गया में करीब 975 फीट उंची प्रेतशिला पर पिंडदान करने से मृतआत्माओं को मिलती है मुक्ति
FACTS;- 1-वायुपुराण, गरुड़ पुराण और महाभारत जैसे कई ग्रंथों में गया का महत्व बताया है। कहा जाता है कि गया में श्राद्धकर्म और तर्पण के लिए प्राचीन समय में पहले विभिन्न नामों के 360 वेदियां थीं। जहां पिंडदान किया जाता था। इनमें से अब 48 ही बची हैं। वर्तमान में इन्हीं वेदियों पर लोग पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं। यहां की वेदियों में विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे और अक्षयवट पर पिंडदान करना जरूरी माना जाता है। 2-इसके अतिरिक्त वैतरणी, प्रेतशिला, सीताकुंड, नागकुंड, पांडुशिला, रामशिला, मंगलागौरी, कागबलि आदि भी पिंडदान के लिए प्रमुख है। इन्हीं वेदियों में प्रेतशिला भी मुख्य है। हिंदू संस्कारों में पंचतीर्थ वेदी में प्रेतशिला की गणना की जाती है।वायु पुराण में इस स्थान का महत्व बताया गया है।यहां अकाल मृत्यु को प्राप्त आत्माओं का होता है श्राद्ध व पिण्डदान।गया शहर से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर प्रेतशिला नाम का पर्वत है। ये गया धाम के वायव्य कोण में यानी उत्तर-पश्चिम दिशा में है। इस पर्वत की चोटी पर प्रेतशिला नाम की वेदी है, लेकिन पूरे पर्वतीय प्रदेश को प्रेतशिला के नाम से जाना जाता है। इस प्रेत पर्वत की ऊंचाई लगभग 975 फीट है। 3-जो लोग सक्षम हैं वो लगभग 400 सीढ़ियां चढ़कर प्रेतशिला नाम की वेदी पर पिंडदान के लिए जाते हैं। जो लोग वहां नहीं जा सकते वो पर्वत के नीचे ही तालाब के किनारे या शिव मंदिर में श्राद्धकर्म कर लेते हैं।वायु पुराण के अनुसार प्रेतशिला वेदी पर श्राद्ध करने से किसी कारण से अकाल मृत्यु के कारण प्रेतयोनि में भटकते प्राणियों को भी मुक्ति मिल जाती है।इस पर्वत पर पिंडदान करने से अकाल मृत्यु को प्राप्त पूर्वजों तक पिंड सीधे पहुंच जाते हैं जिनसे उन्हें कष्टदायी योनियों से मुक्ति मिल जाती है। इस पर्वत को प्रेतशिला के अलावा प्रेत पर्वत, प्रेतकला एवं प्रेतगिरि भी कहा जाता है। 4-प्रेतशिला पहाड़ी की चोटी पर एक चट्टान है। जिस पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश की मूर्ति बनी है।प्रेतशिला वेदी के पास विष्णु भगवान के चरण के निशान हैं तथा इस वेदी के पास पत्थरों में दरार है। मान्यता है कि यहां पिंड दान करने से अकाल मृत्यु को प्राप्त पूर्वजों या परिवार का कोई सदस्य तक पिंड सीधे उन्हीं तक जाता है तथा उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।श्रद्धालुओं द्वारा पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस चट्टान की परिक्रमा कर के उस पर सत्तु से बना पिंड उड़ाया जाता है।प्रेतशिला पर सत्तू से पिंडदान की पुरानी परंपरा है।इस चट्टान के चारों तरफ 5 से 9 बार परिक्रमा कर सत्तू चढ़ाने से अकाल मृत्यु में मरे पूर्वज प्रेत योनि से मुक्त हो जाते हैं। 5-प्रेतशिला के नीचे है ब्रह्मकुंड....प्रेतशिला के मूल भाग यानी पर्वत के नीचे ही ब्रह्म कुण्ड में स्नान-तर्पण के बाद श्राद्ध का विधान है। जिसके बारे में कहा जाता है कि इसका प्रथम संस्कार ब्रहमा जी द्वारा किया गया था।किवंदतियों के मुताबिक, इस पर्वत पर श्रीराम, लक्ष्मण एवं सीता भी पहुंचकर अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध किया था। कहा जाता है कि पर्वत पर ब्रह्मा के अंगूठे से खींची गई दो रेखाएं आज भी देखी जाती हैं। पिंडदानियों के कर्मकांड को पूरा करने के बाद इसी वेदी पर पिंड को अर्पित किया जाता है।पहले प्रेतशिला का नाम प्रेतपर्वत हुआ करता था, परंतु भगवान राम के यहां आकर पिंडदान करने के बाद इस स्थान का नाम प्रेतशिला हुआ। 6-इस शिला पर यमराज का मंदिर, श्रीराम दरबार (परिवार) देवालय के साथ श्राद्धकर्म सम्पन्न करने के लिए दो कक्ष बने हुए हैं।उन्होंने बताया कि पूर्वज जो मृत्यु के बाद प्रेतयोनि में प्रवेश कर जाते हैं तथा अपने ही घर में लोगों को तंग करने लगते हैं, उनका यहां पिंडदान हो जाने से उन्हें शांति मिल जाती है और वे मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं।पंचतीर्थ वेदी गया तीर्थ के उत्तर एवं दक्षिण में भी है। उत्तर के पंचतीर्थ में प्रेतशिला, ब्रह्मकुंड, रामशिला, रामकुंड और कागबलि की गणना की जाती है। 7-प्रेतशिला 876 फीट ऊंचा पुराने परतदार पर्वत पर निर्मित है। गया शहर से लगभग चार किलोमीटर दूर प्रेतशिला तक पहुंचने के लिए 873 फीट उंचे प्रेतशिला पहाड़ी के शिखर तक जाना पड़ता है। ऐसे तो सभी श्रद्धालु पिंडदान करने वाले यहां पहुंचते हैं, परंतु शारीरिक रूप से कमजोर लोगों को इतनी ऊंचाई पर वेदी के होने के कारण वहां तक पहुंचना मुश्किल होता है। उस वेदी तक पहुंचने के लिए यहां पालकी की व्यवस्था भी है, जिस पर सवार होकर शारीरिक रूप से कमजोर लोग यहां तक पहुंचते हैं।
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