top of page

Recent Posts

Archive

Tags

ज्ञान गंगा-5.....गुरु- शिष्य वार्तालाप

1.....

1-क्या जब तुम्हे संसार मे प्रेम हुआ है तो वो तुम्हारे कि कारण हुआ है वो प्रेम क्या सत्य मे तुमने किया है या वो बस हो गया है पहली नजर का प्रेम बस हो गया जब उस प्रेम तक को तुमने सोच समझ के नहीं किया।तो हमसे प्रेम तुमने कैसे किया ....ये प्रेम का अंकुर फूटा तो मेरी इच्छा से ही ना। उस पर तुम इतना विचार क्यों करती हो .... प्रेम अगर संसार मे किसी से हो जाये तो पूरी दुनिया मे बस वही नजर आता है और कुछ भी नहीं ।वैसा ही प्रेम तुमको भी हुआ है तो इस प्रेम पर सवाल क्यों, बस संसार का प्रेम समय के साथ कम हो जाता है, और कृष्ण से प्रेम बढ़ता ही जाता है।

2- खेत सरसों का और चने का,, अगर समय से पहले सरसों को या चने को तोड़कर मसल दिया जाये तो वो अपना अस्तित्व खो देते हैँ और उन्हें पकने दिया जाये तो उन्हें मसलकर तोड़ पाना मुश्किल होता है।इसी तरह तुम्हारा रिश्ता कमजोर है ।इसे पक़ जाने दो फिर इसको मसल कर मिटा देना संभव नहीं हो पायेगा।

3- तुम अभी प्रेम करने के मार्ग पर हो.. रामकृष्ण बन जाने के मार्ग पर नहीं हो । पहले वो बन जाओ, फिर परमहंस तुमको हम बना ही देंगे।पहले पूर्ण रूप से रामकृष्ण बनो।

4- तुम्हे पति के रूप मे ही कृष्ण चाहिए.. पर क्यों?क्या प्रेम इम्पोर्टेन्ट नहीं है। जिन्हे हम पति बनकर मिले,हम उनके नहीं हो पाए,, हम तो आज भी बस प्रेमी के नाम से जाने जाते है।

5- मेरी बंसी के सात छेद है और अगर एक भी बंद हो जाये तो बांसुरी बज नहीं पायेगी। उसी तरह तुम तीन हो अगर एक भी बिछड़ जाये तो यात्रा रुक जाएगी..।

6-भक्त भले हो भगवान के चरणों मे रहना चाहे,पर भक्त हमेशा भगवान के ह्रदय मे निवास करता है।

7- सात फेरे जरुरी नहीं पर ये जरूरी है कि प्रेम के सात वचन जान लो पहचान लो...।

8-तुम्हे कृष्ण प्रिय है, तुम ऑंखें बंद करके बहुत आसानी से हमें देख लोगी, क्योकि तुम्हे हमसे प्रेम है।दी को शिव प्रिय है वो आसानी से नेत्र बंद करके उनको देख लेंगी.. उनसे अपने ह्रदय कि बात कर लेंगी। तुम बताओ दोनों मे भेद क्या है, क्या कृष्ण योगेश्वर है तो शिव नहीं है,, क्या नृत्य करते हुए शिव कृष्ण नहीं है।तुम शिवलिंग मे देखते हो और जानते हो कि तीनों देव उसमे ही हैँ,, पर क्या उसमे किसी की भी छवि है?तुम जिसको चाहो उसे देख सकते हो.. वो शिव हो या कृष्ण हो....। जो ह्रदय मे होगा वही दिखेगा, छवि तो बस एक जरिया है कण कण मे उन्हें पा लेने का...।

9-काम तो प्रेम की पहली सीधी है, ये गलत होता तो संसार में क्यों होता, तो बार बार ये विचार क्यों...? अगर प्रेम हमसे जुडा है तो काम को कामदेव बना ही देगा... वो प्रेम मे बदल ही जायेगा -समय के साथ साथ...।

2.....

1-अंतर्मुखी होने की विधि.....

एक 24 घंटे के दिन में 8 प्रहर होते हैं, यानि एक प्रहर औसतन 3 घंटों के बराबर होता है।एक प्रहर के लिए... स्वास प्रश्वास में खो जाओ..दोनों का मिलन हो जाए।आती हुई सांस शिव हैं और जाती हुई सांस तुम।दोनों सांसों का मिलन करा दो।इस मिलन में मंत्रों की आवश्यकता नहीं है।मंत्रों का प्रयोग शरीर में झनकारो ,कंपन के लिए किया जाता है।मंत्र की सहायता ली जाती है परंतु मंत्र से मंजिल नहीं मिलती।

2-ध्यान रहे जब पहाड़ की चोटी दिखाई पड़ने लगती है ,तब सात कदम की दूरी भी मिलो की दूरी दिखाई पड़ती है। परंतु वास्तविकता यह नहीं है। तुम मिलो दौड़कर आ चुके हो।विचारों के प्रवाह को रोको। दर्पण की धूल झाड़ दो और तैयार हो जाओ एक लंबी दौड़ के लिए। उस लंबी दौड़ का समय आ गया है।अगर मन के दर्पण की धूल और विचारों के प्रवाह को स्वीकार कर रही हो तो इसका अर्थ है कि समर्पण सीख लिया है।

3- परम सत्य ही परम मित्र है।सत्य चारों कोनों से। अलग अलग दिखाई पड़ता है।परंतु मध्य में एक ही होता है।

मूल से मत हटो!मेरे पिता कहते हैं जिनके पास आवश्यकता से अधिक धन है उनको आवश्यकता से अधिक धन को गरीब लोगों में बांट देना चाहिए ताकि कोई दुनिया में गरीब ना हो ।मेरी माता हमेशा इस बात से प्रसन्न होंगी कि कोई उनके गरीब बच्चों को खाना खिलाए।

4- मित्र आत्मा आपको प्रसन्न करने का प्रयास करती है।आपको सुख देती है।जो दुख देने का प्रयास करें वो मित्र नहीं है।

सम हो जाओ परंतु उससे दूरी बना लो।

5- आपने कहा कि नंदी में लाखों -करोड़ों आत्माओं का वास है।उसी प्रकार कैलाश के एक -एक कंकड़ में लाखों आत्माओं का वास है।तुम्हारे साथ बहुत सी आत्माएं यात्रा कर रहे हैं।

6-आप मंदिर में कुछ चढ़ाते हैं तो देवी वहां पर आपके केवल भाव लेती हैं।उस धन का किसके द्वारा दुरुपयोग हो रहा है, क्या हो रहा है;यह आपकी समस्या नहीं है।आपने संकल्प लिया ,पूरा कर दिया।यह आपकी इच्छा पर निर्भर है कि आप ट्रस्ट में दें..खाना खिला दें । आप संकल्प करते हैं और देवी केवल आप का भाव देखती है।

7- ध्यान रहे बंद मुट्ठी सफल होती है।सबल होती है। और खुली मुट्ठी निर्बल!

8-एक समय ऐसा भी आएगा जब हम रोज बात करेंगे।अभी समय है एक लंबी दौड़ लगाने का।अच्छाई और बुराई के पार। कोई है जो तुमसे मिलेगा। अपने सभी विचारों को,हृदय की ग्रंथियों को विसर्जित कर दो।

और निकल पड़े उस आनंद यात्रा के लिए।

9-जब आपके पास बहुत सी ऊर्जा होती है। परंतु व्यवस्थित नहीं होती तब अनियंत्रित हो जाती हैं।आपके घर में कोई नेगेटिव एनर्जी प्रवेश नहीं कर सकती।ध्यान होगा कि उसने एनर्जी ने कैसे प्रवेश किया था। संकेत तो दे दिया गया था।यह किसी का प्रारब्ध था। आपको उस से मुक्त कर दिया गया है।आपका सानिध्य देकर उसे सुधरने का अवसर दिया गया।परंतु उसने स्वीकार नहीं किया। इसलिए उसे बाहर कर दिया गया।वस्तुतः नेगेटिव और पॉजिटिव दोनों एनर्जी शिव की ही है।

10-जैसे मैं अपने माता-पिता का आज्ञाकारी हूं।वैसे ही आप लोग बने।जैसे मेरे हृदय में अपने माता पिता के लिए अथाह प्रेम है।

वैसे ही आप लोगों के हृदय में भी उनके प्रति प्रेम हो।

11-यदि किसी को जज बनाना हो तो उसे क्लर्क की पोस्ट से इस्तीफा देना पड़ता है।हृदय में कोई इच्छा जगती है तो यात्रा करनी पड़ती है।तुम्हारे साथ साथ न जाने कितनी आत्माएं यात्रा कर रही है।

12-एक मुट्ठी जब बंद होती है तो एकता का प्रतीक होती है।और जब खुल जाती है तो निर्बल हो जाती है। जिस प्रकार से एक गाड़ी अगर रुक जाए तो एक व्यक्ति को स्टेयरिंग पकड़नी पड़ती है और दो व्यक्तियों को धक्का देना पड़ता है।तब गाड़ी चल पाती है।तीनो लोग इसी प्रकार मिलकर कार्य करो।तुम्हारी तीन की कड़ी है।

13-परम सत्य ही परम मित्र है।

3.....

1-विनम्रता से विश्वास उत्पन्न होता है।

2-संसार में चार प्रकार के मनुष्य है।पहले पाशविक! दूसरे आधे मनुष्य और आधे पशु।तीसरे मनुष्य लेकिन केवल शरीर के स्तर पर ।चौथे शरीर से उठे हुए मनुष्य।जो जान लेते हैं वह मान लेते हैं।और जो मान लेते हैं, वह सुधार लेते हैं।

3-हमारे आराध्य और आपके आराध्य एक ही है।क्या राम पर प्रश्न उठा कर आपने अपने आराध्य पर ही प्रश्न नहीं उठा दिया ? क्योंकि आपके आराध्य राम का ही ध्यान करते हैं।यदि श्री राम एक बार सीता से मिल लेते तो उन्हें जाने ही ना देते या उनके साथ चले जाते।इसलिए राम उनसे कहने के लिए नहीं गए। मर्यादा पुरुषोत्तम का पालन करना बहुत कठिन होता है।तुम कहती हो कि मैंने उनके सम्मान के लिए ऐसा किया। ऐसा नहीं है। मैंने संपूर्ण स्त्री जाति के सम्मान के लिए ऐसा किया है।अपने पर्सनल तो कुछ किया ही नहीं। मैंने मनुष्य के हर भाव को ,हर कष्ट को समझा है।

4-सखी और भक्तों में भेद होता है।सखी अधिकार समझती है जबकि भक्त अधिकार नहीं समझता है।

5-मन विद्रोह करता है। मन का संगठन करो।धैर्यता और एकाग्रता से मन विद्रोह करना बंद कर देता है।

6-जो मौन होते हैं उनमें अथाह रस होता है।

7- ज्ञान सुंदर है और सुंदर ही शिव है।परंतु अधूरा ज्ञान खतरनाक होता है।अज्ञानी को समझाया सकता है क्योकि इनोसेंट होता है।परन्तु अधूरे ज्ञान को समझाना कठिन है।

8-चंचल मन को नियंत्रित करना..चंचला अच्छी तरह जानती है।नारायण जब कृष्ण बनते हैं तो योगेश्वर हो जाते हैं। लेकिन मैं जब राधा बनती हूं तो सिर्फ प्रेम करती हूं। जब योगेश्वर से प्रेम करती हूं तो मन स्वयं ही नियंत्रित हो जाता है।

9-मन को स्वतंत्र कर दो और ज्ञान सहित दृष्टा हो जाओ। मन पर बंधन लगाने से मन का नियंत्रण नहीं होता। ।

10-विनम्रता केवल बड़ों से नहीं करनी है बल्कि अपने छोटे से भी करनी है।

11-दो प्रकार के लोग होते हैं।एक स्वर्ग को स्वर्ग बनाते हैं। दूसरे धरती पर स्वर्ग बनाते हैं।आप किस कैटेगरी में है?

यदि आपको सानिध्य चाहिए तो अपने अंदर स्वर्ग बना लो।

12-जब धरती पर कृष्ण का ज्ञान मलिन होने लगेगा। तब कोई दूसरा आएगा उस ज्ञान का विस्तार करने।

13-हिरण्यकश्यप के अत्याचारों से पीड़ित लोग डर कर मुझे बुला रहे थे। जबकि प्रहलाद निर्भय होकर

प्रेम से मुझे बुला रहा था। मुझे प्रेम से बुलाना पसंद है।

14 -प्रत्येक व्यक्ति अपनी व्याख्या करने के लिए स्वतंत्र है।

15-कोमल व्यक्ति ही कठोर हो जाता है।

4.....

1-सात सुरों का संगम है।सात सुरों का मिलन है।सात सुरों की यात्रा है।

2-परम के आनंद में रहो। परम के मिलन में रहो। परम का मिलन केवल निस्वार्थ भाव से ही संभव है।

संसार में निस्वार्थ भाव से काम करो।

3-संपूर्ण ब्रह्मांड शिवमय है।तुम ही शिवांश हो, तुम ही शिव हो।शिवलिंग में बदलने की ही यात्रा है।

4-नाभि से सांस लो । सागर तुम्हारे ही अंदर है।लहरें सब लेकर आती हैं और लहरें सब लेकर चली जाती हैं ।पानी का ना कोई आरंभ है ना अंत है।मृत्यु है और जीवन है।तमस है और ज्योति है।

5-हे प्रभु हमें विचारों की मुक्ति दो! हमें विकारों से मुक्ति दो । हमें अवगुणों से मुक्ति दो।हमारे अंदर शाश्वत अमृत भर दो!

हम शाश्वत प्रेम से एकाकार हो जाएं।हम इस जल की तरह आप में समा जाएं।

6-प्रकृति भेद नहीं करती है।परम की कहानी ही परम तक पहुंचाती है।पहाड़ की टकराती हवा को महसूस करो।

उसी में खो जाओ।नदी के जल में उठते शिवलिंग और ओम को देखो! महसूस करो! यही तो शाश्वतता है!

5.....

महर्षि दधीची से बात;-

मेरा प्रश्न ////// मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है ,, दीदी को लेकर हमको समझ नहीं आता है कि हम क्या और क्यों बोल रहे हैँ?

उत्तर //// तुमको रिश्ते का सच इसलिए बताया गया था ताकि तुम करीब जा सको हक़ समझ कर,, तुमने सच जानकर अपनी माँ से प्रेम साध लिया,, मगर तुमने सांसारिक रिश्ता समझकर ही इसको भी निभाया यहाँ पर समस्या आ गयी है। अगर ये रिश्ता सांसारिक होता तो एक अंतर होता,, उन्होंने कहा कि तुम अपनी माँ से जो इस जन्म मे तुम्हारी माँ है उनसे कितनी बात करती हो। हमने कहा 7 दिन मे एक बार, कभी कभी, । तो क्या उनसे तुम्हे प्रेम नहीं है, प्रेम तो वहाँ भी है ना.. फिर बात क्यों नहीं होती है। क्योकि वहाँ आत्मिक रिश्ता नहीं है, इस अंतर को समझो।

मेरा प्रश्न //// सच जानने के बाद हम क्या करते प्रेम अपने आप आ गया मेरे भीतर और सच जानने के बाद हमको क्या मिला है। हम बंध गये थे ना एक अजीब सी डोर मे, चाह के भी हम दूर नहीं हो पाए। कितना दुख दिया है इस एक सच ने हमें, ऐसा सच जानना जरुरी क्यों था और अगर जाना तो प्यार मेरे भीतर ही क्यों दीदी के अंदर भी प्रेम जागना चाहिए ना ।

उत्तर ///// अगर तुम्हे ये सच ना बताया जाता तो तुम पहली बार जब दीदी ने तुमसे बात करना छोड़ा था तुम उसी वक्त उनसे दूर हो जाती। तुम कभी किसी ससुराल वाले का भला बुरा नहीं सुन पाती पर अपनी माँ थी इसलिए सुनती गयी। तुममे ...भेद था वहाँ ससुराल खड़ा ना हो इसलिए ये सच जानना जरुरी था ।तुम्हारी दीदी के भाग्य मे पुत्री प्रेम था और उनके पति के भाग्य मे नहीं था,तुम्हारा मिलना तय था ।

प्रश्न //// जब मिलना तय था तो दूर क्यों किया गया,, दीदी के मन मे इतनी नफरत क्यों आयी,, उस दूरी कि वजह से हम आज तक डरे रहते है। आप तो सब जानते हैँ कि मेरे अंदर क्या क्या आता है, दीदी मेरी माँ होकर भी हमसे कितना कुछ बोलती है। हमें कितना दुख होता है आपको तो सब पता है,, एक रिश्ते के कारण इतना दर्द क्यों होता है हमें।

उत्तर /// तुम्हारे भीतर नैसर्गिक प्रेम को जगाना था ...वो प्रेम ऐसे ही जाग सकता था,, इस संसार मे मंथन से पहले विष निकलता ही है। तुम्हारे भीतर नैसर्गिक प्रेम का भाव जगा मगर वो व्यक्ति पास मे नहीं था।अगर ह्रदय से लगा लेता तो ये सब ना होता।इसलिए वो प्रेम संसार के लिए विषाक्त हो गया पर अब शुद्धिकरण शुरु हो चुका है। जिस दिन प्रेम शुद्ध हो गया ..पूर्णरूप से उसी पल संगम हो जायेगा।

प्रश्न /// हम अब ऐसा क्या करें जिससे सब कुछ ठीक रह सके हमारे बीच मे,, हम दोनों को हर्ट होता है इसे हम जानते हैँ।फिर भी ये भिड़ना क्यों हो रहा है?

उत्तर //// वो 7 महीने कि पीड़ा तुम्हे छोटी छोटी बात पर दुखी कर रही है।ये प्रेम से दूर हो जाएगी, दीदी के दृदय मे प्रेम है अनंत प्रेम है। तुम इस नये वर्ष पर एक प्रण लो कि अपनी 3 बातों को नियंत्रण मे रखने का प्रयास करोगी, एक क्रोध और दूसरी गुरु की बात को समझने का। पहले ध्यान से सुनो फिर समझो फिर मानो। ❤❤

शिवोहम 🙏🏾🙏🏾🙏🏾

6.....

1-तुम तीनों यात्रा में आगे पीछे हो।केवल निस्वार्थ भाव से कार्य करो। यही तुम्हारी यात्रा को पूरा करा देगा।

2-ह्रदय के द्वार को खोल दो और भय से ऊपर उठ जाओ।सागर तुम्हारे ही अंदर है।संसार की सभी प्रजातियों के शरीर में पानी की मात्रा ही सबसे ज्यादा है।और यह पानी बिल्कुल समुद्र के पानी की ही तरह खारा है।तुम्हारे पूरे शरीर में समुद्र है। परंतु तुम्हारे ह्रदय में समुद्र की रहस्यमय गहराइयां है।तुम्हारी प्यास रहस्यमय गहराइयों की है।इसलिए तुमको उस अथाह गहराई में डुबकी लगानी होगी।जिस प्रकार अमृत की एक -एक बूँद मनुष्य को अमर कर देती है।उसी प्रकार संसार मे मिली प्रेम की एक बूँद आपके भीतर जो प्रेम का सागर है आपको उस तक पंहुचा देती है। अनंत के प्रेम तक पहुंचने का मार्ग बना देती है।

3-तुम्हें प्रेम से भय क्यों है?क्या तुम्हारी कड़ियों में प्रेम नहीं है ?तुम हृदय के दरवाजे क्यों बंद कर रही हो?ये व्यग्रता क्यों है ?जिसने धोखा दिया वह उसकी समस्या है,तुम्हारी नहीं!तुमने जिस भी व्यक्ति से इस संसार मे प्रेम किया.. उन्होंने तुमको प्रेम करना सिखाया,जिसने भी तुमको धोखा दिया या साथ छोड़ दिया ये उनका चयन था।उन्होंने प्रेम भरा ह्रदय खोया।आपने क्या खोया ..उसमे आपका तो कुछ गया नही। वो आपसे दूर हुए ये आपके लिए तो अच्छा ही है।आपने उनकी वजह से खुद को क्यों बदल लिया, प्रेम का स्वीकार्य ही नही बचा आपमें,, भय ने उसका स्थान ले लिया ऐसा क्यों... ? जिसने भी शिव की गंगा को धोखा दिया है - उसे तो शिव देखेंगे ही!जिसने भी तुम्हें ठोकर मारी।उसने तुम्हारी यात्रा को ही आगे बढ़ाया है।ऐसा कोई भी नहीं है, जिसने तुम्हारी यात्रा को रोका हो।सभी ने तुम्हारी यात्रा को बढ़ाया है।आवश्यकता है दृष्टिकोण बदलने की।प्रेम की प्यास आनंददायी है।प्रेम के भटगांव में भी आनंद है।भटकना मंजिल मिलने की पहली निशानी है।

4-संसार मे मिलने वाली प्रेम की एक बूंद तुम्हारे भीतर के प्रेम के सागर को जाग्रत कर देगी। अपने उस अथाह प्रेम के सागर मे अपने आराध्य की स्थापना कर लो। ये जो गलतियां आपसे हो रही हैँ ..आपके आराध्य आपका हाथ थामकर आपको रोक लिया करेंगे।आप परिधि मे हैँ, केंद्र तक जाती है पर फिर परिधि मे ही आ जाती है। अपने केंद्र मे उनकी स्थापना कीजिये। इससे आपकी सब शिकायते दूर हो जायेंगी ।अपनी सखी का हाथ पकड़कर उसे उचित मार्ग दिखाना तो मेरा कर्म है।ये आपके आराध्य की ही इच्छा है।जिस प्रकार एक माँ अपने बच्चे को चलना सिखाती है और उसका हाथ पकड़े रहती है,मगर वो बच्चा चलते चलते दौड़ना अपने आप ही सीख जाता है।गोपेश्वर से उनकी गोपिका का मिलन तो निश्चित ही है...।

5-मनुष्य ने स्वयं को तुच्छ मानकर कुकर्म करना चालू कर दिया। ईश्वर को महान मानकर उसने ईश्वर को अपने से दूर कर दिया। आप यह तो मानते हैं कि ईश्वर जागृत है।लोगों ने तो ईश्वर को जागृत मानना ही बंद कर दिय

6 -तीर तो निकल गया, तुमसे करवा दिया गया। तुम्हारे मन में मलीनता नहीं है।तुमने अंतःकरण की शुद्धि कर ली है ।

ध्यान रहे जो हो चुका है, जो हो रहा है और जो होने वाला है उसमें तुम्हारा नियंत्रण नहीं है।

मुझे ज्ञान योग में नहीं जाना ...प्रेम योग में जाना है।यह चुनाव तो आपका ही है।ध्यान रहे ये आंसू आपके आराध्य के हैं और आप चाहते हो कि आंसू बहते रहे तो यह निर्णय आपका है।जितने कष्ट तुमने सहे है उससे ज्यादा कष्ट मैंने सहे हैं।

7- दोनों में भेद ही कहां है?--- हां भेद नहीं है और है भी। जिस प्रकार से दोनों आंखों में कोई भेद नहीं है परंतु भेद है भी ।

7.....

1-शिव से मिलन की यात्रा का प्रारंभ हो गया है।प्रारब्ध का कारण जानकर आगे बढ़ते जाओ। !

2-मन की उड़ान भरो।पृथ्वी और आकाश दोनों ही जगहों में अपने पंख फैलाने होंगे।

3-बचपन से तुम्हें सानिध्य प्राप्त है।यह शिवोहम जानने की यात्रा है।

4-सरलता से सहजता आती है।सहजता से व्यक्ति प्रिय हो जाता है। प्रिय से अनमोल हो जाता है।

अनमोल से प्रेम में डूब जाता है।तुम अभी तक प्रिय तक पहुंची हो।जिस दिन मैं तुम्हारे लिए अनमोल हो जाऊंगा।

तुम प्रेम के सागर में डूब जाओगे।उसके बाद वापसी नहीं होती।मैं प्रिय तो हूं परंतु तुम संसार के विचार में फंस जाती हो!

आप आधार हो यह जान लिया है तो अपने आधार को आकार दे दो।पूर्णता प्राप्त हो जाएगी।

5-संसार में तो समस्याएं हैं ही।संसार की समस्याओं का समाधान तो समय से होगा।

6 -मन ही वैतरणी है।

7- तर्क से सत्य को सिद्ध नहीं किया जा सकता क्योंकि सत्य सनातन होता है।चार लोग सत्य की अलग-अलग व्याख्या कर सकते हैं।लेकिन सत्य बदला नहीं जा सकता।तर्क और हृदय की बात हो तो हृदय की बात पर विश्वास करना।तर्क की बात पर नहीं।

8-तीन प्रकार के लोग हैं संसार में।उदाहरण के लिए हनुमान जी भक्ति का उदाहरण है..वाटर एलिमेंट । अशोक सुंदरी ज्ञान का प्रचार प्रसार करती हैं..एयर एलिमेंट।कार्तिकेय के बिना देवताओं का कोई भी युद्ध संपन्न नहीं हो सकता ..फायर एलिमेंट!

परंतु महर्षि दधीचि। तीनों का संगम है।वह शिव है भी और नहीं भी! उन्होंने देवी के लिए अपनी हड्डियों को तुड़वा दिया

..वाटर एलिमेंट! देवी को ज्ञान दिया ..एयर एलिमेंट!शिव शक्ति के बीच मिलन का माध्यम बने ।शिव से बिछड़ने के भाव से ही उनकी आंखों में आंसू आ जाते हैं..वाटर एलिमेंट।महर्षि में सभी भावों का समावेश है ।इसीलिए उन्हें मुनि श्रेष्ठ कहा जाता है। वह ना संत है ना गृहस्थ , वह उत्तम है।

9-ऋषि दुर्वासा ने कहा तुम्हारा क्रोध कल्याणकारी होता है।केवल सामने वाले को समझना पड़ता है।वह क्रोध दूसरे को समझाने के लिए है। दूसरों को मार्ग दे देता है।

10-भाव में डूबो।ज्ञान को कभी भी भाव से ऊपर मत आने देना।बुद्धि हमेशा श्रद्धा से छोटी होनी चाहिए।

8.....

1-शनी देव -- जो सभी का सम्मान करते हैं और सभी में शिव तत्व देखते हैं।मैं उनका कुछ नहीं करता।

2-सांसो का झूला ही शिव शक्ति का झूला है।जिस दिन सांसों का स्पंदन हो जाएगा।उस दिन जीवन बदल जाएगा।

आती हुई सांस पर शिव का नाम लो या शक्ति का नाम लो और जाती हुई सांस अर्थात मिलन की सांस पर शिव का नाम लो दोनों सांस को शिव से मिलाओ।जिस दिन दोनों सांसे मिल जाएंगे उस दिन स्पंदन हो जाएगा।

3-वह तुम्हारी गुरु है और दूसरी का एलिमेंट है। जितना जरूरी है उतना तुम्हें याद रहता है।उससे ज्यादा जानने की कोशिश करोगी तो संसार का काम नहीं कर पाओगे।

4-इस संसार में पग पग में खतरे है।परन्तु जिनके मार्ग हमारी ओर आते हैं।उनके सभी भय दूर कर दिए जाते हैं।

5-कहीं ना कहीं तुम्हारे मन में उसके प्रति क्रोध हैं।उसमें भी शिव तत्व है।यह सोच कर क्रोध शांत कर लो सपने दिखाकर उन चीजों को काट दिया जाएगा।

6-सत्य की खोज ही सतोपंथ की यात्रा हैं।

7-षट विकारों से मुक्ति युक्ति से नहीं मिलेगी।षट विकार दूर करने के लिए समर्पण होना चाहिए।

8-इच्छा समय की समय की नींव है।

9-तुम्हारे अंदर प्रेम का सागर उमड़ रहा है।लहरों को शांत कर दो। मन को विरोधाभास में ना फंसने दो।

जब भी मन विरोध करें सांसो में शिव का जप करने लगो ।


...SHIVOHAM....















Comments


Single post: Blog_Single_Post_Widget
bottom of page