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क्या है भद्राकाल..?

सूर्य देव का परिवार काफी बड़ा है। उनकी संज्ञा और छाया नाम की दो पत्‍नियां और 10 संतानें हैं। जिसमें से यमराज और शनिदेव जैसे पुत्र और यमुना जैसी बेटियां शामिल हैं। मनु स्‍मृति के रचयिता वैवस्वत मनु भी सूर्यपुत्र ही हैं। सूर्य देव की दो पत्‍नियां संज्ञा और छाया हैं। संज्ञा सूर्य का तेज ना सह पाने के कारण अपनी छाया को उनकी पत्‍नी के रूप में स्‍थापित करके तप करने चली गई थीं। लंबे समय तक छाया को ही अपनी प्रथम पत्‍नी समझ कर सूर्य उनके साथ रहते रहे। ये राज बहुत बात में खुला की वे संज्ञा नहीं छाया है। संज्ञा से सूर्य को जुड़वां अश्विनी कुमारों के रूप में दो बेटों सहित छह संतानें हुईं..यमराज , यमुना , अश्विनी कुमारों , रेवन्त , वैवस्वत मनु ,और सवर्णि‌ मनु ।जबकि छाया से उनकी चार संतानें थीं.. शनि देव एवम उनकी बहन भद्रा,तप्‍ति और सावर्णि मनु। देव शिल्‍पी विश्‍वकर्मा सूर्य पत्‍नी संज्ञा के पिता थे और इस नाते उनके श्‍वसुर हुए। उन्‍होंने ही संज्ञा के तप करने जाने की जानकारी सूर्य देव को दी थी।धर्मराज या यमराज सूर्य के सबसे बड़े पुत्र और संज्ञा की प्रथम संतान हैं।यमी यानि यमुना नदी सूर्य की दूसरी संतान और ज्‍येष्‍ठ पुत्री हैं जो अपनी माता संज्ञा को सूर्यदेव से मिले आशीर्वाद चलते पृथ्‍वी पर नदी के रूप में प्रसिद्ध हुईं।

सूर्य के सबसे बड़े पुत्र यम ;-

धर्मराज या यमराज सूर्य के सबसे बड़े पुत्र और संज्ञा की प्रथम संतान हैं।

यमी ;-

यमी यानि यमुना नदी सूर्य की दूसरी संतान और ज्‍येष्‍ठ पुत्री हैं जो अपनी माता संज्ञा को सूर्यदेव से मिले आशीर्वाद चलते पृथ्‍वी पर नदी के रूप में प्रसिद्ध हुईं।

वैवस्वत मनु ;-

सूर्य और संज्ञा की तीसरी संतान हैं वैवस्वत मनु वर्तमान (सातवें) मन्वन्तर के अधिपति हैं। यानि जो प्रलय के बाद संसार के पुनर्निर्माण करने वाले प्रथम पुरुष बने और जिन्‍होंने मनु स्‍मृति की रचना की।

शनि देव ;-

सूर्य और छाया की प्रथम संतान है शनिदेव जिन्‍हें कर्मफल दाता और न्‍यायधिकारी भी कहा जाता है। अपने जन्‍म से शनि अपने पिता से शत्रु भाव रखते थे। भगवान शंकर के वरदान से वे नवग्रहों में सर्वश्रेष्ठ स्थान पर नियुक्‍त हुए और मानव तो क्या देवता भी उनके नाम से भयभीत रहते हैं।

तप्‍ति ;-

छाया और सूर्य की कन्या तप्‍ति का विवाह अत्यन्त धर्मात्मा सोमवंशी राजा संवरण के साथ हुआ। कुरुवंश के स्थापक राजर्षि कुरु इन दोनों की ही संतान थे, जिनसे कौरवों की उत्पत्ति हुई।

विष्टि या भद्रा ;-

सूर्य और छाया पुत्री विष्टि भद्रा नाम से नक्षत्र लोक में प्रविष्ट हुई। भद्रा काले वर्ण, लंबे केश, बड़े-बड़े दांत तथा भयंकर रूप वाली कन्या है। भद्रा गधे के मुख और लंबे पूंछ और तीन पैरयुक्त उत्पन्न हुई। शनि की तरह ही इसका स्वभाव भी कड़क बताया गया है। उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उन्हें काल गणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टि करण में स्थान दिया है।

सावर्णि मनु ;-

सूर्य और छाया की चौथी संतान हैं सावर्णि मनु। वैवस्वत मनु की ही तरह वे इस मन्वन्तर के पश्‍चात अगले यानि आठवें मन्वन्तर के अधिपति होंगे।

अश्विनी कुमार ;-

संज्ञा के बारे में जानकारी मिलने के बाद अपना तेज कम करके सूर्य घोड़ा बनकर उनके पास गए। संज्ञा उस समय अश्विनी यानि घोड़ी के रूप में थी। दोनों के संयोग से जुड़वां अश्विनी कुमारों की उत्पत्ति हुई जो देवताओं के वैद्य हैं। कहते हैं कि दधीचि से मधु-विद्या सीखने के लिये उनके धड़ पर घोड़े का सिर रख दिया गया था, और तब उनसे मधुविद्या सीखी थी। अत्‍यंत रूपवान माने जाने वाले अश्विनी कुमार नासत्य और दस्त्र के नाम से भी प्रसिद्ध हुए।

रेवंत;-

सूर्य की सबसे छोटी और संज्ञा की छठी संतान हैं। रेवंत जो उनके पुनर्मिलन के बाद जन्‍मी थी। रेवंत निरन्तर भगवान सूर्य की सेवा में रहते हैं।

भद्रा ;-

06 FACTS

1-सूर्य देवता पुत्री शास्त्रों में पूजा-पाठ और शादी- विवाह से लेकर सभी कार्य शुभ मुहूर्त पर ही करने का विधान है। यही कारण है कि किसी भी शुभ- मांगलिक कार्य से पहले पंचांग देखकर मुहूर्त निकाले जाते हैं। मान्यता है कि शुभ तिथि व मुहूर्त में किए गए कार्य संपन्न और सफल होते हैं। शास्त्रों में भद्रा काल या भद्रा मुहूर्त को अनुकूल नहीं माना जाता है।इसलिए भद्रा काल में शुभ- मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं।भद्रा के समय शुभ कार्यों का त्याज्य किया जाता है।भद्रा सूर्य देव की पत्नी संध्या के प्रतिरूप छाया से उत्पन्न हुई। भद्रा काले वर्ण, लंबे केश, बड़े-बड़े दांत तथा भयंकर रूप वाली कन्या है।भद्रा जन्म के तुरंत बाद से ही हर शुभ कार्य में विध्न डालने लगी इससे परेशान होकर ब्रह्मा देव ने भद्रा को पंचांग में निश्चित स्थान दिया और जब विष्टि नाम का करण आता है तब भद्रा का वास होता है।चर करण होने के कारण भद्रा स्वर्ग, पाताल और पृथ्वी लोक पर हमेशा गतिशील होती है।

2-ज्योतिष के अनुसार, चंद्रमा के कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होने से भद्रा का वास पृथ्वी पर होता है। वहीं चंद्रमा जब मेष, वृष या मिथुन राशि में होता है, तब भद्रा का वास स्वर्ग लोक में होता है और चंद्रमा के धनु, कन्या, तुला या मकर राशि में होने से भद्रा पाताल लोक में वास करती है। भद्रा जिस समय जिस लोक होती है उसका प्रभाव भी उसी लोक में होता है। ऐसे में जब पृथ्वी पर जब भद्रा का वास होता है तो शुभ-मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं।भद्रा को धन्या, दधिमुखी, भद्रा, महामारी, खरानना, कालरात्रि, महारुद्रा, विष्टि, कुलपुत्रिका, भैरवी महाकाली और असुरक्षयकरी जैसे 12 नामों से भी जाना जाता है।

भद्रा शुभ भी होती है। तृतीया व दशमी तिथि वाली भद्रा दिन में शुभ होती है, केवल रात्रि में अशुभ होती है।शुक्ल पक्ष की अष्टमी व पूर्णिमा तथा कृष्ण पक्ष की सप्तमी व चतुर्दशी तिथि वाली भद्रा रात्रि में शुभ होती है, केवल दिन में अशुभ होती है।

भद्रा काल में मुंडन, गृह प्रवेश, वैवाहिक कार्यक्रम, पूजा-अनुष्ठान, तीर्थ स्थलों का भ्रमण, नए व्यापार की शुरुआत व कोई नया निवेश आदि जैसे कार्य अशुभ माने जाते हैं।भद्रा काल में न किसी शुभ कार्य की शुरुआत होती है और न ही समाप्ति।विशेषकर भद्रा काल में होलिका दहन करना और रक्षाबंधन मनाना (राखी बांधना) वर्जित है।इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि रावण की बहन शुर्पणखा ने रावण को भद्रा काल में ही राखी बांधी थी, जिसकी वजह से रावण समेत उसके पूरे कुल का नाश हो गया था। इसलिए कहा जाता है कि भद्रा में भाई को राखी नहीं बांधनी चाहिए।

3-कौन से कार्य करने चाहिए।

किसी दुश्मन पर प्रहार करना, हथियारों का इस्तेमाल, सर्जरी, ऑपरेशन, किसी के विरोध में कानूनी कार्रवाई करना, आग लगाना, भैंस, घोड़े, ऊंट आदि जानवरों से संबंधित कार्य की शुरुआत करना और शुभ फलदायी हो सकते हैं।भद्रा के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए व्यक्ति को भद्रा के इन 12 नामो का नियमित रूप से सुबह उठकर स्मरण करना चाहिए ।भद्रा के बारह नाम है। धन्या, दधिमुखी, भद्रा, महामारी, खरानना, कालरात्रि, महारुद्रा, विष्टि, कुलपुत्रिका, भैरवी, महाकाली तथा असुरक्षयकरी।

4-कैसे करें भद्रा की गणना-:

पंचांग के अनुसार मुहूर्त की गणना की जाती है. पंचांग के मुख्य भाग में तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण मुहूर्त होते हैं. करण की 11 संख्या होती है, जिसमें 4 अचर और 7 चर होते हैं। इन्हीं 7 चर वाले करण में एक करण को "विष्टी करण" कहा जाता है, जो भद्रा कहलाती है।

चर करण होने के कारण भद्रा स्वर्ग लोक, पाताल लोक और पृथ्वी लोक पर हमेशा गतिशील होती है।

5-किस समय किस लोक पर होती ही भद्रा-:

चर करण होने के कारण भद्रा स्वर्ग, पाताल और पृथ्वी लोक पर हमेशा गतिशील होती है।

चंद्रमा के कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होने से भद्रा का वास "पृथ्वी" पर होता है।

चंद्रमा जब मेष, वृष या मिथुन राशि में होता है, तब भद्रा का वास "स्वर्ग लोक" में होता है।

चंद्रमा के धनु, कन्या, तुला या मकर राशि में होने से भद्रा "पाताल लोक" में वास करती है।

भद्रा जिस समय जिस लोक होती है उसका प्रभाव भी उसी लोक में होता है। ऐसे में जब "पृथ्वी" पर जब भद्रा का वास होता है तो शुभ- मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं।।

6-भद्रा की तिथियां-:

समस्त करणों में भद्रा का विशेष महत्व है। शुक्ल पक्ष अष्टमी (8) व पूर्णिमा (15) तिथि के पूर्वाद्ध में, चतुर्थी (4) व एकदाशी (11) तिथि के उत्तरार्द्ध में, एवं कृष्ण पक्ष की तृतीया (3) व दशमी (10 ) तिथि के उत्तरार्द्ध में, सप्तमी (7) व चतुर्दशी (14) तिथि के पूर्वाद्ध में 'भद्रा' रहती है अर्थात् विष्टि करण रहता है।

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