ज्ञान गंगा-3.....गुरु- शिष्य वार्तालाप
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1-जलकल केतु कहर निवारम ।
2-पाइथागोरस शिव
3- क्रिया हरी कारण, हर बसंत इच्छा।
4-शक्तिपीठ शक्तिपीठ होता है एलिमेंटल नहीं होता है। मैं प्रकृति हूं... सारे तत्व मुझसे ही निकलते हैं।
5-समाधि और मृत्यु में क्या अंतर है?
6-जिज्ञासा पनघट की बूंद है।अगर जिज्ञासु तृप्त हो जाए तो वह मदमस्त हो जाए।
7-यथार्थ सत्य को जानना तुम्हारी कलुस्ता है या जिम्मेदारी?
8-जान लिया तो पहचान नहीं पाए.. पहचान लिया तो ढूंढते रह गए।
9-प्रेम में जाना ..प्रेम में होना... प्रेम की दृष्टि में खो जाना...यही प्रेम है... इसे जान लिया तो हममें डूब गए।
10-जीवन का झरना... मन का झरना... तन का झरना... झरना ही झरना।
11-तेरे अंदर हर अंग में शिवलिंग ही तो है।
12-ध्यानम जगत विश्रामम।
13 -जीवन मरण में फंसना नहीं है।फंसकर तुम्हें निकलना है।यही तुम्हारा प्रारब्ध भी है और कालचक्र भी।
14-अगर अनाहद से त्रिनेत्र की छलांग लगाते है, तो शब्दों पर नियंत्रण खो जाता है।पारदर्शिता को तीर बनाकर, अष्ट व्यसनों का भेदन किया जा सकता है।---महृषि अत्रि
15-शिष्य को गुरु के मुखारबिंदु के वेग देख कर बात करनी चाहिए।--महृषि भृगु
16-जो कहता है कि मैं शिव को जानता हूं ;वह केवल श को जानता है।शिव के ऊपर नींबू है।
17-यह संसार एक पुल है, और हर मनुष्य बहती हुई नदी सा...। यहाँ रुकना नहीं गुजर जाना है। कुछ नादान परिंदे यहाँ घर बनाकर बैठें हैँ। मैं तरनी नहीं तारिणी हूं...तुझे हाथ थाम ले जाउंगी। जो पार गया वो पार हुआ, जो बैठा है वो डूबेगा।
18-चलने का निर्णय करके, कदमों पर शक करना नहीं।
हौसला हो बुलंद अगर तो, आसमान की ऊंचाई देखकर थमना नही।।
19-इस संसार का सारा ज्ञान ढ़ाई अक्षर मे समाया हुआ है। वो है ...."प्रेम" ।जिसने भी राधा और मीरा के प्रेम का एक हिस्सा भी कर लिया उसको समस्त ज्ञान प्राप्त हो जायेगा। इस संसार मे हर ओर से तुमको सिखाया जा रहा है,तुम्हारी सहायता की जा रही है।16 दिशाएं हैँ।12दिशाओं मे ज्योतिर्लिंग हैँ तो 4 दिशाओं मे 4 धाम। सती के शरीर के 52 हिस्से तुमको बता रहे हैँ कि तुम 52 टुकड़ों मे होकर भी संसार को देने योग्य हो।जिस प्रकार सूफ़ी संत मंसूर अल-हलाज 52 टुकड़ों मे होकर भी ये ज्ञान दे गया कि वो अपने शरीर के किसी टुकड़े मे नहीं था...वो तो कुछ और ही था।
20-मन मे आयी और ना बोली गयी हो वो बात,, बोल देने वाले शब्दों से अधिक घातक होती है।
इसीलिए बोली गयी बात पे पछताना छोड़कर, क्रोध को नियंत्रित करने के मार्ग पर निकलो।
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1-क्रोध नियंत्रित करने के तीन सूत्र हैँ....
1-जब क्रोध आये तो अपने हाथो को कसकर भींच देना चाहिए; सभी उंगलियो की मुट्ठी बनाकर कसकर दबा दो।
2-अपनी आँखों को कसकर भींच दो और खुद को अंदर खींच लो। क्रोध के क्षण मे मौन को चुनो।
3- तीसरा यदि सबको दिखाना नहीं चाहते हैँ और आप कहीं भीड़ मे हैँ तो अपने पैरों की सभी नसों को कसकर भींच के पैरों को टाइट कर लो। उँगलियों पर दबाव बनाओ,क्रोध विलीन हो जायेगा।
2-साधक की मृत्यु नहीं होती। मरण ही जीवन है।
माला फेरत जुग भया।गया न मन का फेर।
कर का कर का मनका छोड़। मनका मनका मनका फेर।
मयंक को हिमालय राज की तरह जनकल्याण करना है।
तुम्हारे मन में ही राम है और तुम्हारे मन में ही रावण।लेकिन चुनाव तुम्हें करना है ।
जो अपनी साधना पूरी करना चाहते हैं;उन्हें पूरी ब्रह्मांड की तरफ से सहायता दी जाती है।
और जिन्हें यात्रा पूरी करने की जिज्ञासा ही नहीं है उनके लिए कुछ नहीं किया सकता।
3-गंगा की यात्रा;-
गंगा ब्रम्हा के कमंडल से निकली,रेतीली ज़मीन से होते हुए, सब पत्थरों से टकराती हुई, हमारे गंदे को साफ करती हुयी।फिर भी मनुष्य का पालन करती रही, और कहीं रुकी नहीं।और अंत मे अपने उदगम तक पहुंच कर विलीन हो गयी।फिर खुद को मिटाकर ब्रम्ह से एकाकर हो गयी।गंगा से कठिन यात्रा किसी की नहीं है।
4-ब्रम्ह ने कुछ किरणे छोड़ दी-किरणों से बूँद बनी,बूँद से बने बीज,वो बीज मनुष्य बन गए। पर वो मनुष्य जानते थे कि मेरे माता पिता ब्रम्ह है,इसलिए सृष्टि आगे ही नहीं बढ़ रही थी क्योकि वो शिव के ही घर बैठें थे और उन्हें सच पता था। इसलिए संसार चलाने के लिए पहले विस्मृति जरुरी थी ताकि तुम अपने करीबी लोगो से मोह कर पाओ। और जिसमे चरम सीमा की प्यास और पवित्रता होंगी वो तब भी शिव से प्रेम करेगा।और जैसे -जैसे प्रेम गहरा होगा वैसे वैसे वो उन्हें चुनेगा।अगर शिव को पाना है तो यात्रा यही है कि मोह को समेट लो।ये यात्रा बीज से वृक्ष बनाने की नहीं है ;क्योकि वृक्ष तुम जन्मदिन के बाद बन ही जाओगे।ये यात्रा वृक्ष से बीज बन जाने की है ;वहाँ जाओ जहाँ से ये सब शुरु हुआ है।
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1-अनएक्सपेक्टेड को एक्सपेक्ट कर लो।
2-व्याकुल मन केवल जिद करता है।प्रसन्न मन ही उसे ढूंढ सकता है।
3-विस्मृति ही प्रवृत्ति है।
प्रवृत्ति की आकृति है।
आकृति ही विकृति है।
4-तुम्हें कम से कम यह तो पता है कि तुम राक्षस हो। वरना लोगों को तो पता ही नहीं है कि वह राक्षस है।
5-इसी फोटो से तो हाथ निकलेंगे और तुम्हें ले जाएंगे।
6-मैं तो हर जगह मिलता हूं। कामाख्या मंदिर में तो पग पग में मैं था। ।
7-गलती ना हो यह मत सोचो।यह सोचो कि अच्छा करें।भूचाल आया क्या संतुष्टि नहीं मिली? उसने तो तुम्हें मोह से छुड़ा दिया।
8-स्प्रिचुअल लोगों की फिजिकल बॉडी कहां होती है।
9-दोबारा मिलने का यह मतलब थोड़ी ना होता है कि अभी मिल जाएगी।
दूसरी बार भी तो हो सकता है।
10-यह बता दिया जाए कि यात्रा पूरी हो जाएगी तो लापरवाह हो जाओगी। कर्म थोड़ी ही बंद हो जाते हैं।कर्म तो करने ही पड़ते हैं।
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1-कभी मोह में फंस गई।तो कभी सिद्धियों में फंस गई।
2-जो हरि से प्रेम करता है उसे मैं प्रेम करता हूं।जो मुझसे प्रेम करता है, उसे हरी प्रेम करते हैं।
3-बंधन तो शरीर के होते हैं। आत्मा का कोई बंधन नहीं होता।
4-इन 3 दिनों में कुछ आत्माओं से मिलना होता है।
5-तुम्हारी कड़ियां ऐसी है कि एक तो मस्त हो जाता है और दूसरा दुविधा में रहता है।
यह सोचता है कि ध्यान में सो तो नहीं जाते हैं।
6-तुम्हें निस्वार्थ भाव से अपने कड़ियों को मार्ग दिखाया है।अपनी कड़ियों को जोड़ो ।
7-साकार का रस रुक रुक कर लो।
8-क्या राक्षसों को स्वीकार नहीं किया गया? क्या उन्हें मुक्ति नहीं दी गई?
9-देवी को छोड़कर मुझे युगों के लिए जाना पड़ता है।
10-तुम ढूंढती रहती हो ..फिर खो जाती हो और सो जाती हो। फिर जगती हो ;
फिर ढूंढती हो ...खो जाती हो और सो जाती हो।यह अनुभूति क्यों नहीं करती कि
हर पल मैं तुम्हारे साथ हूं। मेरे लिए सब करो! मेरे लिए उठो! हर पल मेरी अनुभूति करो।
पहले मैं और तुम रहेगा। फिर केवल मैं रह जाएगा।ईश्वर के प्रति प्रेम और विश्वास ही उस तक पहुंचा देगा।
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1-एक ही आत्मा कभी गधे को खींचती है तो कभी रथ पर सवार होती है।लेकिन जब रथ पर सवार होती है तो अंधेरा उसे
समझ में ही नहीं आता।
2-हमारी बाई आंख बाहर देखती हैऔर दाहिनी आंख अंदर देखती है।इसी प्रकार तीसरी आंख भी दो हिस्से में बटी हुई है।
शिव का हिस्सा शांत कर देता है ;इनर हीलिंग करता है। जबकि शक्ति का हिस्सा प्रश्नों के उत्तर देता है।सन्यासी यहीं तक जाता है जबकि भगवान सातवें में जाता है। जहां बालों का जुड़ा भी है और आधे हिस्से में मुकुट भी है।जुड़ा शिव / सन्यासी को प्रकट करता है और मुकुट शक्ति /राजा को।श्री राम ,श्री कृष्ण सन्यासी भी हैं और राजा भी। इसीलिए उन्हें भगवान कहा जाता है।
3-जिंदगी भर के लिए दिल पे निशानी पड़ जाये,,
बात ऐसी ना कहो कि लिखकर मिटानी पड़ जाये।
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1-जल चढ़ाना ------जाग्रति की प्यास को जाग्रत करो
2-शमी पत्र --------- माया के षट्चक्र /6 को जानो
3-बेल पत्र ------------ त्रिगुण को समझो
4-बेल फल ------------ शून्य/0 को जानो
5- पंचउंगलियां --------- पंचतत्व को मुक्त करो"
5-गंगा की यात्रा 🙏🏾
प्रकृति कभी यात्रा मे बाधक नहीं होती है बस तुम गंगा बन जाओ,,क्योकि गंगा जब बहती है तो उनको कोई मार्ग नहीं दिखाता है कि कहाँ जाना है,, वो तो अपने आप सब बाधाओँ को झेलते हुए और परमार्थ करते हुए अपना मार्ग चुन ही लेती है और सागर मे मिल जाती है।उसी प्रकार मनुष्य यदि खुद दीवारे खड़ी ना करें तो प्रकृति उसकी सहायक बन जयेगी वो प्राकृतिक रूप से अपना मार्ग ढूंढ ही लेगा मंजिल तक पहुंचने का।
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1-जीवन कभी व्यर्थ नहीं होता। केवल हमारी संकीर्ण सोच के कारण ऐसा प्रतीत होता है।आवश्यकता है अर्थ और उद्देश तलाशने की।
2-दुनिया कांटे चुभाती है तो कांटो को अपना आसन बना लो।
3-जब मन व्याकुल होता है तो सरल हो जाता है।
4-जनक भी तू जननी भी तू।तू और मैं हम हो जाएं।
5-समस्या तभी होती है जब तुम बाहर होते हो।
जब तुम अंदर होते हो तो समस्या ही नहीं होती।
6-दुनिया को झेलना नहीं है।
बल्कि प्रसन्नता से रहना है।
7-प्रयास मत करो! प्रेम करो!
8-प्रार्थना कभी निष्फल नहीं जाती।
9-सागर तो तुम्हारे ही पास है।
10-जब व्याकुल हो तो मेरी ओर देखो।
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1-जैसे कुयें मे जल तो है ही बस मिट्टी कंकड़ पत्थर हटा देने हैँ, उसी प्रकार तुम्हारे अंदर प्रेम तो है ही, बस मिट्टी और कंकड़ पत्थर हटा दो।
2-तुम्हारे साथ जो गलत करेगा उसका फल तो उसको मिलेगा ही, कर्म के साथ फल जुडा ही हुआ है,तुम उसको दंड मत दो।
3-तुम्हारी यात्रा काफी होने की नहीं है,, तुम्हारी यात्रा तुमको खत्म कर देने की है, क्या तुम तैयार हो खुद को हम कर देने के लिए, मुझमे मिल जाने के लिए।
4-इस संसार मे जितनी राधा हैँ उतने ही कृष्ण हैँ। सबके साथ सबके कृष्ण है।क्या तुम राजी हो अपने मैं को खोने के लिए?
5-संसार में रोते तो सभी हैं।परंतु शिव और कृष्ण के लिए कोई नहीं रोता।प्रेम तुममे है, वो तुम्हारे आंसू बता देते हैँ।
6- तुमको एक पुकार आएगी उस पार से, उस पुकार को आँखों से भले ना देखना पर ह्रदय को खुला छोड़ देना और उसके साथ हो लेना वही तुम्हे उस पार ले जाएगी...।
7-हर समस्या का एक समाधान,, कुछ समय खुद के साथ मे बिताना।
8-ब्रह्मांड के सृजन का सत्य यही है कि संसार की सजीव या निर्जीव किसी भी वस्तु का ध्यान या मनन करने से;
उसका आचरण, व्यवहार ,ज्ञान ,संस्कार का स्वत: ही आदान-प्रदान होने लगता है।
9-करना है--
विश्वास करना सीखो।
स्थिर रहना सीखो!
अपने अंदर रहना सीखो!
कड़ी के साथी बनो। एक दूसरे का हाथ पकड़ो।पीठ पर मत लदो।वरना ना वह चल पाएगा ना तुम
दीदी गंगाजल, तुम हवा...वह नदी का पानी।
प्रेम है परंतु विश्वास नहीं है।स्वभाव की चंचलता वही है, परंतु आंखें नहीं बदली।
नहीं करना है--
संदेह नहीं करना है।
अस्थिर नहीं होना है।
समस्या तभी है जब तुम बाहर हो।इसलिए अंदर जाओ समस्या समाप्त हो जाएगी।
8.....
1-शीशे के सामने खड़े हो।तुम्हारी आँख में उनकी आँख है।तुम्हारे हाथों में उनका हाथ है। तुम्हारी सांसों में उनकी सांस है। तुममें वह है ....यह महसूस करो।प्रयास नहीं करो, बस हृदय खुला छोड़ दो।
2-उसकी रोज परीक्षा ली जाती है कि अब तो विश्वास तोड़े? लेकिन उसका विश्वास अटल है।और विश्वास भक्ति की पहली सीढ़ी है।वह अपना मार्ग खुद बना लेगा।रोज परीक्षा इसलिए ली जाती है क्योंकि हीरे को तराशा जाता है।
3-ब्रह्म एक हैं का स्वरूप लिंग है। उस लिंग में हमें ढूंढो। ऊपर के हिस्से में हम तीनों हैं और आधार में सब देवी देवता हैं।
जलहरी में शक्ति के साथ गणेश है।
4-ज्ञान के अनुसार प्राणायाम-- विचार करो
नाहम .... रेचक
कोहम ......पूरक
सोहम....कुम्भक
इसमें मन की चंचलता समाप्त होने लगती है।
9.....
1-आत्मा को जीव तथा परम की उपाधि से रहित कर दो।क्या तुम्हें फिर भी कोई अंतर्दृष्टि होता है।यदि उसके उपरांत भी संशय भी बना रहे तो स्वयं से प्रश्न करो कि प्रश्नकर्ता -संशयकर्ता कौन है?--संशय नष्ट हो जाएगा।
2-शिव चुप रहते है इसलिए उनके प्रत्येक शब्द को लोग सुनते है। .... मौन को महसूस करो।
3-मेरे शिव मेरे पास है और तुम्हारे शिव तुम्हारे पास है ...तुम केवल महसूस नहीं कर पाती।
तुम्हारी गलती मेरी गलती जैसी ही है। मैंने भी तो विश्वास नहीं किया था।
4-तुम लोगों में मेरा प्रकृति तत्व बढ़ा हुआ है।इसीलिए तुम लोग यहां पर हो।शिव में एक विशेष बात है कि
जो उन्हें जैसा मानता है, वह उसे मान लेते हैं।वह सिद्ध नहीं करते जबकि तुम लोग उल्टा करते हो यदि कोई तुम्हें
कोई तुम्हें कपटी कह दे तो तुम उसे सिद्ध करने का प्रयास करते हो कि मैं कपटी नहीं हूं। जो जैसा मानता है उसे वैसा मन में मानने दो।तो सिद्ध करने का प्रयास क्यों करते हो? उसे वैसा मानने दो।
5-न प्रयास करो ना खोजो ....ना ढूंढो!केवल मन की लगन में खो जाओ।जब मन की लगन में मस्त हो जाओगे।
तो नंगे होकर नाचोगे। र्दृष्टि
6-मन का स्थिर होना कैलाश की सीमा में प्रवेश करना है।
7-समस्याएं धैर्य सिखा देती।
....SHIVOHAM....
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