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क्या होता है ध्यान ?

  • Writer: Chida nanda
    Chida nanda
  • Dec 13, 2021
  • 4 min read

Updated: Jul 5, 2023

05 FACTS;-

1-योग का आठवां अंग ध्यान अति महत्वपूर्ण हैं। एक मात्र ध्यान ही ऐसा तत्व है कि जिसे साधने से सभी स्वत: ही सधने लगते हैं। लेकिन योग के अन्य अंगों पर यह नियम लागू नहीं होता।ध्यान का मूल अर्थ है जागरूकता, अवेयरनेस, होश, साक्ष‍ी भाव और दृष्टा भाव।ध्यान दो दुनिया के बीच खड़े होने की स्थिति है।धारणा का अर्थ चित्त को एक जगह लाना या ठहराना है। लेकिन ध्यान का अर्थ है कि जहां भी चित्त ठहरा हुआ है उसमें वृत्ति /Instinct का एकतार चलना , जाग्रत रहना ।ध्यान का अर्थ एकाग्रता नहीं होता। एकाग्रता टॉर्च की स्पॉट लाइट की तरह होती है जो किसी एक जगह को ही फोकस करती है, लेकिन ध्यान उस बल्ब की तरह है जो चारों दिशाओं में प्रकाश फैलाता है। योगियों का ध्यान सूरज के प्रकाश की तरह होता है जिसकी जद में ब्रह्मांड की हर चीज पकड़ में आ जाती है।बहुत से लोग क्रियाओं को ध्यान समझने की भूल करते हैं- लेकिन क्रिया और ध्यान में फर्क है।ध्यान है क्रियाओं से मुक्ति ...विचारों से मुक्ति।

2-वास्तव में,ध्यान है पर्दा हटाने की कला। और यह पर्दा बाहर नहीं है, यह पर्दा तुम्हारे भीतर , तुम्हारे अंतस्तल पर पड़ा है।यह विचारों अथार्त अच्छे विचार, बुरे विचार के ताने-बाने से पर्दा बुना है।परन्तु निर्विचार दशा का नाम ध्यान है।ध्यान का अर्थ है, भीतर ऐसी कोई संधि ..जब तुम हो, जगत भी है और दोनों के बीच में विचार का पर्दा नहीं है। कभी ऊगते सूरज को देखकर, पूर्णिमा के चांद को देखकर, इतना भी विचार न हो कि यह सूरज है। शब्द उठ ही न रहे हो - तुम मौन, स्तब्ध रह गए हो, उस क्षण का नाम ध्यान है।और यह तो कभी-कभी ही होगा। इसलिए ध्यान तुम्हारी चाहत से नहीं होता है।यह तो कभी-कभी, अनायास, किसी शांत क्षण में हो जाता है।प्रकृति में अगर एक क्षण को द्वार खुल जाएं, पर्दा हट जाए, तो ध्यान का पहला अनुभव होता है।सुख का अर्थ ही होता है, जब तुम्हारे जाने-अनजाने परमात्मा करीब होता है। सुख जब तुम्हारे भीतर आता है, तो उसका अर्थ हुआ कि परमात्मा तुमसे बहुत करीब आ गया।

3-भगवान ने हमारे दिमाग में कम्पास की सेटिंग कर रखी है ! अगर हम नाक की सीध में बिंदू रूप को देखते रहें, हम चाहे किधर भी जाएं, कहीं भी जाएं, किसी भी दिशा की तरह मुख है ! हमारा मन सदा उतर दिशा की ओर ट्यून रहेगा ! यह नाक मनुष्य मन का आटोमेटिक कम्पास है !हम पढ़ते हैं, खाना बनाते हैं, खाना खाते हैं, सदैव नाक की सीध में शिव बाबा के बिंदू रूप को देखते रहें ! आप भगवान से ट्यून रहेगें !आप सूर्य को, चंद्रमा को, इष्ट को नाक की सीध में उसे 5 इंच दूरी पर देखते रहें ! यह दूरी कम- ज्यादा भी हो सकती है ! आप को भगवान से हर पल शक्ति मिलती रहेगी !जंगलो में जानवर उतर दिशा की ओर मुहं कर के बैठते हैं ! वह सदा तंदरुस्त रहते हैं, चैन से रहते हैं क्योंकि उन का मन भगवान से ट्यून रहता है ! पेड़ पौधे अगर उतर-दक्षिण दिशा लाइनों में बोये जाएं तो वह लहलहाते रहते हैं, उन्हें अधिक बीज पड़ते हैं ! ऐसा करने से वह सूर्य से जुड़े रहते हैं ! उन्हें सूर्य से ऊर्जा मिलती रहती है !

4-ध्यान जैसे-जैसे गहराता है व्यक्ति साक्षी भाव में स्थित होने लगता है। उस पर किसी भी भाव, कल्पना और विचारों का क्षण मात्र भी प्रभाव नहीं पड़ता। मन और मस्तिष्क का मौन हो जाना ही ध्यान का प्राथमिक स्वरूप है। ध्यान में गहरे और गहरे ..उतरे । गहराई के दर्पण में संभावनाओं का जो हो सकता है, वह होना शुरू हो जाता है।शक्ति, समय और संकल्प सभी ध्यान को समर्पित कर दें। क्योंकि ध्यान ही वह द्वारहीन द्वार है, जो स्वयं को ही स्वयं से परिचित कराता है।ध्यान का अर्थ है अपने एकांत में उतर जाना, अकेले हो जाना, मौन, शून्य, निर्विचार, निर्विकल्प...। लेकिन उस निर्विचार में, उस निर्विकल्प में.. भीतर का सूरज प्रगट होता है और सब रोशन हो जाता है। फिर तुम्हारे भीतर प्रेम , आनंद के झरने फूटते हैं । बिना ध्यान के जीवन में सुख होता नहीं ..अथार्त सुख का बीज ही अंकुरण नहीं होता।ध्यान तो सुख के बीजों को बोना है।तब इस आनंद को फिर बांटना ही पड़ेगा क्योंकि जब दीये में रोशनी होती है तो किरणें फैलती हैं।और उस बांटने को ही परोपकार कहते है। आनंद ही सच्चा धन है क्योंकि इसे किसी से छीनना नहीं होता, यह अपना है। और जो अपना है,उसी को देना पुण्य है।और जिसके जीवन में ध्यान नहीं है, वह तो दूसरे को सताएगा ही... क्योंकि जो खुद दुखी है वह दुख ही बांट सकता है। और गैर ध्यानी दुखी ही होता है।

5-ध्यान क्यों करें?

यह पूछा जा सकता है कि क्या होता है ध्यान से? आप यदि सोना बंद कर दें तो नींद आपको फिर से जिंदा करती है। उसी तरह ध्यान आपको इस विराट ब्रह्मांड के प्रति सजग करता है। वह आपके आसपास की उर्जा को बढ़ाता है ,आपकी रोशनी को बढ़ाकर आपको आपकी होने की स्थिति से अवगत कराता है। ध्यान से व्यक्ति को बेहतर समझने और देखने की शक्ति मिलती है।दूसरों की अपेक्षा आपके देखने और सोचने का दृष्टिकोण एकदम अलग होगा है।ज्यादातर लोग पशु स्तर पर ही सोचते, समझते और भाव करते हैं। लेकिन ध्यानी व्यक्ति ही सही मायने में यम और नियम को साध लेता है।इसके अलावा ध्यान ..योग का एक महत्वपूर्ण तत्व है जो तन, मन और आत्मा के बीच लयात्मक सम्बन्ध बनाता है। ध्यान के द्वारा हमारी ऊर्जा केन्द्रित होती है। ऊर्जा केन्द्रित होने से मन और शरीर में शक्ति का संचार होता है एवं आत्मिक बल बढ़ता है। ध्यान से वर्तमान को देखने और समझने में मदद मिलती है।वर्तमान में हमारे सामने जो लक्ष्य है... उसे प्राप्त करने की प्रेरणा और क्षमता भी ध्यान से प्राप्त होती है।आप मंदिर, मस्जिद, चर्च या गुरुद्वारे में वह नहीं पा सकते ...जो ध्यान आपको दे सकता है।ध्यान ही धर्म का सत्य है... बाकी सभी तर्क और दर्शन की बाते हैं; जो सत्य नहीं भी हो सकती है।सभी महान लोगों ने ध्यान से ही सब कुछ पाया है।ध्यान का नियमित अभ्यास करने से आत्मिक शक्ति बढ़ती है।आत्मिक शक्ति से मानसिक शांति की अनुभूति होती है। ध्यान से विजन पॉवर बढ़ता है तथा व्यक्ति में निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है।ध्यान से हमारा तन, मन और मस्तिष्क पूर्णत: शांति, स्वास्थ्य और प्रसन्नता का अनुभव करते हैं।

...SHIVOHAM....


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