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ज्ञान गंगा-9.....गुरु- शिष्य वार्तालाप


1......

1-गीत गाओ ,नृत्य करो!आनंद करो!

2-मन विचलित होता है और सर्वप्रथम सकारात्मक स्मृतियों को धो देता है।इसलिए मन को देखना है।मन

के खेल को समझ लिया तो उससे बाहर निकल आओगे ।दृष्टि रखना ही मन से बाहर निकलना है।

3-तीन कार्य करने हैं।प्रतिदिन 1 महीने तक 8 विकारों को भस्म करना है।दूसरा काम मन पर दृष्टि रखनी है।

उसके खेल को समझना है।तीसरा काम समर्पण बढ़ाना है।यह तीन कार्य करने हैं।स्वयं पर विश्वास करो!

अपना आ विश्वास बढ़ाओ।अध्यात्म के मार्ग पर संदेह नहीं किया जाता।

4-मिलन हमेशा अंदर ही होता है। सभी को दर्शन अपनी अपनी कल्पनाओं के आधार पर होते हैं।लेकिन वास्तविक दर्शन जो गौतम बुद्ध को हुए , राम,कृष्ण को हुए वे सभी दर्शन हृदय के अंदर ही होते हैं।तुमने जहां पर संदेह नहीं करना चाहिए ,वहां किया।और जहां करना चाहिए था, वहां नहीं किया। स्मृतियों को एकत्र करो।प्रथम प्रेम,प्रथम मातृत्व और प्रथम आकर्षण।तीनों स्मृतियों को एकत्र करो।यह सारी बातें स्वयं से बार -बार बोलो । सभी संदेहो ,सभी जटिलताओं का अंत करो।

5-अमरनाथ की गुफा मिलन का स्थान है।यहां पर पार्वती अपना सब कुछ त्याग कर मेरे लिए आई। प्रेम में विवाह का महत्व है या समर्पण का।मेरे आराध्य ने राधा से विवाह नहीं किया।दुनिया को सीख दी।मीनाक्षी सुंदरेश्वर इस बात का प्रमाण है।

16 वर्ष की आयु में राधा का कृष्ण से वियोग हो गया था। तो राधा ने कृष्ण को कहां पाया?अपने अंदर ही तो पाया। मीरा ने कृष्ण को कहां पाया?अंदर ही तो पाया।तुम्हें भी अपने इष्ट अपने अंदर ही मिलेंगे।

6-जब अनार का रस निकाला जाता है।तो क्या छिलके के कूड़े को संभाल कर रखा जाता है ?उसी प्रकार से पुरानी स्मृतियों से रस निकाल लो और छिलके को फेंक दो। उस कूड़े को मत एकत्र करो।तुम्हारा स्वयं से प्रथम परिचय तो उसी समय हुआ था।

भले ही वह नकारात्मक शक्तियां थी।परंतु नकारात्मक शक्तियां क्या मेरी नहीं है?बात पागल कहने की है।तो सभी भक्तों को पागल ही कहा जाता है।तुमने ज्ञान का बीज लगाया।उस बीज से पौधा उत्पन्न हुआ। पौधा बड़ा हो रहा है तो क्या उस से फल नहीं निकलने चाहिए? तुमने ज्ञान की जड़ों को पकड़ा और सभी को ध्यान के माध्यम से उस ज्ञान को देने का प्रयास किया।

सभी ने ध्यान तो किया परंतु जड़ कितने लोगों ने पकड़ी? जड़ तो केवल 2 लोगों ने ही पकड़ी ...मयंक और नेहा ने।

जड़ तो शीलू ने भी नहीं पकड़ी !वह तुम्हारी आज्ञा के माध्यम से बढ़ने का प्रयास कर रही है।यह सत्य है कि तुमने बराबर बिना किसी भेदभाव के ज्ञान बांटा।

7-शारीरिक समीपता रूप से बहुत लोग साथ रहते हैं।परंतु हृदय की समीपता से नहीं। तुम्हारे लिए किसका ज्यादा महत्व है? जो तुम्हारे हृदय में रहते हैं उसका या जो शरीर के रुप में साथ रहते हैं?हृदय में रहने वाले महत्वपूर्ण है।शिव तो संसार के प्रत्येक कण कण में है। सूर्य में ,तारों में ,चंद्रमा में ,आकाश में,ब्रह्मांड के कण-कण में शिव है।तुम्हें सहायता प्रदान कर दी जाती है। तुम्हारा प्रारब्ध था वह 5 वर्ष,...कट गया।वह प्रारब्ध तो जन्मों -जन्मों से पीछा कर रहा था।ना कोई गिला ना शिकायत के साथ कट गया।स्वयं को सब बताओ।प्रश्नों से ,जटिलताओं से,और संदेह से बाहर निकलो।अध्यात्म का आधार ही विश्वास है।

लोग अपने ह्रदय की बात उसे नहीं बताते जिससे बतानी चाहिए।हृदय की बात वहां बताते हैं जहां नहीं बतानी चाहिए।अपने हृदय वाले से सब बातें करो।

8-क्रोध 2 प्रकार का होता है, घ्रणात्मक क्रोध, और एक सकारात्मक क्रोध..। माता अपने बच्चे को जिद्द करने पर कोई चीज खाने नहीं देती और उसको डांटती है.. क्रोध करती है।क्योकि वो उसको प्रेम करती है और उसको बीमार होने से बचाना चाहती है।ये सकारात्मक क्रोध है।पलंग तोडना अथार्त धर्म, अर्थ काम, मोक्ष ..चारों को अब एक कर देना।जब भीतर मिलन होगा तो ये सब मिलकर एक ही हो जाते है।

9-साकार और निराकार...

मीरा, रामकृष्ण, ये, अपने आराध्य से बातें करते हैँ , क्या किसी ने देखा है कि ये किससे बात कर रहे हैँ। इन्होने अपने भीतर अपने ईष्ट को जाग्रत कर लिया है। हर पल उनसे जुड़े हैँ ..उनसे बातें करते रहते हैँ। यही दीदी को भी करना है, अपने ईष्ट को अपने भीतर जाग्रत करना होगा। फिर वही भीतर के शिव हर पल साथ मे रहेंगे, सामने आकर भी खड़े हो जायेंगे, नेत्र बंद और वही वह हर जगह।जब तुम उनसे रोज मिलोगी, तो वो जब चाहेंगे तुम्हे अपने पास रोक लेंगे।पूरी किताब पढ़ ली है, बस एक पाठ बचा है,, वो भी पढ़ लो। बस दो कदम की यात्रा बची है।वो अपने भीतर के शिव से तो मिलती हैँ पर उन पर प्रश्न उठा देती हैँ। कही ये मेरा मन ही तो नहीं है।थोड़ा सा सती की तरह प्रेम है, स्थिरता नहीं है।जैसे आज्ञा पालन न करना और समर्पण का पूर्ण ना होना।

10-मकान बनाने से पहले उसकी नींव बनाई जाती है।मकान बन जाने के बाद उसकी नींव को बदला नहीं जा सकता।

साकार और निराकार एक ही है।

2......

1-नाम से हिंदू,क्रोध से मुस्लिम ,करुणा से सिख और स्वभाव से ईसाई हो जाओ! दरगाह, गुरुद्वारे,चर्च,साईं बाबा!

सभी स्थानों पर जाओ।वहां से सत्य की एक बूंद को एकत्र करो।जिस बूंद की अनुभूति हो उसी का विस्तार करो और अनुभूति करो!क्या सब जगह एक ही जैसा नहीं है? यह सभी स्थान केवल सत्य की अनुभूति के लिए हैं।

2-क्या मैं विरक्त हूं तो रसहीन हूं।विरक्ति और रस एक दूसरे के विरोधी कैसे हो सकते हैं? रस भी नौ प्रकार के होते हैं।

विरक्त होने का मतलब रसहीन होना नहीं है।जीवन जीने के लिए नियमों का होना भी जरूरी है।जब तक उस स्थान तक नहीं पहुंच जाता तब तक नियमों का पालन करना जरूरी है।जब उसी स्थान पर पहुंच गए;तब आपकी इच्छा है।इसमें आश्रम में नियम से जीवन जीते हैं।ताकि माधुर्य के उस रस को पा सके।जो विरक्त नहीं है, वह इस रस को पा ही नहीं सकता।

उदाहरण के लिए एक व्यक्ति प्रतिदिन 100 लोगों से मिलता है।तो उसका माधुर्य उन्हीं व्यक्तियों से होगा ना? ईश्वर से नहीं होगा।जो संसार से विरक्त नहीं।वह ईश्वर के प्रति माधुर्य भाव नहीं रख सकता।जहां तक जीवन शैली, खानपान का सवाल है।यह मन के हिसाब से होना चाहिए।संसार में सभी व्यक्ति स्वतंत्र हैं। क्या पहने क्या खाए उनकी इच्छा उनकी इच्छा पर निर्भर होना चाहिए।वे स्वतंत्र है।देवी पार्वती अमरनाथ गुफा में सब कुछ त्याग कर आई।इसका अर्थ खाने पीने से नहीं है।रिक्त होने से है।

उन्होंने स्वयं को रिक्त किया।सर्वप्रथम अष्ट विकारों से रिक्त किया।अग्नि से रिक्त किया।वह दो बार अग्नि में जली।उस अग्नि से रिक्त किया।सभी स्मृतियों से रिक्त किया।फिर शिव मिलन की स्मृतियों से रिक्त किया।स्वयं को पूर्ण रूप में रिक्त कर दिया।

इसका अर्थ खाने पीने से नहीं है।

3-जन्मभूमि और मस्जिद विवाद से ईश्वर का कोई लेना देना नहीं है।वह इंसान के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता। वास्तव में मनुष्य संसार में आया है।उसे कुछ करने के लिए चाहिए तो कुछ तो करेगा ही।ईश्वर का कार्य है कर्मों का फल देना।

वह अपना कार्य करता है। वह अपना कार्य करता है, वह किसी कार्य में हस्तक्षेप नहीं करता।वहां चाहे मंदिर बने या चाहे मस्जिद?जिसके पास भाव के फूल ,श्रद्धा ,समर्पण का सिंगार नहीं होता।वही यह सब करता है।अगर चारों धर्म मिलाकर एक कर दिया जाए तो मानव धर्म बन जाएगा।

3......

1-प्रसन्नता से।00 अणु का जन्म होता है।और दुख से।00 अणु का विनाश हो जाता है। प्रसन्नता शिव तत्व हैऔर दुख मनुष्य तत्व।

2-मन की पवित्रता ही गंगा है और उस गंगा को तो शिव पर चढ़ना ही है।

3-परेशान मत हो आराध्य की इच्छा के बिना कुछ नहीं होता।आराध्य के भक्त खुश होते हैं तो आराध्य भी खुश होते हैं।

कुछ अदृश्य शक्तियां नहीं चाहती कि तुम्हें तुम्हारी मंजिल मिले।आराध्य तो दोनों के है ..देवता के भी और असुर के भी।

यदि असुर सही होते हैं तो आराध्य उनकी सहायता करते हैं।और यदि देवता सही होते हैं तो आराध्य उनकी सहायता करते हैं।

तुमने गलती नहीं की थी,तो तुम्हारी सहायता की गई।तुम्हारा कार्य तो हो गया और इसके अलावा मार्ग भी प्रशस्त किया गया है। उस मार्ग से निकल आओ!

4-साईं बाबा ने सिखाया 'सबका मालिक एक' परन्तु किसने सीखा।राधा रानी ने प्रेम सिखाया .. प्रेम दुनिया में किसने सीखा? मोमबत्ती का अर्थ केवल यही है कि अपने अंदर की लौ जल जाए।साईं बाबा को इससे कोई मतलब नहीं कि सोने की मूर्ति बनाई जाए या मिट्टी की मूर्ति बनाई जाए।

5-इस युग में प्रेम विवाह सफल नहीं होते।कारण यह है कि प्रेम में जानने को महत्व नहीं देते बल्कि पाने को महत्व देते हैं।

सामाजिक विवाह में 7 वर्ष लगते हैं।तब प्रेम पनपता है।यदि 7 वर्षों में प्रेम पनप गया तो 14 वर्ष में अखंड प्रेम हो जाता है।

रुकमणी को कृष्ण को जानने का अवसर दिया गया था।क्योंकि कृष्ण को जानना ही कृष्ण को पाना है।आज प्रेम विवाह में जानने को महत्व नहीं दिया जाता।सिर्फ पाने को महत्व दिया जाता है। प्रेम पाना नहीं हैं।

6-अपने आराध्य का अनवरत चिंतन करते करते जब चित्त लय कर जाता है तब आत्मा दो स्वरूप धारण करती है।वह आपस में क्रीड़ा करते रहते हैं।गोपियां हमेशा इसी भाव में रहती थी।उनका चित्त कृष्ण में लय कर जाता था।उनके हृदय के कृष्ण हर पल उनके साथ रहते थे।शिव का नटराज स्वरूप तो मेरी प्रेरणा हैं।भक्त मेरा इतना चिंतन करते हैं कि वह अपना स्वरूप भूल जाते हैं।इसीलिए मुझ में ही लय कर जाते हैं।

7-विचित्र हैं मन की मन करनी।कभी उलझाए तो कभी सुलझाए।

8-तिरंगे को कभी देखा है।उसका ऊपरी हिस्सा क्रिएटर का है...ब्रह्मा का है।बीच का हिस्सा चक्र... शिव शक्ति का है ;जो संसार चलाते हैं।निचला हिस्सा विष्णु का है जो पालन करते हैं। हरा रंग जीवन देता है।

9-भीड़ हमेशा खराब नहीं होती। भीड़ तुम्हें अवसर देती है अपने अंदर की आवाज सुनने का। जो भीड़ में भी अंदर चला जाए।

वह एकांत में भी अंदर चला जाता है।जो भीड़ में अंदर की आवाज सुन लेता है। वह एकांत में प्रभु से भी जुड़ जाता है।भीड़ के शोर में शिव में समा जाओ।और एकांत में हृदय में शिव समा जाये।

10-प्रेम का पाणिग्रहण है। स्वयं का ...स्वयं से।

11-जो विचार परेशान करें।उसकी विस्मृति कर दो।अगर बोलना कष्ट दे।तो मौन हो जाओ!समय का का इंतजार करो।धैर्य रखो! इस संसार में प्रत्येक क्षण कीमती है।रामकृष्ण परमहंस बनना तुम्हारी नियति है।कोई होगा जो तुम्हें अमर करेगा।जो किताबों में लिखा है।वह सत्य नहीं है।जो चित्त में लिखा जाता है..वह सत्य है।इस संसार में संबंध केवल एक ही है।आत्मा का... परमात्मा से।आत्मा और परमात्मा के संबंध पर ही ध्यान दो।तुम्हारे ह्रदय में बैठे शिव जागृत है।इसलिए कभी संशय मत करना ।पहले तो तुम्हें कुछ भी पता नहीं था। अब तो पता है! इसलिए अब संशय नहीं!\

4......

1-ओम निराकार भी हैं और साकार भी।

2-एक स्त्री के चार स्वरूप होते हैं।जब वह खाना खिलाती है तो माता होती है।जब वह सलाह देती है तो मित्र होती है।

जब वह रक्षा करती है तो बहन होती है।और जब प्रेम करती है तो प्रेयसी होती है।

3-प्रेम दो प्रकार का होता है।एक प्रेम में मिलन होता है। और दूसरे प्रेम में उसी के अंदर लय कर जाता है।

4-दो प्रकार के भक्त होते हैं।एक मेरे प्रिय होते हैं।दूसरे को हम प्रिय होते हैं।जो मेरे प्रिय होते हैं।वह विराम भी कर सकते हैं। परंतु जिनको हम प्रिय होते हैं ;वह आज्ञा मानकर पहुंच ही जाते हैं। ।

5-तुम्हारी अनुभूति भ्रम नहीं है।अपनी अनुभूति पर विश्वास करो।स्वयं पर विश्वास करना अपने आराध्य पर विश्वास करना है।

मेरे स्वामी की सृष्टि का आनंद लो!और अपने स्वामी में लय जाओ।तुम अपने घर की सुरक्षा को लेकर द्रवित हो!

जब तक तुम हो... चाह कर भी कोई कुछ नहीं कर पाएगा।

6-ठहर जाओ!अब स्थिर हो जाओ।वेग तीन प्रकार के होते हैं।पहला है स्वयं के वेग।दूसरा है हृदय के वेग।तीसरा है संवेग।

इन तीनों वेगो को मिला लो।हृदय के वेग को नियंत्रित करो सम हो जाओ।जिस प्रकार से। एक व्यक्ति को कानपुर से दिल्ली जाना है और दूसरे व्यक्ति को दिल्ली से कानपुर आना है।तो दोनों व्यक्ति एक बीच की जगह बनाएंगे ....जहां दोनों मिलेंगे।हां, दोनों के पास गाड़ियां होनी चाहिए।किसी स्वरूप के प्रेम की बात मत करो।सिर्फ प्रेम की बात करो।पंच तत्वों का शरीर बूढ़ा होता है। परंतु आत्मा की कोई उम्र नहीं होती।

7-गुरु शिष्य को ज्ञान देता है।और गुरु भी शिष्य से सीखता है ... कोरा कागज बनना!क्योंकि अंततः ज्ञान को भी छोड़ना है।

शाश्वत प्रेम सरल नहीं होता।अपने सभी रिश्तो को शाश्वत प्रेम में लय कर दो।निर्विचार हो जाओ।स्थिर हो जाओ।हम बच्चे से मिलते हैं। उसकी सरलता समझते हैं। परंतु अपनी जटिलताओं से नहीं निकल पाते।

5......

1-सुख और दुख धूप और छांव की तरह है। उनकी चिंता मत करो, अपने गंतव्य की ओर आगे बढ़ो।

2-जब- जब सत्य की खोज करोगी।तब -तब मन विद्रोह कर देगा।

3- शाश्वत प्रेम कठिन अवश्य है, परंतु मंजिल जरूर मिलती है.... यदि प्रयास किए जाएं और विश्वास बनाए रखा जाए।

स्वयं पर विश्वास बनाए रखो, मंजिल अवश्य मिलेगी।बरसाने की मिट्टी के कण कण में राधा कृष्ण का प्रेम है।यहां पर एक वृक्ष है। जहां पर कृष्ण बंसी बजाया करते थे।वहां तुम्हें प्रेम की अनुभूति अवश्य होगी।अपने आराध्य तुम्हें खुली आंखों से दिखेंगे।इस पेड़ तक तुम्हें पहुंचा दिया जाएगा ।

4-क्या तुम्हारे लिए यह गर्व की बात नहीं है कि तुम्हें तुम्हारे आराध्य खुद सिखा रहे हैं।आराध्य तुमको दो सीढ़ियां चढ़ाते हैंऔर तुम 4 सीढ़ियां उतर जाती हो?उनको कितनी मेहनत करनी पड़ रही है?वह भी तो चाहते हैं कि तुम्हें तुम्हारी मंजिल मिल जाए।क्या तुम्हारे आराध्य बचपन से तुम्हें मंजिल तक पहुंचाने का प्रयास नहीं कर रहे!जहां जहां कृष्ण की आराधना होती, वहां वहां

तो वह होते ही है।तुम्हारे हृदय में एक शिवलिंग है।इससे प्रकाश निकलता है।लेकिन जब तुम विश्वास छोड़ देती हो तो उसका प्रकाश समाप्त हो जाता है।विश्वास के द्वारा शिवलिंग को प्रकाशित करो।

5-प्रेम अमर होता है। इसलिए बरसाने की मिट्टी में बसा हुआ है।वहां राधा कृष्ण रहते ही रहते हैं। क्या पता मेरी मुलाकात तुमसे बरसाने में हो? प्रेम प्रेम होता है, महान और तुच्छ नहीं होता।जहां बिरह नहीं है वहां प्रेम कैसे हो सकता है ।उस स्मृति में जाओ जब तुम्हारे आराध्य ने तुम्हें पहली बार देखा।तुम्हें क्या लगता है कि तुमने उन्हें देखा।तुमने जीवन में बहुत संघर्ष किया।इसीलिए तुम्हारा विश्वास बहुत जल्दी टूट जाता है।लेकिन तुम यह तो देखो कि उसी संघर्ष के कारण तुम यहां इस जगह खड़ी हो।जब अनुभूति करना सीख लोगी तो फिर सांसो में प्रयास नहीं करना पड़ेगा।जब अनुभूति कर लोगी तो तुम्हें टच भी स्वयं ही मिल जाएगा।मंदिरों में जाकर उर्जा से कनेक्ट करना तुमको आ गया है उर्जा से।परंतु अभी अनुभूति करना नहीं आया।अब अनुभूति करना सीख लो!

6-जहां राधा कृष्ण का प्रेम होता है, वहां कलयुग का प्रभाव नहीं आता।बरसाने में देवी देवता भी होली देखने आते हैं।ललिता सुंदरी और ललिता सखी एक ही है। केवल दृष्टि का भेद है।अपने प्रथम प्रेम में जाओ जाओ, तुमने उसमें स्वयं को खो दिया था।खुद को आराध्य में खो दो।

7-समय के पाबंद मत बनो। समय के साथ चलो।सुख और दुख तो धूप और छांव की तरह है। प्रयत्न मत करो!विश्वास करो और समर्पण करो।एक- एक क्षण कीमती है।

6......

1-किसी को बढ़ाया जाएगा।किसी का अहंकार तोड़ा जाएगा !अगर किसी के प्रारब्ध में तुमसे मिलना लिखा है...तो मिलेगा ।

अगर नहीं लिखा है तो नहीं मिलेगा।सब के प्रति प्रेम रखो।किसी ने तुम्हें गाली दी और उसे ठोकर लगी।परंतु तुम उसके प्रति प्रेम ही रखो।यही तो शिवत्व है!जो कुछ भी हो रहा है.... सब आराध्य की इच्छा से हो रहा है। यही समर्पण है।तुम सही हो ।बस सब के प्रति प्रेम रखो।प्रेम को प्रेम से समझो। क्या प्रथम प्रेम की याद आई?कितने सालों बाद ऐसे सोई ?वह सांसारिक प्रेम था।यह शाश्वत प्रेम है।

2-मैं किसी से नाराज नहीं हूं।कोई खो कर पाता है, कोई पाकर खोता है।कोई खोता भी है और पाता भी है।परीक्षा सभी की ली जाती है।जो जुड़ता है वह जागता है।जो भिड़ता है वह टूटता है। शिवत्व की और शिवमय होने की खोज तुम्हें यहां ले आती है।शीघ्र ही विरह का अंत होगा।सब देखते रहो।सभी को अपनी यात्रा स्वयं अकेले करनी होती है।इसलिए यह आवश्यक भी है।

3-जो शिव से मिलता है।या तो ध्यान में जाता है या सुध बुध खो देता है।प्रत्येक क्षण मिलन की अनुभूति करो, मन स्थिर हो जाएगा।विचलित मन साधना का संक्षिप्त मार्ग ढूंढता है ... जो उचित नहीं है।

4-प्रेम सरोवर में भीग लिओ!

तन मन सब भिगो लियो!

5-जो हो रहा है उसे होने दो। जो खो रहा है उसे खोने दो।मन की ही वैतरणी है।इसे स्वयं ही पार करना होता है।

6-जहां शिव शक्ति होते हैं ;वहां राधा कृष्ण भी होते है। एक प्रेम देता है।दूसरा प्रेम के मार्ग तक पहुंचाता है। जो आराध्य को जिस रूप में चाहता है ...उन्हें पा ही लेता है। प्रेम करती हो फिर दुविधा में फंसती हो।फिर प्रेम करती हो फिर दुविधा में फंसती हो।सभी गुरु लोगों ने भी प्रेम के द्वारा ही मार्ग तय किया है।

.....SHIVOHAM....
















































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