ज्ञान गंगा-6.....गुरु- शिष्य वार्तालाप
1.....
1-शनी देव -- जो सभी का सम्मान करते हैं और सभी में शिव तत्व देखते हैं।मैं उनका कुछ नहीं करता।
2-सांसो का झूला ही शिव शक्ति का झूला है।जिस दिन सांसों का स्पंदन हो जाएगा।उस दिन जीवन बदल जाएगा।
आती हुई सांस पर शिव का नाम लो या शक्ति का नाम लो और जाती हुई सांस को भी शिव नाम से मिलाओ।जिस दिन दोनों सांसे मिल जाएंगे उस दिन स्पंदन हो जाएगा।
3-वह तुम्हारी गुरु है और दूसरी का एलिमेंट है। जितना जरूरी है उतना तुम्हें याद रहता है।उससे ज्यादा जानने की कोशिश करोगी तो संसार का काम नहीं कर पाओगी ।
4-इस संसार में पग पग में खतरे है।परन्तु जिनके मार्ग हमारी ओर आते हैं।उनके सभी भय दूर कर दिए जाते हैं।
5-कहीं ना कहीं तुम्हारे मन में उसके प्रति क्रोध हैं।उसमें भी शिव तत्व है।यह सोच कर क्रोध शांत कर लो सपने दिखाकर उन चीजों को काट दिया जाएगा।
6-है मेरी सांसों में मेरे पिया। मैंने पिया से वचन है लिया।
7-उलझनों से डरो मत!उलझन से खेलो!आकलन करो कि पहले से तुम में कितना सुधार हुआ है।
8-सत्य की खोज ही शाश्वत प्रेम की खोज है।
9-युधिष्ठिर का अर्थ है सत्य की खोज करने वाला।जब तक कृष्ण रहे तब तक पांडवों ने अपने अंदर तो सत्य की खोज नहीं की।
जब कृष्ण चले गए तब उनको ढूंढते रह गए।अपनी सांसों में कृष्ण की खोज नहीं कर पाए।सत्य से भटक गए।विचारों में फंस गए।शिव उनसे इसलिए नहीं मिले क्योंकि जब वे उनके आराध्य से नहीं मिल पाए तो उनसे कैसे मिलते।
10-मैं भी अपने आराध्य से उतना ही प्रेम करता हूं जितना तुम अपने आराध्य से करती हो।समकक्ष होने का यह अर्थ नहीं होता है कि सम्मान ना करो या प्रेम ना करो।
11-विट्ठल का अर्थ है हठ ।जैसे बच्चा कुछ हठ करता है तो उसे दिया जाता है।ईश्वर को पाने के लिए हठ करना गलत नहीं है।
2.....
1-शब्दों के संकलन का कोई फायदा नहीं।शब्दों को आचरण में उतारो।माता अनियंत्रित हो सकती है विनाशक नहीं।
2-प्रेम में स्थिरता होनी चाहिए। अगर स्थिरता नहीं है तो प्रेम ही नही है।यदि प्रेम में स्थिरता नहीं है तो मिलन भी नहीं हो सकता। मस्तिष्क को विश्राम दे!हृदय की सुने।
3-संसार में दो मूल बातें हैं।किसी का ह्रदय मत दुखाओ।किसी का अहित मत करो और स्वयं को प्रसन्न रखो।
तुम्हारी प्रसन्नता किसी स्वप्न पर या किसी पर निर्भर नहीं होनी चाहिए। स्वनिर्मित होनी चाहिए ..आंतरिक होनी चाहिए।
4-आप अपनी संतानों को नियंत्रित नहीं कर सकती! आप अपनी संतानों को नियंत्रित तभी तक कर सकती हैं।
जब तक वह आपकी गोद में है।एक पहाड़ के नीचे जो वृक्ष होता है ...विकसित नहीं हो पाता।उस वृक्ष को पहाड़ से दूर कर दिया जाता।इसके बाद उसका भाग्य है कि विकसित हो पाता है या नहीं ।मेरी भी तीन संताने है।तीनों संसार के कल्याण के लिए अलग-अलग कार्य कर रही है।
5-मुझे धैर्य ,संयम और प्रेम के फूल पसंद है।
6-यह सहायता भी कुछ दिनों तक दी जा रही है।इसके बाद सहायता बंद कर दी जाएगी।निर्णय आपको लेना है।खुद ही आकलन करना है।
7-तुम चिंता मत करो तुम्हें नए-नए मार्ग दिए जाते रहेंगे।यह सच है कि संसार में सत्य बहुत कड़वा होता है।
8-हृदय में अपार प्रेम और वाणी इतनी कड़वी?संसार में वही व्यक्ति प्रिय होते हैं जिनकी वाणी मधुर होती है।अति प्रिय वाणी भी संदेह की निशानी होती है।
9-जिन्हें माधुर्य का मार्ग प्राप्त हुआ उन्हें भी बहुत असफलताओं का सामना करना पड़ा।चाहे गुरुनानक हो, कबीरदास हो या गौतम बुद्ध हो।गौतम बुद्ध की तो यह हालत हो गई थी कि वह ध्यान करने के लायक भी नहीं बचे थे।वह लेट कर केवल तारों को देख रहे थे और अचानक उन्हें उस क्षण की प्राप्ति हो गई।वह क्षण तुरंत भी आ सकता है और पूरा जीवन भी लग सकता है।
और कई जन्म भी लग सकते हैं।संसार के रिश्ते नाते तो ऐसे ही चलते रहेंगे।कभी वह तुम्हारे बेटे हैं तो कभी तुम उनकी बेटी हो।अपने आध्यात्मिक संसार का इतना विस्तार कर लो कि यह संसार तुम्हें परेशान ना कर पाए।
10-अपने मनोमय कोष को खाली करो और स्वच्छ करो, स्वच्छ करो।
11-क्या आपको यह नहीं अच्छा लगता कि भगवान स्वयं कह रहे हैं कि मैं हृदय में बैठा हूं।आओ मुझसे मिलो आकर।
12-दधिचि आश्रम मैं स्वयं आप को लेकर जाऊंगा।यह मेरा वादा है।
3.....
1-नारायण भज मन पास में सहायक परमात्मा।
2-असफलताओं को साहस बना लो।
3-सुबह आने से पहले अंधेरा और घना हो जाता है।
4-नन्ही चींटी जब अपना दाना लेकर चलती है।सौ बार चलती है और सौ बार फिसलती है।
मगर उसकी हार हर बार नहीं होती।कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।
5-काशी अविनाशी है। यहां मेरे आराध्य ने तपस्या की थी।
6-शमशान वासी प्रिय है? तीन प्रकार का प्रेम होता है। स्व प्रेम! पर प्रेम! ब्रह्म प्रेम! तुम्हें कौन सा प्रेम है?
क्या तुमने रूप साधना की है?क्या तुम दो कदम नहीं चल सकती? यह दो कदम कठिन क्यों है? !
कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढूंढे बन माय।
7-वह ब्रह्म अगर सुंदर है। तो सुंदर से सुंदर ही निकलता है।यह संसार भी सुंदर है।
अगर तुम्हारे साथ विश्वासघात हुए हैं।तो सब प्रारब्ध के फंदे हैं। उनसे बाहर निकल आओ।
8- इसी नश्वर शरीर के अंदर अजर अमर परमात्मा है।तुम्हारे हाथों में उसके हाथ।तुम्हारे पैरों में उसके पैर।तुम्हारे चेहरे में उसका चेहरा! तुम्हारी आंखों में उसकी आंखें।स्वप्रेम करो! यह मेरा आदेश है!
9-मैं यहां शमशान में बैठकर अपना कर्तव्य निभा रहा हूं।मैं यहां मनुष्य को पांच तत्वों से मुक्त करता हूं।दुख और तकलीफों से मुक्त करता हूं।साधक और साधारण मनुष्य में अंतर है।साधक पहले ही पांच तत्वों से मुक्त हो जाता है।
10-प्रत्येक व्यक्ति में ,कण कण में.. शिव तत्व है।यह जानते तो हो लेकिन मानते नहीं है।
11-आत्मा के रथ में सवार होकर परमात्मा की परिक्रमा की जाती है।
12-संसार में जो हो रहा है; जो होने वाला है उसे तुम नहीं रोक सकते।उसे तो ईश्वर भी नहीं रोक सकता।वह भी केवल तुम्हारे साथ खड़ा हो सकता है।
13-तुम्हारा दृढ़ संकल्प ही तुम्हें इस मार्ग में आगे ले जाएगा।तुमने जैसे ही सोचा कि सांस खाली है वैसे ही वह क्षीण हो जाएगी और विलीन हो जाएगी।जब तुम्हारी भक्ति का योग पूरा हो जाएगा तो ऐसी अनुभूति पुनः होगी।आत्म तत्व को जान लो फिर परमात्मा तत्व को जानने के लिए ब्रह्मांड की समस्त शक्तियां तुम्हारी सहायता करेंगी।दृढ़ संकल्प बढ़ा लो।
14-दर्शन दिए जाते हैं परन्तु इन आंखों से दर्शन कभी नहीं हो सकते।
15-ईश्वर की प्रत्येक वस्तु शाश्वत है।चाहे वह पंचतत्व हो या कोई कण।शाश्वत प्रेम में डूब जाओ।परमात्मा को ह्रदय में बैठा लो ...तो परमात्मा की परिक्रमा हो जाती है।
4.....
1-सुंदर से सुंदर ही निकलता है....।
इस संसार में अपने आसपास देखो।तुम्हारे आसपास सब कुछ ही तो सुंदर है।उगता हुआ सूरज देखो। डूबता हुआ सूरज देखो। उगता हुआ पुष्प देखो ।उगते हुए पौधे को देखो।अपने आसपास देखो। इन बादलों को देखो ।प्रकृति को देखो ।किसी जीव को देखो।छोटे बच्चे को देखो। इस संसार में सब कुछ सुंदर है। स्वयं को देखो और फिर हम को देखो!सुंदरता मात्र कैलाश पर्वत में ही नहीं।सुंदरता तो इस संसार में हर उस पल में , हर उस जगह निवास करती है ...जिस पल में तुम हो... जिस जगह में तुम हो। बस दृष्टि बदलो।दृष्टि बदलते ही तुम्हारी पूरी सृष्टि बदल जाएगी।
2-रसेश्वर ब्रह्म....
रसेश्वर ब्रह्म को रस के मार्ग से ही पाया जा सकता है।मीरा का रस संगीत में है ,गायन में है, वादन में है। मीरा ने उसको अपने रस की प्राप्ति का एक चरम मार्ग बना लिया।तुम खोज करो कि तुम्हारा रस किसमें है।उस रस को अपने आराध्य की प्राप्ति का मार्ग बना लो।जैसे मीरा ने अपने गायन के रस में अपने प्रभु को पा लिया। वैसे ही तुम अपने रस में अपने ईष्ट को प्राप्त कर लो।
3-क्या है रस साधना?
रसविहीन साधना से मनुष्य स्वयं को ही प्रसन्न नहीं रख सकता है।वह तो स्वयं पर ही अत्याचार करता है तो अपने आराध्य को कैसे प्रसन्न रख सकता है ? रस विहीन साधना न तो तर्क युक्त है और न ही साध्ययुक्त। प्रेम मंदिर रसेश्वर ब्रह्म की साधना का स्थान है।यहां पर रसेश्वर ब्रह्म की साधना की गई है और उसका माध्यम है मीरा।रस से ही समस्त संसार बना है।रसेश्वर ब्रह्म
से ही समस्त रस निकले है ।रसेश्वर ब्रह्म तो रस से ही प्रसन्न हो सकता है।इस संसार के सारे जीव हमें प्रसन्न करने का प्रयत्न करते हैं... जप के माध्यम से ,तप के माध्यम से ,त्याग के माध्यम से और बलिदान के माध्यम से।रसेश्वर जो स्वयं ही रस में लिप्त रहता है।जिसे रस प्रिय हैं ..वह इन सब बलिदानों से प्रसन्न नहीं होता।यह बलिदान तो मात्र प्रथम सीढ़ी हैं। एक मार्ग है स्वयं को साधने का। स्वयं को साध कर रसेश्वर की यात्रा की जाती है।स्वयं को साधने के पश्चात रसेश्वर तक पहुंचा जाता है।
इसमें रुका नहीं जाता है। इस संसार के समस्त जीव साधना का गलत अर्थ निकाल कर गलत तरीके से उपयोग करते हैं।
5.....
1-कैलाश तुम्हारे ह्रदय में है।कैलाश का अर्थ है शाश्वत प्रेम ।कैलाश एक मनः स्थिति का नाम है... अनासक्ति, संतोष ,
मोह और भौतिकता से मुक्ति । तुम पांच तत्वों के इतना महत्व क्यों देती हो? क्या तुम मुझसे रोज मिलने नहीं आती?
फिर कैलाश चाइना में हो या पाकिस्तान में।क्या तुम पाकिस्तान के हिंगलाज मंदिर नहीं गई थी? क्या तुम्हें पाकिस्तान के सीमा की सीमा रोक पाई?पांच तत्वों के महत्व का त्याग करो और मिलन के महत्व को समझो।
पंचतत्व में फँस गई ,रस में फँस गई।समर्पण सीख लो!
2-भगवान को निस्वार्थ भाव से सेवा करने वाले प्रिय है।सूर्य देवता तपकर संसार को प्रकाश देते हैं।फिर भी संसार उनके प्रति कृतज्ञ नहीं होता।उन तपाने वाले क्षणों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करो।जिनकी वजह से तुम इस मार्ग में खड़े हो। चंद्र देव सूर्य से प्रकाश लेते हैं और संसार को प्रकाश देते हैं।अपने आराध्य के प्रति प्रतिदिन कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।भगवान शिव से ही उनका नाम है, उनका जीवन है।भगवान शिव जैसा अनूठा कोई नहीं।
3-करुणा प्रेम और ज्ञान का संगम है गंगासागर। माता गंगा करुणा का प्रतीक। माता सरस्वती ज्ञान का प्रतीक और माता राधा प्रेम की देवी। प्रेम को आधार बनाओ! करुणा के पंख लगाओ।सत्य की उड़ान भरो! और आराध्य को प्राप्त करो!
4-प्रेम की देवी ने प्रेम सिखाया।परंतु कोई उनके प्रेम को समझ नहीं पाया। और जिसने उनके प्रेम को समझा वह उन्हीं में डूब गया।ज्ञान की देवी ने ज्ञान सिखाया।परंतु संसार ने उसका हथियार की तरह इस्तेमाल कियाऔर अज्ञानता में डूब गया।
करुणा की देवी गंगा ने करुणा से संसार को पाला पोसा।परंतु संसार ने उन्हीं को दूषित कर दिया।उनके प्रति कोई कृतज्ञता व्यक्त नहीं किया।ज्ञान का अहंकार कभी मत करना।अभी तक किया नहीं है परंतु ऐसा ना हो कि क्रोध में किसी को सत्य का बोध कराने लगना।समय आने पर उसे भी सत्य का बोध कराया जाएगा।
5-सूर्य देव शनि देव में कोई झगड़ा नहीं है।मकर संक्रांति के दिन संसार में संतुलन बनाने के लिए पिता पुत्र का मिलन किया जाता है।अंत ही आरंभ है।यदि अंत नहीं होगा तो आरंभ कैसे होगा? जिस दिन प्रेम में डूब जाओगे। उस दिन उसी द्वारका के दर्शन होंगे।
6.....
1-तुम परतंत्र हो या स्वतंत्र हो।...हम ना परतंत्र है ना स्वतंत्र! अपने आराध्य की छत्रछाया में है।तुमने अपनी शिष्यों को जो सिखाया है ;उसमें तुम सफल हुई हो।
2-किसी से डरो मत ,किसी के अंदर बुराई मत देखो।उसमें भी तुम हो।विकारों को प्रेम में परिवर्तित कर दो।
3-जो प्रार्थना रिजेक्ट हुई है वही तो आधार है।तुम्हें बुला तो लिया।
4-रिश्ते केवल वही है जो सत्य के मार्ग में ले जाएं।
5-शनि की दृष्टि सत्य की खोज कराती है।शनि देव राजा को रंक बना देते हैं और रंक को राजा!इसके अतिरिक्त प्रेम और करुणा का आधार भी वही देते हैं।उन्होंने प्रेम का आधार दे दिया है!उसकी पूर्णता होनी बाकी है।
6-सत्य की खोज में दृश्य नहीं, अनुभूति ही आवश्यक होती।अनुभूति ही महत्वपूर्ण होती है।
7-भगवान शिव से प्रेम करना स्वयं से प्रेम करना है।अपने आप आत्म तत्व से प्रेम करना है !
8-प्रेम का कोई कारण नहीं होता।प्रेम शाश्वत है ,अविनाशी है,जो सदा ही रहता है।निर्मल है, निश्चल है ,अनअवरुद्ध बहने वाला है।
7.....
1-प्रेम का कोई कारण नहीं होता।प्रेम शाश्वत है।अविनाशी है, जो सदा ही रहता है।निर्मल है निश्चल है।अनअवरुद्ध बहने वाला है।
2-एक मुझे प्रिय है! दूसरा मेरे आराध्य को प्रिय है और तीसरा अपने गुरु का प्रिय हैअथार्त आपका प्रिय ।
तीनो लोग अपनी एक दूसरे का हाथ पकड़ कर सतोपंथ की यात्रा पर चल रहे है।कलयुग में ऐसे गुरु मिलना कठिन है।
जो दो भिन्न-भिन्न मार्ग वालों को सिखाएं।आपके शिष्य भिन्न-भिन्न है, परंतु गलत नहीं है।स्वयं को गलत के विचारों से परिपूर्ण मत करो। ।
3-जब श्वास को अंदर खींचोगे तो एक प्रकाश अंदर प्रवेश करेगा।और तुम्हें पर श्वास की अनुमति होगी।तुम्हारे अंदर कई शिवलिंग है।उन सभी शिवलिंग को मिलाकर एक शिवलिंग बना दो।शिवलिंग में कुंडलिनी बनकर लिपट जाओ।बाहरी यात्रा अब बहुत हो गई।अब अंतर यात्रा करो।स्वतः ही स्व की यात्रा करो।यात्रा कुंडलनी स्वरूप ही हो सकती है।समाधि में सानिध्य की यात्रा तुम्हें कुंडलनी बन कर करनी है।तुम्हारा गंतव्य तुम्हारे आराध्य है और उसका गंतव्य उसके आराध्य है ।उसको सानिध्य की यात्रा तुलसी बनकर करनी है।सतोपंथ की आधी यात्रा हो गई है।जब चौथाई यात्रा करोगे तो उस दुनिया की आत्माये तुम्हें ले लेंगे।पहले तीन से दो करो।फिर दो से एक करो।और एक का श्रीगणेश करो! शाश्वत प्रेम ,शाश्वत सत्य तुम्हारे भीतर ही है ।तुम्हारे आराध्य तुम्हारी सांसों में तुम्हारे ही भीतर है।अपने आराध्य को अपने अंदर जागृत करें।इसी प्रेम के मार्ग में चलकर अपने प्रेम से मिलन करना संभव है।
4-केदारनाथ में भगवान की पीठेश्वर की अनुभूति की जाती है।केदारनाथ देवभूमि है। इसको लोगों ने विकारों की भूमि बना दिया था।जिस दिन मनुष्य के विकार बहुत ज्यादा बढ़ जाएंगे उस दिन केदारनाथ और बद्रीनाथ दोनों मंदिर लुप्त हो जाएंगे। !
भगवान तो उस दिन ही यह स्थान छोड़कर जा रहे थे।परंतु सभी सन्यासियों की प्रार्थना पर वह रुक गए।
5-अपने गुरु के सामने अपनी गलती स्वीकार करना महानता है।संसार के लोग अपनी गलती ना समझ पाते हैं ना स्वीकार कर पाते हैं।
6-यह अमृत रूपी सत्य बोध का कलश तुम्हें दिया जा रहा है।जो तुम्हारे सानिध्य में रहेगा उसे यह स्वतः ही प्राप्त हो जाएगा।परन्तु उसके हृदय में तुम्हारे लिए प्रेम होना चाहिए।
7-सांसारिक कामनाओं की पूर्ति के लिए शिवलिंग में भी तुलसी चढ़ाई जाती है।
8-प्रेम प्रताड़ना नहीं है।
9-प्रसन्नता से आंतरिक यात्रा सहज हो जाती है।
हरि और हर में कोई भेद नहीं है।इस संसार में लोग हरि और हर में भेद करते हैं और जन्मो जन्मो तक भटका करते हैं।
नेहा के द्वारा तुम्हें पंक्तियों की लड़ियां प्राप्त होंगी।तुम्हें उसका विवेचन करना होगा।
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