क्या है तंत्र विद्या के मुख्य 11 तथ्य?
तंत्र विद्या ;-
04 POINTS
1-हमारे मानव समाज में हजारों तरह की साधनाओं और विद्याओं के बारे में वर्णन मिलता है। साधना से व्यक्ति सिद्धियां प्राप्त करता है। इसके पीछे उनका उद्देश्य आध्यात्मिक लाभ या सांसारिक लाभ प्राप्त करना होता है।पार्वतीजी ने महादेव शिव से प्रश्न किया की हे महादेव, कलयुग मे धर्म या मोक्ष प्राप्ति का क्या मार्ग होगा? उनके इस प्रश्न के उत्तर मे महादेव शिव ने उन्हे समझते हुए जो भी व्यक्त किया तंत्र उसी को कहते हैं।योगिनी तंत्र मे वर्णन है की कलयुग मे वैदिक मंत्र विष हीन सर्प के सामान हो जाएगा। ऐसा कलयुग में शुद्ध और अशुद्ध के बीच में कोई भेद भावः न रह जाने की वजह से होगा। कलयुग में लोग वेद में बताये गए नियमो का पालन नही करेंगे। इसलिए नियम और शुद्धि रहित वैदिक मंत्र का उच्चारण करने से कोई लाभ नही होगा। जो व्यक्ति वैदिक मंत्रो का कलयुग में उच्चारण करेगा उसकी व्यथा एक ऐसे प्यासे मनुष्य के सामान होगी जो गंगा नदी के समीप प्यासे होने पर कुआँ खोद कर अपनी प्यास बुझाने की कोशिश में अपना समय और उर्जा को व्यर्थ करता है।
2-कलयुग में वैदिक मंत्रो का प्रभाव ना के बराबर रह जाएगा। और गृहस्त लोग जो वैसे ही बहुत कम नियमो को जानते हैं उनकी पूजा का फल उन्हे पूर्णतः नही मिल पायेगा। महादेव ने बताया की वैदिक मंत्रो का पूर्ण फल सतयुग, द्वापर तथा त्रेता युग में ही मिलेगा।तब माँ पार्वती ने महादेव से पुछा की कलयुग में मनुष्य अपने पापों का नाश कैसे करेंगे? और जो फल उन्हे पूजा अर्चना से मिलता है वह उन्हे कैसे मिलेगा इस पर शिव जी ने कहा की कलयुग में तंत्र साधना ही सतयुग की वैदिक पूजा की तरह फल देगा। तंत्र में साधक को बंधन मुक्त कर दिया जाएगा। वह अपने तरीके से इश्वर को प्राप्त करने के लिए अनेको प्रकार के विज्ञानिक प्रयोग करेगा।परन्तु ऐसा करने के लिए साधक के अन्दर इश्वर को पाने का नशा और प्रयोगों से कुछ प्राप्त करने की तीव्र इच्षा होनी चाहिए।
3-तंत्र के आदि गुरु भगवान् शिव माने जाते है। तंत्र श्रृष्टि में पाए गए रासायनिक या प्राकृतिक वस्तुओं के सही समाहार की कला को कहते हैं। इस समाहार से बनने वाली उस औषधि या वस्तु से प्राणियों का कल्याण होता है। तंत्र तन तथा त्र शब्दों से मिल कर बना है। जो वस्तु इस तन की रक्षा करे उसे ही तंत्र कहते हैं। यन्त्र: मंत्र और तंत्र को यदि सही से प्रयोग किया जाए तो वह प्राणियों के कष्ट दूर करने में सफल है। पर तंत्र के रसायनों को एक उचित पात्र को आवश्यकता होती है। ताकि साधारण मनुष्य उस पात्र को आसानी से अपने पास रख सके या उसका प्रयोग कर सके। इस पात्र या साधन को ही यन्त्र कहते हैं। एक ऐसा पात्र जो तंत्र और मन्त्र को अपने में समिलित कर के आसानी से प्राणियों के कष्ट दूर करे वही यन्त्र है। हवन कुंड को सबसे श्रेष्ठ यन्त्र मन गया है। आसन, तलिस्मान, ताबीज इत्यादि भी यंत्र माने जाते है। कई प्रकार को आकृति को भी यन्त्र मन गया है। जैसे श्री यन्त्र, काली यन्त्र, महा मृतुन्जय यन्त्र इत्यादि। यन्त्र शब्द यं तथा त्र के मिलाप से बना है। यं को पुर्व में यम यानी काल कहा जाता था। इसलिए जो यम से हमारी रक्षा करे उसे ही यन्त्र कहा जाता है।
3-तंत्र के प्रायोगिक क्रियाओं को करने के लिए एक तांत्रिक अथवा साधक को सही मंत्र, तंत्र और यन्त्र का ज्ञान जरुरी है। मुख्य तौर पर साधना चार प्रकार की मानी जाती हैं.... 1-मंत्र साधना 2-तंत्र साधना 3-यंत्र साधना 4-योग साधना
इन चारों साधना के कई प्रकार भी हैं। यहां सवाल ये उठता है कि तंत्र साधना लोगों में भय पैदा करती है, क्योंकि मान्यता है कि ये साधना अघोरियों की साधना या भयानक विद्या होती है। जबकि ऐसा है नहीं...तंत्र साधना अलग होती है और अघोर साधना अलग। मंत्र, तंत्र और यंत्र में तंत्र को सबसे पहले रखा है। तंत्र एक रहस्यमयी विद्या होती है। हिंदू धर्म के साथ जैन धर्म और बौद्ध धर्म में भी तंत्र विद्या का प्रचलन है।तंत्र का अर्थ है शरीर और उससे जुड़े पाश। ये बंधन हैं- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य। मनुष्य पाशबद्ध है तो जीव है और पाशमुक्त हो गया तो शिव।
तंत्र विद्या के मुख्य 11 तथ्य ;- 1-तंत्र में शरीर महत्वपूर्ण है;- साधारण शब्द में कहें तो तंत्र का मतलब तन से, मंत्र का अर्थ मन से और यंत्र का अर्थ किसी वस्तु या मशीन से होता है। तंत्र का एक दूसरा मतलब होता है व्यवस्था। तंत्र इस बात को मानता है कि हम शरीर में हैं और यही एक वास्तविकता है। भौतिक शरीर हमारे सारे कार्यों का केंद्र होता है। इसलिए इस शरीर को पूरी तरह स्वस्थ और तृप्त रखना अत्यंत आवश्यक है। शरीर की क्षमता को बढ़ाना आवश्यक है, क्योंकि शरीर से हीं अध्यात्म को साधा जाना संभव है। तंत्र का काम और मांस मदिरा से कोई संबंध नहीं होता। जो व्यक्ति इस तरह के कर्मों में लिप्त होता है वो किसी भी तरह से तांत्रिक नहीं बन सकता। तंत्र को इसी तरह के लोगों ने बदनाम किया है। तांत्रिक साधना का मुख्य उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना होता है। इस विद्या को प्राप्त करने के लिए अंतर्मुखी होकर साधना की जाती है। 2-तंत्र के ग्रंथ;- तंत्र को मुख्य रुप से शैव आगम शास्त्रों से जोड़ा जाता है। लेकिन इसका मूल अथर्ववेद में ही पाया जाता है। तंत्र शास्त्र तीन भागों में बंटा हुआ है. यामल तंत्र, आगम तंत्र और मुख्य तंत्र। आगम में रुद्रागम, शैवागम और भैरवागमन मुख्य है। वाराही तंत्र के अनुसार जिसमें देवताओं की पूजा, सृष्टि प्रलय, सत्कर्यों के साधन, षट्कर्मसाधन, पुरश्चरण और चार प्रकार के ध्यान योग का वर्णन हो उसे ‘आगम’ कहा जाता है। जिसमें सृष्टितत्व, नित्य कृत्य, ज्योतिष, सूत्र, क्रम, युगधर्म और वर्णभेद का वर्णन हो उसे ‘यामल’ कहा जाता है। इसी तरह जिसमें लय, सृष्टि निर्णय, मंत्र, प्रेम, आश्रमधर्म, कल्प, व्रतकथा, ज्योतिषसंस्थान, शौच – अशौच, राजधर्म, स्त्रीपुरुष लक्षण, दानधर्म, राजधर्म, युगधर्म, व्यवहार तथा आध्यात्मिक नियमों का वर्णन हो उसे ‘मुख्य तंत्र’ कहा जाता है। वाराही तंत्र के अनुसार 9 लाख श्लोकों में से 1 लाख श्लोक भारत में है। विस्मृति के कारण तंत्र साहित्य उपेक्षा और विनाश का शिकार हो गया है। आज के समय में तंत्र शास्त्र के अनेकों ग्रंथ लुप्त हो गए हैं। वर्तमान में मिली जानकारी के अनुसार 199 तंत्र ग्रंथ मौजूद हैं। 3-रहस्यमयी विद्याएं;- तंत्र में बहुत सारी विद्याएं शामिल हैं. उसी में से एक है गुह्य- विद्या। गुह्य का मतलब होता है रहस्य। तंत्र विद्या से व्यक्ति अपनी आत्मशक्ति को बढ़ा कर कई तरह की शक्तियों से संपन्न बन सकता है और यही होता है तंत्र का मूल उद्देश्य। इसी तरह तंत्र विद्या से हीं त्राटक, सम्मोहन, इंद्रजाल, त्रिकाल, अपरा, परा और प्राण विद्या का जन्म हुआ। तंत्र से उच्चाटन, विद्वेषण, मोहन, वशीकरण और स्तंभन क्रियाएं की जाती है। इसी तरह मनुष्य से जानवर बन जाना, एक साथ 5-5 रूप बना लेना, गायब हो जाना, विशाल पर्वतों को उठाना, समुंद्र को लांघ जाना, करोड़ों मील दूर के व्यक्ति को देख लेना और उससे बात कर लेने जैसे कई कार्य तंत्र विद्या की वजह से ही संभव होता है। 4-तांत्रिक गुरु;- तंत्र के प्रथम उपदेशक भगवान शंकर हुए और उनके बाद भगवान दत्तात्रेय बाद में सिद्ध योगी शाक्त और नाथ परंपरा का चलन है। तंत्र साधना के प्रणेता भगवान शंकर और दत्तात्रेय के अलावा परशुराम, नारद, पिप्लादि, वसिष्ठ, शुक, सनक, भैरव, भैरवी, सनतकुमार, सन्दन, काली, भैरवी इत्यादि कई ऋषि मुनि उपासक रहे हैं। ब्राह्मयामल में अनेकों ऋषियों के उल्लेख हैं. इसमें शिव ज्ञान के प्रवर्तक के रूप में जाने जाते हैं । उनमें वृहस्पति, उशना, सनत्कुमार, दधीचि आदि के नामों के उल्लेख मिलते हैं। जयद्रथयामल के मंगलाष्टक प्रकरण में बहुत सारे ऋषियों के नाम तंत्र प्रवर्तक के रूप में है ...जैसे सनक दुर्वासा कश्यप और विश्वामित्र जैसे ऋषि। 5-तंत्र हथियार;- प्राचीन काल में तंत्र के माध्यम से ही घातक हथियारों को तैयार किया जाता था... जैसे नागपाश, पाशुपतास्त्र और ब्रह्मास्त्र इत्यादि। पदार्थों की रचना, विनाश का भारी काम और परिवर्तन बिना किसी यंत्र की सहायता से तंत्र के द्वारा किया जा सकता है। विज्ञान के इस तंत्र भाग को ‘सावित्री विज्ञान’ वाममार्ग, तंत्रसाधना जैसे नामों से पुकारा जाता है। 6-तांत्रिक साधना;-
03 POINTS 1-तांत्रिक साधनाओं को मुख्य रूप से तीन मार्ग – वाम मार्ग, मध्यम मार्ग और दक्षिण मार्ग बताया गया है।हालांकि ये मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं... एक वाम मार्गी तथा दूसरा दक्षिण मार्ग।वाम मार्गी साधना बेहद कठिन है।वाम मार्गी तंत्र साधना में 6 प्रकार के कर्म बताए गए हैं जिन्हें षट् कर्म कहते हैं।1.शांति कर्म, 2.वशीकरण, 3.स्तंभन, 4.विद्वेषण, 5.उच्चाटन, 6.मारण ये छ: तांत्रिक षट् कर्म।इसके अलावा नौ प्रयोगों का वर्णन मिलता है:-
1.मारण, 2.मोहनं, 3.स्तम्भनं, 4.विद्वेषण, 5.उच्चाटन, 6.वशीकरण, 6.आकर्षण, 8.यक्षिणी साधना, 9.रसायन क्रिया तंत्र के ये 9 प्रयोग हैं।जिससे रोग, कुकृत्य और ग्रह आदि की शांति होती है, उसको शांति कर्म कहा जाता है और जिस कर्म से सब प्राणियों को वश में किया जाए, उसको वशीकरण प्रयोग कहते हैं।जिससे प्राणियों की प्रवृत्ति रोक दी जाए, उसको स्तम्भन कहते हैं।
दो प्राणियों की परस्पर प्रीति को छुड़ा देने वाला नाम विद्वेषण है।जिस कर्म से किसी प्राणी को देश आदि से पृथक कर दिया जाए, उसको उच्चाटन प्रयोग कहते हैं।जिस कर्म से प्राण हरण किया जाए, उसको मारण कर्म कहते हैं।
2- छः कर्म की अधिष्ठात्री देवियाँ:-
जो कर्म करना हो, उसके आरंभ में उसकी पूजा करते हैं।
शांति कर्म की अधिष्ठात्री देवी रति है।
वशीकरण की देवी सरस्वती है।
स्तम्भन की देवी लक्ष्मी,
विद्वेषण की देवी ज्येष्ठा।
उच्चाटन की देवी दुर्गा।
मारण की देवी भद्र काली है।
3-साधना की दिशा:- इसका तात्पर्य यह है कि जो प्रयोग करना हो उसी दिशा में मुख करके बैठें।
शान्ति कर्म ईशान दिशा में,
वशीकरण उत्तर से,
स्तम्भन पूर्व में,
विद्वेषण नेऋत्य में करना चाहिए,
षटकर्म दिशा निर्णय (की ओर मुख करके मंत्र जप):-
1-शांति कर्म- ईशान दिशा में की ओर मुख करके मंत्र जप करने से सिद्धि प्राप्त होती है।
2-वशीकरण- (पुष्टि कर्म) उत्तर की ओर मुख करके मंत्र जप करने से सिद्धि प्राप्त होती है।
3-स्तंभन- पूर्व की ओर मुख करके मंत्र जप करने से सिद्धि प्राप्त होती है।
4-विद्वेष्ण- नैर्ऋत्य की ओर मुख करके मंत्र जप करने से सिद्धि प्राप्त होती है।
5-उच्चाटन- वायव्य की ओर मुख करके मंत्र जप करने से सिद्धि प्राप्त होती है।
6-मारण -प्रयोग आग्नेय दिशा की ओर मुख करके मंत्र जप करने से सिद्धि प्राप्त होती है।
- तथा धन प्राप्ति हेतु पश्चिम 7-तंत्र के प्रतीक;- आंगन द्वारों पर चित्रित की जाने वाली अल्पना, हाथों में लगाई जाने वाली मेहंदी, त्रिकोण से बनाए गए स्टार के बीच स्वास्तिक या ओम का चिन्ह इत्यादि तंत्र के प्रतीक होते हैं। तंत्र के दूसरे प्रतीक भी होते हैं ..जैसे योग की कुछ मुद्राएं, क्रियाएं इत्यादि। 8-तांत्रिक मंत्र;- तांत्रिक मंत्र मुख्य तौर में तीन तरह के होते हैं....
1-शाबर मंत्र
2-तांत्रिक मंत्र
3-वैदिक मंत्र
तांत्रिकों के बीच मंत्रों में ह्रीं, क्लीं, श्रीं, ऐं, क्रूं इत्यादि अक्षरों का प्रयोग होता है। जिन मंत्रों में शुरुआत में इस तरह के अक्षर होते हैं वो सभी तांत्रिक मंत्र हैं। एक अक्षर से पता चल जाता है ये मंत्र किस देवता का है। जैसे काली माता के लिए क्रीं का प्रयोग करते हैं और लक्ष्मी माता के लिए श्रीं का प्रयोग किया जाता है।
9-तंत्र साधना के देवी और देवता;-
तंत्र साधना में अष्ट भैरवी, देवी काली, दस महाविद्या, नवदुर्गा, 64 योगिनी देवियों की साधना होती है। इसी तरह देवताओं में काल भैरव, भकूट भैरव, नाग महाराज की साधना होती है। इन सब की साधना को छोड़कर जो पिशाचिनी, यक्षिणी, वीर साधना, अप्सरा, किन्नर साधना, गंधर्व साधना, नायक नायिका साधना, वेताल, भूत, राक्षस, दानव इत्यादि की साधनाएं निषेद होती हैं।
10-कैसे करें तांत्रिक साधना?-
अगर आप तांत्रिक साधना करना चाहते हैं तो इसके लिए सबसे पहले आपको इस बात को स्पष्ट करना होगा कि आप ये साधना क्यों करना चाहते हैं। जब आपको अपने सवाल के जवाब मिल जाए, तो उससे संबंधित किताबों का अध्ययन करें और इसके बाद किसी योग्य तंत्र साधक को खोज कर उनसे शिक्षा लें। तो इस तंत्र साधना में शक्ति है लेकिन अगर आप भी इस विद्या को सीखना चाहते हैं और कुछ किताबें पढ़कर साधना करते हैं तो आपको सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि इसके बुरे परिणाम भी हो सकते हैं। अगर आप का उद्देश्य इस साधनों के माध्यम से किसी व्यक्ति का बुरा करना है, तब भी आपको सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि इसका परिणाम भी आपको हीं भुगतना पड़ सकता है।
....SHIVOHAM....
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