तेरहवां शिवसूत्र -''स्व में स्थिति शक्ति है ''।
NOTE;-महान शास्त्रों और गुरूज्ञान का संकलन...
06 FACTS;-
तेरहवां शिवसूत्र -'' स्वपदम् शक्ति -''स्व में स्थिति शक्ति है''।
1-भगवान शिव कहते है-'' ''स्व में स्थिति शक्ति है''।पौराणिक साहित्य में इच्छा को शक्ति या देवी का जो रूप दिया गया है। परम चेतना इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति और क्रियाशक्ति के रूप में सचराचर जगत में व्याप्त है। भावनोपनिषद में क्रियाशक्ति को पीठ, ज्ञान शक्ति को कुण्डल और इच्छाशक्ति को महात्रिपुरसुन्दरी कहा गया है।इसका निहितार्य़ यह हो सकता है कि कुण्डलिनी शक्ति के जाग्रत होने पर वह इच्छाशक्ति के जाग्रत होने का आधार बनती है।यह चेतना तीन शक्तियों को अभिव्यक्त करती है- ज्ञान शक्ति, इच्छा शक्ति और क्रिया शक्ति। ज्ञान शक्ति से विवेक व प्रज्ञा, इच्छा शक्ति से कामना तथा क्रिया शक्ति से कार्य करने की क्षमता मिलती है।हमारे पास इन तीनों के होने की आवश्यकता है । इन तीनों शक्ति में समन्वय होते ही जीवन बहुत आसान हो जाता है।परंतु तीनों शक्तियों का पूर्ण संतुलन होना बहुत दुर्लभ है, फिर भी हमें एक अच्छे संतुलन लाने की यथासंभव चेष्टा करनी चाहिए। जब हम सोते हैं तो उस चेतना की सुषुप्त अवस्था में हम अपने निकट से निकट व्यक्ति से भी अलग रहते हैं। मुस्कुराकर यह महसूस करो कि सारी सृष्टि एक स्वप्न के जैसी है और आप उस स्वप्न में विचरण कर रहे हो। इस स्वप्न को एक दिन खत्म हो जाना है और उस दिन आप जागृत अवस्था में आ जाएंगे।
2-जिस दिन आप इस सच को अपनाएंगे, आपकी चिंताएं दूर हो जाएंगी।जो घटना, व्यक्ति या वस्तु दस साल पहले आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण थी, आज वह आपके जीवन का हिस्सा भी नहीं है। सब कुछ अस्थायी है, केवल आप स्थायी हैं। इस भाव से आप अलगाव महसूस कर सकते हैं पर दु:खी न हों। मुस्कुराकर इसे स्वीकार करें, ध्यान करें, फिर अंतरतम से शक्ति जागृत होगी। उस चैतन्य आत्मशक्ति के जागरण का उत्सव मनाएं।इच्छा का कोई आरंभ नहीं है,लेकिन अंत है।इच्छा -शून्यता का आरंभ है, लेकिन इसका कोई अंत नहीं है, और वर्तुल पूरा हो जाता है। यदि तुम सजग हो जाओ तो अंत आता है और तब इच्छा शून्यता आरंभ होती है। इच्छा शून्यता का आरंभ है किंतु फिर इसका कोई अंत नहीं है। संसार के जो परे हैं ..निर्वाण, कैवल्य, मोक्ष—इसका एक आरंभ है लेकिन कोई अंत नहीं है। संसार का कोई आरंभ नहीं है, हम पूर्व में कहते रहे हैं, यह सदा से और सदैव चल रहा है; लेकिन इसका अंत है। फिर यह वहां नहीं बचता। ठीक एक स्वप्न की भांति यह तिरोहित हो जाता है।
लेकिन जैसे ही विस्मय पैदा हो, भीतर की तरफ चलना, डूबना और स्व में स्थित हो जाने की चेष्टा करना है ।क्योंकि जब तुम पूछते हो 'मैं कहाँ हूं, और अगर इसका उत्तर तुम्हें चाहिए तो भीतर स्व में ठहरना पड़ेगा।
3-स्व अथार्त स्वयं में ठहर जाना। और, जब कोई व्यक्ति स्वयं में ठहर जायेगा, तभी तो देख पाएगा; वर्ना दौड़ते हुए तुम नहीं देख पाओगे। वासना तेज से तेज गति है। और, जो वासना से भरा है, उसका अर्थ है कि वह गहरा नहीं हुआ है;केवल भाग , दौड़ रहा है।यह दौड़ छोड़नी होगी और स्व में स्थित होना होगा। थोड़ी देर के लिए सारी वासना, सारी यात्रा बंद कर देनी होगी। लेकिन, एक वासना समाप्त नहीं हो पाती कि तुम पचासो को जन्म दे लेते हो; और तुम फिर दौड़ने लगते हो।तुम जन्मों से रुके ही नहीं हो क्योकि तुम्हें बैठना ही नहीं आता ।ऐसा क्षण तुम्हारे जीवन में कभी नहीं आता जब तुम कह सको कि अब सब मेरे पास है। जिस दिन यह क्षण आ जायेगा, उसी दिन दौड़ बंद होगी। अन्यथा हर घड़ी तुम्हे एक नयी वासना पकड़ लेती है और एकाध हो तो ऐसा भी नहीं; बहुत वासनाएं हैं।
4-तुम एक साथ बहुत दिशाओं में दौड़ रहे हो और एक साथ बहुत सी चीजों को पाने की कोशिश कर रहे हो। तुमने कभी बैठकर यह भी नहीं सोचा कि उसमें से कई चीजें तो विपरीत हैं, उनको तुम पा ही नहीं सकते; क्योंकि एक तुम पाओगे तो दूसरी खोयेगी दूसरी को पाओगे तो पहली खो जायेगी।जीवन ऐसा ही विपरीत बंटा हुआ है।तुम होना तो रावण जैसा चाहते हो;परन्तु प्रतिष्ठा राम जैसी चाहते हो। बस, तब तुम मुश्किल में पड़ जाते हो। तब विपरीत दिशाओं में तुम्हारी यात्रा चलती है और उन सब में तुम बंट जाते हो ।जीवन के आखिर में तुम पाओगे जो भी तुम लेकर आये थे, वह खो गया।क्योंकि तुम वही खो सकते हो, जो तुम लेकर आये थे। मरते वक्त तुम पाओगे कि जो आत्मा तुम लेकर आये थे, वह तुम गंवाकर जा रहे हो।बाकी तुमने जो गंवाया, जोड़ा, मिटाया, बनाया, उसका कोई बड़ा हिसाब नहीं है; बस, एक खो जायेगा। मौत के वक्त तो सब हिसाब छूट जायेंगे; एक का रह जायेगा और वह एक तुम हो।अगर तुम उस एक में ठहर गये तो तुम जीत गये।तो उसके लिए भगवान शिव कह रहे है: स्व में स्थिति शक्ति है।
5-तुम दुर्बल हो, दीन हो, दुखी हो ...इसका कारण यह नहीं कि तुम्हारे पास रुपये कम है, मकान नहीं है, धन- दौलत नहीं है। तुम दुखी हो क्योंकि, तुम स्वयं में नहीं हो। स्वयं में होना ऊर्जा का स्रोत है।वहां ठहरते ही व्यक्ति महाऊर्जा से भर जाता है।एक को खोज लेने से शेष सब पीछे चला आता है। और, एक को गंवा देने से, सब गंवा दिया जाता है। वह एक तुम हो और वही तुम्हारी संपदा है; क्योंकि उसी को लेकर तुम आये हो। और आखिरी हिसाब में यही पूछा जायेगा कि जो तुम लेकर आये थे, उसे बचा सके या उसकी भी गंवा दिया।स्व में स्थिति शक्ति है ...स्वपदम् शक्ति। अपने में ठहर जाना महाशक्तिवान हो जाना है। महाशक्तिवान तो तुम हो; लेकिन तुम ऐसे हो जैसे किसी लोटे में छेद हों और कोई पानी भर रहा हो। पानी भरता हुआ दिखायी पड़ता है ; लेकिन भरता नहीं है।हजारो वासनाएं तुम्हारे लोटे के छेद है। उनसे तुम्हारी ऊर्जा खोती है। जब तक तुम सपना देखते हो, तब तक लोटा भरा है; लेकिन जैसे ही कामना को कृत्य में लाते हो अथार्त सपने को सत्य बनाने की कोशिश करते हो, वैसे ही ऊर्जा खोनी शुरू हो जाती है।
6-हाथ आते तक पानी की एक बूंद नहीं आती, प्यास उतनी की उतनी रह जाती है।हर बार तुम खाली हाथ लौटते हो; लेकिन, वासना बड़ी अदभुत है। पुरानी आशा नहीं मरती कि कभी तो भरा हुया लोटा आ जायेगा ; क्योंकि भरा हुई दिखायी पड़ता है! फिर पानी गिरता हुआ भी दिखायी पड़ता है।इसलिए बच्चे प्रसन्न मालूम होते है और बुजुर्ग बिलकुल उदास । वास्तव में उनके लोटे में छेद ही छेद हो गये है । कितनी बार प्रयास कर चुके है; इसीलिए सब छेद बड़े हो गये। शक्ति तो तुम्हारे पास परमात्मा की है ; लेकिन मन तुम्हारे पास छेद वाले लोटे की तरह है। 'स्व में स्थिति शक्ति है' का अर्थ है कि अब तुम वासनाओं में न दौड़ोगे।एक वासना गिरी कि एक छेद बंद हुआ। वासनाएं गिर गयीं, सारे छेद खो गये। और तब तुम्हें लोटा भरने की जरूरत नहीं, तुम खुद ही पानी का सोर्स हो । बडी ऊर्जा है तुम्हारे पास ..सिर्फ तुम्हारी व्यर्थ खोती शक्ति बच जाये तो तुम महाऊर्जा लेकर पैदा हुए हो। तुम्हें कुछ पाना नहीं है; जो भी पाने योग्य है, वह तुम्हारे पास है ..सिर्फ उसे खोने से बचना है। परमात्मा को पाने का सवाल नहीं है, सिर्फ खोने से बचना है। वह तुम्हें मिला ही हुआ है। तुम खो देते हो, यही जगत की रहस्यमय घटना है।
....SHIVOHAM....
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