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ज्ञान गंगा-11-ध्यान.....गुरु- शिष्य वार्तालाप





1.....

ऑंखें बना लो अपनी,, अब प्रेम का सरोवर,, प्रेम अश्रु मे नहाता जलधार मे मिलेगा बस एक यही तरीके से मिल जायेंगे वो प्रियतम,,

फूलों की पत्तिन के वो बीच मे जो बैठा,, महके है बनके खुशबू,, प्रियतम वही है तेरा,,

लब फूल अब बना लो, होठों पे निश्छल सी हंसी शिव के लिए सजा लो,, उस एक हंसी मे तुमको मिल जायेंगे वो प्रियतम,,,

अनाहत चक्र ध्यान,, 🙏🏾

अपनी आँखे बंद करके अपने भीतर की यात्रा पर चलो,, ब्रह्माण्ड से आयी ऊर्जा तुम्हारे सिर पर चारों ओर घूम रही है,, अनुभूति करो,, तुम्हारे ह्रदय मे बैठा हूँ मैं... तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा हूं, मेरे पास आओ,, ये ब्रह्माण्ड की ऊर्जा तुम्हारे सिर मे प्रवेश कर रही है,

तुम्हारे बालों मे मेरे बाल है देखो,,

तुम्हारी आँखों मे मेरी आंखे है देखो,

तुम्हारे माथे पे जो टीका है वो भी मेरे ही माथा है,, देखो,,

तुम्हारे मुख मे मेरा मुख है देखो, तुम्हारे होंठ मेरे ही होंठ है ध्यान से देखो,

तुम्हारे हाथ मेरे ही हाथ है, ध्यान से देखो,,

तुम्हारा ह्रदय मेरा ही ह्रदय है,, यहाँ 7 द्वार है इन्हे खोलो और मेरे पास आ जाओ भीतर आओ,, भीतर आओ मैं प्रतीक्षा कर रहा हूं भीतर आओ ..द्वार ना खुले तो तोड़ दो, मेरे पास आओ,,,

मनोमय कोष को खाली कर दो ..अपने सब दुख बाहर निकाल दो ...खाली कर दो खुद को,,

मैं और तुम चलो हम हो जाये,, मेरा और तुम्हारा ह्रदय एक हो जाये,, ह्रदय से लग जाओ मेरे और भूल जाओ खुद को तुम,,, मैं मे समा जाओ....।

2......

अष्ट विकार भस्म ध्यान ;-

1-अपने इष्ट देव से प्रार्थना करो कि तुम्हारे सभी अष्ट विकार तुम्हारे आराध्य के प्रति श्रद्धा, भक्ति, विश्वास, प्रेम, और समर्पण, मे बदल जाये,, ये प्रार्थना कर अपने सभी विकारो को इस अग्नि मे भस्म करो।अपने आराध्य को साक्षी बनाकर ये संकल्प करो कि जो भी ग्रंथियां तुमने अपने अपने बचपन से लेकर जवानी तक, जवानी के बाद इस उम्र तक जिस उम्र मे तुम हो,, तुमने निर्मित की है,, और कुछ ग्रंथिया समय और परिस्थितियों के कारण स्वयं ही निर्मित हो गयी है,, अपनी उन सभी ग्रंथियों का विसर्जन इस अग्नि मे करो...।

2-सबसे पहले मूलाधार चक्र मे आओ,, और सभी भय जो तुम्हारे भीतर है उन्हें स्वाहा करो इस अग्नि मे,,,।उसके बाद ऊपर उठो और स्वाधिष्ठान चक्र मे जाकर समस्त आत्मग्लानि को भस्म करो। जिनको भी तुमने कष्ट दिया, जिन्हे तुम्हारे कारण कष्ट मिला ..वो सब कुछ इस अग्नि मे भस्म करके भुला दो। ऊपर उठो और मणिपुर चक्र मे आओ और अपने समग्र लज्जाजनक कार्य जिनपे तुम्हे शर्म आयी है इस अग्नि मे भस्म कर दो,, और गौर से देखो नीचे का पूरा शरीर विलीन हो गया है.... इस अग्नि मे भस्म हो चुका है..।

3-ऊपर उठो.. अनाहत चक्र और विशुद्धि चक्र को छोड़ आगे बढ़ो।

4-आज्ञा चक्र की अग्नि मे अपने समस्त क्रोध, मोह और भ्रम को भस्म करो और मुक्त करो खुद को इस क्रोध से, इस मोह से, और इस भ्रम से।

5-अब तुम्हारा मुख भी विलीन हो गया है,, नीचे आओ कंठ कूप मे.. विशुद्धि मे आओ और अपने समस्त झूठ स्वाहा करो जो तुमने जानकर बोले या बोलने पड़े, सभी झूठ आज इस अग्नि मे भस्म कर दो,,।

6-और ह्रदय मे आओ,,अपने समस्त दुखो को भस्म करो।अब अंधकार मिट चुका है भीतर चलो,, शरीर का भ्रम टूट चूका है पर ह्रदय है,.. अंदर चलो देखो तुम्हारे आराध्य तुम्हारे ह्रदय मे है।अपने शेष को अपने इष्ट से एकाकर करो, मिलन करो ....मौन को साध मिलन करो।


🙏🏾

3......

🙏🏾 ध्यान🙏🏾

11-उनके विशाल अंगूठे मे प्रवेश करो.. भीतर की ओर आगे बढ़ो ,, अपने अष्ट विकारो का त्याग करो, आगे बढ़ते जाओ और एक एक कर सब कुछ पीछे छोड़ते जाओ।पहले, काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, अहंकार, ईर्ष्या, और भय, का त्याग कर दो।

उसके बाद आगे बढ़ो, फिर पांच तत्वों का त्याग कर दो।अग्नि का त्याग करो।अब जल का त्याग करो! पृथ्वी तत्व का त्याग करो।

आकाश तत्व का त्याग करो।अब अपने नाम का भी त्याग करो जो आत्मा पर अंकित होता है, तुम्हे पहचान देता है, जिससे तुम हो उस नाम को भस्म करो।मात्र आप उस अस्तित्व को साधो जो सत्य की खोज पर निकला हुआ है,, उसी रूप मे परम की ओर बढ़ो,, मिलन के लिए आगे बढ़ो।देखो तुम्हारे सामने तुम्हारा प्रेम है.. मिलन के परम सुख को समझो,, प्रवेश कर जाओ आपने प्रेम मे स्वयं शिव हो जाओ।देखो प्रभु के केश ...वो तुम्हारे भी केश हैँ,, देखो उनके नेत्रों को ...वो तुम्हारे भी नेत्र है, देखो उनके मुख को... वो तुम्हारा भी मुख है ।तुम स्वयं शिव हो रही हो। उनके हाथो को देखो, वो तुम्हारे ही हाथ है।उनके चरणों को देखो, ये तुम्हारे भी चरण है।अब उनकी कमर को देखो... ये तुम्हारी ही कमर है।उनके लिंग को देखो और स्वयं शिव लिंग हो जाओ । ऊपर आओ ...उनके ह्रदय मे जाओं और मिलन करो। पूर्ण से और पूर्ण हो जाओ। प्रेम करो और प्रेम ही हो जाओ।जाओ परम मे खो कर परम ही हो जाओ स्वयं शिव हो जाओ।

🙏🏾🙏🏾

4......

प्रेम ध्यान

अपने हृदय में प्रवेश करो। अपने आसपास देखो। तुम्हारे ह्रदय में एक पुष्प चारों ओर घूम रहा है, घूमता ही जा रहा है।

उसका प्रकाश समस्त शरीर के भीतर भरता जा रहा है।उस प्रकाश की अनुभूति करो।उस प्रकाश में समस्त संसार का प्रेम समाहित होता जा रहा है।जो तुम्हारे भीतर प्रवेश करता जा रहा है।आपके भीतर की प्रचंड ज्वाला को,ब्रम्हांड से आने वाली प्रेम की पवन शांत कर सकती है।आपके भीतर आपके ह्रदय मे, आपके पूरे शरीर मे ,प्रेम की पवन प्रवेश कर रही है।

अनुभूति करिये, आपके ह्रदय मे प्रेम की पुष्प खिल रहे है।समस्त संसार आपके ऊपर प्रेम की वर्षा कर रहा है 🙏🏾।

5......

मोमबत्ती ध्यान

तुम स्वयं एक मोमबत्ती के सामान हो तुम्हारा पूरा शरीर एक मोमबत्ती बन गया है,, ये अनुभूति करते हुए स्वयं को विसर्जित करो । अपने नाम का त्याग करो। तुम्हारे सर मे ही मोमबत्ती की लौ है, तुम्हारा सर ही प्रकाश हो गया है,,। नीचे की ओर चलो तुम्हारी गर्दन प्रकाश बन गयी है। मोमबत्ती पिघलती जा रही है,, और तुम प्रकाश बनते जा रहे हो। तुम्हारे हाथ प्रकाश बन गए है। ह्रदय भी प्रकाश के रूप मे ही बदल गया है। नाभी तक पूरा शरीर ही प्रकाशित हो गया है ।तुम पिघलते ही जा रहे हो,, नीचे जांघो तक का पूरा हिस्सा पिघल चुका है ।तुम अब सिर्फ वही तत्व बचे हो जो सत्य की खोज पर निकला है,,। अपने उस तत्व को साथ ले लो,, और मिलन करो अपने शिव से।उसी रूप मे चाहें तो लहर बन जाओ ..समंदर के संग बह जाओ । या तो हवा बन जाओ,, और सिर्फ उनमे ही खो जाओ। उनकी अनुभूति करो,, जाओ मिलन करो,,।

6......

1-मध्य रात्रि का ध्यान...प्राणों की अनुभूति....

अपने अंदर प्रवेश करो!अपने अंदर की सभी कोशिकाएं तुम्हें दिखाई देंगी।तुम्हें अपने प्राणों को ढूंढना है।प्राणों की अनुभूति करो। प्राण किस स्थान पर है? जब प्राणों की अनुभूति हो जाए तो प्राणों को खींचकर नाभि में लाओ।..मणिपुर चक्र में। नाभि से खींचते हुए प्राणों को सहस्त्रार में ले जाओ!सहस्त्रार में प्राणों को ले जाने के बाद इन प्राणों को आज्ञा चक्र में लाओ!आज्ञा चक्र से इन प्राणों का विस्तार कर दो ।दोबारा सहस्त्रार से नीचे लाकर सभी कोशिकाओं में फैलाओ और नाभि तक ले जाओ।प्राणों की अनुभूति ही तुम्हें गहरी समाधि की अवस्था में ले जाएगी ।जब प्राणों की अनुभूति कर लोगे तो आराध्य की स्वास से तुम्हारी स्वास मिल जाएगी।

2-अपने अंगों को शिथिल कर दो।महसूस करो कि तुम इस दुनिया में हो ही नहीं।अपने शरीर में पैरों की ओर से प्राणों को खींचते हुए हृदय में ले आओ!सारे शरीर से प्राणों को खींचो और हृदय में लाओ।अभी सिर से नहीं खींच पाओगी।अभी वह समय नहीं आया है।हृदय में तुम्हारे आराध्य बैठे हुए हैं।अनंत प्रेम में ...अनंत आकाश में।पवन बनकर आराध्य से एकाकार हो जाओ। अनंत गहराइयों में प्रवेश करो और योग निद्रा में जाओ।

7-शिवरात्रि का ध्यान...

आज जगदीश्वर जगदीश्वरी की रात है।साधक को किसी साधन की आवश्यकता नहीं है। उसे स्वयं के अंदर लय करना है।आज की रात्रि अपने हृदय के शिवलिंग को जागृत करो।हृदय के शिवलिंग में जल चढ़ाओ।शहद चढ़ाओ।पंचामृत चढ़ाओ!गंगा जल चढ़ाओ।बेलपत्र चढ़ाओ।फूल माला चढ़ाओ।उनके ऊपर अपने अष्ट विकार समर्पित करो। अपने सभी पाप, पुण्य समर्पित करो।अपने सभी अच्छे बुरे कर्म समर्पित करो।हम सभी भगवान से यही प्रार्थना करते हैं कि वह हमारे अष्ट विकारों को समाप्त करें, हमारे अंतर्मन में वास करें।हम सभी के प्रति प्रेम और करुणा की भावना रखें। निस्वार्थ प्रेम करें।संसार में काम करते हुए ,सभी कर्तव्य निभाते हुए केवल आपका ही चिंतन करें।हमारे अंतर्मन में आप का वास हो।भाव से चढ़ाया हुआ एक बेलपत्र भी शिवा शिवा तक पहुंच जाता है।शिवरात्रि का उपहार है स्वयं की खोज।शिवरात्रि शिवा का दिन है।परंतु वास्तव में शिवरात्रि आत्मा का परमात्मा से मिलन का दिन है। इसीलिए शिवरात्रि में अंदर जाओ और परमात्मा से मिलन करो!प्रकाश स्वरूप में अंदर ले जाओ।उसी की अनुभूति करो।प्रश्न उत्तर नहीं!अंदर जाओ और अनुभूति करो!ध्यान की उर्जा से कनेक्ट हो जाओ।तुम्हें विचित्र अनुभूति होगी। परम की खोज ,सत्य की खोज और परम सत्य की अनुभूति से एकाकार हो जाओ।सत्य तुम्हारी आत्मा है।परम पुरुष एक ही है परंतु रूप अनेक है।

8-शिवलिंग प्रकाश ध्यान

अपने हृदय के अंदर मिट्टी का शिवलिंग बनाओ।यदि पहले कभी मिट्टी का शिवलिंग नहीं बनाया है तो बनाकर अभ्यास कर लो!जब हृदय के अंदर मिट्टी का शिवलिंग बन जाए तो देखो क्या शिवलिंग से प्रकाश निकल रहा है।क्या वह प्रकाश पूरे शरीर में फैल रहा है?उसी प्रकाश में डूब जाओ और योग निद्रा में जाओ।

9-SPECIAL ...

जब कोई तुमसे अपनी बात सुनाएं तो अपने आराध्य से मिलो। जितना उनको सुनना होगा.... वह सुन लेंगे।तुम्हें जो बताना है प्रभु को बता दो। और यदि तुम्हें किसी को अपनी बात सुनानी ही है तो उस चेतना का आवाहन करो।फिर उसकी चेतना को बताओ। उस चेतना को बताओ क्योंकि वह चेतना ही तो आराध्य है।स्वयं पर विश्वास है इसीलिए यहां आती हो।शादी का अर्थ है दो आत्माओं का मिलन।आत्मा का परमात्मा से मिलन ही सच्चा पति पत्नी का रिश्ता है।जब भी कभी घर से बाहर जाओ।फोटो के पास जाकर विनती करो कि प्रभु मेरे साथ चलिए।और उसके बाद जब घर वापस आओ।1 मिनट फोटो के पास खड़ी हो जाओ।तब उनको फोटो में स्थापित कर दो।प्राणों को ऊपर चढ़ाने का प्रयास मत करो।प्रेम में प्रयास नहीं करना पड़ता है। पहले प्रेम बढ़ा लो।जब प्रेम बढ़ा लोगी तो प्राण चढ़ाना-उतारना अपने आप आ जाएगा।तुम्हारे हृदय में प्रकाश है।वह प्रकाश आत्मा का प्रकाश है।प्रकाश स्वरूप आत्माएं परमपिता शिव परमात्मा से मिलन करती है।शरीर का मिलन नहीं होता।अपने प्रकाश का विस्तार करो।उस प्रकाश की, उस ऊर्जा की अनुभूति तो हो सकती है ! परंतु उसको आंखों से देखा नहीं जा सकता।हृदय की धड़कनों को सुनो।योग निद्रा में जाओ!इसी के बाद समाधि का मार्ग प्रशस्त होगा।स्वयं को भूल जाओ।शरीर भाव से निकलो ..तो लय कर जाओगी।आराध्य से जो भी मिले..उसे स्वीकार करो! स्वीकार करने का भाव लाओ।परमात्मा जन्म से लेकर मरण तक प्रत्येक आत्मा को झूला झूलाते हैं।मन के द्वार पर तुम बैठे हुए हो।तुम्हारी इच्छा स्वतंत्र है और तुम स्वतंत्र इच्छा से ही निर्णय लेते हो।गलत सही चुनना तुम पर निर्भर करता है।

10-ओम ध्यान;-

अपने अंतर्मन की आंखों से देखो कि आकाश में एक बड़ा ओम चमक रहा है।जिससे प्रकाश ही प्रकाश निकल रहा है।

वह प्रकाश तुम्हारे अंदर प्रवेश कर रहा है।तुम स्वयं प्रकाश स्वरूप ओम बन गए हो।और इसी प्रकाश स्वरूप ओम में तुम अपने आराध्य की परिक्रमा कर रहे हो।

11-शून्य ध्यान...

शून्यता को प्राप्त होना,शिव तत्व को समझना ,शिव के समान हो जाना परम सत्य में विलीन हो जाना ही है।देखो तुम्हारे हाथ पैर सुन्न हो गए है।तुम अपने हाथ पैरों को हिला भी नहीं सकती।तुम शून्यता में प्रवेश करती जा रही हो।प्रकाश स्वरूप शिवलिंग बन गई हो।यह शिवलिंग ब्रह्मांड की शून्यता से जुड़ गया है।

12-हृदय की धड़कन ध्यान ;-

अपने हृदय की धड़कनों को सुनो।तुम्हारे हृदय की गति ..तुम्हारे आराध्य के हृदय की गति से जुड़ी है।अपने हृदय की गति को अपने आराध्य के हृदय की गति से जोड़ लो!क्या हृदय की धड़कन सुनाई दे रही है?ध्यान से सुनो क्या अपने आराध्य का नाम सुनाई दे रहा है?परन्तु यह आवाज तो अपने मन की आंखों से ही सुन सकती हो?गहराई में जाओ!

13-पूर्णमासी का चंद्रध्यान ;-

चंद्रमा की शीतलता आराध्य से होते हुए तुम्हारे अंदर प्रवेश कर रही है।तुम्हारा पूरा शरीर प्रकाशित हो गया है।

अब चंद्रमा की शीतलता हृदय में प्रवेश कर रही है।तुम्हारा हृदय शीतल हो गया है..बर्फ की तरह हो गया है।

तुम शरीर भाव से हट गए हो।तुम प्रकाश स्वरूप हो गए हो।यह प्रकाश आराध्य से एकाकार हो रहा है..उनके प्रकाशस्वरूप में परिक्रमा कर रहा है। उनके बालों से खेल रहा है, उनके हृदय से लग रहा है।तुम्हारे मन में हमेशा दर्द चला करता है। दोनों द्वंद स्वीकार करेंगे या नहीं करेंगे। अब तक रात तक पहुंच पाएंगे या नहीं पहुंच पाएंगे।

14-शिवलिंग ध्यान ;-

मन की अनंत गहराई में प्रवेश करें।देखो क्या तुम्हें शिवलिंग दिख रहा है?जब तुम्हें शिवलिंग दिखें तो स्वयं शिवलिंग

बन जाओ! जब तुम स्वयं शिवलिंग बन जाते हो तो शिव के हृदय में लय कर जाते हो।कण-कण में शिव है। जहां हो, वहीं कैलाश बना लो। फिर शिव से मिलने के लिए कैलाश जाने की जरूरत नहीं है। शिव वायु है जो सांसों में बह रहे है। शिव जल है जो रक्त में बह रहे हैं। शिव प्राण है जो प्राणशक्ति बनकर बैठे हैं।

1 5-क्रिया योग क्या है?-

स्वयं का अंत करना ही साधना का सार है;साधना का मार्ग है और साधना का त्याग है।त्याग से तात्पर्य है कि जब स्वयं का अंत कर दिया तो आत्मा परमात्मा में विलय हो गई।यही है महावतार बाबा का क्रिया योग।अधिकार मनुष्यता का स्वभाव है।मनुष्यों में विकार कभी कम होते हैं तो कभी ज्यादा।सब में शिव है और सभी शिव है।सभी में शिव भी हैं और शक्ति भी।जब शक्ति प्रसन्न होती है तो शिव प्रसन्न होते हैं।और जब शिव प्रसन्न होते हैं तो पूरा ब्रह्मांड प्रसन्न होता है;सम्मोहित होता है।ना भूतकाल में जाना है और ना ही भविष्य में।भविष्य तुम जानते नहीं।वर्तमान में रहो।भूतकाल में तुम जिनसे भी नाराज हुए हो;उसी समय कल्पना में जाकर उसके कार्यों के लिए उसे माफ करके अपने कार्यों के लिए माफी मांग लो।पैर पकड़ कर माफी मांगनी है।जब तुम किसी को माफ कर देते हो और पैर पकड़ कर माफी मांग लेते हो तो उस चक्र से बाहर निकल आते हो।किसी व्यक्ति ने जो किया है उसका कर्म फल तो उसे ईश्वर देंगे ही!प्रकृति ही देती है और प्रकृति ही लेती है।एक दिन जब उस व्यक्ति की यात्रा पूरी होने का समय आएगा तो वह व्यक्ति भी तुमसे माफी मांगेगा।जैसे ही तुमने ऐसा किया.. तुम्हारी नकारात्मकता समाप्त हो जाएगी।तुम्हारा मन शुद्ध हो जाएगा और स्वयं का अंत हो जाएगा।जब तुम अपने पुत्र और पुत्रवधू में स्वयं को देखने लगो!यहां तक कि एक वृक्ष में भी स्वयं को देखने लगो ..तो समझ लेना स्वयं का अंत हो गया। और आत्मा परमात्मा से एकाकार होने का समय आ गया।यही है क्रिया योग की विधि।


....SHIVOHAM....

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