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दक्षिण भारत के पंचभूत स्थल ..अथार्त पांच तत्वों की शुद्धि के लिए पांच शिव मंदिर...PART-02




3-अरुणाचलेश्वर मंदिर ( अग्नि तत्व को समर्पित);- 07 FACTS;-

1-तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई में बसा अरुणाचलेश्वर मंदिर यहां के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। इसे देश का सबसे बड़ा मंदिर भी कहा जाता है। मंदिर में शिव की अग्नि रूप में पूजा की जाती है।यहाँ के शिव लिगोद्भव है। कहा जाता है कि यही वह स्थान है जहाँ शिव, विष्णु और ब्रह्मा से पहले लिंग रूप में प्रकट हुए थे। शिव ने यहां खुद को धरती और स्वर्ग को स्पर्श करते हुए अग्नि स्तंभ के रूप में परिवर्तित कर लिया था।एक समय सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा तथा सृष्टि के पालनकर्ता विष्णु के मध्य उनकी श्रेष्ठता के विषय पर विवाद उत्पन्न हो गया। इस विवाद पर निष्कर्ष प्राप्त करने के लिए वे भगवान शिव के समक्ष उपस्थित हुए तथा उनसे निर्णय प्रदान करने का निवेदन किया। भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेने का निर्णय लिया। वे दोनों के मध्य एक विशाल अग्नि स्तम्भ के रूप में प्रकट हो गए जिसके दोनों छोर दृष्टिगोचर नहीं हो रहे थे। उन्होंने ब्रह्मा एवं विष्णु से कहा कि जो उस अग्नि स्तम्भ का छोर सर्वप्रथम खोज निकलेगा, वही सर्वश्रेष्ठ होगा। विष्णु ने वराह का रूप लिया तथा स्तम्भ का छोर ढूँढने के उद्देश्य से धरती के भीतर प्रवेश किया। धरती के भीतर दीर्घ काल तक जाने के पश्चात भी उन्हें उस अग्नि रूपी लिंग का छोर नहीं दिखा। तब भगवान शिव के समक्ष उपस्थित होकर उन्होंने अपनी पराजय स्वीकार कर ली। 2-वहीं ब्रह्मा ने हंस का रूप धरा तथा स्तम्भ के ऊपरी छोर तक पहुँचने के उद्देश्य से आकाश में ऊपर उड़ गए। दीर्घ काल तक ऊपर की ओर जाने के पश्चात भी उन्हें लिंग का ऊपरी छोर दृष्टिगोचर नहीं हुआ। वे थक कर चूर हो गए थे किन्तु पराजय स्वीकार करने की मनस्थिति में नहीं थे। तभी अनायास उन्होंने ऊपर से गिरते केतकी पुष्प को देखा। तुरंत उन्होंने उससे स्तम्भ के छोर के विषय में जानना चाहा। केतकी पुष्प ने कहा कि वह चालीस हजार वर्षों से नीचे की ओर गिर रहा है किन्तु उसे स्तम्भ का छोर दिखाई नहीं दिया है। इस पर ब्रह्मा ने केतकी को अपने छल में सम्मिलित करते हुए उसे झूठा साक्षी बनने की आज्ञा दी। ब्रह्मा ने शिव के समक्ष अग्नि लिंग के छोर का दर्शन करने का दावा किया तथा केतकी को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया। ब्रह्मा के असत्य कथन पर शिव अत्यंत क्रोधित हो गए तथा ब्रह्मा का एक सिर काट दिया। विष्णु के निवेदन पर उन्होंने ब्रह्मा के अन्य सिरों पर प्रहार नहीं किया किन्तु किसी भी मंदिर पर उनकी आराधना पर प्रतिबन्ध लगा दिया। उन्होंने केतकी पुष्प को भी श्राप दिया कि अब शिव आराधना में उसका उपयोग कभी नहीं किया जाएगा। जिस स्थान पर ब्रह्मा व विष्णु के अहंकार को नष्ट करने के लिए यह अग्नि लिंग प्रकट हुआ था, उस स्थान को तिरुवन्नमलई कहते हैं। 3-तिरुवन्नामलाई के अरुणाचलेश्वर मंदिर का निर्माण अग्नि तत्व के लिए किया गया था। तिरुवन्नामलाई अन्नामलाई पहाडिय़ों की तराई में स्थित है। इस पहाड़ी को अपने आप में एक पवित्र लिंग माना जाता है।एक अन्य कथा के अनुसार एक बार जब माता पार्वती ने चंचलतापूर्वक भगवान शिव से अपने नेत्र बंद करने के लिए कहा तो उन्होंने अपने नेत्र बंद कर लिए और इस कारण पूरे ब्रह्मांड में कई हजारों वर्षों के लिए अंधकार छा गया। इस अंधकार को दूर करने के लिए भगवान शिव के भक्तों ने कड़ी तपस्या की, जिसके कारण महादेव अन्नामलाई की पहाड़ी पर एक अग्नि स्तंभ के रूप में दिखाई दिए। इसी कारण यहाँ भगवान शिव की आराधना अरुणाचलेश्वर के रूप में की जाती है और यहाँ स्थापित शिवलिंग को भी अग्नि लिंगम कहा जाता है। तीर्थयात्री स्कंदाश्रम और विरूपाक्षी मलाई गुफाओं में भी जाते है , जहां रमन महर्षि ने ध्यान की अवस्था में करीब 13 साल गुजारे थे।भगवान शिव की उपासना को समर्पित यह श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर, विश्व भर में भगवान शिव का सबसे बड़ा मंदिर है। लगभग 24 एकड़ क्षेत्रफल में अपने विस्तार के कारण यह भारत का आठवाँ सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है। मंदिर के निर्माण के लिए ग्रेनाइट एवं अन्य कीमती पत्थरों का उपयोग किया गया है।मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर के अतिरिक्त 5 अन्य मंदिरों का निर्माण किया गया है। अन्नामलाई की पहाड़ी की तलहटी पर स्थित इस पूर्वाभिमुख मंदिर में चार प्रवेश द्वार हैं और यहाँ चार बड़े गोपुरम बनाए गए हैं, जिनमें से सबसे गोपुरम को ‘राज गोपुरा’ भी कहा जाता है, जिसकी ऊँचाई लगभग 217 फुट है और यह भारत का तीसरा सबसे बड़ा प्रवेश द्वार है। 4-श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर में हजार स्तंभों का एक हॉल भी है।मुख्य मंदिर तक पहुँचने के मार्ग में कुल 8 शिवलिंग स्थापित हैं। इंद्र, अग्निदेव, यम देव, निरुति, वरुण, वायु, कुबेर और ईशान देव द्वारा पूजा करते हुई आठ शिवलिंगों के दर्शन करना अत्यंत पवित्र माना गया है। मंदिर के गर्भगृह में 3 फुट ऊँचा शिवलिंग स्थापित है, जिसका आकार गोलाई लिए हुए चौकोर है। गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग को लिंगोंत्भव कहा जाता है और यहाँ भगवान शिव अग्नि के रूप में विराजमान हैं, जिनके चरणों में भगवान विष्णु को वाराह और ब्रह्मा जी को हंस के रूप में बताया गया है।मंदिर परिसर के भीतर दो जलकुंड हैं। राजगोपुरम के निकट शिवगंगई तीर्थम है तथा दक्षिणी गोपुरम की ओर ब्रह्म तीर्थम है।पाथाल लिंगम अथवा पाताल लिंग एक भूमिगत कक्ष है। ऐसा कहा जाता है कि रमण महर्षि ने यहाँ ध्यान साधना की थी। रमण महर्षि एक प्रख्यात संत थे जिन्होंने अल्प वय में मृत्यु को पराजित किया था।मंदिर सहस्त्र स्तम्भ मंडप के समक्ष स्थित है। इसके भीतर चार कक्ष हैं। सबसे भीतरी कक्ष मूलस्थान है जहां श्री मुरुगन की प्रतिमा स्थापित है। तीसरे कक्ष का प्रयोग पूजा आराधना के लिए किया जाता है। प्रथम एवं द्वितीय कक्ष में ग्रेनाईट पर उत्कृष्ट रूप से उत्कीर्णित संरचनाएं हैं।गणपति को समर्पित यह मंदिर इल्लैयनार संनाथी के पृष्ठभाग में स्थित है। 5-इस मंदिर के ऊपर एक भव्य व विशाल विमान है जिस पर देवी-देवताओं की रंगबिरंगी छवियाँ हैं।अरुणगिरीनाथ मंडप तमिल संत अरुणगिरीनाथ को समर्पित है।उन्हें सामान्यतः भगवान मुरुगन के समक्ष हाथ जोड़कर नतमस्तक मुद्रा में खड़े हुए दर्शाया जाता है।किल्ली गोपुरम का अर्थ है, तोता अटारी। यह गोपुरम श्री अरुणाचलेश्वर की भीतरी गर्भगृह से जुड़ा हुआ है। इस गोपुरम के ऊपर, एक आले के भीतर, गारे में निर्मित तोते का शिल्प है। ऐसी मान्यता है कि संत अरुणगिरीनाथ स्वयं एक तोते के रूप में इस गोपुरम पर विश्राम कर रहे हैं। इस गोपुरम पर राजा राजेन्द्र चोल तथा इस गोपुरम के निर्माता भास्करमूर्ती व उनकी पत्नी की भी प्रतिमाएं हैं। मंदिर में आयोजित शोभायात्राओं के समय सभी उत्सव मूर्तियों को इसी गोपुरम से बाहर लाया जाता है।किल्ली गोपुरम को पार कर सोलह स्तम्भ युक्त एक विस्तृत कक्ष में पहुँचते हैं जिसे कत्ती मंडपम कहते हैं। प्रमुख उत्सवों के समय यहाँ से सभी देवों के दर्शन होते हैं। कार्तिकई दीपम उत्सव पर पावन अरुणाचल पर्वत के शिखर पर दीप स्तम्भ प्रज्ज्वलित किया जाता है। भक्तगण इसी मंडप से उस प्रकाश पुंज के दर्शन करते हैं। इसी मंडप से ध्वज स्तम्भ एवं श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर के समक्ष विराजमान एक छोटे नंदी के भी दर्शन होते हैं।

6-कल्याण सुदर्शन सन्निधि में एक शिवलिंग है। साथ ही देवी पार्वती एवं नंदी के विग्रह भी हैं। इसमें एक विवाह मंडप भी है जहां अनेक भक्तगण विवाह समारोह आयोजित करते हैं।श्री सम्बन्ध विनायक मंदि कत्ती मंडपम के समीप स्थित है। मंदिर के भीतर चटक लाल रंग में भगवान गणेश अथवा विनायक की बैठी मुद्रा में विग्रह है। यह प्रतिमा सम्पूर्ण तमिल नाडू के मंदिरों में स्थापित विशालतम गणेश प्रतिमाओं में से एक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान् गणेश ने एक दानव का वध किया था तथा उसके रक्त से अपने शरीर का लेप किया था। इसी कारण उनकी देह रक्तवर्ण है।इस मंदिर में देवी उन्नमलाईअम्मन के रूप में देवी पार्वती की आराधना की जाती है। यह मंदिर श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर संकुल के उत्तर-पश्चिमी कोने में स्थित है। इस मंदिर में नवग्रह मंदिर, कोडेमरा मंडपम, अष्टलक्ष्मी मंडपम तथा गर्भगृह हैं।श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर इस संकुल का सर्वाधिक भीतरी मंदिर है जो पूर्व मुखी है। वे इस मंदिर के प्रमुख देव हैं। इसके गर्भगृह में शिवलिंग है। मंदिर की चारों ओर स्थित भित्तियों पर लिंगोद्भव, नटराज, दुर्गा तथा अन्य देव-देवताओं के शिल्प हैं। मंदिर के दूसरे प्राकारम में पल्लियारै नामक एक लघु कक्ष है। यह कक्ष शिव-पार्वती का विश्राम कक्ष है। मंदिर में दिवस भर के सभी अनुष्ठानों की समाप्ति के पश्चात, रात्रि के समय देवी पार्वती की प्रतिमा को पालकी में बैठाकर इस कक्ष में लाया जाता है। श्री अरुणाचलेश्वर का प्रतिनिधित्व करती एक प्रतिमा को भी इस कक्ष में लाया जाता है। तत्पश्चात दोनों विग्रहों को एक झूले पर विराजमान किया जाता है। कुछ अतिरिक्त अनुष्ठानों के पश्चात कक्ष को बंद कर दिया जाता है। भगवान् शिव एवं देवी पार्वती प्रातःकाल तक कक्ष में विश्राम करते हैं। 7-प्रमुख त्यौहार...महाशिवरात्रि के अलावा श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर का प्रमुख त्यौहार कार्तिक पूर्णिमा है। इसे मंदिर में कार्तिक दीपम कहा जाता है, जो सदियों से मंदिर में मनाया जा रहा है। इस दिन मंदिर में विशाल दीपदान किया जाता है और हजारों की संख्या में दीपक जलाए जाते हैं। एक विशाल दीपक मंदिर की पहाड़ी पर प्रज्ज्वलित किया जाता है, जिसे 2-3 किमी की दूरी से भी देखा जा सकता है।इसके अलावा प्रत्येक पूर्णिमा को श्रद्धालु अन्नामलाई पर्वत की 14 किलोमीटर (किमी) लंबी परिक्रमा नंगे पैर करते हैं। इसे ‘गिरिवलम‘ के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा मंदिर में ब्रह्मोत्सवम और तिरुवूडल नाम के त्यौहार भी मनाए जाते हैं।श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर में पारंपरिक परिधान की अपेक्षा की जाती है। अतः आप इस पर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित करें। छोटे वस्त्रों की अनुमति पुरुष एवं स्त्रियों दोनों को नहीं है। अन्य निकटवर्ती पर्यटन स्थल;-

03 FACTS;- 1-रमण महर्षि आश्रम;- रमण महर्षि एक महान संत थे जिन्होंने 16 वर्ष की अल्पायु में मृत्यु को चुनौती दी थी। रमण महर्षि का आश्रम गिरिवलम पथ पर स्थित है। आश्रम में उनकी समाधि है। रमण महर्षि द्वारा दी गयी शिक्षा का उनके अनुयायी पूर्ण श्रद्धा से पालन करते हैं। वे उनका आशीष प्राप्त करने के लिए इस आश्रम में आते हैं। आश्रम में विश्राम गृह की सुविधा उपलब्ध है। आश्रम में पुस्तकालय, भोजन कक्ष, गौशाला तथा एक विक्री केंद्र भी हैं। इस आश्रम में मातृभाषेश्वर मंदिर भी है। रमण महर्षी आश्रम अत्यंत रम्य व मनोरम है। यहाँ आप एक दिव्यात्मा की उपस्थिति एवं शान्ति का अनुभव करेंगे। 2-स्कंदाश्रम;- यह आश्रम मंदिर के समक्ष एक पहाड़ी पर स्थित है। रमण महर्षी ने सन् 1916 से सन् 1922 तक इस आश्रम में निवास किया था। स्कंदाश्रम जाते समय आप ऊंचाई से श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर का भव्य परिदृश्य देख सकते हैं। 3-विरूपाक्ष गुफा;- ऐसी मान्यता है कि यह गुफा ऋषि विरूपाक्ष की समाधि स्थल है। यह गुफा ॐ के आकार की है।

अरुणाचलेश्वर मंदिर कैसे पहुँचें?- तिरुवन्नामलाई का निकटतम हवाईअड्डा चेन्नई में स्थित है, जो मंदिर से लगभग 175 किमी की दूरी पर स्थित है। यह एक अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा है। इसके अलावा तिरुचिरापल्ली रेल मुख्यालय में स्थित तिरुवन्नामलाई रेलवे स्टेशन मंदिर का निकटतम रेलवे स्टेशन है, जो मंदिर से लगभग 2 किमी दूर है। 4- जंबूकेश्वर मंदिर (जल तत्व को समर्पित)का जंबूकेश्वर मंदिर 04 FACTS;-

1-तमिलनाडु के त्रिची में भगवान शिव का जंबूकेश्वर मंदिर स्थित है।इस मंदिर में महादेव के जल स्वरुप की पूजा-अर्चना की जाती है। एक जामुन के पेड़ के नीचे स्थित शिव का अभिषेक वर्षा के दिनों में वहां बहने वाली एक छोटी सी नदी करती है।तिरुवनईकवल का जंबूकेश्वर मंदिर जल तत्व के लिए बनाया गया था। मंदिर में एक भूमिगत झरना गर्भ-गृह को भर देता है, जहां लिंग बना हुआ है। जंबुकेश्वर में भूमिगत जल धारा है। इसकी वजह से यहां पानी की कभी कमी नहीं पड़ती।मंदिर को लेकर यह कथा म‍िलती है क‍ि एक बार माता पार्वती ने शिव ज्ञान की प्राप्ति के लिए पृथ्वी पर आकर इसी स्‍थान पर अपने हाथ से शिवलिंग बनाकर तपस्या की थी।कथा के अनुसार एक बार देवी पार्वती ने दुनिया के सुधार के लिए की गई शिवजी की तपस्या का मज़ाक उड़ाया। शिव, पार्वती के इस कृत की निंदा करना चाहते थे, उन्होंने पार्वती को कैलाश से पृथ्वी पर जाकर तपस्या करने का निर्देश दिया। भगवान शिव की निर्देशानुसार अक्विलादेश्वरी के रूप में देवी पार्वती पृथ्वी पर जंबू वन तपस्या के लिए पहुंची। देवी ने कावेरी नदी के पास वेन नवल पेड़ के नीचे शिवलिंग बनाया और शिव पूजा में लीन हो गईं। बाद में लिंग अप्पुलिंगम के रूप में जाना गया। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिवजी ने अक्विलादेश्वरी को दर्शन दिए और शिव ज्ञान की प्राप्ति कराई।

2-इस मंदिर से जुड़े एक और पौराणिक कथा है कि कभी 'मालयान' और 'पुष्पदांत' नाम के दो शिव के शिष्य हुआ करते थे। हालांकि वे शिव भक्त थे लेकिन वे हमेशा एक-दूसरे से झगड़ा करते थे। एकबार दोनों आपस में लड़ रहे थे इस दौरान 'मालयान' ने धरती पर हाथी बनने का 'पुष्पदांत' को श्राप दे दिया और बाद में 'मालयान' को भी मकड़ी बनने का श्राप मिला। हाथी और मकड़ी दोनों जंबुकेश्वर आए और शिव जी की पूजा में लग गए। हाथी कावेरी नदी से पानी एकत्र करता और जंबू पेड़ के नीचे शिवलिंग का जलाभिषेक करता। मकड़ी ने अपनी श्रद्धा दिखाने के लिए शिवलिंग के ऊपर जाला बुना ताकि सूर्य की तेज रोशनी और पेड़े के सूखे पत्ते लिंग पर न गिरें। जब हाथी ने मकड़ी का जाला शिवलिंग पर बना देखा तो उसने गंदगी समझकर उसे पानी से हटा डाला। मकड़ी ने गुस्से में एक दिन हाथी की सूंड में घूसकर उसे मार डाला और खुद भी मर गई। जिसके बाद शिव, जंबुकेश्वर रूप में दोनों की गहरी भक्ति से प्रभावित होकर उसी स्थान पर आएं और दोनों को श्राप मुक्त किया। हाथी द्वारा शिव पूजा किए जाने पर इस स्थान का नाम थिरुवनैकवल पड़ा। इसलिए जंबुकेश्वर मंदिर को थिरुवनैकवल भी कहा जाता है।

3-तकरीबन 1800 वर्ष पहले हिंदू चोल राजवंश के राजा कोकेंगानन ने यहां भव्य मंदिर का निर्माण करवाया।जंबुकेश्वर मंदिर की वास्तुकला भी कमाल की है।किवदंती के अनुसार दीवारें भगवान शिव ने मजदूरों के साथ मिलकर बनाई थीं। इस मंदिर के अंदर पांच प्रांगण हैं।द्रविण शैली में बने जम्बूकेश्वर मंदिर के गर्भगृह का आकार चौकोर है भगवान शिव के इस मंदिर की खासियत यह है कि इसमें देवी-देवताओं की मूर्तियां एक साथ नहीं बल्कि एक-दूसरे के विपरीत स्थापित किया गया है। ज‍िन मंद‍िरों में ऐसी व्‍यवस्‍था होती है उन्‍हें उपदेशा स्थालम कहा जाता है। क्‍योंक‍ि इस मंदिर में देवी पार्वती एक शिष्य और जंबुकेश्वर एक गुरु के रूप में मौजूद हैं। इसलिए इस मंदिर में थिरु कल्याणम यानी क‍ि शादी-ब्‍याह नहीं कराया जाता है।भगवान शिव और माता पार्वती के साथ यहां पर भगवान ब्रह्मा और विष्णु की भी मूर्तियां हैं मंदिर की दीवारों पर भी देवी-देवताओं की मूर्तियों को उकेरा गया हैपांच तत्वों में जल तत्व का प्रतिनिधित्व करने वाले इस मंदिर के भीतर पांच प्रांगण बने हुए हैंं मंदिर के पांचवें परिसर की सुरक्षा के लिए एक विशाल दीवार बनी हुई है, जिसे स्थानीय लोग विबुडी प्रकाश के नाम से जानते हैं दो फीट चौड़ा और 25 फीट ऊंचा विबुडी प्रकाश लगभग एक मील तक फैला हुआ है पांच परिसरों वाले इस मंदिर के चौथे परिसर में 769 खंबों वाला हाल है जबकि तीसरे परिसर में दो विशाल गोपुरम बने हुए हैंजम्बूकेश्वर मंदिर के चौथे परिसर में एक जलकुंडल है

4-यह अपने आप में विशिष्ट बात है कि यहां के पुजारी दोपहर बाद की धार्मिक रस्मों को करने से पहले महिलाओं की तरह कपड़े पहनकर तैयार होते हैं। इसके पीछे कहानी यह बताई जाती है कि चूंकि माता पार्वती ने यहां पर शिव साधना की थी, इसलिए यहां पर पुजारी महिलाओं जैसे कपड़े पहनकर भगवान जंबूकेश्वर की पूजा करते हैंइस स्थान पर पार्वती ने तपस्या की थी और पास की कावेरी नदी के जल से लिंग का निर्माण किया था।इस स्थान, त्रिची पर सद्गुरु श्रीब्रह्मा का आश्रम भी स्थित हैं।जहाँ पर सदगुरु श्रीब्रह्मा ने ध्यान किया था और कुछ खास समय के लिए वह समाधि की अवस्था में थे। आज भी यह स्थान एक ऐसी ऊर्जा से गुंजायमान है, जिससे साधक लाभ उठा सकते हैं।यह मंदिर श्रीरंगम द्वीप पर स्थित है जहां प्रसिद्ध रंगनाथस्वामी मंदिर भी है। त्रिची में घूमने के अन्य मंदिर;-

04 FACTS;- 1-ब्रह्मपुरीश्वरर मंदिर;- ब्रह्मपुरेश्वर मंदिर एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है जिसे भगवान ब्रह्मपुरेश्वर द्वारा स्वयंभू लिंगम के रूप में स्थापित किया गया है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि उन्होंने भगवान ब्रह्मा के पाठ्यक्रम को बदल दिया। यह तमिलनाडु में तिरुचि के करीब तिरुपत्तूर पड़ोस में स्थित है। यह एक स्थानीय मिथक है कि इस मंदिर, मुख्य रूप से एक शिव मंदिर में आशीर्वाद प्राप्त करके कोई भी अपना भाग्य बदल सकता है। एक अलग मंदिर में, भगवान ब्रह्मा को उनकी प्रसिद्ध कमल के फूल की ध्यान मुद्रा में बैठे हुए पाया जा सकता है। देवी पार्वती भी मंदिर में पूजनीय हैं और घूमने के लिए सबसे अच्छे त्रिची पर्यटन स्थलों में से एक हैं। समय: सुबह 7:30 बजे से शाम 8 बजे तक 2-रॉकफोर्ट मंदिर;- तिरुचिरापल्ली में सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक रॉकफोर्ट मंदिर है जो त्रिची रेलवे स्टेशन से मंदिर को केवल पांच किलोमीटर अलग करता है। यह एक पुराना किला है, और बड़ी-बड़ी चट्टानें इसकी रूपरेखा बनाती हैं। थायुमानवर मंदिर, मनिका विनयगर मंदिर और उच्च पिल्लयार मंदिर रॉकफोर्ट के अंदर स्थित तीन प्रसिद्ध हिंदू मंदिर हैं। 3-श्री रंगनाथस्वामी मंदिर;-

02 POINTS;- 1-श्री रंगनाथस्वामी मंदिर श्रीरंगम टाउन के अन्य प्रसिद्ध त्रिची पर्यटन स्थलों में से एक है। यह प्रमुख भगवान विष्णु मंदिर द्रविड़ स्थापत्य शैली में बनाया गया है और सभी निर्वाण साधकों के लिए जरूरी है।इस मंदिर को ‘भू-लोक वैकुंठ’ अर्थात् ‘धरती का वैकुण्ठ’ कहा जाता है। यह देश के सबसे बड़े मंदिर परिसरों में से एक है। इसे ‘श्रीरंगम मंदिर’, ‘तिरुवरंगम तिरुपति’, ‘पेरियाकोइल’ आदि विभिन्न नामों से भी जाना जाता है।पौराणिक कथाओं के अनुसार, वैदिक काल में गोदावरी नदी के तट पर गौतम ऋषि का आश्रम था। उस समय अन्य क्षेत्रों में जल की काफी कमी थी। एक दिन जल की तलाश में कुछ ऋषि गौतम ऋषि के आश्रम जा पहुंचे। अपने यथाशक्ति अनुसार गौतम ऋषि ने उनका आदर सत्कार कर उन्हें भोजन कराया।परन्तु ऋषियों को उनसे ईर्ष्या होने लगी। उर्वर भूमि के लालच में ऋषियों ने मिलकर छल द्वारा गौतम ऋषि पर गौ हत्या का आरोप लगा दिया तथा उनकी सम्पूर्ण भूमि हथिया ली। इसके बाद गौतम ऋषि ने श्रीरंगम जाकर श्री रंगनाथ श्री विष्णु की आराधना की और उनकी सेवा की। गौतम ऋषि के सेवा से प्रसन्न होकर श्री रंगनाथ ने उन्हें दर्शन दिया और पूरा क्षेत्र उनके नाम कर दिया और गौतम ऋषि के आग्रह पर स्वयं ब्रह्माजी ने विश्व केे सबसे बड़े इस भव्य मंदिर का निर्माण किया था। भगवान श्री राम के वनवास काल मे, इस मंदिर में देवताओं की, भगवान राम के द्वारा पूजा की जाती थी और रावण पर श्री राम की विजय के बाद मंदिर और देवताओं को, राजा विभीषण को सौंप दिया गया। भगवान श्री विष्णु विभिषण के सामने उपस्थित हुए और इसी स्थान पर 'रंगनाथ' के रूप में रहने की इच्छा व्यक्त की। कहा जाता है कि तब से भगवान् विष्णु श्री रंगनाथस्वामी के रूप में यहां वास करते हैं और श्री रंगम् से लेकर श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर, तिरुवनंतपुरम तक के क्षेत्र में व्याप्त हैं।

2-इस विशाल और भव्य मंदिर परिसर का क्षेत्रफल लगभग 156 एकड़ (6,31,000 वर्ग मी.) है और परिधि 4116 मीटर है।यह मंदिर कावेरी नदी के तट पर स्थित है।मंदिर परिसर का निर्माण 7 प्रकारों (संकेंद्रित दीवारी अनुभागों) और 21 गोपुरमों से मिलकर किया गया है।इस मंदिर में 7 मुखबिर एवं 21 टावर हैं।इस मंदिर के मुख्य गोपुरम की ऊंचाई 72 मीटर (236 फीट) है, इसे ‘राजगोपुरम (शाही मंदिर टावर)’ कहा जाता है।इस मंदिर के निर्माण में मुख्य रूप से तमिल वास्तुकला शैली की झलक दिखाई देती है।मंदिर में एक लकड़ी की मूर्ति भी है जिसे याना वहाना (Yana Vahan) कहते है, इसके ऊपर बैठे हुए भगवान विष्णु मस्तोदोनटिओटाइदा (Mastodontoidea) जैसे दिखते है। मस्तोदोनटिओटाइदा एक प्रागैतिहासिक हाथी है, जो लगभग 15 मिलियन वर्ष पहले विलुप्त हो गया था।मंदिर के विमानम (गर्भगृह के ऊपर की संरचना) के ऊपरी भाग में सोने का उपयोग किया गया है।रंगनाथ स्वामी के जन्म दिवस के अवसर पर हर साल शुक्ल पक्ष सप्तमी के दिन मंदिर में रंग जयंती का आयोजन किया जाता है। यह उत्सव पूरे 8 दिन तक चलता है।साल में केवल एक बार वैकुण्ठ एकादशी वाले दिन ही ‘परमपद वासल’ अर्थात् वैकुण्ठ लोक का द्वार खोला जाता है।तमिल महीने मार्गजी (दिसंबर-जनवरी) के दौरान आयोजित 21 दिन के पर्व में हर साल लगभग 1 मिलियन श्रद्धालु दर्शन के लिए यहाँ आते है और अक्सर इस मंदिर को विश्व में सबसे बड़े कार्यशील हिंदू मंदिर के रूप में भी सूचीबद्ध किया जाता है।समय: 7:30 पूर्वाह्न – 1 अपराह्न, 4:30 अपराह्न- 8 अपराह्न। सामान्य प्रवेश में कोई प्रवेश शुल्क नहीं।शीघ्र दर्शनः 250/- रुपये प्रति व्यक्ति। 4-वेक्कली अम्मन मंदिर;- त्रिची में अन्य प्रसिद्ध पर्यटक आकर्षणों में से एक वेक्कली अम्मन मंदिर है जो देवी पार्वती को समर्पित है। मंदिर उत्तर की ओर उन्मुख है क्योंकि ऐसा माना जाता था कि यह संघर्ष में जीत लाता है। इस भव्य मंदिर में अभयारण्य के निर्माण के लिए उपासकों के सोने और चांदी के उपहारों का उपयोग किया गया था। अब भी, उनके जीवन में कोई महत्वपूर्ण घटना होने से पहले बड़ी संख्या में तीर्थयात्री वेक्कली अम्मान का आशीर्वाद लेने के लिए वहां जाते हैं। मंदिर में चिथिरई, नवरात्रि, कार्तिकाई और आदि पेरुक्कू जैसे महत्वपूर्ण अवसर भी मनाए जाते हैं। समय: सुबह 5 बजे से रात 9 बजे तक

त्रिची कैसे जाएं?- त्रिची तमिलनाडु का एक लोकप्रिय शहर है। तिरुचिरापल्ली शहर का आधिकारिक नाम है।भगवान शिव का यह अद्भुत मंदिर तमिलनाडु के तिरूचिरापल्ली में मौजूद है जहां आप तीनों मार्गों से आसानी से पहुंच सकते हैं। यहां का नजदीकी हवाईअड्डा तिरूचिरापल्ली एयरपोर्ट है। रेल मार्ग के लिए आप तिरूचिरापल्ली रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकते हैं। आप चाहें तो यहां सड़क मार्गों के माध्यम से भी पहुंच सकते हैं। बेहतर सड़क मार्गों से तिरूचिरापल्ली दक्षिण भारत के कई बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है।आप निम्न माध्यमों से त्रिची पहुँच सकते हैं ..ट्रेन से:त्रिची पहुँचने के कई रास्ते हैं। तिरुचिरापल्ली रेलवे स्टेशन त्रिची का मुख्य रेलवे स्टेशन है और त्रिची और इसके आसपास के क्षेत्रों में कार्य करता है। यह भारत के सबसे पुराने और व्यस्ततम रेलवे स्टेशनों में से एक है।हवाई मार्ग से:यदि आप हवाई मार्ग से त्रिची पहुँचना चाहते हैं, तो आप तिरुचिरापल्ली अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के लिए उड़ान भर सकते हैं। यह हवाई अड्डा त्रिची शहर से 9 किमी दूर स्थित है। 5-एकंबरेश्वर मंदिर ( पृथ्वी तत्व/धरती को समर्पित);- 06 FACTS;-

1- दुनिया के सबसे बड़े मंदिरों में से एक एकंबरेश्वर मंदिर भारतीय राज्य तमिलनाडु के कांचीपुरम शहर में स्थित एक प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है। इस मंदिर को एकाम्बरनाथ मन्दिर भी कहा जाता हैं। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मान्यता है कि ये मंदिर 3000 साल पुराना है। पंच तत्वों में से पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करने वाला ये मंदिर शिव के धरती स्वरुप का प्रतिनिधित्व करता है। इस मंदिर का शिवलिंग मिट्टी से बना हुआ है।एकम्बरेश्वर मंदिर का लिंग, सामान्य गोलाकार लिंग ना होकर, शंकु आकार का है।प्रथम किवदंती के अनुसार एक समय शिव ने हंसी-ठठ्ठा करते हुए पार्वती को ‘काली’ बना दिया। पार्वती को यह नहीं भाया। वह कांचीपुरम के समीप से बहती वेगवती नदी के तट पर बैठ गयी। एक आम के वृक्ष के नीचे नदी की बालू से एक शिवलिंग की रचना की तथा उनकी आराधना की। उनकी भक्ति का परीक्षण करने के लिए शिव ने उन पर अग्नि भेजी। देवी पार्वती ने अपने भाई विष्णु से मदद के लिए प्रार्थना की।उन्हें बचाने के लिए, विष्णु ने चंद्रमा को शिव के सिर से लिया और किरणें दिखाईं जिससे पेड़ और पार्वती दोनों को ठंडक मिली। पार्वती की तपस्या को बाधित करने के लिए शिव ने फिर से गंगा नदी ( गंगा ) भेजी। पार्वती ने गंगा से अनुरोध किया और उन्हें आश्वस्त किया कि वे दोनों बहनें थीं और इसलिए उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। इसके बाद, गंगा ने उनकी तपस्या में विघ्न नहीं डाला और पार्वती ने रेत से एक शिव लिंग बनाया।इससे प्रसन्न होकर शिव भी नीचे आये तथा यहाँ दोनों का मिलन हुआ। यहाँ के भगवान को एकम्बरेश्वर या "आम के पेड़ के भगवान" के रूप में जाना जाने लगा।

2-दूसरी दंतकथा के अनुसार पार्वती ने आम के वृक्ष के नीचे, वेगवती नदी के तट पर बालू से निर्मित लिंग की आराधना की थी। उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए शिव ने गंगा का वेग बढ़ा दिया ताकि बालू का लिंग बह जाये। पार्वती ने लिंग का आलिंगन कर उसकी रक्षा की। इससे प्रसन्न होकर शिव भी धरती पर आये तथा यहाँ दोनों का विवाह हुआ। उनके विवाह का उत्सव आज भी फाल्गुन मास में कांचीपुरम के मंदिरों में मनाया जाता है। यह लगभग मार्च-अप्रैल मास में पड़ता है। इस कथा में पार्वती को कामाक्षी भी कहा गया है। एक अन्य किंवदंती के अनुसार, पार्वती ने एक आम के पेड़ के नीचे पृथ्वी लिंगम (या रेत से बने लिंगम) के रूप में शिव की पूजा की थी ।पड़ोसी वेगावती नदी उफान पर आ गई और शिव लिंगम को निगलने की धमकी दी और पार्वती या कामाक्षी ने लिंगम को गले लगा लिया। शिव ने इशारे से छुआ और व्यक्तिगत रूप से उससे विवाह किया। इस संदर्भ में उन्हें तमिल में तज़ुवा कुज़ैन्थर ("वह जो उसके आलिंगन में पिघल गया") के रूप में जाना जाता है।

3- इस मंदिर को शिव जी के प्रमुख मंदिरों में से एक माना जाता है।आम लोगो के लिए मंदिर रोजाना सुबह 6 बजे से दोपहर 12.30 तक और शाम को 4 बजे से रात्रि 8.30 बजे तक खुलता है।इस मंदिर का सबसे बड़ा त्योहार मार्च-अप्रैल में मनाया जाने वाला फाल्गुनी उथीरम होता है।कांचीपुरम में बने इस प्राचीन मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में पल्लव वंश के शासको द्वारा करवाया गया था। 10वी सदी के आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर का पुन:निर्माण करवाया और इस मंदिर के अलावा कामाक्षी अम्मन मंदिर और वरदराज पेरूमल मंदिर का भी निर्माण करवाया था।15वीं सदी में विजयनगर के सम्राटों द्वारा राजगोपुरम सहित बड़े पैमाने पर नवर्निर्माण कार्य सम्पन्न किये गये थे।कांचीपुरम में सबसे बड़ा मंदिर होने के साथ ही यह विजयनगर वंश का उच्च प्रतीक है।चारों शैव संतों, अप्पर, सम्बन्दर, सुन्दरर तथा मनिक्कवसागर ने इस मंदिर की गौरव गाथाएँ गाई हैं।तिरुकुरिप्पुथोंडा नयनार, 63 शैव संतों में से एक, जिन्हें नयनार कहा जाता है, मंदिर के पास एक धोबी थे और उन्होंने सभी शैवों के कपड़े धोए। एक वृद्ध ब्राह्मण के रूप में प्रकट हुए भगवान शिव द्वारा दैवीय रूप से छल किया गया और उसे सुबह होने से पहले धोने के लिए कहा। उसी समय शिव ने मेघमयी संध्या की। शाम होने को देख धोबी ने निराश होकर अपना सिर पत्थर से दे मारा। भगवान अपने असली रूप में प्रकट हुए और अपने भक्त पर कृपा की।

4-एकंबरेश्वर का मतलब है आम के पेड़ के देवता। यहां लिंग एक आम के पेड़ के नीचे स्थापित है।कहा जाता है कि इसी वृक्ष के नीचे पार्वती ने शिव को पाने के लिए कठोर तप किया था। भगवान शिव प्रसन्न होने के बाद इस आम्र वृक्ष में प्रकट हुए, इसलिए उनका नाम 'एकंबरेश्वर' अर्थात आम वृक्ष का देवता पड़ा था। इसके वृक्ष के तने को काट कर मंदिर में धरोहर के रूप में रखा गया है। यह वृक्ष चार वेदों का प्रतीक है तथा माना जाता है कि यह चार अलग-अलग स्वाद वाले आम देता है। कहा जाता है कि यह आम का पेड़ 3500 साल पुराना है।तमिलनाडु में स्थित 40 एकड़ में फैला यह भव्य मंदिर 11 मंजिल ऊँचा है।एकम्बरेश्वर मंदिर का गोपुरम 11 तल का है। निचले दो माले भस्म वर्ण के हैं। गोपुरम के ऊपर 11 धातुई कलश हैं। इसे शुभ तथा समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। 57 मीटर ऊंचे गोपुरम के भीतर, ठीक मध्य में, शिवलिंग का आलिंगन करती पार्वती की प्रतिमा है। प्रतिमा की यह छवि इस मंदिर का प्रतीकात्मक चिन्ह है।द्रविड़ स्थापत्य शैली में निर्मित यह मंदिर दक्षिण भारत के सबसे ऊंचे मंदिरों में से एक है।मंदिर में विजयनगर के राजा कृष्णदेवराय द्वारा 59 मीटर ऊंचा गोपुरम (मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार) बनवाया गया था।जब आप मंदिर परिसर के मुख्य चौबारे में प्रवेश करते हैं, तो एक विशाल गलियारा आपका स्वागत करता है। मंदिर में ऐसे 5 बड़े गलियारे बने हुए हैं।मंदिर के मुख्य मंडप में भगवान शिव विराजमान हैं, यहाँ माता पार्वती का कोई मंदिर नहीं हैं, क्योंकि शहर का कामाक्षी मंदिर उनका प्रतिनिधित्व करता है।गलियारे के अंतिम छोर को पार कर, गर्भगृह की सीध में आप एक छोटा मंडप देखेंगे। यह नंदी मंडप है। इसके भीतर श्वेत रंग में विशाल नंदी हैं जो शिव को निहार रहे हैं।

मंदिर का शिखर कैलाश पर्वत की भान्ति अत्यंत ऊंचा है। इसके ऊपर 7 कलश हैं।

5-मंदिर के सबसे भीतरी परिसर को शिवलिंगम की एक सरणी से सजाया गया है, जिनमें से एक सहस्र लिंगम है जिस पर 1,008 शिवलिंग खुदे हुए हैं ।मंदिर के अन्दर ढाई फीट लंबा बालू से निर्मित एक शिवलिंग भी बना हुआ है। इसका जलाभिषेक नहीं, तैलाभिषेक करके पूजन किया जाता है। श्रद्धालुओं को शिवलिंग तक जाने की अनुमति नहीं है।एक स्थानीय मान्यता है कि कामाक्षी अम्मन मंदिर एकम्बरनाथ की पत्नी है। गर्भगृह में लिंगम की छवि के पीछे, एक पट्टिका में शिव पार्वती का चित्रण है, जिसमें शिव को तज़ुवा कुज़्हिन्थार और पार्वती को इलावर कुज़ाली के रूप में दर्शाया गया है।मंदिर का राजा गोपुरम (मंदिर का प्रवेश द्वार) दक्षिण भारत में सबसे ऊँचा है। गेटवे टॉवर के निचले आधे हिस्से में दोनों तरफ विनायक और मुरुगन के मंदिर हैं। प्रवेश द्वार से, वाहन मंडपम (वाहन हॉल) और सरबेसा मंडपम (जिसे नवरात्रि हॉल भी कहा जाता है) नामक दो हॉल हैं। आयाराम काल मंडपम , या "एक हजार खंभों वाला हॉलवे", जिसे विजयनगर किंग्स द्वारा बनाया गया था, गेटवे टावर के बाद परिसर में पाया जाता है। कहा जाता है कि यह एक भूमिगत पवित्र नदी थी। चौथे प्रांगण में एक छोटा गणेश मंदिर और एक तालाब है। तीसरे प्रांगण में बहुत से छोटे मंदिर हैं।

6-मंदिर का ध्वज स्तंभ गर्भगृह के अक्षीय है और दोनों दिशाओं में मुख्य प्रवेश द्वार और मंदिर के टैंक के तिरछे स्थित है। पचयप्पा मुदलियार के नाम पर थिरुकाची मयनम और कल्याण मंडप नामक एक मंदिर है, जो दोनों झंडे के कर्मचारियों के करीब स्थित हैं। मंदिर के चारों कोनों में थिरुकाची मयनम, वलीसम, ऋषभेशम और सत्यनदेशम स्थित हैं। फ्लैगस्टाफ के हॉल में शिव के विभिन्न किंवदंतियों और अवतारों को इंगित करने वाले जटिल आंकड़ों के साथ नक्काशीदार खंभे हैं।अविराम काल मंडपम मंदिर के मुख्य आकर्षण में से एक है, जिसमें 1000 खम्बे हैं। इन स्तंभों पर अद्भुत नक्काशी की गई है, जो इसकी भव्यता में चार चाँद लगा देती है।मंदिर परिसर में मंडप युक्त एक सुंदर तालाब भी है, जिसे शिव गंगा तीर्थम कहते हैं। इस सरोवर के मध्य में शिव पुत्र भगवान गणेश जी की एक मूर्ति भी स्थापित है।बाहरी गलियारे के मध्य एक ऊंचा ध्वजस्तंभ हैं । यह एक सुन्दर नक्काशे पत्थर के आधार पर स्थित हैंयहाँ गरुड़ स्तंभ भी हैं।मंदिर के प्रांगण में गरूड़-स्तंभ होने का मतलब है कि इस मंदिर का निर्माण पूरा हो चुका है और देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा विधिवत पूरी की गई है।द्रविड़ शैली के मंदिरों में प्रायः पाए जाने वाले इन स्तंभों को दीप स्तंभ, ध्वज स्तंभ जैसे नामों से भी जाना जाता है। पश्चिमी आक्रमणों के दौरान कुछ मंदिर पूर्ण नहीं हो पाए जिन में ध्वज स्तंभ नहीं हैं।

एकम्बरेश्वर मंदिर परिसर के अन्य मंदिर;-

1-काली अम्मा मंदिर;-

आप जब एकम्बरेश्वर मंदिर की परिक्रमा आरम्भ करेंगे तब जो प्रथम मंदिर आपको दाहिनी ओर दृष्टिगोचर होगा वह है काली अम्मा मंदिर। अष्टभुजाधारी काली अम्मा की प्रतिमा के चारों ओर सुनहरी भित्तियाँ थीं। इस देवी प्रतिमा की विशेषता थी देवी के शीश पर स्थित गंगा।

2-उत्सव मूर्ति मंदिर;-

एक कोने में एक छोटा मंदिर हैं जिसके भीतर उमा एवं महेश की आकर्षक मूर्तियाँ हैं । भव्य आभूषणों एवं वस्त्रों से सज्ज उमा एवं महेश के चारों ओर विशाल आभामंडल भी हैं।ये उत्सव मूर्तियाँ हैं। उत्सवों में जब भगवान् को पालकी में बिठा कर मंदिर के बाहर भ्रमण कराया जाता है तब मुख्य प्रतिमा नही अपितु इन उत्सव मूर्तियों को पालकियों में बिठाया जाता है।

3-एकम्बरेश्वर मंदिर में आम का वृक्ष;-

सारे गलियारे घूमकर हम एक प्रांगण में पहुंचते हैं। इस प्रांगण में एक आम का वृक्ष है। ऐसा माना जाता है कि यह वृक्ष कम से कम 3500 वर्ष प्राचीन है। वृक्ष की चार शाखाएं चार भिन्न प्रकार के आम देती हैं।इस वृक्ष से लगा हुआ एक शिव मंदिर है। वृक्ष एवं मंदिर, दोनों ही प्रांगण के मध्य एक मंच पर स्थित हैं।

4-पाषाण पर उत्कीर्ण श्री चक्र यंत्र ;-

आम के वृक्ष के निकट ही एक शिला पर श्री यन्त्र उत्कीर्णित हैं। उन पर अर्पित कुमकुम एवं पुष्प को देख ज्ञात हुआ कि इसकी नियमित पूजा की जाती है। इस शिला के आगे एक मंदिर हैं।

5-सहस्त्रलिंग मंदिर;-

एक कोने में स्थित यह एक छोटा सा मंदिर हैं जिसके भीतर एक शिवलिंग पर 1008 शिवलिंग निर्मित हैं ।

6-नटराज मंदिर;-

परिक्रमा उत्तरार्ध में गर्भगृह के प्रवेश द्वार की ओर बाईं ओर स्थित एक कक्ष में नटराज की सुन्दर मूर्ति हैं।यहाँ इस नटराज मूर्ति की पूजा की जाती है।नटराज मंदिर के समीप एक छोटे से मंदिर के भीतर भी सुन्दर उत्सव मूर्तियाँ रखी हुई हैं।

7-महाविष्णु मंदिर;-

मंदिर परिसर के अंदर विष्णु के लिए एक छोटा सा मंदिर है जिसका नाम नीलाथिंगल थुंडम पेरुमल मंदिर है। विष्णु को वामन मूर्ति के रूप में प्रार्थना की जाती है और मंदिर को अलवर संतों द्वारा 108 दिव्य देशमों में से एक के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है ।परिक्रमा के अंतिम चरण में, गर्भगृह के समीप, महाविष्णु को समर्पित यह एक छोटा मंदिर हैं

कांचीपुरम के अन्य मंदिर;-

कांची का अर्थ (ब्रह्मा), आंची का अर्थ (पूजा) और पुरम का अर्थ (शहर) होता है यानी ब्रह्मा को पूजने वाला पवित्र स्थान। शायद इसलिए यहाँ विष्णु के अनेक मंदिर स्थापित किए गये हैं, जिस कारण इसे यह नाम दिया गया है।मान्यता है कि इस क्षेत्र में प्राचीन काल में ब्रह्माजी ने देवी के दर्शन के लिये तप किया था। ऐसा माना जाता है कि जो भी यहाँ जाता है, उसे आंतरिक आनंद के साथ-साथ मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। मोक्षदायिनी सप्त पुरियों अयोध्या, मथुरा, द्वारका, माया(हरिद्वार), काशी और अवन्तिका (उज्जैन) में कांचीपुरम की भी गणना है। कांची हरिहरात्मक पुरी है। इसके दो भाग शिवकांची और विष्णुकांची हैं।किंवदंती के अनुसार, कांचीपुरम नाम कै और अनची शब्द से लिया गया है। “कै” हिंदू भगवान ब्रह्मा को संदर्भित करता है और “अनची” भगवान विष्णु की पूजा के लिए संदर्भित करता है। यहाँ कई बडे़ मन्दिर हैं, जैसे वरदराज पेरुमल मन्दिर, बैकुंठ पेरूमल मंदिर... भगवान विष्णु के लिये, कामाक्षी अम्मन मन्दिर, कुमारकोट्टम, कच्छपेश्वर मन्दिर, कैलाशनाथ मन्दिर, इत्यादि। कांचीपुरम कैसे जाएं?-

चेन्नई से करीब 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है....कांचीपुरम। कांचीपुरम का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा चेन्नई है। एकम्बरेश्वर मंदिर, कांचीपुरम बस स्थानक से 2 की.मी. तथा रेल स्टेशन से लगभग आधे की.मी. दूर स्थित है। पांचों मंदिरों के दर्शन के लिए यात्रा कैसे करे...कैसे जाएं?- पंचभूत स्थल दक्षिण भारत में पांच शानदार प्राचीन मंदिर हैं, जिनका निर्माण मानव चेतना को विकसित करने के एक माध्यम के रूप में किया गया। हर मंदिर का निर्माण पांच तत्वों में से एक तत्व के लिए किया गया। श्रीकलाहस्ति में मंदिर वायु तत्व के लिए है। इसी तरह कांचीपुरम में पृथ्वी तत्व के लिए, तिरुवन्नामलाई में अग्नि तत्व के लिए, चिदंबरम में आकाश तत्व के लिए और तिरुवनाईकवल में जल तत्च के लिए मंदिर निर्माण किया गया।पांचों मंदिरों के दर्शन के लिए केंद्रीय स्थान चेन्नई है। चेन्नई में स्थित इस इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लिए आपको भारत के अलग-अलग प्रमुख बड़े शहरों के अलावा विदेशों से भी डायरेक्ट फ्लाइट आसानी से मिल जाती है। चेन्नई में स्थित इस चेन्नई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा को पहले मद्रास अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के नाम से जाना जाता था । यह चेन्नई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा चेन्नई शहर के मुख्य केंद्र से तकरीबन 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।चेन्नई से आप निम्न क्रम में यात्रा कर सकते हैं-चेन्नई से कांचीपुरम इस्ट तक पहुँचने के लिए 94 कि.मी. की दूरी करनी पड़ती है।चेन्नई से तिरुपति तक पहुँचने का सबसे तेज़ तरीका तिरुपति के लिए बस है और इसमें 2 घंटे 15 मिनट लगते हैं।तिरुपति में ही कालाहस्ती मंदिर स्थित है। पहला दिन: - चेन्नई पहुंचकर कालाहस्ती के लिए प्रस्थान। 150 किलोमीटर चलकर तीन घंटे में कालाहस्ती। दिन में पूजा व अभिषेक और रात्रि विश्राम। दूसरा दिन: - सुबह पांच बजे कालाहस्ती से प्रस्थान। 180 किलोमीटर चलकर चार घंटे में कांची पहुंचे। ध्यान रहे कि 12 बजे तक मंदिर बंद हो जाते हैं। पहले एकंबर नाथ के दर्शन फिर माता कामाक्षी देवी के दर्शन और फिर विष्णु मंदिर। दोपहर में भोजन करें और दो बजे तक प्रस्थान कर दें। 150 किलोमीटर चलकर तीन घंटे में तिरुवन्नमलाई। वहां से अरुणाचलेश्वर के दर्शन और अभिषेक के बाद रात्रि विश्राम। तीसरा दिन:- प्रस्थान सुबह पांच बजे और 250 किलोमीटर चलकर त्रिचीपल्ली। (त्रिची) पहुंचे वहां जम्बूकेश्वर के दर्शन। त्रिची में यह मंदिर थिरुवन्नाईकावल के शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है। इसके बाद श्रीरंगजी का मंदिर और विशाल देवी मंदिर। रात्रि में विश्राम।

चौथा दिन:- सुबह चार बजे प्रस्थान। 250 किलोमीटर चलकर पांच घंटे में चिदंबरम पहुंचे। पूजा-अर्चना के बाद प्रस्थान एक बजे और पांडिचेरी होते हुए 200 किलोमीटर का सफर कर रात में चेन्नई पहुंचे। ...SHIVOHAM...


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