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ग्यारहवां शिवसूत्र-तीनों का भोक्ता वीरेश कहलाता है।

ग्यारहवां शिवसूत्र ''तीनों का भोक्ता, वीरेश कहलाता है''।

04 FACTS;-

1-भगवान शिव कहते है ''तीनों का भोक्ता, वीरेश कहलाता है''। वीरेश का अर्थ है.... सभी नायकों का राजा, सभी योद्धाओं का राजा,वीरों में वीर , महावीर है। वीरेश भगवान शिव का एक नाम है। जाग्रत को, स्‍वप्‍न को, सुषुप्‍ति को ...तीनों का भोक्ता, तीनों से जो पृथक है। तीनों से जो अन्य है, तीनों से जो गुजरता है, तीनों को जो भोगता है, लेकिन तादात्म्य नहीं करता; जो तीनों के पार जाता है, लेकिन अपने को अन्य मानता है; तीनों से भिन्न जो है ..वही वीरेश है।तीनों का भोक्ता वीरेश कहलाता है। महावीर उन्हीं पुरुषों को कहा जाता है, जिन्होंने समाधि पा ली। महावीर उनको नहीं कहते, जिन्होंने संसार में साहस किया और सफलता के झंडे गाड़े क्योंकि संसार में कोई आखिरी मंजिल नहीं है ..अनंत विस्तार है। वीरेश , महावीर तो उसे कहते है, जिसने आत्मा को पा लिया; क्योंकि, परमात्मा से और ऊंचा और परमात्मा से और आगे कोई मंजिल नहीं है। जिसने आखिरी पा लिया, और जिसके आगे पहुंचने को अब कोई जगह न बची उसी को महावीर कहते हैं। स्वयं को पा लेने से बड़ा कोई दुस्साहस ,कोई साहसिक अभियान नहीं हैं। क्योंकि उसके मार्ग पर जितनी कठिनाइयां हैं, उतनी कठिनाइयां किसी भी मार्ग पर नहीं है। उस तक पहुंचने में सबसे ज्यादा तपश्रर्या से गुजरना पड़ता है।

2-स्वयं की यात्रा सबसे दुर्भर यात्रा है। वह खड्ग की धार है।शायद इसी कारण आत्मज्ञान की बात मन को भाती तो है, फिर भी कहीं कोई डर पकड़ लेता है।सबसे बड़ी तो कठिनाई तो यह है कि दुनिया में सब जगह तुम किसी के साथ जा सकते हो, सिर्फ एक जगह है, जहां तुम्हें अकेले जाना होगा।कोई भाई,मित्र साथ न होगा;यहां तक कि गुरु भी वहां साथ नहीं हो सकता। वह सिर्फ इशारा कर सकता है कि मंजिल कहां है।लेकिन जाना केवल तुम्हें होगा।संसार में चारों तरफ इतने लोग है, इतने सपने है ,इतना रस है। उन सबको तोड़कर, इस सब सपने के जाल को गिराकर, सत्य की यात्रा पर थोड़े से दुर्लभ लोग निकलते है। उनमें से भी बहुत बीच यात्राओं से ही वापस लौट आते हैं। लाखों में एक उस यात्रा पर जाता है; क्योंकि बड़ी कठिन है। और लाखों जाते हैं, उनमें से कोई एक पहुंच पाता है। इसलिए उस अवस्था को वीरेश कहा जाता है।तीन के पार जो चौथा तुम्हारे भीतर छिपा है, वही पहुंचना है। और पहुंचने का रास्ता यह है कि तुम जागने में और जागो।जागरण की, जलती हुई ज्वाला हो जाओ ताकि यह ज्वाला स्‍वप्‍न में प्रवेश कर जाए। स्‍वप्‍न में भी जागो ताकि स्‍वप्‍न टूट जाएं। स्‍वप्‍न में इतने जागो कि जागने की एक किरण सुषुप्‍ति में भी पहुंच जाये। बस, जिस दिन तुम सुषुप्‍ति में दीया लेकर पहुंच गये, तुमने वीरेश होने का द्वार खोल लिया। तुमने मंदिर पर पहली दस्तक दी।

3-आनंद तो अनंत है। लेकिन,संसार में प्रत्येक वस्तु की कीमत चुकानी पड़ती है।और जितना बड़ा आनंद पाना हो, उतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी।बहुत लोग सस्ते सौदे की कोशिश करते है , शार्टकट भी खोजते है लेकिन कोई भी सौदा सस्ता नहीं हो सकता। उनको शोषण करने वाले गुरु भी मिल जाते है, जो कहते हैं कि बस, इससे सब हो जाएगा कि तुम मुझ पर भरोसा रखो, यह ताबीज बांध लो; कि बस तुम दान कर दो, पुण्य कर दो, मंदिर बना दो ..इनसे कुछ हल होनेवाला नहीं है। इनसे सिर्फ तुम धोखे में पड़ते हो। यात्रा करनी ही पड़ेगी।फिर और भी सस्ते मार्ग खोजने वाले लोग हैं। कोई भांग खाकर ,गांजा पीकर सोचता है कि ज्ञान उत्‍पन्न हो गया या समाधि लग गयी। हजारों साधु ,संन्यासी इन सबका उपयोग कर रहे है। लेकिन नशे में खोने से कोई ज्ञान को उपलब्ध होता तो सारी दुनिया कभी की ज्ञानी हो गयी होती। इतना सस्ता नहीं है; लेकिन मन सस्ते की खोज करता है।

4-मन चाहता है, किसी तरह बीच का रास्ता कट जाए और हम जहां हैं, वहां से हम सीधे मोक्ष में प्रवेश कर जाएं। बीच का रास्ता नहीं कट सकता; क्योंकि इस रास्ते से गुजरने में ही तुम्हारा मोक्ष आयेगा।यह रास्ता सिर्फ रास्ता नहीं है बल्कि तुम्हारा विकास भी है और यही तकलीफ है। तुम जहां हो, वहां से मोक्ष में उतरने की कोई यात्रा नहीं हो सकती।क्योंकि यह यात्रा एक बिदु से दूसरे बिंदु की ,एक जीवन स्थिति से दूसरी जीवन स्थिति में प्रवेश है। बीच के मार्ग से गुजरना ही होगा; क्योंकि उस गुजरने में ही तुम निखरोगे, बदलोगे। उस गुजरने की पीड़ा से ही तुम्हारा विकास होगा। वह पीड़ा अनिवार्य है। उस पीड़ा से गुजरे बिना कोई वहां नहीं पहुंच सकता। और, तुमने अगर कोई संक्षिप्त रास्ता खोजा तो तुम सिर्फ अपने को धोखा दे रहे हो।कोई मंत्र को ही दोहराकर समझता हो कि सब हो गया तो वह अभी समझ के भी योग्‍य नहीं है ..पहुंचने की बात तो बहुत दूर है।मार्ग दूभर है और उस दूभर से ही गुजरना होगा। और इसीलिए सूत्र कहता है कि उद्यम चाहिए। इतना महान प्रयत्‍न करने की आकांक्षा चाहिए कि तुम अपने को पूरा दांव पर लगा दौ। अपने को पूरा दे डालोगे तो ही कीमत चुकती है और उपलब्धि प्राप्त होती है।

....SHIVOHAM.....

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