ज्ञान गंगा-12.....गुरु- शिष्य वार्तालाप
1......
1-स्वयं की खोज और परम को पाने की इच्छा। एकाकार हो गई है।जिस पर शिव की कृपा होती है उसको शक्ति कृपा अपने आप मिल जाती है।परंतु शिव की कृपा पाना सरल नहीं है।शिव की कृपा उसी को प्राप्त होती है।जिसके अष्टविकार समाप्त हो जाते हैं और जो निस्वार्थ होता है।
2-शिवरात्रि में शिव और शिवा मल्लिकार्जुन जाते हैं क्योंकि यही कार्तिकेय की इच्छा है।मल्लिकार्जुन ऐसा ज्योतिर्लिंग है जहां कार्तिकेय भी विराजमान है।
3- अगर दिन में ठंडाई पी ली तो करोगी कुछ और होगा कुछ? इसीलिए रात में ध्यान के बीच में पियो!इस प्रकार दिन में जीवन जिओगी और रात में संजीवनी प्राप्त करोगी। क्या गहराई में जाना अनुभूति नहीं है? कुछ तुम्हें याद है, कुछ तुम्हें याद नहीं है।और अनुभूति की यह चिंता क्यों की?अनुभूति होगी या नहीं?इसका ध्यान नहीं रखना है।जो स्वयं की खोज करते हैं वही ठंडाई ले सकते हैं।जो स्वयं को नहीं जानता वह ठंडाई को कैसे संभाल पाएगा ?स्वयं की खोज में तो ठंडाई से सैकड़ों गुना नशा है।दिन में महादेव देखो! राधा कृष्ण देखो! बस जुड़े रहो!अंदर से जुड़े रहो।जब समय मिले तो अंदर चले जाओ।कल की प्रसन्नता बहुत है।
4-जिस तरह से नंदी को शिव को अपलक देखने का शुभ प्राप्त है। उसी प्रकार से प्रत्येक साधक को अपने हृदय में लय होने का सुख प्राप्त है।नंदी अपलक निहारते हैं और स्थिर रहते हैं। परंतु अन्य भक्त हमेशा स्थिर नहीं रह पाते।
वे विचलित हो जाते हैं।
5-आज जगदीश्वर जगदीश्वरी की रात है।साधक को किसी साधन की आवश्यकता नहीं है। उसे स्वयं के अंदर लय करना है।आज की रात्रि अपने हृदय के शिवलिंग को जागृत करो।हृदय के शिवलिंग में जल चढ़ाओ।शहद चढ़ाओ।पंचामृत चढ़ाओ!गंगा जल चढ़ाओ।बेलपत्र चढ़ाओ।फूल माला चढ़ाओ।उनके ऊपर अपने अष्ट विकार समर्पित करो। अपने सभी पाप, पुण्य समर्पित करो।अपने सभी अच्छे बुरे कर्म समर्पित करो।हम सभी भगवान से यही प्रार्थना करते हैं कि वह हमारे अष्ट विकारों को समाप्त करें, हमारे अंतर्मन में वास करें।हम सभी के प्रति प्रेम और करुणा की भावना रखें। निस्वार्थ प्रेम करें।संसार में काम करते हुए ,सभी कर्तव्य निभाते हुए केवल आपका ही चिंतन करें।हमारे अंतर्मन में आप का वास हो।भाव से चढ़ाया हुआ एक बेलपत्र भी शिवा शिवा तक पहुंच जाता है।शिवरात्रि का उपहार है स्वयं की खोज।
6-माताजी जैसे गणेश कार्तिकेय को प्रेम करती हैं। उसी प्रकार अपनी संसार की सभी संतानों को प्रेम करती हैं।आज जगदीश्वर जगदीश्वरी की रात है।आज की रात अगर भयभीत नहीं हुई तो भय खत्म हो जाएगा। ।
7-शिवरात्रि के दूसरे दिन शिव - शक्ति सभी शक्तिपीठों पर जाते हैं।पूर्णागिरि में शेर भी पूजा करने आता है और वासुकी भी पूजा करने आते हैं।सभी शक्तिपीठों की रक्तबीज जैसे लोगों से रक्षा करनी पड़ती है।तुम लोग यहां पर जल्दी ही आओगी। समय के साथ साथ समस्याओं का समाधान हो जाता है।शक्तिपीठों में इतनी कठिनाई इसलिए होती है ताकि व्यक्ति शरीर भाव को भूल जाए और आत्म तत्व में चला जाए।प्रत्येक शक्तिपीठ में भोलेनाथ जरूर है।वे देवी को कभी अकेला नहीं छोड़ते।
8-संसार में दिमाग से खेलो और अध्यात्म में दिल से खेलो।जो हो रहा है सबमें मैं हूं।मेरी इच्छा के बिना एक पत्ता भी नहीं मिलता।यही दृष्टिकोण बना लो और बस देखो!इस दृष्टि से तुम विचलित नहीं होगी।मन को स्थिर करो।सब समर्पित कर दो।बालों में घर बना लो।खो जाओ!गहराई में चली जाओ।
9-शिवरात्रि का वास्तविक अर्थ तुमने अब समझा है।किसी को आगे बढ़ाया जा रहा है ...इसलिए विचलित मत हो। इस संसार में विचलित करने वाले बहुत हैं। स्थिर करने वाले बहुत कम!स्थिर होने का प्रयास करो ।भक्तों के पास जिसकी कमी होती है,वह वही रिश्ता आराध्य में देखता है।
2......
1-विश्वास और कृतज्ञता बनाए रखो।आराध्य सभी के हैं।उनका निजीकरण नहीं है।अगर एक क्षण के लिए भी मन में दुविधा आई तो यह विश्वास टूटना ही तो है।और विश्वास टूटा ,,, इसका अर्थ कृतज्ञता नहीं है।एक क्षण में तो जाने क्या क्या हो जाता है? मैं किसी को नहीं छोड़ता। लोग मुझे छोड़ कर चले जाते हैं।जो हुआ वह अच्छा हुआ।जो हो रहा है ..वह अच्छा हो रहा है। और जो होगा वह भी अच्छा होगा।सब कुछ आराध्य की इच्छा से होता है।बस यही दृष्टिकोण रखो!
2-श्री कृष्ण मेरे आराध्य है,उनको क्या क्या कहा? स्वयं पर विश्वास करो करो क्योंकि स्वयं में आराध्य शामिल है।दिल को जलाओ नहीं।बल्कि दिल को पिघलाओ!अगर फिर भी परेशान करें तो लिख देना कि उस समय का इंतजार करो।जब वह समय आएगा;तब बात होगी।तुम्हारे मन में आराध्य बसते हैं।तो क्या तुम्हारे मन की बात उनके मन की बात नहीं है?
3-विश्वास हो तो जीसस क्राइस्ट जैसा।जो इतनी वेदना के समय भी नहीं टूटा। विश्वास सीखना है तो जीसस क्राइस्ट से सीखो! इतनी वेदना के समय भी उन्होंने अपना विश्वास नहीं तोड़ा !अंततः शिव को वहां खड़ा होना पड़ा।जीसस क्राइस्ट सभी के प्रति प्रेम और करुणा के भाव रखते थे।उनके हृदय में भी शिवलिंग का वास है।क्रॉस का अर्थ है कि आत्मा परमात्मा दोनों हाथ फैलाए हुए हैं ।
4-इस तरीके की व्यथित आत्माएं तुमको व्यथित करने का प्रयास करेंगे।इस संसार में सबका लेना-देना है।सबको अपने कर्मों का फल भुगतना पड़ता है। आगे की यात्रा में इस तरह की बहुत सी आत्माएं मिलेंगे।इसलिए व्यथित नहीं होना आगे बढ़ जाना। जिस तरह से खेत में फूट की सुगंध फैल जाती है।उसी तरह से आत्माओं की सुगंध फैल जाती है।
5-हर भक्त का अपने हृदय के शिवलिंग पर निजीकरण है। तो जब तक अपने शिवलिंग में विलय नहीं हो जाता।
कैलाश पति की सहायता लो।इन 2 दिनों में किस का विस्तार हुआ?विश्वास का विस्तार हुआ। या निजी करण का विस्तार हुआ?
यदि कोई तुम्हें अपने विचार दे रहा है...चाहे वह पति हो ;संतान हो! मित्र हो ; तो इसका अर्थ है कि वह तुम्हारा निजी करण कर रहा है।
6-तंत्र में इतनी शक्ति है कि सूर्य के तेज को भी निस्तेज कर दे। तंत्र का इस्तेमाल केवल आत्मा को जानने के लिए करना चाहिए। लोक कल्याण के लिए तंत्र की आवश्यकता नहीं पड़ती।लोक कल्याण तो किया जाता है।गंगा लोक कल्याण कर रही है।तंत्र का इंतजार नहीं किया उन्होंने!देवी को भगवान ने तंत्र सिखाया।उन्होंने अपनी आत्मा को उनसे मिलाया।और फिर देवी ने लोक कल्याण किया।लोक कल्याण के लिए देवी ने कभी भी तंत्र का इस्तेमाल नहीं किया।
7-जब कोई तुमने अपनी बात सुनाएं तोअपने आराध्य से मिलो। जितना उनको सुनना होगा वह सुन लेंगे।तुम्हें जो बताना है प्रभु को बता दो। और यदि तुम्हें किसी को अपनी बात सुनानी ही है तो उस चेतना का आवाहन करो।फिर उसकी चेतना को बताओ। उस चेतना को बताओ क्योंकि वह चेतना ही तो आराध्य है।स्वयं पर विश्वास है इसीलिए यहां आती हो।जिस दिन यहां पर विश्वास करना छोड़ दिया।उस दिन से यहां आ भी नहीं पाओगे।
शादी का अर्थ है दो आत्माओं का मिलन।आत्मा का परमात्मा से मिलन ही सच्चा पति पत्नी का रिश्ता है।
8-मित्र वही है जो बुरे समय में खड़ा हो ।जो तुम्हारी सहायता करें। तुम्हारा ध्यान रखें।संसार में अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के लोग हैं। तुम्हें सीखना है कैसे दोनों के मध्य में संतुलन बनाएं। दोनों के साथ में संतुलन बनाना है।
2-श्री कृष्ण मेरे आराध्य है,उनको क्या क्या कहा? स्वयं पर विश्वास करो करो क्योंकि स्वयं में आराध्य शामिल है।दिल को जलाओ नहीं।बल्कि दिल को पिघलाओ!अगर फिर भी परेशान करें तो लिख देना कि उस समय का इंतजार करो।जब वह समय आएगा;तब बात होगी।तुम्हारे मन में आराध्य बसते हैं।तो क्या तुम्हारे मन की बात उनके मन की बात नहीं है?
3-विश्वास हो तो जीसस क्राइस्ट जैसा।जो इतनी भेजना के समय भी नहीं टूटा। विश्वास सीखना है तो जीसस क्राइस्ट से सीखो! इतनी वेदना के समय भी उन्होंने अपना विश्वास नहीं तोड़ा !अंततः शिव को वहां खड़ा होना पड़ा।जीसस क्राइस्ट सभी के प्रति प्रेम और करुणा के भाव रखते थे।उनके हृदय में भी शिवलिंग का वास है।क्रॉस का अर्थ है कि आत्मा परमात्मा दोनों हाथ फैलाए हुए हैं ।
4-इस तरीके की व्यथित आत्माएं तुमको व्यथित करने का प्रयास करेंगे।इस संसार में सबका लेना-देना है।सबको अपने कर्मों का फल भुगतना पड़ता है। आगे की यात्रा में इस तरह की बहुत सी आत्माएं मिलेंगे।इसलिए व्यथित नहीं होना आगे बढ़ जाना। जिस तरह से खेत में फूट की सुगंध फैल जाती है।उसी तरह से आत्माओं की सुगंध फैल जाती है।
5-हर भक्त का अपने हृदय के शिवलिंग पर निजीकरण है। तो जब तक अपने शिवलिंग में विलय नहीं हो जाता।
कैलाश पति की सहायता लो।इन 2 दिनों में किस का विस्तार हुआ?विश्वास का विस्तार हुआ। या निजी करण का विस्तार हुआ?
यदि कोई तुम्हें अपने विचार दे रहा है...चाहे वह पति हो ;संतान हो! मित्र हो ; तो इसका अर्थ है कि वह तुम्हारा निजी करण कर रहा है।
6-तंत्र में इतनी शक्ति है कि सूर्य के तेज को भी निस्तेज कर दे। तंत्र का इस्तेमाल केवल आत्मा को जानने के लिए करना चाहिए। लोक कल्याण के लिए तंत्र की आवश्यकता नहीं पड़ती।लोक कल्याण तो किया जाता है।गंगा लोक कल्याण कर रही है।तंत्र का इंतजार नहीं किया उन्होंने!देवी को भगवान ने तंत्र सिखाया।उन्होंने अपनी आत्मा को उनसे मिलाया।और फिर देवी ने लोक कल्याण किया।लोक कल्याण के लिए देवी ने कभी भी तंत्र का इस्तेमाल नहीं किया।
7-जब कोई तुमने अपनी बात सुनाएं तोअपने आराध्य से मिलो। जितना उनको सुनना होगा वह सुन लेंगे।तुम्हें जो बताना है प्रभु को बता दो। और यदि तुम्हें किसी को अपनी बात सुनानी ही है तो उस चेतना का आवाहन करो।फिर उसकी चेतना को बताओ। उस चेतना को बताओ क्योंकि वह चेतना ही तो आराध्य है।स्वयं पर विश्वास है इसीलिए यहां आती हो।जिस दिन यहां पर विश्वास करना छोड़ दिया।उस दिन से यहां आ भी नहीं पाओगे।
शादी का अर्थ है दो आत्माओं का मिलन।आत्मा का परमात्मा से मिलन ही सच्चा पति पत्नी का रिश्ता है।
8-मित्र वही है जो बुरे समय में खड़ा हो ।जो तुम्हारी सहायता करें ... तुम्हारा ध्यान रखें।संसार में अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के लोग हैं। तुम्हें सीखना है कैसे दोनों के मध्य में संतुलन बनाएं। दोनों के साथ में संतुलन बनाना है।
9-तंत्र एक शुद्ध विद्या है।इसमें मन का शुद्धिकरण आवश्यक है।काला जादू, पिशाच विद्या... यह सब अलग है। इनका तंत्र से कोई लेना देना नहीं है।लोग तंत्र को गलत समझते हैं।वास्तव में तंत्र की परिभाषा ही नहीं जानते।तंत्र को पिशाच विद्या और काला जादू से जोड़ देते हैं।इस संसार में सब का लेना देना हैं।अगर किसी के साथ गलत करोगे तो तुम्हारे साथ भी गलत ही होगा।
10-जो भी साधना की पूर्णता प्राप्त कर लेता है।वह शिव स्वरूप ही हो जाता है।रात्रि में शिथिलता आवश्यक है।दिमाग मत चलाओ। स्वास प्रस्वास पर ध्यान दो।तुम्हें मुक्ति का मार्ग ही तो प्रशस्त किया गया है।
11-प्रेम और भक्ति में कुछ कहना ही पड़े। तो वह प्रेम और भक्ति कहां है? जीवन में संघर्ष बहुत है...कांटे बहुत हैं।मैं तुम्हारा हाथ पकड़े हुए हूं ।तुम्हें कांटे भी फूल लगेंगे।बस केवल ध्यान ये रखना है कि लक्ष्य के प्रति एकाग्रता ना भंग हो।इस प्रकाश को अपने अंदर समा लो! जितना जितना इस प्रकाश को अंदर- अंदर समाती जाओगी ...उतना ही उतना सत्य की खोज बढ़ती जाएगी।
12-यदि अमृत पीना है तो पहले जहर पीना पड़ेगा।मीरा को जहर दिया गया और मीरा का शरीर काला पड़ गया।श्री कृष्ण मूर्ति से बाहर निकले और उनका जहर निकाला।मीरा ने कहा कि प्रभु इसी बहाने आपके पास आ जाते। उन्होंने कहा अभी समय नहीं आया।अमृत पाने के लिए जहर पीना पड़ता है।
13-जब पाप बहुत ज्यादा बढ़ जाता है तो उस समय धर्मात्मा लोग नीचे गिर जाते हैं । यह आने वाले समय की सूचना है।
भगवान शिव केवल दृष्टा रहेंगे।उनके सारे भक्त उनके चरणों में आकर चिपक जाएंगे।भक्त प्रभु के चरणों में ही शरण पाते हैं।
14-जब गुरु को कुछ मिलता है तो अगर शिष्य के अंदर श्रद्धा होती है तो उसे अपने आप ही प्राप्त हो जाता है।तुम्हारा दूसरा शिष्य समय की मार में फंसा है।जब किसी को गुरु बनाया जाता है। तो उससे अशिष्ट व्यवहार नहीं किया जाता।
जो अपने गुरु से श्रद्धा पूर्ण व्यवहार करता है तो उससे मेरे आराध्य भी प्रसन्न होते हैं।और फिर जिसे अच्छा गुरु मिल जाए।
उसे तो बहुत ही ध्यान रखना चाहिए।गुरु की आज्ञा शिष्य को माननी चाहिए।गुरु अगर शिष्य को ..कहे खड़े रहो।तो फिर खड़े रहो! गुरु को तो मेंटल टार्चर सहना ही पड़ता है।महादेव देख रही हो? तो शुक्राचार्य को भी तो देखा होगा।वह भी तो अपने शिष्य को आगे बढ़ाने का खूब प्रयास करते हैं।और उन्हें खूब मेंटल टार्चर सहना पड़ता है।बस केवल अपने भाव मत खराब करना।जिस प्रकार से माता अपनी संतान से नाराज होती है।परंतु संतान के प्रति भाव खराब नहीं करती।उसी प्रकार तुम्हें भी ध्यान रखना है।
15-जब भी कभी घर से बाहर जाओ।फोटो के पास जाकर विनती करो कि प्रभु मेरे साथ चलिए।और उसके बाद जब घर वापस आओ।1 मिनट फोटो के पास खड़ी हो जाओ।तब उनको फोटो में स्थापित कर दो।प्राणों को ऊपर चढ़ाने का प्रयास मत करो।प्रेम में प्रयास नहीं करना पड़ता है। पहले प्रेम बढ़ा लो।जब प्रेम बढ़ा लोगी तो प्राण चढ़ाना-उतारना अपने आप आ जाएगा।क्या भुवनेश्वर जाने का विश्वास नहीं है?बहुत जल्द ही भुवनेश्वर जाओगे।
3......
1-जीवन के उतार-चढ़ाव से व्याकुल मत हो। तुम्हारे हृदय में प्रकाश है।वह प्रकाश आत्मा का प्रकाश है।
प्रकाश स्वरूप आत्माएं परमपिता शिव परमात्मा से मिलन करती है।शरीर का मिलन नहीं होता।अपने प्रकाश का विस्तार करो।उस प्रकाश की, उस ऊर्जा की अनुभूति तो हो सकती है ! परंतु उसको आंखों से देखा नहीं जा सकता।हृदय की धड़कनों को सुनो।योग निद्रा में जाओ!इसी के बाद समाधि का मार्ग प्रशस्त होगा।स्वयं को भूल जाओ।शरीर भाव से निकलो।तो लय कर जाओगी।
2- सूर्य और चंद्र प्रत्यक्ष देवता हैं। सूर्य अपनी तपन से ,चंद्रमा अपनी शीतलत से और अग्नि अपनी दाहकता से अपनी उपस्थिति का अनुभव करा देते हैं।
3-उतार-चढ़ाव अभी होता रहता है।विश्वास ,समर्पण और प्रेम एक कड़ी है। जब विश्वास बढ़ता है तो समर्पण आता है और जब समर्पण आता है तो प्रेम पूर्णता को प्राप्त करता है। प्रेम का अर्थ है आनंद! परमानंद।
4-तुम्हारी एक शिष्या रोज मुझ से प्रार्थना करती है।इनके साथ चार धाम यात्रा करूं।मेरी इच्छा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता।व्यवस्था और परिस्थितियां बदल रही है।
5-कुछ पाना चाहते हो या खोना चाहते हो? स्वयं से प्रश्न करो।उत्तर खुद मिल जाएगा।मस्तिष्क को आदेश दो। विचार करना बंद कर दे। तुम्हारा कुछ नहीं!सब कुछ आराध्य का है। तुम नहीं हो।केवल आराध्य है।जो हो रहा है वह आराध्य है।जो है ...वह भी आराध्य है। जो मेरे पास नहीं है ..वह भी मेरे आराध्य ही है।आराध्य ही नाव चलाते हैं और नाव डुबोते भी हैं।यह शरीर तुम्हारा नहीं है।तुम आराध्य के अंदर हो।तुम्हारे चारों ओर जो कुछ भी है।सब आराध्य का है।जब शरीर ही तुम्हारा नहीं तो उसके सुख दुख भी तुम्हारे नहीं।सब आराध्य के हैं।प्रत्येक संबंध मेरे आराध्य से ही है।कोई संबंध बन रहा है, कोई संबंध टूट रहा है। सब आराध्य ही आराध्य हैं।
6-लक्ष्य को पाना नहीं है लक्ष्य मे खो जाना है।और जो लक्ष्य है उसके आसपास बहुत कुछ चल रहा होता है।
उस पर ध्यान मत दो।जो कुछ भी होता है, आराध्य की इच्छा से ही होता है।अगर मैसेज आते हैं तो वह भी उन्हीं की इच्छा से आते हैं।देखना यह है कि वह तुम्हें विचलित करते हैं या नहीं?तुम्हें विचलित नहीं होना है। स्वयं पर विश्वास नहीं खोना है।
पूरे ब्रह्मांड के प्रति निस्वार्थ प्रेम रखो।किसी के प्रति भाव खराब मत करो।जैसे-जैसे साधना में आगे बढ़ोगी।वैसे वैसे बहुत कुछ छूटता चला जाएगा।
7-जब स्वयं से दूर होती हो तो विचार परेशान करते हैं।स्वयं से दूर मत रहो! यह यात्रा स्वयं को पाने की है।स्वयं में खो जाने की है।अगर उलझन को सुलझा लिया तो समस्या का समाधान तो हो गया।शिव तो सर्वत्र हैं।स्वयं पर विश्वास रखो! स्वयं को ही तो पाना है।
8-होली में विवाद है। देवता कहते कि होली मेरी है और असुर कहते हैं..होली मेरी! प्रभु कहते हैं। होली प्रसन्नता की है।
देवताओं और असुरों में एक ही अंतर तो है।देवता सबके लिए सोचते हैं और असुर अपने स्वार्थ के लिए सोचते हैं।प्रकृति तो सर्वत्र है।देवताओं और दानवों को ... सभी को भोजन उपलब्ध है।जैसे-जैसे प्रकाश अंदर भरता जाएगा।शिवत्व बढ़ता जाएगा ...वैसे-वैसे साक्षात्कार का समय आ जाएगा।
9-स्वयं से कोई बात गुप्त मत रखना।मुझे सब पता भी है और नहीं भी पता है।याद नहीं रख पाई हो...जैसे-जैसे शिवत्व बढ़ता जाएगा।वैसे वैसे सब भूलती जाओगी।प्रसन्नता ही स्त्रोत है।अपने स्थान को ग्रहण करो!
10-जीवन के संघर्ष देखकर देखकर हम विचलित हो जाते हैं। उस विचलित होने से कुछ अंधकार में चले जाते हैं या कुछ गलत रास्ता पकड़ लेते हैं।यह केवल सौभाग्य की बात है कि शाश्वत प्रेम दिखलाया जा रहा है।आराध्य इस संसार में शाश्वत प्रेम सिखाने आए थे ना की सांसारिक प्रेम!श्री कृष्णा संसार को शाश्वत प्रेम सिखाने आए थे! राधे रानी से उनका मिलन तो पहले से ही था।सांसारिक प्रेम तो मोह में ही फंसा रहता है।जो मोह से उठकर आत्मा से आत्मा का मिलन करते हैं वे जोड़े इस संसार में या तो आधे अधूरे हो जाते हैं या संसार से चले जाते हैं। उदाहरण के लिए तुम स्वयं।टेबलेट खाने से पहले तुमने सब कुछ अपनी माता को सौंप दिया था। तो तुम्हारी माता को स्वयं आना पड़ा।क्या यह अनुभूति तुम्हें है ? यह तो प्रेम की पराकाष्ठा थी।और इसी प्रेम की पराकाष्ठा से तुम्हारे लिए शाश्वत प्रेम का मार्ग खुल गया।जो होता है आराध्य की इच्छा से होता है।और आराध्यकभी गलत नहीं करते।दुनिया के कहने का दुख क्यों है?दुनिया तो प्रेम को नौटंकी ही कहती है।बिना अष्ट विकार को दूर किए कोई भी शाश्वत प्रेम को नहीं पा सकता। कुछ कारण ही होगा जो कि इस तरह की चीजें सबके सामने आ रही है।
11-शिवलिंग का क्या अर्थ है?शिव शक्ति एक साथ हैं।स्वयं की यात्रा करो!पर स्त्री.. पर पुरुष सब कुछ इस संसार में होता है.. उस संसार में नहीं।सृजन के लिए प्रकृति चाहिए। इस संसार में भी और उस संसार में भी।वहां प्रकृति सभी के साथ है।परंतु प्रकृति का सम्मान है ..जो इस संसार में नहीं।प्रकृति जो निर्णय लेती है ;उसमें पुरुष को साथ देना पड़ता है।इस संसार में ऐसा नहीं होता।जो लोग इस संसार में स्त्रियों को शिवलिंग छूने से मना करते हैं..वह मूर्ख है।अभी उनकी यात्रा ही नहीं शुरू हुई है।
12-शिव ही नारायण है और नारायण ही शिव है।भेद केवल दृष्टि का है।वैष्णो पद्धति और शैव पद्धति दोनों इसलिए बनाई गई है कि जो जहां पर हो ...वहां से यात्रा शुरू कर दे।शरीर कभी शुद्ध नहीं हो सकता।मन को शुद्ध करना होता है।शरीर की अशुद्धता मन में आ जाती है।
13-खुद को खुद में समर्पित कर दो।चिंतन और मनन केवल 3 शब्दों में ही करना है...विश्वास, समर्पण, प्रेम।एक बढ़ेगा तो दूसरा अपने आप बढ़ जाएगा।तीनों एक दूसरे से जुड़े हैं।स्वयं को अलग नहीं कर पाई हो इसीलिए प्रश्न है। प्रश्न शरीर भाव से तो ही जुड़े होते हैं।
14-आराध्य से जो भी मिले..उसे स्वीकार करो! स्वीकार करने का भाव लाओ।परमात्मा जन्म से लेकर मरण तक प्रत्येक आत्मा को झूला झूलाते हैं।मन के द्वार पर तुम बैठे हुए हो।तुम्हारी इच्छा स्वतंत्र है और तुम स्वतंत्र इच्छा से ही निर्णय लेते हो।गलत सही चुनना तुम पर निर्भर करता है।
....SHIVOHAM...
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