ज्ञान गंगा-4.....गुरु- शिष्य वार्तालाप
- Chida nanda
- Jan 4, 2023
- 12 min read
Updated: Sep 4, 2023

1..... 1-जल चढ़ाना ------जाग्रति की प्यास को जाग्रत करो 2-शमी पत्र --------- माया के षट्चक्र /6 को जानो 3-बेल पत्र ------------ त्रिगुण को समझो 4-बेल फल ------------ शून्य/0 को जानो 5- पंचउंगलियां --------- पंचतत्व को मुक्त करो" 2..... 1-जैसे कुयें मे जल तो है ही बस मिट्टी कंकड़ पत्थर हटा देने हैँ, उसी प्रकार तुम्हारे अंदर प्रेम तो है ही, बस मिट्टी और कंकड़ पत्थर हटा दो। 2-तुम्हारे साथ जो गलत करेगा उसका फल तो उसको मिलेगा ही, कर्म के साथ फल जुडा ही हुआ है,तुम उसको दंड मत दो। 3-तुम्हारी यात्रा काफी होने की नहीं है,, तुम्हारी यात्रा तुमको खत्म कर देने की है, क्या तुम तैयार हो खुद को हम कर देने के लिए, मुझमे मिल जाने के लिए। 4-इस संसार मे जितनी राधा हैँ उतने ही कृष्ण हैँ। सबके साथ सबके कृष्ण है।क्या तुम राजी हो अपने मैं को खोने के लिए? 5-संसार में रोते तो सभी हैं।परंतु शिव और कृष्ण के लिए कोई नहीं रोता।प्रेम तुममे है, वो तुम्हारे आंसू बता देते हैँ। 4..... गंगा की यात्रा 🙏🏾 प्रकृति कभी यात्रा मे बाधक नहीं होती है बस तुम गंगा बन जाओ,,क्योकि गंगा जब बहती है तो उनको कोई मार्ग नहीं दिखाता है कि कहाँ जाना है,, वो तो अपने आप सब बाधाओँ को झेलते हुए और परमार्थ करते हुए अपना मार्ग चुन ही लेती है और सागर मे मिल जाती है।उसी प्रकार मनुष्य यदि खुद दीवारे खड़ी ना करें तो प्रकृति उसकी सहायक बन जयेगी वो प्राकृतिक रूप से अपना मार्ग ढूंढ ही लेगा मंजिल तक पहुंचने का। 5..... 1-Guruji🙏🏾 तुमको एक पुकार आएगी उस पार से, उस पुकार को आँखों से भले ना देखना पर ह्रदय को खुला छोड़ देना और उसके साथ हो लेना वही तुम्हे उस पार ले जाएगी...। 2-हर समस्या का एक समाधान,, कुछ समय खुद के साथ मे बिताना। 3-ब्रह्मांड के सृजन का सत्य यही है कि संसार की सजीव या निर्जीव किसी भी वस्तु का ध्यान या मनन करने से; उसका आचरण, व्यवहार ,ज्ञान ,संस्कार का स्वत: ही आदान-प्रदान होने लगता है। 6..... मेरी सासों मे हैँ, मेरे "शिवा" मैंने "शिवा" से वचन है लिया,, जनम -जनम यूँही साथ रहेंगे, सुख चाहें दुख आएं मिलकर सहेंगे, हांथो मे हाथ लेके कसमें जो खायी है, मैंने जुदा होकर सदियाँ बितायी हैँ,, नैनो कि धारा मे तुमको ही ढूना है,, ओस कि चादर मे तुमको भिगोना है,,, मेरे पिया बनकर के जब भी तुम आओगे चूमकर लबों को तेरे सदियों को जीना है,, मैंने तो सांसों मे तुमको बसाया तुमको पिया जी मेरे आंगन मे आना है,, मेरी संसो मे मेरे पिया हैँ,, तुमको तो अब ऐ सबको बताना हैँ , अब तो पियाजी तुमको आना ही होगा,, वादा किया वो निभाना तो होगा।। 7..... करना है-- विश्वास करना सीखो। स्थिर रहना सीखो! अपने अंदर रहना सीखो! कड़ी के साथी बनो। एक दूसरे का हाथ पकड़ो।पीठ पर मत लदो।वरना ना वह चल पाएगा ना तुम दीदी गंगाजल, तुम हवा...वह नदी का पानी। प्रेम है परंतु विश्वास नहीं है।स्वभाव की चंचलता वही है, परंतु आंखें नहीं बदली। नहीं करना है-- संदेह नहीं करना है। अस्थिर नहीं होना है। समस्या तभी है जब तुम बाहर हो।इसलिए अंदर जाओ समस्या समाप्त हो जाएगी। 8..... 1-शीशे के सामने खड़े हो।तुम्हारी आँख में उनकी आँख है।तुम्हारे हाथों में उनका हाथ है। तुम्हारी सांसों में उनकी सांस है। तुममें वह है ....यह महसूस करो।प्रयास नहीं करो, बस हृदय खुला छोड़ दो। 2-उसकी रोज परीक्षा ली जाती है कि अब तो विश्वास तोड़े? लेकिन उसका विश्वास अटल है।और विश्वास भक्ति की पहली सीढ़ी है।वह अपना मार्ग खुद बना लेगा।रोज परीक्षा इसलिए ली जाती है क्योंकि हीरे को तराशा जाता है। 3-ब्रह्म एक हैं का स्वरूप लिंग है। उस लिंग में हमें ढूंढो। ऊपर के हिस्से में हम तीनों हैं और आधार में सब देवी देवता हैं। जलहरी में शक्ति के साथ गणेश है। 9..... ज्ञान के अनुसार प्राणायाम-- विचार करो नाहम .... रेचक कोहम ......पूरक सोहम....कुम्भक इसमें मन की चंचलता समाप्त होने लगती है। 10..... 1-आत्मा को जीव तथा परम की उपाधि से रहित कर दो।क्या तुम्हें फिर भी कोई अंतर्दृष्टि होता है।यदि उसके उपरांत भी संशय भी बना रहे तो स्वयं से प्रश्न करो कि प्रश्नकर्ता -संशयकर्ता कौन है?--संशय नष्ट हो जाएगा। 2-शिव चुप रहते है इसलिए उनके प्रत्येक शब्द को लोग सुनते है। .... मौन को महसूस करो। 3-मेरे शिव मेरे पास है और तुम्हारे शिव तुम्हारे पास है ...तुम केवल महसूस नहीं कर पाती। तुम्हारी गलती मेरी गलती जैसी ही है। मैंने भी तो विश्वास नहीं किया था। 4-तुम लोगों में मेरा प्रकृति तत्व बढ़ा हुआ है।इसीलिए तुम लोग यहां पर हो।शिव में एक विशेष बात है कि जो उन्हें जैसा मानता है, वह उसे मान लेते हैं।वह सिद्ध नहीं करते जबकि तुम लोग उल्टा करते हो यदि कोई तुम्हें कोई तुम्हें कपटी कह दे तो तुम उसे सिद्ध करने का प्रयास करते हो कि मैं कपटी नहीं हूं। जो जैसा मानता है उसे वैसा मन में मानने दो।तो सिद्ध करने का प्रयास क्यों करते हो? उसे वैसा मानने दो। 5-न प्रयास करो ना खोजो ....ना ढूंढो!केवल मन की लगन में खो जाओ।जब मन की लगन में मस्त हो जाओगे। तो नंगे होकर नाचोगे। ये तुम्हारी र्दृष्टि पर निर्भर करता हैं कि क्या देखती हैं । 6-मन का स्थिर होना कैलाश विट्ठल सीमा में प्रवेश करना है। 7-समस्याएं धैर्य सिखा देती। 8-जब अगर दानवी शक्तियां एक्टिवेट होती हैं। तो दैवीय शक्तियां भी एक्टिवेट हो जाती हैं।
यह एक्टिवेशन शिव ही कराते हैं। ताकि भक्तों को दैवीय शक्तियों का फायदा मिल सके।
11.....
1-मन का निग्रह/ Hold back करो ।मन को निग्रह करना है तो विट्ठल विट्ठल करो।
2-मन की एकाग्रता में परमात्मा का वास होता है।परमात्मा ही अंतर्मन के कष्टों को सुनता है।
3-शिव जी मेरे प्राण है मेरा जीवन है। मैं तो उनकी अर्धांगिनी हूँ और वह शिव तो पूरे ब्रह्मांड में समाए हुए है। अपने भक्तों में समाए हुए हैं।
4-विट्ठल की कहानी -पवित्रता और श्रद्धा तो मन में होती है। ये जरुरी नहीं है कि आप पवित्र स्थलों की यात्रा करे या फिर कर्मकांड करे।
5-जब विचारों का विचारों का भ्रमण हो तो अपने आराध्य से कहना शुरू कर दो ।धीरे-धीरे उनकी छवि आपके हृदय में बस जाएगी और विचार भी कम हो जाएंगे तथा अपने अंतर्मन की अनुभूति हो जाएगी।
12.....
1-मनका मनका मिलाकर माला पिरोइ जाती है। जो आराध्य पर चढ़ती है।
2-स्वयं से मिलन ही परमात्मा से मिलन है।
3-जब सफाई हो जाएगी। तब बातें याद होनी शुरू हो जाएगी।
4-चलत मुसाफिर मोह लियो रे पिंजड़े वाली मुनिया . . . उड़ उड़ बैठी हलवाईयाँ डोकानिया.. बर्फी के सब रस ले लिया रे ||उड़ उड़ बैठी बजजवा डोकानिया ...कपड़ा के सब रस ले लिया रे ||उड़ उड़ बैठी पनवड़िया डोकानिया...बीड़ा के सब रस ले लिया रे||एक भक्त दूसरे भक्त को मोह ही लेता है। एक भक्त दूसरे भक्तों को पहचान ही लेता है।
5-गलतियां मैंने भी की गलतियां तुमने भी की।यह हमारे आराध्य ही हैं जो हमें मिला रहे हैं।
6-बेचैन आत्मा परमात्मा से नहीं मिल पाती।भटकी नहीं हो.... रास्ते पर चल रही हो।
7-मंजिल ना मिलने की बेचैनी अहंकार को समाप्त कर देती है।जब अहंकार समाप्त हो जाता है ;तब मिलन का रंग आता है। 13.....
1-वो यात्रा ही क्या जिसकी राह मे कांटे ना हो और
वो कांटे ही क्या जो यात्री के ना लगे।
2-जीवन में उतार-चढ़ाव तो आते ही रहते हैं।जब भी उतार है तो उन्हें बताओ!
जब जीवन के उतार में उन्हें स्थान दे दोगी।तो उतार आने जीवन में बंद हो जाएंगे।चढ़ाव की इच्छा तुम्हारे ऊपर निर्भर करती है।तुममें संकल्प शक्ति है ;अपनी संकल्प शक्ति से तुम उतार में भी चढ़ जाती हो।
3-तुम स्वयं को तुच्छ मानोगी तो फिर वह कहां है?उसी तुच्छ में तो वह महान रहता है।
देवी की यह मूर्ति शाश्वत है।शाश्वत से मन पवित्र होता हैऔर पवित्र मन सब कुछ पा लेता है।
4-अपने आराध्य के लिए क्या नंदी नहीं तरसते -क्या देवी नहीं तरसती उनके लिए?
इसी से तो प्रेम गहरा होता है।
5-देवी तुम्हें स्वयं के अंदर ही मिलेंगी ।जिस दिन तुम सब स्वयं के अंदर देवी को देखकर खीर खाने लगी। तुम्हारी यात्रा पूरी हो हो जाएगी।
14.....
1-जग भी तू , ब्रह्मांड भी तू।
प्रथम पूज्य भी तू , विघ्नहर्ता भी तू!
2-पूर्ण में पूर्ण की अनुभूति।
अधूरे में पूर्ण की अनुभूति ।
अपूर्ण में पूर्ण की अनुभूति।
3-ऐसा लगता है जैसे घेरा बन गया हो। लेकिन तुम घेरे के बीच में खड़ी तो हो..?
4-यदि किसी से नफरत हो रही है तो उसे ध्यान में लाओ। उसको बिठाकर पूजा करो। तिलक लगाओ , आरती करो, भोग लगाओ। तुम शांत हो जाओगे क्योंकि उसमें भी तो तुम ही हो।
5-उसे संकटों का आभास हो जाता है।संकट तुम्हें छूकर निकल जाएगा और तुम्हें पता भी नहीं चलेगा।विश्वास और धैर्य ही आधार हैं।
6-तीन शरीर है-स्थूल ,सूक्ष्म, कारण।तीनों शरीर तीन प्रकार की ऊर्जाओं का डिस्चार्ज करते हैं।स्थूल शरीर अन्न का डिस्चार्ज करता है।सूक्ष्म शरीर विचारों का डिस्चार्ज करता है और कारण शरीर ऊर्जाओं का डिस्चार्ज करता है। तीन एनर्जी शरीर है फूड, थॉट, एंड एनर्जी ।अगर तीनों ऊर्जाओं का डिस्चार्ज सही ढंग से नहीं हुआ तो हमारा शरीर संतुलित नहीं रहता और यह डिस्चार्ज प्रतिदिन होना चाहिए।एक सन्यासी से बात करके हम बहुत प्रसन्न होते हैं।भले ही वह डंडा फेंक के मार दे। हम प्रसन्न होते हैं क्योंकि उसके विचार प्रतिदिन डिस्चार्ज होते रहते हैं और उसकी ऊर्जा भी प्रतिदिन चार्ज होती रहती है।जिस व्यक्ति के विचारों का डिस्चार्ज प्रतिदिन नहीं होता वह व्यक्ति भयंकर रूप से असंतुलित हो जाता है।इसलिए प्रतिदिन विचारों का और अपनी ऊर्जाओं का डिस्चार्ज करो! स्थूल शरीर को ब्रह्मा चलाते हैं।सूक्ष्म शरीर को शिव और कारण शरीर को विष्णु। तीनों जब मिलकर काम करते हैं तभी आप सामान्य हो सकते हैं।
15.....
1-15 दिन के लिए एकांतवास!
2-आने के लिए मना ही नहीं। तुम सब हमारे ही वंशज! पुराने नाना ...प्रभु के मन का रास्ता हृदय से होकर जाता है।अभी उनके हृदय में जाने का रास्ता नहीं मिला।अभी हमें एक काम सौंपा गया। उस काम को पूरा करना है।
3-अपने आराध्य से प्रेम करो।अपने लक्ष्य को निर्धारित करके फिर भटक मत जाना।अपने लक्ष्य पर ही ध्यान केंद्रित करना।
4-अपने चारों और सभी लोगों में अपने आराध्य को देखो और प्रेम पूर्वक देखें। कोई दुश्मन दिखेगा ही नहीं, सब जगह आराध्य ही आराध्य देखेंगे।एक दुश्मन में भी उन्हीं को देखो!तो दुश्मनी अपने आप समाप्त हो जाएगी।
5-ज्ञान के मार्ग में तो चल चुकी हो।अब हृदय के मार्ग में चलो! प्रेम करो! विश्वास करो! मंदबुद्धि हो जाओ।मन शुद्ध हो जाएगा।
6-सभी सन्यासियों को पत्थरों से मारा गया।उन्हें पूर्ण पागल समझा गया।तुम्हें भी थोड़ा पागल समझा जाता है। जिस दिन तुम्हें पूरा पागल समझा जाएगा।उस दिन ईश्वर से मुलाकात हो जाएगी।पागल को वृद्धाश्रम भेज दिया जाता है।अर्थात अपनी कंदरा में भेज दिया जाता है।जब पूर्ण पागल हो जाओगी तो अपनी कंदरा में चली जाओगी। तब जब मन आएगा तो नाचोगी ;जब मन आएगा तो गाओगी ।फिर सब कुछ मन से करोगी।एक मंदबुद्धि हजारों की भीड़ में भी नाच लेता है।हजारों की भीड़ में भी गा लेता है। जब उसका मन आता है, तब वह करता है।वह स्वतंत्र होता है।लोग उन पर दया करते है।
7-यह बातचीत सामान्य तो नहीं है, यही तो शिफ्टिंग है।भौतिकता में शिफ्टिंग नहीं होती।वास्तविक शिफ्टिंग तो यही है।
8-प्राप्ति और प्रणव मिलकर क्रिया करते हैं।उस क्रिया से प्रकाश उत्पन्न होता है।उसी प्रकाश में सो जाओ।
9-जनक भी तू जननी भी तू। प्रेम की मंदाकिनी भी तू!
10-धैर्य रखो! विश्वास रखो!
विचारों का मंथन मत करो।
मंदबुद्धि हो जाओ! मन शुद्ध हो जाएगा।मंदबुद्धि ही प्रेम की पराकाष्ठा में पहुंच सकते हैं।
11-तुम्हारी कड़ियां अपनी-अपनी समस्याओं में फंसी हुई है।सब को सब कुछ अच्छा नहीं मिलता वरना कोई इस रास्ते में चलेगा ही नहीं।
12-वह जो कर रहा है और जो करने वाला है उसे खुद ही नहीं पता।
13-जागना, नहाना, खाना ,रोना, सोना, हंसना ,प्रेम करना। सब कुछ अपने आराध्य के लिए करो।
16.....
1-साधना के तीन महत्वपूर्ण स्टेप्स.....।
1-पहला स्टेप है....
स्वयं में अपने आराध्य को देखना।अपनी आंखों में अपने आराध्य की आंख। अपने हाथों में अपने आराध्य के हाथ।
अपने ही अंदर अपने आराध्य की अनुभूति करना।
2-दूसरा स्टेप है.....।
जब स्वयं के अंदर आराध्य की अनुभूति हो जाए;तब अपने चारों ओर सभी लोगों में अपने आराध्य को देखना।
ध्यान रहे जब तक स्वयं के अंदर अपने आराध्य की अनुभूति ना हो।तब तक बाहर सब में आराध्य को ना देखें।
यदि आप शत्रु में भी अपने आराध्य को देखेंगे तो शत्रुता समाप्त हो जाएगी।जिसने स्वयं अपने अंदर आराध्य की अनुभूति नहीं कर उसे यह स्टेप भी नहीं करना चाहिए।
3-तीसरा स्टेप है.....।
स्वयं के अंदर और अपने चारों ओर अपने आराध्य की अनुभूति करने के पश्चात साधना की चरम सीमा है
ईश्वर से भाव से जुड़ जाना और बुद्धि का इस्तेमाल बंद कर देना ।जब हम ईश्वर से भाव से जुड़ते हैं तो पूर्ण पागल हो जाते हैं।मंदबुद्धि हो जाना ही साधना की ,प्रेम की पराकाष्ठा है।मंदबुद्धि मन को शुद्ध कर देता है और शुद्ध मन में ईश्वर का वास हो जाता है।
नोट.....!
जब तक स्वयं मेंआराध्य की , सोमेश्वर की अनुभूति ना हो जाए तब तक चारों ओर आराध्य की अनुभूति न करना चाहिए।
और जब तक यह दोनों स्टेप पूरे ना हो जाए ..बुद्धि का त्याग ना करें।इन दोनों के स्टेप के पूरे होने के बाद ही आप प्रेम की पराकाष्ठा में पहुंच सकते हैं।
17.....
1-जो इस मार्ग में चलता है उसे पूरा ब्रह्मांड सहायता देता है।
2-तुम्हारे साथ अदृश्य शक्तियां रहती हैं ...चंद्रमा ।
3-आकाश में अर्धचंद्र की ओर देखो!जिस तरह से चंद्रमा अपनी पूर्णता को प्राप्त करता है। उसी तरह पूर्णता प्राप्त करो।
प्रत्येक दिन धीरे-धीरे ...।
4-चलो तुमने प्रलय -प्रत्यंतर से कुछ सीखा तो है।मैं प्रत्येक शिवरात्रि को महाकाल में शिवलिंग की पूजा करने आता हूं।
पूजा करना मेरे मन की शांति है।
5-जिसने अपने मन में अपने आराध्य को बसा लिया ..उसे सभी सहायता करते हैं।फल की चिंता मत करो।
सब धीरे-धीरे हो जाएगा।धैर्य रखो.. विश्वास रखो।
18.....
1-पहले सिर्फ कृष्ण को देखो और कुछ भी नही,, फिर संसार मे हर इंसान मे कृष्ण को देखो, बर्बरिक बन जाओ।उसके बाद मेरी छवि भुला दो समस्त संसार मे मुझे ही पाओ ..मेरी ही अनुभूति करो ।
2-प्रश्न जो भी मन मे उठे,उन्हें कह दो या तो प्रश्न ख़त्म हो जायेगा या फिर रिश्ता। भीतर प्रश्न रखना उचित नहीं है,जो अपने होते हैँ वो प्रश्न पूछने से करीब आ जाते हैँ।जो पराये होते हैँ वो प्रश्न उठाने पर दूर हो जाते हैँ। दोनों सूरत मे फायदा तुम्हारा ही होगा।
3-देवताओ की माता और असुरों की माता... जब पति एक ही है तो इतना भेद क्यों है?इंद्र भी तो राक्षस हैँ तो उनका वध क्यों नहीं किया जाता है।
4-इतनी समस्याएं आने के बाद भी यदि कोई चल रहा है। इसका अर्थ है कोई पराशक्ति उसके साथ है।
5-स्थान का महत्व नहीं होता।मन में स्थान का महत्व होता है।अभी वहां पिंडी पर जाने की इच्छा करो।अभी पहुंच जाओगी । तुम्हारी और उस सन्यासी की यात्रा अलग है।बहुत शीघ्र तुम्हें वहां आना है।
6-समस्याओं के समाधान भी तो मिल रहे हैं।ऐसे ही चलता रहे तो समस्याओं से निकल आएगा।उसकी गलती है तुम्हारी बात ना मानने की... तुम्हें कष्ट इसलिए हुआ जैसे मुझे कष्ट होता है। मां हो ना इसलिए।
7-तुम्हारी कड़िया यदि नहीं समझ रही हैं तो समझ लेंगी। वरना समय उन्हें समझा देगा।तुम्हारा दायित्व है अपनी कड़ियों का हाथ पकड़े रहने का।
8-जिसके हृदय में शिव का वास होता है।उसका हृदय कोमल हो जाता है।वह दूसरे के दुख दर्द को अपना दुख दर्द समझ लेता है।इसलिए तुम बली नहीं देख पाती।मुझे जो भक्त प्रेम से अर्पण करता है ..मुझे सब स्वीकार है चाहे कोई जल अर्पण करें या बली।जो भक्त जैसा करता है, मैं उसे वैसा ही वापस कर देती हूं।
9-जो मेरे पति का हाथ पकड़ लेता है, मैं उसका हाथ पकड़ लेती हूं।तुम इनकी गुरु हो और तुम्हारे गुरु मेरे पति है।
10-जब अनुभूती हो गयी तो क्यों पूछ रही हो... मै तो हर पल तुम्हारे साथ रहती हूं।
19 .....
1-शिव शिव तत्व है और भैरव उनका तत्व है, तुम्हें तो शिव चाहिए।
2-जो अपने गुरु का सम्मान करेगा और उसकी आज्ञा मानेगा वह यात्रा की पूर्णता को प्राप्त कर लेगा।
तुमने दोनों को बता दिया है। बहुत शीघ्र तुम्हें अनुभूति हो जाएगी।
3-शिव तो हर पल तुम्हारे साथ रहते हैं जब अंतर्मुखी हो जाते हैं तो तुम्हें उनकी अनुभूति नहीं हो पाती।
4-न्यू ईयर में कहीं जाओ, चाहे ना जाओ। अपने अंदर चले जाओ।
5-उसका कहना भी सही है।परंतु तुम्हारा क्या निर्णय है? अपनी उर्जा का कैसे प्रयोग करोगे? इस तरीके से या गालियां देकर?
20 .....
1-आपकी ऑंखें मुझे प्यारी लगी कुछ इस कदर, देखने का मन करे दुनिया तेरी आँखों से अब।
आपके होठों का आलम क्या कहें हम , ऐ सनम, जैसे छुआ मेरे ख़तम सारे जनम।
आपके पैरों कि पायल आपके कोमल से पग, इनको छुआ ऐसा लगा मुझको मिला एक नया जनम।
आपके माथे पे सजता है जो प्यारा सा,है मोर भी सौभाग्यशाली , जिसने किये तुमको समर्पित पँख ऐ अपने।
2-हाल ऐ दिल..... 🙏🏾
किसको बताऊँ हाले दिल ,जबसे मिले तुमसे सनम ,दिल को हुई बड़ी मुश्किल।
तेरा वो मुझको देखना, तेरी नजर कातिल लगे,किसको कहूं मैं क्या कहूं ।
तेरा वो मुझसे बात करना, लब तेरे नाजुक से वो, होठों का जब खिलके हंसना, किसको कहूं और क्या कहूं।
तेरी वो हाथों कि छुअन, दिल को मेरे घायल करें, किससे बताऊँ हाल ऐ दिल , जाने यहाँ ना कोई भी मेरा ऐ दिल ,
क्या चाहता है सब कृपा तेरी सांवरे 🙏🏾
जब तुम कुछ हमसे बोलते हो ,कुछ नहीं कह पाती हूं तब, इसलिए मैं कह रही हूं ,शुक्रिया तेरा कर रही हूँ।
तुम रहो मेरे साथ हर पल, ये दुआ मैं कर रही हूं, शुक्रिया तेरा कर रही हूँ, गलतियों को माफ करना, बस मेरे तुम साथ रहना। थामे मेरा हाथ रहना, और अब कोई डर नहीं है, बस तुम ना हमसे दूर जाना।
🙏🏾 मेरे साँवरिया 🙏🏾🤗❤❤ शिवोहम❤❤
21 .....
1-भाव भी तू ;भवानी भी तू।
ब्रह्म भी तू ;ब्रह्मांड भी तू।
सब जगह बस तू ही तू।
2-आप प्रेम की देवी हैं। आशीर्वाद दीजिए कि हम भी आपकी तरह प्रेम कर पाए।यदि मेरी तरह प्रेम नहीं कर पाए तो प्रकृति एक दिन सिखा देगी। यही तो सिखाया जा रहा है।ऐसा ना कहिए।हम लोग वैसे भी बहुत दंड पा चुके हैं।तो यह तुम्हारी शिकायत है या कष्ट?शिकायत तो नहीं है क्योंकि यह ज्ञान तो है कि आप लोग कभी गलत करते ही नहीं हो। हां कष्ट है। अगर ठोकर खाकर कष्ट हो रहा है तो इसका अर्थ है कि श्रद्धा कम है। वरना प्रसन्नता में तो सभी प्रसन्न होते हैं।जो ठोकर खाकर भी प्रसन्न हो..वही प्रसन्न है।दंड भी तो भक्तों को ही दिए जाते हैं।पाकर प्रसन्न हुई या दुखी।ठोकर खाकर प्रसन्नता नहीं हो रही तो श्रद्धा बढ़ाओ।
3-ब्रह्मांड पति तो एक ही है।हरि हर एक ही है। प्रेम का महत्व हैं पति का नहीं।
4-हरिहर तो एक ही है।सारे पंथ इसलिए बनाए गए हैं कि जो जिस जगह पर हो वो यात्रा कर ले।और यह जिसको पता चलता जाएगा उसके सामने सारे रहस्य खुलते जाएंगे।हृदय में आराध्य की जो फोटो है..उसी फोटो पर फोकस करो! तब वह तुम्हें सब में दिखने लगेगा।
5-नंदी में करोड़ों भक्त हैं।तुलसी में करोड़ों भक्त हैं।तो यह बात जो कह रही थी, वह तुम नहीं थी।
यह सत्य है कि यह तुम्हारी भाषा नहीं थी।
6- जो मेरे आराध्य को प्रेम करता है, मैं उसको प्रेम करता हूं।हरिहर में भेद से भ्रम उत्पन्न होता है।भ्रम से मन की गति बढ़ जाती है।
संसार में मन मत भटकाओ। तुम जिस दुनिया में हो...इस दुनिया में अगर कोई तुम पर पत्थर मारेगा तो वह पत्थर लौटकर उसी पर जाएगा।इसलिए ईश्वर पर विश्वास रखो!
....SHIVOHAM....
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