर्यादा पुरुषोत्तम राजा का रूप धारण करते है और धरती से रावन जैसे अधर्मी और अहंकारी राक्षस का वध करते है। मनुष्य के तौर पर श्रीराम ने सभ्यता का विकास किया और तीर-धनुष से लेकर कई औजारों को विकसित किया। उन्होंने छोटे-छोटे समुदाय और गांवों का भी विकास किया।
2-डार्विन के सिद्धांत के अनुसार अगले चरण में मनुष्य सभ्य रूप से एक समाज में रहना शुरू करते है और बड़े प्रेम भाव से हर समस्या का समाधान निकालते है, ठीक वैसे ही जैसे राम
राज्य में हुआ करता था। इस चरण में मानव का सही तरह से विकास हुआ और मनुष्य ने एक-दूसरे का सम्मान करना शुरू कर दिया।डार्विन ने 'सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट' (योग्यतम उत्तरजीविता का सिद्धांत) का सिद्धांत दिया।सच में मानव का अस्तित्व यहीं से शुरू होता है।
3- इस संसार में सभ्यता को ,डेमोक्रेसी को इंट्रोड्यूस करने वाले श्रीराम ही है। श्रीराम एक योद्धा (फायर एलिमेंट )है ,ज्ञानी (एयर एलिमेंट)है और संवेदनशील( वॉटर एलिमेंट) हैं। उनमें इन तीनों गुणों का संगम है। वह अपने तीनों एलिमेंटल सर्किल को पूरे कर लेते हैं। इसीलिए राम महान है,भगवान है और उनकी पूजा की जाती है।वास्तव में, तीनों एलिमेंट सर्किल पॉइंट 5 है और ब्रह्म भी पॉइंट 5 है।जब दोनों पॉइंट फाइव मिल जाते हैं तो साधक पूर्ण हो जाता है।नव चक्र के सिद्धांत के मुताबिक इस चरण में आकर साधक अपने तीनों एलिमेंट सर्किल (पॉइंट 5 )पूरे कर अपने ललाट चक्र में पहुंच जाता है।
8-श्रीकृष्ण अवतार:-
03 POINTS;-
1-द्वापरयुग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण अवतार लेकर अधर्मियों का नाश किया। उन्हें धर्म-अधर्म, जीवन-मृत्यु, मोक्ष और कर्म.. हर विषय में ज्ञान था। वह राजनीति, कूटनीति, मित्रता व शत्रुता हर रिश्ते निभाने में परिपक्व थें।
2-डार्विन के अनुसार भी मनुष्य अब तक अपने जीवन के वास्तविकता को समाझने में सक्षम
हो गया था।मानव जाति ने औजारों और हथियारों का उपयोग करने के लिए सीखना जारी रखा। सभ्यताओं का गठन किया, युद्ध लड़े गये, साम्राज्य बने और आज यही दुनिया के रूप में अस्तित्व में है, जिसे हम देख रहे हैं। यहां की मुख्य विशेषता जीवन और समाज की बढ़ती जटिलता है। इसी चरण में इंसानों की चेतना का विकास हुआ। मानव ने संगीत और नृत्य आदि से प्यार करना शुरू कर दिया।
3- भगवान विष्णु के 8 वें अवतार को कृष्णावतार के रूप में जाना जाता है और श्रीराम की तरह ही मंदिरों में इनकी भी पूजा की जाती है। यह अवतार स्पष्ट रूप से उन्नत मानव सभ्यता का प्रतिनिधित्व करता है।द्वारका शहर आज के शहरों की प्रतिमूर्ति ही नहीं 10 गुना उन्नत है। जिसकी पुष्टि खुदाई में मिले अवशेषों से भी हुई है कि किस तरह से इस नगर को बसाया गया था।श्रीकृष्ण तीनों एलिमेंट से परे है।उनका हर निर्णय धर्म-अधर्म ,सुख- दुख ,हानि- लाभ, यश- अपयश, जन्म -मरण से परे साम्यावस्था का होता है। जब तक हम अच्छाई -बुराई में फंसे हैं ;हम उस तक नहीं पहुंच सकते। गंगा भी उसकी हैं और गंदा नाला भी उसी का है।वास्तव में,हम ब्रह्म स्वरूप में तभी पहुंच सकते हैं ,जब हम अच्छाई -बुराई से पार उस मैदान में जाएं।तभी हमारी उससे मुलाकात होती है।नव चक्र के सिद्धांत के मुताबिक इस चरण में आकर साधक अपने ब्रह्म स्वरूप में बिन्दु चक्र में पहुंच जाता है। 10-कल्कि अवतार: -
03 POINTS;-
1-यह भगवान विष्णु का नवां अवतार है। कहते है कि कलयुग में बढ़ते अधर्म, भ्रष्टाचार और पापों को नष्ट करने के लिए ईश्वर यह रूप लेंगे। डार्विन नें भी अपने सिद्धांत के अंतिम चरण में यह कहा है कि मनुष्य अपनी सीमाओं को पार कर अधर्म के ओर अग्रसर होगा, इंसान इतना अहंकारी हो जाएगा की वह अज्ञानता के अन्धकार में खो जाएगा।
2-बिग बैंग सिद्धांत और अन्य आधुनिक सिद्धांतों के मुताबिक, ब्रह्मांड स्थिर नहीं है।दुनिया में जीवन का ट्रांसफॉरमेशन ज़रूर होता है, ताकि जीवन की फिर से शुरूआत हो सके और जीवन इवॉल्व कर सके । यही वजह है कि दुनिया हर रूप में अनवरत जारी है।पौराणिक
कथाओं के अनुसार कल्कि अवतार अभी तक नहीं हुआ है; लेकिन यह माना जाता है कि दुनिया में पाप की सीमा पार होने पर विश्व में दुष्टों का संहार करने के लिए भगवान विष्णु कल्कि अवतार में प्रकट होंगे।उसके बाद वे पूरी दुनिया को ट्रांसफॉरम कर इस धरती पर फिर से नए जीवन का सृजन करेंगे।
3-9 का अंक शक्ति का, शक्ति की चरम सीमा का अंक होता है।आज धरती अपनी उन्नति की चरम सीमा पर है, परंतु उसकी उन्नति अब रुक गई है ,स्टैग्नेंट हो गई है। यदि पानी स्टैग्नेंट हो जाए तो बदबू फैलाने लगता है। इसलिए पानी का फ्लो होना बहुत जरूरी है। हमारी पृथ्वी भी बेबी प्लैनेट ही है। हर प्लेनेट अपनी चरम सीमा तक विकास करने के बाद डेवलप्ड हो जाता है।आज हम जिन एलियंस की बात करते हैं ...अगला युग पृथ्वी पर शायद उन्हीं एलियंस का ही होगा।मनुष्य एलियंस के रूप में ही ट्रांसफार्म हो जाएगा। और पृथ्वी भी बेबी प्लैनेट की जगह एलियंस के डेवलप्ड प्लैनेट की तरह हो जाएगी।
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मानव शरीर के नव द्वार का क्या अर्थ है?-
03 FACTS;-
1-मनुष्य को इस साधना के पथ पर चलने के लिए शरीर रूपी साधन की आवश्यकता होती है , जिसमें नौ द्वार हैं।शरीर में के ये नौ द्वार, दो आँख, दो कान, दो नाक, दो गुप्तेंद्रियाँ, और एक मुख है।जब मनुष्य मरने लगता है तब उसके प्राण इन्हीं नौ द्वारों में से किसी एक द्वार से होकर निकलते हैं। इसीलिए कहा गया है- ' रंग महल के दस दरवाजे , कौन सी खिड़की खुली थी सैंया निकस गए , मैं ना लड़ी थी! ' ये नौ द्वार हैं- दो चक्षु द्वार , दो नसिका द्वारा , दो श्रोत द्वार , मुख , वायु व उपस्थ द्वार। इस शरीर से देवत्व भी प्राप्त किया जा सकता है और असुरत्व भी , इसी से स्वर्ग जाया जा सकता है और इसी के द्वारा नरक भी । यही सन्मार्ग की ओर ले जाता है और यही कुमार्ग पर। इंद्रियों की साधना हमें ऊर्ध्वगामी बना देती है और इनका अनियंत्रण हमें अधोगामी बना देता है।
2-भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है- जैसे कछुआ आवश्यकता पड़ने पर अपने अंगों को समेट लेता है , वैसे ही जब पुरुष अपनी इंद्रियों को उनके विषयों से समेट लेता है तब उसकी बुद्धि स्थिर होती है। वायु व उपस्थ के स्थानों पर मूलाधार और स्वाधिष्ठान चक्र हैं , जब उन पर आघात होता है जो मनुष्य की कुंडलिनी को जागृत करने में सहायक होता है।तीसरा द्वार है- मुख जिसमें हमारी जिह्वा विराजमान है। विभिन्न प्रकार के स्वादों की ओर तो यह मनुष्य को खींचती ही है , लेकिन अत्यधिक वाचालता , प्रलाप , चुगली , निंदा यह भी इसी के कृत्य हैं। इसकी साधना मनुष्य अधिक से अधिक मौन रह कर कर सकता है।
3-अनुलोम-विलोम प्राणायामों के द्वारा नासिका के दोनों द्वार शुद्ध होकर इड़ा , पिंगला तथा
सुषुम्ना नाडि़यों की शुद्धि में सहायक होते हैं।अपने नेत्रों के द्वारा साधक भगवान के श्रीविग्रहों का दर्शन कर सकता है और आंखें बंद करके अपने आंतरिक नेत्रों से उस ज्योति के दर्शन कर सकता है जो हमारे हृदय में विराजमान है और जिसे परम ज्योति कहा जाता है।अपने कानों को अगर साधक बंद करके उस नाद को सुने , जिसे अनहद नाद की संज्ञा दी गयी है और जिसे कुंडलिनी की आवाज भी कहा जाता है ,तो हमारे श्रोत्र द्वार भी नियंत्रित हो सकते हैं।शरीर के ये नौ द्वार ही हमारे उत्थान व पतन के कारण हैं।इस शरीर रूपी महल के नौ दरवाजों की साधना हमें परमात्मा के दर्शन करा सकती है।
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मानव शरीर के प्रकार >>> नव चक्र>>> आठ अवतार >>>शरीर के नव द्वार
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1-स्थूल शरीर-फिजिकलबॉडी>>मूलाधार चक्र>>मत्स्य >>गुप्तेंद्रिय
2-सूक्ष्म/भाव शरीर- इथरिकबॉडी>>स्वाधिष्ठान चक्र>>कूर्म >>गुप्तेंद्रिय
3-कारण शरीर-एस्ट्रल बॉडी>>>मणिपुर चक्र>>>वराह >>> मुख
4-मानस शरीर-मेन्टल बॉडी>>>अनाहत चक्र>>>नरसिंह >>> नाक
5-आत्मिक शरीर-स्प्रिचुअल बॉडी>>>विशुद्ध चक्र>>>वामन >>>नाक
6-ब्रह्म शरीर -कॉस्मिक बॉडी>>>आज्ञा चक्र>>>परशुराम >>> आँख
7-कॉस्मिक बॉडी>>>ललाट चक्र>>>श्रीराम>>> आँख
8-कॉस्मिक बॉडी>>>बिन्दु चक्र>>>श्रीकृष्ण>>> कान
9-निर्वाण शरीर/बॉडीलेस बॉडी>>>सहस्त्रार चक्र>>>कान
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NOTE;-
9 अवतार 9 द्वार,और 9 चक्र का एक सर्किल है।प्रत्येक मनुष्य को, साधक को इस सर्किल को पूरा करके अपनी यात्रा पूरी करनी होती है। आज जो वाटर एलिमेंट है वह शिवलोक से आया है।जो एयर एलिमेंट है ,वह ब्रह्मलोक से आया है। और जो फायर एलिमेंट है वह विष्णु लोक से आया है।यहाँ ट्रेनिंग लेकर अपने अपने घर में वापसी करना ही हर आत्मा का उद्देश्य है। पृथ्वी तो अभी भी एक बेबी प्लेनेट ही है।परंतु ब्रह्मांड बहुत ही ब्रह्मांड बहुत ही रहस्य पूर्ण है,अनंत है।अपना सर्किल पूरा करके हम सेल्फविल्ड है और ब्रह्मांड के किसी भी लोक में रहना, कार्य करना स्वीकार कर लेते हैं। अभी पृथ्वी लोक में जब तक हम अपनी यात्रा पूरी नहीं करते, हम चेंनड ही रहते हैं।
...SHIVOHAM...
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