ज्ञान गंगा -01.....गुरु- शिष्य वार्तालाप
1-जीवन पर्यंत किया गया अभ्यास ...तो परमात्मा भी बाहें फैलाकर प्रतीक्षा करता है।
2- निराशा वह आशा है जो ईश्वर से भेंट कराती है।
3- संसार देता है और श्मशान भी सब कुछ खो कर देता है।
4- एकत्र करना है ;बांटना है; बांटते चलोगे ...तो एकत्र अपने आप हो जाएगा।
5- एकांत में तुम संसार में होते हो या खुद में। निर्णय तुम्हारा है। मैं तो सिर्फ मार्ग हूं ...चलना तुमको है।
6- धर्म पर चलने वाला कर्म को साध लेता है। यही उसे सार्थक बनाता है।
7- सार्थकता परमात्मा का वह प्रकाश है ...जो पूर्ण बनाता है।
8- अपने अंदर रहना सीखना ही खुद में खोना है।यह निरीक्षण भी है और परीक्षण भी...।
9- दो हंसों का जोड़ा प्रेम को दर्शाता है और इसकी शुद्धता ही परिपक्वता है।
10-हमें प्राप्त होता है...
निष्ठा से ~ एकाग्रता
आस्था से ~ रास्ता
विश्वास से ~ आनंद
समर्पण से ~ आत्मानुभूति
प्रेम से ~ अद्वैत
11- शिव का है...
आकार ~ गोल
निराकार~ शून्य
पत्नी ~ महामाया
दृष्टि ~ गोल
12- पैर आधार है...तो निराधार पहाड़ों को काटकर रास्ता बनाना है या खाई में गिरना है?
13- संकल्प दिशा है...और सही गलत तो खुद पर निर्भर है।
14- पाना है तो खोना है... परन्तु निरंतर चलते जाना है।
15- ना तुम... ना हम ... दोनों एक दूसरे में समझ गए ... तो इशारा बहुत है।
16- मौत आनी है ... ना डर ।तू उससे जीत ले हर पल को ... परमपिता परमात्मा का हो जा... तो मौत भी जीवन लगेगी।
17- माया बुरी... न ज्ञान ।मन बुरा... ना विचार। दोनों में सम हो जाओ ... तो यही है परम ज्ञान
18- दूध देखो... दूध की सफेदी देखो। मन देखो...यदि मन के कुकृत्य को देख लिया ... तो यही है ज्ञान।
19- ना खोना ...ना पाना। अस्तित्व में मिलकर परमात्मा में मिल जाना है।
20- कार्य तुम्हारा ... भार तुम्हारा ।आधार तुम्हारा समझ गए ... तो अंतर्मन का व्यापार तुम्हारा।
21- भक्त तू... भक्ति मेरी मिल गए... तो बने अनमोल।
22- यदि हृदय में तूने मुझे बिठा लिया तो...
प्रेम भी हमारा ...प्रीति भी हमारी... भाव भी हमारे... अभाव भी हमारे और मिलन भी हमारा।
23- ज्ञान को जानना... ज्ञान को पहचानना... अगर महसूस किया ...तो वह अनमोल है।
24- ना मान अपना ...ना अपमान ...भूलकर खो जाओ मुझमें ...तो वही है परमानंद।
25-जब जब तुम किसी श्रेष्ठ के प्रति समर्पण करोगी तब तब तुम्हें शिव की अनुभूति होगी।
26-जीवन को जीने के लिए जीवन की नहीं परमानंद की आवश्यकता होती है।
27-शिव का सानिध्य ही परमानंद है।
....SHIVOHAM...
BY ..Shaifali Bajpayee
हम भटकत हैं ,तुम भटकावत हो,
तुम अपने पास आवन से रोकत हो ,,
हम तुमको जान गए, तुमको पहचान गए, .
लक्ष्य को जान लिया ,तेरे प्रेम को पहचान लिया,,
तेरे सहारे तुम तक पहुंचना है,
अपने को अपने से ही मिलाना है,,
विश्वास है हमारा, भटकाव भी दूर होगा ,
जब साथ होगा तुम्हारा, मुझे किस बात की कमी होगी,,
हवा की तरह बहना है ,आग की तरह जलना है ,
पानी की तरह खेलना है, तुम ही में विलीन हो जाना है ,,
...प्रेम को आधार बनाया तो मीरा बनते देर न लगेगी..
"शिवोहम " जय शिव शम्भू
/////////////////////////////////////////////// मेरी नजरों में तेरी नजरें हो जाएं,, मेरे चित् में तेरा चित हो जाए, मेरी आत्मा तुममें विलय हो जाए,, मेरी प्रीत तेरी प्रीत से मिल जाए, तो मैं अपने मनमीत की हो जाऊं,,
"शिवोहम " जय शिव शम्भू ....SHIVOHAM...
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