गणपति अथर्वशीर्ष
सभी बाधाओं और मुश्किलों को दूर करने के लिए, गणपति अथर्वशीर्ष पाठ का पाठन किया जाता है। यह मार्ग वित्तीय एव सफलता के मार्ग पर बाधाओं को हल करने में काम करता है।विघ्नहर्ता मंगलकारी गणपति भगवान् के इस दिव्य पाठ से जातक को अनेक प्रकार की विघ्न-बाधाओं से मुक्ति प्राप्त होती है। अनेकों भक्तों ने श्री गणपति अथर्वशीर्ष पाठ के चमत्कार को अपने जीवन में अनुभव किया है। श्री गणपति अथर्वशीर्ष अथर्ववेद का एक लघु उपनिषद है जिसकी रचना मुख्य रूप से संस्कृत भाषा में की गयी है। श्री गणेश अथर्वशीर्ष में दस ऋचाएँ हैं, ऋषिओं के मुख से निकली संस्कृत रचनाओं को ऋचा कहा जाता है।.
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, भगवान श्री गणपति अथर्वशीर्ष मार्ग का पालन आपके वित्त पर नियंत्रण और आर्थिक रूप से अस्थिर समय को दूर करने के लिए किया जाता है। गणपति अथर्वशीर्ष भगवान गणेशजी को समर्पित सबसे प्राचीन वैदिक मंत्रो और स्तोत्रों में से एक है, जो पूजा करने वाले को समृद्धि और भौतिक लाभ प्रदान करता है।
श्री गणेश अथर्वशीर्ष पाठ विधि ;-
02 FACTS;-
1-यह मंत्र एक सुरक्षात्मक (आवरण) बनाकर भक्तों को बुरी शक्तियों से बचाने में बहुत मदद करता है।– इस मंत्र के जाप से व्यक्ति परम सुख को पा सकता है।– सभी प्रकार की बाधाओं से लोगों की रक्षा करता है – सभी विघ्नो को भगवन गणेशजी दूर करता है |यदि आप इस दिव्य पाठ का नियमित जप करते हैं, तो आप स्वयं ही इससे होने वाले लाभ की अनुभूति कर सकते हैं। किन्तु यदि आप इसका प्रतिदिन पाठ नहीं कर सकते तो प्रति बुधवार आपको पूर्ण विधि विधान से इसका पाठ करना चाहिये। सर्वप्रथम नित्यकर्म आदि से निर्वत्त होकर एक पीले आसान पर बैठ जायें। अब अपने समक्ष भगवान गणेश की एक मूर्ति या छाया चित्र पीले आसान पर विराजमान करें। अब दोनों हाथ जोड़कर गणपति बप्पा का आवाहन करें। आवाहन करने के पश्चात गणेश जी का ध्यान करें। अब भगवान गणेश को सुगन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप व नैवेद्य आदि अर्पित करें। उपरोक्त पूजन सामग्री अर्पित करने के पश्चात गणपति बप्पा को दूर्वा (दूब घास) अर्पित करें। गणपति बप्पा को अब मोदक का भोग लगायें जो कि उन्हें अति प्रिय हैं। उपरोक्त पूजनोपरान्त विघ्नहर्ता गणपति के समक्ष निर्मल मन से श्री गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। पाठ सम्पूर्ण होने के पश्चात भगवान गणेश की आरती करें।
2-श्री गणपति अथर्वशीर्ष मान्यताओं के अनुसार देवगणों में प्रथम पूज्य श्री गणेश को संकट हरने वाला माना गया है। इसलिए जो भी दुख सुख में विघ्नहर्ता गणेशजी के मंत्रों जाप करता है और पूजा करता है उसे सर्व सिद्धि प्राप्त होती है। इसलिए गणपति जी का अथर्वशीर्ष स्त्रोत का पाठ करते हुए संपूर्ण सामग्री का प्रयोग करना चाहिए। जिसमें कुछ सामग्री जैसे की सुगंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप व नैवेद्य आदि शामिल हैं इन्हे पूजन के समय अर्पण करने से गणेश भगवान प्रसन्न होते है इनके साथ ही दुर्वा भी चढ़ा सकते हैं। लाल व सिंदूरी रंग गणपति जी को बहुत प्रिय है लाल रंग के पुष्प से पूजन करें। भगवान गणेश के नाम से ॐ गं गणपतये नम: मन्त्र को का जाप करते हुए विधिवत पूजन करें। इससे घर और जीवन के अमंगल दूर होते हैं। मनुष्य में निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है। मानसिक अशान्ति से पीड़ित जातकों को भी इस दिव्य पाठ के प्रयोग से अत्यधिक लाभ मिलता है। इस पाठ के प्रयोग से जातक के मुख पर आभा का उदय होता है। गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ नकारात्मकता का नाश कर सकारात्मकता का संचार करता है। यदि आप आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं तो आपको भी यह दिव्य पाठ करना चाहिये। जिन बालकों का पढ़ाई में मन नहीं लगता उन्हें भी श्री गणपति अथर्वशीर्ष का नियमित पाठ करने से अत्यधिक लाभ प्राप्त होता है। इस वैदिक पाठ के प्रभाव से जातक को भगवान गणपति की विशेष कृपा प्राप्त होती है तथा उसे जीवन में आने वाले विभिन्न प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती है।
गणपति अथर्वशीर्ष पाठ
हरिः ॐ नमस्ते गणपतये । त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि ।
त्वमेव केवलं कर्तासि । त्वमेव केवलं धर्तासि । त्वमेव केवलं हर्तासि ।
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि । त्वं साक्षादात्मासि नित्यम् ॥ १॥
ऋतं वच्मि । सत्यं वच्मि । अव त्वं माम् । अव वक्तारम् ।
अव श्रोतारम् ॥ २॥
अव दातारम् । अव धातारम् । अवानूचानमव शिष्यम् ।
अव पश्चात्तात् । अव पुरस्तात् । अवोत्तरात्तात् । अव दक्षिणात्तात् ।
अव चोर्ध्वात्तात् । अवाधरात्तात् । सर्वतो मां पाहि पाहि समन्तात् ॥ ३॥
त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मयः । त्वमानन्दमयस्त्वं ब्रह्ममयः । त्वं
सच्चिदानन्दाद्वितीयोऽसि । त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि । त्वं ज्ञानमयो
विज्ञानमयोऽसि ॥ ४॥
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते ।सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति ।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति । सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति ।
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः ।त्वं चत्वारि वाक्पदानि ॥ ५॥
त्वं गुणत्रयातीतः । त्वं अवस्थात्रयातीतः । त्वं देहत्रयातीतः ।
त्वं कालत्रयातीतः । त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम् । त्वं
शक्तित्रयात्मकः ।त्वां योगिनो ध्यायन्ति नित्यम् । त्वं ब्रह्मा त्वं
विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वमिन्द्रस्त्वमग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं
चन्द्रमास्त्वं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम् ॥ ६॥
गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादिंस्तदनन्तरम् । अनुस्वारः परतरः ।
अर्धेन्दुलसितम् । तारेण ऋद्धम् । एतत्तव मनुस्वरूपम् । गकारः
पूर्वरूपम् । अकारो मध्यमरूपम् । अनुस्वारश्चान्त्यरूपम् ।
बिन्दुरुत्तररूपम् ंआदः सन्धानम् । संहिता सन्धिः । सैषा
गणेशविद्या । गणक ऋषिः । निचृद्गायत्री छन्दः ।
श्रीमहागणपतिर्देवता । ॐ गं गणपतये नमः ॥ ७॥
एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि ।
तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥ ८॥
एकदन्तं चतुर्हस्तं पाशमङ्कुशधारिणम् । रदं च वरदं
हस्तैर्बिभ्राणं मूषकध्वजम् । रक्तं लम्बोदरं शूर्पकर्णकं
रक्तवाससम् । रक्तगन्धानुलिप्ताङ्गं रक्तपुष्पैः सुपूजितम् ।
भक्तानुकम्पिनं देवं जगत्कारणमच्युतम् । आविर्भूतं च
सृष्ट्यादौ प्रकृतेः पुरुषात्परम् । एवं ध्यायति यो नित्यं स
योगी योगिनां वरः ॥ ९॥
नमो व्रातपतये नमो गणपतये नमः प्रमथपतये नमस्तेऽस्तु
लम्बोदराय एकदन्ताय विघ्नविनाशिने शिवसुताय श्रीवरदमूर्तये
नमः ॥ १०॥
एतदथर्वशीर्ष योऽधीते।। स: ब्रह्मभूयाय कल्पते।।
स सर्वविघ्नैर्न बाध्यते स सर्वत: सुख मेधते।। ११ ।।
सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।।
सायं प्रात: प्रयुंजानो पापोद्भवति।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति।।
धर्मार्थ काममोक्षं च विदंति।।१२ ।।
इदमथर्वशीर्षम शिष्यायन देयम।।
यो यदि मोहाददास्यति स पापीयान भवति।।
सहस्त्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत।।१३ ।।
अनेन गणपतिमभिषिंचति स वाग्मी भवति।।
चतुर्थत्यां मनश्रन्न जपति स विद्यावान् भवति।।
इत्यर्थर्वण वाक्यं।। ब्रह्माद्यारवरणं विद्यात् न विभेती
कदाचनेति।। १४ ।।
यो दूर्वां कुरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति।।
यो लाजैर्यजति स यशोवान भवति।। स: मेधावान भवति।।
यो मोदक सहस्त्रैण यजति।
स वांञ्छित फलम् वाप्नोति।।
य: साज्य समिभ्दर्भयजति, स सर्वं लभते स सर्वं लभते।।१५ ।।
अष्टो ब्राह्मणानां सम्यग्राहयित्वा सूर्यवर्चस्वी भवति।।
सूर्य गृहे महानद्यां प्रतिभासंनिधौ वा जपत्वा सिद्ध मंत्रोन् भवति।।
महाविघ्नात्प्रमुच्यते।। महादोषात्प्रमुच्यते।। महापापात् प्रमुच्यते।स सर्व विद्भवति स सर्वविद्भवति। य एवं वेद इत्युपनिषद।।१६
।। अर्थर्ववैदिय गणपत्युनिषदं समाप्त:।।
श्री गणपति अथर्वशीर्ष हिंदी अर्थ सहित
श्री गणपति अथर्वशीर्ष
ॐ नमस्ते गणपतये। त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि त्वमेव केवलं कर्ताऽ सि त्वमेव केवलं धर्ताऽसि त्वमेव केवलं हर्ताऽसि त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि त्व साक्षादात्माऽसि नित्यम्।।1।।
हिंदी अर्थ: ॐकारापति भगवान गणपति को नमस्कार है। हे गणेश! तुम्हीं प्रत्यक्ष तत्व हो। तुम्हीं केवल कर्ता हो। तुम्हीं केवल धर्ता हो। तुम्हीं केवल हर्ता हो। निश्चयपूर्वक तुम्हीं इन सब रूपों में विराजमान ब्रह्म हो। तुम साक्षात नित्य आत्मस्वरूप हो।
ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।।2।।
हिंदी अर्थ: मैं ऋत न्याययुक्त बात कहता हूं। सत्य कहता हूं।
अव त्व मां। अव वक्तारं। अव श्रोतारं। अव दातारं। अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं। अव पश्चातात। अव पुरस्तात। अवोत्तरात्तात। अव दक्षिणात्तात्। अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।। सर्वतो मां पाहि-पाहि समंतात्।।3।।
हिंदी अर्थ: हे पार्वतीनंदन! तुम मेरी (मुझ शिष्य की) रक्षा करो। वक्ता (आचार्य) की रक्षा करो। श्रोता की रक्षा करो। दाता की रक्षा करो। धाता की रक्षा करो। व्याख्या करने वाले आचार्य की रक्षा करो। शिष्य की रक्षा करो। पश्चिम से रक्षा। पूर्व से रक्षा करो। उत्तर से रक्षा करो। दक्षिण से रक्षा करो। ऊपर से रक्षा करो। नीचे से रक्षा करो। सब ओर से मेरी रक्षा करो। चारों ओर से मेरी रक्षा करो।
त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मय:। त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:। त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽषि। त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्माषि। त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽषि।।4।।
हिंदी अर्थ: तुम वाङ्मय हो, चिन्मय हो। तुम आनंदमय हो। तुम ब्रह्ममय हो। तुम सच्चिदानंद अद्वितीय हो। तुम प्रत्यक्ष ब्रह्म हो। तुम दानमय विज्ञानमय हो।
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते। सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति। सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति। सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति। त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:। त्वं चत्वारिकाकूपदानि।।5।।
हिंदी अर्थ: यह जगत तुमसे उत्पन्न होता है। यह सारा जगत तुममें लय को प्राप्त होगा। इस सारे जगत की तुममें प्रतीति हो रही है। तुम भूमि, जल, अग्नि, वायु और आकाश हो। परा, पश्चंती, बैखरी और मध्यमा वाणी के ये विभाग तुम्हीं हो।
त्वं गुणत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:। त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:। त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं। त्वं शक्तित्रयात्मक:। त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं। त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम्।।6।।
हिंदी अर्थ: तुम सत्व, रज और तम तीनों गुणों से परे हो। तुम जागृत, स्वप्न और सुषुप्ति इन तीनों अवस्थाओं से परे हो। तुम स्थूल, सूक्ष्म औ वर्तमान तीनों देहों से परे हो। तुम भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों कालों से परे हो। तुम मूलाधार चक्र में नित्य स्थित रहते हो। इच्छा, क्रिया और ज्ञान तीन प्रकार की शक्तियाँ तुम्हीं हो। तुम्हारा योगीजन नित्य ध्यान करते हैं। तुम ब्रह्मा हो, तुम विष्णु हो, तुम रुद्र हो, तुम इन्द्र हो, तुम अग्नि हो, तुम वायु हो, तुम सूर्य हो, तुम चंद्रमा हो, तुम ब्रह्म हो, भू:, र्भूव:, स्व: ये तीनों लोक तथा ॐकार वाच्य पर ब्रह्म भी तुम हो।
गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं। अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं। तारेण ऋद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं। गकार: पूर्वरूपं। अकारो मध्यमरूपं। अनुस्वारश्चान्त्यरूपं। बिन्दुरूत्तररूपं। नाद: संधानं। सँ हितासंधि: सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि: निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता। ॐ गं गणपतये नम:।।7।।
हिंदी अर्थ: गण के आदि अर्थात ‘ग्’ कर पहले उच्चारण करें। उसके बाद वर्णों के आदि अर्थात ‘अ’ उच्चारण करें। उसके बाद अनुस्वार उच्चारित होता है। इस प्रकार अर्धचंद्र से सुशोभित ‘गं’ ॐकार से अवरुद्ध होने पर तुम्हारे बीज मंत्र का स्वरूप (ॐ गं) है। गकार इसका पूर्वरूप है।बिन्दु उत्तर रूप है। नाद संधान है। संहिता संविध है। ऐसी यह गणेश विद्या है। इस महामंत्र के गणक ऋषि हैं। निचृंग्दाय छंद है श्री मद्महागणपति देवता हैं। वह महामंत्र है- ॐ गं गणपतये नम:।
एकदंताय विद्महे। वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दंती प्रचोदयात।।8।।
हिंदी अर्थ: एक दंत को हम जानते हैं। वक्रतुण्ड का हम ध्यान करते हैं। वह दन्ती (गजानन) हमें प्रेरणा प्रदान करें। यह गणेश गायत्री है।
एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्। रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्। रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्। रक्तगंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपुजितम्।। भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्। आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृते पुरुषात्परम्। एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:।।9।।
हिंदी अर्थ: एकदंत चतुर्भज चारों हाथों में पाक्ष, अंकुश, अभय और वरदान की मुद्रा धारण किए तथा मूषक चिह्न की ध्वजा लिए हुए, रक्तवर्ण लंबोदर वाले सूप जैसे बड़े-बड़े कानों वाले रक्त वस्त्रधारी शरीर प रक्त चंदन का लेप किए हुए रक्तपुष्पों से भलिभाँति पूजित। भक्त पर अनुकम्पा करने वाले देवता, जगत के कारण अच्युत, सृष्टि के आदि में आविर्भूत प्रकृति और पुरुष से परे श्रीगणेशजी का जो नित्य ध्यान करता है, वह योगी सब योगियों में श्रेष्ठ है।
नमो व्रातपतये। नमो गणपतये। नम: प्रमथपतये। नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय। विघ्ननाशिने शिवसुताय। श्रीवरदमूर्तये नमो नम:।।10।।
हिंदी अर्थ: व्रात (देव समूह) के नायक को नमस्कार। गणपति को नमस्कार। प्रथमपति (शिवजी के गणों के अधिनायक) के लिए नमस्कार। लंबोदर को, एकदंत को, शिवजी के पुत्र को तथा श्रीवरदमूर्ति को नमस्कार-नमस्कार ।।10।।
एतदथर्वशीर्ष योऽधीते। स ब्रह्मभूयाय कल्पते। स सर्व विघ्नैर्नबाध्यते। स सर्वत: सुखमेधते। स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते।।11।।
हिंदी अर्थ: यह अथर्वशीर्ष (अथर्ववेद का उपनिषद) है। इसका पाठ जो करता है, ब्रह्म को प्राप्त करने का अधिकारी हो जाता है। सब प्रकार के विघ्न उसके लिए बाधक नहीं होते। वह सब जगह सुख पाता है। वह पांचों प्रकार के महान पातकों तथा उपपातकों से मुक्त हो जाता है।
सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति। प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति। सायंप्रात: प्रयुंजानोऽपापो भवति। सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति। धर्मार्थकाममोक्षं च विंदति।।12।।
हिंदी अर्थ: सायंकाल पाठ करने वाला दिन के पापों का नाश करता है। प्रात:काल पाठ करने वाला रात्रि के पापों का नाश करता है। जो प्रात:- सायं दोनों समय इस पाठ का प्रयोग करता है वह निष्पाप हो जाता है। वह सर्वत्र विघ्नों का नाश करता है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त करता है।
इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम्। यो यदि मोहाद्दास्यति स पापीयान् भवति। सहस्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्।13।।
हिंदी अर्थ: इस गणपति अथर्वशीर्ष को जो शिष्य न हो उसे नहीं देना चाहिए। जो मोह के कारण देता है वह पातकी हो जाता है। सहस्र (हजार) बार पाठ करने से जिन-जिन कामों-कामनाओं का उच्चारण करता है, उनकी सिद्धि इसके द्वारा ही मनुष्य कर सकता है।
अनेन गणपतिमभिषिंचति स वाग्मी भवति चतुर्थ्यामनश्र्नन जपति स विद्यावान भवति। इत्यथर्वणवाक्यं। ब्रह्माद्यावरणं विद्यात् न बिभेति कदाचनेति।।14।।
हिंदी अर्थ: इस गणपति अथर्वशीर्ष द्वारा जो गणपति को स्नान कराता है, वह वक्ता बन जाता है। जो चतुर्थी तिथि को उपवास करके जपता है वह विद्यावान हो जाता है, यह अथर्व वाक्य है जो इस मंत्र के द्वारा तपश्चरण करना जानता है वह कदापि भय को प्राप्त नहीं होता।
यो दूर्वांकुरैंर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति। यो लाजैर्यजति स यशोवान भवति स मेधावान भवति। यो मोदकसहस्रेण यजति स वाञ्छित फलमवाप्रोति। य: साज्यसमिद्भिर्यजति स सर्वं लभते स सर्वं लभते।।15।।
हिंदी अर्थ: जो दूर्वांकुर के द्वारा भगवान गणपति का यजन करता है वह कुबेर के समान हो जाता है। जो लाजो (धानी-लाई) के द्वारा यजन करता है वह यशस्वी होता है, मेधावी होता है। जो सहस्र (हजार) लड्डुओं (मोदकों) द्वारा यजन करता है, वह वांछित फल को प्राप्त करता है। जो घृत के सहित समिधा से यजन करता है, वह सब कुछ प्राप्त करता है।
अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा सूर्यवर्चस्वी भवति। सूर्यग्रहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ वा जप्त्वा सिद्धमंत्रों भवति। महाविघ्नात्प्रमुच्यते। महादोषात्प्रमुच्यते। महापापात् प्रमुच्यते। स सर्वविद्भवति से सर्वविद्भवति। य एवं वेद इत्युपनिषद्।।16।।
हिंदी अर्थ: आठ ब्राह्मणों को सम्यक रीति से ग्राह कराने पर सूर्य के समान तेजस्वी होता है। सूर्य ग्रहण में महानदी में या प्रतिमा के समीप जपने से मंत्र सिद्धि होती है। वह महाविघ्न से मुक्त हो जाता है। जो इस प्रकार जानता है, वह सर्वज्ञ हो जाता है वह सर्वज्ञ हो जाता है।
॥ इति श्री गणपति अथर्वशीर्ष सम्पुर्ण ॥
..SHIVOHAM...
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