विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि—IN NUTSHELL
तंत्र सूत्र विधि—01-09 [श्वास-क्रिया से संबंधित नौ विधियां ]
भगवान शिव कहते है:-
तंत्र सूत्र विधि—01...FOR AIR ELEMENT... ज्ञानयोग
''हे देवी, यह अनुभव दो श्वासों के बीच घटित हो सकता है। जब श्वास भीतर अथवा नीचे को आती है उसके बाद फिर श्वास के लौटने के ठीक पूर्व—श्रेयस् (Superior)है। इन दो बिंदुओं के बीच होश पूर्ण होने से घटना घटती है''।
तंत्र सूत्र विधि—02..FOR WATER ELEMENT...भक्तियोग
''जब श्वास नीचे से ऊपर की और मुड़ती है, और फिर जब श्वास ऊपर से नीचे की और मुड़ती है—इन दो मोड़ों के द्वारा उपलब्ध हो''।
तंत्र सूत्र विधि—03...FOR AIR ELEMENT... ज्ञानयोग
''जब कभी अंत:श्वास और बहिर्श्वास एक दूसरे में विलीन होती है। उस क्षण में ऊर्जारहित, ऊर्जापूरित केंद्र को स्पर्श करों''।
तंत्र सूत्र विधि—04...FOR WATER ELEMENT... भक्तियोग
''या जब श्वास पूरी तरह बाहर गई है और स्वयं ठहरी है, या पूरी तरह भीतर आई है और ठहरी है—ऐसे जागतिक विराम के क्षण में व्यक्ति का क्षुद्र अहंकार विसर्जित हो जाता है। केवल अशुद्ध के लिए यह कठिन है''।
तंत्र सूत्र विधि—05...FOR AIR ELEMENT... ज्ञानयोग
''भृकुटियों के बीच अवधान को स्थिर कर विचार को मन के सामने करो।फिर सहस्त्रार तक रूप को श्वास-तत्व से, प्राण से भरने दो। वहां वह प्रकाश की तरह बरसेगा''।
तंत्र सूत्र विधि—06...FOR FIRE ELEMENT... कर्मयोग
''सांसारिक कामों में लगे हुए, अवधान को दो श्वासों के बीच टिकाओ। इस अभ्यास से थोड़े ही दिन में नया जन्म होगा''।
तंत्र सूत्र विधि—07...FOR AIR ELEMENT... ज्ञानयोग
''ललाट के मध्य में सूक्ष्म श्वास (प्राण) को टिकाओ।जब वह सोने के क्षण में ह्रदय तक पहुंचेगा तब स्वप्न और स्वयं मृत्यु पर अधिकार हो जाएगा''।
तंत्र सूत्र विधि—08...FOR WATER ELEMENT...भक्तियोग
''आत्यंतिक भक्ति पूर्वक श्वास के दो संधि-स्थलों पर केंद्रित होकर ज्ञाता को जान लो''।
तंत्र सूत्र विधि—09...FOR FIRE ELEMENT...कर्मयोग
'मृतवत लेटे रहो। क्रोध में क्षुब्ध होकर उसमे ठहरे रहो। या पुतलियों को घुमाएं बिना एकटक घूरते रहो। या कुछ चूसो और चूसना बन जाओ''।
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तंत्र सूत्र विधि—10-12 [शिथिल होने की तीन विधियां ]
तंत्र सूत्र विधि—10
शिथिल होने की पहली विधि;-FOR AIR ELEMENT... ज्ञानयोग
''प्रिय देवी, प्रेम किए जाने के क्षण में प्रेम में ऐसे प्रवेश करो जैसे कि वह नित्य जीवन हो''।
तंत्र सूत्र विधि—11
शिथिल होने की दूसरी विधि;-FOR WATER ELEMENT... भक्तियोग
''जब चींटी के रेंगने की अनुभूति हो तो इंद्रियों के द्वार बंद कर दो ..तब''।
तंत्र सूत्र विधि—12
शिथिल होने की तीसरी विधि;-FOR FIRE ELEMENT...कर्मयोग
''जब किसी बिस्तर या आसमान पर हो तो अपने को वजनशून्य हो जाने दो—मन के पार''।
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तंत्र सूत्र विधि—13-24 [केंद्रित होने की बारह विधियां ]
तंत्र सूत्र विधि—13
केंद्रित होने की पहिली विधि:-FOR AIR ELEMENT... ज्ञानयोग
“या कल्पना करो कि मयूर पूंछ के पंचरंगे वर्तुल निस्सीम अंतरिक्ष में तुम्हारी पाँच इंद्रियाँ है।अब उनके सौंदर्य को भीतर ही घुलने दो।उसी प्रकार शून्य में या दीवार पर किसी बिंदु के साथ कल्पना करो, जब तक कि वह बिंदु विलीन न हो जाए। तब दूसरे के लिए तुम्हारी कामना सच हो जाती है।”
तंत्र सूत्र विधि—14
केंद्रित होने की दूसरी विधि:-FOR WATER ELEMENT... भक्तियोग
''अपने पूरे अवधान को अपने मेरुदंड के मध्य में कमल-तंतु सी कोमल स्नायु में स्थित करो और इसमे रूपांतरित हो जाओ''।
तंत्र सूत्र विधि—15
केंद्रित होने की तीसरी विधि:-FOR FIRE ELEMENT...कर्मयोग
“सिर के सात द्वारों को अपने हाथों से बंद करने पर आंखों के बीच का स्थान सर्वग्राही हो जाता है।”
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि—16
केंद्रित होने की चौथी विधि:-FOR WATER ELEMENT... भक्तियोग
“हे भगवती, जब इंद्रियाँ ह्रदय में विलीन हों, कमल के केंद्र पर पहुँचों।”
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि—17
केंद्रित होने की पांचवी विधि:-FOR AIR ELEMENT... ज्ञानयोग
“मन को भूलकर मध्य में रहो—जब तक।”
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि—18
केंद्रित होने की छठवीं विधि:-FOR WATER ELEMENT... भक्तियोग
“किसी विषय को प्रेमपूर्वक देखो; दूसरे विषय पर मत जाओ। यहीं विषय के मध्य में — आनंद।”
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि—19
केंद्रित होने की सातवीं विधि:-FOR FIRE ELEMENT...कर्मयोग
“पाँवों या हाथों को सहारा दिए बिना सिर्फ नितंबों पर बैठो। अचानक केंद्रित हो जाओगे।”
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि—20
केंद्रित होने की आठवीं विधि:-FOR AIR ELEMENT... ज्ञानयोग
“किसी चलते वाहन में लयवद्ध झुलने के द्वारा, अनुभव को प्राप्त हो। या किसी अचल वाहन में अपने को मंद से मंदतर होते अदृश्य वर्तृलों में झुलने देने से भी।”
विज्ञान भैरव सूत्र विधि—21
केंद्रित होने की नौवीं विधि:-FOR AIR ELEMENT... ज्ञानयोग
“अपने अमृत भरे शरीर के किसी अंग को सुई से भेदो, और भद्रता के साथ उस भेदन में प्रवेश करो, और आंतरिक शुद्धि को उपलब्ध होओ।”
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि—22
केंद्रित होने की दसवीं विधि:-FOR WATER ELEMENT... भक्तियोग
“अपने अवधान को ऐसी जगह रखो, जहां अतीत की किसी घटना को देख रहे हो और अपने शरीर को भी। रूप के वर्तमान लक्षण खो जायेगे, और तुम रूपांतरित हो जाओगे।”
विज्ञान भैरव सूत्र विधि—23
केंद्रित होने की ग्यारहवीं विधि:-FOR FIRE ELEMENT...कर्मयोग
“अपने सामने किसी विषय को अनुभव करो।इस एक को छोड़कर अन्य सभी विषयों की अनुपस्थिति को अनुभव करो। फिर विषय-भाव और अनुपस्थिति भाव को भी छोड़कर आत्मोपलब्ध होओ।”
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि—24
केंद्रित होने की बारहवीं विधि:-FOR FIRE ELEMENT...कर्मयोग
“जब किसी व्यक्ति के पक्ष या विपक्ष में कोई भाव उठे तो उसे उस व्यक्ति पर मत आरोपित करे।”
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तंत्र सूत्र विधि—25-29 [अचानक रूकने की पांच विधियां ]
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि—25
अचानक रूकने की पहली विधि:-
''जैसे ही कुछ करने की वृति हो , रूक जाओ।''
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि—26
अचानक रूकने की दूसरी विधि:
भगवान शिव कहते है: - ''जब कोई कामना उठे, उस पर विमर्श (consider ) करो। फिर, अचानक, उसे छोड़ दो।‘’
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि-- 27
अचानक रूकने की तीसरी विधि:-
भगवान शिव कहते है:- ''पूरी तरह थकनें तक घूमते रहो, और तब जमीन पर गिरकर, इस गिरने में पूर्ण होओ।''
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि-- 28
अचानक रूकने की चौथी विधि:-
भगवान शिव कहते है: - ''शक्ति या ज्ञान से धीरे- धीरे वंचित होने कि कल्पना करे, और वंचित किये जाने के समय में अतिक्रमण करे (दृष्टा बन जाए)''।
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि-- 29
अचानक रूकने की पांचवी विधि:
भगवान शिव कहते है: - ''भक्ति मुक्त करती है''।
तंत्र सूत्र विधि—30-37 [ देखने के संबंध में सात विधियां ]
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि— 30
देखने के संबंध में पहली विधि:-
''आँखे बंद करके, अपने अंदर अस्तित्व को विस्तार से देखो, इस प्रकार अपने सच्चे अस्तित्व को देख लो''।
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि— 31
देखने के संबंध में दूसरी विधि:-
''एक पात्र / कटोरी को उसके किनारों और सामग्री के बिना देखो और आत्मबोध को प्राप्त हो जाओ'' ।
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि— 32
देखने के संबंध में तीसरी विधि:-
''किसी सुंदर व्यक्ति या सामान्य विषय को ऐसे देखो , जैसे उसे पहली बार देख रहे है''।
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि— 33
देखने के संबंध में चौथी विधि:-
''बादलों के पास नीले आकाश को देखते हुए शांति और सौम्यता को उपलब्ध हो''।
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि— 34
देखने के संबंध में पांचवी विधि:-
''जब परम उपदेश दिया जा रहा हो, अविचल , अपलक आँखों से उसे श्रवण करो और मुक्ति को उपलब्ध हो ''।
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि— 35
देखने के संबंध में छठवीं विधि:-
''किसी गहरे कुएं के किनारे खड़े होकर उसकी गहराईओं को निरन्तर देखते रहो जबतक विस्मय मुग्ध न हो जाओ ''।
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि— 36
देखने के संबंध में सातवीं विधि:-
''किसी विषय को देखो फिर धीरे – धीरे उससे अपनी दृष्टि हटा लो और फिर अपने विचार भी उससे हटा लो''।
तंत्र सूत्र विधि—37-47[ध्वनि-संबंधी ग्यारह विधियां ]
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि— 37
ध्वनिसंबंधी पहली विधि:-
''दृष्टि पथ में संस्कृत वर्णमाला के अक्षरों की कल्पना करो,पहले अक्षरों की भाँति , फिर सूक्ष्मतर ध्वनि की भाँति , फिर सूक्ष्मतर भाव की भाति, और फिर उसे छोड़ कर मुक्त हो जाओ''।
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि— 38
ध्वनिसंबंधी दूसरी विधि:-
''जलप्रपात की अखण्ड ध्वनि के केंद्र में स्नान करो''।
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि— 39
ध्वनिसंबंधी तीसरी विधि:-
''ॐ मंत्र जैसी ध्वनि का मंद मंद उच्चारण करो''।
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि— 40
ध्वनि संबंधी चौथी विधि:-
''किसी भी वर्ण के शाब्दिक उच्चारण के आरंभ और क्रमिक परिष्कार के समय जागृत हो''।
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि— 41
ध्वनिसंबंधी पांचवी विधि:-
''तार वाले वाद्यों को सुनते हुए, उनकी सयुक्त केंद्रित ध्वनि को सुनो और सर्वव्यापक हो जाओ'' ।
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि— 42
ध्वनिसंबंधी छठवीं विधि:-
''किसी ध्वनि का उच्चारण ऐसे करो कि वह सुनाई दे,फिर उस उच्चारण को मंद से मंद किये जाओ , की स्वयं को भी सुनाने के लिए प्रयत्न करना पड़े, और भाव, मौन लयद्धता में लीन होता जाये''।
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि— 43
ध्वनिसंबंधी सातवीं विधि:-
''मुँह को थोड़ा खुला रखते हुए मन को जीभ के बीच में स्थिर करे , अथवा जब स्वास अंदर आये तब हकार् ध्वनि का अनुभव करो ''।
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि— 44
ध्वनि संबंधी आठवीं विधि:-
''अ और म के बिना ॐ ध्वनि पर (अर्थात केवल उ की ध्वनि) पर मन केंद्रित करो''।
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि— 45
ध्वनि संबंधी नौवीं विधि:-
''अः से अंत होने वाले किसी शब्द का उच्चारण मन में करो''।
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि— 46
ध्वनि संबंधी दसवीं विधि:-
''कानो को दबाकर, गुदा को सिकोड़कर बंद करो और ध्वनि में प्रवेश करो'' ।
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि— 47
ध्वनि संबंधी ग्यारहवीं विधि:-
''अपने नाम की ध्वनि में प्रवेश करो और उस ध्वनि के द्वारा सभी ध्वनियो में'' ।
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तंत्र सूत्र विधि— 48- 52(ऊर्ध्वगमन संबंधी पाँच विधियां)
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि—48
ऊर्ध्वगमन संबंधी पहली विधि:-
''आलिंगन के आरम्भ के क्षणों की उत्तेजना के भाव पर मन को केंद्रित करो''।
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि—49
ऊर्ध्वगमन संबंधी दूसरी विधि:-
“ऐसे काम-आलिंगन में जब तुम्हारी इंद्रियाँ पत्तों की भांति कांपने लगें उस कंपन में प्रवेश करो।”
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि— 50
ऊर्ध्वगमन संबंधी तीसरी विधि:-
“काम-आलिंगन के बिना ऐसे मिलन का स्मरण करके भी रूपांतरण होगा।”
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि— 51
ऊर्ध्वगमन संबंधी चौथी विधि:-
4. “बहुत समय बाद किसी मित्र से मिलने पर जो हर्ष होता है, उस हर्ष में लीन होओ।”
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि— 52
ऊर्ध्वगमन संबंधी पांचवी विधि:-
“भोजन करते हुए या पानी पीते हुए भोजन या पानी का स्वाद ही बन जाओ, और उससे भर जाओ।”
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तंत्र सूत्र विधि—53-56 (आत्म-स्मरण की चार विधिया )
आत्म-स्मरण संबंधी पहली विधि:-
“हे कमलाक्षी, हे, सुभगे, गाते हुए, देखते हुए, स्वाद लेते हुए यह बोध बना रहे कि मैं हूं, और शाश्वत आविर्भूत होता है।”
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि— 54
आत्म-स्मरण संबंधी दूसरी विधि:- 2. “जहां-जहां, जिस किसी कृत्य में संतोष मिलता हो, उसे वास्तविक करो।”
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि— 5 5
आत्म-स्मरण संबंधी तीसरी विधि:- 3. “जब नींद अभी नहीं आयी हो और बाह्य जागरण विदा हो गया हो, उस मध्य बिंदू पर बोधपूर्ण रहने से आत्मा प्रकाशित होती है।”
विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र विधि— 56
आत्म-स्मरण संबंधी चौथी विधि:- “भ्रांतियां छलती है, रंग सीमित करते है, विभाज्य भी अविभाज्य है।”
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तंत्र सूत्र विधि—57-69 ( साक्षित्व की तेरह विधिया )
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 57 ;-
साक्षित्व की पहली विधि–
‘’तीव्र कामना की मनोदशा में अनुद्विग्न रहो।‘’
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 58 ;-
(साक्षित्व की दूसरी विधि)
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 59 ;-
साक्षित्व की तीसरी विधि–
''प्रिय, न सुख में और न दुःख में, बल्कि दोनों के मध्य में अवधान को स्थित करो।''
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 60 ;-
साक्षित्व की चौथी विधि–
''विषय और वासना जैसे दूसरों में है वैसे ही मुझमें है''।
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 61 ;-
साक्षित्व की पांचवी विधि–
''जैसे जल से लहरें उठती है, और अग्नि से लपटें, वैसे ही सर्वव्यापक हम से लहराता है।''
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 62 ;-
साक्षित्व की छठवीं विधि–
''जहां कहीं तुम्हारा मन भटकता है, भीतर या बाहर, उसी स्थान पर, यह।''
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 63 ;-
साक्षित्व की सातवीं विधि–
''जब किसी इंद्रिय-विषय के द्वारा स्पष्ट बोध हो, उसी बोध में स्थित होओ।''
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 64 ;-
साक्षित्व की आठवीं विधि–
‘’छींक के आरंभ में, भय में, खाई-खड्ड के कगार पर, युद्ध से भागने पर, अत्यंत कुतूहल में, भूख के आरंभ में और भूख के अंत में, सतत बोध रखो।‘’
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 65 ;-
साक्षित्व की नौवीं विधि–
''अन्य देशनाओं के लिए जो शुद्धता है वह हमारे लिए अशुद्धता ही है। वस्तुत: किसी को भी शुद्ध या अशुद्ध की तरह मत जानों।‘’
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 66 ;-
साक्षित्व की दसवीं विधि–
''मित्र और अजनबी के प्रति, मान और अपमान में, असमता और समभाव रखो।''
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 67 ;-
साक्षित्व की ग्यारहवीं विधि–
''यह जगत परिवर्तन का है, परिवर्तन ही परिवर्तन का। परिवर्तन के द्वारा परिवर्तन को विसर्जित करो।’'
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 68 ;-
साक्षित्व की बारहवीं विधि–
''जैसे मुर्गी अपने बच्चों का पालन-पोषण करती है, वैसे ही यथार्थ में विशेष ज्ञान और विशेष कृत्य का पालन-पोषण करो''।
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 69 ;-
साक्षित्व की तेरहवीं विधि–
''यथार्थत: बंधन और मोक्ष सापेक्ष है; ये केवल विश्व से भयभीत लोगों के लिए है। यह विश्व मन का प्रतिबिंब है। जैसे तुम पानी में एक सूर्य के अनेक सूर्य देखते हो, वैसे ही बंधन और मोक्ष को देखो।’'
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तंत्र सूत्र विधि—70,71,72,73,74,75 ( प्रकाश-संबंधी छह विधियां)
प्रकाशकी पहली विधि–
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 70 ;-
''अपनी प्राण शक्ति को मेरुदंड के ऊपर उठती, एक केंद्र की ओर गति करती हुई प्रकाश किरण/Light beam समझो, और इस भांति तुममें जीवंतता का उदय होता है।''
प्रकाशकी दूसरी विधि–
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 71 ;-
''या बीच के रिक्त स्थानों में यह बिजली कौंधने जैसा है—ऐसा भाव करो। ’'
प्रकाशकी तीसरी विधि–
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 72 ;-
''भाव करो कि ब्रह्मांड एक पारदर्शी शाश्वत उपस्थिति है''।
प्रकाशकी चौथी विधि–
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 73 ;-
''ग्रीष्म ऋतु में जब तुम समस्त आकाश को अंतहीन निर्मलता में देखो, उस निर्मलता में प्रवेश करो।''
प्रकाशकी पांचवी विधि–
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 74 ;-
''हे शक्ति, समस्त तेजोमय अंतरिक्ष मेरे सिर में ही समाहित है, ऐसा भाव करो।’'
प्रकाशकी छठवीं विधि–
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 75 ;-
''जागते हुए सोते हुए, स्वप्न देखते हुए, अपने को प्रकाश समझो।’'
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तंत्र सूत्र विधि—76,77,78(अंधकार संबंधी तीन विधियां)
अंधकार की पहली विधि–
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 76 ;-
''वर्षा की अंधेरी रात में उस अंधकार में प्रवेश करो,जो रूपों का रूप है।'’
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 77 ;-
अंधकार की दूसरी विधि–
‘'जब चंद्रमाहीन वर्षा की रात में उपलब्ध न हो तो आंखें बंद करो और अपने सामने अंधकार को देखो। फिर आंखे खोकर अंधकार को देखो। इस प्रकार दोष सदा के लिए विलीन हो जाते है।’'
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 78 ;-
अंधकार की तीसरी विधि–
''जहां कहीं भी तुम्हारा अवधान उतरे, उसी बिंदु पर अनुभव''।
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तंत्र सूत्र विधि—79,80,81(अग्नि संबंधी दो विधियां)
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 79 ;-
अग्निकी पहली विधि–
''भाव करो कि एक आग तुम्हारे पाँव के अंगूठे से शुरू होकर पूरे शरीर में ऊपर उठ रही है। और अंतत: शरीर जलकर राख हो जाता है। लेकिन तुम नहीं।’'
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 80 ;-
अग्निकी दूसरी विधि–
''यह काल्पनिक जगत जलकर राख हो रहा है, यह भाव करो; और मनुष्य से श्रेष्ठतर प्राणी बनो''।
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तंत्र सूत्र विधि—81,82,83 (अहंकार संबंधी तीन विधियां )
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 81 ;-
अहंकार की पहली विधि–
''जैसे विषयीगत रूप से अक्षर शब्दों में और शब्द वाक्यों में जाकर मिलते है और विषयगत रूप से वर्तुल चक्रों में और चक्र मूल-तत्व में जाकर मिलते है, वैसे ही अंतत: इन्हें भी हमारे अस्तित्व में आकर मिलते हुए पाओ।’'
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 82 ;-
अहंकार की दूसरी विधि–
''अनुभव करो: मेरा विचार,मैं-पन, आंतरिक इंद्रियाँ—मुझ''
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 83 ;-
अहंकार की तीसरी विधि–
''कामना के पहले और जानने के पहले मैं कैसे कह सकता हूं कि मैं हूं। विमर्श करो। सौंदर्य में विलीन हो जाओ''।
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तंत्र सूत्र विधि—84,85,86,87,88,89 (अनासक्ति संबंधी छह विधियां )
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 84 ;-
अनासक्ति संबंधीपहली विधि–
''शरीर के प्रति आसक्ति को दूर हटाओं और यह भाव करो कि मैं सर्वत्र हूं। जो सर्वत्र है वह आनंदित है।’'
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 85 ;-
अनासक्ति संबंधी दूसरी विधि–
''ना-कुछ का विचार करने से सीमित आत्मा असीम हो जाती है।’'
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 86 ;-
अनासक्ति संबंधी तीसरी विधि–
'‘भाव करो कि मैं किसी ऐसी चीज की चिंतना करता हूं जो दृष्टि के परे है, जो पकड़ के परे है। जो अनस्तित्व के, न होने के परे है—मैं।'’
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 87 ;-
अनासक्ति संबंधी चौथी विधि–
''मैं हूं, यह मेरा है। यह-यह है। हे प्रिये, भाव में भी असीमत: उतरो''।
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 88 ;-
अनासक्ति संबंधी पांचवी विधि–
''प्रत्येक वस्तु ज्ञान के द्वारा ही देखी जाती है। ज्ञान के द्वारा ही आत्मा क्षेत्र में प्रकाशित होती है। उस एक को ज्ञाता और ज्ञेय की भांति देखो।’'
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 89 ;-
अनासक्ति संबंधी छठवीं विधि–
‘'हे प्रिये, इस क्षण में मन, ज्ञान, प्राण, रूप, सब को समाविष्ट होने दो।’'
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तंत्र सूत्र विधि—90,91,92,93,94,95(तीसरी आँख के जागरण संबंधी छह विधियां )
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 90 ;-
तीसरी आँख संबंधीपहली विधि–
''आँख की पुतलियों को पंख की भांति छूने से उनके बीच का हलकापन ह्रदय में खुलता है। और वहां ब्रह्मांड व्याप जाता है।’'
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 91 ;-
तीसरी आँख संबंधी दूसरी विधि–
''हे दयामयी, अपने रूप के बहुत ऊपर और बहुत नीचे, आकाशीय उपस्थिति में प्रवेश करो।''
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 92 ;-
तीसरी आँख संबंधी तीसरी विधि–
''चित को ऐसी अव्याख्य सूक्ष्मता में अपने ह्रदय के ऊपर, नीचे और भीतर रखो।'’
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 93 ;-
तीसरी आँख संबंधी चौथी विधि–
''अपने वर्तमान रूप का कोई भी अंग असीमित रूप से विस्तृत जानो''।
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 94 ;-
तीसरी आँख संबंधी पांचवी विधि–
''अपने शरीर, अस्थियों मांस और रक्त को ब्रह्मांडीय सार से भरा हुआ अनुभव करो''।
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 95 ;-
तीसरी आँख संबंधी छठवीं विधि–
''अनुभव करो कि सृजन के शुद्ध गुण तुम्हारे स्तनों में प्रवेश करके सूक्ष्म रूप धारण कर रहे है।’'
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तंत्र सूत्र विधि— 96,97 (एकांत से संबंधित दो विधियां)
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 96 ;-
एकांत संबंधी पहली विधि–
''किसी ऐसे स्थान पर वास करों जो अंतहीन रूप से विस्तीर्ण हो, वृक्षों, पहाड़ियों, प्राणियों से रहित हो।तब मन के भारों का अंत हो जाता है।''
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 96 ;-
एकांत संबंधी दूसरी विधि–
''अंतरिक को अपना ही आनंद-शरीर मानो।''
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तंत्र सूत्र विधि—98,99(ह्रदय संबंधी दो विधियां)
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 98 ;-
ह्रदय संबंधी पहली विधि–
''किसी सरल मुद्रा में दोनों कांखों के मध्य–क्षेत्र (वक्षस्थल) में धीरे-धीरे शांति व्याप्त होने दो''।
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 99 ;-
ह्रदय संबंधी दूसरी विधि–
''स्वयं को सभी दिशाओं में परिव्याप्त होता हुआ महसूस करो—सुदूर, समीप।’'
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तंत्र सूत्र विधि—100,101(आंतरिक शक्ति संबंधी दो विधियां)
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 100 ;-
आंतरिक शक्ति संबंधीपहली विधि–
''वस्तुओं और विषयों का गुणधर्म ज्ञानी व अज्ञानी के लिए समान ही होता है। ज्ञानी की महानता यह है कि वह आत्मगत भाव में बना रहता है। वस्तुओं में नहीं खोता।’'
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 101 ;-
आंतरिक शक्ति संबंधी दूसरी विधि–
''सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी मानो।’'
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तंत्र सूत्र विधि—102,103,104,105(आत्मा संबंधी चार विधियां )
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 102 ;-
आत्मा संबंधीपहली विधि–
‘अपने भीतर तथा बाहर एक साथ आत्मा की कल्पना करो। जब तक कि संपूर्ण अस्तित्व आत्मवान न हो जाए।’
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 103 ;-
आत्मा संबंधी दूसरी विधि–
''अपनी संपूर्ण चेतना से कामना के, जानने के आरंभ में ही जानो''।
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 104 ;-
आत्मा संबंधी तीसरी विधि–
''हे शक्ति, प्रत्येक आभास सीमित है, सर्वशक्तिमान में विलीन हो रहा है।’'
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 105 ;-
आत्मा संबंधी चौथी विधि–
''सत्य में रूप अविभक्त है। सर्वव्यापी आत्मा तथा तुम्हारा अपना रूप अविभक्त है। दोनों को इसी चेतना से निर्मित जानो।'’
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तंत्र सूत्र विधि—106,107,108(चेतना संबंधी तीन विधियां)
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 106 ;-
चेतना संबंधीपहली विधि–
''हर मनुष्य की चेतना को अपनी ही चेतना जानो। अंत: आत्मचिंता को त्यागकर प्रत्येक प्राणी हो जाओ।’'
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 107 ;-
चेतना संबंधी दूसरी विधि–
'''यह चेतना ही प्रत्येक प्राणी के रूप में है। अन्य कुछ भी नहीं है।''
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 108 ;-
चेतना संबंधी चौथी विधि–
''यह चेतना ही प्रत्येक की मार्ग दर्शक सत्ता है, यही हो रहो।’'
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तंत्र सूत्र विधि—109,110,111,112(शून्यवाद दर्शन/ निष्क्रिय रूप संबंधी चार विधियां)
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 109 ;-
शून्यवाद दर्शन संबंधीपहली विधि–
''अपने निष्क्रिय रूप को त्वचा की दीवारों का एक रिक्त कक्ष मानो—सर्वथा रिक्त''।
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 110 ;--
शून्यवाद दर्शन संबंधी दूसरी विधि–
''हे गरिमामयी, लीला करो। यह ब्रह्मांड एक रिक्त खोल है जिसमें तुम्हारा मन अनंत रूप से कौतुक करता है।''
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 111 ;-
शून्यवाद दर्शन संबंधी तीसरी विधि–
''हे प्रिये, ज्ञान और अज्ञान,अस्तित्व और अनस्तित्व पर ध्यान दो।फिर दोनों को छोड़ दो ताकि तुम हो सको।’'
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 112 ;-
शून्यवाद दर्शन संबंधी चौथी विधि–
''आधारहीन, शाश्वत, निश्चल आकाश में प्रविष्ट होओ।’'
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....SHIVOHAM....
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