क्या है माँ शक्ति के मंत्रों द्वारा भौतिक तापो से मुक्ति के उपाय?
अपने ईष्ट या किसी शक्तिशाली मंत्र का निरंतर जप करने से व्यक्ति सकारात्मक ऊर्जा और शक्तियों से जुड़ जाता है। जप-योग व्यक्ति के अवचेतन को जाग्रत कर उसे दिव्य दृष्टि प्रदान करता है। ऐसा व्यक्ति स्वयं को किसी भी रूप में स्थापित करने में सक्षम हो जाता है। इससे व्यक्ति टेलीपैथिक और पारंगत हो सकता है। सूक्ष्म शरीर को सक्रिय करता है।निरंतर मंत्र जप करने से ध्वनि तरंग उत्पन्न होती है, उससे अंग तक कंपित होते हैं। इसके कारण व्यक्ति का सूक्ष्म शरीर सक्रिय होकर शक्तिशाली परिणाम देना प्रारंभ कर देता है।वेदों में उल्लेख है कि विशेष प्रकार के मंत्रों से विशेष तरह की शक्ति उत्पन्न होती है।अनेक परिक्षणों से यह सिद्ध हो गया है कि मंत्रों में प्रयोग होने वाले शब्दों में भी शक्ति होती है।मंत्रों में प्रयोग होने वाले कुछ ऐसे शब्द हैं, जिन्हे 'अल्फा वेव्स' कहते हैं। मंत्र का यह शब्द 8 से 13 साइकल प्रति सैंकेंड में होता है और यह ध्वनि तरंग एकाग्रता में भी उत्पन्न होती है। इन शब्दों से जो बनता है, उसे मंत्र कहते हें।मंत्र जप करने से व्यक्ति के भीतर ध्वनि तरंग करने वाली जो शक्ति उत्पन्न होती है, उसे ही जप-योग कहते है।
1-माँ दुर्गा जी का मूल मंत्र : ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः॥ [ “Om Hrim Dum Durgayei Namaha”/ॐ ह्रींग डुंग दुर्गायै नमः।] NOTE;- दुर्गा जी के बीज मंत्र को दुर्गा अष्टाक्षर मन्त्र के नाम से भी जाना जाता है। ये बहुत ही सिद्ध मंत्र है। इसके जप से व्यक्ति के जीवन में आ रही सारी कठिनाइयां दूर हो जाती हैं। इससे जातक की रक्षा भी होती है। मान्यता है कि यदि आप पूरे मन से मां दुर्गा को याद कर मंत्र का जाप करते है तो जल्द ही आपकी इच्छा पूरी हो जाएगी। शास्त्रों के अनुसार चाहे पृथ्वी लोक हो या कोई भी अन्य लोक, हर पापी मां दुर्गा के नाम से डरता है। अगर आपकी कोई इच्छा पूरी नहीं हो रही है तो आपको मां दुर्गा के बीज मंत्र “ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नम:” का जाप करना चाहिए। इस मंत्र का जप कम से कम हर दिन एक माला करें। आप चाहे तो इससे ज्यादा भी कर सकते हैं। इसे करने के लिए शुक्रवार का दिन सबसे अच्छा माना गया है। लाल फूल व प्रसाद चढ़ाकर रुद्राक्ष की माला से दुर्गा मंत्र बोलें।इस मंत्र का जाप करते समय अपना मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें। वहीं अगर आप रात के समय इस मंत्र को पढ़ रहें हैं तो मुख केवल उत्तर दिशा में ही रखें। याद रखें कि एक बार जब आप 108 जाप से शुरू करते हैं तो दैनिक 108 न्यूनतम करें, जाप की संख्या कम न करें।मां दुर्गा का ये बीज मंत्र बहुत प्रभावशाली है। इससे धन लाभ, कर्ज से छुटकारा, रोगों से मुक्ति और निर्धनता दूर होगी।इस मंत्र का प्रभाव तब ज्यादा होता है जब इसे किसी एकांत स्थान पर व मंदिर में बैठकर पढ़ा जाए। 2- कामना सिद्धि नवार्ण मंत्र का महत्व : – ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥ इस मन्त्र को नवार्ण मंत्र भी कहा जाता है जो देवी भक्तों में सबसे प्रशस्त मंत्र माना गया है। इस मन्त्र के जाप से महासरस्वती, महाकाली तथा महालक्ष्मी माता की कृपा तथा आशीर्वाद प्राप्त होता है। ॐ – उस परब्रह्म का सूचक है जिससे यह समस्त जगत व्याप्त हो रहा है।
ऐं – यह वाणी, ऐश्वर्य, बुद्धि तथा ज्ञान प्रदात्री माता सरस्वती का बीज मन्त्र है। इस बीज मन्त्र का जापक विद्वान हो जाता है। यह वाक् बीज है, वाणी का देवता अग्नि है, सूर्य भी तेज रूप अग्नि ही है, सूर्य से ही दृष्टि मिलती है; दृष्टि सत्य की पीठ है, यही सत्य परब्रह्म है। ह्रीं – यह ऐश्वर्य, धन ,माया प्रदान करने वाली माता महालक्ष्मी का बीज मंत्र है। इसका उदय आकाश से है । पीठ विशुद्ध में, आयतन सहस्रार में, किन्तु श्रीं का उदय आकाश में होने पर भी आयतन आज्ञाचक्र में है। क्लीं— यह शत्रुनाशक, दुर्गति नाशिनी महाकाली का बीज मन्त्र है। इस बीज में पृथ्वी तत्व की प्रधानता सहित वायु तत्व है जोकि प्राणों का आधार है। चामुण्डायै – प्रवर्ति का अर्थ चण्ड तथा निर्वृति का अर्थ मुण्ड है। यह दोनों भाई काम और क्रोध के रूप भी माने गए हैं। इनकी संहारक शक्ति का नाम ही चामुण्डा है। जो स्वयं प्रकाशमान है। विच्चे – विच्चे का अर्थ समर्पण या नमस्कार है। मन्त्र का अर्थ...अत: सम्पूर्ण मन्त्र का अर्थ है – संसार के आधार परब्रह्म, ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती, सम्पूर्ण संकल्पों की अधिष्ठात्री देवी महामक्ष्मी, सम्पूर्ण कर्मों की स्वामिनी महाकाली तथा काम और क्रोध का विनाश करनी वाली सच्चिदानंद अभिन्नरूपा चामुण्डा को नमस्कार है, पूर्ण समर्पण है। तीनो बीज परमात्मा के वाचक हैं। अभी आकृतियां सत्व तत्व में काली रूप , सभी प्रतीतियां चित्त तत्व में महालक्ष्मी रूप तथा सभी प्रीतियाँ आनंद तत्व में महासरस्वती रूप में ही विवर्त हैं। सत, चित्त आनंद स्वरुप माता आप तथा आपके परिवार पर सदैव कृपा दृष्टि बनाये रखे।
इस मंत्र को नवार्ण मंत्र क्यों कहते है?- माँ दुर्गा की इन नौ शक्तियों को जागृत करने के लिए दुर्गा के 'नवार्ण मंत्र' का जाप किया जाता है। नव का अर्थ नौ तथा अर्ण का अर्थ अक्षर होता है। अतः नवार्ण नौ अक्षरों वाला मंत्र है, नवार्ण मंत्र 'ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे' है।नवार्ण मंत्र के तीन देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। इसकी तीन देवियां महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती हैं। दुर्गा की यह नौ शक्तियां धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति में भी सहायक होती हैं।नौ अक्षरों वाले इस नवार्ण मंत्र के एक-एक अक्षर का संबंध दुर्गा की एक-एक शक्ति से है और उस एक-एक शक्ति का संबंध एक-एक ग्रह से है।नवार्ण मंत्र के नौ अक्षरों में पहला अक्षर ऐं है, जो सूर्य ग्रह को नियंत्रित करता है। ऐं का संबंध दुर्गा की पहली शक्ति शैल पुत्री से है, जिसकी उपासना 'प्रथम नवरात्र' को की जाती है।दूसरा अक्षर ह्रीं है, जो चंद्रमा ग्रह को नियंत्रित करता है। इसका संबंध दुर्गा की दूसरी शक्ति ब्रह्मचारिणी से है, जिसकी पूजा दूसरे नवरात्रि को होती है।तीसरा अक्षर क्लीं है, चौथा अक्षर चा, पांचवां अक्षर मुं, छठा अक्षर डा, सातवां अक्षर यै, आठवां अक्षर वि तथा नौवा अक्षर चै है। जो क्रमशः मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु तथा केतु ग्रहों को नियंत्रित करता है।इस मंत्र का माता के नव रूपों से सम्बन्ध है।दुर्गा माँ की शक्तियां इनके क्रमशः रूप मे है...शैलपुत्री,ब्रह्मचारिणी,चन्द्रघण्टा,कूष्माण्डा,स्कंदमाता,कात्यायनी,कालरात्रि,महागौरी,सिद्धिदात्री जिनकी नवरात्रि को आराधना करते है। NOTE;- यह एक सिद्ध मंत्र है जिसका मन्न से जाप करने से तीनो देवियों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। माता सरस्वती से विद्या ,माँ लक्ष्मी से धन-वैभव ,और माँ महाकाली से शक्ति प्राप्त होती है। एक मनुष्य को जीवन काल में तीन ही चीज़ों (विद्या ,धन,और शक्ति ) की आवयष्कता होती है इस मंत्र के जाप से निरंतर कार्य करते हुए प्राप्त होती है। इस मंत्र के नियमित और निष्ठां के जाप मात्रा से सारे व्यवधान दूर हो जाते है।ॐ परब्रह्म का द्योतक माना जाता है। इसी कारण नवार्ण मन्त्र के आरम्भ में ॐ लगाया जाता है। और इस मन्त्र को ।।ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।। के रूप में साधक जाप करते हैं। इस मंत्र का जाप करने के लिए स्नान के बाद, माँ दुर्गा के मूर्ति या चित्र के सामने आसान पर बैठकर, रुद्राक्ष की माला से 11 माला का प्रतिदिन जाप करना चाहिए। वैसे तो नवाक्षरी मंत्र साधना कभी की जा सकती है लेकिन इसके लिए नवरात्री के दिनों का विशेष महत्व है क्योंकि इन दिनों में इस मंत्र की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है। //////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////
नवरात्रि में माँ के मंत्रों द्वारा भौतिक तापो से मुक्ति के उपाय;-
दुर्गा के इन मंत्रो का जाप प्रति दिन भी कर सकते हैं। पर नवरात्र में जाप करने से शीघ्र प्रभाव देखा गया हैं। 20 मंत्र;- 1-सर्व प्रकार की बाधा मुक्ति हेतु:-
सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वितः। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः॥ अर्थातः- मनुष्य मेरे प्रसाद से सब ""बाधाओं से मुक्त"" तथा धन, धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा- इसमें जरा भी संदेह नहीं है। कम से कम सवा लाख जप कर 'दशांश' हवन अवश्य करें। किसी भी प्रकार के संकट या बाधा कि आशंका होने पर इस मंत्र का प्रयोग करें। उक्त मंत्र का श्रद्धा एवं विश्वास से जाप करने से व्यक्ति सभी प्रकार की बाधा से मुक्त होकर धन-धान्य एवं पुत्र की प्राप्ति होती हैं। 2-बाधा शान्ति हेतु:-
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि। एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥ अर्थातः- सर्वेश्वरि! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शान्त करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो। 3-विपत्ति नाश हेतु:-
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे। सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥ अर्थातः-
शरण में आये हुए दीनों एवं पीडितों की रक्षा में संलग्न रहनेवाली तथा सबकी पीडा दूर करनेवाली नारायणी देवी! तुम्हें नमस्कार है। 4-पाप नाश हेतु:-
हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्। सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽन: सुतानिव॥ अर्थातः- देवि! जो अपनी ध्वनि से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त करके दैत्यों के तेज नष्ट किये देता है, वह तुम्हारा घण्टा हमलोगों की पापों से उसी प्रकार रक्षा करे, जैसे माता अपने पुत्रों की बुरे कर्मो से रक्षा करती है। 5-विपत्तिनाश और शुभ की प्राप्ति हेतु:-
करोतु सा न: शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः। अर्थातः-
वह कल्याण की साधनभूता ईश्वरी हमारा कल्याण और मङ्गल करे तथा सारी आपत्तियों का नाश कर डाले। 6-भय नाश हेतु:-
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते। भयेभ्याहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥ एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम्। पातु न: सर्वभीतिभ्य: कात्यायनि नमोऽस्तु ते॥ ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम्। त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते॥ अर्थातः- सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्ति यों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवि! सब भयों से हमारी रक्षा करो; तुम्हें नमस्कार है। कात्यायनी! यह तीन लोचनों से विभूषित तुम्हारा सौम्य मुख सब प्रकार के भयों से हमारी रक्षा करे। तुम्हें नमस्कार है। भद्रकाली! ज्वालाओं के कारण विकराल प्रतीत होनेवाला, अत्यन्त भयंकर और समस्त असुरों का संहार करनेवाला तुम्हारा त्रिशूल भय से हमें बचाये। तुम्हें नमस्कार है। 7-सर्व प्रकार के कल्याण हेतु:-
सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥ अर्थातः- नारायणी! आप सब प्रकार का मङ्गल प्रदान करनेवाली मङ्गलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को सिद्ध करनेवाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रोंवाली एवं गौरी हो। आपको नमस्कार हैं। व्यक्ति दु:ख, दरिद्रता और भय से परेशान हो चाहकर भी या परीश्रम के उपरांत भी सफलता प्राप्त नहीं होरही हों तो उपरोक्त मंत्र का प्रयोग करें। 8-सुलक्षणा पत्नी की प्राप्ति हेतु:-
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्। तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥ अर्थातः- मन की इच्छा के अनुसार चलनेवाली मनोहर पत्नी प्रदान करो, जो दुर्गम संसारसागर से तारनेवाली तथा उत्तम कुल में उत्पन्न हुई हो। 9-शक्ति प्राप्ति हेतु:-
सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि। गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥ अर्थातः- तुम सृष्टि, पालन और संहार करने वाली शक्ति भूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणि! तुम्हें नमस्कार है। 10-रक्षा प्राप्ति हेतु:- शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके। घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च॥ अर्थातः-
देवि! आप शूल से हमारी रक्षा करें। अम्बिके! आप खड्ग से भी हमारी रक्षा करें तथा घण्टा की ध्वनि और धनुष की टंकार से भी हमलोगों की रक्षा करें। देह को सुरक्षित रखने हेतु एवं उसे किसी भी प्रकार कि चोट या हानी या किसी भी प्रकार के अस्त्र-सस्त्र से सुरक्षित रखने हेतु इस मंत्र का श्रद्धा से नियम पूर्वक जाप करें। 11-विद्या प्राप्ति एवं मातृभाव हेतु:-
विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु। त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुति: स्तव्यपरा परोक्तिः॥ अर्थातः- देवि! विश्वकि सम्पूर्ण विद्याएँ तुम्हारे ही भिन्न-भिन्न स्वरूप हैं। जगत् में जितनी स्त्रियाँ हैं, वे सब तुम्हारी ही मूर्तियाँ हैं। जगदम्ब! एकमात्र तुमने ही इस विश्व को व्याप्त कर रखा है। तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? तुम तो स्तवन करने योग्य पदार्थो से परे हो। समस्त प्रकार कि विद्याओं की प्राप्ति हेतु और समस्त स्त्रियों में मातृभाव की प्राप्ति के लिये इस मंत्रका पाठ करें। 12-प्रसन्नता की प्राप्ति हेतु:-
प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि। त्रैलोक्यवासिनामीडये लोकानां वरदा भव॥ अर्थातः- विश्व की पीडा दूर करनेवाली देवि! हम तुम्हारे चरणों पर पडे हुए हैं, हमपर प्रसन्न होओ। त्रिलोकनिवासियों की पूजनीय परमेश्वरि! सब लोगों को वरदान दो। 13-आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति हेतु:-
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥ अर्थातः- मुझे सौभाग्य और आरोग्य दो। परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि मेरे शत्रुओं का नाश करो। 14-महामारी नाश हेतु:-
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥ अर्थातः- जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा- इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके! तुम्हें मेरा नमस्कार हो। 15-रोग नाश हेतु:-
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्। त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥ अर्थातः- देवि! तुमहारे प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवाछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं। 16-विश्व की रक्षा हेतु:- या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी: पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि:। श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्॥ अर्थातः- जो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मीरूप से, पापियों के यहाँ दरिद्रतारूप से, शुद्ध अन्त:करणवाले पुरुषों के हृदय में बुद्धिरूप से, सत्पुरुषों में श्रद्धारूप से तथा कुलीन मनुष्य में लज्जारूप से निवास करती हैं, उन आप भगवती दुर्गा को हम नमस्कार करते हैं। देवि! आप सम्पूर्ण विश्व का पालन कीजिये। 17-विश्वव्यापी विपत्तियों के नाश हेतु:- देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य। प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥ अर्थातः- शरणागत की पीडा दूर करनेवाली देवि! हमपर प्रसन्न होओ। सम्पूर्ण जगत् की माता! प्रसन्न होओ। विश्वेश्वरि! विश्व की रक्षा करो। देवि! तुम्हीं चराचर जगत् की अधीश्वरी हो। 18-विश्व के पाप-ताप निवारण हेतु:- देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीतेर्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्य:। पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान्॥ अर्थातः- देवि! प्रसन्न होओ। जैसे इस समय असुरों का वध करके तुमने शीघ्र ही हमारी रक्षा की है, उसी प्रकार सदा हमें शत्रुओं के भय से बचाओ। सम्पूर्ण जगत् का पाप नष्ट कर दो और उत्पात एवं पापों के फलस्वरूप प्राप्त होनेवाले महामारी आदि बडे-बडे उपद्रवों को शीघ्र दूर करो। 19-विश्व के अशुभ तथा भय का विनाश करने हेतु:- यस्या: प्रभावमतुलं भगवाननन्तो ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तु मलं बलं च। सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोत अर्थातः- जिनके अनुपम प्रभाव और बल का वर्णन करने में भगवान् शेषनाग, ब्रह्माजी तथा महादेवजी भी समर्थ नहीं हैं, वे भगवती चण्डिका सम्पूर्ण जगत् का पालन एवं अशुभ भय का नाश करने का विचार करें।
20-सामूहिक कल्याण हेतु:-
देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या निश्शेषदेवगणशक्ति समूहमूत्र्या। तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां भक्त्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा न:॥
अर्थातः- सम्पूर्ण देवताओं की शक्ति का समुदाय ही जिनका स्वरूप है तथा जिन देवी ने अपनी शक्ति से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त कर रखा है, समस्त देवताओं और महर्षियों की पूजनीया उन जगदम्बा को हम भक्ति पूर्वक नमस्कार करते हैं। वे हमलोगों का कल्याण करें। कैसे करें मंत्र जाप :-
नवरात्रि के प्रतिपदा के दिन संकल्प लेकर प्रातःकाल स्नान करके पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके दुर्गा की मूर्ति या चित्र की पंचोपचार या दक्षोपचार या "षोड्षोपचार से पूजा करें।शुद्ध-पवित्र आसन ग्रहण कर रुद्राक्ष, स्फटिक, तुलसी या चंदन की माला से मंत्र का जाप 11 माला जाप पूर्ण कर अपने कार्य उद्देश्य की पूर्ति हेतु मां से प्राथना करें। संपूर्ण नवरात्रि में जाप करने से मनोवांच्छित कामना अवश्य पूरी होती हैं।उपरोक्त मंत्र के विधि-विधान के अनुसार जाप करने से मां की कृपा से व्यक्ति को पाप और कष्टों से छुटकारा मिलता हैं और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग सुगम होता हैं।
...SHIVOHAM..
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