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दशम महाविद्या कमला की साधना।



03 FACTS;-

1-श्री कमला महाविद्या इस श्रष्टि की केन्द्रीय सर्वोच्च नियामक एवं क्रियात्मक सत्ता मूल शक्ति की प्रकृति (गुण) स्वरूपी प्रधान सोलह कलाओं में से दशम कला, प्रवृत्ति (स्वभाव) स्वरूपी प्रधान सोलह योगिनियों में से दशम योगिनी, तुरीय आदि प्रधान सोलह अवस्थाओं में से दशम अवस्था एवं चतु: आयाम से युक्त क्रिया रूपी सोलह विद्याओं में से दशम विद्या के रूप में सृजित हुई है !देवी कमला या कमलात्मिका, दस महाविद्याओं में दसवें स्थान पर अवस्थित तथा कमल या पद्म पुष्प के समान दिव्यता की प्रतीक हैं । देवी कमला, तांत्रिक लक्ष्मी के नाम से भी जानी जाती हैं, देवी का सम्बन्ध सम्पन्नता, सुख, समृद्धि, सौभाग्य और वंश विस्तार से हैं । दस महाविद्याओं की श्रेणी में देवी कमला अंतिम स्थान पर अवस्थित हैं । महाविद्या कमला मंत्र से भाग्य को आकर्षित करती है।। देवी कमला भगवान विष्णु की साक्षात शक्ति हैं और महाविष्णु की सभी दिव्य गतिविधियों में सहचरी हैं।उनकी पूजा वास्तव में इस संसार के अस्तित्व का मूल कारण शक्ति की पूजा है। उनके आशीर्वाद के बिना मनुष्य का जीवन दुर्भाग्य और कष्टों से भर जाता है। न केवल मनुष्य बल्कि देवता, दानव, गंधर्व भी उनकी कृपा और आशीर्वाद पाने के लिए उत्सुक रहते हैं।देवी कमला आपको बहुत कम समय में अमीर बनाने वाली सबसे शक्तिशाली देवी हैं, आप दुर्भाग्य से छुटकारा पा सकते हैं और यहां तक ​​कि एक गरीब, दुर्भाग्यशाली व्यक्ति भी इस देवी की साधना करके उच्चतम भौतिक सफलता तक पहुंच सकता है। यह शुक्र ग्रह के दुष्प्रभाव को दूर करती है।

2-श्रीमद भागवत के आठवें स्कन्द में देवी कमला के उद्भव की कथा प्राप्त होती हैं । देवी कमला का प्रादुर्भाव समुद्र मंथन से हुआ; एक बार देवताओं तथा दानवों ने समुद्र का मंथन किया, जिनमें अमृत प्राप्त करना मुख्य था । दुर्वासा मुनि के श्राप के कारण सभी देवता लक्ष्मी या श्री हीन हो गए थे, यहाँ तक ही भगवान विष्णु को भी लक्ष्मी जी ने त्याग कर दिया था । पुनः श्री सम्पन्न होने हेतु या नाना प्रकार के रत्नों को प्राप्त कर समृद्धि हेतु, देवताओं तथा दैत्यों ने समुद्र का मंथन किया । समुद्र मंथन से चौदह रत्न प्राप्त हुए, उन चौदह रत्नों में धन, राज सुख व समृद्धि की देवी ‘कमला’ तथा निर्धन की देवी ‘निऋति या अलक्ष्मी’ नामक दो बहनों का प्रादुर्भाव हुआ था । जिनमें, देवी कमला भगवान विष्णु को दे दी गई और निऋति दुसह नामक ऋषि को । देवी, भगवान विष्णु से विवाह के पश्चात, कमला-लक्ष्मी नाम से विख्यात हुई । तत्पश्चात देवी कमला ने विशेष स्थान पाने हेतु, ‘श्री विद्या की कठोर आराधना की, उनकी अराधना से संतुष्ट हो देवी त्रिपुरा ने उन्हें श्री उपाधि प्रदान की तथा महाविद्याओं में स्थान दिया । उस समय से देवी का सम्बन्ध पूर्णतः धन, समृद्धि तथा राज सुखों से है । देवी सत्व गुण से सम्बद्ध हैं, धन तथा सौभाग्य की अधिष्ठात्री देवी हैं । स्वच्छता, पवित्रता, निर्मलता देवी को अति प्रिय हैं तथा देवी ऐसे स्थानों में ही वास करती हैं । प्रकाश से देवी कमला का घनिष्ठ सम्बन्ध हैं, देवी उन्हीं स्थानों को अपना निवास स्थान बनती हैं जहां अँधेरा न हो, इसके विपरीत देवी की बहन अलक्ष्मी, ज्येष्ठा, निऋति जो निर्धनता, दुर्भाग्य से सम्बंधित हैं, अंधेरे तथा अपवित्र स्थानों को ही अपना निवास स्थान बनती हैं ।

3-देवी कमला के स्थिर निवास हेतु स्वच्छता तथा पवित्रता अत्यंत आवश्यक हैं । देवी की आराधना तीनों लोकों में सभी के द्वारा की जाती हैं, दानव या दैत्य, देवता तथा मनुष्य सभी को देवी कृपा की आवश्यकता रहती हैं; क्योंकि सुख तथा समृद्धि सभी प्राप्त करना चाहते हैं । देवी आदि काल से ही त्रि-भुवन के समस्त प्राणियों द्वारा पूजित हैं । देवी की कृपा के बिना, निर्धनता, दुर्भा ग्य, रोग ग्रस्त, कलह इत्यादि जातक से सदा संलग्न रहता हैं परिणामस्वरूप जातक रोग ग्रस्त, अभाव युक्त, धन हीन, निराश, उदास रहता हैं । देवी कमला ही समस्त प्रकार के सुख, समृद्धि, वैभव इत्यादि सभी प्राणियों, देवताओं तथा दैत्यों को प्रदान करती हैं । एक बार देवता यहाँ तक ही भगवान विष्णु भी लक्ष्मी हीन हो गए थे, परिणामस्वरूप सभी दरिद्र तथा सुख-वैभव रहित हो गए थे । यह देवी अनन्त समृद्धि, धन, यश, प्रतिष्ठा, शासन – सत्तात्मक शक्तियों की स्वामिनी होने के कारण आदिकाल से ही राजघरानों व अन्य सर्व समृद्ध वंशों या व्यक्तियों के द्वारा पूजित व आराधित होते रहने के कारण ही “श्री राजराजेश्वरी” कहलाती हैं ! तथा जो व्यक्ति इनकी उपासना या साधना करता है, वह व्यक्ति अनन्त समृद्धि, धन, यश, प्रतिष्ठा, शासन – सत्तात्मक शक्तियों से सम्पन्न हो जाता है ! सभी धर्मों के अंतर्गत कमल पुष्प को बहुत पवित्र तथा महत्त्वपूर्ण माना जाता हैं । बहुत से देवी देवताओं की साधना, आराधना में कमल पुष्प आवश्यक हैं तथा सभी देवताओं पर कमल पुष्प निवेदन कर सकते हैं । कमल की उत्पत्ति मैले, गंदे स्थानों पर होती हैं, परन्तु कमल के पुष्प पर मैल, गन्दगी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता हैं, कमल अपनी दिव्य शोभा लिये, सर्वदा ही पवित्र रहता हैं तथा दिव्य पवित्रता को प्रदर्शित करता हैं । देवी कमला, कमल प्रिय हैं, कमल के आसान पर ही विराजमान रहती हैं, कमल के माला धारण करती हैं, कमल पुष्पों से ही घिरी हुई हैं ।

मुख्य नाम : कमला ।

अन्य नाम : लक्ष्मी, कमलात्मिका, श्री, राजराजेश्वरी ।

भैरव : श्री कमलेश्वर विष्णु ।

तिथि : कोजागरी पूर्णिमा, अश्विन मास पूर्णिमा ।

कुल : श्री कुल ।

दिशा : उत्तर-पूर्व ।

स्वभाव : सौम्य स्वभाव ।

कार्य : धन, सुख, समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी ।

शारीरिक वर्ण : सूर्य की कांति के समान ।

माँ कमला की साधना ग्यारह दिनों की साधना है.....

कमला महाविद्या साधना;--

महाविद्या कमला मंत्र;-

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं हौं जगत्प्रसूत्यै नमः॥

अथवा

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह सौः जगत प्रसूतयै नमः

माँ कमला देवी साधना विधि;-

महाविद्या कमला साधना को करने के लिए साधक की समस्त सामग्री में वि शेष रूप से सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित “कमला यंत्र”, “ मूँगे की माला ” होनी चाहिये । साधना आप नवरात्रि या किसी भी शुक्ल पक्ष के शुक्रवार के दिन से शुरू कर सकते हैं।

समय... रात्रि 9 बजे के बाद कर सकते हैं।महाविद्या वाले साधक को स्नान करके शुद्ध लाल वस्त्र धारण करके अपने घर में किसी एकान्त स्थान या पूजा कक्ष में पूर्वदिशा की तरफ़ मुख करके लाल ऊनी आसन पर बैठ जाए ! उसके बाद अपने सामने चौकी रखकर उस पर लाल रंग का कपड़ा बिछा कर उस पर ताम्र पत्र की प्लेट में एक कमल का पुष्प रखें उसके बाद उस पुष्प के बीच में सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त “कमला यंत्र” को स्थापित करें ! और उसके दाहिनी तरफ भगवान शिव जी और अपने गुरु की फोटो स्थापित करें ! उसके बाद यन्त्र के सामने शुद्ध घी का दीपक जला कर यंत्र का पूजन करें और मन्त्र विधान अनुसार संकल्प आदि कर सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग पढ़े । प्रत्येक देवी-देवता की साधना में मंत्र जप, कवच एवं स्तोत्र पाठ तथा न्यासादि करने से पहले विनियोग पढ़ा जाता है। इसमें देवी या देवता का नाम, उसका मंत्र, उसकी रचना करने वाले ऋषि, उस स्तोत्र के छंद का नाम, बीजाक्षर शक्ति और कीलक आदि का नाम लेकर अपने अभीष्ट मनोरथ सिद्धि के लिए जप का संकल्प लिया जाता है। इसके बाद न्यास किए जाते हैं। उपरोक्त विनियोग में जिन देवता, ऋषि, छंद, बीजाक्षर शक्ति और कीलक आदि का नाम होता है, उन्हीं को अपने शरीर में प्रतिष्ठित करते हैं।


श्रीमहालक्ष्मी मंत्रस्य भृगु ऋषिः, निचरंछन्दः,श्रीमहालक्ष्मी देवता, श्रीं बीजम྄, ह्रीं शक्तिः, ऐं कीलकम्, श्रीमहालक्ष्मी प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादि न्यास ;-

इसके अंतर्गत इष्टदेव को मस्तक, मुख, हृदय, गुह्य स्थान, पैर, नाभि एवं सर्वांग में स्थापित करते हैं ताकि शरीर में उनका (देवी या देवता का) वास हो जाए। यही ऋष्यादिन्यास कहलाता है।(कमला महाविद्या साधना): बाएँ(Left Hand) हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ(Right Hand) की समूहबद्ध, पांचों उंगलियों से निम्न मंत्रों के साथ शरीर के विभिन्न अंगों को स्पर्श करें और ऐसी भावना मन में रखें कि वे सभी अंग तेजस्वी और पवित्र बन रहे है। ऐसा करने से अंग शक्तिशाली बनते है और चेतना प्राप्त होती है।

भृगुऋषये नम: शिरसि (सिर को स्पर्श करें)

निच्रच्छ्न्दसे नम: मुखे (मुख को स्पर्श करें)

श्रीमहालक्ष्मीदेवतायै नम: ह्रदये (ह्रदय को स्पर्श करें)

श्रीं बीजाय नम: गुहे (गुप्तांग को स्पर्श करें)

ह्रीं शक्तये नम: पादयो: (दोनों पैरों को स्पर्श करें)

ऐं कीलकाय नम: नाभौ (नाभि को स्पर्श करें)

विनियोगाय नम: सर्वांगे (पूरे शरीर को स्पर्श करें)

कर न्यास (कमला महाविद्या साधना):-

करन्यास के अंतर्गत विभिन्न बीजाक्षरों और शब्दों को हाथ की पांचों उंगलियों में स्थापित करते हैं। चूंकि हाथ से माला जपी जाती है, इसलिए हाथ में मंत्र को प्रतिष्ठित करना आवश्यक होता है।

अपने दोनों हाथों के अंगूठे से अपने हाथ की विभिन्न उंगलियों को स्पर्श करें, ऐसा करने से उंगलियों में चेतना प्राप्त होती है।

श्रां अंगुष्ठाभ्यां नम:।

श्रीं तर्जनीभ्यां नम: ।

श्रूं मध्यमाभ्यां नम: ।

श्रैं अनामिकाभ्यां नम: ।

श्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नम: ।

श्र: करतलकरपृष्ठाभ्यां नम: ।

ह्र्दयादि न्यास:-

हृदयादिन्यास के अंतर्गत मंत्राक्षरों को शरीर के मुख्य स्थानों- मस्तक, हृदय, शिखा-स्थान (जहां आत्मा का वास है), नेत्र तथा सर्वांग की रक्षा हेतु प्रतिष्ठित किया जाता है ताकि समस्त शरीर मंत्रमय हो जाए और शरीर में देवी या देवता का आविर्भाव हो जाए।पुन: बाएँ(Left Hand) हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ(Right Hand) की समूहबद्ध, पांचों उंगलियों से निम्न मंत्रों के साथ शरीर के विभिन्न अंगों को स्पर्श करें और ऐसी भावना मन में रखें कि वे सभी अंग तेजस्वी और पवित्र बन रहे है। ऐसा करने से अंग शक्तिशाली बनते है और चेतना प्राप्त होती है।

श्रां ह्रदयाय नम: (ह्रदय को स्पर्श करें)

श्रीं शिरसे स्वाहा ( सिर को स्पर्श करें)

श्रूं शिखायै वषट् (शिखा को स्पर्श करें)

श्रैं कवचाय हुम् (दोनों कंधों को स्पर्श करें)

श्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् (दोनों नेत्रों को स्पर्श करें)

श्र: अस्त्राय फट् (अपने सिर पर सीधा घुमाकर चारों दिशाओं में चुटकी बजाएं)

कमला ध्यान : -

ध्यान के अंतर्गत ध्यान मंत्र बोला जाता है। इष्टदेव अथवा देवी-देवता का स्वरूप अपने मन में बिठाकर तथा चित्तवृत्तियों को सब ओर से हटाकर मंत्र जप करने से साधक को सफलता शीघ्र मिलती है।इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर माँ भगवती कमला का ध्यान करके पूजन करें।

कान्त्या कांचन सन्निभां हिमगिरी प्रख्यैश्चतुर्भिर्ग्गजै: ।

हस्तोत्क्षिप्त हिरण्मयामृतघटै रासिच्यमानां श्रियम् ॥

बिभ्राणां वरमब्ज युग्ममभयं हस्ते किरीटोज्ज्वम् ।

क्षौमाबद्धनितम्बबिम्बलसितां वन्देरविन्द स्थिताम ॥

मंत्र का जप: -

देवी-देवता के स्वरूप का ध्यान करते हुए उनके मूल मंत्र का जप माला द्वारा जिह्वा, कंठ, प्राणों या सुरति से करना चाहिए। मंत्र देवी-देवता के नाम, रूप तथा गुण को प्रदर्शित करता है। इसका अर्थ समझते हुए एकाग्रचित्त होकर श्रद्धापूर्वक मंत्र जप करने से शीघ्र सिद्धि मिलती है। धूप, दीप, चावल, पुष्प से तदनन्तर कमला महाविद्या मन्त्र का जाप करें।पूजन सम्पन्न कर सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित ‘मूंगा’ माला से निम्न मंत्र की 23 माला 11 दिन तक मंत्र जप करें।

॥ ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह्सौ: जगत्प्रसूत्यै नम: ॥

मन्त्र जाप के पश्चात् कमला कवच का पाठ करें ;-

॥ कमला महाविद्या कवच॥

ऐन्कारो मस्तके पातु वाग्भवी सर्वसिद्धिदा ।

ह्रीं पातु चक्षुषोर्मध्ये चक्षुयुग्मे च शांकरी ॥

जिह्वायां मुखव्रत्ते च कर्णयोर्दन्तयोर्नसि ।

ओष्ठाधरे दंतपन्क्तौ तालुमूले हनौ पुन: ॥

पातु मां विष्णुवनिता लक्ष्मी: श्रीविष्णुरूपिणी ।

कणयुग्मे भुजद्वन्द्वे स्तनद्वन्द्वे च पार्वती ॥

ह्रदये मणिबंधे च ग्रीवायां पाशर्वयो: पुन: ।

पृष्ठदेशे तथा गुहे वामे च दक्षिणे तथा ॥

उपस्थे च नितम्बे च नाभौ जंघाद्वये पुन: ।

जानुचक्रे पदद्वन्द्वे घुटिकेऽड़ूगुलिमूलके ॥

स्वधातु-प्राणशक्त्यात्मसीमन्ते मस्तके पुन: ।

विजया पातु भवने जया पातु सदा मम ॥

सर्वांगे पातु कामेशी महादेवी सरस्वती ।

तुष्टि: पातु महामाया उत्कृष्टि: सर्वदाऽवतु ॥

ऋद्धि: पातु महादेवी सर्वत्र शम्भुवल्लभा ।

वाग्भवी सर्वदा पातु पातु मां हरगेहिनी ॥

रमा पातु सदा देवी पातु माया स्वराट् स्वयम् ।

सर्वांगे पातु मां लक्ष्मीर्विष्णुमाया सुरेश्वरी ॥

शिवदूती सदा पातु सुन्दरी पातु सर्वदा ।

भैरवी पातु सर्वत्र भेरुंडा सर्व्वदाऽवतु ।

त्वरिता पातु मां नित्यमुग्रतारा सदाऽवतु ।

पातु मां कालिका नित्यं कालरात्रि: सदावतु ॥

नवदुर्गा सदा पातु कामाक्षी सर्वदाऽवतु ।

योगिन्य: सर्वदा पान्तु मुद्रा: पान्तु सदा मम ॥

मात्रा: पान्तु सदा देव्यश्चक्रस्था योगिनीगणा: ।

सर्वत्र सर्वकामेषु सर्वकर्मसु सर्वदा ।

पातु मां देवदेवी च लक्ष्मी: सर्वसम्रद्धिदा ॥

NOTE;-

यह ग्यारह दिन की साधना है। साधना के बीच साधना के नियमों का अच्छे से पालन करें। भय रहित होकर पूर्ण आस्था के साथ ग्यारह दिन तक कमला मंत्र जप करें। नित्य जाप करने से पहले संक्षिप्त पूजन अवश्य करें। साधना के बारे में जानकारी गुप्त रखें। ग्यारह दिन तक मन्त्र का जाप करने के बाद जिस मन्त्र का आपने जाप किया है उसका दशांश (10%) या संक्षिप्त हवन कमल गट्टे, शुद्ध घी, हवन समग्री में मिलाकर करें। हवन के पश्चात् यंत्र को अपने घर के मंदिर या तिजोरी में लाल वस्त्र में बांधकर रख दें। यह यंत्र एक वर्ष तक वहीं रखें और बाकि बची पूजा सामग्री को नदी या किसी पीपल के नीचे विसर्जित कर दें। इस तरह करने से यह साधना पूर्ण मानी जाती है। साधना के संकल्प सहित कार्य भविष्य में शीघ्र ही पूरे होते है, साधक को धन, धान्य, भूमि, वाहन, लक्ष्मी आदि प्राप्त होने लगती है। धन से जुडी समस्या उसकी दूर हो जाती है और उसके जीवन की दरिद्रता पूर्णत: समाप्त हो जाती है।

...SHIVOHAM..

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