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ज्ञान गंगा-8.....गुरु- शिष्य वार्तालाप


1......

1-काशी में ओम और डोम दो की महिमा है।डोम श्मशान में काम करते-करते संसार से विरक्त हो जाता है।क्योंकि बचपन से ही श्मशान में काम करता है।प्रेम और संसार में संतुलन बना रही हो।अध्यात्म संसार में वापस नहीं आने देता।संसार की समस्याएं आगे बढ़ने नहीं देती।

2-तुम संग प्रीत लगाई सजना ओ रामा!

3-प्रभु की कृपा तो प्राप्त हो जाएगी परंतु प्रारब्ध भी तो जुड़ा हुआ है।समर्पण से प्रेम की पूर्णता प्राप्त हो जाएगी।समर्पण से प्रेम का आधार बनता है। प्रेम से सत्य की खोज होती और पूर्णता प्राप्त होती है। ।

4-जिस दिन सुनाने वाला ,सुनने वाला और सुन कर बताने वाला...तीनों एक हो जाएंगे। उस दिन पूर्णता प्राप्त हो जाएगी।

5-तुम्हारा कर्म है विश्वास और समर्पण।स्वयं का विसर्जन करो।अंदर प्रवेश करो!यह विकृति है कि तुम्हारी इच्छा पूरी नहीं होगी।इस विकृति को हटा दो।अंदर जो मिलेगा उसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकती।मीरा के शाश्वत पति प्रेम की हंसी उड़ाई गई थी।इसीलिए उस बात को तुम ही महसूस कर रही हो।माफी मांगनी है तो खुद से मांगो।अब मीरा ही तो तुम्हारा आदर्श है।अपने आसपास की दुनिया भूल जाओ। भूल जाओ कि तुम रोज क्या करती होऔर अपने अंदर प्रवेश करो!

6-मन और माया में कोई अंतर नहीं है।लहरें ऊपर नीचे होती रहती हैं। लेकिन अंत में सागर में ही विलय करती है।

लहरों को तो सागर में मिलना ही है।मन में शिव तत्व का बीज डाल दो।संसार में शिव तत्व से ही सब कुछ निकला है।

7-तुम्हारी सारी शिकायतें समाप्त की गई हैं।संसार में प्रेम नहीं है।मेरी कोई सुनता नहीं।मेरी उपयोगिता नहीं।

अपना आत्मविश्वास विकसित करो।आत्म मैं हूं और विश्वास तुम हो।विश्वास को जागृत करो।स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानना अहंकार है।लेकिन स्वयं को तुच्छ मानना क्या है? ना अहंकार करो ना तुच्छ मानो ... सामान्य रहो।बाहर का शोर व्याकुल करता है।

उसे भीतर मत जाने दो।बाहर का शोर अंदर चला गया इसलिए मेरी ध्वनि सुनाई नहीं दी।संसार में जो होना है ..होकर रहेगा। ना तुम उसे रोक सकती हो ना मैं।तो अपने आत्मविश्वास को जागृत करो!

8-बिना ईश्वर की इच्छा के एक पत्ता भी नहीं हिलता।मंजिल से भटकना ही मंजिल को पाना है।क्यों सोच रही हो उस बारे में फिर ?समय ज्यादा है और समय बहुत कम भी है।इसलिए गंतव्य की ओर बढ़ो।तुम्हारे आसपास जो हैं उनको तुम समझा नहीं सकती ।उनको तुम पकड़ भी नहीं सकती।इसलिए अपने साथियों के साथ गंतव्य की ओर आगे बढ़ो।

2......

प्रश्न;-अस्तित्व क्या है?

परम की खोज पर निकला हुआ तत्व ही अस्तित्व है

प्रश्न;- तुम कौन हो?

पूर्ण से निकली हुई, और पूर्ण की तलाश मे ही एक बून्द हूँ मैं...

प्रश्न;- मिलन क्या है?

सागर मे लहर का समा जाना ही मिलन है,

स्वयं को प्रतिदिन खाली कर दो, प्रति छड़ रिक्त ही रहो, वो पूर्ण कभी भी किसी भी छड़ मे तुमसे मिल सकता है, तुम्हारे रोम रोम मे प्रकाश की तरह वही वही भर जायेगा,,

प्रश्न;- प्रेम क्या है?

हर आती और जाती स्वांस मे जब वही वही समा जाये, वही वही रह जाये और कुछ बचे ही ना तुम खुद भी ना बचो तुम भी वही बन जाओ,, तब समझना की अब प्रेम है,,

प्रश्न;- समर्पण क्या है?

समर्पण प्रेम का आधार है।अपना कोई रस ईश्वर को समर्पित करो । अपने खाने को समर्पित करो। पानी को समर्पित करो।अपना श्रंगार, हंसना , गाना ,नृत्य ईश्वर को समर्पित करो ।प्रत्येक क्षण को समर्पित करो।सब समर्पित करो!फिर स्वयं को समर्पित कर दो।समर्पण पूरा हो जाएगा तो प्रेम भी पूर्ण हो जाएगा।भोजन समर्पण, जल समर्पण करना, नींद, आदि का अर्थ यह नहीं खाना ,पीना ,सोना बंद कर दो।हर चीज अपने आराध्य को समर्पित करो।

3......

1-श्वास- प्रश्वास में ज्यादा प्रयास करने की आवश्यकता नहीं है।शिथिल हो जाओ।जैसे -जैसे शरीर शिथिल हो जाएगा।अनुभूति हो जाएगी।

2-दिन काटो नहीं.... जियो।बसंत का अर्थ होता है आनंद।यह भगवान विष्णु का त्योहार है।जैसे -जैसे अंधकार का नाश होगा वैसे -वैसे प्रकाश बढ़ता जाएगा।परंतु यात्रा और कठिन होती जाएगी।

3-अग्नि 4 प्रकार की होती है... काम अग्नि ,, क्रोधअग्नि ,, पुण्यअग्नि, पापअग्नि।

4-हमने जन्मों-जन्मों से जटिलताओं के ताले लगा रखे हैं।एक साधक सरल होता है। जब उसके जटिलताओं के ताले खुलते हैं तो ऊर्जा जागृत होती है। परंतु जब ऊर्जा जागृत होती है। तब पंच तत्वों का शरीर इसे सह नहीं पाता और विचित्र तरह की समस्याएं आती हैं।उसका समायोजन कर दो। वह पॉजिटिव है। साधना के लिए लाभकारी है।उससे भयभीत मत हो।

5-एक परिवार में एक ब्रह्म ज्ञानी के निकलने से आगे की और पीछे की 10 पीढ़ी तर जाती है।तुम भी तो प्रकृति हो, तुम्हारा आशीर्वाद रहेगा तो ऐसा कुछ हो ही नहीं सकता।तुमने जिस जगह साधना की है उस जगह का संरक्षण करने से ऊर्जा बनी रहती है। और हमेशा सुरक्षा देती रहती है।

6-प्रकृति को हमेशा प्रकृति से शालीनता से ही बात करनी चाहिए।यह उसका उत्तर दायित्व है।कामाख्या एक रहस्यमय जगह है। आपके लिए पिंडी का ज्यादा महत्व है या स्थान का ?लोग पिंडी के पास बैठ कर भी कुछ नहीं कर पातेऔर बहुत लोग इस स्थान में भी बहुत कुछ पा लेते हैं।समय आने पर पिंडी के पास बैठने का भी लाभ मिलेगा।

7-पहले आप शीलू बनो! फिर नेहा बनो! फिल्म मेधा बनो! सभी में 10 सालों का अंतर है।अपने मूल में जाओ।जहां तुम्हारा जीवन प्रेममय था।

8-तीन प्रकार की चोटी हैं।हरी पीली और सुनहरी!एक चोटी सकारात्मक है और दूसरी चोटी नकारात्मक!

जब तक मध्य की चोटी में मत पहुंच जाए।तब तक संतुलन नहीं बन सकता ।मार्ग का महत्व समझो। मंजिल के पीछे मत भागो!

उदाहरण के लिए तुम्हें किसी बाजार का रास्ता पता है तो तुम किसी भी समय आ सकते हो।चाहे रात हो या दिन हो? लेकिन यदि रास्ता ही नहीं पता है तो जरूर तुम्हें किसी का सहारा लेना पड़ेगा।इसलिए मार्ग को समझो!

9-संसार में तीन प्रकार के लोग है देवता, असुर और मनुष्य!जो मनुष्य पशुता में है वह असुर है।जो देवत्व पाने का प्रयास कर रहा है।वह आगे बढ़ रहा है।परंतु चाहे देवता हो या असुर या मनुष्य कोई भी अहंकार से परे नहीं है, सबमें अहंकार रूपी विकार है।अपने आसपास स्वर्ग बनाओ। इस संसार के दुखी लोगों की पुकार ईश्वर तक नहीं पहुंच पाती।प्रसन्न लोगों की पुकार ही ईश्वर तक पहुंचती है।केवल संसार के लोग कहते हैं कि भक्त केवल रोते गाते रहते हैं। यह वास्तविकता नहीं है। आंसू दो प्रकार के होते हैं।एक आंसू दुख के होते हैं। दूसरे आंख के आंसू दूसरे प्रकार के आंसू आनंद के होते हैं। वो केवल संसार को दिखता है कि वह रो रहे हैं।वास्तव में यह उनके प्रेम के आंसू है। दुख के नहीं!

4......

1-प्रकृति से बातें करो। प्रकृति को अपने अनुभव बताओ।तो प्रकृति भी तो तुमको उत्तर देगी।और फिर प्रकृति ही हो जाओ।

जब से अश्वत्थामा ने तुमसे कहा था।और तुमने कामाख्या मंदिर में कहा ...तब से वहीं पर तपस्या कर रहे हैं।कल्कि के साथ उनको भी तो जन्म लेना है।

2-तुम्हारे पूजा घर में अदृश्य शक्तियां आती है और नमन करके चली जाती हैं।यहां स्वयं की खोज की जा रही है।जहां सत्य की खोज होती है ..वहां पूरा ब्रह्मांड आता है।तुम्हारे पूजा घर में तो सभी तीर्थ हैं।तुम्हारे पूजाघर का महत्व तब समझ में आएगा ...जब तुम यहां नहीं होगी। जो यहां रहेगा ...वह समझेगा।

3-खुली आंखों से सब देखो। जो हो रहा है ..होने दो।बंद आंखों से अंदर चली जाओ। प्रेम में डूब जाओ!संतान को प्रेम भी किया जाता है और डांट भी जाता है।और माफी मांगने पर क्षमा भी किया जाता है।लेकिन बार बार गलती करने पर मां तो क्षमा कर देती है।परंतु ईश्वर क्षमा नहीं करता।संतान आत्म विश्लेषण करती है और क्षमा मांगती है तो क्षमा किया जाता है।परंतु कभी-कभी कुछ छुपा लेती है।इसलिए बार बार गलती करने पर मां तो क्षमा कर देती है।परंतु ईश्वर क्षमा नहीं करता।महत्वपूर्ण बात यह है कि तुमने निस्वार्थ काम किया।केवल अपने भाव अच्छे रखो।

4-तुम्हें तीन वचन का ध्यान रखना है जो भगवान ने माता सती को दिए थे।पहला... कोई बात गुप्त ना रखना।

दूसरा..सत्य बोलना। तीसरा ...आज्ञा मानना।इन तीन वचनों का पालन करो।आराध्य से पूरे ब्रह्मांड में कुछ भी छिपा नहीं हैं।

परंतु आराध्य भी उन भक्तों को पसंद करते हैं जो उनसे स्पष्ट रूप से अपनी समस्या बता देते हैं या जो उन्हें अपना मानते हैं। अपनी जो बातें तुम्हारे मन को विचलित कर रही हैं।सब उन्हें समर्पित कर दो।अपनी सब समस्याएं ,चिंताएं उन्हीं को समर्पित कर दें। तुम भी हल्की हो जाओगी और फिर समाधान भी मिल जाएगा ।

5-यदि कहीं जाने की तीव्र इच्छा है तो अवश्य पूरी होगी।

6-हमारे आराध्य अच्छाई बुराई में अंतर नहीं करते। दोनों को समान रूप से अवसर देते हैं।अब यह उन पर निर्भर करता है कि

अवसर का लाभ उठाते हैं या दुरुपयोग करते हैं।आरंभ ही अंत है और अंत ही आरंभ है। अपने अंत से ....अनंत में मिल जाओ।

7-हृदय में रहने वाले हमारे आराध्य कभी भी हमसे दूर नहीं जाते।वह हमेशा हमारे पास रहते हैं।मन की सुनने लगो!मन के अंदर इतनी ताकत है कि वह तुम्हें सही मार्ग बता सकता है।पहले दुविधा में रोती रही हो।अब विश्वास और समर्पण मे रो लो।शिवरात्रि में करने के लिए बहुत कुछ बताया जा चुका है।शिवरात्रि में दूध चढ़ाना या ना चढ़ाना। परंतु अपने अष्ट विकार अवश्य चढ़ा देना।

8- अमरनाथ की गुफा में तप की,मिलन की और जन्म की उर्जा है। यह गुफा दूसरी है;परंतु उस गुफा में भी उर्जा है।

यहां विकारों वाले व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकता।तुम विकारों से छुटकारा पाने का प्रयत्न तो कर रही हो।

यहां खोने आई हो, या पाने आई हो?आप को पाना है और स्वयं को खोना हैं।

9-ब्लैक होल का अर्थ है ..कर्म का सिद्धांत।विकार ही ब्लैक होल है ।तुम्हारे लिए है केवल प्रेम, विश्वास और समर्पण।

परंतु यह ज्ञान भी तुम्हें मेरी इच्छा से ही दिया गया। ताकि तुम दूसरा दृष्टिकोण भी जानो! इन आंखों से तुम्हें दर्शन नहीं हो सकते।तो क्या पंच तत्वों के शरीर छोड़ने के बाद हो जाएंगे?बहुत दूर का सोचती हो।जो मिलेगा उसकी तो तुम कल्पना भी नहीं कर सकती।दिमाग चलाना बंद कर दो। शांत हो जाओ और खो जाओ!

5......

1-माता सरस्वती ज्ञान की देवी । माता काली संहार की देवी।माता राधा प्रेम की देवी। जब तीनों देवियां मिल जाती है तो पूर्णता प्राप्त हो जाती है। शाश्वत प्रेम की कुंजी राधा रानी के पास ही है। राधे राधे शिव से मिला दे। प्रेम की देवी को तो माता काली भी नमन करती हैं।प्रेम करती रहो।धीरे धीरे चलते रहो, 1 दिन तुम्हारे आराध्य तुम्हें अपने साथ ले जाएंगे।

2-Detached का क्या अर्थ है ?मैं तो अपनी संसार से बहुत प्रेम करता हूं।Detached का अर्थ है संसार में रहते हुए भी

संसार में ना होना।अपने सभी कर्तव्यों का पालन करना ; परंतु मोह ना करना।परमार्थ ही शिवत्व है।परमार्थ करने वाले के लिए कोई अपना पराया नहीं होता।भावों की पवित्रता आवश्यक है।

3-तुम्हारी यात्रा में सभी सहायक है। कोई नकारात्मक रूप से सहायक है तो कोई सकारात्मक रूप से ।परंतु दोनों ही तुम्हारे सहायक ही हैं। इसलिए किसी के प्रति गलत भाव मत रखो!पवित्र भाव रखना ही शिवत्व है ।चाहे यूक्रेन वाले हो या कोई और ...सभी के लिए कल्याण की प्रार्थना करो।

4-सत्य की खोज करने वाले को संसार छोड़ता नहीं है।...एक छाया पीठ में छुरा भोंक रही है तो दूसरी छाया चाकू की जगह हाथ लगा रही है।

5-इस अंधेरी सकरी गली से निकलना तुम्हारी नियति है।इसमें फंसना तुम्हारी नियति नहीं है।तुमने यह अंधेरी सकरी गली पार कर ली है...यह तुम्हें अपनी अनुभूति से पता चल जाएगा।जब तुम्हारे सारे प्रश्न समाप्त हो जाएंगे।तुम्हें पूर्णता प्राप्त हो जाएगी।

6-धर्म अर्थ काम तीनों पुरुषार्थ मोक्ष के अंतर्गत सिद्ध करना चाहिए।अर्थ का अर्थ मतलब है...कमाए हुए धन से दीन दुखियों की सेवा करना।यह शिव को प्रिय है।

7-सक्षम आत्माएं ही इस क्रिया को कर सकती हैं।जो भय को पार कर चुकी है।

8- चौपाई...

प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कोसलपुर राजा॥ गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई॥1॥

भावार्थ;-

अयोध्यापुरी के राजा श्री रघुनाथजी को हृदय में रखे हुए नगर में प्रवेश करके सब काम कीजिए। उसके लिए विष अमृत हो जाता है, शत्रु मित्रता करने लगते हैं, समुद्र गाय के खुर के बराबर हो जाता है, अग्नि में शीतलता आ जाती है॥1॥

9-इस गुफा से आगे का मार्ग तुम्हें स्वयं तय करना पड़ेगा !मार्ग में कष्ट आएंगे, विकार आएंगे। उनका सामना तुम्हें अपने आराध्य के विश्वास, प्रेम के आधार पर करना होगा।जिस दिन अपने आराध्य से तुम्हारा मन एक हो जाएगा उस दिन पूर्णता प्राप्त हो जाएगी।शिवरात्रि को अष्ट विकार भस्म कर दो।तुम्हारा जीवन परिवर्तित हो जाएगा।संदेह और संशय के बीच को ही ना पनपने दो। स्वयं के विश्वास से दृढ़ता बनी रहती है।

6......

1-मन के हारे हार है और मन के जीते जीत।इसलिए कभी मन को हारने मत देना।जो भी विचलित कर रहा है, समर्पित कर दो।

जीरोस्टेट क्यों नहीं जाओगी? उसी का तो मार्ग प्रशस्त हो रहा है।क्या तुम ध्यान में जीरोस्टेट नहीं जाती?भक्ति में कोई भी आगे पीछे नहीं होता।तुम्हारी मनोकामना पूरी होगी।

2-शिवरात्रि शिवा का दिन है।परंतु वास्तव में शिवरात्रि आत्मा का परमात्मा से मिलन का दिन है। इसीलिए शिवरात्रि में अंदर जाओ और परमात्मा से मिलन करो!प्रकाश स्वरूप में अंदर ले जाओ।उसी की अनुभूति करो।प्रश्न उत्तर नहीं!अंदर जाओ और अनुभूति करो!ध्यान की उर्जा से कनेक्ट हो जाओ।तुम्हें विचित्र अनुभूति होगी। परम की खोज ,सत्य की खोज और परम सत्य की अनुभूति से एकाकार हो जाओ।सत्य तुम्हारी आत्मा है।परम पुरुष एक ही है परंतु रूप अनेक है।

3-भाव और प्रेम एक दूसरे के पूरक हैं।आराध्य का नाम भाव से लेना चाहिए।कलयुग केवल नाम अधारा।

अगर कलयुग में भाव से नाम लिया जाए तो अनुभूति हो जाती है।

4-निधिवन में तो भगवान शिव भी प्रत्येक रात को अपने आराध्य से मिलने आते हैं।तुम्हें घर में भी ही बरसाने की होली की अनुभूति हो जाएगी।ध्यान में जाओ और प्रार्थना करो कि हमें आप बरसाने की होली की अनुभूति करा दें।अवश्य ही अनुभूति हो जाएगी। आराध्य तो अपने हृदय में भक्तों को रखते हैं। परंतु भक्त कभी दुविधा में फंसता है तो शांत हो जाते हैं।प्रतिदिन समस्याएं आएंगी और समाधान भी मिलेगा।समस्याओं पर नहीं ...समाधान पर ध्यान केंद्रित करो।

5-निधिवन में कृष्ण जी ने बंसी बजाई है। उसकी धुन सुनाई पड़ती हैं।जिसके भी ह्रदय में कृष्ण जागृत है। वह सुन सकता है।

राधा कृष्ण ने निधिवन में रास किया व्यास किया और व्याप्त हो गए।व्यास का अर्थ होता है केंद्र! कोई केंद्र से कृष्ण को प्रकट कर ले और उन्हीं के साथ रास करें।राधा ने कृष्ण से प्रेम किया।कृष्ण राधा में समा गए और राधा पूर्ण हो गई।उसी प्रकार कृष्ण ने राधा से प्रेम किया। कृष्ण राधामय हो गए और कृष्ण पूर्ण हो गए।

7.....

1-प्रेम प्रताड़ना नहीं है।

2-प्रसन्नता से आंतरिक यात्रा सहज हो जाती है।

3-हरि और हर में कोई भेद नहीं है।इस संसार में लोग हरि और हर में भेद करते हैं और जन्मो जन्मो तक भटका करते हैं।

4-नेहा के द्वारा तुम्हें पंक्तियों की लड़ियां प्राप्त होंगी।तुम्हें उसका विवेचन करना होगा।

5-संसार में जिसने जनक की सीता और रहस्य की गीता को जान लिया। उसकी यात्रा पूर्ण हो गई।

6-संतान का मोह, भय... यह सब बंधन है।बंधन से बाहर निकलो।स्वयं का विलय कर लो।महादेव देखने वाला ,खाना खाने वाला ,पानी पीने वाला ,सोने वाला मंत्र जाप करने वाला, यह सब महादेव ही है।तुम नहीं हो ...जब तुम स्वयं का विलय कर दोगी तो भय वह कौन करेगा?भय और मोह के बंधन से मुक्त हो जाओगी।जब प्रेम से ही बात करोगी जब स्वयं से ही बात करोगी।तो अप्रत्यक्ष रूप में मुझसे ही बात करोगी।राधे के पास प्रेम की कुंजी है।गहराई में राधे राधे का नाम जपो।

7-सत्य का विवेचन सत्य ही कर सकता है।

8-तुम्हें प्रेम करना आता है।तुम्हारा प्रेम सत्य था।उसी प्रेम के बल पर तुमने संसार से संघर्ष किया था।अपने शाश्वत प्रेम के बल पर अपने अंदर की बुराइयों से संघर्ष करो!जब हम किसी से प्रेम करते हैं तो चारों तरफ केवल वही दिखाई पड़ता है और जब चारों तरफ वही दिखाई पड़ता है।तो भय कैसे हो सकता है?

9-शिव तत्व के मार्ग में चलने वालों को उतनी ही माया दी जाती है,जितनी आवश्यक होती है।माया ने शिव से माया देने को कहा और माया जल गई।यह बात सत्य है कि फायर एलिमेंट वालों को मुक्ति नहीं दी जाती।परंतु संसार की सेवा निस्वार्थ भाव से होनी चाहिए।रावण की कहानी तो पता ही है।क्या रावण भक्त नहीं था?दिया तले हमेशा अंधेरा होता है। माया भी मेरी ही है।परंतु माया जब शिव तत्व को प्राप्त करती है तो उसे भी उतना ही मिलता है जितना आवश्यक होता है।

10-तुम्हारा मुख्य उद्देश्य अपनी कड़ियों को पूर्णता की ओर पहुंचाना है।...आपस में प्रेम विश्वास और समर्पण के साथ।



...शिवोहम ...

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