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ज्ञान गंगा-13.....गुरु- शिष्य वार्तालाप



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1-जिस दिन पूर्णता को प्राप्त हो जाऊंगी ..उस दिन किसी जप की आवश्यकता नहीं होगी। जिस तरह आपको अपने आराध्य के नाम जप से प्रसन्नता होती है।उसी तरह मुझे भी अपने आराध्य के जप से अति प्रसन्नता होती है।जो यहां शरणागत होता है वह कभी खाली नहीं जाता।

2-जो करवाया गया वह भी आराध्य थे! जो होगा वह भी आराध्य है।सत्य से सारे रिश्ते बना लो।रिश्तो में जिम्मेदारियों को मत स्वीकार करो, सब अपने आराध्य को सौंप दो।इस प्रकाश को सहस्त्रार से आज्ञा चक्र में लाओ। आज्ञा चक्र से विशुद्धि चक्र में लाओ।विशुद्धि चक्र से हृदय में लाओ।हृदय चक्र से उस प्रकाश को पूरे शरीर में विस्तार कर दो।जो हो रहा है केवल उसको देखो। तुम किसी को समझा नहीं सकती। केवल स्वयं समझ सकती हो।साधना में स्थिरता बहुत आवश्यक है।विश्वास को बनाए रखो।रिश्तो में धैर्य और सहनशीलता से अपने कर्तव्य निभाओ।जब ईश्वर ने तुम्हें दिया है तो सहायता करो! यह सोचकर सहायता करो कि उसमें भी मेरे आराध्य है।यदि सहायता करना चाहती हो तो ईश्वर का नाम लेकर काम करो।सब कार्य पूर्ण हो जाएंगे।

3-सत्तर का अर्थ अथार्त पूर्णता की यात्रा।70 को उल्टा कर दो ...शिवलिंग बन जाएगा।शून्यता की यात्रा करनी है।ईश्वर कहां नहीं है?हर जगह तुम्हें दर्शन होंगे।

4-इस संसार में जाने अनजाने सभी अपराधों का दंड भुगतना पड़ता है।बलि देना प्रकृति को परेशान करना है..अन्याय है।इसका दर्द तो भुगतना ही पड़ेगा।हां, यह बात अलग है कि सभी पशु पक्षियों के लिए आहार की प्रक्रिया बनाई गई है। लेकिन मनुष्य का आहार तो यह नहीं है।जो मनुष्य जीव हत्या कर रहा है उसे दंड तो भुगतना ही पड़ेगा।अगर मुस्लिम में बलि का प्रावधान है। तो यह प्रावधान ईश्वर ने नहीं मनुष्य ने बनाया है।अगर कर्म खराब किए हैं तो इससे स्वयं ईश्वर भी नहीं बचा सकता !नियति सभी को दंड देती है।कोई भी कर्मों के परिणाम से नहीं बच सकता।किसी भी जीव के प्राणों की रक्षा उसी प्रकार करो ..जिस प्रकार अपने प्राणों की करते हो।अगर तुमने एक चींटी को मारा और एक चींटी को बचाया। तो दोनों का कर्म परिणाम है।यदि एक चींटी को मारा है तो तुम्हें भी कांटा चुभ जाएगा।तो क्या तुम्हें कष्ट नहीं होगा?कभी कांटा चुभता है,तो कभी ठोकर लगती है, कभी हड्डी टूटती है।तुम्हारे कर्मों के परिणाम ही तुम्हारे सामने इस प्रकार से आते हैं।कोई अगर मछुआरा बना है तो यह उसके कर्म दंड है।और अगर कोई मछली बना है। तो यह भी उसके कर्म है।जब सत्य की खोज प्रारंभ होती है तो व्यक्ति को इन सब चीजों से निकाला जाता है।यदि ईश्वर के प्रति विश्वास है तो जब जाने अनजाने किए गए अपराधों का दंड मिलना प्रारंभ होगा। तो ईश्वर तुम्हें निकाल लेगा। लेकिन यदि विश्वास है तो....? ना गलती की है ना होने वाली है।बस इस बात को दिमाग में डाल लो।किसी भी चीज को अंदर प्रवेश मत करने दो।

5-यह सत्य की यात्रा है।अपने घर से प्रेम उपहार में लेकर जाना।और वहां मंदिर में भाव से प्रेम चढ़ा देना।मन बैठता नहीं है और खोज रुकती नहीं।अपने आप को चेक करो!प्रसन्न मन अपने आप में खोया रहता है।उसमें प्रश्न नहीं होते।

6-मोह सबसे बड़ी बाधा है!जीवन के मुख्य उद्देश्य पर ध्यान केंद्रित करो।अपने अवगुणों और व्याकुलता को समर्पित करना ही

आध्यात्मिक भोजन है...जो तुमसे मांगा जा रहा है।वह आपसे गुस्सा नहीं है।केवल अपने कुछ भक्तों से नाराज है।जब तक समर्पण नहीं करोगी.. तब तक व्याकुलता समाप्त नहीं होगी।

7-चिल्का लेक के बीचोबीच शिवलिंग है।पुरी में अद्भुत अनुभव होने वाला है।

8-अति प्रेम.. प्रेम की शुद्धता को कम कर देता है। चिल्लाया नहीं जा रहा है।समझाया जा रहा है।अपने घर से एक मुट्ठी चावल पुरी में भेंट के लिए ले जाना।वह भेट किसी दानपात्र में चढ़ा देना।

9-हर क्षण तुमको कुछ ना कुछ सिखाता है।कोई समझ लेता है और कोई नहीं समझता।प्रभु तो हमेशा ध्यान में ही रहते हैं !

व्यक्तिगत रूप से हर क्षण रहना संभव नहीं। कहा जा रहा है कि स्वयं में चली जाओ।समय आने पर बरसाना जाने की व्यवस्था भी बनाई जाएगी।

10-मन में मगन रहो।यही तुम्हारा ईश्वर का साक्षात्कार है।स्वयं पर विश्वास अपने आराध्य पर विश्वास है।मन में मगन रहो और स्वयं पर विश्वास रखो। सब अच्छा होगा।अभी तक तुम्हारे अंतर्मन का भय गया नहीं है।

11-अनादि का अर्थ है सर्वस्य!सर्वस्व में प्रकृति और पुरुष दोनों ही हैं।

12-उसने भी संसार को बहुत कुछ दिया है।सभी शिव स्वरूप है। प्रत्येक बुराई में भी अच्छाई छुपी होती है।तुम जो समझ रही हो... वही समझो।यदि तुम्हारे अंतर्मन ने कहा ...दूरी बना लो तो वही सही है।शिव की खोज ..... शिव ही करते हैं।विचार देने वाला भी वही है और विचार का उत्तर पाने वाला भी वही है।

13-शाश्वत प्रेम संसार में भी हो सकता है !क्या तुम्हारी दोनों की इच्छा शाश्वत प्रेम पाने की नहीं थी?यात्रा अच्छाई और बुराई से पार जाने की है।

2.......

1-सभी जीवो में वही आत्मा है जो तुममें है।तुमने उस सीप के कीड़े का दर्द महसूस कर लिया तो उसका थोड़ा दर्द तुम्हें दे दिया गया।जब मन शुद्ध होता है तब हम दूसरे के दर्द की अनुभूति कर लेते हैं।इस संसार में सभी अच्छा ही करते हैं।इसलिए परमात्मा अच्छा बुरा नहीं देखते। वे केवल कर्म का प्रतिफल दे देते हैं।

2-प्रीत और मीत में एक ही अंतर है।प्रीत प्राणों में बस जाती है और मीत मन में बस जाता है।जो मन में बसा होता है उसे ढूंढा जाता है। लेकिन जो प्राणों में बसा होता है उसे अपने अंदर ही पा लेते हैं।

3-वही होता है जो नियति होती है।दंड तो नारायण भी अपने ऊपर ले लेते हैं।क्या संसार को बचाने के लिए वृंदा का श्राप उन्होंने

अपने ऊपर नहीं लिया।दंड तो ईश्वर भी ले लेता है। फिर मनुष्य क्यों नहीं?जो नियति है....वह तो होगा ही।कर्मों के बंधन से निकलना कठिन नहीं है। अपने सभी कर्मों को अपने आराध्य को समर्पित कर दो।लेकिन समर्पण केवल शब्दों में नहीं होना चाहिए।समर्पण तो हृदय से होना चाहिए।

4-जितने भी बड़े मंदिर हैं ...हरि हर हमेशा एक साथ रहते है ।चाहे छुपा के मूर्ति हो या स्पष्ट हो! लेकिन दोनों की ही मूर्ति अवश्य होगी!वही रहस्य है और वही सुलझाव भी!

6-अगर एकाग्र होना आता है तो तुम किसी भी मंदिर की उर्जा से कनेक्ट हो सकते हो।जगन्नाथ मंदिर में समाधि स्थल में इतना दर्द इसलिए हुआ क्योंकि ब्लॉकेज हटाए गए।संसार में मनुष्य को भेजा गया था.. सत्य की खोज करने के लिए।परंतु मनुष्य सत्य की खोज छोड़कर जाने क्या क्या करने लगा ।जो अष्ट विकार जगन्नाथ में छोड़ दिए हैं। उन्हें अष्ट मुद्राओं में बदलना होगा।

ऊर्जा तो हर जगह है!लेकिन ऊर्जा से कनेक्ट होने के लिए शुद्ध मन होना चाहिए।यदि मन अशुद्ध है और विचार भ्रमण कर रहे हैं तो ऊर्जा से कनेक्ट नहीं हो पाओगे।

7-प्रेम विश्वास समर्पण के लिए कोई प्रयास नहीं करना होता है।स्वयं में विलय करने से प्रेम पूर्ण हो जाता है।जब प्रेम पूर्ण हो जाता है तो एकाग्रता! आ जाती है।अंतर्मन में प्रवेश करना तुम्हारी नियति है।हर पल समर्पित करो!

8- अगर उसने कामाख्या मंदिर देखा है तो तुमने भी वही तीन मंदिर देखें हैं।तीन मंदिर अथार्त माता तारिणी ,माता बगलामुखी और माता धूमावती।यही मुख्य स्वरूप है।

9-अपने आराध्य को अपने सामने बैठा कर अपने सभी नित्य कर्म का प्रतिदिन समर्पित कर दो !अपने प्रत्येक कर्म का समर्पण करो।जब प्रतिदिन समर्पण करोगे तो समर्पण पूर्ण हो जाएगा।संसार में ऐसा कोई नहीं जहां आराध्य विराजमान ना हो।यहां तक कि एक प्रेत में भी शिव है।हां एक प्रेत योनि में हो तो आराध्य सो जाते हैं।कहते हैं कि तुम अपनी मनमानी कर लो।केवल जागृत का अंतर है।हर व्यक्ति में शिव है।कण-कण में शिव है।

10-अपने आराध्य के आराध्य के यहां अष्टविकार छोड़ दिए है।अब शिवत्व का मार्ग प्रशस्त होगा ।जब अष्टविकार छोड़ दिए हैं तब संदेह कैसे? वास्तव में संदेह मनुष्यों का ऐसा अवगुण है .. जो गुण भी है।उसकी ईर्ष्या है और तुम्हारी अनुभूति है। वास्तव में सच्चे शिवत्व के मार्ग में चलने वाले किसी का अहित नहीं करते।वह व्यक्ति भी शिवत्व की खोज कर रहा है।तुम भी तो किसी का बुरा नहीं सोच पाती। उदाहरण के लिए स्वयं को देखो।10 साल पहले तुमने न्याय मांगा था।परंतु आज जब न्याय दिया गया है ..तब भी तुम दुखी हो।जिन लोगों ने तुम्हारे रास्ते में कांटे बिछाए थे, उन्हें दंड दिया गया । लेकिन तुम प्रसन्न नहीं हुई। उस समय भी तुम दुखी थी और आज भी दुखी हो।जब हम किसी के प्रति भाव खराब करते हैं तो हमारी अनुभूति भी रुक जाती है !जहां तुमने शिवत्व की अनुभूति की थी ;वहां जब तुमने संदेह किया तो तुम्हारी अनुभूति भी तो रुकी।उससे तो यह सब कराया गया था।अपने मन के भाव शुद्ध रखो ।कोई कांटे बिछाएगा तो कोई निकालेगा भी।

11-प्रेम में कठिन परीक्षा देनी होती है। अयन से विवाह इसी का उदाहरण है ।राधा रानी के विकार दूर करने के लिए श्री कृष्ण ने क्या-क्या नहीं किया।इसी तरह सभी के विकार दूर किए जाते हैं।

12-जब हम 1 घंटे गहराई में चले जाते हैं और उसके बाद जब वापस आते हैं। तो हमें नींद सी लगती है क्योंकि उस गहराई में.. उस समाधि में सांस बहुत ही धीमी हो जाती है।जिस वजह से ऐसा होता है।यह अर्ध समाधि की स्थिति है।

13-विकार तो 8 ही होते हैं परंतु कितने रुप ले लेते हैं पता नहीं ।यह समुद्र अंतर यात्रा का है।तुमने जो जगन्नाथ पुरी की बाहरी यात्रा की.. वह भी अंतर यात्रा के लिए ही थी।

14-जब वह ध्यान में होते हैं तो सब उनसे ध्यान में कनेक्ट हो जाते हैं।ध्यान में सभी आत्माएं कनेक्ट हो जाती है।जब ध्यान में नहीं होते तो मन में उथल-पुथल होती है।देवी भोलेनाथ की अष्ट प्रहर की पूजा करती है।

3.......

1-कोई खुद से कैसे अलग हो सकता है?ज्यादा से ज्यादा अंतर्मन में जाने का प्रयास करें।मन को शांत करो और शरीर भाव से हट जाओ।तभी सांस के द्वारा उस प्रकाश को ग्रहण कर सकती हो।जीवन का सारांश शांति है।भक्त और भगवान का रिश्ता भाव और विश्वास का रिश्ता है।अगर विश्वास है तो यह रिश्ता है।विश्वास रखो ...कि शिवलिंग के अंदर तुम हो और शिवलिंग तुम्हारे अंदर है।

2-विश्वास है तो अष्ट विकार छोड़ दिए।विश्वास नहीं है तो है...।विश्वास की परीक्षा ली जाती है।कभी-कभी कुछ चीजें जो होने वाली होती है;उनको सपने दिखाकर काट दिया जाता है।वास्तव में कहीं ना कहीं मोह तो है ही...।मां का मोह ऐसी ही समस्या है। इसका समाधान ईश्वर के पास भी नहीं है।केवल मोह में संतुलन बना लो।सपने देख कर विक्षिप्त और व्याकुल मत हो।

3-शिवलिंग का आकार बढ़ाओ।यह आकार तुम्हारे मन की गति भी निर्धारित करेगा।जब दिल से कनेक्शन हो जाता है तो टिकट की आवश्यकता नहीं पड़ती।जिसको यह समझ में आ गया कि हरिहर एक साथ ही रहते हैं !तो उसका आधा कलयुग स्वयं ही समाप्त हो गया।वह शिवलिंग अंतर्मन का शिवलिंग है।जो मन की शुद्धता से बनता है और पूर्ण समर्पण पर करने पर

अपने आकार का विस्तार कर लेता है।

4-गंगा जी तो वही है। शांतनु से विवाह करना उनकी नियति थी।कभी कभी अपने आराध्य के आदेश का पालन करने के लिए कुछ कार्य करने आवश्यक होते हैं।संसार को देने के लिए यह सब काम करने होते है।

5-वह स्वयं से शांत नहीं हुई थी। इसलिए उनके मन में अशुद्धियां आ गई थी।जब मन अशुद्ध होता है तो सबकी कमियां ही दिखाई पड़ती है।कलयुग के प्रभाव के लिए ऐसा किया गया था और आज कलयुग में हर जगह सब ऐसा दिखाई पड़ रहा है।

जब तक राधा कृष्ण और शिव शक्ति की गुट बंदी चल रही है ;तब तक यह संसार भी चल रहा है।जिस दिन लोग इनकी गुट बंदी को मानना बंद कर देंगे; उस दिन यह संसार भी समाप्त हो जाएगा।

6-अंतर्मन में जाने की कोई विधि नहीं है क्योंकि समर्पण की कोई विधि नहीं होती।अंतर्मन में प्रवेश करने के लिए स्वयं को

खगालो! प्रेम के विकार की सबसे बड़ी समस्या है कि प्रेम पीछे नहीं जाने देता और विकार आगे नहीं बढ़ने देते।प्रेम के विकारों से स्वयं को ही निकालना पड़ेगा।सबसे बड़ा विकार यही है कि सत्य -असत्य में भेद ना कर पाना।यह मानना कि कहीं भ्रम तो नहीं था?इस विकार से स्वयं को ही लड़ना पड़ेगा।

7-स्वयं की सुरक्षा ही स्वयं की परीक्षा है।स्वयं की खोज जितनी ज्यादा बढ़ेगी उतनी ही परिस्थितियां बदलेंगी।तब यह स्पष्ट होगा कि पागलपन बढ़ा है या धैर्य बढ़ा है।तुम्हें यह क्यों लगता है कि वह हर समय गुस्सा में ही रहते है।तुम्हारी इच्छा भी तो पूरी की जाती है।जपमाला तो केवल गिनती के लिए होती है।और जप तो सांसो में किया जाता है।

समर्पण की कोई विधि नहीं होती। सीमा पर तो मन का भाव। समर्पण तो मन का भाव।

8-सभी देवी देवता सब एक ही है।परंतु सबके अपने अपने कार्य है।कोई स्थान देवी है तो कोई ग्राम देवी है तो कोई कुलदेवी।

सभी योगिनी ही है।साधना के मार्ग में पितरों का भी अंश होता है और कुलदेवी का भी।कुलदेवी और पितरों की प्रसन्नता भी आवश्यक है।जब हम कुलदेवी को सम्मान देते हैं तो पितर भी प्रसन्न होते हैं ।साधना के मार्ग में कुलदेवी से भी आशीर्वाद/ आज्ञा ली जाती है।

9-आत्मा तो एक ही है।परंतु कोई मरने वाला है तो कोई मारने वाला है।जिस प्रकार से बिहारी जी और नंदकिशोर...।

दोनों की भूमिका अलग अलग है।परंतु है तो दोनों एक ही।कोई नटखट है तो कोई राजनीति कर रहा है।जैसे-जैसे साधना बढ़ेगी। वैसे वैसे समस्याएं भी आएंगी।मानसिक डराया भी जाएगा।केवल आगे बढ़ते रहो।चढ़ाने की बात समय आने पर बता दी जाएगी।जब समय आएगा तो संकेत भी दिए जाएंगे।सारी बात भाव की है।मुंडन कहीं भी कराओ।सबसे पहले कुलदेवी को स्मरण करो।परंतु उनके नाम से जो भी निकालो...वह किसी जोशी को दे दो या किसी मंदिर के दानपात्र में डाल दो।गलती कोई नहीं है।तुम्हें भी तो बताना है।

10-कर्मकांड में ब्रह्मा जी की पूजा वर्जित है।परंतु साधना में त्रिदेव एक ही है।नियति ब्रह्मांड का आधार है।इसके अंतर्गत त्रिदेव कार्य करते हैं।नियति आदिशक्ति से संबंधित हैं।नियति को किसी भी प्रकार से परिवर्तित नहीं किया जा सकता।त्रिदेव यह बात जानते हैं।

11-जब मन प्रसन्न होता है तो भोजन स्वादिष्ट लगता है।और जब मन निराश होता है तो भोजन बेस्वाद लगता है।

12-शिवलिंग ही परम आकार है और विकार भी है।विकार इसलिए क्योंकि अगर आपने संशय से देखा तो विकार आ जाएगा।

13-शांत रहकर स्थिरता को सीखो।प्रकाश की किरणों को अपने शरीर के अंदर भर लो।इतनी किरण भर लो जिससे तुम प्रकाशमय.. प्रकाशस्वरूप हो जाओ।स्वयं ही प्रकाश बन जाओ।यह तो आने वाला समय बताएगा।और इन्हीं परिस्थितियों में तुम्हें साधना भी करनी पड़ेगी।तुम्हें अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति को बढ़ाना पड़ेगा।तुम्हें अपनी समर्पण शक्ति को बढ़ाना पड़ेगा।

14- शून्यता में ना तो अंधकार होता है और ना ही प्रकाश!शिव और शक्ति एक ही हैं, उनमें भेद नहीं है। यह सोचना कि शक्ति प्रकाश हैं और शिव अंधकार..गलत है।शिवम अंधकार नहीं है बल्कि अंधकार को हटाने वाले है। विज्ञान भैरव तंत्र में अंधकार की तीन विधियां हैं।ताकि अंधकार में जाकर स्वयं के अंधकार को देख सको।क्योंकि प्रकाश में अंधकार दिखाई नहीं पड़ता। जब अंधेरे में जाओगे तब अंधकार दिखाई पड़ेगा।अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ना है।जब अंधकार को जानोगे कि मेरे आत्मा में अंधकार छाया हुआ है। तभी तो उसको दूर करने का प्रयास करोगे?

4 .......

1-शिकायत इसलिए है कि स्थिरता का अभाव है। स्थिरता होगी तो अंतर्मन में प्रवेश कर जाओगी।स्थिरता तो समर्पण से ही बढ़ती है।अपने अंदर प्रकाश को भर लो और स्थिर हो जाओ।अपने अंतर्मन में प्रवेश करके ही परम आनंद की प्राप्ति हो सकती है।पूरा ब्रह्मांड अंदर ही है।सांसारिकता को छोड़कर अपने अंतर्मन में प्रवेश करो । सांसों में अपने आराध्य के नाम को सुनो।

आती-जाती सांस में आराध्य का नाम सुनाई दे रहा है।जैसे ही सांसों में नाम सुनोगे...तीव्र गति से अंतर्मन में प्रवेश करोगे।

सांसारिकता को छोड़कर का उदाहरण है कि व्याकुलता क्यों?देखो ! ये व्याकुलता सांसारिकता के कारण ही है ना? लोहा लोहे को काटता है।कीचड़ में चलकर ही संघर्ष किया जा सकता है।भागने से समाधान नहीं निकलता।अंतर्मन में अनंत ह्रदय का

प्रकाश है।अभी ढूंढती हो कि आंखें खुली है तो दिख रहा है। आंखें बंद है तो नहीं दिख रहा है।जब यह भय समाप्त हो जाता है..

तब अंतर्मन में प्रवेश होता है।जहां अनंत हृदय का आनंद है...परमानंद है।उस परमानंद को प्राप्त करने के बाद कोई बाहर आना ही नहीं चाहता।अपने अंतर्मन में रहना सीखो!और इसकी कोई विधि नहीं है।शिवत्व की कोई विधि नहीं होती।केवल भाव और शुद्ध मन ही शिवत्व की प्राप्ति करा सकता है।

2-अक्षय तृतीया शिव शक्ति के मिलन का दिन है।उसी दिन भगवान का गौना हुआ था।कैलाश में लक्ष्मी जी ने देवी पार्वती का स्वागत किया था।इसीलिए यह दिन देवी लक्ष्मी का भी है।

3-चंद्रिका और अंबिका देवी दो बहने थी। जिन्होंने अपनी तपस्या से गंगा जी को बुला लिया था। शक्तियों के नाम अलग-अलग है।परंतु सभी का सोर्स एक ही है।अपनी अनंत की यात्रा को प्रारंभ करें।

4-शाश्वत प्रेम की अनुभूति तो रोम रोम में होती है।प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रूप में हर युग में होता है।

5-अंतर्मन में प्रवेश करना बहुत कठिन है।अंतर्मन में प्रवेश करने के लिए मानसिक द्वंद से ऊपर उठना पड़ता है।

इसके लिए अनंत विश्वास की आवश्यकता है।भूल जाओ कि तुम हो!जब स्वयं को भूल जाओगे। तब स्वयं में ही तुम्हें दर्शन हो जाएंगे।तुम नहीं हो... सब कुछ तुम्हारे प्रभु ही कर रहे हैं।तब अंतर्मन में उनकी अनुभूति हो पाएगी।प्रभु सामने से आते हैं लेकिन कोई भी उनको पहचान नहीं पाता।इसलिए उनसे मुलाकात स्वयं में ही हो सकती है।

6-मन की अधीरता से मन की व्याकुलता का जन्म होता है।और व्याकुलता हमें परमानंद से दूर कर देती है ।यदि व्याकुलता को स्थिरता में बदल दिया जाए। तो हमें अपनी मंजिल मिल सकती है। कहा जाता है कि मन की व्याकुलता ही हमें ईश्वर से मिलाती है।परंतु जिस व्याकुलता में समर्पण का अभाव हो वह हमें ईश्वर से कैसे मिला सकती है?समर्पण का अभाव है का अर्थ है कि सांसारिकता में फंस जाती हो ।और इसका उपाय यह है कि अपनी समस्याओं को ईश्वर को समर्पित कर दो।

7-राधा श्री कृष्ण की शादी होते होते रह गई।ऐसा इसलिए किया गया कि मनुष्य शाश्वत प्रेम को सीख सके।परंतु मनुष्य ने शाश्वत प्रेम नहीं सीखा।प्रेम को पाना ही उनकी मंजिल होती है।शाश्वत प्रेम इसका उल्टा है।शाश्वत प्रेम में विलय किया जाता है।

पाया नहीं.... खोया जाता है।बांके बिहारी मंदिर में विग्रह में राधा स्वरुप के दर्शन करो।जब गर्मी बढ़ती है तब बांके बिहारी को सौंफ का पानी दिया जाता है।

8-अध्यात्म आत्मा को विलय करने और परमात्मा से मिलने का मार्ग है।क्या हम स्वयं में ईश्वर को नहीं देख सकते? वास्तव में हम प्रकाश स्वरूप होकर स्वयं को भूल जाते हैं।हम उसी अनुभूति का प्रयोग कर सकते हैं।प्रकाशस्वरूप होकर स्वयं को भूल जाएं तो हम स्वयं के अंदर ही उनकी अनुभूति कर सकते हैं।स्वयं को भूलना ही उनको पाना है।

9-परिस्थितियां विकट है।समाधान है स्वयं की खोज।और जब स्वयं की खोज है तो समस्या कहां है?तुम्हारा कर्तव्य है धैर्य और स्थिरता बनाए रखो।जहां स्वयं की खोज है ...वहां समस्या नहीं है।होगा वही जो नियति चाहेगी।शांत हो जाओ और स्थिर हो जाओ।शांत और स्थिर होकर ही समाधान निकाले जा सकते हैं।

10-जब जब साधना बढ़ती है और तुम अंतर्मन में प्रवेश करते हो तो समस्याएं आकर खड़ी हो जाती है।नियति के आगे ईश्वर भी कुछ नहीं है।नियति कर्म पर आधारित होती है।जो होना होता है नियति उसकी रचना पहले ही कर देती है।अपने अंतर्मन की अनंत गहराइयों में प्रवेश करो।अपने अंतर्मन के अनंत प्रेम में प्रवेश करो।भूल जाओ कि तुम्हारा जन्म हुआ है। भूल जाओ कि तुम्हारी मृत्यु होनेवाली है।केवल अपने आराध्य से मिलन करो।

11-जिस दिन इस लायक हो जाओगी उस दिन तुम्हें वृंदावन के प्रत्येक वृक्ष में,प्रत्येक पत्ती में राधा कृष्ण की प्रेम की अनुभूति होगी।वृंदावन में रहना अर्थात जिसका हृदय शुद्ध है वही वृंदावन है।अपने कमरे को ही वृंदावन बना लो।आज तुम्हें जो मिल रहा है।वह भी नियति से ही मिल रहा है।जैसे मिठाई का स्वाद धीरे-धीरे आता है।वैसे ही अध्यात्म का आनंद भी धीरे-धीरे ही आता है।

12-जहां प्रसन्नता है...वही तुम्हारे आराध्य है।प्रसन्नता से जाने कितनी प्रकार की नकारात्मकताओं का अंत हो जाता है।इसलिए प्रसन्न रहो!आनंद में रहो।आनंद करो!और अपने अनंत में प्रवेश करें।अनंत में प्रवेश अर्थात अंतर्मन में प्रवेश।जब कैलाशपति आनंद तांडव करते हैं तो एक प्रकाश उत्पन्न होता है।परंतु उस प्रकाश में वही प्रवेश कर सकता है जिसका मन शुद्ध होता है।जब तक अंतर्मन नंदी की तरह शुद्ध नहीं है तुम उस प्रकाश में प्रवेश नहीं कर सकते।

13-एक स्थान है जहां पर सफेद रंग के हजारों शिवलिंग है।समुद्र की लहरें आती हैं और शिवलिंग को छिपा देती है।

जब वापस जाती है।तब शिवलिंग दिखाई पड़ने लगता है। जीवन भी इसी तरीके से है।और इसी रास्ते पर चलकर अपनी मंजिल पानी होगी।जब जीवन में लहरें आएंगी, अंधकार छा जाएगा और जब लहरें वापिस जाएंगी तो प्रकाश भी वापस आ जाएगा। लहरें शिवत्व को ढक देती है।

14-इस संसार में यहां कोई किसी को बेवकूफ नहीं बनाता। सबका लेना-देना होता है।सब नियति निर्धारित करती है।इसलिए माफ करो और आगे बढ़ो।क्या लेनदेन को अभी और आगे बढ़ाना है?अगर आगे नहीं बढ़ाना है तो माफ करना ही समाधान है।मन तब शुद्ध होता है। जब हमारे अंदर स्थिरता और समर्पण होता है।किसी के प्रति भाव खराब हो जाने से भी मन अशुद्ध हो जाता है।जब तब तक विचारों का प्रवाह है तब तक मन अंतर्मन में प्रवेश कर ही नहीं सकता।स्थिरता 1 दिन में नहीं आती।जब स्वीकार भाव आ जाएगा तब स्थिरता भी आ जाएगी।तुम अपने सारे विकार नारायण के चरणों में छोड़ आई हो!किसी के करने से कुछ नहीं होता। सब नियति द्वारा निर्धारित होता है... तो स्वीकार कर लो।जब स्वीकार करोगी तो समर्पण आएगा। और जब समर्पण आएगा तब स्थिरता आ जाएगी।अत्याचार करना अपराध है तो अत्याचार सहना भी अपराध है।इसलिए उस समय जो कराया गया ...उसी की आवश्यकता थी।अब सब छोड़ दो! भूल जाओ ...आगे बढ़ो।माफ करो और आगे बढ़ो।

15-भोलेनाथ की जटाओ में पूरे ब्रह्मांड की सांसे है।पूरे ब्रह्मांड को ओम ही जोड़ता है।ओम का कनेक्ट जॉइंट प्रेम का प्रतीक है।उस सेंटर तक पहुंचने की ही सभी की यात्रा है।



....SHIVOHAM...









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