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क्या है आत्मज्ञान ?

गगन की ओट निशाना है...

दाहिने सूर चंद्रमा बांये, तीन के बीच छिपाना है |

तनकी कमान सुरत का रौंदा , शबद बाण ले ताना है |

मारत बाण बिधा तन ही तन, सतगुरु का परवाना है|

मार्यो बाण घाव नहीं तन में, जिन लागा तिन जाना है |

कहे कबीर सुनो भाई साधो, जिन जाना तिन माना है |

1-आत्मज्ञान का अर्थ हैं आत्मा का ज्ञान प्राप्त करना अथार्त खुद को देख लेना।व्यक्ति खुद को छोड़कर तमाम तरह के ज्ञान को जानने का दंभ करता है।लेकिन स्वयं को कभी नहीं देख पाता।इस देख लिए जाने को ही आत्मज्ञान कहते हैं।लेकिन यदि आप खुद को छोड़कर सब कुछ पा भी लेते हैं तो मरने के बाद जो पाया है वह खोने ही वाला है।देखने का एकमात्र तरीका ध्यान ही है। ध्यान कई प्रकार का होता है। इसे बोधपूर्ण जीवन, साक्षीभाव में रहना भी कह सकते हैं।योग ही एक मात्र ऐसा रास्ता है जिसने खुद तक पहुंचने के लिए क्रमवार सीढ़ियां बना रखी है। आप सबसे पहले यम का पालन करें, फिर नियम को अपनाएं, फिर थोड़े बहुत आसन इसलिए करें ताकि खुद के साक्षात्कार करने के मार्ग में आपका शरीर अस्वस्थ न हो।फिर प्राणायाम करते रहें जिससे मस्तिष्क में भरपूर ऑक्सिजन मिलेगी और जो यहां स्थित छठवीं इंद्री है उसे जागने में सहयोग मिलेगा।

2-फिर प्रत्याहार, धारणा और ध्यान की ओर कदम बढ़ाते हुए अंत में खुद को प्राप्त कर लें।जहां न सीमा है, न असीम ...वहां समाधि है।बूंद का सागर में मिल जाना समाधि नहीं है बल्कि बूंद और सागर का मिट जाना समाधि है। जहां न बूंद है, न सागर ...वहां समाधि है। जहां न एक है, न अनेक है, वहां समाधि है।समाधि सत्ता के साथ ऐक्य है , सत्य है ,चैतन्य है ,शांति है।

समाधि में 'मैं' नहीं होता । 'मैं' की दो सत्ताएं हैं : अहं और ब्रह्मं। अहं वह है, जो मैं नहीं हूं, पर जो 'मैं' जैसा भासता है। ब्रह्मं वह है, जो मैं हूं, लेकिन जो 'मैं' जैसा प्रतीत नहीं होता है। चेतना, शुद्ध चैतन्य ब्रह्मं है।विचार विषय के अभाव में जो शेष है, वही चेतना है। इस शेष में ,विचार-शून्यता में होना ही समाधि है।आत्म-साक्षात्कार का अर्थ है ..अहंकार का संपूर्ण तिरोहित हो जाना और अहंकार के साथ , हर चीज तिरोहित हो जाती है।

3-जब योगी आत्मज्ञान प्राप्त कर लेता है तो वह 16 कलाओं में पारंगत हो जाता है। 16 कलाएं बोध प्राप्त योगी की भिन्न-भिन्न स्थितियां हैं। बोध की अवस्था के आधार पर आत्मा के लिए प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक चन्द्रमा के प्रकाश की 15 अवस्थाएं ली गई हैं। अमावस्या अज्ञान का प्रतीक है तो पूर्णिमा पूर्ण ज्ञान का। सोलहवीं कला पहले और पन्द्रहवीं को बाद में स्थान दिया है। इससे निर्गुण सगुण स्थिति भी सुस्पष्ट हो जाती है। सोलह कला युक्त पुरुष में व्यक्त अव्यक्त की सभी कलाएं होती हैं। यही दिव्यता है।आत्मा की सबसे पहली कला ही विलक्षण है। इस पहली अवस्था या उससे पहली की तीन स्थिति होने पर भी योगी अपना जन्म और मृत्यु का दृष्टा हो जाता है और मृत्यु भय से मुक्त हो जाता है।

4-आत्मा की 16 कलाएं हैं .....

1.बुद्धि का निश्चयात्मक हो जाना। 2.अनेक जन्मों की सुधि आने लगती है। 3.चित्त वृत्ति नष्ट हो जाती है। 4.अहंकार नष्ट हो जाता है। 5.संकल्प-विकल्प समाप्त हो जाते हैं। स्वयं के स्वरुप का बोध होने लगता है। 6.आकाश तत्व में पूर्ण नियंत्रण हो जाता है। कहा हुआ प्रत्येक शब्द सत्य होता है। 7.वायु तत्व में पूर्ण नियंत्रण हो जाता है। स्पर्श मात्र से रोग मुक्त कर देता है। 8.अग्नि तत्व में पूर्ण नियंत्रण हो जाता है। दृष्टि मात्र से कल्याण करने की शक्ति आ जाती है। 9.जल तत्व में पूर्ण नियंत्रण हो जाता है। जल स्थान दे देता है। नदी, समुद्र आदि कोई बाधा नहीं रहती। 10.पृथ्वी तत्व में पूर्ण नियंत्रण हो जाता है। हर समय देह से सुगंध आने लगती है, नींद, भूख प्यास नहीं लगती। 11.जन्म, मृत्यु, स्थिति अपने आधीन हो जाती है। 12.समस्त भूतों से एक रूपता हो जाती है और सब पर नियंत्रण हो जाता है। जड़ चेतन इच्छानुसार कार्य करते हैं। 13.समय पर नियंत्रण हो जाता है। देह वृद्धि रुक जाती है अथवा अपनी इच्छा से होती है। 14.सर्व व्यापी हो जाता है। एक साथ अनेक रूपों में प्रकट हो सकता है। पूर्णता अनुभव करता है। लोक कल्याण के लिए संकल्प धारण कर सकता है। 15.कारण का भी कारण हो जाता है। यह अव्यक्त अवस्था है। 16. अपनी इच्छा अनुसार समस्त दिव्यता के साथ अवतार रूप में जन्म लेता है जैसे राम, कृष्ण यहां उत्तरायण के प्रकाश की तरह उसकी दिव्यता फैलती है।

5-ध्यान में जल्दी ही गहराई में उतरना चाहते है तो आत्मज्ञान ध्यान की विधि का प्रयोग करे। ध्यान की ये विधि हमारे अंतर की यात्रा को सरल बनाती है , चैतन्यता को बढ़ाती है और कम समय में अच्छे परिणाम देने वाली होती है।जैसे ऋषि मुनि प्राचीन समय में ध्यान लगाते थे वैसे ही ये ध्यान की हजारो सालो पुरानी ,पुरातन विधि है।संत मुनि अँधेरी गुफाओं में ध्यान और तपस्या करते थे। माना जाता है की अँधेरे कमरे में गहरे आध्यात्मिक अनुभव की सफलता के ज्यादा अवसर होते है। आत्म-ज्ञान के लिए अँधेरे कमरे को ज्यादा बेहतर माना गया है।वास्तव में, आँखों के देखने की क्षमता तक हमारे मन में विचार चलते रहेंगे। लेकिन अगर देखने के लिए कुछ ना हो तो जल्दी ही मन एकाग्रता को प्राप्त कर लेता है।अँधेरे कमरे में ( जगह ) ध्यान करने से हमारे मस्तिष्क के अंदर Di-methamphetamine का उत्सर्जन होता है जो हमारी चेतना को जाग्रत कर उसे ब्रह्मांड से जोड़ता है। और जल्दी ही कम समय में आत्मज्ञान की अवस्था में ले जाता है। अगर देखा जाये तो प्रकाश और अँधेरा हमारे मस्तिष्क में अलग अलग धुन की तरह काम करते है ।जैसे ही अँधेरा होता है तो चेतना सुप्त होने लगती है।अँधेरा मस्तिष्क में मेलाटोनिन कण का उत्सर्जन करता है जिससे हमें नींद आती है। इसकी वजह से नींद में सपने देखे जाते है।

आत्मज्ञान ध्यान की विधि..Darkroom meditation technique :-

ध्यान से जुडी ये विधि सिर्फ 15 दिन की है जिसमे हम निम्न अनुभव करते है।ध्यान की इस विधि में आपको एक अँधेरे कमरे का चुनाव करना है।आत्मज्ञान ध्यान की विधि : ध्यान की इस विधि में आपको एक अँधेरे कमरे का चुनाव करना है। जिसमे आप ध्यान कर सके. ध्यान की विधि सामान्य है जैसा की सुखासन में ध्यान लगाते है। बस ध्यान इस बात का रखे की आपका सारा ध्यान तीसरे नेत्र पर हो। इसके अलावा जिस कमरे में ध्यान लगा रहे है उसमे कोई और ना जाये न ही उसमे कोई सामान हो। आत्मज्ञान ध्यान की विधि में अनुभव अनुभव वैसे तो 2 से 3 दिन में होने लगते है लेकिन 15 दिन के अभ्यास में अलग अलग अनुभव होते रहते है। दिन के अनुसार ये अनुभव इस तरह हो सकते है।

दिन 1-3 अँधेरे कमरे में 3 दिन के अभ्यास के बाद आप देखते है की सपने में जो चेतना आप महसूस करते है वही चेतना आप इसमें अनुभव करते है। कहने का मतलब है की जब शुरू में आप अँधेरे कमरे में ध्यान करते है तो अँधेरे की परत आँखों के सामने रहती है जो कुछ दिन बाद रौशनी में बदल जाती है। इसके कारण आप अँधेरे कमरे में चेतना का अनुभव करते है; जैसा आप सपने में करते है। दिन 3-5 शुरू के 3 दिन सिर्फ आपके मेलाटोनिन लेवल को बढ़ाया जाता है जिससे की आपका पीनियल ग्लैंड सुपर कंडक्टर pino-lene को जाग्रत करने लगता है। वैसे ये पिनोलीन ल्यूसिड Dream की स्टेज में अपने आप जाग्रत होने लगता है। ये अवस्था कहलाती है बाह्य रूप से जाग्रत होना जिसमे हम अपने मस्तिष्क की कल्पना को साकार रूप दे सकते है।Clairsentience यानि किसी अनुभव को साक्षात् महसूस करना और clairvoyance यानि सुनने की क्षमता जैसी शक्ति भी इसी अवस्था में जाग्रत होने लगती है। इस अवस्था में कॉस्मिक यूनिवर्सल पार्टिकल चेतना, आवाज और प्रकाश के अलावा ज्ञान और अनुभव के रूप में भी बदलने लगता है।

इस अवस्था में आप एक कंडक्टर बन जाते है जो ब्रह्मांड से ऊर्जा को प्राप्त करने लगता है।दिन 6-8 इस अवस्था में आपका पीनियल ग्लैंड न्यूरो हार्मोन 40% तक उत्सर्जित करना शुरू कर देता है। जिससे आपकी चेतना और अवचेतन मन की शक्तियां बढ़ जाती है, आपका शरीर पहले से ज्यादा जाग्रत और सूक्ष्म होने लगता है। इस अवस्था में आपका पीनियल ग्लैंड अँधेरे रूम से एक चमकीला प्रकाश छोड़ने लगता है।यह प्रकाश की अवस्था नए और जाग्रत मानसिकता लिए हुए होती है।दिन 9-12 Darkroom meditation technique का लेवल 25 MG से ज्यादा हो जाता है। तब आप दृश्य को ज्यादा स्पष्ट देख सकने लगते है। ये आपके शरीर के ऊर्जा रूप यानि सूक्ष्म शरीर को यात्रा करने में मदद करता है। इसी की वजह से आप तीसरे नेत्र की शक्ति को जाग्रत कर सकते है। जो हमें तीनो लोक में झाँकने की क्षमता प्रदान करती है।12 वे दिन के आसपास आप इंफ्रा-रेड और अल्ट्रा-वायलेट किरणों को महसूस कर सकते है। इसके अलावा किसी भी इंसान को उसकी किरणों के पैटर्न यानि औरा से पहचान और छू सकते है। इन दिनों की अलग अलग अवस्थाएं हमारे DNA में बदलाव लाने लगती है और सबसे ज्यादा असर हमारे पीनियल ग्लैंड पर होता है।

...SHIVOHAM...




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