क्या है श्वास और मन के वैज्ञानिक नियम?
क्या है श्वास के वैज्ञानिक नियम?-
11 FACTS;- 1- श्वास जीवन है।लेकिन लोग इसकी उपेक्षा कर देते हैं, वे इस पर बिलकुल ध्यान नहीं देते।लोग पूर्णता से श्वास नहीं ले सकते और तुम्हारे जीवन में जो भी बदलाहट आयेगी वह श्वास में बदलाहट द्वारा ही आयेगी।श्वास का विशेष ध्यान रखना होगा क्योंकि यह एक बहुत महत्वपूर्ण बात है।यदि तुम पूर्णता से श्वास नहीं ले रहे तो तुम पूर्णता से जी भी न सकोगे।तब तुम पूरा वार्तालाप न करोगे;कुछ न कुछ बच रहेगा।एक बार श्वास ठीक हो जाये तो सब सही रास्ते पर आ जाता है।यदि तुम वर्षों से गलत ढग से श्वास ले रहे हो, अथार्त उथला श्वास, तो तुम्हारी मांस-पेशियां जम जाती हैं। तब यह तुम्हारी इच्छा-शक्ति की बात नहीं रह जाती। यह ऐसा ही है कि कोई वर्षों से हिला-जुला न हो, उसकी मांस-पेशियां सिकुड़ गयी हों; मृत हो गयी हों और रक्त जम गया हो। अब अचानक वह व्यक्ति लंबी सैर का विचार करे-तो केवल सोचने से यह घटित न होगा।अब उसे बहुत संघर्ष करना होगा। 2-श्वास की नली की मांस-पेशियां एक विशेष ढंग से बनी होती हैं और यदि तुम गलत ढंग से श्वास लेते रहे हो- और लगभग सभी लोग गलत ढंग से लेते हैं- तो मांस-पेशियां जम जाती हैं। अब इन्हें अपने प्रयत्न करके बदलने में बहुत समय व्यर्थ जायेगा। गहरी मालिश से, यह मांस-पेशियां शिथिल हो जाती हैं और तुम फिर दोबारा प्रारंभ कर सकते हो। लेकिन एक बार तुमने सही श्वास लेना शुरू कर दिया तो पुन: पुरानी आदत में न लौटे । श्वास के अंतर से आपके मन का अंतर पड़ना शुरू होगा। यानी यह असंभव है कि एक आदमी श्वास को शांत रखे और क्रोध कर ले। ये दोनों बातें एक साथ नहीं घट सकतीं। इससे उलटा भी संभव है कि अगर आप उसी तरह की श्वास लेने लगें जैसी आप क्रोध में लेते हैं, तो आप थोड़ी देर में पाएं कि आपके भीतर क्रोध जग गया। 3-आर्टिफीशियल ब्रीदिंग और नेचरल ब्रीदिंग को भी समझना है। जिसको आप नेचरल कह रहे हैं, वह भी नेचरल नहीं है; । बल्कि वह ऐसी आर्टिफीशियल ब्रीदिंग है जिसके आप आदी हो गए हैं, जिसको आप बहुत दिन से कर रहे हैं । आपको पता नहीं है कि नेचरल ब्रीदिंग क्या है। इसलिए दिन भर आप एक तरह सेआर्टिफीशियल श्वास लेते हैं , रात में आप दूसरी तरह से लेते हैं। क्योंकि रात में नेचरल शुरू होती है जो कि आपकी हैबिट के बाहर है।तो रात की ही श्वास की प्रक्रिया ज्यादा स्वाभाविक है । दिन में तो हमने आदत डाली है ब्रीदिंग की, और आदत के लिए हमारे पास कई कारण हैं। जब आप भीड़ में चलते हैं ,और जब आप अकेले में बैठते हैं तब एहसास करें, तो आप पाएंगे आपकी ब्रीदिंग बदल गई। भीड़ में आप और तरह से श्वास लेते हैं, अकेले में और तरह से। क्योंकि भीड में आप टेंस होते हैं। चारों तरफ लोग हैं, तो आपकी ब्रीदिंग छोटी हो जाएगी; पूरी गहरी नहीं होगी। जब आप आराम से बैठे हैं, अकेले हैं, तो वह पूरी गहरी होगी। 4-पेट से श्वास लेना निर्दोषता का लक्षण हैं। इसलिए बच्चे एक तरह से ब्रीदिंग ले रहे हैं। अगर बच्चे को सुलाएं, तो आप पाएंगे उसका पेट हिल रहा है, और आप ब्रीदिंग ले रहे हैं तो छाती हिल रही है।बच्चा नेचरल ब्रीदिंग ले रहा है। अगर बच्चा जिस ढंग से श्वास ले रहा है, आप लें, तो आपके मन में वही स्थितियां पैदा होनी शुरू हो जाएंगी जो बच्चे की हैं। उतनी इनोसेंस आनी शुरू हो जाएगी जितनी बच्चे की है। या अगर आप इनोसेंट हो जाएंगे तो आपकी ब्रीदिंग पेट से शुरू हो जाएगी।इसलिए हिंदुस्तान में बुद्ध का पेट छोटा है; जापानी और चीनी मुल्कों में बुद्ध का पेट बड़ा है, छाती छोटी है। हमें बेहूदी लगती है कि यह बेडौल कर दिया। लेकिन वही ठीक है। क्योंकि बुद्ध जैसा शांत मनुष्य जब श्वास लेगा तो वह पेट से ही लेगा।उतना इनोसेंट मनुष्य छाती से श्वास नहीं ले सकता,इसलिए पेट बड़ा हो जाएगा। वह पेट जो बड़ा है, वह प्रतीक है।उसका कारण है कि वह पेट से श्वास ले रहा है; वह छोटे बच्चे की तरह हो गया है। 5-हम आर्टिफीशियल ब्रीदिंग कर रहे हैं। तो जैसे ही हमें समझ बढ़ेगी, हम नेचरल ब्रीदिंग की तरफ कदम उठाएंगे। और जितनी नेचरल ब्रीदिंग हो जाएगी, उतने ही जीवन की अधिकतम संभावना हमारे भीतर से प्रकट होनी शुरू होगी।और यह भी समझना है कि कभी-कभी एकदम आकस्मिक रूप से अप्राकृतिक ब्रीदिंग करने के भी बहुत फायदे हैं और जहां बहुत फायदे हैं वहीं बहुत हानियां भी हैं।तो बहुत खतरे हैं और वहां बहुत संभावनाएं भी हैं।वह जुआरी का दांव है।तो अगर हम कभी किसी क्षण में थोड़ी देर के लिए बिलकुल ही अस्वाभाविक अथार्त जिसको हमने अभी तक नहीं की है ..इस तरह की ब्रीदिंग करें, तो हमें अपने ही भीतर नई स्थितियों का पता चलना शुरू होता है। उन स्थितियों में हम पागल/विक्षिप्त भी हो सकते हैं और उन स्थितियों में हम मुक्त भी हो सकते हैं।और चूंकि उस स्थिति को हम ही पैदा कर रहे हैं, इसलिए किसी भी क्षण उसे रोका जा सकता है। इसलिए खतरा नहीं है।खतरे का डर तब है, जबकि आप रोक न सकें। और आपको प्रतिपल अनुभव होता है कि आप किस तरफ जा रहे हैं। आप आनंद की तरफ जा रहे हैं, कि दुख की तरफ जा रहे हैं, कि खतरे में जा रहे हैं, कि शांति में जा रहे हैं, वह आपको बहुत साफ एक -एक कदम पर मालूम होने लगता है। 6-अजनबी स्थिति के कारण मूर्च्छा पर चोट..और जब बिलकुल ही आकस्मिक रूप से, तेजी से ब्रीदिंग बदली जाए, तो आपके भीतर की पूरी की पूरी स्थिति एकदम से बदलती है । जो हमारी श्वास लेने की सुनिश्चित आदत हो गई है , उसमें हमें कभी पता नहीं चल सकता कि मैं शरीर से अलग हूं । शरीर और आत्मा के बीच श्वास की एक निश्चित आदत ने एक ब्रिज बना दिया है और हम उसके आदी हो गए हैं।यानी आपको न कभी सोचना पड़ता है, न विचार करना पड़ता है।व्यवस्थित दुनिया, जहां सब रोज वही हुआ है, वहां आपकी मूर्च्छा कभी नहीं टूटती। आपकी मूर्च्छा वहां टूटती है , जहां अचानक कुछ हो जाता है।जैसे कि कोई हंस एक शब्द भी बोल दे तो आप इतनी अवेयरनेस में पहुंच जाएंगे जिसमें आप कभी नहीं गए; क्योंकि वह स्ट्रेज है, और स्ट्रेंज आपके भीतर की सब स्थिति तोड़ देता है।
7-और अगर कोई व्यक्ति होशपूर्वक पागल हो सके, तो इससे बड़ा कीमती अनुभव नहीं है।उदाहरण के लिए भीतर तो आपको पूरा होश है और आप देख रहे हैं कि मैं नाच रहा हूं। और आप जानते हैं कि अगर यह कोई भी दूसरा व्यक्ति कर रहा होता तो मैं कहता कि यह पागल है।अब आप अपने को पागल कह सकते हैं। लेकिन दोनों बातें एक साथ हो रही हैं ...आप यह जान भी रहे हैं कि यह हो रहा है। इसलिए आप पागल भी नहीं हैं; क्योंकि आप होश में हैं और फिर भी वही हो रहा है जो पागल को होता है।इस हालत में आपके भीतर एक ऐसा स्ट्रेज मोमेंट आता है कि आप अपने को अपने शरीर से अलग कर पाते हैं। कर नहीं पाते, हो ही जाता है। अचानक आप पाते हैं कि सब तालमेल टूट गया। जहां कल रास्ता जुड़ता था वहां नहीं जुड़ता और जहां कल आपका ब्रिज जोड़ता था वहां नहीं जुड़ता; सब विसंगत हो गया है।वह जो रोज -रोज की रेलेवेंसी थी , वह टूट गई है; कहीं कुछ और हो रहा है।आप नहीं रोना चाह रहे हैं, और आंसू बहे जा रहे हैं; आप चाहते हैं कि यह हंसी रुक जाए, लेकिन यह नहीं रुक रही है। 8-तो ऐसे स्ट्रेंज मोमेंट्स पैदा करना अवेयरनेस के लिए बड़े अदभुत हैं। और श्वास से जितने जल्दी ये हो जाते हैं, और किसी प्रयोग से नहीं होते।प्रयोग में वर्षों लगाने पड़ते हैं, श्वास में दस मिनट में भी हो सकता है। क्योंकि श्वास का हमारे व्यक्तित्व में इतना गहरा संबंध है कि उस पर जरा सी लगी चोट... सब तरफ प्रतिध्वनित हो जाती है।तो श्वास के जो प्रयोग थे, वे बड़े कीमती थे। लेकिन प्राणायाम के व्यवस्थित प्रयोग में उनकी स्ट्रेजनेस चली जाती है। तो यह भी उसका अभ्यास का हिस्सा हो जाने के कारण सेतु बन जाता है।लेकिन बिलकुल नॉन-मेथॉडिकल है, उसमें न कोई रोकने का सवाल है, न छोड़ने का सवाल है। वह एकदम से स्ट्रेंज फीलिंग पैदा करने की बात है।वह इस नाक को दबा रहा है, इसको खोल रहा है; इतनी निकाल रहा है, उतनी बंद कर रहा है; तो उसका कोई मतलब नहीं है, वह एक नया सिस्टम हो जाएगा, लेकिन स्ट्रेजनेस/ अजनबीपन उसमें नहीं आएगा।ये श्वास बिलकुल ही नॉन रिदमिक, नॉन मेथॉडिकल है क्योंकि आप कल जैसा किया था, वैसा आज नहीं कर सकते। उसका कोई मेथड ही नहीं है। 9-आपकी जो भी रूट्स/जड़ें हैं और जितना भी आपका अपना परिचय है; वह सब का सब किसी क्षण में एकदम उखड़ जाए। एक दिन आप अचानक पाएं कि न कोई जड़ है मेरी, न मेरी कोई पहचान है, न मेरी कोई मां है, न मेरा कोई पिता है, न कोई भाई है, न यह शरीर मेरा है। आप एकदम ऐसी एब्सर्ड हालत में पहुंच जाएं जहां कि व्यक्ति पागल होता है। लेकिन अगर आप इस हालत में अचानक, आपकी बिना किसी कोशिश के पहुंच जाएं, तो आप पागल हो जाएंगे। और अगर आप अपनी ही कोशिश से इसमें पहुंचें तो आप कभी पागल नहीं हो सकते, क्योंकि यह आपके हाथ में है, अभी आप इसी सेकेंड वापस लौट सकते हैं।और पागल भी अगर इसको करे तो ठीक हो सकता है।क्योंकि अगर वह पागलपन को भी देख सके कि मैं पैदा कर लेता हूं तो वह यह भी जान पाएगा कि मैं मिटा भी सकता हूं।अभी पागलपन उसके ऊपर उतर आया है, वह उसके हाथ की बात नहीं है।और जो नार्मल व्यक्ति इस प्रयोग को करता है उसकी गारंटी है कि वह कभी पागल नहीं हो सकता।
10-वह इसलिए पागल नहीं हो सकता कि पागलपन को पैदा करने की उसके पास खुद ही कला है।जिस चीज को वह ऑन करता है उसको ऑफ भी कर लेता है।इसलिए आप उसको कभी पागल नहीं बना सकते क्योंकि उसने जो वश के बाहर था, उसको भी वश में करके देख लिया है।वे नट -बोल्ट बहुत सख्ती से पकड़े हुए हैं और उनकी वजह से आत्मा और शरीर के बीच फासला नहीं हो पाता । वे एकदम से ढीले पड़ जाएं तो ही आपको पता चले कि कुछ और भी है भीतर, जो जुड़ा था और अलग हो गया है। लेकिन चूंकि वे श्वास की चोट से ही ढीले हुए हैं, वे श्वास की चोट जाते ही से अपने आप कस जाते हैं; उनको अलग से कसने के लिए कोई इंतजाम नहीं करना पड़ता। अगर आपके भीतर श्वास पागलपन की हो जाए, कि आपके वश के बाहर हो, आब्सेशन बन जाए और चौबीस घंटे उस ढंग से चलने लगे, तो फिर वह स्थिति खराब हो जा सकती है। लेकिन कोई घंटे भर के लिए अगर यह प्रयोग शुरू करता है और प्रयोग बंद कर देता है, तो जैसे ही वह प्रयोग बंद करता है, वैसे ही वे सब के सब अपनी जगह वापस सेट हो जाते हैं। आपको अनुभव भर रह जाता है। लेकिन अब सेट हो जाने के बाद भी आप जानते हैं कि मैं अलग हूं ..जुड़ गया हूं संयुक्त हूं... लेकिन फिर भी अलग हूं।
11-श्वास के अनूठे अनुभव जब स्ट्रेजनेस में ले जाते हैं, तो आपके भीतर बड़ी नई संभावनाएं होती हैं और आप होश उपलब्ध कर पाते हैं और कुछ देख पाते हैं।हुम् शब्द बीज है।नाभि के ठीक नीचे तुम्हारा अपना जीवनस्रोत है।कभी प्रयोग करो- जब तुम हू कहते हो तो नाभि के नीचे चोट पड़ती है। अल्लाह परमात्मा के लिए मुसलमानों का नाम है।परन्तु सूफी लोग अल्लाह के पूरे नाम का उपयोग नहीं करते। वे अल्लाहू का उपयोग करते हैं और धीरे-धीरे वे अल्लाहू को भी हू-हू में बदल देते हैं। उन लोगों ने पाया है कि हू की ध्वनि नाभि के ठीक नीचे जीवनस्रोत पर सीधे चोट करती है। क्योंकि तुम अपने जीवन से, अपनी मां से नाभि द्वारा ही जुड़े थे।यह एक सूफी खोज है, लेकिन इसका प्रयोग तिब्बती ढंग से भी किया जा सकता है।हू कुछ कठोर मालूम पड़ता है , परन्तु हुम थोड़ा अधिक कोमल लगता है। किंतु कोमल से तुम्हारी ऊर्जाओं को जगाने में अधिक समय लेगा। तिब्बत की विशिष्ट जलवायु में संभवतः कोमलतर ही उपयुक्त था। जीवनस्रोत पर चोट करने के लिए उन्हें अधिक चोट की जरूरत नहीं थी। किंतु अरब के तपते रेगिस्तान में सूफी रहस्यदर्शियों ने हू का प्रयोग करना शुरू किया।हमारे सामने दोनों विकल्प है ...हुम को चुनों या हू को।तिब्बत के ठंडे ऊंचे प्रदेश के जहां सब कुछ भिन्न होता है ..हुम उनके लिए बिल्कुल ठीक है।हुम तुम्हारे भीतर ओम पैदा करने के लिए आघात है। यदि तुम जीवन के बीज पर चोट करते हो तो यह मिट्टी में खोने लगता है, हरी पत्तियां, अंकुर निकलने लगते हैं।
स्ट्रेजनेस पैदा करने की अन्य सूफी विधियां ;-
04 FACTS;- 1- निद्रा पर चोट;-
जीवन हैं तो खतरे भी हैं । एक तो वह खतरा है जो हम पर अचानक आ जाता है, उससे हम बच नहीं सकते; और एक वह खतरा है जो हम क्रिएट करते हैं, उससे हम कभी भी बच सकते हैं।उदाहरण के लिए एक सूफी निद्रा पर चोट करेगा, श्वास पर नहीं। तो एक सूफी के लिए नाइट विजिल्स की बड़ी कीमत है ;वह महीनों जागता रहेगा! लेकिन जागने से भी वही स्ट्रेजनेस पैदा हो जाती है जो श्वास से पैदा होती है। अगर महीने भर जाग जाएं तो आप उसी तरह पागल हालत में पहुंच जाते हैं जिस हालत में श्वास से पहुंचेंगे ।क्योंकि नींद बड़ी स्वाभाविक व्यवस्था है;उस पर चोट करने से फौरन आपके भीतर विचित्रताए शुरू हो जाती हैं। लेकिन उसमें भी खतरे इससे ज्यादा हैं, क्योंकि लंबा प्रयोग करना पड़ेगा। वह एक दिन की नींद के तोड्ने से नहीं होता। महीने भर, दो महीने की नींद तोड देनी पड़ती है।लेकिन दो महीने की नींद तोड़कर अगर कुछ हो जाए तो एक सेकेंड में आप बंद नहीं कर सकते उसको। लेकिन दस मिनट की श्वास से कुछ भी हो जाए तो एक सेकेंड में बंद हो जाता है। दो महीने की नींद अगर नहीं ली है, तो आप अगर आज सो भी जाओ तो भी दो महीने की नींद आज पूरी नहीं होनेवाली। और दो महीने जो नहीं सोया है, वह आज शायद सो भी न पाए; क्योंकि उसने जरा खतरनाक जगह से काम शुरू किया है। तो नाइट विजिल का बड़ा उपयोग है, फकीर रात—रात भर जागकर प्रतीक्षा करेंगे कि क्या होता है। तो उन्होंने उससे शुरू किया है। दूसरा उन्होंने नृत्य से भी शुरू किया है। 2-नृत्य का प्रयोग:- शरीर से अलग होने के लिए नृत्य को भी प्रयोग किया जा सकता है । लेकिन अगर आपने नृत्य सीखकर किया तो नहीं हो सकेगा ;क्योंकि वह व्यवस्थित है।अब एक व्यक्ति ने अगर नृत्य सीख लिया, तो वह शरीर के साथ एक हो जाता है। लेकिन जो नृत्य नहीं जानता ;उससे कहा जाये और वह एकदम नाचना शुरू कर दें, कूदना -फांदना...तो हो जाएगा। इसलिए हो जाएगा कि यह इतना स्ट्रेज मामला है कि आप इसके साथ अपने को एक न कर पाएंगे कि यह मैं नाच रहा हूं! 3-ऊन के वस्त्र, उपवास, कांटे की शय्या ,आसन का प्रयोग:-
02 POINTS;- 1-अब कोई रेगिस्तान की गरम हालत में ऊन पहने हुए हैं तो शरीर के विपरीत चल रहे हैं। कोई उपवास कर रहा है, वह भी शरीर के विपरीत चल रहा है।कोई उपवास से स्ट्रेजनेस पैदा कर रहे हैं। कोई कांटे पर पैर रखे बैठा है, कोई कांटे की शय्या बिछाकर उस पर लेट गया है, वे सब स्ट्रेजनेस पैदा करने की तरकीबें हैं।लेकिन एक पथ के राही को कभी खयाल में नहीं आता कि दूसरे पथ से भी ठीक यही स्थिति पैदा हो सकती है।अब कोई रात भर जग रहा है, अगर वह प्राणायाम का भी प्रयोग करे तो फौरन पागल हो जाएगा। उसके कारण हैं; क्योंकि ये दोनों चोटें एक साथ व्यक्तित्व नहीं सह सकता।अगर उपवास के साथ प्राणायाम भी करें तो बहुत खतरे में पड़ जाएंगे।लंबे उपवास की हालत में, योगासन वगैरह बहुत खतरनाक सिद्ध हो सकते हैं। तो उनके लिए बहुत मृदु आहार चाहिए, घी चाहिए, दूध चाहिए, अत्यंत तृप्तिदायी आहार चाहिए। उपवास कर देता है रूखा भीतर बिलकुल, और जठराग्नि इतनी बढ़ जाती है, क्योंकि उपवास से बिलकुल पेट आग हो जाता है। इस आग की हालत में कोई भी आसन खतरनाक हो सकते हैं। यह आग मस्तिष्क तक चढ़ सकती है और पागल कर सकती है।
2-लंबे उपवास में आसन और प्राणायाम हानिप्रद है।अगर ठीक आहार लिया जाए, तो आसन अदभुत काम कर सकते हैं। लेकिन उसके लिए शरीर का बड़ा स्निग्ध होना जरूरी है।ये जो आसन हैं, ये भी स्ट्रेंज पोजीशस हैं।हमारी सब पोजीशन हमारे चित्त से बंधी हुई है।कोई चिंतित होता है और सिर खुजाने लगता है।अगर उसका हाथ पकड़ लिया जाए तो वह चिंता नहीं कर सकता। क्योंकि उस चिंता के लिए उतना एसोसिएशन जरूरी है कि वह हाथ की मसल्स इस जगह पहुंचें, अंगुलियां इस स्थान को छुए, इस स्नायु को छुए, इस पोजीशन में जब वह हो जाएगा तो बस तत्काल उसकी चिंता सक्रिय हो जाएगी। अब इसी तरह की सारी की सारी मुद्राएं हैं, आसन हैं।निरंतर हजारों प्रयोग के बाद यह पता चल गया कि चित्त की कौन सी दशा में कौन सी मुद्रा बन जाती है। तब फिर उलटा काम भी शुरू हो सका—वह मुद्रा बनाओ तो चित्त की वैसी दशा के बनने की संभावना बढ़ जाती है। 4-झेन फकीरों के अनोखे उपाय:- झेन फकीरों के अनोखे उपाय है।उदाहरण के लिए एक झेन फकीर है, वह एक व्यक्ति को खिड़की से उठाकर फेंक देगा ;एक डंडा उठाकर खोपड़ी पर मार देगा ;गाली बककर भी स्ट्रेजनेस पैदा कर देगा। सिर्फ स्ट्रेजनेस पैदा होती है, और कुछ नहीं। लेकिन वह कह देगा, प्राणायाम की कोई जरूरत नहीं है; यह भस्त्रिका से क्या होगा? उसका कारण है।लेकिन गिरना एक बात है, फेंका जाना बिलकुल दूसरी बात है।एक स्ट्रेजनेस अनुभव होती है।उस वक्त फौरन वे अलग हो जाते हैं, बॉडी से अलग हो जाते हैं।
...SHIVOHAM....
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