त्रिपुंड और तिलक किसे कहते है तथा किस दिन कौन सा तिलक लगाये ?
ज्योतिष के अनुसार यदि तिलक धारण किया जाता है तो सभी पाप नष्ट हो जाते है। सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं । ललाट अर्थात माथे पर भस्म या चंदन से तीन रेखाएं बनाई जाती हैं उसे त्रिपुंड कहते हैं। भस्म या चंदन को हाथों की बीच की तीन अंगुलियों से लेकर सावधानीपूर्वक माथे पर तीन तिरछी रेखाओं जैसा आकार दिया जाता है। शैव संप्रदाय के लोग इसे धारण करते हैं। शिवमहापुराण के अनुसार त्रिपुंड की तीन रेखाओं में से हर एक में नौ-नौ देवता निवास करते हैं।त्रिपुण्ड तीन क्षैतिज रेखाएं चन्दन के लेप से शिव भक्त शिवलिंग पर लगाते हैं ,और स्वंय भी धारण करते हैं।यह तीन रेखाएं इड़ा , पिंगला एवं सुषुम्ना नाड़ी का प्रतिनिधित्व करतीं हैं। मस्तक पर मध्यमा आदि तीन उंगलियों से त्रिपुण्ड लगाने से भक्ति तथा मुक्ति शिव जी से प्राप्त होती है। सेहत की दृष्टि से चमत्कारी लाभ होते हैं,परम शांति मिलती है।इसे शिव तिलक भी कहा जाता है।त्रिपुण्ड की पहली रेखा के देवता महादेव जी हैं।वे'अ' कार ,गार्हपत्य अग्नि- भू रजोगुण ,ऋग्वेद ,क्रिया शक्ति, पृथ्वी , धर्म ,प्रात: सवन है।दूसरी रेखा के देवता महेश्वर हैं।जो 'उ' कार दक्षिणाग्नि ,आकाश ,सत्व गुण , यजुर्वेद , माध्यन्दिन सवन , इच्छा शक्ति अंतरात्मा हैं।तीसरी रेखा के देवता शिव हैं जो ' म ' कार आवाह्नीय अग्नि ,परमात्म रुप तमो गुण स्वर्ग रुप, ज्ञान शक्ति, सामवेद, और तृतीय सवन हैं ।इन तीनों देवों को नमस्कार करके शुद्ध हो कर त्रिपुण्ड धारण करने से सभी देवता प्रसन्न होते हैं।ऐसा भक्त भोग एवं मोक्ष का अधिकारी होता है।
त्रिपुण्ड् की तीन आड़ी रेखाओं का रहस्य …….
त्रिपुण्ड् की तीनों रेखाओं में से प्रत्येक के नौ-नौ देवता हैं, जो सभी अंगों में स्थित हैं ।
1- पहली रेखा—गार्हपत्य अग्नि, प्रणव का प्रथम अक्षर अकार, रजोगुण, पृथ्वी, धर्म, क्रियाशक्ति, ऋग्वेद, प्रात:कालीन हवन और महादेव—ये त्रिपुण्ड्र की प्रथम रेखा के नौ देवता हैं ।
2– दूसरी रेखा— दक्षिणाग्नि, प्रणव का दूसरा अक्षर उकार, सत्वगुण, आकाश, अन्तरात्मा, इच्छाशक्ति, यजुर्वेद, मध्याह्न के हवन और महेश्वर—ये दूसरी रेखा के नौ देवता हैं ।
3– तीसरी रेखा—आहवनीय अग्नि, प्रणव का तीसरा अक्षर मकार, तमोगुण, स्वर्गलोक, परमात्मा, ज्ञानशक्ति, सामवेद, तीसरे हवन और शिव—ये तीसरी रेखा के नौ देवता हैं ।
त्रिपुंड का मंत्र-ॐ त्रिलोकिनाथाय नम:
त्रिपुण्ड लगाने के स्थान….
शरीर के बत्तीस, सोलह, आठ या पांच स्थानों पर त्रिपुण्ड लगाया जाता है
त्रिपुण्ड लगाने के बत्तीस स्थान…..
मस्तक, ललाट, दोनों कान, दोनों नेत्र, दोनों नाक, मुख, कण्ठ, दोनों हाथ, दोनों कोहनी, दोनों कलाई, हृदय, दोनों पार्श्व भाग, नाभि, दोनों अण्डकोष, दोनों उरु, दोनों गुल्फ, दोनों घुटने, दोनों पिंडली और दोनों पैर ।
त्रिपुण्ड् लगाने के सोलह स्थान….
मस्तक, ललाट, कण्ठ, दोनों कंधों, दोनों भुजाओं, दोनों कोहनी, दोनों कलाई, हृदय, नाभि, दोनों पसलियों, तथा पृष्ठभाग में ।
त्रिपुण्ड् लगाने के आठ स्थान…….
गुह्य स्थान, ललाट, दोनों कान, दोनों कंधे, हृदय, और नाभि ।
त्रिपुण्ड लगाने के पांच स्थान……
मस्तक, दोनों भुजायें, हृदय और नाभि।
इन सम्पूर्ण अंगों में स्थान देवता बताये गये हैं उनका नाम लेकर त्रिपुण्ड् धारण करना चाहिए ।
त्रिपुण्ड धारण करने का फल…….
इस प्रकार जो कोई भी मनुष्य भस्म का त्रिपुण्ड करता है वह छोटे-बड़े सभी पापों से मुक्त होकर परम पवित्र हो जाता है ।
उसे सब तीर्थों में स्नान का फल मिल जाता है । त्रिपुण्ड भोग और मोक्ष को देने वाला है ।वह सभी रुद्र-मन्त्रों को जपने का अधिकारी होता है । वह सब भोगों को भोगता है और मृत्यु के बाद शिव-सायुज्य मुक्ति प्राप्त करता है। उसे पुनर्जन्म नहीं लेना पड़ता है ।
गौरीशंकर तिलक…..
कुछ शिव-भक्त शिवजी का त्रिपुण्ड लगाकर उसके बीच में माता गौरी के लिए रोली का बिन्दु लगाते हैं । इसे वे गौरीशंकर का स्वरूप मानते हैं ।गौरीशंकर के उपासकों में भी कोई पहले बिन्दु लगाकर फिर त्रिपुण्ड लगाते हैं तो कुछ पहले त्रिपुण्ड लगाकर फिर बिन्दु लगाते हैं ।जो केवल भगवती के उपासक हैं वे केवल लाल बिन्दु का ही तिलक लगाते हैं ।
शैव परम्परा में अघोरी, कापालिक, तान्त्रिक जैसे पंथ बदल जाने पर तिलक लगाने का तरीका भी बदल जाता है ।
तिलक ;-
तिलक कई प्रकार से घिसे चन्दन ,केसर,सिन्दूर,हल्दी, रोली , मृत्तिका (मिट्टी),भस्म,गोपी चन्दन, गोकुल चन्दन, चावल आदि द्वारा लगाए जाते हैं।यह हिंदू धर्म में शोभा के लिए मस्तक पर बनाया हुआ विशेष चिन्ह या टीका है।
सिंहासनारूढ़ होने पर राजा या युवराज के मस्तक पर लगाया जाने वाला टीका राजतिलक कहा जाता है।
हिंदू परम्परा के अनुसार ललाट (माथे) को सूना नहीं रखना चाहिए। इसके पीछे मान्यता यह है कि चन्दन का तिलक लगाने से मनुष्य के पापों का नाश होता है।व्यक्ति संकटों से बचता है और लक्ष्मी जी की कृपा बनी रहती है। ज्ञान तंतु संयमित और सक्रिय रहते हैं।तिलक शब्द से केवल यह नहीं जाना जाता कि यह माथे पर बनाया हुआ चिन्ह मात्र हैबल्कि इसके द्वाराआत्मिक स्थिति को भी जाना जाता है।यह दोनों भौंहों के बीच में स्थित आज्ञा चक्र (ध्यान योग के अनुसार) पर लगाया जाता है। इस स्थान पर बुद्धि का निवास माना जाता है, इस केन्द्र को सक्रिय , संयमित , शांत एवं शीतल रखने के लिए तिलक धारण करने की मान्यता है।
भृकुटी के मध्य भाग में तिलक करने से आत्मिक भान या बोध में वृद्धि होती है। और इसका प्रभाव मानव के अवचेतन मन पर भी पड़ता है।
हमारे देश में जितने भी साधु -संतो के अखाड़े (साधना केंद्र) हैं, उनकी सभी की तिलक धारण करने की परंपरा अलग अलग है। उन्हीं से सबकी पहचान बनी रहती है।
मुख्यत: शैव परम्परा मे त्रिपुण्ड धारण किया जाता है।
वैष्णव परम्परा में दो रेखाएं लबंवत बनाकर तिलक धारण किया जाता है।
शाक्त परंपरा में बिन्दु वत लाल रंग का तिलक धारण करते हैं।
भिन्नता के आधार पर विभिन्न प्रकार के तिलक धारण करने की परंपरा है।
वैष्णव परम्परा में राम मार्गी और कृष्ण मार्गी दो मुख्य धारा में संत समाज साधना रत है। इनके मठ गुरुओं के अनुसार 64 प्रकार के तिलक धारण करने की परंपरा है। कुछ नाम इस तरह हैं …लाल श्री तिलक , विष्णु स्वामी तिलक, रामानंद तिलक,श्याम श्री तिलक इसके अतिरिक्त गणपति आराधक, सूर्य आराधक आदि।
शरीर में तिलक धारण के बारह स्थान वह उनके मंत्र भी बताए गए हैं।स्त्रियों के अक्षत सुहाग हेतु भृकुटी या माथे पर लाल -पीले सिन्दूर आदि रंग से या अनेक धातुओं से चमकदार आकृति के बने हुए बिन्दी स्वरुप टीका लगाने के पीछे भी यही मान्यता है कि बुद्धि की चेतनता बनी रहे।अन्य अनेक वैवाहिक , पूजा अनुष्ठान, यात्रा की सफलता आदि अवसरों पर तिलक लगाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। विवाह के मंगल अवसरों में वर यात्रा के समय किन्हीं क्षेत्रों में दही चावल का मंगल तिलक महिलाओं द्वारा बारातियों को लगाया जाता है।राजा - महराजाओं के समय युद्धों के दौरान विजय की कामना हेतु तिलक किया जाता था।किसी व्यक्ति विशेष के सम्मान स्वरुप अभिनंदन स्वरुप भी माल्यार्पण व तिलक लगाने की प्रथा आज भी है।
किसी भी शुभ कार्य के प्रारंभ में पूजा में रोली सिन्दूर हल्दी चावल आदि अर्पण के बाद उपस्थित सभी लोगों को तिलक लगाया जाता है।
तिलक के प्रकार :
तिलक कई प्रकार के होते हैं - मृतिका, भस्म, चंदन, रोली, सिंदूर, गोपी आदि।
सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं।
चंदन का तिलक लगाने से पापों का नाश होता है, व्यक्ति संकटों से बचता है, उस पर लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है, ज्ञानतंतु संयमित व सक्रिय रहते हैं।
चन्दन के प्रकार ;--हरि चंदन, गोपी चंदन, सफेद चंदन, लाल चंदन, गोमती और गोकुल चंदन।
तिलक लगाने के लाभ ;-
1- तिलक करने से व्यक्तित्व प्रभावशाली हो जाता है. दरअसल, तिलक लगाने का मनोवैज्ञानिक असर होता है, क्योंकि इससे व्यक्ति के आत्मविश्वास और आत्मबल में भरपूर इजाफा होता है.
2-ललाट पर नियमित रूप से तिलक लगाने से मस्तक में तरावट आती है. लोग शांति व सुकून अनुभव करते हैं. यह कई तरह की मानसिक बीमारियों से बचाता है.
3- दिमाग में सेराटोनिन और बीटा एंडोर्फिन का स्राव संतुलित तरीके से होता है, जिससे उदासी दूर होती है और मन में उत्साह जागता है. यह उत्साह लोगों को अच्छे कामों में लगाता है.
4-इससे सिरदर्द की समस्या में कमी आती है.
5- हल्दी से युक्त तिलक लगाने से त्वचा शुद्ध होती है. हल्दी में एंटी बैक्ट्रियल तत्व होते हैं, जो रोगों से मुक्त करता है.
6- धार्मिक मान्यता के अनुसार, चंदन का तिलक लगाने से मनुष्य के पापों का नाश होता है. लोग कई तरह के संकट से बच जाते हैं. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, तिलक लगाने से ग्रहों की शांति होती है.
7--माना जाता है कि चंदन का तिलक लगाने वाले का घर अन्न-धन से भरा रहता है और सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है।
किस दिन किस का तिलक लगाये :
यदि वार अनुसार तिलक धारण किया जाए तो उक्त वार से संबंधित ग्रहों को शुभ फल देने वाला बनाया जा सकता है।
सोमवार ;-
सोमवार का दिन भगवान शंकर का दिन होता है तथा इस वार का स्वामी ग्रह चंद्रमा हैं। चंद्रमा मन का कारक ग्रह माना गया है। मन को काबू में रखकर मस्तिष्क को शीतल और शांत बनाए रखने के लिए आप सफेद चंदन का तिलक लगाएं। इस दिन विभूति या भस्म भी लगा सकते हैं।
मंगलवार ;-
मंगलवार को हनुमानजी का दिन माना गया है। इस दिन का स्वामी ग्रह मंगल है। मंगल लाल रंग का प्रतिनिधित्व करता है। इस दिन लाल चंदन या चमेली के तेल में घुला हुआ सिंदूर का तिलक लगाने से ऊर्जा और कार्यक्षमता में विकास होता है। इससे मन की उदासी और निराशा हट जाती है और दिन शुभ बनता है।
बुधवार ;-
बुधवार को जहां मां दुर्गा का दिन माना गया है वहीं यह भगवान गणेश का दिन भी है।इस दिन का ग्रह स्वामी है बुध ग्रह। इस दिन सूखे सिंदूर (जिसमें कोई तेल न मिला हो) का तिलक लगाना चाहिए। इस तिलक से बौद्धिक क्षमता तेज होती है और दिन शुभ रहता है।
गुरुवार ;-
गुरुवार को बृहस्पतिवार भी कहा जाता है। बृहस्पति ऋषि देवताओं के गुरु हैं। इस दिन के खास देवता हैं ब्रह्मा। इस दिन का स्वामी ग्रह है बृहस्पति ग्रह।गुरु को पीला या सफेद मिश्रित पीला रंग प्रिय है। इस दिन सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिए। हल्दी या गोरोचन का तिलक भी लगा सकते हैं। इससे मन में पवित्र और सकारात्मक विचार तथा अच्छे भावों का उद्भव होगा जिससे दिन भी शुभ रहेगा और आर्थिक परेशानी का हल भी निकलेगा।
शुक्रवार ;-
शुक्रवार का दिन भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मीजी का रहता है। इस दिन का ग्रह स्वामी शुक्र ग्रह है।हालांकि इस ग्रह को दैत्यराज भी कहा जाता है। दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य थे। इस दिन लाल चंदन लगाने से जहां तनाव दूर रहता है वहीं इससे भौतिक सुख-सुविधाओं में भी वृद्धि होती है। इस दिन सिंदूर भी लगा सकते हैं।
शनिवार ;-
शनिवार को भैरव, शनि और यमराज का दिन माना जाता है। इस दिन के ग्रह स्वामी है शनि ग्रह। शनिवार के दिन विभूत, भस्म या लाल चंदन लगाना चाहिए जिससे भैरव महाराज प्रसन्न रहते हैं और किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होने देते। दिन शुभ रहता है।
रविवार ;-
रविवार का दिन भगवान विष्णु और सूर्य का दिन रहता है। इस दिन के ग्रह स्वामी है सूर्य ग्रह जो ग्रहों के राजा हैं। इस दिन लाल चंदन या हरि चंदन लगाएं। भगवान विष्णु की कृपा रहने से जहां मान-सम्मान बढ़ता है वहीं निर्भयता आती है।
तिलक लगाने का मन्त्र ;-
केशवानन्न्त गोविन्द बाराह पुरुषोत्तम ।
पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं मे प्रसीदतु ।।
कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम् ।
ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम् ..
..SHIVOHAM...
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