क्या सचमुच होते हैं चमत्कारिक तरह के पौधे व जड़ी-बूटियां ?
क्या सचमुच होते हैं चमत्कारिक तरह के पौधे व जड़ी-बूटियां ?-_
आयुर्वेद के अलावा भारत की स्थानीय संस्कृति में कई चमत्कारिक पौधों के बारे में पढ़ने और सुनने को मिलता है। एक ऐसी जड़ी है जिसको खाने से जब तक उसका असर रहता है, तब तक व्यक्ति गायब रहता है। एक ऐसी जड़ी-बूटी है जिसका सेवन करने से व्यक्ति को भूत-भविष्य का ज्ञान हो जाता है। कुछ ऐसे भी पौधे हैं जिनके बल पर स्वर्ण बनाया जा सकता है। इसी तरह कहा जाता है कि धन देने वाला पौधा जिनके भी पास है, वे धनवान ही नहीं बन सकते बल्कि वे कई तरह की चमत्कारिक सिद्धियां भी प्राप्त कर सकते हैं।और हो सकता है कि आपके आसपास ही हो इसी तरह का चमत्कारिक पौधा।जड़ी-बूटियों के माध्यम से धन, यश, कीर्ति, सम्मान आदि सभी कुछ पाया जा सकता है।ये तो सभी जानते हैं कि पौधों में शारीरिक और मानसिक रोगों को दूर करने की क्षमता के अलावा वास्तुदोष मिटाने की क्षमता भी है इसीलिए कुछ लोग अपने मकान के बगीचे में इसी तरह के पौधे लगाते भी हैं। कई पौधे तो ऐसे हैं जिनके घर में होने से धन और समृद्धि बढ़ती है तो कई असाधारण चमत्कार से संपन्न होते हैं।
चमत्कारिक पौधों के बारे में विस्तृत जानकारी...
11 FACTS;-
1-हत्था जोड़ी :-
02 POINTS;-
1- माना जाता है कि हत्था जोड़ी को अपने पास रखने से लोग आपको सम्मान देने लगते हैं। यह एक विशेष प्रकार का पौधा होता है जिसकी जड़ खोदने पर उसमें मानव भुजा जैसी दो शाखाएं निकलती हैं इसके सिरे पर पंजा जैसा बना होता है। यह पूर्णत: मानव हाथ के समान होता है इसीलिए इसे हत्था जोड़ी कहते हैं।दरअसल, अंगुलियों के रूप में उस पंजे की आकृति ठीक इस तरह की होती है, जैसे कोई मुट्ठी बांधे हो। जड़ निकलकर उसकी दोनों शाखाओं को मोड़कर परस्पर मिला देने से करबद्ध की स्थिति बनती है। इसके पौधे प्राय: मध्यप्रदेश के जंगलों में पाए जाते हैं।हत्था जोड़ी बहुत ही शक्तिशाली व प्रभावकारी है। यह एक जंगली पौधे की जड़ होती है। माना जाता है कि मुकदमा, शत्रु संघर्ष, दरिद्रता आदि के निवारण में इसके जैसा चमत्कारी पौधा कोई दूसरा नहीं।
2-माना जाता है कि जिसके पास यह होती है उस पर मां चामुण्डा की असीम कृपा स्वत: ही होने लगती है और ऐसे व्यक्ति को किसी भी कार्य में सफलता मिलती रहती है। यह धन-संपत्ति देने वाली बहुत ही चमत्कारी जड़ी मानी गई है। कहा जाता है कि इसे जंगल में से लाने के पूर्व इसको किसी विशेष दिन जाकर निमंत्रण दिया जाता है, तब उक्त दिन जाकर उसको लाया जाता है फिर किसी खास मंत्र द्वारा इसे सिद्ध करने के बाद ही पास में रखा जाता है।सिद्ध करने के बाद इसे लाल रंग के कपड़े में बांधकर घर में किसी सुरक्षित स्थान में अथवा तिजोरी में रख दिया जाता है। इससे आय में वृद्घि होती है और सभी तरह के संकटों से मुक्ति मिलती है। 2-अपामार्ग...भूख-प्यास को रोके जड़ी :-
वेदादि ग्रंथों के अलावा कौटिल्य के अर्थशास्त्र में जड़ी-बूटी, दूध आदि से निर्मित ऐसे आहार का विवरण है जिसके सेवन के बाद पूरे महीने भोजन की जरूरत नहीं पड़ती।कहते हैं कि आंधीझाड़ा से अत्यधिक भूख लगने (भस्मक रोग) और अत्यधिक प्यास लगने का रोग समाप्त किया जा सकता है। अर्थात जो लोग ज्यादा खाने के शौकीन हैं और मोटापे से ग्रस्त हैं वे इस जड़ी का उपयोग कर भूख को समाप्त कर सकते हैं।इसे संस्कृत में अपामार्ग, हिन्दी में चिरचिटा, लटजीरा और आंधीझाड़ा कहते हैं। अंग्रेजी में इसे रफ चेफ ट्री नाम से जाना जाता है। यह पौधा 1 से 3 फुट ऊंचा होता है और भारत में सब जगह घास के साथ अन्य पौधों की तरह पैदा होता है। खेतों की बागड़ के पास, रास्तों के किनारे, झाड़ियों में इसे सरलता से पाया जा सकता है।
3-ब्राह्मी :-
ब्राह्मी को बुद्धि और उम्र को बढ़ाने वाला माना गया है। ब्राह्मी तराई वाले स्थानों पर उगती है।यह बुखार, स्मृतिदोष, सफेद दाग, पीलिया, प्रमेह और खून की खराबी को दूर करती है। खांसी, पित्त और सूजन में भी लाभदायक है। ब्राह्मी का उपयोग दिल और दिमाग को संतुलित करने के लिए लिए भी किया जाता है।कहा जाता है कि इसका सही मात्रा के अनुसार सेवन करने से निर्बुद्ध, त्रिकालदर्शी यानी भूत, भविष्य और वर्तमान सब दिखाई देने लगता है।जटामासी, शंखपुष्पी, जपा, अखरोट की तरह ब्राह्मी भी दिमाग और नेत्र के लिए बहुत ही उपयोगी है। ब्राह्मी नाम से कई तरह के टॉनिक बनते हैं। ब्राह्मी दरअसल एक जड़ी है, जो दिमाग के लिए बहुत ही उपयोगी है। यह दिमाग को शांत कर स्थिरता प्रदान करती है, साथ ही यह याददाश्त बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।योग और आयुर्वेद के अनुसार बाह्मी से हमारे चक्र भी सक्रिय होते हैं। माना जाता है कि इससे दिमाग के बाएं और दाएं हेमिस्फियर संतुलित रहते हैं। ब्राह्मी में एंटी ऑक्सीडेंट तत्व होते हैं जिससे दिमाग की शक्ति बढ़ने लगती है। सेवन : आधे चम्मच ब्राह्मी के पावडर को गरम पानी में मिला लें और स्वाद के लिए इसमें शहद मिला लें और मेडिटेशन से पहले इसे पीएं तो लाभ होगा। इसके 7 पत्ते चबाकर खाने से भी वही लाभ मिलता है। 4-सोमवल्ली;-
02 POINTS;-
1-ऋग्वेद केअनुसार 1/5/5 यह निचोड़ा हुआ शुद्ध दधिमिश्रित सोमरस, सोमपान की प्रबल इच्छा रखने वाले इंद्रदेव को प्राप्त हो।प्राचीन ग्रंथों एवं वेदों में सोमवल्ली के महत्व एवं उपयोगिता का व्यापक उल्लेख मिलता है। अनादिकाल से देवी-देवताओं एवं मुनियों को चिरायु बनाने और उन्हें बल प्रदान करने वाला पौधा है सोमवल्ली। बताया जाता है कि रीवा जिले के घने जंगलों में यह पौधा आज भी पाया जाता है। इसका वानस्पतिक नाम Sarcostemma acidum बताया जाता है। इसकी कई तरह की प्रजातियां होती हैं।प्राचीन ग्रंथों व वेद-पुराणों में सोमवल्ली पौधे के बारे में कहा गया है कि इस पौधे के सेवन से शरीर का कायाकल्प हो जाता है। देवी-देवता व मुनि इस पौधे के रस का सेवन अपने को चिरायु बनाने एवं बल सामर्थ्य एवं समृद्धि प्राप्त करने के लिए किया करते थे। इस पौधे की खासियत है कि इसमें पत्ते नहीं होते। यह पौधा सिर्फ डंठल के आकार में लताओं के समान है। हरे रंग के डंठल वाले इस पौधे को सोमवल्ली लता भी कहा जाता है।
2-ऋग्वेद में सोमरस के बारे में कई जगह वर्णन है। एक जगह पर सोम की इतनी उपलब्धता और प्रचलन दिखाया गया है कि इंसानों के साथ-साथ गायों तक को सोमरस भरपेट खिलाए और पिलाए जाने की बात कही गई है।सोम को स्वर्गीय लता का रस और आकाशीय चन्द्रमा का रस भी माना जाता है। ऋग्वेद अनुसार सोम की उत्पत्ति के दो प्रमुख स्थान हैं- 1-स्वर्ग और 2- पार्थिव पर्वत।सोम की लताओं से निकले रस को सोमरस कहा जाता है। उल्लेखनीय है कि यह न तो भांग है और न ही किसी प्रकार की नशे की पत्तियां। सोम लताएं पर्वत श्रृंखलाओं में पाई जाती हैं। राजस्थान के अर्बुद, उड़ीसा के महेन्द्र गिरि, विंध्याचल, मलय आदि अनेक पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी लताओं के पाए जाने के जिक्र है। कुछ विद्वान मानते हैं कि अफगानिस्तान की पहाड़ियों पर ही सोम का पौधा पाया जाता है। यह गहरे बादामी रंग का पौधा है। 5-तेलिया कंद : -
इसकी जड़ों से तेल का रिसाव होता रहता है इसीलिए इसे तेलिया कंद कहते हैं। माना जाता है कि यह पौधा सोने के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कहते हैं कि यह किसी विशेष निर्माण विधि से पारे को सोने में बदल देता है, लेकिन इसमें कितनी सच्चाई है यह कोई नहीं जानता। हालांकि माना जाता है कि इसका मुख्य गुण सांप के जहर को काटना है।पहले प्रकार को पुरुष और दूसरे को स्त्रैण तेलिया कंद कहते हैं। इसमें सिर्फ पुरुष प्रकार के तेलिया कंद में ही गुण होते हैं। इसकी पहचान यह है कि इसके कंद को सूई चुभो देने भर से ही तत्काल वह गलकर गिर जाता है। इसका कंद शलजम जैसा होता है। यह पौधा सर्पगंधा से मिलते-जुलते पत्ते जैसा होता है।माना जाता है कि तेलिया कंद का पौधा 12 वर्ष उपरांत अपने गुण दिखाता है। प्रत्येक वर्षाकाल में इसका पौधा जमीन से फूटता है और वर्षाकाल समाप्त होते ही समाप्त हो जाता है। इस दौरान इसका कंद जमीन में ही सुरक्षित बना रहता है।इस तरह जब 12 वर्षाकाल का चक्र पूरा हो जाता है, तब यह पौधा अपने चमत्कारिक गुणों से संपन्न हो जाता है। इसके आसपास की जमीन पूर्णत: तेल में लबरेज हो जाती है। 6-श्वेत अपराजिता :-
श्वेत अपराजिता का पौधा दरिद्रनाशक माना जाता है। श्वेत आंकड़ा, शल और लक्ष्मणा का पौधा भी श्वेत अपराजिता के पौधे की तरह धनलक्ष्मी को आकर्षित करने में सक्षम है। श्वेत अपराजिता का पौधा मिलना कठिन है। हालांकि नीले रंग का आसानी से मिल जाता है। श्वेत आंकड़ा और लक्ष्मणा का पौधा भी श्वेत अपराजिता के पौधे की तरह धनलक्ष्मी को आकर्षित करने में सक्षम है। इसके सफेद या नीले रंग के फूल होते हैं। अक्सर सुंदरता के लिए इसके पौधे को बगीचों में लगाया जाता है। इसमें बरसात के सीजन में फलियां और फूल लगते हैं।संस्कृत में इसे आस्फोता, विष्णुकांता, विष्णुप्रिया, गिरीकर्णी, अश्वखुरा कहते हैं जबकि हिन्दी में कोयल और अपराजिता। बंगाली में भी अपराजिता, मराठी में गोकर्णी, काजली, काली, पग्ली सुपली आदि कहा जाता है। गुजराती में चोली गरणी, काली गरणी कहा जाता है। तेलुगु में नीलंगटुना दिटेन और अंग्रेजी में मेजरीन कहा जाता है।दोनों प्रकार की कोयल (अपराजिता), चरपरी (तीखी), बुद्धि बढ़ाने वाली, कंठ (गले) को शुद्ध करने वाली, आंखों के लिए उपयोगी होती है। यह बुद्धि या दिमाग और स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली है तथा सफेद दाग (कोढ़), मूत्रदोष (पेशाब की बीमारी), आंवयुक्त दस्त, सूजन तथा जहर को दूर करने वाली है।
7-पलाश :-
02 POINTS;-
1-पलाश के फूल को टेसू का फूल कहा जाता है। इसे ढाक भी कहा जाता है। यह बसंत ऋतु में खिलता है। पलाश 3 प्रकार का होता है- एक वह जिसमें सफेद फूल उगते हैं और दूसरा वह जिसमें पीले फूल लगते हैं और तीसरा वह जिसमें लाल-नारंगी फूल लगते हैं।माना जाता है कि सफेद पलाश के फूल की एक गूटिका बनती है जिसे मुंह में रखने के बाद व्यक्ति तब तक गायब रहता है जब तक की गूटिका पूर्णत: गल नहीं जाए। तीनों ही तरह के पलाश के कई चमत्कारिक गुण हैं। माना जाता है कि सफेद पलाश के पत्तों से पुत्र की प्राप्ति की जा सकती है, जबकि इसके पौधे के घर में रहने से धन और समृद्धि बढ़ती है।पलाश के पत्ते, डंगाल, फल्ली तथा जड़ तक का बहुत ज्यादा महत्व है।सफेद पलाश का पौधा अक्सर पीला और सिंदूरी होता है, लेकिन सफेद पलाश बहुत ही दुर्लभ माना गया है। लोगों का मानना है कि यह फूल चमत्कारी होता है। लोग इसे श्रद्घा और विश्वास के साथ घर लाकर पूजन कक्ष में स्थापित करते हैं।
2-तंत्र शास्त्र में इस वृक्ष के फूल से यंत्र बनाने का प्रयोग बताया गया है, जो धन लक्ष्मी के लिए कारगर बताया गया है।पलाश के पत्तों का उपयोग ग्रामीण दोने-पत्तल बनाने के लिए करते हैं जबकि इसके फूलों से होली के रंग बनाए जाते हैं। हालांकि इसके फूलों को पीसकर चेहरे में लगाने से चमक बढ़ती है। पलाश की फलियां कृमिनाशक का काम करती हैं। इसके उपयोग से बुढ़ापा भी दूर रहता है। इसके फूल के उपयोग से लू को भगाया जा सकता है, साथ ही त्वचा संबधी रोग में भी यह लाभदायक सिद्ध हुआ है।इसके पांचों अंगों- तना, जड़, फल, फूल और बीज से दवाएं बनाने की विधियां दी गई हैं। इस पेड़ से गोंद भी मिलता है जिसे 'कमरकस' कहा जाता है। इससे वीर्यवान बना जा सकता है।पलाश पुष्प पीसकर दूध में मिलाकर गर्भवती माताओं को पिलाने से बलवान संतान का जन्म होता है।सफेद पलाश के फूल, चांदी की गणेश प्रतिमा व चांदी में मढ़े हुए एकाक्षी नारियल को अभिमंत्रित कर तिजोरी में रखें। इससे धन-संपत्ति बढ़ती है। प्राचीन साहित्य में इसका उल्लेख मिलता है कि पलाश के पीले फूल से सोना बनाया जा सकता है।
8-बांदा /बंदाल :-
02 POINTS;-
1-बांदा, वांदा अथवा बंदाल नाम की परोपजीवी वनस्पति प्रात: सभी बड़े वृक्षों पर उग जाती है, जैसे आम, पीपल, महुआ, जामुन आदि। इसके पतले, लाल गुच्छेदार फूल और मोटे कड़े पत्ते पीपल के पत्ते के बराबर होते हैं। हालांकि बहुत से अलग-अलग भी बांदा होते हैं, जैसे पीपल का पेड़ किसी भी दूसरे पेड़ पर उग आता है तो उसे पीपल का बांदा कहते हैं। इसी तरह नीम, जामुन आदि के बांदा भी होते हैं।तंत्रशास्त्र के अनुसार प्रत्येक पेड़ पर उगा बांधा एक विशेष फल देता है।बांदा का धार्मिक और कई मामलों में तांत्रिक महत्व भी है। कहते हैं कि भरणी नक्षत्र में कुश का वांदा लाकर पूजा के स्थान पर रखने से आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं। पुष्प नक्षत्र में इमली का वांदा लाकर दाहिने हाथ में बांधने से कंपन के रोग में आराम मिलेगा। मघा नक्षत्र में हरसिंगार का वांदा लाकर घर में रखने से समृद्धि एवं संपन्नता में वृद्धि होती है। विशाखा नक्षत्र में महुआ का वांदा लाकर गले में धारण करने से भय समाप्त हो जाता है। डरावने सपने नहीं आते हैं। शक्ति में वृद्धि होती है।
2-बरगद का बांदा बाजू में बांधने से हर कार्य में सफलता मिलती है और कोई आपको हानि नहीं पहुंचा सकता। अनार का बांदा पूजा करने के बाद घर में रखने से किसी की बुरी नजर नहीं लगती और न ही भूत-प्रेत आदि नकारात्मक शक्तियों का घर में प्रवेश होता है। बेर के बांदे को विधिवत तोड़कर लाने के पश्चात देव प्रतिमा की तरह इसको स्नान करवाएं व पूजा करें। इसके बाद इसे लाल कपड़े में बांधकर धारण कर लें। इस प्रकार आप जो भी इससे मांगेंगे, वह सब आपको प्राप्त होगा। हरसिंगार के बांदे को पूजा करने के बाद लाल कपड़े में लपेटकर तिजोरी में रखें तो आपको कभी धन की कमी नहीं होगी। आम के पेड़ के बांदे को भुजा पर धारण करने से कभी भी आपकी हार नहीं होती और विजय प्राप्त होती है। 9-कीड़ा घास :-
02 POINTS;-
1-कीड़े जैसी दिखने के कारण उत्तराखंड के लोग इसे कीड़ा घास कहते हैं। तिब्बती भाषा में इसको 'यारसाद्-गुम-बु' कहा जाता है जिसका अर्थ होता है ग्रीष्म ऋतु में घास और शीत ऋतु में जंतु। अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार यर्सी गंबा हिमालयी क्षेत्र की विशेष प्रकार एवं यहां पाए जाने वाले एक कीड़े के जीवनचक्र के अद्भुत संयोग का परिणाम है।कहते हैं कि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ एवं चमोली जिले के 3,500 मीटर की ऊंचाई के एल्पाइन बुग्यालों में यह घास पाई जाती है। तिब्बती साहित्य के अनुसार यहां के चरवाहों ने देखा कि जंगलों में चरने वाले उनके पशु एक विशेष प्रकार की घास, जो कीड़े के समान दिखाई देती है, को खाकर हृष्ट-पुष्ट एवं बलवान हो जाते हैं। धीरे-धीरे यह घास एक चमत्कारी औषधि के रूप में अनेक बीमारियों के इलाज के लिए प्रयोग होने लगी।यह नारंगी रंग की एक पतली जड़ की तरह दिखाई देती है जिसका भीतरी भाग सफेद होता है। इसका ऊपरी भाग एक स्प्रिंग की भांति घुमावदार होता है जिस पर झुर्रियां होती हैं। इन झुर्रियों के कारण ही यह इल्लड़ जैसी लगती है। इन झुर्रियों की मुख्य रचना में 7-8 आकृतियां झुंड के रूप में मिलती हैं। इनमें बीच की रचनाएं बड़ी एवं महत्वपूर्ण होती हैं।
2-वैज्ञानिकों के अनुसार ये झुंड वस्तुत: कार्डिसेप्स नामक फफूंद के सूखे हुए अवशेष होते हैं। उनके अनुसार इस घास में एस्पार्टिक एसिड, ग्लूटेमिक एसिड, ग्लाईसीन जैसे महत्वपूर्ण एमीनो एसिड तथा कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम जैसे अनेक प्रकार के तत्व, अनेक प्रकार के विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसको एकत्रित करने के लिए अप्रैल से लेकर जुलाई तक का समय उपयुक्त होता है। अगस्त के महीने से धीरे-धीरे प्राकृतिक रूप से इसका क्षय होने लगता है और शरद ऋतु के आने तक यह पूर्णतया विलुप्त हो जाती है।यह औषधि हृदय, यकृत तथा गुर्दे संबंधी व्याधियों में उपयोगी सिद्ध हुई है। शरीर के जोड़ों में होने वाली सूजन एवं पीड़ा तथा जीर्ण रोगों जैसे अस्थमा एवं फेफड़े के रोगों में इसका प्रयोग लाभकारी होता है। इसका प्रयोग शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। उम्र के साथ-साथ बढ़ने वाली हृदय एवं मस्तिष्क की रक्त वाहिनियों की कठोरता को भी यह कम करता है। कुल मिलाकर यह आपकी बढ़ती आयु को रोकने में सक्षम है।
10-सहदेवी;-
सहदेवी का पौधा ऐसा चमत्कारी पौधा है जिसके उपाय से कोई भी धनवान बन सकता है।सहदेवी का पौधा एक छोटा सा कोमल पौधा, जो एक फुट से साढ़े तीन फुट तक की ऊंचाई का होता है। पौधा भले ही छोटा और कोमल है पर तंत्र शास्त्र और आयुर्वेद में ये किसी महारथी से कम नहीं हैं। तंत्र शास्त्र में इसे धन खींचनेवाला पौधे के नाम से जाना जाता है।सहदेवी के पौधें को रवि-पुष्य नक्षत्र, पूर्णिमा या अमावस्या जैसे शुभ अवसरों पर अपने घर पर लें आवें। पूर्णिमा से एक दिन पहले सूर्यास्त के समय सहदेवी के पौधे को निमंत्रण देकर आएं कि कल प्रात: हम आपको लेने आएंगे । अगले दिन पूर्णिमा को सूर्योदय से पूर्व स्वयं स्नान करके पौधे को गंगाजल से स्नान कराकर धीरे से उखाड़कर घर ले आएं।घर में पंचामृत से स्नान कराकर विधिवत षोडशोपचार पूजन कर सिद्ध करें।
सहदेवी पौधे के उपाय के लाभ;-
1- सहदेवी के पौधेकी सिद्ध की हुई जड़ को लाल रेशमी चमकदार कपड़े में लपेटकर तिजोरी में रखनेसे धन की कभी कमी नहीं होती और लगातार बढ़ता जाता है।
2- रसोईघर या अनाज के भंडारण घर में यदि सहदेवी की जड़ को शुद्ध स्थान पर रखा जाए तो कभी अन्न्की कमी नहीं होती। 3- घर के पूजन कक्ष में सहदेवी की स्थापना करनेसेघर मेंसुख-शांति बनी रहती है और घर के सभी वास्तुदोषों को खत्म कर देता है।
4- कोई कोर्ट-कचहरी या किसी अन्य विवाद में फंसे हों और फैसला आनेवाला है तो सहदेवी की सिद्ध की हुई जड़ को दाहिने हाथ में बांधे या जेब में धारण करके जाएं, निश्चित ही विजय मिलेगी।
5- सहदेवी के पंचांग का चूर्ण बनाकर तिलक करनेसे तीव्र आकर्षण होता है।
6- सहदेवी के पौधेके पंचांग का चूर्णजिव्हा पर लगाकर बोलने से वाक सिद्धि होती है, हजारों लोग आपको अपलक सुनते रहेंगे।
7- इस पौधेकी जड़ से बना काजल लगाकर जिसके सामने जाएंगे वह आपकी ओर आकर्षित हो जाएगा।
9- सहदेवी की जड़ का तिलक लगानेसे शत्रु भी मित्र बन जायेंगे। सहदेवी की जड़ को दाहिनी बांह पर बांधने से समस्त प्रकार के रोग दूर हो जातेहैं।
11-काली हल्दी;-
शास्त्रों में काली हल्दी को चमत्कारी माना जाता है।काली हल्दी (तांत्रिक प्रयोग हेतु) आदि ऐसी अनेक जड़ी-बूटियां हैं, जो व्यक्ति के सांसारिक और आध्यात्मिक जीवन को साधने में महत्वपूर्ण मानी गई हैं। इसमें तांत्रिक और मांत्रिक ताकत छिपी होती है। इसके उपयोग से बीमार व्यक्ति को स्वस्थ्य किया जा सकता है।हल्दी हल्दी कई प्रकार की होती है। सामान्यत: हमारे दैनिक प्रयोग में आनेवाली हल्दी पीली और लाल (नारंगी) दो प्रकार की होती है। लेकिन इनमें बहुत ही मामूली अंतर होता है। इन्हीं में कभी-कभी कोई गांठ काले रंग की निकल आती है। ऐसा होने की संभावना बहुत ही कम होती है। लेकिन यदि किसी को यह काली हल्दी की गांठ मिल जाए तो यह मान लेना चाहिए कि उसे लक्ष्मी प्राप्ति का एक दैवी साधन मिल गया है। काली हल्दी बहुत ही चमत्कारी है, जो धन प्राप्ति और बाधाओं के नाश में अपना अलग महत्व रखती है ...
1- यदि परिवार में कोई व्यक्ति निरन्तर अस्वस्थ रहता है, तो प्रथम गुरुवार को आटे के दो पेड़े बनाकर उसमें गीली चनेकी दाल के साथ गुड़ और थोड़ी सी पिसी काली हल्दी को दबाकर रोगी व्यक्ति के उपर से 7 बार उतार कर गाय को खिला दें। यह उपाय लगातार 3 गुरुगुवार करने से आश्चर्यजनक लाभ मिलेगा।
2- किसी शुभ दिन गुरु पुष्य या रवि पुष्य नक्षत्र हो, राहुकाल न हो, शुभ घड़ी में इस हल्दी को लाएं। इसे शुद्ध जल से भीगे कपड़े से पोंछकर लोबान की धूप की धूनी में शुद्ध कर लें व कपड़े में लपेटकर रख दें।
3-आवश्यकता होने पर इसका एक माशा चूर्ण ताजेपानी के साथ सेवन कराएं व एक छोटा टुकड़ा काटकर धागे में पिरोकर रोगी के गले या भुजा में बांध दें। इस प्रकार उन्माद, मिर्गी, भ्रांति और अनिन्द्रा जैसे मानसिक रोगों में बहुत लाभ होता है।
4- काली हल्दी के 7 या 9 या 11 दाने बनाएं। उन्हें धागे में पिरोकर धूप आदि देकर जिस व्यक्ति के गले में यह माला पहनाई जाए उसे गृह पीड़ा, बाहरी हवा, टोना-टोटका, नजर आदि से बचाया जा सकता है।
5- यदि किसी व्यक्ति या बच्चेको नजर लग गयी है, तो काले कपड़े में हल्दी को बांधकर 7 बार ऊपर से उतार कर बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें।
6- गुरु पुष्य नक्षत्र में काली हल्दी को सिंदूर में रखकर लाल वस्त्र में लपेटकर धूप आदि देकर कुछ सिक्कों के साथ बांधकर बक्से तिजोरी में रख दें तो धनवृद्धि होने लगती है।
7- किसी की जन्मपत्रिका में गुरू और शनि पीडि़त है, जिससे धन न रुकता हो या कम धंधा बार बार ठप हो जाता हो तो वह शुक्लपक्ष के प्रथम गुरुगुवार से नियमित रूप से काली हल्दी पीसकर तिलक लगाएं, ये दोनों ग्रह शुभ फल देने लगेंगे।
8- यदि किसी के पास धन आता तो बहुत है किन्तु टिकता नहीं है, उन्हें यह उपाय अवश्य करना चाहिए। शुक्लपक्ष के प्रथम शुक्रवार को चांदी की डिब्बी में काली हल्दी, नागकेशर व सिन्दूर को साथ में रखकर मां लक्ष्मी के चरणों से स्पर्श करवा कर धन रखनेके स्थान पर रख दें। यह उपाय करनेसे धन रुकने लगेगा। अन्य सिद्धि देने वाली जड़ी-बूटी : -
37 FACTS;-
1-गुलतुरा (दिव्यता के लिए),
2-तापसद्रुम (भूतादि ग्रह निवारक),
3-शल (दरिद्रता नाशक),
4-भोजपत्र (ग्रह बाधाएं निवारक),
5-विष्णुकांता (शस्त्रु नाशक),
6-मंगल्य (तांत्रिक क्रिया नाशक),
7-गुल्बास (दिव्यता प्रदानकर्ता),
8-जिवक (ऐश्वर्यदायिनी),
9-गोरोचन (वशीकरण),
10-गुग्गल (चामुंडा सिद्धि),
11-अगस्त (पितृदोष नाशक),
14-श्वेत और काली गुंजा (भूत पिशाच नाशक), काली हल्दी का प्रयोग
15-उटकटारी (राजयोग दाता),
16-मयूर शिका (दुष्टात्मा नाशक)
17-धतूरे की जड़ :-
धतूरे की जड़ के कई तांत्रिक प्रयोग किए जाते हैं। इसे अपने घर में स्थापित करके महाकाली का पूजन कर 'क्रीं' बीज का जाप किया जाए तो धन सबंधी समस्याओं से मुक्ति मिलती है।धतूरे की जड़ का एक और प्रयोगअश्लेषा नक्षत्र में धतूरे की जड़ लाकर घर में रखें, घर में सर्प नहीं आएगा और आएगा भी तो कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा।
18-काले धतूरे की जड़:-
इसका पौधा सामान्य धतूरे जैसा ही होता है, हां इसके फूल अवश्य सफेद की जगह गहरे बैंगनी रंग के होते हैं तथा पत्तियों में भी कालापन होता है। इसकी जड़ को रविवार, मंगलवार या किसी भी शुभ नक्षत्र में घर में लाकर रखने से घर में ऊपरी हवा का असर नहीं होता, सुख -चैन बना रहता है तथा धन की वृद्धि होती है।
19- बहेड़ा वृक्ष की जड़ :-
पुष्य नक्षत्र में बहेड़ा वृक्ष की जड़ तथा उसका एक पत्ता लाकर पैसे रखने वाले स्थान पर रख लें। इस प्रयोग से घर में कभी भी दरिद्रता नहीं रहेगी। इसके अलावा पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में बेहड़े का पत्ता लाकर घर में रखें, घर पर ऊपरी हवाओं के प्रभाव से मुक्त रहेगा।
20-मदार की जड़ :-
रविपुष्प नक्षत्र में लाई गई मदार की जड़ को दाहिने हाथ में धारण करने से आर्थिक समृधि में वृद्धि होती हैं।मदार की जड़ रविपुष्प में उसकी मदार की जड़ को बंध्या स्त्री भी कमर में बंधे तो संतान होगी।मदार की जड़ को , कोर्ट कचहरी के मामलों में विजय हेतु आर्द्रा नक्षत्र में आक की जड़ लाकर तावीज की तरह गले में बांधें।
21-शंखपुष्पी की जड़ :-
शंखपुष्पी की जड़ रवि-पुष्य नक्षत्र में लाकर इसे चांदी की डिब्बी में रख कर घर की तिरोरी में रख लें। यह धन और समृद्धि दायक है।
22-मंगल्य :
मंगल्य नामक जड़ी भी तांत्रिक क्रियानाशक होती है।
23-बेला की जड़:-
विवाह की समस्या दूर करने के लिए बेला के फूलों का प्रयोग किया जाता है। इसकी एक और जाति है जिसको मोगरा या मोतिया कहते हैं। बेला के फूल सफेद रंग के होते हैं। मोतिया के फूल मोती के समान गोल होते हैं।महिला को बेला की जड़ और पुरुष को मोतिया की जड़ अपने पास रखनी चाहिए।
24-चमेली की जड़:-
अनुराधा नक्षत्र में चमेली की जड़ गले में बांधें, शत्रु भी मित्र हो जाएंगे।विष्णुकांता का पौधा भी शत्रुनाशक होता है।
25-चंपा की जड़:-
हस्त नक्षत्र में चंपा की जड़ लाकर बच्चे के गले में बांधें। इस उपाय से बच्चे की प्रेत बाधा तथा नजर दोष से रक्षा होगी।
26-शंखपुष्पी की जड़:-
शंखपुष्पी की जड़ रवि-पुष्य नक्षत्र में लाकर इसे चांदी की डिब्बी में रख कर घर की तिरोरी में रख लें। यह धन और समृद्धि दायक है।
27-तुलसी की जड़:-
पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में तुलसी की जड़ लाकर मस्तिष्क पर धारण करें। इससे अग्निभय से मुक्ति मिलेगी।
28-दूधी की जड़:-
सुख की प्राप्ति के लिए पुनर्वसु नक्षत्र में दूधी की जड़ लाकर शरीर में लगाएं।
29-नीबू की जड़:-
उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में नीबू की जड़ लाकर उसे गाय के दूध में मिलाकर निःसंतान स्त्री को पिलाएं। इस प्रयोग से उसे पुत्र की प्राप्ति होगी।
30-काले एरंड की जड़:-
श्रवण नक्षत्र में एरंड की जड़ लाकर निःसंतान स्त्री के गले में बांधें। इस प्रयोग से उसे संतान की प्राप्ति होगी।
31-लटजीरा:-
लटजीरा की जड़ को जलाकर भस्म बना लें। उसे दूध के साथ पीने से संतानोत्पति की क्षमता आ जाती हैं।
32-अपामार्ग के प्रयोग :-
अपामार्ग बाजीकरण के काम में आती है। इसके भी कई प्रयोग हैं।एक प्रयोग यह है कि अश्विनी नक्षत्र में अपामार्ग की जड़ लाकर इसे तावीज में रखकर किसी सभा में जाएं, सभा के लोग वशीभूत होंगे।
33-संखाहुली की जड़ :-
भरणी नक्षत्र में संखाहुली की जड़ लाकर ताबीज में जड़ दे और इसे गले में पहनें तो विपरीत लिंग वाले प्राणी आपसे आकर्षित होने लगेंगे।
34-उटकटारी:-
यदि आप राजनीति के क्षेत्र में तरक्की करना चाहते हैं तो यह जड़ी राजयोग दाता है।इस पौधे को बहुत से लोगों ने देखा होगा। इसके प्रभाव से व्यक्ति के भाग्य में वृद्धि होती है। लेकिन इस पौधे को विधिपूर्वक लाकर पूजा करना होती है।ऊँटकटेरा (उत्कण्टक) ब्रह्मदण्डी और सत्यानाशी की तरह दिखते हैं। ऊँटकटेरा (उत्कण्टक) के सभी भागों पर ब्रह्मदण्डी और सत्यानाशी की तरह ही कांटे होते हैं जो तीक्ष्ण तथा ऊपर की ओर उठे हुए होते हैं, लेकिन वास्तव में उत्कण्टक दोनों से अलग है। इस वनस्पति को ऊँट बड़े चाव से खाते हैं।
35-रक्तगुंजा की जड़:-
रक्तगुंजा को लगभग सभी लोग जानते होंगे। इसे रत्ती भी कहते हैं क्योंकि इसका वजन एक रत्ती के बराबर होता है और किसी समय इससे सोने की तौल की जाती थी। इस पौधे की जड़ रवि पुष्य के दिन, किसी भी शुक्रवार को अथवा पूर्णिमा के दिन निर्मल भाव से धूप-दीप से पूजन कर उखाड़ें और घर में लाकर गाय के दूध से धो कर रख दें।इस जड़ का एक भाग अपने पास रखने से सारे कार्य सिद्ध होते हैं। मान-सम्मान में वृद्धि होती है।
36-सुदर्शन की जड़:-
हाथ में "सुदर्शन" की जड़ बांधें तो राजा प्रिय होता है अथवा "कांकरासिंही" की जड़ पुष्य नक्षत्र में लाकर कमर में बाँधें तो राजा (मंत्री, अधिकारी) वश में होता है अथवा राजा का प्रिय हो जाता है।
37-बरगद का पत्ता :-
अश्लेषा नक्षत्र में बरगद का पत्ता लाकर अन्न भंडार में रखें। भंडार हमेश भरा रहेगा। इसके अलावा धन हेतु बरगद अथवा बड़ के ताजे तोड़े पत्ते पर हल्दी से स्वास्तिक बना कर पुष्य नक्षत्र में घर में रखें।
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अक्षय-धन-प्राप्ति शाबर मन्त्र;-
प्रार्थना;-
हे मां लक्ष्मी, शरण हम तुम्हारी।
पूरण करो अब माता कामना हमारी।।
धन की अधिष्ठात्री, जीवन-सुख-दात्री।
सुनो-सुनो अम्बे सत्-गुरु की पुकार।
शम्भु की पुकार, मां कामाक्षा की पुकार।।
तुम्हें विष्णु की आन, अब मत करो मान।
आशा लगाकर हम देते हैं दीप-दान।।
मन्त्र;-
“ॐ नमः विष्णु-प्रियायै, ॐ नमः कामाक्षायै। ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं श्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा।”
विधि;-
‘दीपावली’ की सन्ध्या को पाँच मिट्टी के दीपकों में गाय का घी डालकर रुई की बत्ती जलाए। ‘लक्ष्मी जी’ को दीप-दान करें और ‘मां कामाख्या ’ का ध्यान कर उक्त प्रार्थना करे। मन्त्र का 108 बार जप करे। ‘दीपक’ सारी रात जलाए रखे और स्वयं भी जागते रहे। नींद आने लगे, तो मन्त्र का जप करे। प्रातःकाल दीपों के बुझ जाने के बाद उन्हें नए वस्त्र में बाँधकर ‘तिजोरी’ या ‘बक्से’ में रखे। इससे श्रीलक्ष्मी जी का उसमें वास हो जाएगा और धन-प्राप्ति होगी। प्रतिदिन सन्ध्या समय दीप जलाए और पाँच बार उक्त मन्त्र का जप करे।इस मन्त्र को कार्तिक पूर्णिमा को भी सिद्द कर सकते है।
NOTE;-
इस फ़ोटो के चारों ओर तीन घेरे बने हुए हैं। जो सबसे पहला घेरा है उसमें 27 नक्षत्रों के नाम हैं और उनके पौधों के भी नाम साथ में लिखे हुए हैं।दूसरे घेरे में 12 राशियों के नाम लिखे हैं और साथ में उनके पौधों के नाम भी लिखे हुए हैं।तीसरे घेरे में नौ ग्रहों के नाम लिखे हैं और उनसे संबंधित पेड़ पौधों के नाम भी लिखे हुए हैं। जहाँ पर पेड़ पौधे जड़ी बूटी और वृक्ष के नाम लिखे हुए हैं तो उनमें उन नक्षत्रों का या उन राशियों का या उन ग्रहों का वास होता है।यदि हम उन पौधों जड़ी बूटियों या वृक्षों की पूजा करते हैं या उनको हम रतन की तरह धारण करते हैं तब भी हमें वे जड़ी बूटियाँ पेड़- पौधे ,वृक्ष लाभ प्रदान करते हैं।
....SHIVOHAM.....
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