क्या है तंत्र-विद्या?
07 FACTS;-
1-तंत्र-विद्या, जिसे अंग्रेजी में 'ऑकल्ट' कहते हैं, के लिए अकसर लोगों के मन में शंका और भय जैसी भावनाएं होती है।
तंत्र में बहुत सारी संभावनाएं होती हैं। उन्हीं में से एक है 'ऑकल्ट' यानी गुह्य-विद्या जिसमें तंत्र का भौतिक तरीके से इस्तेमाल किया जाता है।तंत्र का मतलब होता है कि आप कामों को अंजाम देने के लिए अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकते हैं।
इस तरह के गुह्य-विद्या के अभ्यासों को आमतौर पर तंत्र के लेफ्ट हैंड या वाम मार्ग के रूप में जाना जाता है। इसका एक आध्यात्मिक पहलू भी है, जिसे राइट हैंड या दक्षिण मार्गी तंत्र के रूप में जाना जाता है।जिसे वाम-मार्गी तंत्र कहा जाता है, वह एक स्थूल या अपरिपक्व टेक्नोलॉजी है जिसमें अनेक कर्मकांड होते हैं। जबकि जो दक्षिण-पंथी तंत्र है, उसकी टेक्नोलॉजी अत्यंत सूक्ष्म है। इन दोनों की प्रकृति बिलकुल अलग है।तंत्र विद्या ईश्वरीय शक्ति और मनुष्य की आत्मा के बीच संपर्क जोड़ने का साधन है, जिसकी सही परिभाषा जल्दी नहीं मिलती।
2-तंत्र, का संधि- विच्छेद करें तो दो शब्द मिलते हैं - तं- अर्थात फैलाव और त्र अर्थात बिना रुकावट के। ऐसा फैलाव या नेटवर्क जिसमें कोई रुकावट या विच्छेद न हो। जो एकाकी हो, जो अनंत में फैला हुआ हो ..सतत हो । इसलिए तंत्र अनंत के साथ जुड़ने का एक साधन है। कभी किसी दूसरी संस्कृति ने इश्वर तक पहुँचने के लिए इतनी गहन विचारणीय शब्द का प्रयोग शायद ही किया होगा। तंत्र द्वैत को नहीं मानता है। तंत्र में मूलभूत सिद्धांत है की ऐसा कुछ भी नहीं है, जो की दिव्य न हो। तंत्र अहंकार को पूरी तरह समाप्त करने की बात करता है, जिससे द्वैत का भाव पूर्णतया विलुप्त हो जाता है। तंत्र पूर्ण रूपांतरण की बात करता है। ऐसा रूपांतरण जिससे जीव और ईश्वर एक हो जाएँ। ऐसा करने के लिए तंत्र के विशेष सिद्दांत तथा पद्धतियां हैं, जो की जानने और समझने में जटिल मालूम होती हैं।तंत्र का जुडाव प्रायः मंत्र, योग तथा साधना के साथ देखने को मिलता है। तंत्र, गोपनीय है, इसलिए गोपनीयता बनाये रखने के लिए प्रायः तंत्र ग्रंथों में प्रतीकात्मकता का प्रयोग किया गया है। कुछ पश्च्यात देशों में तंत्र को शारीरिक आनंद के साथ जोड़ा जा रहा है, जो की सही नहीं है। यदपि तंत्र में काम शक्ति का रूपांतरण, दिव्य अवस्था प्राप्ति की लिए किया जाता है अपितु बिना योग्य गुरु के भयंकर भूल होने की पूर्ण संभावना रहती है।ऐसा माना जाता है सर्वप्रथम भगवन शिव ने देवी पारवती को विभिन अवसरों पर तंत्र का ज्ञान दिया है।
3-योग में तंत्र का विशेष महत्व है। योग तथा तंत्र दोनों, अध्यात्मिक चक्रों की शक्ति को विकसित करने की विभिन्न पद्धतियों के बारे में बताते हैं। हठयोग और ध्यान उनमें से एक है। विज्ञानं भैरव तंत्र जो की 112 ध्यान की वैज्ञानिक पद्धति है भगवान शिव ने देवी पारवती को बताई है। जिसमें सामान्य जीवन की विभिन अवस्थाओं में ध्यान करने की विशेष पद्धति वर्णित है।
तंत्र मंत्र की सभी तांत्रिक कियाएं जिनमें - सम्मोहन, वशीकरण, उचाटन मुख्य हैं, मंत्र महार्णव तथा मंत्र महोदधि नामक ग्रंथों में वर्णित हैं। तंत्र अहंकार को समाप्त कर द्वैत के भाव को समाप्त करता है, जिससे मनुष्य, सरल हो जाता है और चेतना के स्तर पर विकसित होता है। सरल होने पर इश्वर के संबंध सहजता से बन जाता है। तंत्र का उपयोग इश प्राप्ति की लिए सद्भावना के साथ करना चाहिए।तांत्रिक विद्या के अनुसार भांति-भांति की कीलों से तंत्र क्रियाओं द्वारा किसी स्थान को कीलने से वहां पर सुरक्षा कवच को स्थापित करना।
4-बताया जाता है कीलन सुरक्षा की दृष्टि से तो किया ही जाता है परंतु इसके विपरीत ईर्ष्या -द्वेष, अनहित की भावना, शत्रुवत व्यवहार आदि के चलते भी स्थान का कीलन कर दिया जाता है। कहने का मतलब है कि कीलन सेअर्थ है सुरक्षा कवच। बांधने की क्रिया अर्थात किसी व्यक्ति, वस्तु या स्थान को सुरक्षा कवच में बाधने को कीलन या स्तम्भन कहतेहैं।
तो वहीं बंधेहुए को मुक्त करवाने की क्रिया को उत्कीलन कहा जाता है। तंत्र विद्या में कीलन सकारात्मक और नकारात्मक दो प्रकार से प्रयोग में लिए जाते हैं। उदाहरण के लिए किसी के काम से अन्य लोगों को हानि हो रही हो तो कीलन की विशेष प्रक्रिया द्वारा उसके काम को रोक दिया जाता है या दूसरे शब्दों में कहे तो कील दिया जाता है या स्तम्भित कर दिया जाता है। पूरा ब्रह्मांड ऊर्जा के कारण चलानमय है। जिस प्रकार सभी के फिंगर प्रिंट अलग अलग होते है उसी प्रकार सभी के अंदर उर्जाये भी अलग अलग होती है।तन्त्र में ऊर्जाओं का ज्ञान होना महत्वपूर्ण है।
5-तन्त्र क्रियाओं द्वारा ऊर्जा को जोड़ा जाता है। यदि ऊर्जा नही जुड़ती तो तन्त्र क्रिया कार्य ही नही करती।
जो हमारे पहने हुए वस्त्र, बाल आदि होते है उनमें हमारी ऊर्जा रहती है इसलिए तन्त्र क्रियाओं में इन वस्तुयों का प्रयोग किया जाता है। इनसे ऊर्जा जोड़ने में सरलता होती है। यदि वस्त्र या बाल आदि ना मिले तो व्यक्ति का पूर्ण नाम पता द्वारा भी ऊर्जा जोड़ने का प्रयास होता है। फिर साधक अपनी सिद्ध शक्ति उस स्थान पर भेजता है यदि सबकुछ सही हुआ तो ऊर्जा जुड़ जाती है और कार्य पूर्ण हो जाता है। तन्त्र क्रियाओं की भी अवधि होती है उसके बाद प्रभावहीन होने लगती है। क्रिया को अधिक समय तक चलाने के लिए समय समय पर ऊर्जा की तीव्रता बढ़ाई जाती है या व्यक्ति से सबंधित वस्तु को स्मशान आदि में गाड़ देते है जिससे ऊर्जा बनी रहती है।
6-दक्षिण-पंथी तंत्र ज्यादा आंतरिक और ऊर्जा पर आधरित होता है, यह सिर्फ आपसे जुड़ा है। इससे कोई विधि-विधान या बाहरी क्रियाकलाप नहीं जुड़ा होता। यह भी एक तरह से तंत्र है लेकिन 'योग' में ये सब एक साथ शामिल हैं।जब हम योग कहते हैं, तो किसी भी संभावना को नहीं छोड़ते - इसके अंदर सब कुछ है। बस इतना है कि कुछ विक्षिप्त दिमाग वाले लोगों ने एक खास तरह का तंत्र अपनाया है, जो पूरी तरह से वामपंथी तंत्र है, जिसमें शरीर का विशेष रूप से इस्तेमाल होता है। उन्होंने बस इस हिस्से को ले कर उसे बढ़ा-चढ़ा दिया और उसमें तरह-तरह की अजीबोगरीब काम क्रियाएं जोड़ कर किताबें लिख डालीं और कहा, 'यही तंत्र है'। नहीं, यह तंत्र नहीं है।तंत्र का मतलब होता है कि आप कामों को अंजाम देने के लिए अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकते हैं।इसलिए सवाल यह है कि आपका तंत्र कितना सूक्ष्म और विकसित है? अगर आप अपनी ऊर्जा को आगे बढ़ाना चाहते हैं, तो आपको या तो दस हजार कर्मकांड करने पड़ेंगे या आप बैठे-बैठे भी यह कर सकते हैं।सबसे बड़ा अंतर यही है। सवाल सिर्फ पिछड़ी या एडवांस टेक्नोलॉजी का है, लेकिन तंत्र वह विज्ञान है, जिसके बिना कोई आध्यात्मिक प्रक्रिया नहीं हो सकती।
7-अगर आप अपने दिमाग को इतना धारदार बना लें कि वह हर चीज को आरपार देख-समझ सके, तो यह भी एक प्रकार का तंत्र है। अगर आप अपनी सारी ऊर्जा को अपने दिल पर केंद्रित कर दें ताकि आपमें इतना प्यार उमड़ सके कि आप हर किसी को उसमें सराबोर कर दें, तो वह भी तंत्र है। अगर आप अपने भौतिक शरीर को जबरदस्त रूप से शक्तिशाली बना लें कि उससे आप कमाल के करतब कर सकें, तो यह भी तंत्र है। या अगर आप अपनी ऊर्जा को इस काबिल बना लें कि शरीर, मन या भावना का उपयोग किए बिना ये खुद काम कर सके, तो यह भी तंत्र है।तो तंत्र कोई अटपटी या बेवकूफी की बात नहीं है। यह एक खास तरह की काबिलियत है। उसके बिना कोई संभावना नहीं हो सकती।तंत्र एक प्रक्रिया है जिससे हम अपनी आत्मा और मन को बंधन मुक्त करते हैं। इस प्रक्रिया से शरीर और मन शुद्ध होता है, और ईश्वर का अनुभव करने में सहायता हो होती है। तंत्र की प्रक्रिया से हम भौतिक और आध्यात्मिक जीवन की हर समस्या का हल निकाल सकते हैं। ऐसी मान्यताएं हैं कि एक व्यक्ति तंत्र की सही प्रक्रिया से मष्तिष्क का पूरा इस्तेमाल कर पाता है और अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन जाता है।
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